‘कई बरस पुरानी बात है, मेरा सम्बंध एक रईस और मशहूर व्यक्ति से था. वह बेहद हाॅट और डैशिंग था. उसे देख हमेशा मन विचलित हो उठता था. वह वाकई किसी भी लड़की का ड्रीम ब्वाॅय हो सकता है. वह हमेशा डिजायनर सूट्स में रहता था. गाॅगल्स के बिना तो वह कभी घर से निकलता ही नहीं था. एक रोज उसने मुझे ऑफर कर दिया. मैं उसे मना ही नहीं कर पायी. आखिर कैसे करती? वह मेरे सपनों का राजकुमार था. वह राजकुमार जो सफेद घोड़े पर आकर मुझे ब्याहकर ले जाता है. हालांकि वह घोड़े पर नहीं आया था. मगर उसकी कार सफेद रंग की ही थी.

बहरहाल उसने मुझे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया. मैं बहुत खुश थी. उन्हीं दिनों जब उसने मुझसे अंतरंग सम्बंध स्थापित करने चाहे तो मैं इंकार नहीं कर सकी. वह रात का समय था. मैं यहां पेइंग गेस्ट के तौरपर रहती थी. मकान के मालिक घर पर नहीं थे. वह मेरे घर आया था. वो सब बहुत अचानक हुआ, जिसकी मुझे कल्पना नहीं थी. हालंाकि मैं बहुत खुश थी. इस सबके बीच मैं एक चीज भूल ही गई कि उन लम्हों के पहले कुछ सुरक्षा का भी ख्याल रखना चाहिए. लेकिन उस पर आंख मूंदकर भरोसा करती थी. इसलिए जो हुआ वह जानबूझकर था. लेकिन इस घटना  के एक साल बाद मैं चेकअप के लिए अपनी गायनी (स्त्रीरोग विशेषज्ञ) के पास गयी. मुझे बताया गया कि मैं क्लामीडिया (बीसंउलकपं) की शिकार हो गयी हूं. इस खबर से भी ज्यादा खतरनाक यह था कि बैक्टीरिया ने मेरी एक फेलोपियन ट्यूब को भी इंफेक्ट (संक्रमित) कर दिया था, जिससे मैं कभी भी मां नहीं बन सकती थी.’

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यह एक 28 वर्षीय महिला का दर्दभरा खत है. लेकिन इस रोग से ग्रस्त वह अकेली महिला नहीं है. दरअसल, एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीजेज़ यानी यौन संक्रमण रोग जिसमें क्लामीडिया भी आता है) रोगियों की तादाद खासकर महिलाओं में बढ़ती जा रही है. पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में किए गये सर्वेक्षण के अनुसार, एसटीडी से जितने लोग ग्रस्त हैं, उनमें से 50 प्रतिशत से भी अधिक 25 वर्ष की आयु से कम के हैं. डाॅ. मिटशेल क्राइनिन, जिनके नेतृत्व में यह सर्वे किया गया, का कहना है कि एसटीडी का ज्यादा खतरा महिलाओं को है क्योंकि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के गुप्तांगों के इर्दगिर्द म्युकस मेंबरेंस ज्यादा होते हैं जिनके गर्म व नमी वाले वातावरण में बैक्टीरिया व वायरस को फलने-फूलने का अच्छा अवसर मिल जाता है. साथ ही 20-25 वर्ष आयुवर्ग वाली युवतियों की जो वैजाइनल (योनि) लाइनिंग होती है, उसमें प्रवेश करना बैक्टीरिया व वायरस के लिए आसान होता है. इससे भी खतरनाक बात यह है कि महिलाओं में एसटीडी ज्यादातर लक्षणरहित होती है.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते अगर इसका उपचार करा लिया जाए, तो फिर कुछ खास समस्या नहीं रहती. महिलाओं को होने वाला ऐसा ही एक रोग है एचपीवी. एचपीवी किस तरह महिलाओं को अपने घेरे में लेता है, पढ़िए यह पत्र- ‘रूटीन चेकअप कराने के बाद जब मेरी गायनी ने यह बताया कि मुझे एचपीवी है तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गयी. इससे भी ज्यादा खराब मुझे यह लगा जब गायनी ने कहा कि मुझ जैसी लड़कियों को एचपीवी होना ही चाहिए. डर के साथ मुझे शर्म भी थी इसलिए मैंने यह बात किसी को नहीं बतायी. लेकिन एक बोझ के साथ भी ज्यादा दिन जिया नहीं जा सकता. लिहाजा यह बात मैंने अपनी सबसे प्यारी सहेली को बतायी. उसने मुझे अपनी बहन से मिलवाया जो खुद एचपीवी की शिकार थी. दोनों बहनों ने मुझे समझाया कि एचपीवी सेक्स करने की सजा नहीं है. यह तो एक वायरस है जो किसी को भी अपना शिकार बना सकता है.’

