अंतिम भाग
लेखक- शन्नो श्रीवास्तव
पूर्व कथा
सोनी अपने ममेरे भाई राजू भैया की लड़कियों से छेड़छाड़ करने की आदत से परेशान थी. लड़कियां भी न जाने क्यों उस की लच्छेदार बातों में फंस जाती थीं. जबकि इस के पीछे उस का मकसद सिर्फ टाइमपास होता था, उन्हें ले कर वह भावुक हो ऐसा कभी नहीं हुआ.
सोनी राजू भैया की दीदी की ननद की शादी में जाती है. जहां राजू दीदी की चचेरी ननद रेशमी को प्यार भरी बातों से काफी बेवकूफ बनाता है.
विवाह के बाद राजू सोनी के सामने शेखी बघारता है कि कैसे रेशमी उस की बातों में आ गई और अच्छी बेवकूफ बनी. सोनी राजू को समझाने की कोशिश करती है कि वह अपनी यह आदत छोड़ दें वरना मामाजी से शिकायत कर देगी. राजू के घर पर सोनी मामी से मिलती है और कहती है कि राजू भैया की शादी जल्दी करवा दे क्योंकि वह लड़कियों के पीछे लगे रहते हैं. राजू भैया की मां भी सोनी की बात पर ज्यादा गौर नहीं करती. अब आगे…
कुछ दिनों बाद मेरी बूआ की लड़की की शादी पड़ी. लड़के वाले गोरखपुर के थे इसलिए बूआ का परिवार कानपुर से 5 दिन पहले ही गोरखपुर आ कर होटल सत्कार में ठहर गया और शादी की तैयारियां होने लगीं. शादी का कार्ड मामा के यहां भी गया था और राजू भैया को खासकर शादी की व्यवस्था संभालने के लिए फूफाजी ने बुलाया था.
बूआ के जेठजी का भी पूरा परिवार साथ में आ गया था. उन की इकलौती लड़की गौरी भी आई थी. कामधाम से खाली हो कर रात में जब हम सब गाने या बातचीत के लिए बैठते तो उस समय राजू भैया का जगह ढूंढ़ कर गौरी के बगल में जा कर बैठना मेरी नजर से बच नहीं पाया. और एक दिन जब शाम तक राजू भैया होटल में नहीं आए तो गौरी ने मुझ से पूछा, ‘‘सोनी, आज तेरे राजू भैया नहीं आएंगे क्या?’’
‘‘क्यों, कोई काम था?’’ मैं ने पैनी निगाह उस पर गड़ाते हुए पूछा.
‘‘नहीं, काम नहीं था, वह रोज आते थे, आज नहीं दिखे तो पूछ लिया.’’
‘‘बैठे होंगे किसी गर्लफ्रेंड के पास, यहां की याद नहीं आई होगी,’’ मैं ने लापरवाही से कहा. मकसद था, बस गौरी को उन की आदत से अवगत कराना.
‘‘उन की बहुत सारी गर्लफे्रंड हैं क्या?’’ कुछ देर की खामोशी के बाद सर्द आवाज में गौरी ने पूछा.
‘‘हां, गर्ल तो बहुत सी हैं पर वे फें्रड भी हैं या नहीं मैं नहीं जानती.’’
इस के बाद गौरी की आंखों में मैं ने जो कुछ देखा उस से एक अनजाना सा भय लगा मुझे.
उस के बाद मैं शालू दीदी के साथ खरीदारी और ब्यूटी पार्लर के चक्कर लगाने में इतनी व्यस्त हो गई कि उधर मेरा ध्यान ही नहीं गया. एक बार बीच में फिर राजू भैया से झगड़ने का अवसर पा गई तो मैं ने उन्हें आडे़ हाथों लिया.
‘‘आप उस के पीछे क्यों पड़े हैं?’’
‘‘किस के पीछे?’’
‘‘गौरी के.’’
‘‘अच्छा, वह पगली? गौरी नाम है उस का, पूरी बेवकूफ दिखती है.’’
‘‘बेवकूफ है, पगली है, फिर भी उस के पीछे हाथ धो कर पडे़ हैं.’’
‘‘बेवकूफ है तो क्या, है तो सुंदर. कौन सा मुझे उस के साथ शादी कर के घर बसाना है. वैसे वह है कहां? उसे बातों के छल्ले में घुमाने में मुझे बहुत मजा आता है,’’ कहते हुए राजू भैया उस की ही तलाश में निकल पडे़.
शालू दीदी की शादी हो गई. सभी लोग अपनेअपने घर चले गए. मेरी परीक्षाएं नजदीक आ गई थीं इसलिए मैं भी सबकुछ भूल कर पढ़ाई में लग गई. मामा के यहां आनाजाना भी बंद था इसलिए राजू भैया से भी मुलाकात बहुत कम हो पाती थी.
तभी अचानक एक दिन कानपुर से बूआ का फोन आया. उन्होंने कहा, ‘‘भैया, गौरी की तबीयत बहुत खराब है, आप लोग यहां आ जाइए. साथ में सोनी को भी लेते आइएगा तो अच्छा रहेगा.’’
