नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की हीरों का व्यापार करने वाली कंपनियों का बैंकों को मोटा चूना लगा कर विदेश भाग जाना इस देश के लिए नया नहीं है. समाज और सरकार से बेईमानी करना हमारी रगरगमें भरा है और हमारा धर्म हिंदू धर्म हरदम इस बेईमानी को सही ठहराने के उपाय बताता रहता है. देशभर के उद्योगपति यदि अकसर मंदिरों, आश्रमों, मठों, बाबाओं के चरणों में दिखते हैं तो इसीलिए कि वे अपने कुकर्मों से भयभीत रहते हैं. उन्हें जताया जाता है कि हर तरह के कुकर्म का प्रायश्चित्त धर्म में है - पैसा चढ़ाओ, मुक्ति पाओ.

कांग्रेस की सरकारें हों या भाजपा की, वे इसी को भुनाती रहती हैं. ईश्वर में स्पष्ट विश्वास न करने वाली कम्युनिस्ट व समाजवादी सरकारें भी कुंभ मेले, छठपूजा व इफ्तार पार्टियां कराती रहती हैं ताकि नेताओं को अपनी बेईमानियों को पाप को धोने का मौका मिलता रहे. ईमानदारी से भी लाखों, करोड़ों, अरबों रुपए कमाए जा सकते हैं, लेकिन यह सोच इस देश में है ही नहीं.

नीरव मोदी ने सरकारी बैंकों के माध्यम से पैसा लूटा क्योंकि सरकार ही मोटा पैसा बनाने का सर्वोत्तम सहारा है. हर बड़ी कंपनी को जरा सा कुरेदेंगे तो पता चलेगा कि या तो उस ने सरकार से सस्ते में जमीन और कर्ज लिया या मोटे पैसे देने वाले ठेके लिए. आधुनिक तकनीक विकसित कर रही इनफोसिस और टाटा कंसल्टैंसी जैसी कंपनियां सरकार के लिए कंप्यूटर सिस्टम बनाने में अरबों रुपए कमा रही हैं. आप को जो हर रोज कंप्यूटर पर बैठ कर व्यापार करने, भुगतान करने या खरीदारी करने के आदेश दिए जा रहे हैं वे इसलिए ताकि हार्डवेयर व सौफ्टवेयर कंपनियों को मोटा लाभ मिल सके.

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