बच्चों को जिस काम के लिए मना किया जाता है, वे उसी काम को करते हैं. कभीकभी तो ये नटखट शरारती बच्चे हिम्मत और सूझबूझ से कुछ ऐसा कर जाते हैं कि समाज में ही नहीं, दुनिया और देश में मांबाप की एक अलग पहचान बन जाती है. तब मांबाप को अपने बच्चे पर गर्व महसूस होता है. पश्चिम बंगाल की 2 लड़कियों तेजस्विनी प्रधान और शिवानी गोंड ने भी हिम्मत और सूझबूझ से ऐसा कुछ कर दिखाया कि पश्चिम बंगाल में ही नहीं, पूरे देश में उन की चर्चा हो रही है. दरअसल, नेपाल के एक दंपति की एक जवान बेटी गायब हो गई थी. उन्होंने मार्ग नाम की स्वयंसेवी संस्था से बेटी को तलाशने में मदद मांगी.

संस्था के पदाधिकारियों ने अपने स्तर से पता लगा लिया कि गुम लड़की दिल्ली में है. इस के बाद संस्था ने इस की सूचना दिल्ली सीबीआई और स्टूडेंट्स अगेंस्ट ट्रैफिकिंग की 2 स्कूली सदस्यों तेजस्विनी प्रधान और शिवानी गोंड को दी. दोनों छात्राओं को पता चल चुका था कि उस लड़की को दिल्ली में देहव्यापार में धकेल दिया गया है और देह व्यापार चलाने वालों की जड़ें बड़ी गहरी हैं.

पश्चिम बंगाल की रहने वाली तेजस्विनी प्रधान और शिवानी गोंड ने समझदारी दिखाते हुए उस लड़की से फेसबुक द्वारा दोस्ती कर बात करनी शुरू कर दी. उन्होंने खुद को बेरोजगार बताया था. उस लापता लड़की ने एसएटीसी की दोनों सदस्यों को देहव्यापार का लालच दिया. दोनों लड़कियों को पूरे गैंग तक पहुंचना था, इसलिए उन्होंने उस के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.

इस बारे में पुलिस को सूचित कर दिया गया. इस के बाद पुलिस ने एसएटीसी सदस्यों की मदद से न सिर्फ उस लापता लड़की को मुक्त कराया, बल्कि देहव्यापार करने वाली एक महिला को भी गिरफ्तार कर लिया. तेजस्विनी प्रधान और शिवानी गोंड ने असीम साहस और निर्भीकता से पुलिस और एनजीओ की मदद से एक अंतरराष्ट्रीय सैक्स रैकेट का परदाफाश किया, बाद में पुलिस ने दिल्ली से मुख्य आरोपी को भी गिरफ्तार कर लिया था.

भारतीय बाल कल्याण परिषद ने इन दोनों बालिकाओं को वीरता के गीता चोपड़ा पुरस्कार से सम्मानित किया है.

भारतीय बाल कल्याण परिषद ने वीरता का सर्वश्रेष्ठ भरत अवार्ड अरुणाचल प्रदेश की 8 साल की बच्ची तार पीजू को मरणोपरांत दिया है. हिंदुस्तान में आज भी ऐसी तमाम जगह हैं, जहां नदी पार करने के लिए पुल नहीं हैं. लोगों को पानी में घुस कर नदी पार करनी पड़ती है. तार पीजू को 19 मई, 2016 को नदी पार कर के फार्महाउस जाना था. वह अपनी 2 सहेलियों के साथ नदी पार कर के जा रही थी.

पीजू आगेआगे चल रही थी, जबकि उस की दोनों सहेलियां उस के पीछे थीं. उसी बीच उस की दोनों सहेलियां पानी के तेज बहाव में बह गईं. नदी करीब 5 फुट गहरी थी.

पीजू ने दोनों सहेलियों को बहते देखा तो वह उन्हें बचाने के लिए पानी में तैरते हुए उन के पास तक पहुंच गई. वह ज्यादा अच्छी तैराक तो नहीं थी, फिर भी अपनी कोशिश से उस ने दोनों की जान तो बचा दी, लेकिन नदी की तेज धारा में वह खुद बह गई.

बच्चों ने तार पीजू के मातापिता को यह बात बताई तो वे नदी के किनारे पहुंचे. पर उन्हें नदी में कहीं बेटी दिखाई नहीं दी. सूचना मिलने पर पुलिस पहुंची. पुलिस ने खोजबीन की तो काफी दूर आगे जा कर नदी के किनारे तार पीजू की लाश मिली.

