Hindi Family Story, लेखक – संजीव स्नेही

कालेज का गलियारा, वही कैंटीन के ठहाके और लाइब्रेरी की खामोशी. इन सब में एक कहानी पल रही थी, करण और प्रिया की. दोनों एकदूसरे में इस कदर खोए थे कि कालेज की पढ़ाई भी कभीकभी पीछे छूट जाती थी. उन की हंसी, उन की बहसें, उन का छोटीमोटी बातों पर रूठनामनाना, सब कैंपस की फिजा में घुलमिल गया था.

जब कभी प्रिया उदास होती, करण का एक जोक उस के चेहरे पर मुसकान ले आता और जब करण किसी बात से परेशान होता, तो प्रिया की समझदारी उसे राह दिखाती.

उन के दोस्त उन्हें ‘एकदूजे के लिए’ कहते थे, और सच भी यही था. वे कालेज के हर पल को साथ जीते थे. सुबह की पहली क्लास से ले कर शाम की आखिरी चाय तक, उन की दुनिया एकदूसरे के इर्दगिर्द घूमती थी. कैंपस की हर बैंच, हर पेड़ उन के प्यार का गवाह था.

करण एक शांत स्वभाव का लड़का था, जो अपनी दुनिया में खोया रहता था, लेकिन प्रिया ने उस दुनिया में रंग भर दिए थे. वह चंचल, जीवंत और हमेशा खुश रहने वाली लड़की थी.

करण की गंभीरता को प्रिया की चंचलता ने पूरा किया था और प्रिया की उड़ान को करण के ठहराव ने एक ठोस जमीन दी थी. दोनों का तालमेल ऐसा था, मानो 2 अलगअलग ध्रुव एकसाथ मिल कर एक पूर्ण इकाई बन गए हों.

उन के झगड़े भी प्यारे होते थे. कभी प्रिया करण के देर से आने पर रूठ जाती, तो कभी करण उस के फोन न उठाने पर नाराज हो जाता, लेकिन यह रूठनामनाना केवल कुछ पलों का होता था, जिस के बाद प्यार और भी गहरा हो जाता था. उन के दोस्त अकसर उन से जलते थे कि कैसे वे एकदूसरे को इतनी अच्छी तरह समझते हैं.

कालेज का फैस्टिवल हो या कोई असाइनमैंट, वे हमेशा एक टीम में होते थे. साथ में देर रात तक जाग कर पढ़ाई करना, सुबहसुबह कैंटीन में नाश्ता करना और ऐग्जाम के तनाव में भी एकदूसरे का सहारा बनना, यह सब उन की दिनचर्या का हिस्सा था.

वे भविष्य के सपने बुनते थे, एकसाथ घर बनाने के, एकसाथ नई दुनिया घूमने के और एकसाथ हर चुनौती का सामना करने के. उन के सपने हवा में नहीं, बल्कि एकदूसरे के विश्वास पर टिके थे. उन्हें लगता था कि उन का प्यार अमर है और कोई भी चीज उन्हें अलग नहीं कर सकती.

मगर कालेज के दिन ढलते ही, बिछोह का अंधेरा छाने लगा. ग्रेजुएशन पूरी होते ही, जिंदगी ने उन्हें अलगअलग शहरों में धकेल दिया.

करण लौट आया अपने पहाड़ से घिरे छोटे से शहर में, जहां उस की पुरानी यादें सांस लेती थीं. यह शहर शांत और कुदरत के करीब था, ठीक करण के स्वभाव जैसा. यहां उस का पुश्तैनी कारोबार था, जिसे संभालने की जिम्मेदारी उस के कंधों पर थी.

प्रिया अपने परिवार के साथ महानगर की तेज रफ्तार जिंदगी में लौट गई, जहां हर दिन एक नई चुनौती थी और एक नई दौड़. मुंबई की चकाचौंध उसे अपनी ओर खींच रही थी और वह उस में रमने के लिए तैयार थी.

शुरुआत में सब ठीक था. फोन की घंटियां दिन में जबतब बजती रहतीं. घंटों बातें होतीं, जिस में कालेज के किस्से, भविष्य के सपने और एकदूसरे के शहर की कहानियां शामिल होतीं.

