Long Hindi Story, लेखक - सैयद परवेज
पिछले अंक में आप ने पढ़ा था: हसामुद्दीन बस में यह सोच कर बैठा कि आज कनाट प्लेस घूमने जाएगा. बस में भीड़ थी. पर उसे सीट मिल गई. बस में एक ट्रांसजैंडर चढ़ी, जिस को ले कर लोगों ने बातें बनाई फिर 2 जेबकतरे टाइप लड़के बस में हुड़दंग करने लगे. जब वे उतरे तो जैसे बस वालो ने चैन की सांस ली. अब पढि़ए आगे...
उस लड़के ने बात तो ठीक कही थी. इस जमाने में पैसे कीमत ही कहां है. महंगाई के दौर में आम आदमी की जिंदगी कितनी मुश्किल हो गई है.
उन दोनों लड़कों के उतरने पर बस कंडक्टर ने सवारियों से कहा, ‘‘ये दोनों जेबकतरे थे. इन से कौन बहस करे...’’
बस कंडक्टर ने एक बात और कही, ‘‘शनिवार के दिन दिल्ली की बसों में किसी की जेब नहीं कटती है.’’
हसामुद्दीन की बाईं तरफ एक सीट छोड़ कर एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था.
हसामुद्दीन ने उस आदमी से कहा, ‘‘ये लड़के पहले ऐसे नहीं होंगे, जैसा हम ने इन्हें फिलहाल देखा है.
किसी के हालात उसे क्या से क्या बना देते हैं. मुझे लगा कि मैं ने एक लड़के को कहीं देखा है. जन्म से कोई बुरा या अच्छा नहीं होता है. अच्छा या बुरा बनने में भी समय लगता है. यह समाज उसे अच्छा या बुरा बनाता है.
उस अधेड़ आदमी ने हसामुद्दीन की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप की बात तो ठीक है, पर बच्चे समझते कहां हैं...’’
हसामुद्दीन ने उस आदमी से पूछा, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’
उस आदमी ने कहा, ‘‘केंद्रीय सचिवालय.’’
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