‘‘तुमयकीन नहीं करोगी पर कुछ दिनों से मैं तुम्हें बेइंतहा याद कर रहा था,’’ विक्रम बोला.
‘‘अच्छा,’’ मिताली बोली.
‘‘तुम अचानक कैसे आ गईं?’’
‘‘किसी काम से दिल्ली आई थी और इसी तरफ किसी से मिलना भी था. मगर वह काम हुआ नहीं. फिर सोचा इतनी दूर आई हूं तो तुम से ही मिलती चलूं. तुम्हारे औफिस आए जमाने हो चले थे.’’
‘‘औफिस के दरदीवार तुम्हें बहुत मिस करते हैं?’’ विक्रम फिल्मी अंदाज में बोला.
वह बहुत जिंदादिल और प्रोफैशनल होने के साथसाथ बेहद कामयाब इंसान भी था.
‘‘यार प्लीज, तुम अब फिर से यह फ्लर्टिंग न शुरू करो,’’ मिताली हंसती हुई बोली.
‘‘क्या यार, तुम खूबसूरत लड़कियों की यही परेशानी है कि कोई प्यार भी जताए तो तुम्हें फ्लर्टिंग लगती है.’’
‘‘सच कह रहे हो… तुम क्या जानो खूबसूरत होने का दर्द.’’
‘‘उफ, अब तुम अपने ग्रेट फिलौसफर मोड में मत चली जाना,’’ विक्रम दिल पर हाथ रख फिल्मी अंदाज में बोला.
‘‘ओ ड्रामेबाज बस करो… तुम जरा भी नहीं बदले,’’ वह खिलखिलाती हुई बोली.
‘‘मैं तुम सा नहीं जो वक्त के साथ बदल जाऊं.’’
‘‘अरे इतने सालों बाद आई हूं कुछ खानेपीने को तो पूछ नालायक,’’ उस ने बातचीत को हलका ही रहने दिया और विक्रम का ताना इग्नोर कर दिया.
‘‘ओह आई एम सौरी. तुम्हें देख कर सब भूल गया. चाय लोगी न?’’
‘‘तुम्हारा वही पुराना मुंडू है क्या? वह तो बहुत बुरी चाय बनाता है,’’ उस ने हंसते हुए पूछा.
‘‘हां वही है. पर तुम्हारे लिए चाय मैं बना कर लाता हूं.’’
‘‘अरे पागल हो क्या… तुम्हारा स्टाफ क्या सोचेगा. तुम बैठो यहीं.’’
‘‘अरे रुको यार तुम फालतू की दादागीरी मत करो. अभी आया बस 5 मिनट में. औफिस किचन में बना कर छोड़ आऊंगा. सर्व वही करेगा,’’ कह वह बाहर निकल गया.
मिताली भी उठ कर औफिस की खिड़की पर जा खड़ी हुई. कभी इसी
बिल्डिंग में उस का औफिस भी था और वह भी सेम फ्लोर पर. वह और विक्रम 11 बजे की चाय और लंच साथ ही लेते थे. शाम को एक ही वक्त औफिस से निकलते थे. हालांकि अलगअलग कार में अपने घर जाते थे पर पार्किंग में कुछ देर बातें करने के बाद.
पूरी बिल्डिंग से ले कर आसपास के औफिस एरिया तक में सब को यही लगता था कि उन का अफेयर है. पर…
‘‘तुम फिर अपनी फैवरिट जगह खड़ी
हो गई?’’
‘‘बन गई चाय?’’
‘‘और क्या? मैडम आप ने हमारे प्यार की कद्र नहीं की… हम बहुत बढि़या हसबैंड मैटीरियल हैं.’’
‘‘स्वाह,’’ कह मिताली जोर से हंस पड़ी.
‘‘स्वाह… सिरमिट्टी सब करा लो पर अब तो हां कर दो.’’
तभी औफिस बौय चाय रख गया.
‘‘अब किस बात की हां करनी है?’’
‘‘मुझ से शादी की.’’
चाय का कप छूटतेछूटते बचा मिताली के हाथ से. बोली, ‘‘पागल हो क्या?’’
