रेटिंग: दो स्टार
हाथियों के संरक्षण व हाथी दांत की तस्करी पर लगाम लगाने जैसे ज्वलंत मुद्दे पर बनी फिल्म ‘‘जंगली’’ कमजोर पटकथा व कहानी के चलते अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं रहती. पूरी फिल्म बचकानी सी लगती है. हाथियों का भी सही ढंग से उपयोग नहीं किया गया.
फिल्म ‘‘जंगली’’ की कहानी मुंबई के एक जानवरों के अस्पताल में कार्यरत डाक्टर राज नायर विद्युत जामवाल के इर्द गिर्द घूमती है, जो कि अपनी मां के देहांत के बाद से ही यानी कि पिछले दस वर्ष से मुंबई में हैं और अपने पिता से नाराज चल रहे हैं. डा. राज को लगता है कि यदि उसके पिता ने उसकी मां का इलाज शहर में करवाया होता, तो उसकी मां ठीक हो जाती. उसके पिता चाहते हैं कि डा. राज अपनी मां की बरसी के मौके पर उड़ीसा में हाथियों की उसी सेंचुरी में आए, जिसे उसकी मां व पिता ने ही बसाया है. अब राज के पिता ही इस सेंचुरी में हाथियों के संरक्षण का काम कर रहे हैं. उनके साथ शंकरा (पूजा सावंत) , राजेश भी हैं. राज अपने पिता के पास जाना नहीं चाहते, मगर पत्रकार मीरा (आशा भट्ट) की एक बात डा. राज को अपनी मां की दसवीं बरसी पर जाने के लिए राजी कर देती हैं.
डा. राज का पीछा करते हुए पत्रकार मीरा भी पहुंच जाती हैं, जिसे राज के पिता का इंटरव्यू अपनी वेब साइट के लिए करना चाहती है. राज की मुलाकात अपनी बचपन की साथी शंकरा और फौरेस्ट आफिसर देव (अक्षय ओबेराय )से होती है. घर लौटने के बाद राज अपने बचपन के साथी हाथियों में भोला और दीदी से मिलकर बहुत खुश होता है. वह अपने उन पुराने दिनों को याद करता है, जब उसकी मां जीवित थी और वह अपने गुरू (मकरंद देशपांडे) से कलारिपयट्टू का प्रशिक्षण ले रहा था. हाथियों की इस सेंचुरी व जंगल में पहुंचते ही से डा. राज को कई नई बातों से दो चार होना पड़ता है.
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