लेखक- डा. सतीश चंद्रा

अखबार में छपे ‘गुरुजी का प्रवचन’ के विज्ञापन को देख कर उस के दिमाग में षड्यंत्र का कीड़ा कुलबुलाने लगा. अशोक ने जब आंखें खोलीं तो सुबह के 7 बजने वाले थे. उस ने एक अंगड़ाई ली और उठ कर बैठ गया और बैठेबैठे ही विचारों में खो गया. वह 10 साल पहले एक सैलानी की तरह गोआ आया था. वह ग्रेजुएट होने के बाद से ही नौकरी की तलाश करतेकरते थक गया था. शाम का समय बिताने के लिए उस ने ला में यह सोच कर दाखिला ले लिया कि नौकरी नहीं मिली तो वकालत शुरू कर लेगा. रोपीट कर उस ने कुछ पेपर पास भी कर लिए थे, लेकिन नौकरी न मिलनी थी न मिली. मांबाप भी कब तक खिलाते.

रोजरोज के तानों से तंग आ कर एक दिन घर से नाराज हो कर अशोक भाग निकला और गोआ पहुंच गया. पर्यटकों को आकर्षित करते गोआ के बीच अशोक को भी अच्छे लगे थे लेकिन वे पेट की आग तो नहीं बुझा सकते थे. नौकरी के लिए अशोक ने हाथपैर मारने शुरू किए तो उस का पढ़ालिखा होना और फर्राटे से अंगरेजी बोलना काम आ गया. उसे एक जगह ड्राइवर की नौकरी मिल गई. इस नौकरी से अशोक को कई फायदे हुए, पहला तो उस का ड्राइविंग का शौक पूरा हो गया तथा सफेद कपड़ों के रूप में रोजाना अच्छी डे्रस मिलती थी. टैक्सी मालिक की कई कारें थीं, जोकि कांट्रेक्ट पर होटलों में लगी रहती थीं. उस का टैक्सी मालिक शरीफ आदमी था. उस को किलोमीटर के हिसाब से आमदनी चाहिए थी. देर रात से मिलने वाले ओवर टाइम का पैसा ड्राइवर को मिलता था.

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अशोक की लगन देख कर कुछ ही दिनों में उस के मालिक ने उसे नई लग्जरी कार दे दी थी जिस का केवल विदेशी सैलानी अथवा बड़ेबड़े पैसे वाले इस्तेमाल करते थे. इस का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि अशोक को हमेशा विदेशी अथवा बड़े लोगों के संपर्क में रहने का मौका मिलने लगा. कई विदेशी तो उसे साथ खाना खाने को मजबूर भी कर देते थे, खासकर तब जब वह उन्हें एक बीच से दूसरे बीच घुमाता था. अच्छीखासी टिप भी मिलती थी जो उस की पगार से कई गुना ज्यादा होती थी. धीरेधीरे अशोक ने एक कमरे का मकान भी ले लिया. विदेशी पर्यटकों की संगत का असर यह हुआ कि अब उस को शराब पीने की आदत पड़ गई. चूंकि वह अकेला रहता था इसलिए अन्य टैक्सी ड्राइवर मदन, आनंद आदि भी उस के कमरे में ही शराब पीते थे. कल रात भी अशोक तथा उस के दूसरे टैक्सी ड्राइवर दोस्तों का जमघट काफी समय तक उस के कमरे पर लगा रहा. कारण था पर्यटन सीजन का समाप्त होना. बरसात का मौसम आ गया था. इस मौसम में विदेशी पर्यटक अपने देश चले जाते हैं. हां, स्कूल की छुट्टियां होने से देशी पर्यटक गोआ आते हैं जिन में उन की कोई रुचि नहीं थी. मातापिता से मिलने या अपने शहर जाने का उस का कोई कार्यक्रम नहीं था. इतने में दरवाजे पर घंटी बजी तो अशोक अपने अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आया. दरवाजा खोल कर देखा तो बाहर अखबार वाला खड़ा था जिस का 2 महीने का बिल बाकी था. अशोक ने उस को 1-2 दिन में पैसा देने को कह कर भेज दिया और स्थानीय अखबार ले कर पढ़ने लगा. अखबार पढ़तेपढ़ते उस की इच्छा चाय पीने को हुई. उस ने कमरे में एक कोने में मेज पर रखे गैस चूल्हे पर अपने लिए चाय बनाई तथा चाय और अखबार ले कर बाथरूम में घुस गया.

