Hindi Crime Story: हवस – मर्यादा तोड़ने का खतरनाक अंजाम

Hindi Crime Story: जय प्रकाश दोपहर में अपनी दुकान से घर आ गया. उस ने तय कर लिया था कि आज वह हर हाल में अपनी बीवी सीमा और उस के चचेरे भाई मनोज के असली चेहरे बेनकाब कर के रहेगा.

आंगन का दरवाजा बंद था. चारदीवारी फांद कर जय प्रकाश अंदर गया. दबे पैर चल कर उस ने बैडरूम के दरवाजे पर कान लगाया, तो अंदर से उसे सीमा और मनोज की बातें सुनाई पड़ीं.

‘‘काश, तुम मेरी बीवी बन कर जिंदगीभर मेरे साथ रहतीं?’’ यह मनोज की आवाज थी.

‘‘बीवी तो मैं दूसरे की हूं, लेकिन प्रेमिका के नाते तुम्हारे साथ बीवी जैसा फर्ज तो अदा कर रही हूं,’’ सीमा बोल रही थी.

‘‘मैं तुम्हें जिंदगीभर के लिए पाना चाहता हूं,’’ मनोज ने कहा था.

‘‘ठीक है, अगर कभी मेरे पति को हमारे नाजायज रिश्ते की जानकारी हो गई और उसी ने मु?ो अपने साथ रखने से मना कर दिया, तो तुम मु?ो अपनी बीवी बना लेना.

‘‘मैं क्या अपनी खुशी से जय प्रकाश के साथ रह रही हूं. यह मैं ही जानती हूं कि मैं उस से कैसे निबाह रही हूं. यह मेरी बदकिस्मती थी कि लाख कोशिशों के बावजूद मेरी तुम से शादी नहीं हो सकी, नहीं तो मैं आज तुम्हारी ही बीवी होती. खैर, छोड़ो उन सब बातों को, अपने कपड़े तो उतारो.’’

जय प्रकाश सबकुछ सम?ा गया, मगर दरवाजे पर दस्तक देने से पहले वह अपनी आंखों से कमरे का नजारा देख कर यह पक्का कर लेना चाहता था कि उन दोनों में नाजायज रिश्ता है.

दरवाजे में कोई छेद नहीं था, इसलिए वह खिड़की की तरफ बढ़ गया. उस ने खिड़की के पाटों के बीच एक दरार में आंख लगा दी.

भीतर का नजारा देख कर जय प्रकाश हैरान था. सीमा बिस्तर पर लेटी थी. मनोज उस से सट कर बैठा था. वह सीमा के होंठों और गालों को चूम रहा था.

जय प्रकाश का खून खौल उठा. उस का मन सीमा का कत्ल कर के जेल चले जाने का हुआ, मगर उस ने यह सोच कर इस विचार को छोड़ दिया कि अगर वह जेल चला जाएगा, तो उस के 3 साल के बेटे रोहित की परवरिश कौन करेगा?

मगर जय प्रकाश सीमा और मनोज को यों ही नहीं छोड़ना चाहता था. वह उन्हें सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उस ने दरवाजे पर दस्तक दी.

दस्तक सुन कर वे दोनों सचेत हो गए. अपने कपडे़ ठीक करते हुए सीमा बिस्तर से उठ कर आई और दरवाजा खोल दिया.

जैसे ही सीमा की नजर जय प्रकाश पर पड़ी, उस का हलक सूख गया.

सीमा को कुछ कहे बिना जय प्रकाश कमरे में आ गया और उस ने मनोज को ढूंढ़ निकाला. वह पलंग के नीचे छिप गया था.

सीमा को लातघूंसों से मारते हुए जय प्रकाश ने कहा, ‘‘बदजात औरत, तू ने तो कहा था कि मनोज तुम्हारा चचेरा भाई है. महल्ले के लोग यों ही तु?ो बदनाम करते हैं.

‘‘अब बता कि यह सब क्या है? भाई के साथ कमरा बंद कर के क्या कोई चोंच से चोंच मिलाता है?’’

सीमा ने ?ाट से जय प्रकाश के पैर पकड़ लिए और अपनी गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा कि अब वह मनोज के साथ नाजायज संबंध नहीं रखेगी.

जय प्रकाश सीमा को एक मौका और देना चाहता था, इसलिए उस ने उसे इस शर्त पर माफ किया कि वह आइंदा मनोज से नहीं मिलेगी.

मनोज के जाने के कुछ देर बाद जय प्रकाश अपने मकान से बाहर आया, तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. लोग उसे ऐसे देख रहे थे, जैसे आज उन्हें पता चला हो कि उन के महल्ले में कोई नामर्द रहता है.

पड़ोस की एक औरत ने जय प्रकाश के मुंह पर कह भी दिया, ‘‘क्यों भैया, मर्द नहीं हो क्या? बीवी को दूसरे मर्द के साथ सोते देख कर भी उसे माफ कर दिया?’’

जय प्रकाश सिर ?ाका कर अपने रास्ते चला गया. भला वह उस औरत की बात का क्या जवाब देता? उसे कैसे बताता कि अपने बेटे का खयाल कर के उस ने अपनेआप से सम?ौता किया है.

सीमा मुजफ्फरपुर के एक गांव की रहने वाली थी. मनोज का घर भी उसी गांव में था. वह सीमा से एक साल बड़ा था, मगर दोनों ने बीए तक एकसाथ पढ़ाई की थी.

जवानी की दहलीज पर आते ही मनोज सीमा की तरफ खिंच गया और उसे अपना दिल दे दिया.

सीमा भी मनोज को मन ही मन प्यार करती थी. दोनों का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन मौका मिला, तो दोनों ने जिस्मों का मिलन भी कर लिया.

कुछ महीनों के बाद उन दोनों ने शादी कर के जिंदगीभर साथ रहने का फैसला किया, मगर उन की एक न चली.

दोनों एक ही गांव के थे और अलगअलग जाति के भी. उन के घर वाले जाति की दीवार तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए.

आखिरकार सीमा की शादी जय प्रकाश से कर दी गई. वह कोलकाता का रहने वाला था. वहां उस की कपड़े की दुकान थी.

सीमा अपने पति के घर आ गई. पति से भरपूर प्यार और सासससुर का दुलार पा कर भी वह मनोज को भुला न सकी. जब भी मौका मिलता, सीमा मनोज को फोन कर लेती.

मनोज भी सीमा से मिलने के लिए कम बेचैन नहीं था.

इसी तरह 6 महीने बीत गए. मनोज अपनेआप पर काबू न रख सका. फोन पर सीमा से इजाजत ले कर एक दिन वह कोलकाता पहुंच गया.

सीमा ने पति और सासससुर से मनोज की पहचान अपने चचेरे भाई के रूप में कराई, इसलिए उन दोनों के नाजायज रिश्ते पर किसी को शक नहीं हुआ. एकदूसरे की बांहों में समा कर वे दोनों अपनी हवस शांत कर लेते.

जल्दी ही मनोज के घर वालों को पता चल गया कि वह सीमा से मिलने बारबार कोलकाता जाता है, फिर तो मनोज के पिता ने जल्दी ही उस की शादी वीणा से करा दी.

वीणा सीमा से भी ज्यादा खूबसूरत थी. लेकिन मनोज उस के रूपजाल में ज्यादा दिनों तक बंधा न रह सका.

अपनी शादी के 4 महीने बाद ही मनोज कोलकाता जा कर सीमा से मिला. उस समय वह मां बन चुकी थी. उस के बेटे का नाम रोहित था. इस के बावजूद सीमा ने मनोज से नाजायज संबंध नहीं तोड़ा.

सीमा से मिलने बारबार कोलकाता न आना पड़े, इसलिए मनोज ने वहीं रहने का फैसला किया.

कुछ कोशिश के बाद मनोज को एक कंपनी में नौकरी मिल गई. उसे सीमा के घर से कुछ ही दूरी पर किराए का मकान भी मिल गया.

जय प्रकाश रोजाना घर से सुबह 10 बजे दुकान जाता था. वहां से लौट कर वह रात के 10 बजे घर आता था. इस बीच सीमा पूरी तरह आजाद रहती थी. उस का जब भी मन होता, वह मनोज को घर बुला लेती.

मनोज की आजादी पर अंकुश उस समय लगा, जब उस की पत्नी वीणा गांव से शहर आ गई. उस की एक साल की बच्ची थी.

जल्दी ही वीणा को मनोज और सीमा के नाजायज संबंध की सारी जानकारी हो गई. फिर तो उन दोनों में सीमा को ले कर ?ागड़ा होने लगा.

मनोज किसी भी हाल में सीमा से नाजायज संबंध तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो एक दिन वीणा सीमा के घर गई.

उस ने सीमा को सम?ाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

सीमा ने उसी दिन मनोज को बुला कर बताया. मनोज को वीणा पर बहुत गुस्सा आया. उस ने घर जा कर वीणा की खूब पिटाई की और यह चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी सीमा से कुछ कहा, तो वह उसे तलाक दे देगा.

वीणा को इस बात से इतना धक्का पहुंचा कि एक दिन वह गले में साड़ी का फंदा लगा कर पंखे से ?ाल गई. खुदकुशी करने से पहले उस ने अपनी बेटी को भी जहर दे कर मार डाला था.

पत्नी और बच्ची की मौत के बाद भी मनोज नहीं सुधरा. उस ने पहले की तरह सीमा से नाजायज संबंध बनाए रखा.

सीमा ने भी इस घटना से कोई सीख नहीं ली.

वीणा ने जब अपनी बेटी को मार कर खुदकुशी की थी, तभी जय प्रकाश को किसी ने मनोज और सीमा के नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बता दिया था.

जय प्रकाश सीधासादा था. वह मन में छलकपट नहीं रखता था. सो, एक दिन उस ने सीमा से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि मनोज से तुम्हारा नाजायज रिश्ता है? तुम दोनों की वजह से ही मनोज की पत्नी ने खुदकुशी की थी?’’

पहले तो सीमा घबरा गई, मगर तुरंत उस ने अपनेआप को संभाल लिया और बोली ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? महल्ले वालों की बातों में आ कर भाईबहन के पवित्र रिश्ते पर लांछन लगा रहे हैं? आप ही बताइए कि क्या मैं चरित्रहीन लगती हूं?’’ यह कह कर सीमा फफकफफक कर रोने लगी.

जय प्रकाश को उस की बात पर भरोसा हो गया और उस ने उसे यह कह कर चुप कराया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा.

इस के बाद 3 महीने और बीत गए. एक दिन जय प्रकाश के पड़ोस की मुंहबोली भाभी ने उसे मनोज और सीमा की सारी करतूतें बताते हुए कहा कि अगर उस ने जल्दी ही सीमा और मनोज के नाजायज संबंध को नहीं रोका, तो महल्ले के लोग उस की बीवी पर जिस्मफरोशी का आरोप लगा कर पुलिस के हवाले कर देंगे.

जय प्रकाश को अपनी मुंहबोली भाभी पर पूरा भरोसा था. उस ने मनोज और सीमा को रंगे हाथ पकड़ने का प्लान बना लिया.

अगले दिन ही जय प्रकाश दुकान से घर आया और उस ने सीमा को मनोज के साथ पकड़ लिया.

अपने बेटे का खयाल कर के जय प्रकाश ने सीमा को माफ कर दिया. मगर सीमा ने मनोज से नाजायज संबंध नहीं तोड़ा, वह सिर्फ सावधानी बरतने लगी.

2-3 महीने बाद जब सीमा को लगा कि महल्ले के लोग अब उस के पति के कान नहीं भरेंगे, तो उस ने फिर से मनोज को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया.

एक दिन जय प्रकाश को एक काम से किसी रिश्तेदार के घर पटना जाना था. सीमा को 3 दिन बाद लौटने की बात कह कर वह चला गया, मगर उस की ट्रेन छूट गई और वह घर लौट आया.

उस समय शाम के 4 बज रहे थे. उस के घर के बाहर महल्ले के बहुत से लोग खड़े थे.

जय प्रकाश ने उस भीड़ में एक से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘हम लोग यहां तमाशा देखने के लिए खड़े हैं. तुम अंदर जाओगे, तो खुद जान जाओगे कि यहां कैसा तमाशा हो रहा है.’’

जय प्रकाश उस शख्स की बात सम?ा नहीं पाया. वह चुपचाप आंगन में चला गया.

उस के बैडरूम का दरवाजा बंद था. पड़ोस में रहने वाला एक 16 साल का लड़का दरवाजे से आंख लगाए खड़ा था.

जय प्रकाश को गुस्सा आ गया.

उस ने लड़के का गरीबान पकड़ कर पूछा, ‘‘मेरे घर में ताक?ांक क्यों कर रहा है? चल, तेरे बाप को तेरी करतूत बताता हूं.’’

वह लड़का भी कोई कम नहीं था. उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘मेरे बाप को बाद में बताना, पहले दरवाजा खुलवा कर अपनी बीवी से पूछ कि तेरे रहते वह गैरमर्द के साथ कमरा बंद कर के क्या कर रही है?’’

जय प्रकाश के हाथों के तोते उड़ गए. लड़के ने अपना गिरेबान छुड़ाया और अपनी राह चला गया.

जय प्रकाश ने गुस्से में दरवाजा पीटना शुरू कर दिया.

जय प्रकाश को देखते ही सीमा डर गई. वह कुछ सम?ा नहीं पाई कि ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए.

लेकिन जय प्रकाश समझ गया था कि सीमा और मनोज के दिल में हवस का तूफान है. वे दोनों समझने वालों में से नहीं हैं, इसलिए उस ने छुटकारा पाने के लिए उन का कत्ल कर देना ही ठीक समझा.

जय प्रकाश ने बरामदे में पड़ी लोहे की छड़ उठाई और सीमा के सिर पर एक जोरदार वार किया, जिस से उस का सिर फट गया और वह चीख कर जमीन पर गिर गई.

सीमा का हश्र देख कर मनोज ने वहां से भागने की कोशिश की, मगर जय प्रकाश ने उसे भागने नहीं दिया.

लोहे की उसी छड़ से उस ने मनोज के सिर पर कई वार किए. जो हश्र सीमा का हुआ, वही मनोज का भी हुआ. थोड़ी देर में दोनों की लाशें बिछ गईं.