8 साल की बालिका तार पीजू ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अदम्य साहस का परिचय देते हुए 2 सहेलियों की जान बचा कर गौरव का काम किया था. अपने प्राणों की आहुति देने वाली तार पीजू की इलाके के लोगों ने ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन ने भी सराहना की. भारतीय बाल कल्याण परिषद ने भी तार पीजू को मरणोपरांत वीरता के भरत अवार्ड से सम्मानित किया है.

8 नवंबर, 2015 को उत्तराखंड का रहने वाला 15 वर्षीय सुमित ममगाई अपने चचेरे भाई रितेश के साथ पास ही स्थित अपने खेत से पशुओं का चारा लेने गया था. तभी अचानक झाडि़यों में छिपे एक गुलदार ने पीछे से उस पर हमला कर दिया. भाई पर गुलदार द्वारा हमला करने से सुमित डर गया. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. साहस दिखाते हुए उस ने गुलदार पर पत्थरों से हमला करना शुरू कर दिया, साथ ही वह शोर भी मचा रहा था.

इस से गुलदार और खूंखार हो गया. रितेश को छोड़ कर उस ने सुमित पर हमला कर दिया. सुमित ने घबराने के बजाए गुलदार की पूंछ पकड़ कर उसे खींचने लगा. इस से गुलदार डर गया. सुमित ने जैसे ही उसे छोड़ा, वह दुम दबा कर भाग गया. सुमित ने गुलदार के चंगुल से अपने भाई रितेश को तो बचा लिया, लेकिन उस के हमले से उस के सिर और हाथ बुरी तरह जख्मी हो गए थे, जिन से काफी मात्रा में खून बह गया था.

खबर पा कर मौके पर पहुंचे गांव वालों ने उसे अस्पताल पहुंचाया. काफी मशक्कत के बाद डाक्टरों ने उसे बचा लिया. सुमित के अतुल्य साहस की वजह से रितेश की जान बच गई थी. सुमित की बहादुरी को देखते हुए भारतीय बाल कल्याण परिषद ने उसे वीरता के संजय चोपड़ा अवार्ड से सम्मानित किया है.

भारतीय बाल कल्याण परिषद ने गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा अवार्ड सन 1978 में शुरू किया था. बाल बहादुरी के लिए ये दोनों अवार्ड दिल्ली के संजय चोपड़ा और गीता चोपड़ा नाम के भाईबहनों की याद में दिए जाते हैं. इन दोनों भाईबहनों की दिल्ली के बुद्धा गार्डन में 2 बदमाशों रंगा और बिल्ला ने हत्या कर दी थी. बाद में रंगा और बिल्ला को फांसी की सजा भी हुई थी. इस पुरस्कार के तहत प्रत्येक बच्चे को 40-40 हजार रुपए नकद, स्वर्ण पदक और वीरता प्रमाणपत्र दिया जाता है.

वीरता का सर्वोपरि भरत पुरस्कार बहादुरी का जोखिम भरा काम करने वाले बच्चे को दिया जाता है. भरत पुरस्कार से नवाजे जाने वाले बालवीर को 50 हजार रुपए नकद, स्वर्ण पदक और वीरता प्रमाणपत्र दिया जाता है. यह पुरस्कार सन 1987-88 में शुरू किया गया था. तब से अब तक यह पुरस्कार केवल 8-9 बच्चोें को ही मिला है.

बहादुर बच्चों को दिया जाने वाला एक और पुरस्कार है बापू गयाधानी पुरस्कार. भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा दिए जाने वाला यह पुरस्कार सन 1988 में शुरू हुआ था. यह पुरस्कार गुजरात के बड़ौदा शहर के रहने वाले बापू गयाधानी की स्मृति में दिया जाता है. इस पुरस्कार के तहत 24 हजार रुपए, वीरता पदक और प्रमाणपत्र दिया जाता है. इस वर्ष यह पुरस्कार मिजोरम की 13 साल की लड़कियों लालरियातपुई, रोलुआपुई और छत्तीसगढ़ के 15 साल के तुषार वर्मा को दिए गए.

रोलुआपुई 3 मार्च, 2016 को अपने स्कूल की ओर से पिकनिक के लिए तुईवाल नदी के किनारे गई थी. वह अपनी कुछ सहेलियों के साथ खेल रही थी तभी उसे नदी की ओर चीखपुकार सुनाई दी. उस ने जा कर देखा कि उस की कक्षा की एक लड़की भंवर में फंस गई है.