यद्यपि स्थानीय समाचारों में अशोक की कोई खास रुचि नहीं थी. वह तो महज मोटीमोटी हैडिंग पढ़ता और कुछ चटपटी खबरों के साथ यह जरूर पढ़ता कि गोआ में कहां क्या कार्यक्रम होने वाले हैं और किस ओर के ट्रैफिक को किस ओर मोड़ा जाना है. चाय समाप्त कर के अशोक अखबार फेंक ही रहा था कि उस की निगाह एक बड़े विज्ञापन पर पड़ी. विज्ञापन के अनुसार अगले महीने की 10 तारीख की शाम को मीरामार बीच पर गुरु रामदासजी का प्रवचन होना था. बिना किसी प्रवेश शुल्क के सभी लोग सादर आमंत्रित थे. विज्ञापन से ही उसे पता चला कि गोआ का प्रसिद्ध औद्योगिक घराना ‘खोटके परिवार’ इस कार्यक्रम को आयोजित करा रहा है. अशोक को ध्यान आया कि कल उस के टैक्सी मालिक भी गुरु रामदास के गुणों का बखान कर रहे थे जिस को उन के परिवार के लोग बड़े ध्यान से सुन रहे थे. तभी उस ने जाना था कि गुरुजी बीमारी ठीक करने के उपाय तथा ‘बेटर लिविंग’ की शिक्षा देने में माहिर हैं, देशविदेश में उन का बड़ा नाम है. लाखों उन के अनुयायी हैं. बंगलौर में गुरुजी का बहुत बड़ा आश्रम है. अशोक को गुरु रामदासजी प्रेरणा स्रोत लगे तथा उस ने भी उन के इस कार्यक्रम में जाने का मन बना लिया. अशोक तैयार हो कर टैक्सी मालिक के दफ्तर के लिए निकला तो यह देख कर उसे आश्चर्य हुआ कि शहर में जगहजगह गुरुजी की फोटो के साथ बड़ेबड़े होर्डिंग लगे हैं, पोस्टर लगे हैं. उस ने टैक्सी ली और इस उम्मीद से मेरियट होटल की तरफ चल पड़ा कि पांचसितारा होटल में भूलेभटके कोई सवारी मिल ही जाएगी. वैसे भी होटल मैनेजर का कमीशन बंधा होता है. अत: निश्चित था कि यदि कोई सवारी होगी तो उस को ही मिलेगी. मेरियट होटल मीरामार बीच के साथ ही है. टैक्सी होटल में पार्क कर के अशोक बीच पर चला गया. बारिश रुकी हुई थी. उस को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि कई मजदूर सफाई का काम कर रहे हैं.