सूचना पा कर पुलिस आई और जय प्रकाश को गिरफ्तार कर के ले गई. रोहित अनाथ हो गया. Hindi Crime Story

Hindi Crime Story: खून से रंगी रिश्तेदारी – जीजा और साले बने कातिल

Hindi Crime Story: ‘‘संजू, मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि तुम ने मुझ पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया है, जो मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता. अब तो तुम्हारे बिना न दिन को चैन आता है और न रातों को नींद.’’ प्रीति ने प्रेमी संजू से कहा.

‘‘यह कोई जादू नहीं है बल्कि इसी को प्यार कहते हैं. सच कहूं, प्रीति ऐसा ही तो हाल मेरा है. तुम सामने होती हो तो सब कुछ सतरंगी सा लगता है और तुम से जुदा होते ही चारों ओर वीरानी नजर आती है. प्रीति, कभीकभी तो मैं यह सोच कर ही डरता हूं कि कहीं हमारे प्यार को किसी की नजर न लग जाए. क्योंकि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी जिंदा नहीं रह सकता.’’ प्रीति का हाथ अपने हाथों में लेते हुए संजू बोला.

‘‘संजू, जुदाई की सोचते ही मेरी तो रूह कांप जाती है. मैं यही सोच कर परेशान हूं कि कहीं मेरे घरवालों को हम दोनों के प्यार के बारे में पता चल गया तो उन का मेरे प्रति व्यवहार कैसा होगा. क्योंकि हम दोनों नदी के दो किनारों की तरह हैं, जो कभी आपस में मिल नहीं सकते. बताओ, ऐसे में हमारे प्यार को मंजिल कैसे मिलेगी?’’ यह कहते ही प्रीति के चेहरे पर गंभीरता छा गई. वह एक पल के लिए रुकी और फिर बोली, ‘‘मेरी एक बात मानोगे, संजू? क्यों न हम यहां से कहीं दूर जा कर अपने प्यार की नई दुनिया बसा लें, जहां हमें किसी का डर न हो. जब हम एकदूजे के हो जाएंगे तो उस के बाद किसी में इतनी ताकत नहीं होगी कि कोई हमें अलग कर पाए.’’

प्रीति ने कहा तो संजू भी सोच में डूब गया. उसे भी महसूस हुआ कि प्रीति की सोच अपनी जगह ठीक है. प्यार के एक नहीं, लाखों दुश्मन होते हैं. फिर प्रीति ने उस से जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया है. उसे अपना बनाने के लिए अगर हिम्मत कर के यह कदम उठा भी ले तो कौन सी बुराई है. जिला शाहजहांपुर के सिधौली थाना के गांव रामपुर में रहता था 35 वर्षीय संजू मंसूरी. वह ईरिक्शा चालक था. उस के पिता का नाम शेर मोहम्मद और मां का नाम रजिया था. पिता खेतीकिसानी करते थे. संजू की 2 बड़ी बहनें व एक छोटा भाई इस्लामुद्दीन था. दोनों बहनों का निकाह हो चुका था. इसी गांव में रामविलास परिवार सहित रहता था. परिवार में पत्नी सुधा और एक बेटा गुड्डू और 2 बेटियां प्रिया और प्रीति थीं.

रामविलास खेती करता था, जिस से होने वाली आमदनी से घर का खर्च चलता था. उस के सभी बच्चों ने गांव के सरकारी स्कूल से 8वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की थी. प्रिया का विवाह हो चुका था. प्रीति अभी अविवाहित थी. स्वभाव से वह काफी चंचल थी. घर के कामों में उस का मन नहीं रमता था. प्रीति हमेशा बनठन कर रहती और टीवी से ही चिपकी रहती. मां की डांट के बावजूद प्रीति टीवी पर आने वाली फिल्में देखे बगैर नहीं रहती थी. टीवी पर फिल्मों और फिल्मी गानों का इतना प्रभाव प्रीति पर पड़ा था कि वह अपने आप को फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

चूंकि फिल्मों में प्यारमोहब्बत का हमेशा महिमामंडित किया जाता है, इसलिए प्रीति को भी ऐसे युवक की तलाश थी, जो फिल्मी हीरो की तरह उस के सामने प्यारमोहब्बत का प्रस्ताव रखे. उसे चाहे और उसे सराहे. उस के हुस्न की तारीफ करे और उस की याद में तड़प सके. दूसरी ओर संजू अधिक पढ़लिख नहीं सका था, लेकिन वह अपने पहनावे से पढ़ालिखा और हैंडसम युवक नजर आता था. अपने शरीर पर वह विशेष ध्यान देता था. वह हमेशा आधुनिक फैशनेबल कपड़े पहनता था. संजू को भी फिल्में देखने का शौक पागलपन इस हद तक था कि उस का बात करने और चलने का स्टाइल भी फिल्मी हो गया था.

संजू अपनी उम्र के उस मोड़ पर था, जहां आशिकी स्वभाव में अपने आप आ कर शामिल हो जाती है. संजू भी इस का अपवाद नहीं था. लव स्टोरी वाली फिल्में देखदेख कर संजू का मिजाज भी आशिकाना हो गया था. वह मोहल्ले की लड़कियों पर अकसर नजर रखने की कोशिश किया करता था. लेकिन कोई लड़की उस की तरफ आकर्षित नहीं हुई थी. संजू की दोस्ती रामविलास के बेटे गुड्डू से थी. इस वजह से उस का उस के घर आनाजाना था. आनेजाने में गुड्डू की बहन प्रीति से उस की मुलाकात हो जाती. प्रीति की सुंदरता संजू के मन को भा गई. बारबार आनेजाने से उन के बीच बातचीत भी होने लगी. प्रीति संजू की निगाहों को भांप कर उस के दिल का हाल जान चुकी थी. उसे संजू पसंद आया था, इसलिए वह भी संजू से बात करने में गुरेज नहीं करती थी.

दोनों एक ही शौक के शिकार थे. उन के बीच फिल्मों को ले कर ही अधिक बातचीत होती थी. इस तरह दोनों एकदूसरे के साथ काफी समय बिताते थे. इस के लिए वे घर के बाहर भी मिलते थे. क्योंकि ज्यादा देर तक वह घर में एक साथ बैठ कर बात नहीं कर सकते थे. ऐसा करने पर घर वाले उन पर शक करने लगते. समय के साथसाथ दोनों को एकदूसरे का संग खूब भाने लगा. दोनों साथ में मोबाइल पर रोमांटिक मूवी भी देखते. फिर फिल्म के कलाकारों की नकल करते हुए दोनों उन के डायलौग बोलते और उसी अंदाज में एकदूसरे के पास आ कर बांहों में भर कर आंखों में आंखें डाल कर उसी तरह बात करते जैसे कलाकार फिल्म में करते थे. इस से दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आते चले गए.

वे दोनों दिल की धड़कनों की आवाज और सांसों की सरगम को भी बखूबी महसूस करते थे. ये नजदीकियां दोनों को अच्छी लगने लगी थीं. जब वे नजदीक होते तो अलग होने की बात दिमाग में लाने ही नहीं देते थे. लेकिन मजबूर हो कर उन को एकदूसरे से अलग होना ही पड़ता. फिल्मी कलाकारों के लव सीन की एक्टिंग करतेकरते वे दोनों भी एकदूसरे से प्यार कर बैठे. अब प्यार का इजहार करना बाकी था. एक दिन लव सीन की एक्टिंग करतेकरते संजू ने प्रीति को अपनी बांहों में लिया तो फिल्म के डायलौग न बोल कर उस ने अपने दिल की बात कहनी शुरू कर दी, ‘‘प्रीति, देखता तो मैं तुम्हें बचपन से आया हूं. लेकिन जब से हम एक्टिंग के जरिए एकदूसरे के नजदीक आए हैं, तब से मैं ने तुम्हें बेहद करीब से देखा तब से ये नजरें तुम्हारे सिवा कुछ और देखना ही नहीं चाहतीं.

तुम्हारी झील सी आंखों की गहराइयों में डूब कर तुम्हारे दिल का हाल जाना तो यही लगा कि तुम्हारा दिल भी मेरे पास आना चाहता है. इस बात की गवाही तुम्हारे दिल की धड़कनें देती हैं. मैं तो तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं. मुझे अपने प्यार पर भी पूरा भरोसा है कि वह भी मुझे बेइंतहा चाहता है, बस देर है तो उसे तुम्हारे द्वारा जुबां से कुबूल करने की.’’

प्रीति तो जैसे उस के पे्रम से सराबोर हो गई और उस की आंखों में देखती हुई फिल्मी स्टाइल में बेसाख्ता बोली, ‘‘कुबूल है…कुबूल है…कुबूल है मेरे महबूब.’’

यह सुनते ही संजू की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने प्रीति को अपने सीने से लगा लिया और बोल उठा, ‘‘आई लव यू…आई लव यू प्रीति.’’

उस के प्यार भरे शब्द प्रीति के कानों में रस घोल रहे थे. उसे एक मीठा सुखद एहसास हुआ तो उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और संजू के कंधे पर अपना सिर रख दिया. काफी देर तक वे दोनों उसी स्थिति में रहे. उस के बाद जब दोनों अलग हुए तो उन के चेहरे खिले हुए थे. इस के बाद तो प्रीति और संजू की तूफानी मोहब्बत बड़ी तेजी के साथ अपनी बुलंदियों की तरफ बढ़ने लगी. अब तो रोज ज्यादा से ज्यादा वह एकदूसरे के पास रहने की कोशिश करते. कभी घर पर, कभी खेत पर. इस चक्कर में संजू अपने काम से जी चुराने लगा था. उसे रोज घर में डांट खाने को मिलती थी. लेकिन संजू पर तो प्रीति की मोहब्बत का भूत सवार हो गया था. वह प्रीति के लिए हर किसी से बगावत करने को तैयार था.

दरअसल ग्रामीण परिवेश में प्यारमोहब्बत के मामले अधिक दिनों तक छिप नहीं पाते हैं. प्रीति और संजू की मोहब्बत के साथ भी यही हुआ. उन दोनों की अपनी दीवानगी की वजह से ही पूरा गांव इस प्रेम प्रकरण के बारे में जान गया था. उधर उन दोनों प्रेमियों की हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हें एकदूसरे को देखे बिना करार नहीं आता था. लोगों को पता लग जाने के बाद दोनों हर समय चोरीछिपे की मुलाकातों का जुगाड़ बैठाने की जुगत में लगे रहते थे. गांव के बाहर एक खंडहरनुमा मकान उन की मिलनस्थली बन गया था. इसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

एक दिन गांव में रह रहे बिरादरी के कुछ लोगों ने प्रीति के पिता रामविलास को बताया कि उस की लड़की गलत रास्ते पर जा रही है. यह सब सुन कर रामविलास आगबबूला हो उठा. उस ने अपनी पत्नी सुधा को हड़काया कि वह प्रीति को खेतों और बाजार में न जाने दे. इसी दौरान सुधा ने अपनी आंखों से एक ऐसा नजारा देखा, जिसे देखने के बाद उस ने प्रीति की खूब पिटाई की. दरअसल, संजू प्रीति के घर के सामने से निकल रहा था तो प्रीति दरवाजे पर खड़ी थी. संजू के देखने पर प्रीति उसे बारबार फ्लाइंग किस देने लगी. संजू उस किस को अपने हाथ में लेने का प्रयत्न करता दिखाई दे रहा था. यह सब होते हुए सुधा ने अपनी आंखों से देख लिया था. यह देख कर ही सुधा ने प्रीति की पिटाई की थी.

इस दृश्य को देखने के बाद सुधा ने अपने पति रामविलास से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि वह अपनी लाडली के हाथ पीले कर दें, वरना वह किसी दिन वह इस परिवार की नाक कटवा कर रहेगी. रामविलास सचमुच इस मामले में गंभीर हो उठा था. उस ने उसी रोज से प्रीति के लिए बिरादरी में कोई लड़का ढूंढना शुरू कर दिया. अंतत: उस की मेहनत रंग लाई. उसे शाहजहांपुर के ही जसनपुर गांव निवासी रामवीर का बेटा आकाश प्रीति के लिए उपयुक्त लगा. वह खेती करता था. आकाश देखने में सुंदर और अच्छी कदकाठी का था और खेती भी अच्छीखासी थी. सब कुछ देखजान कर रामविलास ने रिश्ते की बात चलाई तो जल्द ही बात बन गई.

प्रीति ने विरोध करना चाहा, लेकिन पिता का गुस्सा देख कर वह कुछ न कर पाई. उसे धमकी भी मिली थी कि अगर वह शादी के लिए तैयार न हुई तो उसे वह जिंदा मार देंगे. प्रीति बेबस हो गई. वह तो संजू के साथ भाग जाने की सोच रही थी, लेकिन पिता को संबंधों का पता चलने के बाद मारने की धमकी देने पर वह कुछ न कर पाई. एक साल पहले प्रीति का विवाह आकाश से हो गया. वह मायके से ससुराल आ गई. यहां आ कर वह किसी तरह संजू को भूलने की कोशिश करने लगी, लेकिन वह जितना उसे भूलने की कोशिश करती, उतना ही वह ज्यादा उसे याद आता. आकाश ने उसे अपनी तरफ से भरपूर प्यार दिया, उस का खयाल रखा.

दूसरी ओर संजू अपने आप को प्रीति से दूर होने के बाद संभाल नहीं पा रहा था. रहरह कर उठतेबैठते उस के खयालों में प्रीति ही छाई रहती थी. जब बरदाश्त की हद पार हुई तो वह एक दिन प्रीति की ससुराल पहुंच गया. प्रीति उस की हिम्मत देख कर चौंक गई. लेकिन काफी अरसे बाद उसे देख कर उस के दिल को सुकून भी पहुंचा. उस से मिलने के बाद फोन पर बात करने की बात कह कर वापस आ गया. इस के बाद उन दोनों की चोरीछिपे फोन पर बातें होने लगीं. जब भी प्रीति मायके आती तो संजू के साथ खूब समय बिताती. एक दिन आकाश ने अपनी पत्नी प्रीति को संजू से बातें करते पकड़ लिया. आकाश ने प्रीति को जम कर पीटा. उस के बाद वह प्रीति पर नजर रखने लगा.