13 साल की रोलुआपुई तैरना जानती थी, इसलिए वह 18 फुट गहरी तईवाल नदी में कूद गई और अपनी सहपाठी को भंवर से बाहर निकाल लाई. तभी एक और सहपाठी सारहा भी डूबती दिखी. वह उसे भी गहरी नदी से निकाल लाई, पर खुद तेज धारा की चपेट में आ कर भंवर में फंस गई, जिस से उस की मौत हो गई.

इसी तरह मिजोरम की ही रहने वाली एच लालरियातपुई अपने 2 साल के चचेरे भाई को बचाने की कोशिश में अपनी जान गंवा बैठी. 18 मार्च, 2016 को लालरियातपुई अपने बड़े भाई के साथ एलपीजी सिलेंडर और चावल लेने बाजार गई थी. अपने साथ कार में वह 2 साल के चचेरे भाई को भी ले गई थी. सामान ला कर वह कार की डिक्की से सामान निकाल रही थी. कार ढलान पर खड़ी थी, इसलिए वह ढलान से नीचे उतरने लगी.

कार को नीचे जाते देख बहनभाई सामान निकालना भूल गए और कार को पूरी ताकत से रोकने की कोशिश करने लगे. कार में लालरियातपुई का 2 साल का चचेरा भाई अगली सीट पर बैठा था. कार नहीं रुकी तो दूर होते हुए उस के भाई ने कार को छोड़ कर लालरियातपुई को भी कार छोड़ने को कहा. लेकिन लालरियातपुई ने कार नहीं छोड़ी.

छोटे भाई को बाहर निकालने के लिए उस ने कार का दरवाजा खोला तो दरवाजे से चोट लगने से वह गिर गई और कार के नीचे आ गई. गंभीर रूप से घायल होने पर लालरियातपुई को अस्पताल ले जाया गया, जहां उस की मौत हो गई. अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय देते हुए लालरियातपुई ने अपने भाई की जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की. इसलिए भारतीय बाल कल्याण परिषद ने इन दोनों लड़कियों को मरणोपरांत बापू गयाधानी पुरस्कार से सम्मानित किया है.

20 सितंबर, 2015 को 15 वर्षीय तुषार अपने घर में बैठा खाना खा रहा था. तभी उस ने शोर सुना तो खाना छोड़ कर भागा. उस ने एक घर से आग की लपटें उठती देखीं. वह घर भोलूराम वर्मा का था.

आग उन के घर में बनी पशुशाला के छप्पर में लगी थी. घर में वृद्ध दंपति थे और पशुशाला में 3 गाय और 2 बैल बंधे थे. कुछ पड़ोसी भी आ चुके थे, जो आग बुझाने में लग गए. तुषार वर्मा किसी तरह छत पर चढ़ गया और कई घंटे तक आग बुझाता रहा. आग बुझते ही उस ने फटाफट छत से नीचे उतर कर पशुओं को खोला. इस प्रयास में वह झुलस भी गया था.

तुषार वर्मा के नि:स्वार्थ भाव से किए गए साहसिक कार्य से कई जानवरों की जान तो बची, साथ ही उस ने औरों के लिए एक मिसाल भी पेश की.

राजस्थान का एक गांव है करौली. 21 सितंबर, 2015 को यहीं के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में परीक्षा चल रही थी. बरामदे में करीब 70 बच्चे परीक्षा देने के लिए फर्श पर बैठे थे. छात्रों के पीछे तह किया हुआ एक आसन पड़ा था. 2 बच्चों ने जैसे ही उस आसन को उठाया, उस में से एक कोबरा निकला. उस की लंबाई लगभग 4 फुट थी.

कोबरा को देखते ही सभी बच्चे डर कर इधरउधर भागने लगे. कोबरा भागने के बजाए खड़ा हो कर फन हिलाने लगा. बच्चे तो बच्चे हैं, कोबरा को देख कर बड़ों की भी घिग्घी बंध जाती है. उसे देख कर सभी दूर हो गए. कोबरा अचानक तेजी से एक छात्र धर्मेंद्र माली की ओर बढ़ा. तभी सोनू माली नाम के अन्य छात्र ने धर्मेंद्र को गोद में उठा कर दूर कर दिया.