पूछने पर पता चला कि गुरुजी के कार्यक्रम की तैयारी चल रही है. होटल पहुंचा तो मैनेजर ने उसे बताया कि 2 सवारी हैं जिन को शहर तथा आसपास के इलाकों को देखने के लिए जाना है. इतने में ही सफेद कपड़ों में 2 व्यक्ति काउंटर पर आ गए. उन के खादी के कपड़ों की सफेदी देखते ही बनती थी. मैनेजर के इशारे पर अशोक गेट पर टैक्सी ले आया. वे दोनों बैठे तो अशोक ने दरवाजा सैल्यूट के साथ बंद किया. अशोक टैक्सी चला रहा था पर उस का ध्यान उन की बातों की ओर लगा था. उन की बातों से उसे पता चला कि वे दोनों गुरुजी के कार्यक्रम को आयोजित करने के बारे में आए हैं. लंबे व्यक्ति का नाम ओमप्रकाश है जिस को सभी ओ.पी. के नाम से जानते हैं. वह गुरुजी का ‘इवंट’ मैनेजर है तथा कार्यक्रमों को आयोजित करने की जिम्मेदारी गुरुजी ने उसे ही स्थायी रूप से दी हुई है. दूसरे व्यक्ति का नाम विजय गोयल था जो चार्टर्ड अकाउंटेंट है और आयोजनों में लागत और खर्चों की जिम्मेदारी वह गुरुजी के निर्देश पर निभा रहा है. दोनों ही गुरुजी के 2 हाथ हैं, विश्वासपात्र हैं. दोनों व्यक्तियों ने शहर में लगे पोस्टर, होर्डिंग आदि का जायजा लिया और आवश्यक निर्देश दिए. समाचारपत्रों में छपे गुरुजी के विज्ञापन को देख कर वे दोनों उन समाचारपत्रों के दफ्तरों में गए और गुरुजी के चमत्कार के किस्से प्रकाशित करने के लिए कहा. इस के बाद वे दोनों ‘खोटके परिवार’ के बंगले पर पहुंचे जहां उन का भरपूर स्वागत हुआ. शाम के समय लान में ही कुरसियां लगी थीं और उस लान के बगल में ही टैक्सी पार्क की गई. जलपान के बाद विजय गोयल ने समाचारपत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों के बिल तथा होर्डिंग आदि के खर्चों का ब्योरा दिया जोकि लगभग 5 लाख रुपए का था. खोटके परिवार के मुखिया ने सभी बिल अपने पास खड़े मैनेजर को बिना देखे पेमेंट करने के लिए आवश्यक निर्देश दिए.

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तभी विजय गोयल ने कहा कि सारा भुगतान कैश में होना चाहिए, चेक नहीं और इस पर सभी सहमत थे. अशोक पास में खड़ा उन की बातें सुन रहा था. ‘खोटके परिवार’ का आग्रह था कि गुरुजी उन्हीं के यहां रुकें तथा व्यवस्था उन्हीं के अनुसार हो जाएगी. मीरामार बीच कार्यक्रम में गुरुजी का स्वागत खासतौर से ‘खोटकेजी ही करेंगे और उन की पत्नी औरतों का प्रतिनिधित्व करेंगी. इस समारोह में. ओ.पी. ने बताया कि गुरुजी के साथ कितने लोग होंगे और उन सब की आवश्यकताएं क्याक्या होंगी. इतने में मैनेजर ने एक मोटा लिफाफा विजय गोयल को पकड़ा दिया जो शायद कैश पेमेंट था. 2 घंटे के बाद वे दोनों वापस होटल की ओर चल दिए. अंधेरा हो चला था लेकिन गोआ की नाइट लाइफ अभी शुरू होनी थी. होटल पहुंचने से पहले विजय गोयल ने अपने साथी ओ.पी. से बोला कि मटकों का कार्यक्रम तो बाकी ही रह गया. इस पर ओ.पी. ने टैक्सी ड्राइवर अशोक से पूछा कि क्या यहां आसपास कुम्हार हैं जो मटका बनाते हैं? अशोक ने बताया कि मापसा में कुम्हार रहते हैं जो मिट्टी के बरतन बनाते हैं. और मापसा लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर दूसरा शहर है. ओ.