जीहां, चाय बेच कर भी करोड़पति बना जा सकता है. यह सुन कर आप को हैरानी जरूर होगी, लेकिन सचाई यह है कि चाय बनाने और बेचने का धंधा काफी मुनाफा देने वाला हो सकता है. यह मैं नहीं बोल रहा, बल्कि पटना वुमंस कालेज के सामने चाय बेचने वाली ‘ग्रेजुएट चाय वाली’ प्रियंका गुप्ता का कहना है.
एक इंटरव्यू के दौरान प्रियंका गुप्ता ने बताया, ‘‘मुझे रोजाना 3,000 से 5,000 रुपए के बीच इनकम हो रही है. इस तरह मैं महीने में एक से डेढ़ लाख रुपए कमा रही हूं. मैं कुछ सालों में ही करोड़पति बनने की राह पर चल पड़ी हूं. अगर मैं नौकरी करती तो 40-50 हजार रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाती, लेकिन मुझे इस धंधे में नौकरी से ज्यादा इनकम हो रही है.’’
शायद यही वजह है कि आज ऊंची डिगरीधारी लोग भी बेहिचक चाय बनाने और बेचने का धंधा करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं, बल्कि कुछ लोग अपनी डिगरी को टपरी या दुकान के आगे बढि़या से बैनर में दिखा कर समाज के लोगों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं.
जिस तरह देशभर में बेरोजगारों की तादाद बढ़ती जा रही है, ऐसे में नौजवानों को स्वरोजगार के बारे में सोचना बेहद जरूरी हो गया है. अगर आज भी लोग औरों की तरह सिर्फ नौकरी के पीछे भागते रहेंगे, तो बेरोजगारों की तादाद और बढ़ती जाएगी, क्योंकि सरकार ने नौकरियों के पद निकालना तकरीबन बंद कर दिया है.
सरकार चुनाव के समय ऐलान जरूर करती है कि 20 लाख लोगों को रोजगार दिया जाएगा, लेकिन चुनाव होने के बाद नौकरी देने का वादा सिर्फ जुमला बन कर रह जाता है.
बिहार के पूर्णिया जिले की रहने वाली प्रियंका गुप्ता इकोनौमिक्स से ग्रेजुएशन कर चुकी हैं. वे पटना महिला कालेज के सामने चाय की टपरी लगा कर नौजवानों में एक संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है.
प्रियंका गुप्ता 2 साल से बैंक की नौकरी की तैयारी कर रही थीं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही थी. वे नौकरी नहीं मिलने के चलते निराश जरूर थीं, लेकिन साथ ही जल्दी से जल्दी आत्मनिर्भर भी होना चाहती थीं, इसलिए वे जगहजगह चाय की दुकानों पर 3 महीने तक बारीकी से स्टडी करती रहीं, तब जा कर वे मन बना पाईं कि उन्हें चाय की दुकान ही खोलनी है.
प्रियंका गुप्ता ने अपने इस सफर के बारे में बताया, ‘‘जब मैं बैंक से लोन लेने गई, तो मुझे यह कह कर टाल दिया गया कि आप यहां की रहने वाली नहीं हैं. ऐसे में मैं निराश नहीं हुई और मैं ने अपने दोस्तों से पैसे उधार ले कर चाय बेचने का धंधा शुरू किया.
‘‘मैं नौजवानों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही हूं कि आप नौकरी नहीं मिलने पर निराश न हों, बल्कि आत्मनिर्भर होने की सोचें. कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है. आज ऐसे नौजवान भी हैं, जो अपना रोजगार करना चाहते हैं. वे सभी मुझ से मिल कर काफी प्रभावित हो रहे हैं.’’
कुछ साल पहले मध्य प्रदेश के छोटे से शहर धार के रहने वाले प्रफुल्ल बिल्लोरे ने ‘एमबीए चायवाला’ के नाम से चाय की दुकान खोल कर खूब शोहरत बटोरी थी. आज उन का करोड़ों का टर्नओवर हो चुका है. नौजवानों का एक तबका उन से खासा प्रभावित हुआ है और उन्हीं की तरह कुछ अलग करना चाहता है.