‘‘गौरी की तबीयत खराब है तो मुझे क्यों इस तरह अचानक बुला रहे हैं और साथ में सोनी को भी,’’ मम्मीपापा को बात कुछ समझ में नहीं आ रही थी. बारबार पूछने पर भी बूआ फोन पर कुछ नहीं बता पा रही थीं और हमें कानपुर ही बुला रही थीं.
मम्मीपापा कुछ समझ नहीं पा रहे थे, पर गौरी बीमार है और मुझे बुलाया है यह सुन कर लगा था कि तार कहीं न कहीं राजू भैया से जुड़े हैं.
मेरा शक सही निकला. हम वहां पहुंचे तो गौरी बिस्तर पर पड़ी थी. बूआ ने बताया, ‘‘शालू की शादी से वापस आने के बाद से ही इस का यह हाल है. पहले तो हम लोगों ने सोचा कि शालू की याद आती होगी, बाद में डाक्टर को दिखाना पड़ा तो उन्होंने डिप्रेशन बताया. एक दिन तो डिप्रेशन इतना बढ़ गया कि इस ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी.’’
‘‘आखिर बात क्या है?’’ मम्मी ने पूछा, ‘‘कुछ तो कारण पता चला होगा और फिर हम लोगों को यों अचानक क्यों बुलाया है?’’
‘‘भाभी, गौरी राजू के लिए पागल हो गई है. इस की बस, एक ही रट है कि राजू नहीं मिला तो जान दे दूंगी. इतने दिनों तक तो हम इसे समझाते रहे पर जब पानी सिर से ऊपर हो गया और गौरी ने जान देने की कोशिश की तो मजबूर हो कर हमें आप को बुलाना पड़ा. जेठजी की यह इकलौती संतान है. इस की इस हालत से वह अपना धैर्य खो चुके हैं. अब हमारे हाथ में कुछ नहीं है, अब आप लोग ही कुछ कर सकते हैं वरना कहीं अनर्थ न हो जाए.’’
मम्मी जानती थीं कि राजू भैया की हर हकीकत मुझे पता होती है इसलिए वह मुझे एक किनारे ले जा कर धीरे से पूछने लगीं, ‘‘यह क्या चक्कर है, सोनी? क्या सचमुच राजू और गौरी के बीच कुछ बात है? क्या राजू भी चाहता है इसे? तुझे तो सचाई मालूम होगी?’’
दूसरे दिन मैं ने गौरी को टटोलते हुए पूछा, ‘‘यहां आने के बाद तुम ने राजू भैया से कभी फोन पर बात की थी?’’
‘‘हां, मैं ने फोन कई बार किया. शुरू में तो उन्होंने बात की पर बाद में ‘रांग नंबर’ कह कर फोन रख देते हैं. मैं ने उन्हें कई पत्र भी लिखे पर एक का भी उन्होंने जवाब नहीं दिया. पता नहीं पत्र उन्हें मिले ही नहीं या वह जवाब ही नहीं देना चाहते,’’ कहतेकहते गौरी की आंखों से झरझर आंसू गिरने लगे.
‘‘देखो गौरी, मैं ने तो तुम्हें पहले ही बताया था कि राजू भैया की बहुत सारी गर्लफ्रेंड हैं, फिर भी तुम उन्हें कैसे चाहने लगीं. तुम इतनी अच्छी लड़की हो, तुम्हें एक से बढ़ कर एक लड़के मिलेंगे, उन के बारे में सोचना छोड़ दो. उन के जैसे लड़के किसी से प्यार नहीं करते, बस, अपना टाइमपास करते हैं लड़कियों के साथ.’’
‘‘अगर वे मुझ से प्यार नहीं करते थे तो क्यों बारबार मेरी तारीफ करते थे, मेरे पास आने का बहाना ढूंढ़ते थे, मुझ से घंटों बातें करते थे, अपना फोन नंबर दिया और पत्र लिखने को कहा. क्या यह सब उन के लिए टाइमपास था?’’
‘‘हां, गौरी, हां, मैं राजू भैया को बहुत अच्छी तरह जानती हूं. वह तुझे प्यार नहीं करते,’’ मैं ने दिल कड़ा कर के सचाई उस से कह ही डाली.
‘‘प्यार नहीं करते हैं तो जा कर अपने राजू भैया से कह देना कि मैं उन्हें प्यार करती हूं और करती रहूंगी वे चाहे करें या न करें. साथ में यह भी कह देना कि गौरी ने उन के साथ टाइमपास नहीं किया है बल्कि दिल से प्यार किया है और अब जीवन भर उन का इंतजार करूंगी. हां, यदि जुदाई बरदाश्त न कर पाई तो जहर पी लूंगी.’’