16 नवंबर, 2020 की रात संजू ने खाना खाया. उस के बाद वह घर से निकल गया. काफी देर तक नहीं लौटा तो उसे तलाशा गया लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. 17 नवंबर की सुबह फिर संजू की तलाश शुरू हुई तो गांव के बाहर सेठपाल के खेत में पराली के ढेर के पास संजू की चप्पलें पड़ी मिलीं. पराली हटाने पर उस के नीचे संजू की लाश मिली. लाश मिलते ही कोहराम मच गया. घरवाले वहां पहुंच कर रोनेपीटने लगे. संजू के भाई इस्लामुद्दीन को गांव के लोगों से पता चला कि रात में उन लोगों ने संजू को गुड्डू के साथ जाते देखा था. संजू की लाश मिलने पर गुड्डू वहां नहीं पहुंचा, न ही वह घर पर था, इसलिए पूरा शक गुड्डू  पर गया.

स्थानीय सिधौली थाने की पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई. थाने के इंसपेक्टर जगनारायण पांडेय सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मृतक के गले पर गहरे निशान थे.  शरीर पर और किसी प्रकार के निशान नहीं थे. संभवत: गला दबा कर हत्या की गई थी. इस के बाद इंसपेक्टर पांडेय ने इस्लामुद्दीन से आवश्यक पूछताछ की. इसी बीच एसपी (ग्रामीण) अपर्णा गौतम भी मौके पर पहुंच गईं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण कर के पूछताछ की फिर आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चली गईं. चूंकि मामला 2 संप्रदायों से जुड़ा था. इस वजह से उपजे तनाव को देखते हुए गांव में पीएसी तैनात कर दी गई. लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेजने के बाद इंसपेक्टर जगनारायण पांडेय इस्लामुद्दीन को साथ ले कर थाने आ गए.

इस्लामुद्दीन की तहरीर पर इंसपेक्टर पांडेय ने गुड्डू, सेठपाल, विमल, अंगद और एक अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 147/302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस्लामुद्दीन ने इन लोगों पर संजू के मोबाइल और 80 हजार रुपए के लालच में हत्या करने का आरोप लगाया था. 21 नवंबर, 2020 को सुबह 10 बजे इंसपेक्टर पांडेय ने गुड्डू और उस के बहनोई आकाश को नियामतपुर मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से संजू का वीवो कंपनी का मोबाइल फोन भी बरामद हो गया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह बता दी.

उन्होंने बताया कि प्रीति संजू से बात करना बंद नहीं कर रही थी. इस वजह से आकाश और उस के बीच विवाद हो जाता था. आकाश अपनी पत्नी की चरित्रहीनता बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. इसी साल भैयादूज पर वह प्रीति को ले कर उस के मायके आया. प्रीति के भाई गुड्डू से कहा कि उस की बहन प्रीति का चरित्र ठीक नहीं है. उस के संजू से अवैध संबंध हैं. अब वह प्रीति को अपने साथ नहीं रखेगा, उस से तलाक ले लेगा. इस पर गुड्डू ने उसे समझाया कि ऐसा कुछ करने की जरूरत ही नहीं पडे़गी. हम लोग संजू को ही ठिकाने लगा देते हैं. आकाश ने भी आवेश में उस की हां में हां मिला दी.

16 नवंबर की शाम को संजू खाना खा कर घर से निकला तो उसे निकलता देख कर गुड्डू उस के पास आ गया और बातोंबातों में उसे गांव के बाहर सेठपाल के खेत पर ले गया. वहां आकाश पहले से मौजूद था. दोनों ने मिल कर संजू को दबोच लिया और हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. गुड्डू ने संजू के पैंट की जेब से उस का मोबाइल निकाल लिया. फिर संजू की लाश को पराली के ढेर में दबा दिया. लेकिन दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों हत्याभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Madhya Pradesh Crime: पत्नी की साजिश – प्रेमी संग मिलकर पति की बेरहमी से हत्या

Madhya Pradesh Crime: मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर का उपनगरीय इलाका रांझी रक्षा मंत्रालय की फैक्ट्रियों के लिए जाना जाता है. यहां पर गन कैरेज, आर्डिनैंस, व्हीकल और ग्रे आयरन फाउंडी में सेना के उपयोग में आने वाले गोलाबारूद, टैंक और भारी वाहन बनाए जाते हैं. ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास ही रांझी के रिछाई अखाड़ा मोहल्ले में 40 साल का सोनू ठाकुर अपनी 28 साल की पत्नी नीतू और 2 बेटियों के साथ रहता था. मूलरूप से दामोह जिले के हिनौता गांव का रहने वाला सोनू परिवार में 4 भाईबहनों में सब से बड़ा था. शादी के पहले सोनू अपने खर्च के लिए अपने मातापिता की कमाई पर आश्रित था. लेकिन शादी होते ही उसे अहसास हो गया था कि उसे जल्द ही कोई कामधंधा शुरू कर देना चाहिए.

अपनी और पत्नी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वह गांव में मेहनतमजदूरी का काम करने लगा, मगर गांव में मिलने वाले मेहनताने से वह पत्नी को खुश नहीं रख पा रहा था. गांव में एक छोटे से घर में उस का पूरा परिवार रहता था. जहां पर वे एकदूसरे से ढंग से बात भी नहीं कर पाते थे. रात को एक छोटी सी कोठरी में सोते समय दोनों अपने मन की बातें एकदूजे से नहीं कर पाते थे. यह बात नीतू को बहुत अखरती थी. रात को जब घर के सभी लोग सो जाते, तब उन्हें एकदूसरे का साथ मिलता था. इस बात का उलाहना दे कर अकसर ही नीतू सोनू से कहती थी कि वह कहीं अलग घर ले कर क्यों नहीं रहते. तब सोनू उसे समझा देता कि अभी हमारी नईनई शादी हुई है. अभी परिवार से अलग रहेंगे तो घर वालों को अच्छा नहीं लगेगा. कुछ महीनों के बाद वह अपना कामधंधा जमा कर अलग रहने लगेगा. जब शादी को साल भर का समय हो गया तो एक रात नीतू ने ही सोनू को सलाह देते हुए कहा, ‘‘क्यों न हम लोग गांव से दूर शहर जा कर कुछ कामधंधा कर लें.’’

सोनू को पत्नी की सलाह पसंद आई. सोनू भी सोचने लगा कि घर के लोगों की कमाई से कब तक अपना और बीवी का पेट भरेगा. जबलपुर शहर में हिनौता गांव के कुछ लड़के काम करते थे. सोनू ने उन के घर वालों से मोबाइल नंबर ले कर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उसे भी जबलपुर में आसानी से काम मिल जाएगा. शादी होने के साल भर बाद ही सोनू बीवी के साथ काम की तलाश में जबलपुर आ गया था. रांझी के अखाड़ा मोहल्ले में वे एक किराए की कोठरी में रहने लगे. नीतू सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी और सोनू को यहां के बड़ा फुहारा में घमंडी चौक पर एक कपड़े की दुकान में सेल्समैन का काम मिल गया. जबलपुर आए हुए सोनू को करीब 5 साल हो गए थे. उन्होंने धीरेधीरे तिनकातिनका जोड़ कर एक छोटा सा घर बना लिया था.

इन सालों में नीतू 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. सोनू और नीतू की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी पटरी पर चल रही थी, मगर एक रौंग नंबर की काल ने उन के जीवन में जहर घोल दिया. 2020 के जनवरी महीने की बात है. दोपहर का वक्त था. घर के कामकाज से फुरसत पा कर नीतू मोबाइल फोन में यूट्यूब पर वीडियो देख रही थी. तभी उस के मोबाइल फोन की रिंग बज उठी. नीतू ने जैसे ही काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हैलो, मैं राजू बोल रहा हूं.’’

‘‘कौन राजू? मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘जी, मैं गाजीपुर से राजू राजभर बोल रहा हूं. कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता हूं. क्या मेरी बात निशा वर्मा से हो रही है?’’

‘‘जी नहीं, आप ने गलत नंबर लगाया है.’’ नीतू ने बेतकल्लुफी से जबाब देते हुए कहा.

‘‘जी सौरी, मुझे निशा वर्मा के घर प्रिंटर भिजवाना था. गलती से आप का नंबर लग गया. वैसे आप कहां से बोल रही हैं?’’ राजू ने विनम्रता के साथ पूछा.

‘‘मैं तो जबलपुर से बोल रही हूं.’’

‘‘आप की आवाज तो बड़ी प्यारी है. क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह बोला.

‘‘मेरा नाम नीतू ठाकुर है.’’ नीतू ने कहा.

‘‘नीतूजी, आप से बात कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

इतना कह कर नीतू ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया, मगर नीतू को भी राजू नाम के इस लड़के का इस तरह से बात करना अच्छा लगा. कुछ ही दिनों के बाद राजू नीतू के मोबाइल पर काल करने लगा. रौंग नंबर से शुरू हुआ बातचीत का सिललिला धीरेधीरे दोस्ती में बदल गया. अब तो नीतू भी हर दिन राजू के फोन आने का इंतजार करने लगी. एकदूसरे को वीडियो काल कर के घंटों उन की बातचीत होने लगी. तीखे नैननक्श वाली नीतू ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई की थी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने का उसे बड़ा शौक था. उस ने शादी के पहले जो रंगीन ख्वाब देखे थे, वे सोनू से शादी कर के बिखर चुके थे. थोड़ी सी पगार में घरगृहस्थी चलाने वाला उस का पति सोनू दिन भर काम में लगा रहता और नीतू घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गई थी.

यही वजह रही कि नीतू हर समय मोबाइल फोन की दुनिया में अपने सपनों की उड़ान भरती रहती. पति के काम पर जाने के बाद अकसर वह खाली समय में मोबाइल में सोशल मीडिया साइट पर व्यस्त रहती थी. मोबाइल फोन के जरिए राजू और नीतू का प्यार जब परवान चढ़ने लगा तो वे दोनों एकदूसरे से मिलने को बेताब रहने लगे. नीतू राजू के प्यार में इस कदर खो चुकी थी कि बारबार राजू से जबलपुर आ कर मिलने की बात करती. प्यार की आग राजू के सीने में भी धधक रही थी. राजू नीतू को भरोसा दिलाता कि वह जल्द ही जबलपुर आ कर उस से मिलेगा. इसी बीच मार्च महीने में कोरोना महामारी के कारण 25 मार्च को लौकडाउन लग गया. लौकडाउन में भी मोबाइल फोन पर नीतू और राजू की बातें होती रहीं.

नीतू का पति सोनू घर के बाहर गली में जब भी टहलने जाता, नीतू राजू को काल कर लेती. जैसेजैसे लौकडाउन में ढील मिल रही थी, राजू जबलपुर जाने की प्लानिंग करने लगा था. राजू जिस कंपनी के लिए कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता था, उस का कारोबार जबलपुर शहर में भी था. किसी तरह कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से बात कर के उस ने जबलपुर की कंपनी में काम करने का जुगाड़ कर लिया. जैसे ही कंपनी की तरफ से उसे जबलपुर में काम करने का मौका मिला तो उस के मन की मुराद पूरी हो गई. एक ही शहर में कामधंधा और प्यार उसे आम के आम और गुठलियों के दाम जैसे लगा. इसी हसरत में 25 साल का कुंवारा राजू नीतू की चाहत में सितंबर 2020 में अपने गांव जफरपुर, गाजीपुर से जबलपुर आ गया .

जिस दिन राजू जबलपुर आ कर नीतू से मिला तो नीतू की खुशी का ठिकाना न रहा. राजू ने जैसे ही नीतू को करीब से देखा तो बस देखता ही रह गया.

‘‘वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो,’’ जैसे ही राजू ने नीतू से कहा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘मेरी तारीफ बाद में करना. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर नीतू राजू के लिए चाय बनाने जैसे ही किचन में गई, राजू अपने आप को रोक नहीं सका. पीछे से वह भी किचन में पहुंच गया और नीतू को अपनी बांहों में भर लिया. उस के गालों पर चुंबन देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें पाने को कितना इंतजार करना पड़ा.’’

नीतू ने अपने आप को छुड़ाते हुए नखरे दिखा कर कहा, ‘‘थोड़ा सब्र और करो, धीरज का फल मीठा होता है.’’

नीतू राजू को चाय का कप पकड़ा कर बाहर आ गई. उस ने बाहर आ कर देखा उस की दोनों बेटियां आंगन में किसी खेल में मस्त थीं. इसी मौके का फायदा उठा कर नीतू ने राजू के पास जा कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और राजू के सीने से लग गई. राजू ने नीतू की कमर में हाथ डाला और उसे बिस्तर पर ले गया. 8 महीने से मोबाइल पर चल रहे उन के प्यार के हसीन ख्वाब साकार हो रहे थे. उस दिन दिल खोल कर दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. नीतू ने उस की खूब खातिरदारी कर ढेर सारी बातें कीं. राजू ने जब उसे बताया कि उस ने अपना ट्रांसफर जबलपुर करा लिया है. इसलिए अब यहीं रहेगा. तब नीतू बड़ी खुश हुई.

इतना ही नहीं, उस ने राजू को अपना रिश्तेदार बताते हुए अपने मोहल्ले में रहने वाले एक मकान मालिक के खाली कमरे को भाड़े पर उसे दिला दिया. उस के खानेपीने की जिम्मेदारी वह खुद ही करने लगी. नीतू ने राजू से मिलने का एक तरीका खोज लिया था. उस ने पति सोनू से बात कर उसे इस बात के लिए राजी कर लिया था कि ढाई हजार रुपए महीने में राजू को दोनों टाइम खाना बना कर देगी. सोनू ने यह सोच कर हामी भर दी कि थोड़ी सी मेहनत से बैठे ठाले ढाई हजार रुपए महीने की आमदनी बढ़ जाएगी, जो उस की बेटियों की पढ़ाईलिखाई के काम आएगी. सोनू का यही निर्णय उस के लिए घातक साबित हुआ. नीतू को तो बस अपने प्रेमी से मिलने का बहाना चाहिए था. अब वह बेरोकटोक राजू के लिए खाने का टिफिन देने के बहाने उस से मिलनेजुलने लगी थी.