करण प्रिया को अपने पहाड़ की ठंडक और शांत नजारों के बारे में बताता और प्रिया उसे मुंबई की जगमगाती रातों और लोकल ट्रेन की भीड़भाड़ के बारे में बताती.

उन की आवाज में वही पुराना प्यार और अपनापन था, वही जुनून और वही चाहत थी. वे एकदूसरे को हर छोटीबड़ी बात बताते, अपने दिन की हर घटना साझा करते.

प्रिया करण को बताती कि कैसे उस ने आज लोकल ट्रेन में एक अजीबोगरीब वाकिआ देखा, तो करण उसे अपने शहर के शांत तालाब के पास सूर्यास्त का नजारा बताता. वे एकदूसरे की जिंदगी का हिस्सा बने रहने की पूरी कोशिश कर रहे थे, चाहे कितनी भी दूरियां हों.

लेकिन धीरेधीरे दूरियों का एहसास चुभने लगा. फोन पर घंटों बात करना भी अब उस छुअन, उस निकटता की भरपाई नहीं कर पाता था जो पहले उन की जिंदगी का हिस्सा था. रातें करवटें बदलते बीततीं.

करण को प्रिया की हंसी नहीं सुनाई देती थी, न ही प्रिया को करण के कंधे पर सिर रख कर सोने की राहत मिलती थी. वे एकदूसरे को मिस करते थे, इस हद तक कि उन के दिल में एक अजीब सा खालीपन महसूस होता था.

वीडियो काल पर एकदूसरे को देख कर कुछ पल की खुशी मिलती, लेकिन वह कभी उस गरमाहट की जगह नहीं ले पाती थी, जो आमनेसामने मिलने में होती है.

वे स्क्रीन पर एकदूसरे को देखते, मुसकराते, कुछ पल के लिए भूल जाते कि उन के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी है, लेकिन जैसे ही वीडियो काल खत्म होती, अकेलापन फिर से घेर लेता.

त्योहार आते, दोस्त मिलते, हर कोई अपनेअपने पार्टनर के साथ होता और करण व प्रिया को दूरियों का दर्द और ज्यादा महसूस होता.

दीवाली पर जब सब अपने परिवार के साथ होते, तो करण को प्रिया की कमी खलती थी, उस के साथ पटाके जलाने की याद आती थी. प्रिया को होली पर करण के साथ रंग खेलने की याद आती थी.

हर उत्सव उन्हें उस खालीपन का एहसास कराता जो उन की जिंदगी में आ गया था. वे एकदूसरे को तसवीरें भेजते, शुभकामनाएं देते, पर उन शुभकामनाओं में एक अनकहा दर्द छिपा होता था.

करण को याद आता वह दिन, जब प्रिया को बुखार हुआ था और वह पूरी रात उस के कमरे के बाहर बैठा रहा था, बस उस की खैरियत जानने के लिए. वह एक पल के लिए भी उस से दूर नहीं हुआ था.

प्रिया को याद आता वह वक्त, जब करण ने उस के जन्मदिन पर आधी रात को गिटार बजा कर गाना सुनाया था और उस की आंखों में चमक भर दी थी.

ये छोटीछोटी बातें, ये छोटेछोटे पल, जो अब सिर्फ यादों में थे, उन्हें और भी तड़पाते थे. फोन पर बात करते हुए भी कभीकभी चुप्पी छा जाती. कहने को बहुतकुछ होता, दिल में हजार बातें उमड़तीं, लेकिन दूरियों का बोझ इतना भारी था कि शब्द गले में अटक जाते.

संवाद की कमी नहीं थी, बल्कि भावनाओं को जाहिर करने की ताकत कमजोर होती जा रही थी. वे जानते थे कि कुछ बदल रहा है, लेकिन उसे रोकने में नाकाम थे.

एक शाम, करण छत पर अकेला बैठा था. चांदनी रात थी और तारे टिमटिमा रहे थे, मानो उस की उदासी को और बढ़ा रहे हों. उस ने प्रिया को फोन किया. प्रिया भी अपने बालकनी में बैठी थी, जहां से शहर की रोशनी दिख रही थी.

‘‘प्रिया…,’’ करण ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘कब मिलेंगे हम?’’ उस की आवाज में एक अनकहा दर्द था, एक गहरी चाहत थी.