9 साल के सोनू माली ने अपने साहसिक प्रयास से अपने सहपाठी को कोबरा के हमले से बचा कर एक सराहनीय कार्य किया था. भारतीय बाल कल्याण परिषद ने बच्चे के इस साहसिक कार्य के लिए उसे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया है.

कर्नाटक की 10 साल की सिया वामनसा खोडे़ ने अपनी बुद्धि से जिस तरह अपने भाई की जान बचाई, देख कर बड़े भी हैरान रह गए. बात 14 अप्रैल, 2015 की है. सिया अपने 4 साल के भाई और चचेरे भाइयों के साथ खेल रही थी. उसी बीच बच्चों ने छत पर जाने का फैसला किया. जैसे ही सब छत पर पहुंचे, सिया को अपना भाई दिखाई नहीं दिया. वह उसे ढूंढने लगी.

उसे कमरे में उस का भाई दिख गया. पर वह एक जगह स्थिर था. वह न हिल रहा था और न ही कुछ बोल रहा था. तभी सिया की नजर बिजली के उस तार पर पड़ी, जो उस के भाई के हाथ में था. सिया समझ गई कि यह करंट की चपेट में है. स्कूल में पढ़ाई के दौरान सिया को बताया गया था कि करंट की चपेट में आए व्यक्ति को किस तरह से बचाना चाहिए.

भाई का हाथ पकड़ कर खींचने पर वह खुद भी करंट की चपेट में आ सकती थी, इसलिए उस ने सावधानी बरतते हुए भाई की शर्ट पकड़ी और उसे जोर से खींचा. ऐसा करने से भाई बिजली के तार से छूट गया और वह खुद भी गिर गई. उस के चचेरे भाइयों के शोर मचाने पर सिया के मांबाप भी कमरे में पहुंच गए.

वे उसे अस्पताल ले गए, जिस से उस की जान बच गई. सिया वामनसा खोड़े के विवेकपूर्ण कार्य से उस के भाई की जान बच गई. उस के इस कार्य की गांव के सभी लोगों ने तारीफ तो की ही, साथ ही भारतीय बाल कल्याण परिषद ने भी उसे राष्ट्रीय वीरता के पुरस्कार से सम्मानित किया.

सिया की तरह मणिपुर के साढ़े 14 साल के मोइरंगथम सदानंदा सिंह ने भी सही समय पर सही समझ का उपयोग कर के अपनी मां की बिजली के करंट से जान बचाई थी. दरअसल उस के घर का आंगन इस तरह का था कि बारिश का पानी वहां जमा हो जाता था. इस के बाद मोटर के जरिए उस पानी को निकाला जाता था. 6 मई, 2016 को हुई बारिश का पानी भी उस के आंगन में भर गया था.

सदानंद की मां राधामनी देवी ने मोटर का तार किचन के बिजली बोर्ड से लगाया. उस समय वह किचन में खाना बना रही थीं. अचानक शार्टसर्किट से बोर्ड में आग लग गई. राधामनी ने मोटर के प्लग को बोर्ड से निकालने की कोशिश की तो वह बिजली के करंट की चपेट में आ गईं.

अपनी मां को करंट की चपेट में देख कर सदानंद भागाभागा कमरे में गया और लकड़ी का डंडा ले कर किचन में पहुंचा और मां के हाथ पर प्रहार कर के करंट से अलग किया. करंट से अलग होते ही राधामनी बेहोश हो कर गिर पड़ीं.

सदानंद फटाफट कमरे से कंबल लाया और मां को ओढ़ा दिया. फिर शोर मचाया. लोग राधामनी को अस्पताल ले गए, तब कहीं जा कर उन की जान बच सकी. भारतीय बाल कल्याण परिषद ने बहादुर बालक सदानंद को वीरता के पुरस्कार से सम्मानित किया है.

13 दिसंबर, 2015 को हिमाचल प्रदेश के एक निजी स्कूल के बच्चे पिकनिक के लिए धर्मशाला गए थे. वहां से लौटते समय सभी शिवद्वाला में रुके. कुछ बच्चे और अध्यापक बस से उतर गए. बस का ड्राइवर भी उतर गया. उस ने बस का इंजन बंद नहीं किया था. उसी समय एक बच्चे ने ड्राइवर की सीट पर बैठ कर गियर बदल कर क्लच पर पैर रख दिया.

