कुछ साल पहले की बात है. मैं दिल्ली देहात के एक गांव में एक इंटरनैशनल पहलवान के सगाई समारोह में गया था. वहां कई नामचीन लोग आए थे और माहौल बड़ा खुशनुमा था कि अचानक वहां कुछ नौजवान लड़कों का ग्रुप आया. सभी गांवदेहात के थे, पर पैसे वाले भी दिख रहे थे.
हैरत की बात थी कि उन नौजवानों में से कइयों के पास महंगी और मौडर्न पिस्टल थीं और ज्यादातर जिम में जा कर बौडी बनाए हुए थे. उन में जो लड़का सब से बीच में चल रहा था, वह बहुत हैंडसम था और उस की बौडी के तो कहने ही क्या. उस की महंगी शर्ट से बौडी के कट्स साफसाफ दिख रहे थे.
वे लड़के वहां कुछ देर रहे, चंद लोगों और दूल्हे से मुलाकात की और फिर अपनी महंगी गाड़ियों में चले गए.
यह सोच कर मेरे मन में सवाल उठा था कि जो लोग जिम जा कर बौडी बनाते हैं, क्या वे सभी अग्रेसिव होते हैं या हो जाते हैं? वजह, जो लड़के शादी में आए थे, वे दिखने में बदमाश जैसे नहीं थे, पर हाथ में पिस्टल और कसी हुई बौडी से ऐसा लग था कि अगर कोई उन से पंगे लेगा तो वे उसे छोड़ेंगे नहीं.
पैसे दे कर जिम में बौडी बनाने का चलन आजकल बहुत ज्यादा बढ़ गया है. बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटे कसबों में भी अब जिम खुलने लगे हैं. वहां ज्यादातर लड़के इसलिए बौडी बनाने जाते हैं कि दुनिया पर उन का रोब जमे, खासकर जवान लड़कियों पर. जब उन की बौडी दिखाने लायक बन जाती है, तो उन में अकड़ आ जाती है. पर क्या इस के पीछे कोई अग्रेशन होती है, जो उन्हें जिम तक ले जाती है?

इस मसले पर मुंबई के ‘आइडियल बौडी फिटनैस’ जिम में फिटनैस इंस्ट्रक्टर अंजू गुप्ता ने बताया, “जिम जाने से अग्रेशन का कुछ लेनादेना नहीं है, बल्कि जिम जाने से बौडी में जो बदलाव आता है, उस से तो बहुत अच्छा महसूस होता है.
“अमूमन जिम जाने वाले लोग अपने रूटीन को ले कर बहुत अनुशासित होते हैं, तो शायद देखने वाले को लगे कि वे अग्रेसिव हैं. एक बात और है कि जब जिम जाने वाले लोग किसी स्ट्रिक्ट डाइट पर होते हैं, तो उन का मैटाबौलिक रेट बढ़ जाता है, हार्ट रेट ज्यादा हो जाती है, पर यह फिटनैस का हिस्सा है.
“लेकिन अगर हम किसी एक तरह के ऐक्सरसाइज स्टाइल को अपनाते हैं तो ब्रेन को उसी की आदत पड़ जाती है, जिस से अग्रेशन बढ़ने का डर बना रहता है, इसलिए हमेशा जिम और ऐक्सरसाइज के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए. अपने को दूसरे ऐसे काम में बिजी रखना चाहिए, जो मन को शांत करते हैं. इस के अलावा खानपान का भी खास ध्यान चाहिए.”

फरीदाबाद के 47 साल के कारोबारी कपिल गुप्ता अपने कालेज के दिनों से जिम में जाने लगे थे. एक समय ऐसा था जब वे अपने सिक्स पैक्स एब्स के लिए जाने जाते थे. तब उन्होंने अपना वजन 106 किलो से घटा कर 82 किलो किया था.
कपिल गुप्ता ने बताया, “मैं जिम में तरहतरह के लोगों से मिला हूं, पर मेरी नजर में कोई ऐसा नहीं आया, जो जिम जौइन करने के बाद अग्रेसिव हुआ हो. हां, अगर कोई शुरू से ही अग्रेसिव सोच का रहा होगा तो कहा नहीं जा सकता.
“जिम अपने शरीर को सेहतमंद रखने की ठीक वैसे ही जगह है, जैसे कोई दूसरे खेल की जगह. यहां आने वाले लोगों का मकसद यही रहता है कि वे अच्छी बौडी बनाएं और अपनी फिटनैस बरकरार रखें.
“जहां तक किसी के अग्रेसिव होने की बात है तो अगर कोई अपने स्वभाव से अग्रेसिव है, तो वह जिम क्या कहीं भी जैसे अपने घर, औफिस, बाजार या फिर किसी दूसरी जगह वैसा ही बरताव करेगा. यह तो बच्चों पर भी लागू होता है. अगर किसी बच्चे में एनर्जी ज्यादा है तो वह दूसरे बच्चों के मुकाबले अग्रेसिव होता है. अगर उस अग्रेसिवनैस का सही से इस्तेमाल किया जाए तो बच्चा शांत रहता है.
“हां, अगर जिम में कोई ऐक्सरसाइस के लिए सप्लीमैंट्स लेता है तो कभीकभार उस के साइड इफैक्ट के तौर पर ऐसे लोग अग्रेसिव हो जाते हैं, पर यह नहीं कहा जा सकता है कि जिम जाने वाले लोग अग्रेसिव हो जाते हैं या होते हैं.”

भारत के अल्ट्रा रनर निश्चिंत कटोच एक समय अपने ज्यादा वजन से परेशान थे. उन्होंने अपनी लगन से खुद में इस हद तक बदलाव किया कि वे आज कईकई किलोमीटर तक आसानी से दौड़ लेते हैं. इस सब बदलाव में जिम ने बड़ा रोल निभाया है.
निश्चिंत कटोच ने बताया, “यह सब वर्कआउट की इंटैंसिटी पर डिपैंड करता है. हार्ड ट्रेनिंग ऐक्सरसाइज से टैस्टोस्टेरोन के कुदरती लैवल में बढ़ोतरी होती है, जिस से अग्रेशन का लैवल बढ़ सकता है. इस पर कंट्रोल करने का तरीका यही है कि वर्कआउट और इंटैंसिटी में बैलैंस बनाया जाए. गुड मैंटल हैल्थ के लिए वर्कआउट को इस ढंग से करना चाहिए कि जिम जाने वाला अग्रेसिव न हो.”
इस मुद्दे पर एक बात बहुत ज्यादा अहम है कि जिम जाने वाले लोगों में से बहुत से ऐसे होते हैं, खासकर नौजवान, जो बौडी बनाने को ही जिंदगी की सब से बड़ी कामयाबी मानते हैं और उन के पास ऐसी कोई उपलब्धि नहीं होती है, जिस पर वे या उन का परिवार गर्व कर सके.