जी हां आपको जानकर थोड़ी सी हैरानी हो सकती है लेकिन ये सच है कि दुनिया की एक ऐसी इंजेक्शन है जिसकी कीमत है 16 करोड़ रुपये और जब ये विदेश से भारत लाया जाता है तो इस पर 6 करोड़ का टेक्स है.
दरअसल ये बात आज सामने इसलिए आ रही है क्योंकि इससे जुड़ी एक घटना अभी हाल ही में घटित हुई है…एक छोटी सी बच्ची जिसका नाम है तीरा कामत जिसे एक बीमारी हो गई है और ये स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रोफी एक न्यूरो मस्कुसलर डिसऑर्डर है. इसका इलाज Zolgensma नाम के एक इंजेक्शकन से ही संभव है और इसकी कीमत है 16 करोड़ रुपये. इस बच्ची को यही बीमारी है और इसके पिता मिहिर कामत के पास इतना पैसा नहीं था कि वो इसका इलाज करा पाते क्योंकि अक्टूबर महीने में जब तीरा को इस तरह की बीमारी है यह जानकारी उसके पिता को मिली तो मिहिर कामत ने तत्काल उसका इलाज कैसे हो सकता है इसके बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरु कर दिया.
तीरा को दूध पीने में भी काफी तकलीफ हो रही थी.जब पिता को पता चला कि उनकी बच्ची को स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रोफी न्यूरो मस्कुलर डिसऑर्डर है और इसके लिए खर्च बहुत ज्यादा है, क्योंकि इसका इलाज इंडिया के बाहर होना था इसलिए इलाज करोड़ों में था. तब जाकर उन्होंने इसकी जानकारी फेसबुक और इंस्टाग्राम के जरिए लोगों को दी लोगों ने फंडरेजिंग में बहुत मदद की, लोगों ने बहुत प्यार दिया यही वजह है कि उस दवा पर जो ड्यूटी दवा को अमेरिका से लाने में लग रही थी वह भी फ्री हुई, सरकार ने मदद की और 6 करोड़ का टेक्स भी हटाया.
ये भी पढ़ें- सुपरकॉप मेरिन जोसेफ, देश से विदेश तक
अब सवाल ये भी है कि क्या सरकार को ऐसी दवाईयों पर इतना भारी भरकम टेक्स लगाना चाहिए? यहां सवाल सीधा सरकार के उपर खड़ा हो रहा है. भला आप ऐसी दवाई पर जिससे किसी की जिंदगी बच सकती है उस पर इतना भारी टेक्स क्यों ? सरकार को इस पर सोचने की जरूरत है क्योंकि कोई भी मध्यमवर्गीय परिवार इतनी महंगी दवाईयां कैसे ले पाएगा ? तीरा कामत के पिता को सरकार से गुजारिश करनी पड़ी कि फार्मा कंपनियों से बात करके इन दवाओं की सुविधा अपने देश में कराएं.
क्या है स्पासइनल मस्कुलर एट्रोफी (Spinal Muscular Atrophy )
1.ये एक प्रकार का न्यूरो मस्कुलर डिसऑर्डर है दरअसल ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें पीड़ित बच्चा धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है और चलने-फिरने साथ ही बात करने में भी असमर्थ हो जाता है क्योंकि उसकी मांसपेशियों की गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं होता वो अपना नियंत्रण धीरे-धीरे खोने लगता है. बच्चा कुछ खा-पी नहीं पाता.सही से सांस तक नहीं ले पाता.
2.डॉक्टरों का कहना है कि यह एक जेनेटिक बीमारी है, जो जीन में कोई गड़बड़ी होने पर अगली पीढ़ी में पहुंचती है और फिर उनका बच्चा इस बीमारी से पीड़ित हो जाता है.
