Story In Hindi: फैक्टरी में दूसरी पाली रात को 1 बजे खत्म होती थी. अजय अपनी कार से कंपनी के मकान में जा रहा था. तरक्की होने के बाद उसे पाली पूरी के बाद भी देर तक रुकना पड़ता था, इसलिए कंपनी की टाउनशिप में जाने के समय रात को ज्यादा भीड़ नहीं मिलती थी.

घर से पहले एक बाजार था, जो बंद हो गया था. उमस भरी गरमी का मौसम था, पर कार की खिड़की में से आते ठंडी हवा के ?ांके अजय को अच्छे लग रहे थे.

तभी बाजार से आगे सुनसान जगह पर किसी शख्स को औंधा पड़े हुए देख कर एक बार तो अजय ने सोचा कि पड़ा रहने दो, मुझे क्या करना है. पर तब तक कार उस के नजदीक पहुंच गई.

कार की हैडलाइट की रोशनी में उस ने देखा, तो वह शख्स कंपनी की यूनिफौर्म पहने हुए था.

अजय कार रोक कर उस शख्स के पास गया, जो नशे में इतना बेहोश था कि उसे कोई भी रात के समय अपनी गाड़ी से कुचल कर जा सकता था.

अजय को वह आदमी कुछ जानापहचाना सा लग रहा था. जा कर उसे सीधा किया तो वह उस का पुराना पड़ोसी बलभद्र सिंह था, जिसे सभी बल्लू सिंह के नाम से बुलाते थे.

अजय ने जैसेतैसे बल्लू सिंह को उठा कर कार में लादा और उस के घर छोड़ने के लिए कार आगे बढ़ाई.

बल्लू सिंह अच्छे घर का था. अजय से उम्र में बड़ा होने के बावजूद वह और उस का परिवार, जिस में उस की पत्नी और 2 बच्चे शामिल थे, उसे बहुत इज्जत देते थे.

अजय ने देखा कि बल्लू सिंह की पत्नी कार की आवाज सुन कर डरते हुए घर का दरवाजा खोल रही थी. उसे लग रहा था कि कोई कर्ज मांगने वाला तो नहीं आ गया है.

अजय को देख कर बल्लू सिंह की पत्नी को राहत महसूस हुई और अजय के साथ बल्लू सिंह को कार से उतार कर घर के अंदर ले जाने में मदद करने लगी.

बल्लू सिंह को अजय बिस्तर पर लिटाने लगा, तब उस की पत्नी ने आंसू बहाते हुए बिना कुछ कहे उस की तरफ हाथ जोड़ कर मूक नजरों से उस का धन्यवाद किया. अजय बिना कुछ कहे चुपचाप चला आया.

बल्लू सिंह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन बहुत ही अनुभवी और कुशल क्रेन आपरेटर था. इसी वजह से बड़े अफसर कोई भी बहुत जरूरी और रिस्की काम होने पर उसे ही याद करते थे खासकर प्रोडक्शन ईयर पूरा होने की आखिरी तिमाही में जनवरी से मार्च के समय जब रातभर काम चलता था.

रात की पाली के मुलाजिमों को ओवरटाइम करना पड़ता था, जिस की भुगतान की रकम कई बार तनख्वाह से ज्यादा हो जाती थी.

जैसा कि मेहनतकश तबका होता है, बल्लू सिंह को शराब पीने का शौक लग गया था, जो पहले तो कभीकभार पीने तक था, लेकिन ज्यादा पैसे हाथ में आने पर शराब की मात्रा और पीने का दौर बढ़ने लगा था. साथ में 2-4 यार भी मिल जाते थे, क्योंकि पीने का मजा तो यारों के साथ ही आता है.

कभीकभार पीने वाले बल्लू सिंह को अब रोज पीने की आदत हो गई थी. पहले शाम को ही पीता था, पर अब दिन में भी पीने लग गया था. लेकिन उस की क्रेन चलाने की कुशलता में कमी नहीं आई थी, बल्कि कई बार तो काम पूरा होने पर अफसर खुश हो कर अपनी जेब से रुपए दे कर कहते थे, ‘बल्लू सिंह, जाओ ऐश करो.’

