Indian Constitution: डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने शायद ही यह सोचा था कि उन के अनुयायी उन की बात को समझने के बजाय कोरा ‘जय भीम’ का जयजयकार करने लगेंगे. वे लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि ‘जय गोपाल’, ‘श्रीराम’, ‘जय माताजी’ या ‘जय भीम’ सब मनु की परंपरा के परिचायक हैं.
भारतीय समाज में पिछड़ों और दलितों की दशा में सुधार लाने के लिए समाज के परंपरागत मजबूत तबकों से कड़ी जद्दोजेहद करते हुए संविधान सभा में पहुंचने के बाद दिनरात मेहनत कर के डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान का मसौदा तैयार करने में कामयाबी हासिल की थी. पर, बेहद अफसोसजनक बात है कि हमारे देश में 76 साल से लागू संविधान आज भी महज एक राजकीय दस्तावेज ही बन कर रह गया है.
भारत की सब से बड़ी दिक्कत यह है कि इस देश का संविधान भले ही डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने ढंग से बनाया हो, पर इस संविधान की व्याख्या करने का पूरा काम आज भी मनु के कट्टर समर्थकों के हाथों में है, तभी तो राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ के सामने खड़ी मनु की प्रतिमा न्यायपालिका से संवैधानिक न्याय की उम्मीद से आने वालों को ठेंगा दिखा रही है.
गौरतलब है कि मनु का विधान हजारों सालों से इस देश के खून में घुला हुआ है, जिस ने गीता, धम्मपद, जिन्न सूत्र, गोरख वाणी, कबीर बीजक व गुरु ग्रंथ साहिब जैसी मजबूत आवाज को भी मुखर नहीं होने दिया है.
हालांकि, आधुनिक संविधान निर्माताओं ने अस्तित्व की आवाज की कोमलता को संविधान का हिस्सा नहीं बनने दिया. मनु की कठोरता से उपजे परंपरागत आरक्षण के जवाब में संवैधानिक आरक्षण की व्यवस्था भी की, पर क्योंकि मनु का विधान सदासदा से ही बेहद संरक्षित है, जिस का मूल कारण यह है कि यह विधिविधान सनातन धर्म व संस्कृति का चोला पहने हुए है.
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