3. इसका इलाज भी संभव नहीं है भारत में अभी.इसका इलाज विदेश में होता है जिसका खर्च करोंड़ों में आता है. इस बीमारी में Zolgensma नाम का एक इंजेक्शलन लगाया जाता है जिसकी कीमत 16 करोड़ रुपये है और ये इंजेक्शन खासतौर पर अमेरिका से आता है .यदि इसे भारत मंगाया जाता है तो इस पर अकेले 6 करोड़ का टेक्स है. यानि कुल मिलाकर इसका खर्च 22 करोड़ रुपये हो जाता है.
4.स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी होने पर ब्रेन की नर्व सेल्स और स्पाइनल कॉर्ड डैमेज होने लगती है. इस स्थिति में ब्रेन मसल्स को नियंत्रित करने के लिए मैसेज भेजना धीरे-धीरे बंद करने लगता है.
5.बच्चा कोई भी शारीरिक मूवमेंट नहीं कर पाता और जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है बच्चे का खुद से हिलना-डुलना पूरी तरह बंद हो जाता है. बच्चा सही से दूध तक नहीं पी पाता है. Zolgensma नाम के इंजेक्शन के बिना इस बीमारी का कोई सटीक इलाज है ही नहीं.
ये भी पढ़ें- पेड़ से अमृत धारा गिरने का अंधविश्वास
कैसे काम करता है यह Zolgensma injection
दरअसल स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी जिस जीन की खराबी के कारण होती है, Zolgensma इंजेक्शन उसे नए जीन से रिप्लेस करता है और ऐसा होने के बाद शरीर में दोबारा यह बीमारी नहीं होती क्योंकि बच्चे के डीएनए में नया जीन शामिल हो जाता है और ये बीमारी 2 साल से कम उम्र के बच्चों को होती है तो उन्हें ये इंजेक्शन दिया जाता है.
ये इंजेक्शन इतना महंगा क्यों है ?
एक रिपोर्ट के मुताबिक काफी रिसर्च के बाद इस इंजेक्शन को स्विटजरलैंड की कम्पनी नोवार्टिस ने बनाया था और वो उसे 16 करोड़ में बेचती है. अब दुनिया की जिस देश में भी ये इंजेक्शन जाता है उस देश की सरकार इस पर निर्धारित आयात शुल्क और दूसरे टैक्स वसूल करती है.और टेक्स के कारण ही इसकी कीमत और बढ़ जाती है. नोवार्टिस के सीईओ नरसिम्हन का कहना है, जीन थैरेपी मेडिकल जगत में एक बड़ी खोज है, जिसमें इतनी ताकत होती है कि एक डोज से पीढ़ियों तक पहुंचने वाली जानलेवा जेनेटिक बीमारी ठीक की जा सकती है.इंजेक्शन के तीसरे चरण के ट्रायल का रिव्यू करने के बाद इंस्टीट्यूट फॉर क्लीनिकल एंड इकोनॉमिक ने इसकी कीमत 9 से 15 करोड़ रुपए के बीच तय की थी.नोवार्टिस ने इसे मानते हुए इसकी कीमत 16 करोड़ रुपए रखी. कुल मिलाकर ये दवा मिलना दुर्लभ तो है ही साथ ही मूल्यवान भी इसलिए ये इतनी महंगी है.
एक और रिपोर्ट के मुताबिक ये इंजेक्शन कितना असर करती है ये देखने के लिए स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी के 21 बच्चों पर क्लीनिकल ट्रायल किया गया था. फिर मार्च 2019 में इस ट्रायल के नतीजे आए और नतीजों के बाद वैज्ञानिक काफी चौंक गए थें क्योंकि नतीजों के मुताबिक, 21 में से 10 बच्चे बिना किसी सपोर्ट के बैठ पाए थे क्योंकि ऐसा अब तक नहीं हो पाया जाता था.यह इंजेक्शन 50% बच्चों पर सफल रहा. हालांकि कंपनी की ओर से यह भी नहीं बताया कि अगर किसी बच्चे पर इस इंजेक्शन का असर नहीं हुआ तो क्या कंपनी वो 16 करोड़ रुपये वापस करेगी ? तो ये भी एक बड़ा सवाल है ?