ऐसे मौके रात को टैस्टिंग जैसे काम होने पर अकसर आते थे, क्योंकि टैस्टिंग कब होगी इस का निश्चित समय नहीं रहता था, इसलिए बल्लू सिंह को पहले ही रात को रुकने के लिए बोल देते थे कि यह काम तो बल्लू सिंह ही करेगा, साथ ही उसे ताकीद भी करते थे कि काम पूरा होने के बाद ही पीना.

हर समय हंसीमजाक करने वाला बल्लू सिंह धीरेधीरे शराब का आदी होने लगा. अब वह शराब की दुकान खुलते ही वहां पहुंचने लगा. जो दोस्त रात की पाली वाले होते थे, उन के साथ दिन में और दिन की पाली वालों के साथ रात में महफिल जमने लगी.

कहते हैं कि जब बुराई आती है तब अकेली नहीं आती है. वह दूसरे बुराइयों को साथ ले कर आती है.

शराब के साथ जर्दे वाला पान, गुटखा, सिगरेट और कभीकभी शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर न जाने के चलते फैक्टरी के अंदर ही गांजे की चिलम का सुट्टा मारने वालों की संगति करने लगा. इन सब वजहों से नौकरी से छुट्टी ज्यादा होने लगी. जब छुट्टी नहीं रही, तो विदाउट पे करने लगा.

बल्लू सिंह को तकरीबन सालभर ओवरटाइम करना पड़ता था. इस वजह से तनख्वाह में कमी की भरपाई हो जाती थी, लेकिन कब तक. उसे अपने साथियों से तनख्वाह ज्यादा मिलती थी, पर अब उस के जुआ खेलने वाले नए साथियों का साथ भी मिलने लगा, जो तनख्वाह ज्यादा मिलने के चलते उसे जुआ खेलने के लिए उकसाने लगे.

शराब का नशा जुए की जीतहार के रोमांच से और बढ़ जाता था, जिस में बल्लू सिंह को बहुत मजा आने लगा. इन सब बुराइयों के एकसाथ आने से वह पत्नी के हाथ में जो तनख्वाह रखता था, उस में कमी आने लगी.

पत्नी समझदार, पढ़ीलिखी, अच्छे संस्कार की थी. उस ने घर और बच्चों को कम पैसों में संभाला, लेकिन समुद्र के पानी को बारबार उलीचने लगो तो समुद्र भी खाली होने लगेगा.

एक समय ऐसा आया कि बल्लू सिंह की तनख्वाह उस के शौक और नशे के आगे कम पड़ने लगी. इस वजह से रात को जब वह पी कर आता, तो घर में कलह होने लगती. अपने गुस्से और बेबसी को वह पत्नी की पिटाई कर के उतारता और फिर शराब की दुकान पर चला जाता.

कम तनख्वाह और बड़ते शौक के तनाव के चलते काम से कई दिनों तक गैरहाजिर रहने से बल्लू सिंह सूदखोरों, लोकल दादाओं के चंगुल में फंस गया, जो महीने की पहली तारीख को उस की तनख्वाह छुड़ा लेते थे और फिर उसे ही ब्याज पर रुपए इसी शर्त पर देते थे कि उसे शराब भी पिलानी पड़ेगी.

बल्लू सिंह को फैक्टरी जा कर काम करने में भी डर लगने लगा कि जो पैसा वह कमाएगा वह सूदखोर दादा ले जाएंगे. इसी डर के चलते वह फैक्टरी कभी जाता, तो कभी नहीं जाता. जो तनख्वाह मिलती, उस से अपने पीने का शौक पूरा करता और घर में फाकाकशी की नौबत आने लगी.

बच्चों की पढ़ाई की फीस जमा नहीं होने के चलते स्कूल वालों ने बच्चों का नाम काट दिया. तब बच्चों को उस ने सरकारी स्कूल में डाल दिया, जहां फीस कम लगती थी.

अब समस्या पीने की थी, जिसे उस ने शराब की दुकान पर सफाई कर के हल कर लिया था. दुकान वाला उसे सफाई करने के बदले शराब पिला देता था.

ब्याज वाले घर पर आ कर तगादा करते और बल्लू सिंह की पत्नी को धमकियां देने लगे, क्योंकि वह घर पर मिलता ही नहीं था. हमेशा हंसीमजाक करने वाले बल्लू सिंह का यह हाल हो जाएगा, किसी ने नहीं सोचा था.

एक रात की बात है. बल्लू सिंह की औरत ने अपने बच्चों को अजय के घर भेजा. एक बच्चे ने रोते हुए बताया, ‘‘अंकल, हमारे पापा मम्मी को मार रहे हैं. आप आ कर उन्हें बचा लो.’’

