शहर और गांव की लड़कियों के बीच अगर रोजगार की तुलना की जाए तो गांव की लड़कियां काफी पिछड़ रही हैं. शहरी लड़कियां सरकारी नौकरियों के साथसाथ प्राइवेट नौकरियां भी करने लगी हैं.
गांव की लड़कियों को अगर सरकारी नौकरी नहीं मिलती है तो वे प्राइवेट नौकरी नहीं करती हैं. ऐसे में अब पढ़ाई करने के बाद भी गांव की लड़कियां नौकरी के बजाय चूल्हाचौका करने पर मजबूर हो रही हैं.
इस की सब से बड़ी वजह परिवारों में फैली रूढि़वादी और छोटी सोच है, जो लड़कियों को आगे बढ़ने के मौके देने के बजाय शादीब्याह के बंधन में बांधने को मजबूर कर रही है.
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले की रहने वाली सुनीता ने गांव में रह कर अच्छी पढ़ाई की थी. वह अपनी जमात के सभी लड़केलड़कियों में अव्वल रहती थी. स्कूल वाले भी कहते थे कि सुनीता में आगे बढ़ने की हिम्मत और लगन है. उस को अपनी आगे की पढ़ाई को जारी रखना चाहिए.
सुनीता के घर वाले उस को पढ़ाना तो चाहते थे लेकिन स्कूल आनेजाने की परेशानियों को देखते हुए वे उसे स्कूल नहीं भेजना चाहते थे. सुनीता ने अपने घर वालों को समझाने की पूरी कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी और सुनीता को आगे की पढ़ाई बंद करनी पड़ी.
इसी शहर की रहने वाली दीपा ने बीए किया. इस के बाद भी घर वालों ने उस की शादी कर दी. अब वह अपना कैरियर बनाने की जगह ससुराल में चूल्हाचौका करने में उलझ गई है. उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर किसी और प्रदेश के गांवदेहात की, इस तरह की लड़कियों को घरगृहस्थी के चक्कर में अपना कैरियर छोड़ देना पड़ता है. इस के चलते वे जिंदगी की दौड़ में दूसरों से पीछे रह जाती हैं.
यूनिवर्सिटी और उच्च शिक्षा की 172वीं रिपोर्ट कहती है कि तमाम परेशानियों के चलते गांव की लड़कियां प्रोफैशनल कोर्स नहीं कर पाती हैं. उन को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ती है.
आंकड़े बताते हैं कि प्राइमरी स्कूलों में 95 फीसदी लड़कियों का दाखिला होता है. 8वीं जमात तक तकरीबन 53 फीसदी लड़कियां घर बैठ जाती हैं. इस के चलते 13 साल से 18 साल की 34 फीसदी लड़कियां ही स्कूल में रह पाती हैं. जो लड़कियां आगे की पढ़ाई जारी रखती हैं, उच्च शिक्षा हासिल करती हैं उन में से तकरीबन 51 फीसदी कला वर्ग में दाखिला लेती हैं. 20 फीसदी लड़कियां साइंस, 16 फीसदी कौमर्स और मैनेजमेंट, 4 फीसदी इंजीनियरिंग, 3 फीसदी मैडिसिन, 2 फीसदी शिक्षा, एक फीसदी लड़कियां कानून की पढ़ाई करती हैं.
ज्यादातर लड़कियां पुराने हिसाब से ही पढ़ाई करती हैं क्योंकि उन को कैरियर से ज्यादा घरगृहस्थी की ओर जाने के लिए मजबूर किया जाता है. पढ़ाई के नाम पर लड़कियों को केवल कला वर्ग से बीए करने की आजादी दी जाती है.
आगे न बढ़ने की वजह
गांव की लड़कियों को ऊंची शिक्षा के लिए न भेजे जाने की कई वजहें हैं. सब से बड़ी वजह यह है कि उन के घर वाले जागरूक नहीं होते. उन को लगता है कि लड़की को पढ़लिख कर ससुराल जाना होता है, इसलिए वे केवल इतना पढ़ लें जिस से उन को अनपढ़ न कहा जाए और उन की शादी हो जाए.
गांव की लड़कियां घर के कामकाज में अपने घर वालों का हाथ बंटाती हैं. इस वजह से वे लोग उन्हें पढ़ने जाने नहीं देना चाहते. घर वालों को लगता है कि अगर लड़की पढ़ने चली गई तो घर का काम कौन करेगा? गांव का असुरक्षित माहौल भी इस के लिए जिम्मेदार है.
गांव में प्राइमरी और जूनियर जमातों के अलावा दूसरे बड़े स्कूल अमूमन घर से दूर होते हैं, जहां बड़ी लड़की को अकेले भेजने में घर के लोग डरते हैं. दूर स्कूलों में आनेजाने की अपनी दिक्कतें भी होती हैं.
इस के अलावा गांव के?स्कूलों में महिला शौचालयों और महिला टीचरों का कम होना भी लड़कियों के स्कूल छोड़ने की अहम वजह माना जाता है. इन वजहों के चलते गांव की लड़कियां अपनी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाती हैं. जब तक इस तरह की परेशानियों को दूर नहीं किया जाएगा, तब तक गांव की लड़कियों को बड़े स्कूलों में पढ़ने का सपना सपना बन कर ही रह जाएगा.
कम नहीं हैं मजबूरियां
गांव की लड़कियां अपनी आगे की पढ़ाई क्यों जारी नहीं रख पातीं, इस के लिए क्या मजबूरियां उन के सामने आती हैं, इस बारे में जब जानकारी जमा की गई तो कई तरह की बातें सामने आईं.