पी. ने विजय से कहा कि यह काम इस ड्राइवर को दे दो. यह 2-3 मटके ले आएगा. ‘‘हमारा काम तो 2 मटकों से ही हो जाएगा,’’ विजय बोला. ‘‘भाई, मैं ने ‘इवेंट मैनेजमेंट’ का कोर्स किया है. तीसरा मटका इमर्जेंसी के लिए रखो,’’ ओ.पी. ने जवाब दिया. विजय गोयल ने अशोक को समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, तीनों मटके साधारण होने चाहिए जिन को सफेद रंग से पोता जाएगा और उस पर स्वस्तिक का निशान व ‘श्री गुरुजी नम:’ भी लिखाना होगा. उन मटकों की खासीयत यह होगी कि मुंह बंद होगा और जैसे मिट्टी की गोलक में लंबा सा चीरा होता है वैसे ही मटकों के मुंह पर होगा जिस से उस में रुपयापैसा डाला जा सके.’’ यह सबकुछ समझाने के बाद विजय बोले, ‘‘ओ.पी., मैं तो अब थक गया हूं. कल सुबह की फ्लाइट से बंगलौर वापस भी जाना है.’’ ओ.पी. ने अशोक को 2 हजार रुपए दिए और बोले, ‘‘अशोक, इस बात का खास ध्यान रखना कि मटके आकर्षक ढंग से पेंट होने चाहिए.’’ ‘‘सर, ये रुपए तो बहुत ज्यादा हैं,’’ अशोक बोला. ‘‘कोई बात नहीं, बाकी तुम रख लेना लेकिन याद रहे कि कार्यक्रम 10 तारीख को है और हम 8 तारीख को आएंगे. तब यह मटके तुम से ले लेंगे.

तब तक उन्हें अपने पास ही रखना.’’ रात के 10 बज गए थे. अशोक भी टैक्सी स्टैंड पर छोड़ कर अपने कमरे पर पहुंचा. थकान महसूस हो रही थी साथ ही भूख भी लग रही थी. जेब में 2 हजार रुपए पड़े ही थे इसलिए उस ने मदन को बुला लिया क्योंकि उस का दोस्त आनंद टैक्सी ले कर मुंबई गया था. दोनों एक होटल में गए और खाना मंगा लिया. खाना खाते समय अशोक के दिमाग में एक विचार आया जिस ने एक षड्यंत्र को जन्म दिया. उस ने दोस्तों से कहा कि भाई मदन, मैं ने बहुत पहले कहीं पढ़ा था कि इन महंतोंगुरुओं के पास जो चंदे का पैसा आता है उस का कोई हिसाबकिताब नहीं रखा जाता और इस में हेराफेरी हो तो ये लोग उस की कहीं शिकायत भी नहीं करते हैं और फिर दोनों आपस में बाबाओं के किस्से सुनासुना कर ठहाके लगाते रहे. रात के 12 बजे मदन अपने घर चला गया और अशोक भी कमरे पर आ कर सो गया. सुबह उस ने अखबार का पूरा पेमेंट कर दिया. इस के बाद तैयार हो कर वह बस पकड़ कर मापसा कुम्हारों की बस्ती में पहुंचा और मुंह बंद लेकिन चीरे के साथ मटकों का आर्डर दे दिया. सौदा 50 रुपए प्रति मटके पर तय हुआ तो कुम्हार ने 3 दिन का समय मांगा. अशोक ने 5 मटकों का आर्डर दिया तथा एडवांस भी 100 रुपए पकड़ा दिए. अब अशोक पेंटर की तलाश भी वहीं करने लगा क्योंकि वह सारा काम मापसा में ही कराना चाहता था. इधरउधर नजर दौड़ाने पर बाजार की एक गली में उसे पेंटर की दुकान दिखाई दी. अशोक ने पेंटर को मटके पेंट करने के बारे में बताया. पेंटर जितेंद्र होशियार था, वह तुरंत समझ गया और उस ने अशोक को गुरुजी का चित्र भी बनाने का सुझाव दिया. अशोक ने जब उस से यह कहा कि उस के पास गुरुजी का फोटो नहीं है तो वह बोला, ‘‘आप इस के लिए परेशान न हों. अखबार में तो गुरुजी का चित्र छप ही रहा है उसे देख कर बना दूंगा.’’