अजय तुरंत बच्चों के साथ गया और बल्लू सिंह पर चिल्लाया, ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो बल्लू सिंह… क्या अपनी बीवी को इस तरह मारते हैं… शराब ने तुम्हें बिलकुल जानवर बना दिया है.’’

बल्लू सिंह ने अजय की आवाज सुन कर पानी बीवी को मारना बंद किया और कहने लगा, ‘‘भाई साहब, आप जानते नहीं कि यह औरत मेरी इज्जत खराब कर रही है. पड़ोस से पैसे उधार ले कर आई है. मैं क्या मर गया हूं, कमाता नहीं हूं…’’

बल्लू सिंह की औरत कहने लगी, ‘‘भाई साहब, कल से बच्चे भूखे हैं. घर में कुछ नहीं है. पिछले एक महीने से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं.’’

यह सुन कर अजय गुस्से से कहने लगा, ‘‘बल्लू सिंह, तुम्हें अपने बीवी और बच्चों का जरा सा भी ध्यान नहीं है.’’

बल्लू सिंह उस के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘साहब, हम तो जिनावर हैं. हम पढ़ेलिखे नहीं हैं. फिर भी इस औरत को इतना तो सोचना चाहिए कि अपने आदमी की इज्जत को बना कर रखे.’’

बल्लू सिंह अपनी बेबसी को, अपनी कमी को, पति की इज्जत को ढकने के नाम पर पत्नी को मार कर दूर करने की कोशिश कर रहा था.

अजय ने कहा, ‘‘वह इज्जत कैसे बनाएगी, इज्जत तो तुम गिरा रहे हो. अपने बीवीबच्चों को भूखा रख रहे हो, उन्हें स्कूल नहीं भेज पा रहे हो. तुम्हारी पत्नी कब तक सब्र करेगी…’’

बल्लू सिंह बस नशे में एक ही बात कहता रहा, ‘‘साहब, हम तो जिनावर हैं. ये बड़ीबड़ी बातें हमें नहीं आती हैं.’’

अजय ने बल्लू सिंह की औरत को अपनी जेब से रुपए निकाल कर दिए और कहा, ‘‘सब से पहले खाने का कुछ सामान ले कर आओ. बच्चों और बल्लू सिंह को भी खिलाओ. और तुम भी भूखी मत रहना, खाना जरूर खाना.’’

बल्लू सिंह चाहे कितना भी खराब था, लेकिन अजय की बहुत इज्जत करता था. दूसरे दिन अजय सुबह की पाली होने के चलते फैक्टरी आ गया था. लंच में घर जाने पर उस की पत्नी ने बताया, ‘‘बल्लू भाई साहब आ कर माफी मांग रहे थे. मैं ने उन से कहा कि जब अजय आएंगे तब जो कहना उन से कहना.’’

दिनोंदिन बल्लू सिंह के घर की हालत खराब होती जा रही थी. वह घर की जिम्मेदारियों से बेपरवाह हो गया था. उसे सिर्फ एक ही चीज चाहिए थी, वह थी शराब, जिस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था.

किसी भी तरह से वह अपने लिए शराब का बंदोबस्त कर लेता था, लेकिन उस के बीवीबच्चों का क्या होगा, नशे के आगे वह कुछ सोचना भी नहीं चाहता था.

बल्लू सिंह, जो कभीकभार फैक्टरी चला जाता था, वह भी उस ने बंद कर दिया था, क्योंकि उसके साथी क्रेन आपरेटर और स्लिंग लगाने वाले सिलिंगर उस को ताना मारने लगते थे कि बल्लू सिंह के बीवीबच्चे भूखे मर रहे हैं, उस के बच्चों का नाम स्कूल वालों ने काट दिया है, पर उसे तो सिर्फ शराब से मतलब है, उसे अपने परिवार की कोई चिंता नहीं है.

यह सब सुन कर बल्लू सिंह को सब के सामने शर्म आने लगती. वह किसी से भी ब्याज पर उधार ले कर तुरंत आउट पास ले कर शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर चला जाता, जैसे शराब पीना उन के तानों का जवाब हो.

एक दिन की बात है. बल्लू सिंह की दूसरी पाली थी. वह भी आज काम पर आ गया था, लेकिन उस का कोई भरोसा नहीं था कि वह कब शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर चला जाएगा.