सोनू सुबह 9 बजे ही घर से निकल जाता और दिन भर कपड़े की दुकान में काम कर के थकाहारा रात 9 बजे के बाद ही अपने घर पहुंचता था. नीतू और उस के पति सोनू की उम्र में 12 साल का फासला था. शायद यही वजह थी कि नीतू की शारीरिक जरूरतों को वह पूरा नहीं कर पाता था. इसी का फायदा उठाते हुए नीतू अपने से कम उम्र के गठीले नौजवान राजू के प्यार में पागल हो गई. दोनों का प्यार जिस्मानी तौर पर भी एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगा था. सोनू की गैरमौजूदगी में राजू नीतू को घुमानेफिराने, रेस्टोरेंट ले जा कर खूब पैसा लुटाता था. जब भी राजू को मौका मिलता वह नीतू के घर भी आ धमकता. नीतू भी अपनी बेटियों तनु और गुड्डी को काम के बहाने घर से बाहर भेज देती और दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते.

पति के होते गैरमर्द से संबंध बनाने वाली नीतू को न तो अपनी बेटियों और पति की सुध थी और न ही समाज का डर. प्यार और वासना का यह खेल रोज ही खेला जाने लगा था. कभी राजू के घर तो कभी नीतू के घर. 29 नवंबर, 2020 की सुबह के साढ़े 7 बजे का समय था. जबलपुर के रांझी थाने में फोन पर सूचना मिली कि ग्रे आयरन फाउंडी जीआईएफ के गेट नंबर 2 के पास की नाली में कंबल में लिपटी एक लाश पड़ी है. खबर मिलते ही टीआई आर.के. मालवीय ने पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दी और वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर आसपास के लोगों की भीड़ मौजूद थी. लोगों ने लाश की शिनाख्त कर बताया कि यह पास में ही रहने वाले सोनू ठाकुर की है.

सोनू की गरदन और बाएं हाथ की नस कटी हुई थी. घटनास्थल के पास ही सोनू की पत्नी अपनी दोनों बेटियों को सीने से चिपकाए चीखचीख कर रो रही थी. जब पुलिस ने सोनू के बारे में नीतू से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात को साढ़े 10 बजे यह घर से घूमने की बात कह कर निकले थे. जब देर रात तक नहीं लौटे तो इन्हें फोन किया. फोन स्विच्ड औफ बता रहा था. नीतू से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दी और आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ कर मामले की जांच शुरू कर दी. जांच के दौरान पुलिस टीम के ट्रेनी आईपीएस सिटी अमित कुमार, टीआई आर.के. मालवीय और फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया और पाया कि जीआईएफ गेट नंबर 2 के पास की जिस नाली में सोनू की लाश मिली थी, वहां खून के धब्बों के निशान थे.

सड़क पर मिले खून के निशान का मुआयना करतेकरते पुलिस नाले से ले कर सोनू के घर तक पहुंच गई. जांच टीम को सोनू के घर में भी खून के धब्बे मिले. जबकि नीतू सोनू के रात साढ़े 10 बजे घर से बाहर जाने की बात कर रही थी. पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि नीतू के मोहल्ले में रहने वाले एक युवक राजू से संबंध थे. पुलिस के इसी संदेह की सुई नीतू की तरफ घूमी तो पुलिस ने नीतू को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. पहले नीतू पुलिस को गोलमोल जबाब दे कर पल्ला झाड़ती रही. लेकिन जब पुलिस टीम की महिला आरक्षक ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो जल्द ही उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

नीतू के बयान के आधार पर रांझी पुलिस ने राजू को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. पुलिस पूछताछ में नीतू और राजू ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह नाजायज संबंधों की ऐसी कहानी निकली जो दोनों को गुनाह के रास्ते पर ले जाने को मजबूर कर गई. कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. रौंग नंबर फोन काल से शुरू हुए नीतू और राजू के प्रेम संबंधों की जानकारी धीरेधीरे पूरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बन चुकी थी. नीतू के द्वारा फोन पर की जाने वाली लंबी बातें सोनू के मन में शक की जड़ें जमा चुकी थीं. मगर उसे यह उम्मीद नहीं थी कि जिस्मानी भूख मिटाने के लिए उस की बीवी नीतू किसी गैरमर्द से नाजायज संबधों की कहानी लिख रही थी.

शक होने पर सोनू नीतू पर नजर रखने लगा. एक दिन सोनू ने नीतू को मोबाइल फोन पर किसी से अमर्यादित बातें करते हुए देख लिया तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. अपनी कमजोरी छिपाने के लिए अकसर नीतू रोनेधोने का नाटक करने लगती और सोनू से कहती कि वह उस के चरित्र पर शक कर रहा है. कहते हैं कि चालाक औरतों के आंसू भी किसी हथियार से कम नहीं होते. सोनू नीतू के आंसुओं के आगे हार मान जाता था. राजू नीतू को रोजरोज पैसे और तोहफे ला कर देता और सोनू की गैरमौजूदगी में उसे और उस की बच्चियों को घुमाने ले जाता. नीतू और राजू के नाजायज संबंधों का यह खेल ज्यादा दिनों तक समाज की नजरों से छिप नहीं सका.

दोनों के प्रेम संबंधों की चर्चा मोहल्ले में खुलेआम होने लगी थी. मोहल्ले के कुछ लोगों ने भी सोनू को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में राजू अकसर उस के घर आताजाता है. सोनू को अब इस बात का पक्का यकीन हो गया था कि पत्नी उस के साथ बेवफाई कर रही है. इस बात से सोनू मानसिक रूप से परेशान रहने लगा था. पतिपत्नी के रिश्ते में विश्वासरूपी डोर टूट जाए तो जिंदगी नरक बन जाती है. एक दिन सोनू को अपनी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए अपने सेठ से बोल कर वह दोपहर के वक्त अपने घर आ गया. उस की बेटियां खिलौनों के साथ खेल रही थीं. उस ने कमरे के पास जा कर धीरे से जैसे ही दरवाजा खोला, अंदर का दृश्य देखते ही उस के होश उड़ गए. बिस्तर पर नीतू अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां मना रही थी.

यह देखते ही उस की आंखों में खून सवार हो गया. वह जोर से पत्नी पर चीखा, ‘‘हरामजादी, मेरी गैरमौजूदगी में आशिक के साथ ये गुल खिला रही है.’’

सोनू की चीख सुन कर दोनों हड़बड़ा कर कर अलग हो गए. राजू अपने कपड़े समेट कर भाग खड़ा हुआ और नीतू अपराधबोध से नजरें नीची किए खड़ी थी. उस ने पति से माफी मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का वादा किया. सोनू ने भी उसे माफ कर दिया. नीतू कुछ दिन तो ठीक रही, लेकिन उस से प्रेमी की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए वह उस से फिर मिलनेजुलने लगी. कहा जाता है कि आंखों देखी मक्खी खाई नहीं जाती मगर सोनू सब कुछ जान कर भी पत्नी की वेवफाई को बरदाश्त कर रहा था. कई बार उस के मन में विचार आता कि वेवफा पत्नी को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर कहीं चला जाए, परंतु अपनी मासूम बेटियों के भविष्य की खातिर वह चुप हो कर बैठ जाता.

नीतू भी अपने पति की चुप्पी और मजबूरियों का जम कर फायदा उठा रही थी. सोनू नीतू को जितना समझाता, उतना ही वह राजू से दूरियां बनाने की बजाय नजदीकियां बढ़ा रही थी. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच रोज ही विवाद होने लगा था. रोजरोज पत्नी से विवाद होने पर सोनू को कुछ नहीं सूझ रहा था. वैसे तो सोनू ने जीआईएफ गेट नंबर 2 के सामने खुद का घर बना लिया था. मगर नीतू के बहके कदमों को रोकने के लिए सोनू ने बहुत सोचविचार के बाद यह फैसला कर लिया था कि इसी रविवार कुछ दिनों के लिए वह बीवीबच्चों को ले कर अपने गांव चला जाएगा और गांव में ही कुछ कामधंधा करेगा. उसे भरोसा था कि कुछ दिन नीतू राजू से दूर रहेगी तो प्यार का यह रोग भी दूर हो जाएगा. और नीतू अपनी बेटियों की परवरिश में सब कुछ भूल कर सही रास्ते पर आ जाएगी. वापस गांव लौटने के अपने इस फैसले की जानकारी उस ने नीतू को भी दे दी थी.

इधर नीतू सोनू के गांव लौटने के फैसले से परेशान रहने लगी थी. नीतू को लगने लगा था कि यदि गांव चले गए तो फिर अपने प्रेमी राजू से मिलने को तरस जाएगी. जब नीतू ने राजू से परिवार सहित गांव वापस लौटने की बात कही तो राजू के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं. उसे लगा कि जिस नीतू की खातिर वह अपने गांव से इतनी दूर आ गया, वही अब उस की नजरों से दूर चली जाएगी. राजू की प्लानिंग नीतू के साथ शादी कर के घर बसाने की थी और राजू के इस निर्णय में नीतू की भी सहमति थी. पहले दोनों के मन में विचार आया कि घर से भाग कर शादी कर लें और सुकून से अपनी जिंदगी गुजारें, मगर अपनी मासूम बेटियों की खातिर नीतू कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाई.

राजू का भी जबलपुर शहर में कामधंधा ठीकठाक चल रहा था. उसे पता था कि नई जगह कामधंधा जमाने में कितनी मुश्किल होती है. वह अपने गांव भी नहीं लौटना चाहता था, क्योंकि उसे पता था घर वाले बालबच्चों वाली विवाहिता नीतू को इतनी आसानी से नहीं अपनाएंगे. जैसेजैसे रविवार का दिन नजदीक आ रहा था, नीतू और राजू की चिंता बढ़ती जा रही थी. राजू को पता था कि रविवार के पहले यदि इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो सोनू नीतू को ले कर अपने गांव चला जाएगा. राजू नीतू को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. सोनू उन के प्यार के रास्ते में कांटा बन कर चुभ रहा था. इसी ऊहापोह में दोनों ने सोनू को अपने प्यार की राह से दूर करने का निर्णय ले लिया था.

एकदूसरे के लिए मर मिटने की कसमें खाने वाला यह प्रेमी जोड़ा जुदा होने से बचने के लिए कुछ भी कर गुजरने पर आमादा हो गया था. वासना के इस घिनौने खेल में अंधे हो चुके ये प्रेमी अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बड़ी से बड़ी कुरबानी देने का मन बना चुके थे. आखिरकार उन्होंने तय कर लिया कि अपनी राह के कांटे को वे निकाल फेंकेंगे. राजू और नीतू ने सोनू को हमेशा के लिए उन की जिंदगी से दूर करने का खौफनाक प्लान तैयार कर लिया था. उन्होंने सोच लिया लिया था कि किसी भी तरह सोनू को जान से मार कर सदासदा के लिए एकदूसरे के हो जाएंगे. घटना के दिन सोनू दिन भर घर से बाहर नहीं निकला. वह सोनू की हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाता रहा.

नीतू पूरे दिन सब्जी काटने वाले चाकू की धार तेज करने में लगी रही. नीतू ने तेज धार वाले चाकू को अपने तकिए के नीचे छिपा कर रख लिया था. 28 नवंबर, 2020 की रात रोज की तरह सोनू अपने घर आया तो उस ने दूसरे दिन बस से अपने गांव वापस लौटने की चर्चा नीतू से की तो नीतू ने भी हामी भर दी. यह देख कर सोनू खुश हो गया. उसे लगा कि नीतू को अपने किए पर पछतावा है और गांव चल कर उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी. खाना खाने के बाद कुछ समय वह अपने बेटियों को दुलारता रहा और उस के बाद टहलने के लिए घर से बाहर आ गया. साढ़े 10 बजे वापस आ कर वह बिस्तर पर लेटेलेटे नीतू से प्यारभरी बातें करता रहा.

अपनी दोनों बेटियों को सुलाने के बाद नीतू भी सोनू के बिस्तर पर आ कर प्यार का नाटक करने लगी. दोनों एकदूसरे के आगोश में समा गए और जैसे ही सोनू निढाल हो कर सो गया नीतू आगे की योजना बनाने में लग गई. नीतू की आंखों से उस रात नींद कोसों दूर थी. उस के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उस ने रात करीब एक बजे राजू को फोन कर के अपने घर बुला लिया. राजू के आते ही योजना के मुताबिक नीतू ने गहरी नींद सो रहे सोनू के दोनों पैर पकड़ लिए और राजू ने उस की छाती पर बैठ कर चाकू से उस का गला रेत दिया और एक हाथ की कलाई भी काट दी. कुछ देर छटपटाने के बाद सोनू निढाल हो कर एक तरफ लुढ़क गया. अब दोनों ही सोनू की लाश को ठिकाने लगाने की सोचने लगे. उन्होंने बिस्तर पर गिरे खून के दागधब्बों को पोंछा. फिर लाश एक कंबल में लपेट ली.

इसी बीच नीतू ने घर का दरवाजा खोल कर बाहर का मुआयना किया और मौका देखते ही वे दोनों लाश को ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास बनी नाली में फेंक आए. लाश को ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए और अपने कपड़ों पर लगे खून के दाग साफ करते रहे. दूसरे दिन सुबह नीतू ने घर पर रोनापीटना शुरू कर दिया. चीखपुकार सुन कर मोहल्ले के लोग उस के घर जमा होने लगे तो नीतू ने बताया कि उस के पति रात से घर नहीं लौटे हैं और उन का मोबाइल भी बंद है. सोनू के गायब होने की बात सुन कर मोहल्ले के लोग उस की खोज में लगे हुए थे, तभी किसी ने आ कर बताया कि ग्रे आयरन फाउंडी गेट नंबर 2 के पास सोनू की लाश एक कंबल में लिपटी पड़ी है.

मोहल्ले के लोगों के साथ नीतू भी नाले के पास पहुंच गई. सोनू की लाश देख कर चीखचीख कर घडि़याली आंसू बहाने लगी थी. सोनू की लाश मिलने की खबर से नीतू का प्रेमी राजू भी वहां आ गया था. सोनू की मौत को लेकर मोहल्ले के लोग नीतू के प्रेमी राजू पर भी शक कर रहे थे. इसी बीच वहां पर रांझी थाने की पुलिस ने आ कर कुछ ही घंटों में हत्या की गुत्थी सुलझा दी. रांझी थाना पुलिस ने 24 घंटे में ही सेल्समैन सोनू सिंह हत्याकांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा और ट्रेनी आईपीएस अमित कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर मामले का खुलासा किया. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, मृतक सोनू और आरोपी नीतू और राजू के 3 मोबाइल, एटीएम कार्ड आदि जब्त कर लिए गए.

