केंद्र सरकार अब प्रदेशों का बोझ नहीं उठाना चाहती है. इस वजह से प्रदेशों को लौकडाउन का फैसला लेने की आजादी दे दी है.
एक साल पहले जिस लौकडाउन यानी तालाबंदी को केंद्र की मोदी सरकार कोरोना को रोकने का सब से मारक हथियार मान रही थी, कोरोना को रोकने के लिए ताली और थाली बजाने का काम करा रही थी, अब कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए मोदी सरकार पुराने टोटके आजमाने से बच रही है. एक साल बाद अब केंद्र सरकार लौकडाउन की पौलिसी पर खुद फैसला नहीं लेना चाहती है.
हालात ये हैं कि जब उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट ने राजधानी लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर को 26 अप्रैल, 2021 तक लौकडाउन करने का आदेश दिया तब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लौकडाउन करने से इनकार कर दिया. योगी सरकार ने कहा कि लौकडाउन से रोजीरोटी का संकट पैदा हो जाएगा. सरकार को प्रदेश के लोगों की जिंदगी के साथसाथ रोजीरोटी भी बचानी है.
ठीक एक साल पहले 2020 के मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लौकडाउन की शुरुआत ‘जनता कर्फ्यू’ से की थी. इस के बाद धीरेधीरे 3 महीने तक का पूरा लौकडाउन चला था. सरकार का मानना था कि लौकडाउन से ही कोरोना को रोकने में मदद मिलेगी.
एक साल बाद सरकार अपने फैसले पर ही अमल करने को तैयार नहीं है. इस से 2 बातें साफ होती हैं कि या तो पिछले साल लौकडाउन का फैसला सही नहीं था, बिना किसी आधार के लिए लिया गया था या इस साल लौकडाउन न कर के कोरोना सकंट को बढ़ाने का काम किया जा रहा है. कोर्ट के कहने के बाद भी सरकार हठधर्मी से काम कर रही है.
हाईकोर्ट का तर्क
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और अजित कुमार की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को 26 अप्रैल, 2021 तक के लिए 5 शहरों लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर में लौकडाउन करने को कहा. कोर्ट ने कहा, ‘लोग सड़कों पर बिना मास्क के घूम रहे हैं. पुलिस 100 फीसदी मास्क लागू करने में नाकाम है. संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. अस्पतालों में दवा और औक्सीजन की भारी कमी है. लोग दवा और इलाज के बगैर दम तोड़ रहे हैं. सरकार ने कोई फौरी योजना नहीं बनाई है. न ही पूर्व में कोई तैयारी की है. डाक्टर, मैडिकल स्टाफ, मुख्यमंत्री तक संक्रमित हैं. मरीज इलाज के लिए अस्पतालों में दौड़ लगा रहे हैं.’
हाईकोर्ट ने सरकार से युद्ध स्तर पर आपदा से निबटने के लिए काम करने को कहा है. कोर्ट ने प्रयागराज का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां 30 लाख की आबादी है. 12 अस्पतालों में 1977 बिस्तर और 514 आईसीयू हैं. इस से पता चलता है कि केवल 5 फीसदी लोगों को ही इलाज देने की व्यवस्था है. लखनऊ में बिस्तर काफी कम हैं. हर 5वें घर में सर्दीजुकाम से पीड़ित लोग हैं. जांच नहीं हो पा रही है. कोर्ट ने कहा कि वीआईपी लोगों की रिपोर्ट 12 घंटे में आ रही है, पर आम आदमी को 3 दिन बाद तक जांच रिपोर्ट मिल रही है.
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तीखी टिप्पणियां
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आईना दिखाते हुए तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आप के पास खानेपीने की चीजों से भरी किराना की दुकान हो या बाइक और कार से भरे शोरूम, अगर दवा की दुकान खाली है, रेमेडीसीवर जैसी जीवनरक्षक दवाएं नहीं मिल रही हैं तो इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है.
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि संक्रमण की चेन बन गई है. यह और आबादी को चपेट में ले इस से पहले कठोर कदम उठा कर उस को तोड़ना होगा. कोविड अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं. पिछले एक साल में सरकार ने कोविड से निबटने के लिए कोई तैयारी नहीं की है.
पर हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लौकडाउन लगाने का फैसला नहीं लिया. उत्तर प्रदेश में लौकडाउन के नाम पर योगी सरकार ने रविवार को ‘वीकऐंड लौकडाउन’ की घोषणा पहले से ही कर रखी है. इस के अलावा रात 8 बजे से सुबह 7 बजे तक पूरे प्रदेश में लौकडाउन रहता है. इस को ‘नाइट कर्फ्यू’ कहा जाता है.
योगी सरकार के इस कदम के बाद भी उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इस उपाय को फेल होते देख कर ही हाईकोर्ट ने 26 अप्रैल, 2021 तक पूरी तरह से लौकडाउन की बात कही थी, जिस पर सरकार ने अमल नहीं किया.
चलन में है ‘वीकऐंड लौकडाउन’
पूरे भारत में ‘आंशिक लौकडाउन’ और ‘वीकऐंड लौकडाउन’ लगाने का काम चल रहा है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली सभी प्रदेशों में लौकडाउन के फैसले वहां की प्रदेश सरकारें ले रही हैं. दिल्ली में एक हफ्ते का लौकडाउन होते ही लोगों में दिल्ली से पलायन की होड़ लग गई. बसअड्डे भर गए. बसों की कमी हो गई. महाराष्ट्र में पूरे साल ही ‘आंशिक लौकडाउन’ लगा रहा, जिस की वजह से वहां ज्यादा अफरातफरी नहीं हो रही है.
लौकडाउन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही लोग सड़कों पर उतर कर जरूरी सामान की खरीदारी करने लगे हैं, जिस से सामान की कमी होने लगती है. पिछले साल लौकडाउन होने पर केवल खानेपीने की चीजों की ही खरीदारी हो रही थी. इस साल दवाओं की भी खरीदारी होने लगी है.
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लौकडाउन लगने का सब से गलत असर यह होता है कि जमाखोरी बढ़ जाती है. जरूरी चीजों के दाम बढ़ जाते हैं. लौकडाउन लगने का फायदा यह होता है कि लोगों का इधर से उधर जाना कम हो जाता है, जिस की वजह से संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है. लौकडाउन से आर्थिक हालात खराब होते हैं. सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. इस वजह से सरकार लौकडाउन से बच रही है और केंद्र सरकार लौकडाउन लगाने का फैसला प्रदेश सरकारों पर छोड़ रही है, जिस से केंद्र सरकार पर आर्थिक बोझ न पडे.