‘‘दीवाना हूं.’’
‘‘मेरा बेटा है 3 साल का… भूल गए हो तो याद दिला दूं.’’
‘‘सब याद है. मुझे कोई प्रौब्लम नहीं. उस के बिना नहीं रहना तुम्हें. साथ ले आओ.’’
‘‘अच्छा, बहुत खूब. क्या औफर है. और तुम्हें यह क्यों लगता है कि मैं इस औफर को ऐक्सैप्ट कर लूंगी?’’
‘‘शादी के बाद आज मिली हो इतने सालों बाद पर साफ दिख रहा है तुम अब भी मुझ से ही प्यार करती हो. तुम्हारी आंखें आज भी पढ़ लेता हूं मैं.’’
‘‘तो?’’
‘‘मतलब तुम मानती हो तुम अब भी मुझ से ही प्यार करती हो.’’
‘‘नहीं. मैं यह मानती हूं कि मैं तुम से भी प्यार करती हूं.’’
‘‘वाह,’’ विक्रम तलख हो उठा.
‘‘प्यार भी 2-4 से एकसाथ किया जा सकता है, यह मुझे मालूम न था.’’
‘‘ये सब क्या है यार… इतने समय बाद आई हूं और तुम यह झगड़ा ले बैठे.’’
विक्रम जैसे नींद से जागा, ‘‘सौरी, मुझे तुम्हें दुखी नहीं करना चाहिए है न? यह राइट तो तुम्हारे पास है.’’
‘‘विक्रम तुम्हें अच्छी तरह पता है मैं आदित्य से प्यार करती हूं. वह बेहद अच्छा और सुलझा हुआ इंसान है. उसे हर्ट करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती. तुम्हारी इन्हीं बातों की वजह से मैं ने तुम्हारा फोन उठाना बंद कर दिया. और अब लग रहा है आ कर भी गलती की.’’
विक्रम बेहद गंभीर हो गया. सीट से उठ कर खिड़की के पास जा खड़ा हुआ. फिर मुड़ कर पास की अलमारी खोली. अलमारी के अंदर ही अच्छाखासा बार बना रखा था.
मिताली बुरी तरह चौंकी, ‘‘यह क्या है?’’
‘‘क्यों, दिख नहीं रहा? शराब है और क्या.’’
‘‘यह कब से शुरू की?’’
‘‘डेट नोट नहीं की वरना बता देता.’’
‘‘मैं मजाक नहीं कर रही.’’
‘‘मैं भी मजाक नहीं कर रहा.’’
‘‘अच्छा, तो यह नुमाइश मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करने के लिए कर रहे हो कि देखो तुम्हारे गम में मेरी क्या हालत है.’’
‘‘तुम हुईं?’’
‘‘नहीं रत्तीभर भी नहीं,’’ मिताली मुंह फेर कर बोली.
‘‘मुझे पता है तुम स्ट्रौंग हैड लड़की हो… यह तुम्हें मेरे करीब नहीं ला सकता, बल्कि तुम इरिटेट हो कर और दूर जरूर हो सकती हो. वैसे इस से दूर और क्या जाओगी,’’ कह तंज भरी हंसी हंसा.
‘‘मैं ने तो सुना था तुम्हारी सगाई हो गई है. मैं तो मुबारकबाद देने आई थी.’’
‘‘वाह, क्या खूब. तो नमक लगाने आई हो या अपना गिल्ट कम करने?’’
‘‘मैं ने सचमुच आ कर गलती की.’’
‘‘मैं तो पहले ही कह रहा हूं तुम और इरिटेट हो जाओगी.’’
‘‘ठीक है तो फिर चलती हूं?’’
‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे.’’
मिताली उठ खड़ी हुई.
विक्रम बेचैन हो उठा. बोला, ‘‘सुनो…’’
‘‘कुछ रह गया कहने को अभी?’’
‘‘मुझे ही क्यों छोड़ा?’’
‘‘तुम ज्यादा मजबूत थे.’’
‘‘तो यह मजबूत होने की सजा थी?’’