मृतक सोनू के घर वालों के जबलपुर पहुंचने से पहले नीतू हवालात के अंदर थी, इस वजह से दोनों बेटियों तनु और गुड्डी को पड़ोसियों की देखरेख में रखवाया गया. बाद में गांव से उस के परिजनों के आते ही उन के सुपुर्द किया गया. कथा लिखे जाने तक नीतू और उस का प्रेमी राजू जेल में थे. अपने पति से वेवफाई कर मौजमस्ती की खातिर बनाए गए नाजायज संबंधों की वजह से नीतू ने अपनी जिंदगी के साथ मासूम बेटियों की जिंदगी भी बेनूर कर दी. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Crime Story: अपराध – क्या थी नीलकंठ की गलती

Hindi Crime Story: ऐलिस का साथ पाने के लिए नीलकंठ ने अपनी दम तोड़ती पत्नी सुरमा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की.

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था. Hindi Crime Story

Best Hindi Kahani: शिकार – काव्या के लिए रंजन की नफरत

Best Hindi Kahani: वह एक बार फिर उस के सामने खड़ा था. लंबाचौड़ा काला भुजंग. आंखों से झांकती भूख. एक ऐसी भूख जिसे कोई भी औरत चुटकियों में ताड़ जाती है. उस आदमी के लंबेचौड़े डीलडौल से उस की सही उम्र का पता नहीं लगता था, पर उस की उम्र 30 से 40 साल के बीच कुछ भी हो सकती थी.

वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.

मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.

अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.

उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.

एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’

वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.

‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’

‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’

काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.

आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.

काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.

शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.

आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.

पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.

उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.

उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.

वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.

टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.

पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.

फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.

किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.

धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.

बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.

डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.

पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.

फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.

बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.

20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.

धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.

समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.

काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.

काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी

कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.

अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’

‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’

काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो लेना होगा.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’

रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.

‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’

‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.

काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’

पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.

रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’

काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’

‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’

‘‘बस, एक बार?’’

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’

‘‘कब?’’

‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.

‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.

रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.

काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.

अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.

आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.

‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.

‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.

काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.

थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.

रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.

इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.

अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.

ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.

काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.

काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई. Best Hindi Kahani

Hindi Kahani: जानलेवा चुनौती – अमीर को कौनसा सबक मिला

Hindi Kahani: यह कहानी बंटवारे से पहले अंगरेजी राज की है. उस समय लोगों के स्वास्थ्य बहुत अच्छे हुआ करते थे. बीड़ीसिगरेट, वनस्पति घी का प्रयोग नहीं हुआ करता था. उस जमाने के लोग बहुत निडर होते थे. हत्या, डकैती की कोई घटना हो जाती थी तो पुलिस और जनता उस में रुचि लिया करती थी. गांवों में पुलिस आ जाती तो पूरे गांव में खबर फैल जाती कि थाना आया हुआ है.

एक अंगरेज डिप्टी कमिश्नर इंग्लैंड से रावलपिंडी स्थानांतरित हो कर आया था. जब भी कोई नया अंगरेज अधिकारी आता तो उसे उस इलाके की पूरी जानकारी कराई जाती थी, जिस से वह अच्छा कार्य कर के अपनी सरकार का नाम ऊंचा कर सके. उस अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को बताया गया कि भारत में अनोखी घटनाएं होती हैं, जिन में डाके और चोरियां शामिल हैं. अपराधियों की खोज करना बहुत कठिन होता है. कई घटनाएं ऐसी होती हैं कि सुन कर हैरानी होती है.

नए अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने एसपी से कहा कि मेरे बंगले पर 24 घंटे पुलिस की गारद रहती है साथ ही 2 खूंखार कुत्ते भी. इस के अलावा मेरे इलाके में पुलिस भी रहती है. रात भर लाइट जलती है, क्या ऐसी हालत में भी चोर मेरे घर में चोरी कर सकता है?

एसपी ने जवाब दिया कि ऐसे में भी चोरी की संभावना हो सकती है. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने कहा, ‘‘मैं इस बात को नहीं मानता, इतनी सावधानी के बावजूद कोई चोरी कैसे कर सकता है?’’

एसपी ने कहा, ‘‘अगर आप आजमाना चाहते हैं तो एक काम करें. एक इश्तहार निकलवा दें, जिस में यह लिखा जाए कि अंगरेज डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर अगर कोई चोरी कर के निकल जाए, तो उसे 500 रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा. अगर वह पुलिस या कुत्तों द्वारा मारा जाता है तो अपनी मौत का वह स्वयं जिम्मेदार होगा. अगर वह मौके पर पकड़ा या मारा नहीं गया तो पेश हो कर अपना ईनाम ले सकता है. उसे गिरफ्तार भी नहीं किया जाएगा और न ही कोई सजा दी जाएगी.’’

डिप्टी कमिश्नर ने एसपी की बात मान ली. इश्तहार छपा कर पूरे शहर में लगा दिए गए. इश्तहार निकलने के 2 महीने बाद यह बात उड़तेउड़ते चकवाल गांव भी पहुंची. उस जमाने में गांवों के लोग शाम को चौपालों पर एकत्र हो कर गपशप किया करते थे. चकवाल की एक ऐसी चौपाल पर अमीर नाम का आदमी बैठा हुआ था, जो 10 नंबरी था.

उस ने वहीं डिप्टी कमिश्नर के इश्तहार वाली बात सुनी. उस ने लोगों से पूछा कि 2 महीने बीतने पर भी वहां चोरी करने कोई नहीं आया क्या? एक आदमी ने उसे बताया कि पिंडी से आए एक आदमी ने बताया था कि उस बंगले में किसी की हिम्मत नहीं है जो चोरी कर सके. वहां चोरी करने का मतलब है अपनी मौत का न्यौता देना.

अमीर ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह उस बंगले में चोरी जरूर करेगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को वह ऐसा सबक सिखाएगा कि वह पूरी जिंदगी याद रखेगा. उस ने अपनी योजना के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

कुत्तों के लिए उस ने बैलों के 2 सींग लिए और देशी घी की रोटियों का चूरमा बना कर उन सींगों में इस तरह से भर दिया कि कुत्ते कितनी भी कोशिश करें, रोटी न निकल सकें. उस जमाने में रेल के अलावा सवारी का कोई साधन नहीं था. गांव के लोग 30-40 मील तक की यात्रा पैदल ही कर लिया करते थे.
चूंकि अमीर 10 नंबरी था इसलिए कहीं बाहर जाने से पहले इलाके के नंबरदार से मिलता था. इसलिए अमीर सुबह जा कर उस से मिला, जिस से उसे लगे कि अमीर गांव में ही है. चकवाल से रावलपिंडी का रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था. अमीर दिन में ही पैदल चल कर डिप्टी कमिश्नर की कोठी के पास पहुंच गया.
उस ने संतरियों को कोठी के पास ड्यूटी करते हुए देखा. बंगले के बाहर की दीवार आदमी की कमर के बराबर ऊंची थी. बंगले के अंदर संतरों के पेड़ थे, और बड़ी संख्या में फूलों के पौधे भी थे.

बंगले के चारों ओर लंबेलंबे बरामदे थे, बरामदे के 4-4 फुट चौड़े पिलर थे. अमीर को अंदर जा कर कोई भी चीज चुरानी थी और यह साबित करना था कि भारत में एक ऐसी भी जाति है, जो बहुत दिलेर है और जान की चिंता किए बिना हर चैलेंज कबूल करने के लिए तैयार रहती है.
जब आधी रात हो गई तो वह बंगले की दीवार से लग कर बैठ गया और संतरियों की गतिविधि देखने लगा. जिन सींगों में घी लगी रोटियों का चूरमा भरा था, उस ने वे सींग बड़ी सावधानी से अंदर की ओर रख दिए. वह खुद दीवार से 10-12 गज दूर सरक कर बैठ गया. कुत्तों को घी की सुगंध आई तो वे सींगों में से चूरमा निकालने में लग गए. फिर दोनों कुत्ते सींगों को घसीटते हुए काफी दूर अंदर ले गए.
अब अमीर ने संतरियों को देखा, वे 4 थे. बरामदे में इधर से उधर घूमते हुए थोड़ीथोड़ी देर के बाद एकदूसरे को क्रौस करते थे. संतरी रायफल लिए हुए थे और उन्हें ऐसा लग रहा था कि 2 महीने से भी ज्यादा बीत चुके हैं. अब किसी में यहां आने की हिम्मत नहीं है. वैसे भी वह थके हुए लग रहे थे.

अमीर दीवार फांद कर पौधों की आड़ में बैठ गया. वह ऐसे मौके की तलाश में था जब संतरियों का ध्यान हटे और वह बरामदे से हो कर अंदर चला जाए. उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया. क्रौस करने के बाद जब संतरियों की पीठ एकदूसरे के विपरीत थी, अमीर जल्दी से कूद कर बरामदे के पिलर की आड़ में खड़ा हो गया.

अमीर फुर्तीला था. दौड़ता हुआ ऐसा लगता था, मानो जहाज उड़ा रहा हो. उसे यकीन था कि काम हो जाने के बाद अगर वह बंगले के बाहर निकल गया तो संतरियों का बाप भी उसे पकड़ नहीं पाएगा.
दूसरा अवसर मिलते ही वह कमरे का जाली वाला दरवाजा खोल कर कमरे में पहुंच गया. लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था. चारों ओर देख कर वह बंगले के बीचों बीच वाले कमरे के अंदर पहुंचा. उस ने देखा कमरे के बीच में बहुत बड़ा पलंग था. उस पर एक ओर साहब सोया हुआ था और दूसरी ओर उस की मेम सो रही थी. मध्यम लाइट जल रही थी.

कमरे में लकड़ी की 2-3 अलमारियां थीं, चमड़े के सूटकेस भी थे. उस ने एक सूटकेस खोला, उस में चांदी के सिक्के थे. उस ने एकएक कर के सिक्के अपनी अंटी में भरने शुरू कर दिए. जब अंटी भर गई तो उस ने मजबूती से गांठ बांध ली. वह निकलने का इरादा कर ही रहा था कि उस की नजर सोई हुई मेम के गले की ओर गई, जिस में मोतियों की माला पड़ी थी.

मध्यम रोशनी में भी मोती चमक रहे थे. उस ने सोचा अगर यह माला उतारने में सफल हो गया तो चैलेंज का जवाब हो जाएगा. मेम और साहब गहरी नींद में सोए हुए थे. उस ने देखा कि माला का हुक मेम की गरदन के दाईं ओर था. उस ने चुपके से हुक खोलने की कोशिश की. हुक तो खुल गया, लेकिन मेम ने सोती हुई हालत में अपना हाथ गरदन पर फेरा और साथ ही करवट बदल कर दूसरी ओर हो गई.
अब माला खुल कर उस की गरदन और कंधे के बीच बिस्तर पर पड़ी थी, अमीर तुरंत पलंग के नीचे हो गया. 5 मिनट बाद उसे लगा कि अब मेम फिर गहरी नींद में सो गई. उस ने पलंग के नीचे से निकल कर धीरेधीरे माला को खींचना शुरू कर दिया. माला निकल गई. उस ने माला अपनी लुंगी की दूसरी ओर अंटी में बांध ली.

अमीर जाली वाले दरवाजे की ओट में देखता रहा कि संतरी कब इधरउधर होते हैं. उसे जल्दी ही मौका मिल गया. वह जल्दी से खंभे की ओट में खड़ा हो कर बाहर निकलने का मौका देखने लगा. कुत्ते अभी तक सींग में से रोटी निकालने में लगे हुए थे.

उसे जैसे ही मौका मिला, वह दीवार फांद कर बाहर की ओर कूद कर भागा. संतरी होशियार हो गए और जल्दबाजी में अंटशंट गोलियां चलाने लगे. लेकिन उन की गोली अमीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकीं. वह छोटे रास्ते से पगडंडियों पर दौड़ता हुआ रात भर चल कर अपने घर पहुंच गया.

बाद में अमिर को पता लगा कि गोलियों की आवाज सुन कर मेम और साहब जाग गए थे. जागते ही उन्होंने कमरे में चारों ओर देखा. सिक्कों की चोरी को उन्होंने मामूली घटना समझा. लेकिन जब मेम साहब ने अपनी माला देखी तो उस ने शोर मचा दिया. वह कोई साधारण माला नहीं थी, बल्कि अमूल्य थी.

एसपी साहब और नगर के सभी अधिकारी एकत्र हो गए. उन्होंने नगर का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन चोर का पता नहीं लगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर हैरान था कि इतनी सिक्योरिटी के होते हुए चोरी कैसे हो गई. उस ने कहा कि चोर हमारी माला वापस कर दे और अपनी 5 सौ रुपए के इनाम की रकम ले जाए. साथ में उसे एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा.
इश्तहार लगाए गए, अखबारों में खबर छपाई गई लेकिन 6 माह गुजरने के बाद भी चोर सामने नहीं आया. दूसरी तरफ मेमसाहब तंग कर रही थी कि उसे हर हालत में अपनी माला चाहिए. माला की फोटो हर थाने में भिजवा दी गई. साथ ही कह दिया गया कि चोर को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाएगा.

उधर अमीर चोरी के पैसों से अपने घर का खर्च चलाता रहा, उस समय चांदी का एक रुपया आज के 2-3 सौ से ज्यादा कीमत का था. अमीर के घर में पत्नी और एक बेटी थी, बिना काम किए अमीर को घर बैठे आराम से खाना मिल रहा था. उस ने सोचा, पेश हो कर अपने लिए क्यों झंझट पैदा करे, हो सकता है उसे जेल में डाल दिया जाए.

उस की पत्नी ने माला को साधारण समझ कर एक मिट्टी की डोली में डाल रखा था. एक दिन उस ने उस माला के 2 मोती निकाले और पास के एक सुनार के पास गई. उस ने सुनार से कहा कि उस की बेटी के लिए 2 बालियां बना दे और उन में एक मोती डाल दे. सुनार ने उन मोतियों को देख कर अमीर की पत्नी से कहा, ‘‘यह मोती तो बहुत कीमती हैं. तुम्हें ये कहां से मिले?’’