प्रिया की आंखें भर आईं, ‘मुझे नहीं पता करण,’ उस ने हिचकिचाते हुए, आंसुओं को रोकते हुए कहा, ‘बस, इतना जानती हूं कि मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा.’

प्रिया के शब्दों में एक उम्मीद की किरण छिपी थी, एक भरोसा था कि भले ही राहें अनिश्चित हों, पर दिल में इंतजार कायम है.

उन की प्रेमकहानी अब केवल आवाजों और मीठे शब्दों पर टिकी थी. बिछोह का यह लंबा दौर उन्हें मजबूत बना रहा था या कमजोर, यह उन्हें पता नहीं था. वे एक अनजाने रास्ते पर चल रहे थे, जहां हर कदम के साथ चुनौतियां बढ़ रही थीं. लेकिन एक बात तय थी, उन के दिलों में एकदूसरे के लिए जो गहरा प्यार था, वह इन दूरियों से भी कहीं ज्यादा ताकतवर था.

हर फोन काल, हर मैसेज, हर वीडियो काल इस बात का सुबूत था कि उन का प्यार अभी भी जिंदा है, धड़क रहा है, बस इंतजार था उस दिन का, जब ये दूरियां मिटेंगी और बिछोह की यह दर्दनाक सांझ, मिलन के सुनहरे सूरज में बदल जाएगी.

वे जानते थे कि उन की कहानी अभी अधूरी है और मिलन ही उस का सुखद अंत होगा. वे इस अग्निपरीक्षा से गुजर रहे थे, यह जानते हुए कि उन का प्यार इस दूरी से और भी अटूट हो कर उभरेगा.

समय किसी के लिए नहीं रुकता और करण और प्रिया के लिए भी नहीं रुका. बिछोह की सांझ धीरेधीरे एक लंबी रात में बदल रही थी, एक ऐसी रात जिस की सुबह अनिश्चित थी.

शुरुआती महीनों का वह जोश, वह घंटों की बातचीत, अब यादों का हिस्सा बनने लगी थी. जिंदगी की आपाधापी में दोनों अपनेअपने शहर में अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने लगे.

जिम्मेदारियां बढ़ीं, कैरियर की दौड़ तेज हुई और इसी के साथ उन के बीच की बातचीत भी कम होती गई. जो फोन की घंटियां दिन में कभी भी बज उठती थीं, वे अब हर 2-3 दिन में एक बार बजने लगीं.

फिर हफ्ते में एक बार और देखते ही देखते यह सिलसिला महीने 2 महीने और यहां तक कि 4 महीने में भी कभीकभार ही बात होने तक सीमित हो गया. और वह भी बस ‘हायहैलो’ या किसी औपचारिक शुभकामना तक.

दिल की बात कहना तो दूर, हालचाल पूछने का भी समय मानो सिमट गया था. उन के बीच की दूरियां केवल भौगोलिक नहीं रह गई थीं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक दूरियां भी बढ़ती जा रही थीं.

इस तरह 2 साल बीत गए. ये 2 साल उन की जिंदगी में बहुत बड़े बदलाव ले कर आए थे.

करण ने अपने पिता के साथ मिल कर कारोबार में पूरी तरह से खुद को झोंक दिया था. पहाड़ों की ठंडी हवाओं में उस का कारोबार फलताफूलता रहा और वह व्यापारिक दांवपेंच सीखने में बिजी हो गया था.

उस ने अपनी कंपनी को नए मुकाम पर पहुंचाने के लिए दिनरात एक कर दिया था. उस की जिंदगी में अब केवल व्यापारिक सौदे, बैलेंस शीट और भविष्य की योजनाएं ही रह गई थीं.

वह सुबह जल्दी उठता, देर रात तक काम करता और हर नया प्रोजैक्ट उस के लिए एक चुनौती और एक जुनून बन गया था. उस ने खुद को इतना ज्यादा बिजी कर लिया था कि पुरानी यादों को सोचने का भी उसे समय नहीं मिलता था या शायद वह जानबूझ कर उन्हें दबाना चाहता था.

