Superstition, लेखक – शकील प्रेम
नोएडा, उत्तर प्रदेश की रहने वाली कंचन की शादी को 7 साल हो चुके थे. इस बीच उसे एक के बाद एक 3 बेटियां हो गईं. तीसरी बेटी के जन्म के बाद से ही कंचन के पति महेश का रवैया बदल गया था, जैसे कि बेटी पैदा करने का सारा कुसूर कंचन का ही है. कंचन और बच्चा नहीं चाहती थी और अपनी तीनों बेटियों को अच्छी परवरिश देना चाहती थी.
कंचन की सब से छोटी बेटी जब 2 साल की हुई, तो कंचन ने नजदीक के एक प्राइवेट स्कूल में प्राइमरी टीचर के रूप में नौकरी करना शुरू कर दिया और अपनी दोनों बड़ी बेटियों का एडमिशन भी इसी प्राइवेट स्कूल में करा दिया.
कंचन सुबह अपनी दोनों बेटियों को स्कूल के लिए तैयार करती और सब से छोटी बेटी को दादादादी के पास छोड़ कर खुद भी तैयार हो कर स्कूल चली जाती.
कंचन के पति और उस के परिवार वाले कंचन के इस फैसले से खुश नहीं थे. वे चाहते थे कि कंचन घर में रहे और एक बेटे को जन्म दे, लेकिन कंचन अपनी जिद पर अड़ी थी.
कंचन का गर्भनिरोधक गोलियां लेना महेश को पसंद नहीं था, लेकिन कंचन नहीं मानती थी. इस से उन दोनों में बातबात पर लड़ाइयां होने लगीं. कंचन की सास भी लगातार ताने मारती थी, जिस से कंचन का घर में रहना मुश्किल होता जा रहा था. इस सब में कंचन को अपनी बेटियों की चिंता थी.
कंचन पर घर के बिगड़ते हालात का असर होने लगा. धीरेधीरे एक साल और बीत गया. अब वह पहले जैसी नहीं रह गई थी. कभी वह अचानक जोरजोर से हंसने लगती, तो कभी गहरी उदासी में चली जाती. उदासी के वक्त उस के मन में बहुत ही बुरे खयाल आते. कई बार तो खुदकुशी करने का मन करता.
कंचन के बदलते बरताव को देख कर उस की सास को लगने लगा था कि कंचन पर कोई ऊपरी चक्कर हो गया है. कंचन का पति महेश भी अपनी मां की बात को सही मानने लगा.
रविवार का दिन था. महेश और कंचन दोनों की छुट्टी थी. सुबह कंचन पर उस की बीमारी हावी हुई और वह घर के बरतनों को उठा कर फेंकने लगी. कंचन ने अपनी छोटी बेटी को मारने की कोशिश भी की.
यह देख कर महेश बेहद घबरा गया और कंचन के शांत हो जाने के बाद उस ने कंचन से कहा, ‘‘कंचन, कल सोमवार है. मैं औफिस से छुट्टी करूंगा, तुम भी कल छुट्टी कर लो और मेरे साथ गाजियाबाद चलो. वहां एक बाबा हैं, जो तुम्हारे ऊपर के बुरे साए का इलाज कर देंगे.’’
कंचन पढ़ीलिखी थी और जानती थी कि ऊपरी चक्कर जैसी बातें महज अंधविश्वास हैं. उसे कोई ऊपरी चक्कर नहीं है, बल्कि यह एक दिमागी बीमारी है. इस का इलाज कोई मनोचिकित्सक ही कर सकता है.
कंचन ने महेश से कहा, ‘‘ठीक है, कल तुम छुट्टी कर लो. मैं तुम्हारे साथ गाजियाबाद चलूंगी, लेकिन किसी बाबा के पास नहीं, बल्कि हम दोनों गाजियाबाद के एक अस्पताल चलेंगे.’’
महेश अपनी पत्नी कंचन की बात से सहमत नहीं था, लेकिन वह जानता था कि कंचन बहुत जिद्दी औरत है, अगर उसे कल अस्पताल जाना है, तो वह जा कर ही रहेगी.