गौरी के तेवर और हालत मम्मी को बताई तो उन का चेहरा ही उतर गया. ‘‘क्या करेंगे अब? एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं राजू के लिए. यह गौरी तो केवल देखने में ही सुंदर है, दिमाग कितना कम है यह हम से छिपा है क्या. किसी तरह इंटर तक पढ़ाई की और अब घर बैठी है. शादी करवा दी तो मेरे राजू की जिंदगी बरबाद हुई और न करवाई तो लड़की ने कुछ कर लिया तो हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे.’’
मम्मीपापा की हालत देखने लायक थी और जब गौरी के मम्मीपापा ने उन के सामने हाथ जोड़ कर बेटी के प्राणों की भीख मांगी तो पापा शरम से गड़ गए. गौरी के पापा को गले से लगाते हुए उन्होंने राजू भैया के पापा से बात करने और उन्हें शादी के लिए मनाने का पक्का वादा कर दिया.
सारी बातें सुनने के बाद मामामामी को तो सांप सूघ गया. इकलौते बेटे की शादी के सारे सपने बिखरते दिखने लगे. कोई और लड़की होती तो बात आईगई करने की भी कोशिश करते पर मामा के सामने बहनबहनोई के मानसम्मान का प्रश्न था और पापा के सामने छोटी बहन की ससुराल का मामला था.
आखिर मामामामी तैयार हो गए. राजू भैया को जब सारी बातें पता चलीं तो बौखला गए, ‘‘ऐसे कोई भी लड़की मेरे पीछे पागल हो जाए तो मैं कैसे उस से शादी कर लूं. मेरी पूरी जिंदगी का सवाल है, मैं नहीं करूंगा उस बेवकूफ लड़की से शादी.’’
‘‘बेटे, मैं चुप रहता हूं तो इस का मतलब यह नहीं है कि कुछ देखता भी नहीं हूं. आप की आदतें मेरी नजरों से छिपी नहीं हैं. मैं ने कभी कुछ कहा नहीं आप से इस का मतलब यह नहीं है कि आप की हरकतों से मैं अनजान हूं,’’ पापा के इस गंभीर वाक्य से राजू भैया की नजरें जमीन में गड़ गईं.
मामी ने समझाया, ‘‘देखो बेटा, अब परिस्थिति के साथ समझौता तो करना ही पडे़गा. कहीं सचमुच उस ने फिर से जहर खा लिया तो हम सब पुलिस और कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस जाएंगे और बदनामी भी कितनी होगी. देखने में तो गौरी ठीकठाक ही है, शादी के बाद पढ़ा लेंगे उसे आगे.’’
‘‘दिमाग होगा तब न पढ़ेगी आगे,’’ राजू भैया चीख पडे़.
‘‘दिमाग है या नहीं यह सब तब नहीं दिखा था क्या जब उस की तारीफों के पुल बांधा करते थे. कान खोल कर सुन लो, न चाहते हुए भी अब उस लड़की से तुम्हारी शादी कर देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता है मेरे सामने,’’ मामा बुरी तरह झल्लाते हुए उठ गए वहां से.
शादी से बचने का कोई और रास्ता न देख कर एक रात राजू भैया घर ही छोड़ कर चले गए. उन के इस तरह चले जाने का गम मामामामी की बरदाश्त के काबिल न था. पथराई आंखों से वे रोज बेटे के वापस आने या उस की कुशलता का समाचार पाने के इंतजार में रास्ता निहारते.
लाख छिपातेछिपाते भी राजू के घर छोड़ कर चले जाने की खबर एक दिन गौरी ने सुन ली और उसी रात उस ने अपनी धमकी को सच में तबदील कर दिया. फांसी के फंदे से झूलती गौरी के हाथों से पुलिस को जो ‘सुसाइड नोट’ मिला उस में उस ने साफसाफ शब्दों में राजू भैया को अपनी मौत के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया था. उस के बाद से पुलिस राजू भैया की तलाश में लग गई थी.
मामामामी अब यह सोचने लगे थे कि राजू घर वापस न ही आए तो अच्छा हो वरना पुलिस के हाथ लग गया तो न जाने क्या हाल होगा उस का.
गौरी की मौत ने मेरे परिवार के रिश्तों को भी बिखेर दिया. फूफाजी और उन के परिवार वालों ने मम्मीपापा को दोषी ठहराते हुए कहा कि यदि आप लोग चाहते तो हमारी बेटी की जान बच सकती थी. फूफाजी ने बूआ से साफ कह दिया कि हमारी भतीजी की मौत के जिम्मेदार तुम्हारे भैयाभाभी व उन के रिश्तेदार हैं. उन से तुम चाहो तो रिश्ता रखो पर मेरा अब उन से कोई संबंध नहीं है.
गौरी की मौत जैसे दर्दनाक हादसे के बाद सभी बड़ेबुजुर्गों ने अपनाअपना गुस्सा एकदूसरे पर उतार दिया और मैं सोचने लगी, ‘काश, किसी भी एक बुजुर्ग ने किसी भी एक अभिभावक ने, राजू भैया को उन की ऐसी आदतों के लिए रोकाटोका या समझाया होता तो न यों गौरी ने असमय मौत को गले लगाया होता और न यों हमारा परिवार बिखरता.’ द्य