उस ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मेरा पति गांव के तालाब की मिटटी खोद रहा था, ये मोती मिट्टी में निकले हैं. मैं ने सोचा बेटी के लिए बालियां बनवा कर उस में ये मोती डाल दूं, इसलिए तुम्हारे पास आई हूं.’’ सुनार ने उस की बातों पर यकीन कर के बालियां बना दीं. उस ने अपनी बेटी के कानों में बालियां पहना दीं.
दुर्भाग्य से एक दिन अमीर की बेटी अपने घर के पास बैठी रो रही थी. तभी एक सिपाही जो किसी केस की तफ्तीश के लिए नंबरदार के पास जा रहा था, उस ने रास्ते में अमीर के घर के सामने लड़की को रोते हुए देखा. देख कर ही वह समझ गया कि किसी गरीब की बच्ची है, मां इधरउधर गई होगी. इसलिए रो रही होगी.

लेकिन जब उस की नजर बच्ची के कानों पर पड़ी तो चौंका. उस की बालियों में मोती चमक रहे थे. उसे लगा कि वे साधारण मोती नहीं हैं. उस ने नंबरदार से पूछा कि यह किस की लड़की है. उस ने बता दिया कि वह अमीर की लड़की है, जो दस नंबरी है.

हवलदार को कुछ शक हुआ. उस ने पास जा कर मोतियों को देखा तो वे मोती फोटो वाली उस माला से मिल रहे थे. जो थाने में आया था.

उस ने अमीर को बुलवा कर कहा कि वह बच्ची की बालियां थाने ले जा रहा है, जल्दी ही वापस कर लौटा देगा. थाने ले जा कर उस ने चैक किया तो वे मोती मेम साहब की माला के निकले. अमीर पहले से ही संदिग्ध था, नंबरी भी. उसे थाने बुलवा कर पूछा गया कि ऊपर से 10 मोती उसे कहां से मिले. सब सचसच बता दे, नहीं तो मारमार कर हड्डी पसली एक कर दी जाएगी.
पहले तो अमीर थानेदार को इधरउधर की बातों से उलझाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना बताए छुटकारा नहीं मिलेगा तो उस ने पूरी सचाई उगल दी. उस के घर से माला भी बरामद कर ली गई.
थानेदार बहुत खुश था कि उस ने बहुत बड़ा केस सुलझा लिया है, अब उस की पदोन्नति भी होगी और इनाम भी मिलेगा. अमीर को एसपी रावलपिंडी के सामने पेश किया गया. साथ ही डिप्टी कमिश्नर को सूचना दी गई कि मेम साहब की माला मिल गई है.

डीसी और मेम साहब ने उन्हें तलब कर लिया. मेम साहब ने माला को देख कर कहा कि माला उन्हीं की है. डिप्टी कमिश्नर ने अमीर के हुलिए को देख कर कहा कि यह चोर वह नहीं हो सकता, जिस ने उन के बंगले पर चोरी की है. क्योंकि उस जैसे आदमी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि माला गले से उतार कर ले जाए.

एसपी ने अमीर से कहा कि अपने मुंह से साहब को पूरी कहानी सुनाए. अमीर ने पूरी कहानी सुनाई और बीचबीच में सवालों के जवाब भी देता रहा. उस ने यह भी बताया कि सोते में मेम साहब ने अपनी गरदन पर हाथ भी फेरा था. डिप्टी कमिश्नर ने उस की कहानी सुन कर यकीन कर लिया, साथ ही हैरत भी हुई.
उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने हमें बहुत परेशान किया है, अगर तुम उसी समय हमारे पास आ जाते तो हमें बहुत खुशी होती, लेकिन हम चूंकि वादा कर चुके हैं, इसलिए तुम्हें तंग नहीं किया जाएगा. हम तुम्हें सलाह देते हैं कि बाकी की जिंदगी शरीफों की तरह गुजारो.’’

अमीर ने वादा किया कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा. वह एक साधू का चेला बन गया और उस की बात पर अमल करने लगा. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से नहीं जाता. वह छोटीमोटी चोरी फिर भी करता रहा. धीरेधीरे उस में शराफत आती गई. Hindi Kahani

Best Hindi Kahani: बह गया जहर – एक माफी को तरसता अमर

Best Hindi Kahani: रात के 9 बज रहे थे. बाहर हो रही तेज बारिश से बेपरवाह अमर अपने कमरे में चुपचाप बैठा था. दीवार पर उस की पत्नी शोभना और उस का फोटो टंगा था जिस पर अमर ने किसी की न सुनते हुए माला लगा दी थी. उस का कहना था कि शोभना के साथ वह भी मर चुका है.

आज घर तकरीबन खाली था. ज्यादातर सदस्य और अमर का 4 साल का बेटा रोहित किसी रिश्तेदार की शादी में बाहर गए हुए थे और अगले दिन शाम तक लौटने की बात थी. केवल अमर की भाभी मुग्धा अपने 9 महीने के बेटे विक्की के साथ यहीं रुक गई थी. आखिर उसे अपने जेठ अमर का खयाल भी तो रखना था.

मुग्धा अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह समझती थी. उसे अमर से एक खास लगाव था. अमर का हमेशा अपनों की मदद के लिए खड़े हो जाने वाला रवैया उस के दिल में अमर को खास जगह दिला चुका था.

अमर के यों तनाव में जाने से सब से ज्यादा वही दुखी थी. 2 दिन पहले अमर के पैर में चोट लगी थी और डाक्टर ने रात को नींद की गोली और पेन किलर खाने को दी थी.

गोलियां खाने के बाद उस ने मुग्धा की दी हुई सर्दीखांसी की दवा भी ली और कुछ देर तक शोभना और अपनी तसवीर के सामने भरी आंखें ले कर खड़ा रहा.

उसे शोभना की याद आज कुछ ज्यादा ही सताने लगी थी. जब भी उस की तबीयत बिगड़ती थी तो शोभना सब काम छोड़ कर उस की सेवा में लग जाती थी.

‘आज मेरा खयाल नहीं रखोगी शोभना?’ जैसे अमर के मन ने कहा. खुद को समझाने की कोशिश करते हुए अमर ने पालने में सो रहे विक्की के सिर पर हाथ फेरा और बिस्तर पर लेट गया. दवाओं की वजह से उस की खुमारी बढ़ गई थी.

गहरी नींद की हालत में अमर न जाने क्या अनापशनाप बड़बड़ाए जा रहा था, तभी उस का हाथ किसी चीज से टकराया और कुछ गिरने की आवाज आई. शायद वह पानी का जग था. मगर अमर की आंखें खुल नहीं सकीं. तभी उसे लगा कि शोभना उसे बुला रही है. अमर का कलेजा गरम हो उठा. उस की सांसें तेज हो गईं. उसे जितना पता चल सका, उस के मुताबिक शोभना बिलकुल उस के करीब खड़ी थी. उस ने उसे बुलाना चाहा.

‘‘शोभना…’’ टूटीफूटी आवाज उस के गले से निकल सकी. अमर को महसूस हुआ कि शोभना ने उस के सिर पर हाथ फेरा लेकिन वह वापस जाने लगी. अमर ने किसी तरह उस का हाथ पकड़ लिया और बुरी तरह रो पड़ा, ‘‘नहींनहीं शोभना… अब मत जाओ मुझ से दूर… मैं मर जाऊंगा… शोभना…’’

अमर की आंखें अब भी बंद थीं. उस ने अनुभव किया कि शोभना ने उस के आंसू पोंछे और उस के बगल में लेट गई. अमर उस से लिपटता चला गया. उसे कहीं न कहीं लग रहा था कि वह सपना देख रहा है जो उस की नींद के साथ ही टूट जाएगा. उस के दिल में जमा प्यार बाहर आने को बेताब हो उठा. उस ने एकएक कर उन के बीच पड़ने वाली हर दीवार तोड़ दी. उस के हाथ शोभना के जिस्म को सहलाने, दबाने लगे.

इस के बाद शोभना की कोमल उंगलियों की छुअन अमर को अपनी पीठ पर मिलने लगी. अरसे से अमर के अंदर भरा दहकता लावा रहरह के बह पड़ता. 1, 2, 3… न जाने कितनी बार अमर अपना सबकुछ शोभना पर लुटाता रहा.

शोभना अमर के शरीर से दबी पिसती रही. अमर को किसी बात का डर सता रहा था तो बस अपने जागने का लेकिन समय कब किसी के रोके रुका है.

सुबह की रोशनी खिड़की से कमरे में आने लगी. साथ ही, अमर की चेतना भी. तभी उसे अपनी बांहों में कैद किसी असली औरत की देह महसूस हुई. उस ने चौंक कर आंखें खोलीं तो देखा कि उस ने मुग्धा को ही अपने आगोश में ले रखा था. दोनों में से किसी के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं.

अमर को तो जैसे बिजली का तेज झटका लगा. वह छिटक कर मुग्धा से दूर कमरे के कोने में जा खड़ा हुआ.

‘‘मुग्धा… यह सब… क्या हुआ… मैं ने कैसे कर दिया…’’ कहता हुआ अमर उसी हालत में अपना सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठ गया. उस का दिल बेतहाशा धड़कने लगा. पास ही पालने में विक्की इस सब से निश्चिंत सो रहा था. पास में उस के दूध की खाली बोतल पड़ी थी. जमीन पर पानी का वही जग गिरा हुआ था जो रात उस के हाथ से टकराया था.

कुछ पलों तक यह सब देखते रहने के बाद मुग्धा धीरेधीरे खुद को संभालते हुए उठी और बिस्तर पर पड़ी साड़ी अपने शरीर से लपेट कर वहां से चली गई.

अमर उसी हालत में वहीं बैठा था. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. रात का नशा अब तक हावी था. सो, वह चुपचाप मुग्धा के अगले कदम का इंतजार करने लगा. समाज के सामने लगने वाला बदनामी का धब्बा उसे अपने माथे पर महसूस हो रहा था और कानों में मातापिता और भाई विक्रम द्वारा कहे जाने वाले शब्द गूंजने लगे जो सारी बात जानने के बाद कहेंगे ‘पापी, बेहया, कर दिया न सारे खानदान का नाम खराब.

‘कितना समझाते रहे हम सब इसे, लेकिन सुने कौन? बीवी क्या किसी और की मरती है. एक इसी की स्पैशल बीवी मरी थी जो भाभी के साथ सोना पड़ गया नशे में…’

अमर के हाथ अपने कानों पर जमते गए तभी उसे मुग्धा की आवाज सुनाई दी, ‘‘अमर, मैं फ्रैश होने जा रही हूं, आप भी हो लीजिए, नाश्ता तुरंत बन जाएगा.’’

अमर उस की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका. मुग्धा के जाने के बाद वह भी फ्रैश होने चला गया. नाश्ता परोसते समय मुग्धा का चेहरा सामान्य था, लेकिन अमर अपनी नजरें नीची किए रहा और आज समय पर अपनी दुकान के लिए निकल गया.

शोभना के गुजरने के बाद से उस का दुकान पर जाना अनियमित सा हो गया था. आज भी वहां जाने का मकसद कमाई न हो कर मुग्धा के सामने से हटा रहना था.

शाम होने को आई. दोपहर के खाने के लिए भी अमर घर नहीं लौटा. पापा का फोन आया कि वे लोग लौट आए हैं.

अमर का दिमाग फिर सन्नसन्न करने लगा. रात को विक्रम का फोन आने पर वह घर के लिए चला.

घर आते ही रोहित उस से लिपट गया. अमर सब से नजरें चुरा रहा था लेकिन घर का माहौल बिलकुल सही लगा.

उस रात नींद आंखों से दूर रही. इसी तरह तकरीबन पूरा हफ्ता बीत गया. अमर का मन अपनी उस रात की गलती के लिए कचोटता रहता था.

एक शाम उस ने मौका पा कर छत पर मुग्धा को बुलाया और सिर झुका कर कहने लगा, ‘‘मुग्धा, मैं बहुत कमजोर निकला. मैं इस घर के हर सदस्य के साथसाथ शोभना का भी अपराधी हूं. मेरी कमजोरी मुझे किसी से कुछ कहने नहीं दे रही, लेकिन मैं जानता हूं कि तुम कमजोर नहीं हो, तुम चुप मत रहो, सच बता दो सब को, मुझे सजा मिलनी ही चाहिए.’’

मुग्धा गौर से अमर को देखती रही, फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘अमर, बीमारी तन की हो या मन की, वह केवल कमजोर करना ही जानती है. शोभना दीदी के जाने के बाद आप का मन बीमार हो गया था. आप टूटते जा रहे थे. उस रात मैं ने महसूस किया कि आप के अंदर के मर्द को एक औरत के सहारे की जरूरत है.’’

अमर अब तक अपना सिर उठा नहीं पाया था. मुग्धा कहती रही, ‘‘मेरे अंदर की औरत आप को वह सहारा देने से खुद को रोक नहीं पाई. आप के अंदर मैं ने हमेशा अपना बड़ा भाई, कभी पिता, तो कभी दोस्त देखा है. इस के साथसाथ मैं ने अकसर आप के अंदर अपने प्रेमी को भी देखा, प्रेम किसी शरीर पर आश्रित नहीं होता, उस की सीमा अनंत होती है.’’

इतना कह कर मुग्धा ने अमर का चेहरा पकड़ कर उस की आंखों में आंखें डालीं और कहा, ‘‘मर्द टूटा हुआ और कमजोर अच्छा नहीं लगता, फिर आप तो मेरे कंप्लीट मैन हैं. आप को जोड़ने के लिए मैं ने अपना थोड़ा सा कुछ हिस्सा न्योछावर कर दिया, अब मेरा मान रखिए.’’

‘‘लेकिन, मुग्धा…’’ अमर ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मुग्धा ने उसे रोक दिया और बोली, ‘‘आप यही कहना चाहते हैं न कि जब आप के छोटे भाई को यह सब पता चलेगा तो क्या होगा? इस का जवाब यही है कि मैं अपने पति की थी, हूं और हमेशा उन्हीं की रहूंगी, आप के और मेरे बीच जो भी हुआ, वह एक बिखरी हुई जिंदगी को जोड़ने की मेरी कोशिश थी, कोई दैहिक खिंचाव नहीं…

‘‘हां, यह भी सच है कि मेरी यह भावना शायद हर कोई न समझ सके, इसलिए उस रात की बात दीवारों के दायरे में ही रहने दीजिए.’’

