Hindi Romantic Story, लेखक - मनोज केशरी

‘‘दादी, मैं बाहर खेलने जाऊं?’’ सुरभि ने सोफिया से इजाजत मांगी.

‘‘हां, लेकिन ज्यादा दूर मत जाना. यहीं अहाते में खेलना. और हां, शोर बिलकुल भी नहीं करना. दोपहर का वक्त है. सब लोग अपनेअपने घरों में सो रहे होंगे.’’

‘‘ठीक है दादी,’’ कहते हुए सुरभि दौड़ कर नीचे खेलने चली गई.

सोफिया टीवी के चैनल बदलने लगीं. सुरभि उन के बेटे कमलेश और बहू निम्मी की बेटी है. कमलेश एक सरकारी बैंक में काम करता है. बारबार तबादले से परेशान हो कर उस ने कठुआ में ही अपनी बेटी का दाखिला करा दिया था.

दोनों पतिपत्नी कामकाजी लोग हैं और बैंक में ही कभी अंबाला तो कभी चंडीगढ़ में काम करते हैं. उन का बेटा सुनील और सुरभि यहां कठुआ में अपनी दादी के साथ रहते हैं.

सोफिया अब विधवा हो चुकी हैं. उन के पति देश के दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे.

इस साल सोफिया 97 साल की हो गई थीं. अब तो उन से हिला भी नहीं जाता था. घर में मेड आती थी, जो सुबहशाम खाना बनाती, कपड़े धो देती, बच्चों को खाना खिला देती.

बुढि़या सोफिया के पास अब कोई काम नहीं था. वे बच्चों से अखबार पढ़वाती थीं. जासूसी उपन्यासों का उन को शुरू से शौक था. वे अपने पोते सुनील को जबतब बिठा लेती थीं. कभी अखबार पढ़ने को कहती थीं, तो कभी जासूसी कहानियों को पढ़ कर सुनाने की इच्छा जाहिर करती थीं.

यह सब काम इतवार को या सरकारी छुट्टी या फिर किसी पर्वत्योहार पर ज्यादा होता था. जब थोड़ाबहुत पढ़ कर बच्चे इधरउधर भागने लगते या खेलने जाने की जिद करने लगते, तो सोफिया का एक ही सहारा होता था, टैलीविजन पर न्यूज चैनल देखना.

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