उस के दोस्तों ने भी देखा कि करण अब पहले जैसा नहीं रहा था. वह थोड़ा शांत और ज्यादा करोबारी हो गया था, लेकिन वे सम?ाते थे कि यह उस के कैरियर की जरूरत है.

वहीं, प्रिया ने फैशन के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना शुरू किया था. मुंबई की चमकदमक से भरी दुनिया उसे अपनी ओर खींच रही थी.

वह फैशन डिजाइनिंग के बारीक पहलुओं को सीखने में मगन हो गई थी. नएनए डिजाइन बनाना, फैशन शो में हिस्सा लेना और बड़ेबड़े ब्रांड्स के साथ काम करना, यह सब उस की जिंदगी का हिस्सा बन गया था.

उस के आसपास हमेशा एक ग्लैमरस माहौल रहता था, जहां नए चेहरे, नई कहानियां और नई इच्छाएं थीं.

फैशन की दुनिया की चकाचौंध में वह इस कदर खो गई कि उसे करण की याद ही नहीं रही. उस के नए दोस्त थे, नई पार्टियां थीं और एक नई तेजतर्रार जिंदगी थी, जिस में पुरानी यादों के लिए शायद ही कोई जगह बची थी.

करण की शांत, पहाड़ी जिंदगी उस के लिए एक दूर की याद बन गया था, जिसे उस ने अपनी नई, ग्लैमरस दुनिया के पीछे कहीं छोड़ दिया था. उसे लगता था कि उस ने एक नई पहचान बना ली है और उसे पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं है.

2 साल बाद, जिंदगी ने एक बार फिर अपना खेल खेला. दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में एक भव्य समारोह का आयोजन हुआ.

यह एक बड़ा औद्योगिक और व्यावसायिक कार्यक्रम था, जहां देशभर के विभिन्न क्षेत्रों के जानेमाने लोग जमा हुए थे. करण अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व करने आया था और प्रिया अपने फैशन ब्रांड की प्रमोशन के लिए.

होटल का बैंक्वैट हाल रोशनी से जगमगा रहा था. हलकी धीमी संगीत की धुन और लोगों की फुसफुसाहट से हाल में एक जीवंत माहौल था.

करण एक कोने में खड़ा अपने बिजनैस सहयोगियों से बात कर रहा था, जब उस की नजर भीड़ में एक जानीपहचानी आकृति पर पड़ी. एक पल के लिए उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

वह प्रिया थी. पहले से भी ज्यादा खूबसूरत, आत्मविश्वासी और चमकदार. उस ने एक शानदार, डिजाइनर ड्रैस पहन रखी थी और उस के आसपास लोगों का एक छोटा समूह था, जो उस की बातों पर हंस रहा था और उस की तरफ आकर्षित दिख रहा था. उस के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, जो उस की कामयाबी और आत्मविश्वास को दिखा रही थी.

करण के दिल की धड़कनें अचानक तेज हो गईं. पिछले 2 सालों में उस की जिंदगी में बहुतकुछ बदल गया था, लेकिन प्रिया के लिए उस के मन में जो भावनाएं थीं, वे कहीं गहरे दबी हुई थीं, एक अनदेखी नदी की तरह जो अब अचानक सतह पर आ गई थीं.

उस ने महसूस किया कि उस की यादें, जो समय की धूल से ढकी थीं, एक ?ाटके में ताजा हो गई हैं. कालेज के दिन, प्रिया की हंसी, उन दोनों के साथ बिताए हर पल की तसवीर उस की आंखों के सामने कौंध गई.

उसे लगा जैसे उस ने इतने समय से कुछ खोया हुआ था और आज वह उस के सामने है. वह तुरंत प्रिया से बात करना चाहता था, उसे गले लगाना चाहता था, उस से पूछना चाहता था कि इतने समय से वह कहां थी, कैसी थी और क्या वह उसे भूली तो नहीं थी.

करण धीरेधीरे भीड़ को चीरता हुआ प्रिया की तरफ बढ़ा. उस के कदम भारी थे और उस का दिल एक अजीब से डर से कांप रहा था.

जैसे ही वह उस के करीब पहुंचा, उस ने देखा कि प्रिया लोगों से घिरी हुई थी. हर कोई उस से बात करना चाहता था, उस की तारीफ कर रहा था और उस के साथ तसवीरें खिंचवा रहा था.