ऐसा करते ही बस चल पड़ी. बस के अंदर मौजूद बच्चे चीखनेचिल्लाने लगे. तभी 11 साल का प्रफुल्ल शर्मा दौड़ कर ड्राइवर की सीट पर पहुंचा और उस ने सूझबूझ का परिचय देते हुए ब्रेक पर पैर रख कर बस को रोक दिया. इस के बाद उस ने बस की चाबी निकाल कर उस के इंजन को बंद कर दिया.

प्रफुल्ल शर्मा ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए कई बच्चों की जान बचाई थी. स्कूल प्रशासन ने तो प्रफुल्ल शर्मा के कार्य की सराहना की ही, भारतीय बाल कल्याण परिषद ने इस बच्चे को वीरता के पुरस्कार से सम्मानित किया है.

गांवदेहात में रहने वाले बच्चों को तैराकी सीखने के लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होती. वे आसपास नदी या तालाब में नहातेनहाते अपने दूसरे साथियों को देख कर तैराकी सीख जाते हैं. दिल्ली के साढ़े 16 साल के नमन, केरल की बदरुन्निसा, 14 वर्षीय आदित्यन, 16 वर्षीय बिनिल मंजली, 16 साल के अखिल के. शिबू, उड़ीसा के 11 वर्षीय मोहन सेठी, नागालैंड के 10 वर्षीय थंगिलमंग लंकिम, छत्तीसगढ़ की 8 वर्षीया कुमारी नीलम, असम के 16 वर्षीय टंकेश्वर पीगू एवं जम्मूकश्मीर की 12 वर्षीया बालिका पायल देवी ने डूबते हुए बच्चों की जान बचाने में अपनी जान की बाजी लगा दी थी.

इस प्रयास में पायल खुद अपनी जान गंवा बैठी. भारतीय बाल कल्याण  परिषद ने इन सभी बच्चों की बहादुरी को देखते हुए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया है. नमन फिल्म ‘सुलतान’ में रेफरी की भूमिका निभाने वाले शमशेर सिंह का बेटा है.

उत्तर प्रदेश की साढ़े 14 साल की बालिका अंशिका पांडेय ने निहत्थे होते हुए हथियारबंद बदमाशों से जिस तरह खुद को मुक्त कराया, उस का यह साहस काबिलेतारीफ था. बात 14 सितंबर, 2015 की है. अंशिका साइकिल से अपने स्कूल जा रही थी. घर से करीब 500 मीटर ही निकली थी, तभी एक एसयूवी गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. गाड़ी में पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति ने गेट खोल कर अंशिका से कोई पता पूछा.

जैसे ही वह पता बताने लगी, उस आदमी ने बाल पकड़ कर अंशिका को गाड़ी में खींचने की कोशिश की. अंशिका ने चीखते हुए अपने पैर गेट पर फंसा दिए, जिस से गेट बंद न हो सका. जब उस आदमी को असफलता दिखाई दी तो उस ने चालक से एक बोतल मांगी, जिस में तेजाब था. जैसे ही उस व्यक्ति ने बोतल का ढक्कन खोलना चाहा, अंशिका ने उस के हाथ में दांतों से काट लिया, जिस से बोतल नीचे गिर गई.

उधर से गुजर रही अंशिका की सहेली ने यह मंजर देख कर शोर मचाना शुरू कर दिया. इस के बाद हमलावर डर गया. बौखलाहट में उस ने चाकू निकाल कर जैसे ही अंशिका के चेहरे पर हमला किया, अंशिका ने बचाव करते हुए अपना दायां हाथ आगे कर दिया, जिस से उस का हाथ जख्मी हो गया.

बदमाश ने गाड़ी का दरवाजा बंद करना चाहा, पर अंशिका का पैर अड़ा होने की वजह से जब दरवाजा बंद नहीं कर सका तो अंशिका को धक्का दे कर गिरा दिया और गाड़ी ले कर भाग गया.

अंशिका यदि हिम्मत और सूझबूझ से काम न लेती तो उस के साथ कोई बड़ी वारदात हो सकती थी, पर उस ने निर्भीकतापूर्वक बदमाश से मुकाबला किया. उस की इस बहादुरी पर भारतीय बाल कल्याण परिषद ने उसे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया है.

8 दिसंबर, 2015 की बात है. दिल्ली की अक्षिता और उस का छोटा भाई अक्षित स्कूल से घर पहुंचे तो उन्हें अपने घर के मेनगेट का लोहे का दरवाजा खुला मिला, जबकि उसी गेट का लकड़ी का दरवाजा अंदर से बंद था. बच्चों ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से कोई अनजानी आवाज आई. बच्चों को शक हुआ तो अक्षिता ने दरवाजे के ऊपर बने रौशनदान से अंदर झांका. उसे 2 अजनबी लोग ड्राइंगरूम में घूमते दिखे.