बल्लू सिंह फैक्टरी में टैस्टिंग वाले पार्ट्स को टैस्टिंग एरिया में ले जाने के लिए क्रेन से उठाते हुए देख रहा था कि तभी उसे लगा कि पार्ट्स को उठाने के लिए स्लिंगर ने एक स्लिंग (वायर रोप) ठीक से नहीं लगाई है, क्योंकि वह एक कुशल क्रेन आपरेटर था, जिसे ऊपर क्रेन के केबिन में बैठ कर जल्दी पता चल जाता था कि स्लिंग ठीक से लगी है या नहीं.

बल्लू सिंह ने अपने साथी स्लिंगर को आवाज दे कर चेतावनी दी कि स्लिंग सही नहीं लगी है, पर तब तक पार्ट ऊपर उठ चुका था. कुछ काम की जल्दबाजी, कुछ स्लिंगर का ध्यान न देना, एक पार्ट स्लिंग से तेजी से लहराते हुए नीचे गिरने लगा.

यह सब बल्लू सिंह देख रहा था. उस ने अजय को दौड़ कर धक्का दिया. अजय दूर जा कर गिरा और वह भारी हिस्सा बल्लू सिंह पर गिर गया.

पूरी वर्कशौप में पहले तो सन्नाटा छा गया कि आज तो बल्लू सिंह गया. तब तक अजय खड़ा हो कर बल्लू सिंह के पास पहुंचा. वैसे भी वह शिफ्ट इंचार्ज था. उस ने तुरंत पास खड़े एक मुलाजिम को एंबुलैंस के लिए फोन करने को कहा.

इस बीच बाकी मुलाजिमों ने देखा कि बल्लू सिंह के पैर से खून का फव्वारा निकल रहा था. तभी उस के कराहने की आवाज आई.

अजय भी बल्लू सिंह की हालत देख कर डर गया था और सोच रहा था कि आज बल्लू सिंह नहीं होता, उस का बचना मुश्किल था.

तब तक एंबुलैंस के सायरन की आवाज आने लगी. बल्लू सिंह दर्द और खून बहने के चलते बेहोश हो गया था. मुलाजिमों और अजय ने मिल कर उसे एंबुलैंस तक उठा कर अंदर लिटा दिया.

एंबुलैंस के साथ आए मैडिकल स्टाफ ने प्राथमिक उपचार करना शुरू कर दिया. कंपनी के हौस्पिटल में जाते ही बल्लू सिंह को तुरंत आपरेशन थिएटर में ले जाया गया और उस के आपरेशन की तैयारी शुरू होने लगी.

अजय ने एक मुलाजिम को बल्लू सिंह के घर उस की पत्नी के साथ साथ अपनी पत्नी को भी खबर करने के लिए भेज दिया था. उस समय मोबाइल फोन की सुविधा नहीं थी.

थोड़ी देर बाद अजय की पत्नी बल्लू सिंह की पत्नी और उस के दोनों बच्चों को साथ ले कर आपरेशन थिएटर के बाहर आ गई.

अजय ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई और कहा कि बल्लू सिंह ने उस की जान बचाने के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया. आज बल्लू सिंह को कुछ हो जाता तो अजय अपनेआप को जिंदगीभर माफ नहीं करता.

बल्लू सिंह की पत्नी अपने बच्चों को अपनी छाती से चिपका कर अजय की बात सुनते हुए बस रो रही थी. उस के मुंह से एक शब्द नहीं निकला.

आपरेशन पूरा होने में तकरीबन 2 घंटे से ज्यादा लग गए. डाक्टर ने बाहर आ कर कहा कि आपरेशन ठीक से हो गया है. बल्लू सिंह के पैर में रौड लगा दी है, पर खून ज्यादा बहने के चलते उसे तुरंत खून चढ़ाना होगा.

अजय ने अपना खून के लिए कहा, पर उस का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हुआ. तब अजय की पत्नी ने कहा, ‘‘आप मेरा ब्लड टैस्ट करें.’’

अजय की पत्नी का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और उस ने अपना खून दे दिया. डाक्टर ने कहा कि और खून की जरूरत पड़ेगी, पर वह कल सुबह तक भी मिल जाएगा, तो कोई चिंता की बात नहीं है.