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इस के बाद उस ने अशोक को अपने द्वारा बनाई गई कुछ पेंटिंग भी दिखाईं. अशोक ने उस के काम से संतुष्ट हो कर कीमत तय की. जितेंद्र ने 100 रुपए प्रति मटका पेंटिंग की कीमत बताई. इस पर अशोक ने कहा कि अगर कार्य संतोषजनक होगा तो वह 200 रुपए अतिरिक्त देगा. इसलिए काम बहुत ही अच्छा करना होगा. जितेंद्र ने भरोसा दिया कि आप मटका दें. 3 दिन में कार्य पूरा हो जाएगा. अशोक ने 3 दिन बाद मटके कुम्हार से ले कर जितेंद्र की दुकान पर पहुंचा दिए. एडवांस भी दे दिया. इस बीच वह खोटके परिवार के दफ्तर भी गया तथा गुरुजी के कार्यक्रम में रुचि दिखाई. खोटकेजी ने कहा कि वह सेवक के रूप में कार्यक्रम की तैयारी में भाग ले सकता है. चूंकि आफ सीजन के चलते अशोक बेकार था इसलिए बेकारी से बेगारी भली के सिद्धांत को मानते हुए उस ने हां कर दी. कार्यक्रम में केवल 5 रोज रह गए थे अत: तैयारी जोरशोर से चल रही थी. ड्राइवर होने के कारण खोटकेजी ने सारी भागदौड़ की जिम्मेदारी अशोक को सौंप दी तथा एक कार भी, जिस को अशोक ने जीजान से पूरा किया. इस दौरान अशोक ने मीरामार बीच समारोह स्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एक भव्य मंच बनाया गया था जहां पर गुरुजी को विराजमान होना था.

मंच पर संगीतकारों सहित लगभग 50 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. कार्यक्रम बड़े पैमाने पर होना था अत: टेलीविजन पत्रकारों, वीडियो आदि के साथ प्रतिष्ठित लोगों के बैठने की भी व्यवस्था की गई थी. मुख्यमंत्री अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ गुरुजी को माला पहना कर गोआ में उन के स्वागत की रस्म अदा करने वाले थे. मंच पर मुख्यमंत्री के साथ खोटकेजी को बैठना था. बाद में सभी को खोटकेजी के बंगले पर गुरुजी के साथ भोजन पर आध्यात्मिक चर्चा में भाग लेने का कार्यक्रम था. यह सुनहरा अवसर था जिस को खोटकेजी खोना नहीं चाहते थे. बातोंबातों में अशोक को पता चला कि खोटकेजी ने सारा खर्चा इसी खास अवसर के लिए उठाया है वरना गुरुजी के दर्शन तो वह बंगलौर जा कर भी कर सकते थे. खैर, इस बीच अशोक मटके ले आया. वास्तव में जितेंद्र ने अपने चित्रों से मटके बेहद खूबसूरत बना दिए. सफेद रंग के मटके तथा उन पर गुरुजी का आकर्षक फोटो, स्वस्तिक के निशान के साथ कुछ चित्रकारी भी की गई थी. आखिर 10 तारीख यानी समारोह का दिन आ गया. गुरुजी दोपहर की फ्लाइट से गोआ आ गए थे तथा खोटकेजी के बंगले में विश्राम कर रहे थे. पिछले 2 दिनों से लगातार गुरुजी के आश्रम के सदस्य समूह में गोआ पहुंच रहे थे. हवाई अड्डे पर विशेष व्यवस्था की गई थी. ओ.