‘‘पता नहीं, पर आदित्य बहुत इमोशनल है और उसे बचपन से हार्ट प्रौब्लम भी है और यह मैं पहले ही बता चुकी हूं.’’
‘‘तुम्हें ये सब पहले नहीं याद रहा था?’’
‘‘विक्रम क्यों ह्यूमिलिएट कर रहे हो यार… जाने दो न अब.’’
‘‘नहीं मीता… बता कर जाओ आज.’’
‘‘विक्रम मैं इस शहर में पढ़ने आई थी. फिर अच्छी जौब मिल गई तो और रुक गई.’’
‘‘आदित्य और मैं बचपन के साथी थे. उस का प्यार मुझे हमेशा बचपना या मजाक लगा. सोचा नहीं वह सीरियस होगा इतना. फिर तुम्हारे पास थी यहां इस शहर में बिलकुल अकेली तो तुम से बहुत गहरा लगाव हो गया. पर मैं ने शादी जैसा तो कभी न सोचा था न चाहा. न कभी कोई ऐसी बात ही कही थी तुम से. कोई हद कभी पार नहीं की.’’
‘‘अरे कहना क्या होता है?’’ वह लगभग चीख पड़ा, ‘‘सब को यही लगता था हम प्यार में हैं. सब को दिखता था… तुम ने ही जानबूझ कर सब अनदेखा किया और जब उस आदित्य का रिश्ता आया तो मुझे पलभर में भुला दिया. बस एक कार्ड भेज दिया?’’ सालों का लावा फूट पड़ा था.
मिताली चुप खड़ी रही.
‘‘बोलो कुछ?’’ वह फिर चिल्लाया.
‘‘क्या बोलना है अब. मुझे इतना पता है जब आदित्य ने प्रोपोज किया, तो मैं उसे न कर के हर्ट नहीं कर पाई. मेरे और उस के दोनों परिवार भी वहीं थे. पापा को क्या बोलूं कुछ समझ न आया और सब से बड़ी बात आदित्य मुझे ले कर ऐसे आश्वस्त था जैसे मैं बरसों से उसी की हूं. उसे 15 सालों से जानती थी और तुम्हें बस सालभर से. श्योर भी नहीं थी तुम्हें ले कर. तुम्हारे लिए मुझे लगता था तुम खुशमिजाज मजबूत लड़के हो, जल्दी मूव औन कर जाओगे.’’
‘‘मूव औन,’’ विक्रम बहुत ही हैरानी से चीखा, ‘‘मूव औन माई फुट. ब्लडी हैल… साला जिंदगीभर यह सालेगा. इस से तो लड़कियों की तरह दहाड़ें मार कर तुम्हारे आगे रो लिया होता. कम से कम तुम छोड़ के तो न जातीं.’’
‘‘ओ हैलो… कहां खोए हो?’’
विक्रम सोच के समंदर से बाहर आया. मिताली तो कब की जा चुकी थी और वह खुद ही सवालजवाब कर रहा था.
‘‘तुम गई नहीं?’’
‘‘पर्स छूट गया था उसे लेने आई हूं.’’
‘‘बस पर्स?’’
‘‘हां बस पर्स,’’ वह ठहरे लहजे में बोली, ‘‘बाय, अपना खयाल रखना,’’ कह कर बाहर निकल गई.
लिफ्ट बंद होने के साथ ही उस की आंखें छलक उठीं, ‘‘छूट तो बहुत कुछ गया यहां विक्रम. पर सबकुछ समेटने जितनी मेरी मुट्ठी नहीं. कुछ समेटने के लिए कुछ छोड़ना बेहद जरूरी है.’’
‘‘सर, आप मैडम को बहुत प्यार करते थे न?’’ टेबल से चाय के कप उठाते हुए उस के मुंडू ने पूछा. आखिर वही था जो तब से अब तक नहीं बदला था.
‘‘प्यार तो नहीं पता रे, पर साला आज तक यह बरदाश्त न हुआ कि मुझ पर इतनी लड़कियां मरती थीं… फिर यह ऐसे कैसे छोड़ गई मुझे…’’ कह उस ने गहरी सांस ली.