लड़कियों को सब से ज्यादा पारिवारिक जिम्मेदारियां उठानी पड़ती?हैं, इसलिए वह आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाती हैं. गांवघर में लड़कियों को?घरेलू काम सिखाए जाते हैं. इस के लिए उन की पढ़ाई जारी रह नहीं पाती. जब कभी कोई लड़की अपने मन से पढ़ना भी चाहती है तो घर के लोग सोचते हैं कि वह घर के काम करने से बचने के लिए स्कूल जाना चाहती है. कई बार तो काफी बुरी बातें कह कर लड़की को स्कूल जाने से रोका जाता है.
एक लड़की के घर वालों ने यह कह कर उस का स्कूल आना बंद करा दिया कि वह स्कूल केवल लड़कों की संगत में रहने के लिए जाना चाहती है.
घर वालों को लड़की के बड़े होते ही शादी की चिंता सताने लगती है. जैसे ही लड़की 15 साल के करीब पहुंचती है घर के लोग उस की शादी कराने के लिए लड़का तलाश करने लगते?हैं. उन्हें यह चिंता भी रहती है कि अगर लड़की ज्यादा पढ़लिख गई तो उस के हिसाब से ही लड़का तलाश करना होगा, इसलिए घर वाले लड़की को कम तालीम ही दिलाना चाहते हैं.
ज्यादातर घरों के लोग यही सोचते?हैं कि लड़की को ज्यादा पढ़ालिखा कर क्या करना है. उस को तो शादी के बाद अपनी ससुराल जाना होगा. लड़कियां भी सोचती हैं कि शादी के बाद पता नहीं उन को नौकरी करने
को मिलेगी भी या नहीं, इसलिए वे प्रोफैशनल कोर्स नहीं करना चाहती हैं. शादी के बाद बच्चे और परिवार के लिए समय निकालना मुश्किल होता है. औफिस का समय वे नहीं निकाल सकतीं इसलिए नौकरी के लिए पढ़ाई करने से बचती हैं. इस तरह की मजबूरियों के चलते लड़कियां अपनी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाती हैं.
काम आई पढ़ाई
पढ़लिख कर कुछ लड़कियां अपने समाज के लिए उदाहरण बन गई हैं. मीरा की शादी किशोर के साथ हुई थी. किशोर शहर में नौकरी करता था. अपने परिवार में वह अकेला था. बूढ़े मांबाप उस के साथ ही रहते थे. मीरा और किशोर के 2 छोटे बच्चे भी थे.
एक दिन घर में ही एक हादसे में किशोर की जान चली गई. परिवार के लिए कमाई का जरीया खत्म हो गया. गांव में खेतों से इतनी आमदनी नहीं होती थी कि?घरपरिवार को सही तरह से पाला जा सकता.
मीरा के गांव के प्राइमरी स्कूल में शिक्षक की जगह खाली थी. गांव की दूसरी लड़कियों ने?भी उस नौकरी के लिए फार्म भरा?था. मीरा उन सभी में पढ़ाई में अव्वल थी इसलिए वह नौकरी उस को मिल गई. आज मीरा अपने परिवार को पालने में अहम रोल अदा कर रही है.
इस तरह के उदाहरण कम नहीं?हैं. कई लड़कियों ने अपनी पढ़ाई के जरीए घरपरिवार की मदद की?है. पढ़ाई केवल नौकरी के लिए ही जरूरी नहीं?है, बल्कि यह आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम भी करती है, इसलिए पढ़ाई जरूर करनी चाहिए.
फैजाबाद की रहने वाली रेनू कहती हैं, ‘‘हमारे गांव में कोई भी बच्चों को ट्यूशन नहीं पढ़ाता था. मैं ने अपने बच्चों के साथ गांव की 3 लड़कियों को?ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. जब इम्तिहान हुए तो वे सभी बच्चे सब से आगे आए. गांव के लोग भी खुश थे. इस के बाद तो गांव के लोग मुझ से बच्चे पढ़वाने के लिए आने लगे.
‘‘मैं ने बच्चों को पढ़ाने की ट्रेनिंग की थी इसलिए पढ़ा ले गई. अगर मैं खुद ही पढ़ीलिखी नहीं होती तो दूसरों को?क्या पढ़ाती.’’
लालफीताशाही है वजह
‘‘गांवों और छोटे शहरों के लैवल पर नौकरियों की पूरी तरह से कमी है. प्राइवेट स्कूल, अस्पताल और ब्यूटीपार्लर जैसी निजी कोशिशों को सरकारी सहयोग नहीं मिल रहा है. सरकारी लालफीताशाही इन को कमाई का जरीया समझती है जिस से रोजगार के मौके कम हो रहे?हैं.
‘‘गांव के लोग अभी भी लड़की को प्राइवेट नौकरी के लिए दूर शहर में भेजने से?डरते हैं. ऐसे में लड़कियों के सामने रोजगार के मौके कम हो रहे हैं. पढ़ाई करने के बाद भी वे रोजगार में पीछे हैं. इस से वे आगे चल कर अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही हैं.’’
-अभिषेक चौहान, वकील, इलाहाबाद हाईकोर्ट.
मूंछ की सोच है गलत
‘‘लड़कियों को ले कर ज्यादातर परिवारों में अभी यही सोच है कि पढ़ालिखा कर शादी कर दो. मांबाप को लगता है कि शादी करते ही वे अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा जाएंगे.
यह सोच लड़कियों की राह में बड़ी बाधा है. ‘‘परिवार यह सोचता?है कि लड़की के साथ कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उन की मूंछ नीची हो जाएगी. मूंछ की यह सोच लड़कियों को प्राइवेट नौकरी नहीं करने देती. शहरों में पैसों की जरूरतों के चलते सोच बदली है पर गांव और छोटे शहरों में यह सोच अभी भी कायम है.’’
-आशा सिंह देवासी, लेखिका व कलाकार, राजस्थान.