पी. तथा विजय गोयल भी कल ही आ गए थे और उन्होंने अशोक की भूरिभूरि प्रशंसा की शानदार मटके बनवाने के लिए. दोनों ही संतुष्ट थे. शाम को सभी कार्यकर्ता सफेद पोशाक पहने गुरुजी के चित्र, बैच, आई कार्ड लगाए मीरामार बीच पर पहुंच चुके थे. अशोक को भी आईकार्ड लगाए विजयजी ने विशेष जिम्मेदारी सौंप दी. कार्यक्रम शुरू हो गया था. सभास्थल के बीच में लंबा प्लेटफार्म बनाया गया था जिस से सभास्थल 2 भागों में बंट गया था. लाउडस्पीकर पर बारबार घोषणा हो रही थी कि गुरुजी बस, आने ही वाले हैं. इतने में हलकी बरसात होने लगी तो थोड़ी हलचल सी मच गई. लोगों ने अपनेअपने छाते खोल लिए लेकिन भीड़ उठने का नाम नहीं ले रही थी, इस से पता चलता था कि गुरुजी के प्रति लोगों में कितना विश्वास है. बारिश रुक गई तो गुरुजी बीच के प्लेटफार्म पर चल कर मंच पर आए और भक्तों का अभिवादन स्वीकार कर के उन के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी. लोगों ने फूलमालाएं पहना कर, दे कर तथा दूर से फेंक कर उन का अभिवादन किया. गुरुजी मंच पर पहुंचे तो खोटकेजी, मुख्यमंत्री और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों ने परंपरागत तरीके से उन का स्वागत किया. गुरुजी ने हलकी बारिश का श्रेय लेते हुए मजाक के अंदाज में अपने भाषण की शुरुआत करने से पहले सभी को आदेश दिया कि वे आंखें बंद कर के 2 मिनट का ध्यान लगाएं. बाद में भक्तों को कहा गया कि लंबी सांस लें तथा धीरेधीरे छोड़ें.

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यह प्रक्रिया अनेक बार दोहराई गई. इसी दौरान विजयजी ने अशोक को मटका देते हुए मंच की बाईं तरफ श्रद्धालुओं के बीच उसे घुमाने को कहा तथा दूसरा मटका खुद ले कर दाईं तरफ चले गए. ओ.पी. तो मंच पर विराजमान थे. कार्यक्रम निशुल्क था अत: हर श्रद्धालु ने क्षमतानुसार मटके में अपना योगदान दिया. कम से कम 10 रुपए का नोट तो देना ही था. कुछ ने 500 तो कुछ ने हजार तक का नोट दिया. जब बाईं तरफ बैठे सभी श्रद्धालुओं में मटका घूम चुका तो उस का वजन काफी बढ़ गया था. अशोक मटका ले कर धीरेधीरे पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं से निकल कर बाहर की तरफ खड़े श्रद्धालु, पुलिसकर्मी, टैक्सी वालों के बीच चला गया. अशोक ने बाहर खड़ी मदन की टैक्सी के पास मटका दिखाया तो मदन ने तुरंत झुक कर मटका ले लिया तथा बराबर में खाली रखा मटका अशोक को थमा दिया. अशोक पुन: मटके को ले कर टैक्सी वालों, पुलिस वालों के बीच घुमाने लगा. मंत्रीजी ने भी मटके में योगदान दिया. अशोक धीरेधीरे वापस विजय के पास पहुंचा जोकि दाईं तरफ अभी भी आधे श्रद्धालुओं के बीच मटका घुमा पाए थे. इस बीच उन को स्थानीय महिला कार्यकर्ताओं ने घेर रखा था तथा विजय अपने गुरुजी के साथ घनिष्ठ संबंधों की चर्चा से खुश हो रहे थे. अशोक ने विजय से कहा, ‘‘सर, उस तरफ से तो पूरा हो गया. इधर मैं करता हूं आप उधर वाला मटका पकड़ लें.’’ विजय ने मटका बदल लिया तथा अशोक ने उस तरफ के लोगों के बीच मटका घुमाना शुरू कर दिया. जब पीछे की तरफ अशोक मटका ले कर गया तो देखा विजय पहले मटके को पकड़े महिला श्रद्धालुओं से हंसहंस कर बातें कर रहे हैं. अशोक ने बड़े अदब से विजय के पास जा कर पूछा, ‘‘सर, बाहर खड़े श्रद्धालुओं, टैक्सी, ड्राइवर, पुलिस वालों के बीच भी मटका घुमाना है?’’ विजय ने आदेशात्मक लहजे में कहा कि जल्दी करो…गुरुजी का कार्यक्रम अगले 20 मिनट में समाप्त होने वाला है. अशोक तेज कदमों से मदन की टैक्सी को ढूंढ़ने लगा. मदन की टैक्सी को न पा कर अशोक ने लंबी गहरी संतोष की सांस ली. योजना के अनुसार वह आनंद की टैक्सी की तरफ बढ़ा जिस ने झुक कर मटका अंदर रख लिया तथा खाली मटका अशोक को पकड़ा दिया, जिस को ले कर वह पुन: ड्राइवरों, पुलिसकर्मियों एवं बाहर खडे़ श्रद्धालुओं के बीच घुमाता हुआ विजय के पास पहुंच गया तथा दूसरा मटका भी उन के हवाले कर दिया. विजयजी ने दोनों मटकों को अपने संरक्षण में ले लिया. इतने में कार्यक्रम समाप्त करने की घोषणा हो चुकी थी. गुरुजी मंच छोड़ चुके थे. भजनों के द्वारा श्रद्धालुओं को रोका जा रहा था लेकिन भीड़ भी धीरेधीरे घटने लगी थी. तभी ओ.पी. जी मंच छोड़ कर वहां आ गए.

अशोक ने सफल कार्यक्रम कराने के लिए उन्हें बधाई दी. खुश हो कर ओ.पी. जी ने उस को बंगलौर आने को कहा तथा प्रस्तावित किया कि वह चाहे तो गुरुजी के स्टाफ में शामिल हो सकता है. अशोक ने तुरंत ओमप्रकाशजी के तथा विजयजी के पांव छुए तथा उन के आशीष वचन प्राप्त किए. विजय और ओमप्रकाश दोनों को मटके ले कर अशोक की टैक्सी से होटल पहुंचना था जहां से उन्हें खोटकेजी के बंगले पर जाना था. टैक्सी स्टार्ट करने से पहले अशोक को यह देख कर राहत हुई कि आनंद भी टैक्सी ले कर गायब हो चुका था. अशोक ने विजय से कहा कि वह मटका फोड़ कर देख लें कि कितना कलेक्शन आया है क्योंकि गोआ की जनता पैसे देने के मामले में कंजूस है तथा धार्मिक कामों में कम ही योगदान देती है. ‘‘शराब से पैसे बचते ही नहीं होंगे,’’ ओमप्रकाशजी बोले तो तीनों हंस पड़े. दोनों मटके कमरे में बंद कर के, तीनों लोग खोटकेजी के बंगले की ओर चल पडे़. अशोक ने फिर मटकों के बारे में चर्चा करनी चाही लेकिन विजय ने डांटते हुए कहा कि मटके गुरुजी के सामने बंगलौर में फोडे़ जाएंगे. ऐसा उन का आदेश है. ‘‘आखिर अपने सुंदर चित्र को नक्काशी के साथ देख कर गुरुजी प्रसन्न होंगे,’’ ओ.पी. जी ने एक जुमला फिर जड़ दिया. तीनों पुन: हंस पड़े. खोटकेजी के बंगले पर उन दोनों को छोड़ कर अशोक वापस कमरे पर आया जहां उस के दोनों दोस्त मदन व आनंद खानेपीने के सामान के साथ उस की प्रतीक्षा कर रह थे. तीनों ने अपनेअपने जाम टकराए और बोले, ‘‘जय गुरुजी का मटका.’’ द्य (इस कहानी के लेखक आयकर अपीलीय अधिकरण पणजी के न्यायिक सदस्य हैं)

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