उस ने एक आदमी को सामान के साथ बालकनी से कूदते देखा. अक्षिता समझ गई कि ये चोर हैं. वह शोर मचाती हुई उसे पकड़ने दौड़ी. तभी बदमाश ने उस की गरदन पकड़ ली और उसे थप्पड़ मारने लगा. इस से अक्षिता का चश्मा गिर गया और चोर भाग गया.

दूसरा चोर बैग के साथ बालकनी की तरफ आया तो अक्षित ने स्कूल का बैग एक तरफ फेंका और उस की तरफ दौड़ा. दोनों बच्चों ने चोर को कस कर पकड़ा और शोर मचा दिया. शोरशराबा सुन कर पड़ोसी आ गए और उस चोर को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया.

अक्षिता शर्मा और अक्षित शर्मा ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए एक बदमाश को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. दोनों बच्चों की निडरता को देखते हुए भारतीय बाल कल्याण परिषद ने उन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया है.

महाराष्ट्र की साढ़े 16 साल की निशा दिलीप पाटिल 14 जनवरी, 2016 को अपने घर में थी. पड़ोस में रहने वाली कस्तूरबाबाई अपने बेटे को स्कूल छोड़ने गई थी. तभी अचानक उस के घर में आग लग गई. शोर मचाते हुए निशा उस के घर में घुस गई. उस का 6 माह का बच्चा पालने में पड़ा रो रहा था. उस कमरे में आग फैल चुकी थी.

निशा उस बच्चे को निकाल लाई. इस प्रयास में निशा मामूली रूप से झुलस भी गई थी. उधर निशा का शोर सुन कर जो पड़ोसी आए थे, वे आग बुझाने में लगे थे. तब तक कस्तूरबाबाई घर लौट आई थीं. घर में लगी आग से वह घबरा गई, लेकिन बेटे को सुरक्षित देख कर उस ने राहत की सांस ली. इस तरह निशा ने अपनी सूझबूझ से एक शिशु की जान बचाई. भारतीय बाल कल्याण परिषद ने निशा के कार्य की प्रशंसा करते हुए उसे राष्ट्रीय वीरता का पुरस्कार प्रदान किया.

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाले बहादुर बच्चों को मैडल, प्रशस्तिपत्र के अलावा 20 हजार रुपए दिए जाते हैं. भारतीय बाल कल्याण परिषद की अध्यक्षा गीता सिद्धार्थ ने बताया कि पुरस्कृत बच्चों को उन की स्कूली पढ़ाई पूरी करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की स्मृति में पढ़ने वाले बच्चों को छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है. इस के अलावा मैडिकल, इंजीनियरिंग, पौलिटेक्निक में प्रवेश के लिए इन्हें विशेष सुविधा दी जाती है. राज्य सरकारें भी ऐसे बच्चों को कई तरह की सुविधाएं देती हैं.

भारतीय बाल कल्याण परिषद ने इस बार 25 बच्चों को वीरता पुरस्कार के लिए चुना, जिन में 13 लड़के और 12 लड़कियां थीं. इन में से 4 बच्चे ऐसे भी थे, जिन्हें दूसरे की जान बचाने में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. उन चारों बच्चों के मांबाप ने यह पुरस्कार हासिल किया. सन 1957 से अब तक भारतीय बाल कल्याण परिषद 669 बालक और 276 बालिकाओं को इस पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है.

गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इन बच्चों को राष्ट्रीयवीरता पुरस्कार से सम्मानित किया तो वहां मौजूद अभिभावकों की आंखों में आंसू छलक आए. इस के बाद सभी बहादुर बच्चों को खुली जीप में बैठा कर गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल किया गया.

इस से पहले एक सप्ताह तक उन्हें राष्ट्रपति एवं बड़े राजनेताओं और उद्योगपतियों से मिलवाया गया. उन्हें दिल्ली तथा आसपास के पर्यटकस्थलों की सैर भी कराई गई. जिन बच्चों को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार दिया गया, उन के अभिभावकों ने आंखों में छलके आंसू पोंछते हुए कहा कि यदि उन के बच्चे भी जीवित होते तो और ज्यादा खुशी होती. फिर भी उन्हें अपने बच्चों पर फख्र है कि उन्होंने दूसरों की जान बचाई.

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