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एचपीवी का अर्थ है ह्यूमन पेपिल्लोमा वायरस (ीनउंद चंचपससवउं अपतने). इसके तहत विभिन्न किस्म के लगभग 100 वायरस आते हैं जिनसे वाटर््स (मस्से) हो जाते हैं. इनमें से 40 वायरस महिलाओं को उस वक्त संक्रमित करते हैं, जब उनके गुप्तांग किसी संक्रमित पुरुष के संपर्क में आ जाएं. अमूमन जब यह होता है तो न कोई मस्से विकसित होते हैं और न ही किसी बीमारी का अहसास होता है. और कुछ माह या कुछ साल बाद महिला के जिस्म का इम्यून सिस्टम (प्रतिरोधक क्षमता) अपने आप ही इन वायरसों को नष्ट कर देता है.

लेकिन इन सौ में से दो वायरस ऐसे हैं जिनकी वजह से वार्ट्स या मस्से विकसित हो सकते हैं. संक्रमण के दो सप्ताह के भीतर वल्वा (भग), वैजाइना (योनि), सर्विक्स और एनल (गुदा) क्षेत्र- या जहां भी संक्रमित साथी के साथ संपर्क बनाया गया हो- सफेद या त्वचा की रंग के चकत्ते उभर आते हैं. एक या दो ही चकत्ते होते हैं लेकिन अक्सर एक ही मस्सा गोभी के फूल की तरह बहुत सारे मस्सों में फूट जाता है. इन सौ में से 15 वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है. हालांकि पुरुषों को इस रोग से कोई खास नुकसान नहीं होता लेकिन एचपीवी संक्रमण उन्हें कैरियर (वाहक) अवश्य बना देता है, यानी वे इस रोग को एक महिला से दूसरी महिला तक पहुंचा सकते हैं. शोध से यह भी मालूम हुआ है कि एचपीवी के कुछ वायरस पुरुषों में एनल (गुदा) और पेनाइल (लिंग) कैंसर का कारण भी बन जाते हैं.

वार्ट्स या मस्से मुलायम और सूखे होते हैं लेकिन उनमें कोई तकलीफ या खुजली नहीं होती. सवाल यह है कि क्या यह हमेशा संक्रमित होते हैं? इस सिलसिले में विख्यात गुप्तरोग विशेषज्ञ स्वर्गीय डाॅ. बी.बी. गिरि का कहना है, ‘वार्ट्स हमेशा बहुत अधिक इंफेक्शस (संक्रमणकारी) होते हैं. अगर वार्ट्स मौजूद न भी हों तो भी उनसे एचपीवी दूसरों को लग सकती है या खुद को हो सकती है.’ डाॅ. गिरि का यह भी कहना है कि कंडोम हमेशा एचपीवी से बचाव नहीं कर सकता. ऐसा इसलिए है क्योंकि कंडोम पुरुष के सिर्फ निजी अंग को ढकता है और दूसरी जगहों पर जो इसके वायरस होंगे, वह महिला को लग सकते हैं. अब सवाल यह है कि अगर किसी को एचपीवी के वार्ट्स हो जाएं, तो क्या किया जाए? इस सिलसिले में गायनी अकसर एक क्रीम सुझाती हैं जिससे आठ सप्ताह के भीतर आराम पहुंच जाता है. लेकिन अगर यह काम न करे, तो गायनी उन मस्सों को अपने क्लिनिक में बर्न या फ्रीज़ करेगी. यह भी हो सकता है कि एक मस्सा ठीक कराते वक्त दूसरा मस्सा पनप जाए.

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जैसा कि ऊपर कहा गया है कि चालीस एचपीवी वायरस कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचाते. लेकिन जिन दो वायरसों से संक्रमण होता है, उनसे सर्वाइकल डिस्प्लेसिया -सर्विक्स की कोशिकाओं में परिवर्तन- हो सकता है जिसकी सर्वाइकल कैंसर में तब्दील होने की आशंका रहती है. लेकिन घबराने की बात नहीं है. जितनी जल्दी आप पैप (चंच) टेस्ट करा लेंगी उतनी जल्दी यह मालूम हो जायेगा कि डिस्प्लेसिया है या नहीं. जाहिर है, मालूम होने पर उसे कैंसर के स्तर तक पहुंचने से रोका जा सकता है.

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