गाजियाबाद के एक अस्पताल में चैकअप कराने के बाद पता चला कि कंचन को ‘बायपोलर डिसऔर्डर’ है. डाक्टर ने 3 महीने की दवा लिखी और कंचन के पति महेश को समझाया कि अगर कंचन को पूरी तरह ठीक देखना है, तो उसे घर में तनाव के वातावरण से छुटकारा दिलाना होगा.
महेश अपनी पत्नी कंचन से प्यार करता था. वह डाक्टर की बात सम?ा गया और 3 महीने में ही कंचन इस बीमारी से छुटकारा पा गई.
रुखसाना किसी हिंदू लड़के से प्यार करती थी, लेकिन रुखसाना और उस के प्रेमी के बीच धर्म की दीवारें इतनी ऊंची थीं कि वह लांघ न पाई और घर वालों की मरजी से उस ने अपने धर्म के लड़के से शादी कर ली.
पर शादी के 2 साल बाद तक रुखसाना अपने पहले प्यार को नहीं भूल पाई. इस में रुखसाना के शौहर अजीम का ही कुसूर था.
इन 2 सालों में अजीम ने रुखसाना को एक भी ऐसा पल नहीं दिया था, जिस में उसे यह एहसास हो सके कि अजीम उस के प्रेमी से बेहतर है. बातबात पर हाथ उठा देना अजीम की फितरत थी. गालियां बकना तो रोज की बात थी. अजीम के घर वालों का बरताव भी ज्यादा अच्छा नहीं था.
ससुराल वालों के इसी रवैए को देख कर रुखसाना अभी बच्चा नहीं चाहती थी, बल्कि वह नौकरी करना चाहती थी, लेकिन उस के शौहर को उस का नौकरी करना पसंद नहीं था.
एक दिन रुखसाना को पता चला कि उस के प्रेमी ने शादी कर ली है, तो रुखसाना का दिल टूट गया और तभी से उस की दिमागी हालत में गड़बड़ी पैदा होने लगी.
रुखसाना के मन में अजीबअजीब से विचार आने लगे. कभी उसे लगता कि उस का प्रेमी बांहें फैलाए घर के बाहर खड़ा है, तो वह दौड़ कर बाहर जाती और उसे वहां न पा कर जोरजोर से रोने लगती.
रुखसाना हमेशा डरती रहती. कभी तेज आवाज में चिल्लाने लगती, तो कभी जोरजोर से रोने लगती. हालत बिगड़ती देख रुखसाना की ससुराल वाले डर गए और उन्होंने बहाना बना कर रुखसाना को मेरठ में उस के मायके भेज दिया.
मेरठ में रुखसाना का भाई उस की बीमारी को ऊपरी चक्कर सम?ा बैठा और उस ने रुखसाना के इलाज के लिए मेरठ के एक पीर बाबा से बात भी कर ली. रुखसाना की भाभी नगमा पढ़ीलिखी थी और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी.
नगमा ने अपने पति को समझाया कि वह रुखसाना का इलाज अच्छे अस्पताल में किसी दिमाग के डाक्टर से कराए. जल्द ही नगमा की वजह से रुखसाना का इलाज नजदीकी प्राइवेट अस्पताल में होने लगा.
डाक्टर ने रुखसाना में सिजोफ्रेनिया के लक्षण पाए. 6 महीने तक रुखसाना का ट्रीटमैंट चलता रहा. बेहतर मानसिक इलाज की बदौलत आखिरकार रुखसाना ठीक हो गई.
नगमा ने अपनी कंपनी में बात की और रुखसाना को भी वहीं नौकरी दिला दी. एक साल बाद ही रुखसाना ने अपने शौहर अजीम को तलाक का नोटिस भिजवा दिया और इस वक्त वह बेहद खुशहाल जिंदगी जी रही है.
