Hindi Story, लेखक - ए. सिन्हा
महीनों नहीं, सालों गुजर गए थे, उसे इसी तरह इंतजार करते हुए. वह सोचता था कि शायद किसी दिन रंजू मेम साहब का खत आ जाए. लेकिन इंतजार का मीठा फल उसे अभी तक नहीं मिला था. वह अब उसी होटल का मालिक हो गया था, जिस में कभी वह नौकर हुआ करता था.
उन दिनों रंजू अपनी सहेलियों के साथ इम्तिहान देने आई थी. वे सब उसी होटल में नाश्ता करती थीं, जहां वह बैरा था.
जब रंजू पहली बार होटल में आई थी, तो वही और्डर लेने गया था. वह दिन उसे अच्छी तरह याद था. उस के दिलोदिमाग पर उस दिन की सभी बातें जैसे अपनी अनोखी छाप छोड़ गई थीं.
‘‘जी मेम साहब,’’ वह मेज के पास जा कर बोला था.
‘‘4 जगह समोसे और कौफी,’’ सब से खूबसूरत लड़की बोली थी.
वह सामान मेज पर रख कर पास में ही खड़ा हो गया था. फिर तो यह रोज का काम हो गया था.
रंजू के आते ही वह सभी ग्राहकों को छोड़ कर उस की मेज के पास पहुंच जाता था. जाने क्यों, उसे वह बहुत अच्छी लगती थी.
उस के दिल की बात शायद रंजू के साथसाथ उस की सहेलियां भी भांप गई थीं. तभी तो एक दिन एक लड़की ने पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘अनु,’’ ...छोटा सा जवाब उस ने दिया था.
‘‘अनु... वाह, क्या बात है. रंजू, तुम्हारे आशिक का नाम तो लाजवाब है. बहुत प्यारा है तुम्हारा आशिक,’’ एक दूसरी लड़की बोली थी.
इस बात पर सभी लड़कियां हंस दी थीं. तब अनु को ऐसा महसूस हुआ, मानो पायलों की झंकार गूंज उठी हो. तभी उस ने देखा कि रंजू भी तिरछी निगाहों से उस की ओर देख रही थी.
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