इतना कह कर मुग्धा नीचे को चल पड़ी. अमर के मन में भरा तनाव का जहर आंखों के रास्ते बाहर बहने लगा. Best Hindi Kahani

Best Hindi Story: नाक – जब रूपबाई फंसी बेइज्जती के दलदल में

Best Hindi Story: मां की बात सुन कर रूपबाई ठगी सी खड़ी रह गई. उसे अपने पैरों के नीचे से धरती खिसकती नजर आई. उस के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. रूपबाई ने तो समझा था कि यह बात सुन कर मां उस की मदद करेगी, समाज में फैली गंदी बातों से, लोगों से लड़ने के लिए उस का हौसला बढ़ाएगी और जो एक नई परेशानी उस के पेट में पल रहे बच्चे की है, उस का कोई सही हल निकालेगी. पर मां ने तो उस से सीधे मुंह बात तक नहीं की. उलटे लाललाल आंखें निकाल कर वे चीखीं, ‘‘किसी कुएं में ही डूब मरती. बापदादा की नाक कटा कर इस पाप को पेट में ले आई है, नासपीटी.’’

मां की बातें सुन कर रूपबाई जमीन पर बैठ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. उसे केवल मां का ही सहारा था और मां ही उस से इस तरह नफरत करने लगेंगी, तो फिर कौन उस का अपना होगा इस घर में.

पिताजी तो उसी रामेश्वर के रिश्तेदार हैं, जिस ने जबरदस्ती रूपबाई की यह हालत कर दी. अगर पिताजी को पता चल गया, तो न जाने उस के साथ क्या सुलूक करेंगे. रूपबाई की मां सोनबाई जलावन लेने खेत में चली गई. रूपबाई अकेली घर के आंगन में बैठी आगे की बातों से डर रही थी. हर पल उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उस की आंखों में आंसू भर आए थे. मन हो रहा था कि वह आज जोरजोर से रो कर खुद को हलका कर ले.

रामेश्वर रूपबाई का चाचा था. वह और रामेश्वर चारा लाने रोज सरसों के खेत में जाते थे. रामेश्वर चाचा की नीयत अपनी भतीजी पर बिगड़ गई और वह मौके की तलाश में रहने लगा.

एक दिन सचमुच रामेश्वर को मौका मिल गया. उस दिन आसपास के खेतों में कोई नहीं था. रामेश्वर ने मौका देख कर सरसों के पत्ते तोड़ती रूपबाई को जबरदस्ती खेत में पटक दिया. वह गिड़गिड़ाती रही और सुबकती रही, पर वह नहीं माना और उसे अपनी हवस का शिकार बना कर ही छोड़ा. घर आने के बाद रूपबाई के मन में तो आया कि वह मां और पिताजी को साफसाफ सारी बातें बता दे, पर बदनामी के डर से चुप रह गई.

इस के बाद रामेश्वर रोज जबरदस्ती उस के साथ मुंह काला करने लगा. इस तरह चाचा का पाप रूपबाई के पेट में आ गया.

कुछ दिन बाद रूपबाई ने महसूस किया कि उस का पेट बढ़ने लगा है. मशीन से चारा काटते समय उस ने यह बात रामेश्वर को भी बताई, ‘‘तू ने जो किया सो किया, पर अब कुछ इलाज भी कर.’’

‘‘क्या हो गया?’’ रामेश्वर चौंका. ‘‘मेरे पेट में तेरा बच्चा है.’’

‘‘क्या…?’’ ‘‘हां…’’

‘‘मैं तो कोई दवा नहीं जानता, अपनी किसी सहेली से पूछ ले.’’ अपनी किसी सहेली को ऐसी बात बताना रूपबाई के लिए खतरे से खाली नहीं था. हार कर उस ने यह बात अपनी मां को ही बता दी, पर मां उसे हिम्मत देने के बजाय उलटा डांटने लगीं.

शाम को रूपबाई का पिता रतन सिंह काम से वापस आ गया. वह दूर पहाड़ी पर काम करने जाता था. आते ही वह चारपाई पर बैठ गया. उसे देख कर रूपबाई का पूरा शरीर डर के मारे कांप रहा था. खाना खाने के बाद सोनबाई ने सारी बातें अपने पति को बता दीं.

यह सुन कर रतन सिंह की आंखें अंगारों की तरह दहक उठीं. वह चिल्लाया, ‘‘किस का पाप है तेरे पेट में?’’

‘‘तुम्हारे भाई का.’’ ‘‘रामेश्वर का?’’

‘‘हां, रामेश्वर का. तुम्हारे सगे भाई का,’’ सोनबाई दबी जबान में बोली. ‘‘अब तक क्यों नहीं बताया?’’

‘‘शर्म से नहीं बताया होगा, पर अब तो बताना जरूरी हो गया है.’’ इस बात पर रतन सिंह का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ, फिर उस ने पूछा, ‘‘अब…?’’

‘‘अब क्या… किसी को पता चल गया, तो पुरखों की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’ ‘‘फिर…?’’

‘‘फिर क्या, इसे जहर दे कर मार डालो. गोली मेरे पास रखी हुई है.’’ ‘‘और रामेश्वर…’’

‘‘उस से कुछ मत कहो. वह तो मर्द है. लड़की मर जाए, तो क्या जाता है? ‘‘अगर दोनों को जहर दोगे, तो सब को पता चल जाएगा कि दाल में कुछ काला है.’’

‘‘तो बुला उसे.’’ सोनबाई उठी और दूसरे कमरे में सो रही रूपबाई को बुला लाई. वह आंखें झुकाए चुपचाप बाप की चारपाई के पास आ कर खड़ी हो गई.

रतन सिंह चारपाई पर बैठ गया. रूपबाई उस के पैरों पर गिर कर फफक कर रो पड़ी. रतन सिंह ने उस की कनपटी पर जोर से एक थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘अब घडि़याली आंसू मत बहा. एकदम चुप हो जा और चुपचाप जहर की इस गोली को खा ले.’’

यह सुन कर रूपबाई का गला सूख गया. उसे अपने पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह थरथर कांप उठी और अपने बाएं हाथ को कनपटी पर फेरती रह गई. झन्नाटेदार थप्पड़ से उस का सिर चकरा गया था. रात का समय था. सारा गांव सन्नाटे में डूबा हुआ था. अपनेअपने कामों से थकेहारे लोग नींद के आगोश में समाए हुए थे.

गांव में सिर्फ उन तीनों के अलावा एक रामेश्वर ही था, जो जाग रहा था. वह दूसरे कमरे में चुपचाप सारी बातें सुन रहा था. पिता की बात सुन कर कुछ देर तक तो रूपबाई चुप रही, फिर बोली, ‘‘जहर की गोली?’’

तभी उस की मां चीखी, ‘‘हां… और क्या कुंआरी ही बच्चा जनेगी? तू ने नाक काट कर रख दी हमारी. अगर ऐसा काम हो गया था, तो किसी कुएं में ही कूद जाती.’’ ‘‘मगर इस में मेरी क्या गलती है? गलती तो रामेश्वर चाचा की है. मैं उस के पैर पड़ी थी, खूब आंसू रोई थी, लेकिन वह कहां माना. उस ने तो जबरदस्ती…’’

‘‘अब ज्यादा बातें मत बना…’’ रतन सिंह गरजा, ‘‘ले पकड़ इस गोली को और खा जा चुपचाप, वरना गरदन दबा कर मार डालूंगा.’’ रूपबाई समझ गई कि अब उस का आखिरी समय नजदीक है. फिर शर्म या झिझक किस बात की? क्यों न हिम्मत से काम ले?

वह जी कड़ा कर के बोली, ‘‘मैं नहीं खाऊंगी जहर की गोली. खिलानी है, तो अपने भाई को खिलाओ. तुम्हारी नाक तो उसी ने काटी है. उस ने जबरदस्ती की थी मेरे साथ, फिर उस के किए की सजा मैं क्यों भुगतूं?’’ ‘‘अच्छा, तू हमारे सामने बोलना भी सीख गई है?’’ कह कर रतन सिंह ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर उसे चारपाई पर पटक दिया.

सोनबाई रस्सी से उस के हाथपैर बांधने लगी. रूपबाई ने इधरउधर भागने की कोशिश की, चीखीचिल्लाई, पर सब बेकार गया. उस बंद कोठरी में उस की कोई सुनने वाला नहीं था. जब रूपबाई के हाथपैर बंध गए, तो वह अपने पिता से गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे मत मारिए पिताजी, मैं आप के पैर पड़ती हूं. मेरी कोई गलती नहीं है.’’

मगर रतन सिंह पर इस का कोई असर नहीं हुआ. रूपबाई छटपटाती रही. रस्सी से छिल कर उस की कलाई लहूलुहान हो गई थी. वह भीगी आंखों से कभी मां की ओर देखती, तो कभी पिता की ओर.

अचानक रतन सिंह ने रूपबाई के मुंह में जहर की गोली डाल दी. लेकिन उस ने जोर लगा कर गोली मुंह से बाहर फेंक दी. गोली सीधी रतन सिंह की नाक से जा टकराई. वह गुस्से से तमतमा गया. उस ने रूपबाई के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. रूपबाई के गाल पर हाथ का निशान छप गया. उस का सिर भन्ना उठा. वह सोचने लगी, ‘आदमी इतना निर्दयी क्यों हो जाता है? वहां मेरे साथ जबरदस्ती बलात्कार किया गया और यहां इस पाप को छिपाने के लिए जबरदस्ती मारा जा रहा है. अब तो मर जाना ही ठीक रहेगा.’

मरने की बात सोचते ही रूपबाई की आंखों में आंसू भर आए. आंसुओं पर काबू पाते हुए वह चिल्लाई, ‘‘पिताजी, डाल दो गोली मेरे मुंह में, ताकि मेरे मरने से तुम्हारी नाक तो बच जाए.’’ रतन सिंह ने उस के मुंह में गोली डाल दी. वह उसे तुरंत निगल गई. पहले उसे नशा सा आया और फिर जल्दी ही वह हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गई.

रतन सिंह और सोनबाई ने उस के हाथपैर खोले और उस की लाश को दूसरे कमरे में रख दिया. सारी रात खामोशी रही. रामेश्वर बगल के कमरे में अपने किए के लिए खुद से माफी मांगता रहा.

सुबह होते ही रतन सिंह और सोनबाई चुपके से रूपबाई के कमरे में गए और दहाड़ें मार कर रोने लगे. रामेश्वर भी अपने कमरे से निकल आया. फिर वे तीनों रोने लगे. रोनेधोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए कि क्या हो गया?

‘‘कोई सांप डस गया मेरी बच्ची को,’’ सोनबाई ने छाती पीटते हुए कहा और फिर वह दहाड़ें मार कर रो पड़ी. Best Hindi Story

Best Story In Hindi: जुल्म की सजा – समरथ सिंह की कारगुजारी

Best Story In Hindi: उत्तर प्रदेश के बदायूं, शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिलों की सीमाओं को छूता, रामगंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ गांव पिरथीपुर यों तो बदायूं जिले का अंग है, पर जिले तक इस की पहुंच उतनी ही मुश्किल है, जितनी मुश्किल शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिला हैडक्वार्टर तक की है.

कभी इस गांव की दक्षिण दिशा में बहने वाली रामगंगा ने जब साल 1917 में कटान किया और नदी की धार पिरथीपुर के उत्तर जा पहुंची, तो पिरथीपुर बदायूं जिले से पूरी तरह कट गया. गांव के लोगों द्वारा नदी पार करने के लिए गांव के पूरब और पश्चिम में 10-10 कोस तक कोई पुल नहीं था, इसलिए उन की दुनिया पिरथीपुर और आसपास के गांवों तक ही सिमटी थी, जिस में 3 किलोमीटर पर एक प्राइमरी स्कूल, 5 किलोमीटर पर एक पुलिस चौकी और हफ्ते में 2 दिन लगने वाला बाजार था.

सड़क, बिजली और अस्पताल पिरथीपुर वालों के लिए दूसरी दुनिया के शब्द थे. सरकारी अमला भी इस गांव में सालों तक नहीं आता था.

देश और प्रदेश में चाहे जिस राजनीतिक पार्टी की सरकार हो, पर पिरथीपुर में तो समरथ सिंह का ही राज चलता था. आम चुनाव के दिनों में राजनीतिक पार्टियों के जो नुमाइंदे पिरथीपुर गांव तक पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते थे, वे भी समरथ सिंह को ही अपनी पार्टी का झंडा दे कर और वोट दिलाने की अपील कर के लौट जाते थे, क्योंकि वे जानते थे कि पूरे गांव के वोट उसी को मिलेंगे, जिस की ओर ठाकुर समरथ सिंह इशारा कर देंगे.

पिरथीपुर गांव की ज्यादातर जमीन रेतीली और कम उपजाऊ थी. समरथ सिंह ने उपजाऊ जमीनें चकबंदी में अपने नाम करवा ली थीं. जो कम उपजाऊ जमीन दूसरे गांव वालों के नाम थी, उस का भी ज्यादातर भाग समरथ सिंह के पास गिरवी रखा था.

समरथ सिंह के पास साहूकारी का लाइसैंस था और गांव का कोई बाशिंदा ऐसा नहीं था, जिस ने सारे कागजात पर अपने दस्तखत कर के या अंगूठा लगा कर समरथ सिंह के हवाले न कर दिया हो. इस तरह सभी गांव वालों की गरदनें समरथ सिंह के मजबूत हाथों में थीं.

पिरथीपुर गांव में समरथ सिंह से आंख मिला कर बात करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी. पासपड़ोस के ज्यादातर लोग भी समरथ सिंह के ही कर्जदार थे.

समरथ सिंह की पहुंच शासन तक थी. क्षेत्र के विधायक और सांसद से ले कर उपजिलाधिकारी तक पहुंच रखने वाले समरथ सिंह के खिलाफ जाने की हिम्मत पुलिस वाले भी नहीं करते थे.

समरथ सिंह के 3 बेटे थे. तीनों बेटों की शादी कर के उन्हें 10-10 एकड़ जमीन और रहने लायक अलग मकान दे कर समरथ सिंह ने उन्हें अपने राजपाट से दूर कर दिया था. उन की अपनी कोठी में पत्नी सीता देवी और बेटी गरिमा रहते थे.

गरिमा समरथ सिंह की आखिरी औलाद थी. वह अपने पिता की बहुत दुलारी थी. पूरे पिरथीपुर में ठाकुर समरथ सिंह से कोई बेखौफ था, तो वह गरिमा ही थी.

