सियासत में जो सत्ता पर काबिज होता है, वही सिकंदर कहलाता है. इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने इसे दोबारा सच साबित कर दिया. उन्हें दिल्ली की जनता ने अपना दिल ही नहीं दिया, बल्कि ‘झाड़ू’ को वोट भी भरभर कर दिए, 70 में से 62 सीटें.

किसी सत्तारूढ़ दल के लिए इस तरह से अपना तख्त बचाए रख पाना ढोलनगाड़े बजाने की इजाजत तो देता ही है, वह भी तब जब दिल्ली को किसी भी तरीके से जीतने के ख्वाब देखने वाली भारतीय जनता पार्टी के तमाम दिग्गज नेता यह साबित में करने लगे थे कि यह चुनाव राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोही सोच के बीच जंग है, यह चुनाव भारत और पाकिस्तान के हमदर्दों के बीच पहचान करने की लड़ाई है, यह चुनाव टुकड़ेटुकड़े गैंग को नेस्तनाबूद करने की आखिरी यलगार है.

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पर, दिल्ली की जनता ने पाकिस्तान की सरहदों को वहीं तक समेटे रखने में ही अपनी भलाई समझी और बिजली, पानी, सेहत और पढ़ाईलिखाई को तरजीह देते हुए 8 फरवरी, 2020 को आम आदमी पार्टी के चुनावी निशान ‘झाड़ू’ पर इतना प्यार लुटाया कि 11 फरवरी, 2020 को जब नतीजे आए, तो भाजपाई ‘कमल’ 8 पंखुडि़यों में सिमट कर मुरझा सा गया. कांग्रेस के ‘हाथ’ पर तो जो 0 पिछली बार चस्पां हुआ था, उस का रंग और भी गहरा हो गया.

केजरीवाल के माने

साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से तकरीबन 2 साल पहले जब देश की राजधानी के जंतरमंतर पर एक बूढ़े, लेकिन हिम्मती समाजसेवी अन्ना हजारे ने 5 अप्रैल, 2011 को देश की तमाम सरकारों को भ्रष्टाचार के मुद्दे और लोकपाल की नियुक्ति पर घेरा था, तब अरविंद केजरीवाल और उन के कुछ जुझारू दोस्तों ने दिल्ली की तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को पानी पीपी कर कोसा था और दिल्ली की जनता को सपना दिखाया था कि अगर उसी के बीच से कोई ईमानदार आम आदमी सत्ता पर अपनी पकड़ बनाता है तो यकीनन वह उन को बेहतर सरकार दे सकता है. तब दिल्ली के तकरीबन हर बाशिंदे को ‘मैं आम आदमी’ कहने में गर्व महसूस हुआ था.

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