सभी तरह की दिमागी बीमारियों के लक्षण ऐसे ही होते हैं, जिन्हें आम आदमी सम?ा नही पाता, क्योंकि हम बचपन से जिस सामाजिक माहौल में पलेबढ़े होते हैं, वहां इस तरह की बीमारियों को भूतप्रेत और जिन्न से जोड़ कर ही देखा जाता है.
ऐसी बीमारियां सदियों से रही हैं. हर धर्म के पुरोहित, बाबा, पादरी और मुल्लाओं ने इन बीमारियों का इस्तेमाल अपना धंधा चमकाने में किया है. ज्यादातर औरतों को होने वाली दिमागी बीमारियों के जरीए पुरोहितों वगैरह द्वारा आम आदमी के मन में जिन्न, चुड़ैल, बुरी आत्माएं और जादूटोने का डर बिठाना आसान हो जाता था.
शुरू से ही दिमागी तौर पर बीमार औरतों के साथ इस तरह की घटनाएं आम बात थीं. आज भी अखबारों में ऐसी दर्दनाक घटनाओं की खबरें आती रहती हैं.
अभी हाल ही में बिहार में एक औरत की लाश मिली थी, जिस के पैरों में ढेर सारी कीलें ठोंकी हुई थीं.
इस तरह के मामलों में रहीसही कसर टैलीविजन और सिनेमा पूरी कर देते हैं, जो हमें इन बीमारियों के प्रति जागरूक करने के बजाय हमारे मन में यह बात बिठा देते हैं कि किसी के शरीर पर किसी और की आत्मा फिट हो सकती है, इसे तंत्रमंत्र द्वारा शरीर से उतारा भी जा सकता है.
समस्या यह है कि दिमागी बीमारियों के बारे में जागरूकता की घोर कमी की वजह से लोग अपने मरीजों को दिमाग के डाक्टर के पास ले जाने के बजाय किसी बाबा के पास ले जाते हैं, क्योंकि वे लोग इस तरह के डाक्टरों के बारे में जानते ही नहीं हैं और वे अंधविश्वास के गड्ढे में जाने को मजबूर हो जाते हैं.
अजीब हरकतें क्यों
आप ने ऐसे कई लोगों को देखा होगा, जो बहुत कम बोलते हैं, लेकिन जब वे शराब के नशे में होते हैं, तो बिलकुल अलग किस्म के इनसान हो जाते हैं. तब वे अजीब हरकतें करते हैं और विचित्र बातें करते हैं. तब हम कहते हैं कि शराब का असर है. जब नशा उतरेगा, तो फिर से पहले जैसा हो जाएगा.
भूत बाधा के समय भी यही होता है. यहां हमारे दिमाग के बैलेंस को बिगाड़ने में शराब नही, बल्कि कई प्रकार की घरेलू समस्याएं और घोर डिप्रैशन की अवस्था जिम्मेदार होती है, जिसे हम जानकारी की कमी में भूत बाधा समझ लेते हैं. ऐसी अवस्था मे मरीज कुछ ऐसी अजीब हरकतें करने लगता है, जो हमारी समझ से परे होता है और हम इसे बुरी आत्मा का साया समझ लेते हैं.
औरतें झूमने क्यों लगती हैं
आप को नाचना नहीं आता, इस के बावजूद जब आप किसी पार्टी में डीजे के पास होते हैं, तो आप के पैर अपनेआप थिरकने लगते हैं और जिन्हें थोड़ाबहुत भी नाचना आता है, वे तो कूद पड़ते हैं मैदान में.
यही होता है, जब पहले से बीमार औरत ऐसी किसी जगह पर जाती है जहां पहले से कई औरतें झूम रही होती हैं, तो वह औरत भी झूमने लगती है और माहौल देख कर कई ऐसी औरतें भी झूमने लगती हैं, जिन के ऊपर किसी आत्मा का साया नही होता.