प्रिया भी मुसकराते हुए उन से बातचीत कर रही थी, पूरी तरह अपनी नई दुनिया में लीन, अपनी कामयाबी की चमक में डूबी हुई. उस के चेहरे पर एक अलग ही आत्मविश्वास था, जो करण ने पहले कभी नहीं देखा था.

करण ने कई बार कोशिश की कि प्रिया की नजर उस पर पड़े, लेकिन प्रिया की आंखें उसे अनदेखा करती रहीं. वह इतनी बिजी थी कि शायद उसे अपने आसपास किसी और की परवाह ही नहीं थी या शायद वह उसे पहचान ही नहीं पाई.

करण वहीं खड़ा रहा, उम्मीद करता रहा कि प्रिया उसे पहचान लेगी और उस से बात करने आएगी. उस ने इंतजार किया, हर पल को एक सदी की तरह महसूस करते हुए.

5 मिनट, 10 मिनट, फिर 15 मिनट. लेकिन प्रिया अपनी धुन में मगन रही. वह लगातार लोगों से घिरी हुई थी और कभी भी उसकी तरफ मुड़ी ही नहीं, न ही उस की ओर एक नजर डाली.

करण का दिल भारी होता जा रहा था. उसे लग रहा था जैसे प्रिया उसे जानबूझ कर अनदेखा कर रही हो या शायद वह सच में उसे भूल चुकी हो या फिर शायद उस ने उसे पहचाना ही नहीं. उस के मन में एक अजीब सी टीस उठी, एक दर्द जो उसने सोचा था कि अब शांत हो चुका है, वह फिर से जाग गया था.

करण को कालेज के दिन याद आए, जब प्रिया उस से मिलने के लिए किसी भी भीड़ से निकल आती थी, चाहे कितनी भी रुकावटें क्यों न हों. उसे याद आया कि कैसे प्रिया उस की एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी, कैसे उस की हर खुशी और हर दर्द में वह उस के साथ खड़ी होती थी.

और अब, वह उस के सामने खड़ा था, बस कुछ ही कदमों की दूरी पर और प्रिया उसे पहचान भी नहीं पा रही थी या शायद पहचानना नहीं चाहती थी. यह एहसास उसे अंदर से तोड़ रहा था.

उसे लगा जैसे वह इस चमकदमक भरी दुनिया में एक अजनबी है, जिसे प्रिया अब नहीं पहचानती, एक भूला हुआ अध्याय.

काफी देर तक इंतजार करने के बाद, जब करण को यह साफ हो गया कि प्रिया उस से बात करने नहीं आएगी, तो उस का दिल पूरी तरह से टूट गया. एक गहरी निराशा ने उसे घेर लिया. उस के चेहरे पर छाई मुसकान फीकी पड़ गई.

उस के मन में एक भयानक खालीपन छा गया. उसे लगा कि उस ने जिसे इतना प्यार किया था, वह अब उस के लिए बस एक याद बन चुकी है और शायद प्रिया के लिए वह अब कुछ भी नहीं रहा. वह बेमन से, भारी कदमों से समारोह से बाहर निकल गया.

दिल्ली की ठंडी हवा करण के गरम आंसुओं को पोंछने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दिल में उठे तूफान को शांत करना आसान नहीं था. उस की उम्मीदें बिखर चुकी थीं और उसे लगा कि शायद उनका रिश्ता सचमुच खत्म हो चुका है या फिर कभी था ही नहीं, बस एक भरम था.

वह अपनी कार में बैठा और चुपचाप होटल से दूर चला गया, अपने टूटे हुए दिल और बिखरी हुई यादों के साथ.

करण को एहसास हुआ कि जिंदगी बदल गई है. लोग बदल गए हैं. और शायद सब से बड़ा बदलाव वह था, जो उन के रिश्ते में आया था.

वह जानता था कि इस घटना के बाद, अब उसे प्रिया के लिए अपनी भावनाओं को हमेशा के लिए दफन करना होगा.

यह बिछोह की सांझ अब एक स्थायी रात में बदल चुकी थी, जिस की कोई सुबह नहीं थी. Hindi Family Story

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