अजय ने अपने अफसरों को पूरे हालात के बारे में बता दिया था. अफसरों ने तुरंत रात की पाली के कुछ मुलाजिमों को, जिन का ब्लड ग्रुप बल्लू सिंह के ब्लड ग्रुप से मैच हो सकता था, हौस्पिटल भेज दिया.

इस तरह की सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में मजदूर तबका हमेशा आगे रहता है. उन मुलाजिमों का ब्लड टैस्ट कर के उन के खून को हौस्पिटल के ब्लड बैंक में रखवा दिया था, जो सुबह काम आता.

उन मुलाजिमों को अजय ने अपने घर जा कर आराम करने के लिए कहा, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि बल्लू सिंह के होश में आने के बाद ही वे घर जाएंगे.

रातभर अजय, उस की पत्नी, बल्लू सिंह का परिवार और साथी मुलाजिम आईसीयू के बाहर बैठे उस के होश में आने का इंतजार करने लगे.

सुबह जब बल्लू सिंह को होश आया, तभी डाक्टर का राउंड शुरू होने लगा. अजय ने डाक्टर से बल्लू सिंह के बारे में जानकारी ली.

डाक्टर ने कहा कि आपरेशन तो हो गया है, लिहाजा चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन इसे अपने पैरों पर खड़े होने में 3 महीने लग जाएंगे. तब भी यह पूरी तरह काम करेगा, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि पैर में अब रौड लग गई है, तो वह ओरिजनल जैसा काम नहीं करेगा.

3 दिन बाद बल्लू सिंह बात करने की हालत में आया, क्योंकि उसे दर्द और नींद के इंजैक्शन दिए जा रहे थे.

अजय की पत्नी ने अजय के कहने पर बल्लू सिंह की पत्नी को घरखर्च के लिए पैसे दे दिए थे. वह मना कर रही थी, लेकिन उस ने कहा कि ले लो अभी बहुत जरूरत पड़ेगी.

शाम को अजय अपनी पत्नी को साथ ले कर बल्लू सिंह को देखने हौस्पिटल पहुंचा. वहां बल्लू सिंह की पत्नी उस के पास बैठ कर फल खिला रही थी. अजय को देख कर वह खड़ी हो कर नमस्ते करने लगी. बल्लू सिंह ने भी उसे नमस्ते किया.

अजय ने पूछा, ‘‘अब कैसे हो तुम बल्लू सिंह?’’

‘‘सब आप की मेहरबानी है साहब.’’

अजय ने कहा, ‘‘बल्लू सिंह, तुम ने ठीक नहीं किया. मेरी जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की. अगर तुम्हें कुछ हो जाता, तो इन बच्चों का क्या होता…’’

बल्लू सिंह कहने लगा, ‘‘साहब, हम मर जाते तो अच्छा होता. अपने बीवीबच्चों की जिनगी हमारे चलते खराब हो रही थी. हमारे मरने पर इन को कंपनी से बहुत रुपया मिल जाता और पैंशन भी मिल जाती, जिस से यह अपना और बच्चों का पेट पाल लेती.

‘‘हमारी जिनगी की कोई कीमत नहीं है. हमारे में और जिनावर में क्या फर्क है साहब, आखिर हम जिनावर…’’

बल्लू सिंह के बात पूरी करने से पहले ही अजय ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और कहने लगा, ‘‘तुम जिनावर नहीं हो बल्लू सिंह. जो किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करता है, वह कभी जिनावर नहीं हो सकता है, वह अच्छा इनसान होता है.’’

अजय ने बल्लू सिंह की भाषा में जानवर को जिनावर कहने लगा. यह सुन कर बल्लू सिंह के चेहरे पर वही पुराने वाले बल्लू सिंह की मासूम मुसकराहट उभरने लगी.

अजय ने कहा, ‘‘बल्लू सिंह, मेरी जान तुम ने बचाई है, इसलिए मेरी कसम खा कर कहो कि आज से शराब, जुआ सब बंद कर दोगे और पुराने वाला माहिर क्रेन औपरेटर बन कर दिखाओगे.’’

बल्लू सिंह ने हाथ जोड़ कर वादा किया. यह सुन कर अजय की पत्नी की आंखों में आंसू आ गए.

उधर, खुशी के मारे बल्लू सिंह की पत्नी के आंसू रुक नहीं रहे थे. अजय की पत्नी उस के आंसू पोंछ कर उसे चुप कराने लगी. Story In Hindi

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