प्रफुल्ल बिल्लोरे का कहना है, ‘‘जब मुझे कैट इम्तिहान में कामयाबी नहीं मिली, तो मैं कुछ अलग करने के लिए मन बना रहा था. मैं ने देशभर में घूमघूम कर यह जानने की कोशिश की कि कौन सा रोजगार करना ठीक रहेगा, तो मैं ने पाया कि चाय एक ऐसी चीज है, जिसे देश के कोनेकोने में इस्तेमाल किया
जाता है.
‘‘उस समय मेरे पास खुद कारोबार करने के लिए पूंजी नहीं थी. हालांकि मैं चाहता तो अपने मातापिता से लाख
2 लाख रुपए पूंजी के रूप में ले सकता था और अच्छा बिजनैस कर सकता था, लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया.
‘‘मैं ने मात्र 8,000 रुपए लगा कर सड़क किनारे चाय बेचने की शुरुआत की थी. मुझे दूसरे नौजवानों से कहना है कि आप सिर्फ नौकरी के भरोसे नहीं रहें, बल्कि किसी न किसी तरह अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जरूर सोचें. एक बार ऐसा सोचने और करने पर कामयाबी जरूर मिलती है.
‘‘मैं ने एमबीए करने के बाद अच्छी नौकरी नहीं मिलने के चलते हैदराबाद में चाय की दुकान की शुरुआत की थी और आज मेरा 4 करोड़ का टर्नओवर हो चुका है. मैं एक बात और बताना चाहता हूं कि मुझे चाय बनानी नहीं आती थी. जिन दिनों मैं चाय बेच रहा था, उन दिनों मैं सड़कों पर संघर्ष कर रहा था.
‘‘कुछ नौजवान आज भी यही सोचते हैं कि अपने रोजगार के लिए 10-20 लाख रुपए लगाएं और अगले दिन से इनकम शुरू. लेकिन यह सोचना गलत है. पहले संघर्ष कीजिए, बाजार को समझिए, बाजार में क्या मांग है, किस काम को आप आसानी से कर सकते हैं वगैरह. इन सारी बातों को सोचने के बाद ही रोजगार करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए.’’
बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले अनुराग रंजन पंजाब से बीटैक की डिगरी हासिल कर चुके हैं. वे 28,000 रुपए महीने की नौकरी भी कर रहे थे. लेकिन उन का नौकरी में मन नहीं लग रहा था. वे कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सीमित आय वाली नौकरी छोड़ने का मन बनाया और अपने घरपरिवार वालों के विरोध के बावजूद दरभंगा के भठियारीसराय महल्ले में चाय के स्टौल की शुरुआत की. आज वे नौकरी से ज्यादा पैसा कमा रहे हैं.
अनुराग रंजन के पिता गांव में डाक्टर हैं. अनुराग ने अपनी दुकान पर अपनी तसवीर के साथ डिगरी भी लिख रखी है. यही डिगरी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.
अनुराग रंजन की चाय की दुकान उस इलाके में है, जहां कोचिंग सैंटर खूब चलते हैं, इसलिए उन के ज्यादातर ग्राहक छात्र ही हैं.
अनुराग रंजन 17 तरह की चाय बना कर बेचते हैं. उन के पास 7 रुपए से ले कर 55 रुपए तक की चाय है. वे अपनी दुकान पर रोजाना स्लोगन भी लिखते हैं, जिस से उन के ग्राहक मोटिवेट होते हैं.
अनुराग रंजन ने बताया, ‘‘शिक्षा का मतलब सिर्फ नौकरी पाना नहीं है, बल्कि लोगों को नौकरी देना भी होता है. किसी के नौकर बनने से अच्छा है खुद का मालिक बनें. नौकरी से बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं किए जा सकते हैं, सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है, इसीलिए मैं ने अपने सपने सच करने के लिए खुद का स्टार्टअप शुरू किया है.’’
हमारा देश दुनिया में चाय उत्पादक के रूप में दूसरे नंबर पर है. लेकिन चाय की खपत के मामले में आज भी दूसरे देशों के मुकाबले काफी पीछे है यानी यहां पर चाय का धंधा करना अभी भी मुनाफे से भरा हुआ है.
अगर इस धंधे को सही तरीके से किया जाए, तो यह काफी आमदनी वाला साबित हो सकता है. सिर्फ काफी आमदनी वाला ही नहीं, बल्कि कुछ सालों में करोड़पति भी बना सकता है. इस के लिए किसी खास ट्रेनिंग की जरूरत भी नहीं होती है.