लेखक- शन्नो श्रीवास्तव
भाग-1
‘‘क्या करूं. तुम ने तो अपनी सहेलियों से मेरा परिचय करवाया नहीं तो सोचा मैं खुद ही परिचय कर लूं,’’ राजू भैया ने अपनी चिरपरिचित आवाज में कहा तो मैं उन्हें घूरते हुए बोली, ‘‘जरूरी है क्या, जो मैं अपनी हर सहेली का आप से परिचय कराऊं.’’
मेरे चिढ़ने का उन पर कुछ खास असर तो नहीं हुआ लेकिन वहां से वह उठ गए और जातेजाते मेरी सहेलियों से कहते गए, ‘‘भई, आप लोगों ने कुछ नाश्तापानी किया या नहीं. रुकिए, मैं ही कुछ आप लोगों के लिए भिजवाता हूं. इस ने तो अब तक आप लोगों को कुछ खिलाया नहीं होगा.’’
मुझे पता था कि भिजवाना क्या वह नाश्ते की 2-4 प्लेटें ले कर खुद हाजिर हो जाएंगे. इसी बहाने इन चंचल तितलियों के पास पहुंचने का उन्हें एक और मौका जो मिल जाएगा.
राजू भैया के वहां से उठते ही मैं ने अपनी सहेलियों से कहा, ‘‘देखो, तुम सब इन की बातों में मत आना. यह बस, ऐसे ही हैं, जहां लड़कियों को देखते हैं, आगेपीछे मंडराने लगते हैं.’’
‘‘कैसी बहन है तू जो अपने भाई के बारे में ऐसी बातें कह रही है,’’ मेरी सहेली सारिका ने कहा तो मैं ने कहा, ‘‘वे बडे़ भाई हैं तो तुम लोग भी मेरी सहेलियां हो. किसी फालतू चक्कर में न पड़ जाओ इसलिए तुम्हें आगाह करे दे रही हूं.’’
मैं उन सब को ले कर बाहर लान में आ गई ताकि राजू भैया नाश्ते की प्लेट के साथ आ कर फिर न जम जाएं.
हम लान में खडे़ बातें कर रहे थे कि तभी एक चाबी का गुच्छा हमारे पास आ कर गिरा.
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