इन में कई औरतें वे भी होती हैं, जो अपनी सास, जेठानी या ननद को परेशान करने के लिए जानबूझ कर नाटक करती हैं. नकली देवी आई हो या असली देवी ऐक्टिंग ही तो करनी है, आखिर सच का किसे पता चलता है? झाड़फूंक करने वाला इस नौटंकी का भी पूरा फायदा उठाता है, उसे तो पैसा ऐंठने से मतलब होता है.
सैक्स इच्छा को दबाना
नूतन की पवन से अरेंज मैरिज हुई थी. पवन उम्र में नूतन से 15 साल बड़ा था लेकिन नूतन से बेहद प्यार करता था. नूतन को अपनी ससुराल में भी कोई दिक्कत नहीं थी. बड़ा सा घर था. पवन बिजनैस में थे, इसलिए रुपयों की भी कोई कमी नही थी. ससुराल में सास और देवर भी साथ रहते थे सभी नूतन की बहुत इज्जत करते थे.
ऊपरी तौर पर तो नूतन की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी लेकिन एक औरत के सुख के लिए सिर्फ धनदौलत ही जरूरी नहीं होता. नूतन का पति नूतन से बहुत प्यार करता था, फिर भी नूतन अधूरी सी थी. उसे अपने पति से जिस सुख की उम्मीद थी वह उसे पवन नही दे पाता था. दोनों की शादी को एक साल हो चुका था.
विकास और नूतन दोनों हमउम्र थे. विकास बैंक के एग्जाम की तैयारी घर से ही कर रहा था. विकास ज्यादातर समय घर में ही रहता. जिस्मानी सुख की चाह में नूतन अपने देवर विकास के प्रति आकर्षित होने लगी.
जवानी के सैलाब ने जिंदगी की दो अलगअलग किश्तियों को एक कर दिया. दोनों के बीच मुहब्बत का यह सिलसिला 2 साल तक चलता रहा और एक दिन विकास की शादी तय हो गई.
नूतन के लिए यह बड़ा मुश्किल समय था, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. जल्द ही नई बहू के रूप में घर में विकास की बीवी आ गई और नूतन के अरमानों की किश्ती एक बार फिर डांवांडोल हो गई.
हालांकि विकास की शादी के बाद भी चोरीछिपे दोनों के बीच जिस्मानी संबंध चलता रहा, लेकिन अब नूतन के लिए यह रिश्ता एक तरह का पाप बन कर रह गया था. हर बार उसे विकास की बीवी का डर बना रहता.
विकास का रवैया भी बदल चुका था. ऐसे में नूतन तनाव में रहने लगी और उसे मालूम ही न चला कि कब वह दिमागी बीमारी की शिकार हो गई.
भारत में ज्यादातर दिमागी बीमारियों की शिकार औरतें ही हैं. बेमेल शादी का सब से बड़ा दंश औरतें ही झेलती हैं. समाज में मर्दों के लिए कोई रुकावट नहीं होती. घर में पत्नी के होते हुए एक मर्द अनेक औरतों से अपनी हवस की भरपाई करता है.
लेकिन एक औरत की काम इच्छाओं के बारे में कोई नहीं सोचता. अगर किसी लड़की की शादी ऐसे लड़के से हो जाए, जो उस की कामेच्छाओं को संतुष्ट न कर पाता हो तब वह लड़की क्या करे?
कामेच्छाओं को दबाना औरत के दिमाग पर गहरा असर करता है. लंबे समय तक इच्छाओं का यह दमन चलता रहे तो औरत किसी न किसी दिमागी बीमारी की शिकार जरूर हो जाती है.
समाज की वे औरतें जो अपनी यौन इच्छाओं की भरपाई के लिए मजबूरन किसी और मर्द से जिस्मानी रिश्ता बना लेती हैं, वे भी दिमागी तौर पर ठीक नहीं रह पाती हैं. राज खुल जाने और ब्लैकमेलिंग का डर लगातार बना रहता है. बदनामी का खतरा लगातार सिर पर मंडराता रहता है, जिस के चलते ऐसी औरतें सहज जिंदगी नहीं जी पाती हैं और धीरेधीरे दिमागी बीमारी का शिकार हो जाती हैं.