सीता देवी को समरथ सिंह ने उन के बैडरूम से ले कर रसोईघर तक सिमटा दिया था. घर में उन का दखल भी रसोई और बेटी तक ही था. इस के आगे की बात करना तो दूर, सोचना भी उन के लिए बैन था.

कोठी के पश्चिमी भाग के एक कमरे में समरथ सिंह सोते थे और उसी कमरे में वे जमींदारी, साहूकारी, नेतागीरी व दादागीरी के काम चलाते थे. वहां जाने की इजाजत सीता देवी को भी नहीं थी.

समरथ सरकार के नाम से पूरे पिरथीपुर में मशहूर समरथ सिंह की कोठी में बाहरी लोगों का आनाजाना पश्चिमी दरवाजे से ही होता था. इस दरवाजे से बरामदे में होते हुए उन के दफ्तर और बैडरूम तक पहुंचा जा सकता था.

कोठी के पश्चिमी भाग में दखल देना परिवार वालों के लिए ही नहीं, बल्कि नौकरचाकरों के लिए भी मना था.

अपने पिता की दुलारी गरिमा बचपन से ही कोठी के उस भाग में दौड़तीखेलती रही थी, इसलिए बहुत टोकाटाकी के बाद भी वह कभीकभार उधर चली ही जाती थी.

गांव की हर नई बहू को ‘समरथ सरकार’ से आशीर्वाद लेने जाने की प्रथा थी. कोठी के इसी पश्चिमी हिस्से में समरथ सिंह जितने दिन चाहते, उसे आशीर्वाद देते थे और जब उन का जी भर जाता था, तो उपहार के तौर पर गहने दे कर उसे पश्चिमी दरवाजे से निकाल कर उस के घर पहुंचा दिया जाता था.

आतेजाते हुए कभी गांव की किसी बहूबेटी पर समरथ सिंह की नजर पड़ जाती, तो उसे भी कोठी देखने का न्योता भिजवा देते, जिसे पा कर उसे कोठी में हर हाल में आना ही होता था.

समरथ सिंह की इमेज भले ही कठोर और बेरहम रहनुमा की थी, पर वे दयालु भी कम नहीं थे. खुशीखुशी आशीर्वाद लेने वालों पर उन की कृपा बरसती थी. अनेक औरतें जबतब उन का आशीर्वाद लेने के लिए कोठी का पश्चिमी दरवाजा खटखटाती रहती थीं, ताकि उन के

पति को फसल उपजाने के लिए अच्छी जमीन मिल सके, दवा व इलाज और शादीब्याह के खर्च वगैरह को पूरा करने हेतु नकद रुपए मिल सकें.

लेकिन बात न मानने से समरथ सिंह को सख्त चिढ़ थी. राधे ने अपनी बहू को आशीर्वाद लेने के लिए कोठी पर भेजने से मना कर दिया था. उस की बहू को समरथ के आदमी रात के अंधेरे में घर से उठा ले गए और तीसरे दिन उस की लाश कुएं में तैरती मिली थी.

अपनी नईनवेली पत्नी की लाश देख कर राधे का बेटा सुनील अपना आपा खो बैठा और पूरे गांव के सामने समरथ सिंह पर हत्या का आरोप लगाते हुए गालियां बकने लगा.

2 घंटे के अंदर पुलिस उसे गांव से उठा ले गई और पत्नी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. बाद में ठाकुर के आदमियों की गवाही पर उसे उम्रकैद की सजा हो गई.

राधे की पत्नी अपने एकलौते बेटे की यह हालत बरदाश्त न कर सकी और पागल हो गई. इस घटना से घबरा कर कई इज्जतदार परिवार पिरथीपुर गांव से भाग गए.

समरथ सिंह ने भी बचेखुचे लोगों से साफसाफ कह दिया कि पिरथीपुर में समरथ सिंह की मरजी ही चलेगी. जिसे उन की मरजी के मुताबिक जीने में एतराज हो, वह गांव छोड़ कर चला जाए. इसी में उस की भलाई है.

समरथ सिंह की बेटी गरिमा जब थोड़ी बड़ी हुई, तो समरथ सिंह ने उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. अब वह दिनरात घर में ही रहती थी.

गरमी के मौसम में एक दिन दोपहर में उसे नींद नहीं आ रही थी. वह लेटेलेटे ऊब गई, तो अपने कमरे से बाहर निकल कर छत पर चली गई और टहलने लगी.

अचानक उसे कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर कुछ आहट सुनाई दी. उस ने झांक कर देखा, तो दंग रह गई. समरथ सिंह का खास लठैत भरोसे एक औरत को ले कर आया था. कुछ देर बाद कोठी का पश्चिमी दरवाजा बंद हो गया और भरोसे दरवाजे के पास ही चारपाई डाल कर कोठी के बाहर सो गया.

गरिमा छत से उतर कर दबे पैर कोठी के बैन इलाके में चली गई. अपने पिता के बैडरूम की खिड़की के बंद दरवाजे के बीच से उस ने कमरे के अंदर झांका, तो दंग रह गई. उस के पिता नशे में धुत्त एक लड़की के कपड़े उतार रहे थे. वह लड़की सिसकते हुए कपड़े उतारे जाने का विरोध कर रही थी.

जबरन उस के सारे कपड़े उतार कर उन्होंने उस लड़की को किसी बच्चे की तरह अपनी बांहों में उठा कर चूमना शुरू कर दिया. फिर वे पलंग की ओर बढ़े और उसे पलंग पर लिटा कर किसी राक्षस की तरह उछल कर उस पर सवार हो गए.

गरिमा सांस रोके यह सब देखती रही और पिता का शरीर ढीला पड़ते ही दबे पैर वहां से निकल कर अपने कमरे में आ गई. उसे यह देख कर बहुत अच्छा लगा और बेचैनी भी महसूस हुई.

अब गरिमा दिनभर सोती और रात को अपने पिता की करतूत देखने के लिए बेचैन रहती.

अपने पिता की रासलीला देखदेख कर गरिमा भी काम की आग से भभक उठती थी.

एक दिन समरथ सिंह भरोसे को ले कर किसी काम से जिला हैडक्वार्टर गए हुए थे. दोपहर एकडेढ़ बजे उन का कारिंदा भूरे, जिस की उम्र तकरीबन 20 साल होगी, हलबैल ले कर आया.

बैलों को बांध कर वह पशुशाला के बाहर लगे नल पर नहाने लगा, तभी गरिमा की निगाह उस पर पड़ गई. वह देर तक उस की गठीली देह देखती रही.

जब भूरे कपड़े पहन कर अपने घर जाने लगा, तो गरिमा ने उसे बुलाया. भूरे कोठरी के दरवाजे पर आया, तो गरिमा ने उसे अपने साथ आने को कहा.

गरिमा को पता था कि उस की मां भोजन कर के आराम करने के लिए अपने कमरे में जा चुकी है.

गरिमा भूरे को ले कर कोठी के पश्चिमी दरवाजे की ओर बढ़ी, तो भूरे ठिठक कर खड़ा हो गया. गरिमा ने लपक कर उस का गरीबान पकड़ लिया और घसीटते हुए अपने पिता के कमरे की ओर ले जाने लगी.

भूरे कसाई के पीछेपीछे बूचड़खाने की ओर जाती हुई गाय के समान ही गरिमा के पीछेपीछे चल पड़ा.

पिता के कमरे में पहुंच कर गरिमा ने दरवाजा बंद कर लिया और भूरे को कपड़े उतारने का आदेश दिया. भूरे उस का आदेश सुन कर हैरान रह गया.

उसे चुप खड़ा देख कर गरिमा ने खूंटी पर टंगा हंटर उतार लिया और दांत पीसते हुए कहा, ‘‘अगर अपना भला चाहते हो, तो जैसा मैं कह रही हूं, वैसा ही चुपचाप करते जाओ.’’

भूरे ने अपने कपड़े उतार दिए, तो गरिमा ने अपने पिता की ही तरह उसे चूमनाचाटना शुरू कर दिया. फिर पलंग पर ढकेल कर अपने पिता की तरह उस पर सवार हो गई.

भूरे कहां तक खुद पर काबू रखता? वह गरिमा पर उसी तरह टूट पड़ा, जिस तरह समरथ सिंह अपने शिकार पर टूटते थे.

गरिमा ने कोठी के पश्चिमी दरवाजे से भूरे को इस हिदायत के साथ बाहर निकाल दिया कि कल फिर इसी समय कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर आ जाए. साथ ही, यह धमकी भी दी कि अगर वह समय पर नहीं आया, तो उसकी शिकायत समरथ सिंह तक पहुंच जाएगी कि उस ने उन की बेटी के साथ जबरदस्ती की है.

भूरे के लिए एक ओर कुआं था, तो दूसरी ओर खाई. उस ने सोचा कि अगर वह गरिमा के कहे मुताबिक दोपहर में कोठी के अंदर गया, तो वह फिर अगले दिन आने को कहेगी और एक न एक दिन यह राज समरथ सिंह पर खुल जाएगा और तब उस की जान पर बन आएगी. मगर वह गरिमा का आदेश नहीं मानेगा, तो वह भूखी शेरनी उसे सजा दिलाने के लिए उस पर झूठा आरोप लगाएगी और उस दशा में भी उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा.

मजबूरन भूरे न चाहते हुए भी अगले दिन तय समय पर कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर हाजिर हो गया, जहां गरिमा उस का इंतजार करती मिली.

अब यह खेल रोज खेला जाने लगा. 6 महीने बीततेबीतते गरिमा पेट से हो गई. भूरे को जिस दिन इस बात का पता चला. वह रात में ही अपना पूरा परिवार ले कर पिरथीपुर से गायब हो गया.

गरिमा 3-4 महीने से ज्यादा यह राज छिपाए न रख सकी और शक होने पर जब सीता देवी ने उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो उस ने अपनी मां के सामने पेट से होना मान लिया. फिर भी उस ने भूरे का नाम नहीं लिया.

सीता देवी ने नौकरानी से समरथ सिंह को बुलवाया और उन्हें गरिमा के पेट से होने की जानकारी दी, तो वे पागल हो उठे और सीता देवी को ही पीटने लगे. जब वे उन्हें पीटपीट कर थक गए, तो गरिमा को आवाज दी.

2-3 बार आवाज देने पर गरिमा डरते हुए समरथ सिंह के सामने आई. उन्होंने रिवाल्वर निकाल कर गरिमा को गोली मार दी.

कुछ देर तक समरथ सिंह बेटी की लाश के पास बैठे रहे, फिर सीता देवी से पानी मांग कर पिया. तभी फायर की आवाज सुन कर उन के तीनों बेटे और लठैत भरोसे दौड़े हुए आए.

समरथ सिंह ने उन्हें शांत रहने का इशारा किया, फिर जेब से रुपए निकाल कर बड़े बेटे को देते हुए कहा, ‘‘जल्दी से जल्दी कफन का इंतजाम करो और 2 लोगों को लकड़ी ले कर नदी किनारे भेजो. खुद भी वहीं पहुंचो.’’

समरथ सिंह के बेटे पिता की बात सुन कर आंसू पोंछते हुए भरोसे के साथ बाहर निकल गए.

एक घंटे के अंदर लाश ले कर वे लोग नदी किनारे पहुंचे. चिता के ऊपर बेटी को लिटा कर समरथ सिंह जैसे ही आग लगाने के लिए बढ़े, तभी वहां पुलिस आ गई और दारोगा ने उन्हें चिता में आग लगाने से रोक दिया.

यह सुनते ही समरथ सिंह गुस्से से आगबबूला हो गए और तकरीबन चीखते हुए बोले, ‘‘तुम अपनी हद से आगे बढ़ रहे हो दारोगा.’’

‘‘नहीं, मैं अपना फर्ज निभा रहा हूं. राधे ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि आप ने अपनी बेटी की गोली मार कर हत्या कर दी है, इसलिए पोस्टमार्टम कराए बिना लाश को जलाया नहीं जा सकता.’’

समरथ सिंह ने दारोगा के पीछे खड़े राधे को जलती आंखों से देखा. वे कुछ देर गंभीर चिंता में खड़े रहे, फिर रिवाल्वर से अपने सिर में गोली मार ली.

इस घटना को देख कर वहां मौजूद लोग सन्न रह गए, तभी पगली दौड़ती हुई आई और दम तोड़ रहे समरथ सिंह के पास घुटनों के बल बैठ कर ताली बजाते हुए बोली, ‘‘देखो ठाकुर, तेरे जुल्मों की सजा तेरे साथ तेरी औलाद को भी भोगनी पड़ी. खुद ही जला कर अपनी सोने की लंका राख कर ली.’’

जैसेजैसे समरथ सिंह की सांस धीमी पड़ रही थी, वहां मौजूद लोगों में गुलामी से छुटकारा पाने का एहसास तेज होता जा रहा था. Best Story In Hindi

Hindi Crime Story: नागिन से जहरीली औरत

Hindi Crime Story: घड़ी का अलार्म बजने के साथ ही संगीता सो कर उठ गई. उस समय सुबह के साढ़े 5 बजे थे. संगीता के उठने का रोज यही समय था. उस के पति मुकेश की लुधियाना की दुर्गा कालोनी स्थित अपने घर में ही किराने की दुकान थी. इस कालोनी में अधिकांश मजदूर तबके के लोग रहते थे, जो सुबह ही रोजमर्रा की चीजें दूध, चीनी, चायपत्ती आदि सामान लेने उस की दुकान पर आते थे, इसलिए वह सुबह जल्दी दुकान खोल लेता था. लेकिन उस दिन उस ने दुकान अभी तक नहीं खोली थी.

मुकेश छत पर सो रहा था. गैस चूल्हे पर चाय कापानी चढ़ाने के बाद संगीता ने पति को जगाने के लिए बड़ी बेटी को छत पर भेजा. दरअसल एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस का दिन होने की वजह से पूरे परिवार ने छत पर पतंगें उड़ाने के साथ हुल्लड़बाजी की थी.

उसी मोहल्ले में रहने वाला मुकेश का छोटा भाई रमेश भी अपनी पत्नीबच्चों के साथ वहां आ गया था, लेकिन रात को खाना खाने के बाद वह पत्नीबच्चों सहित अपने घर चला गया था. संगीता अपने बच्चों के साथ सोने के लिए नीचे गई थी. जबकि मुकेश छोटे बेटे करन के साथ छत पर ही सो गया था.

मुकेश को जगाने के लिए बेटी जब छत पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर उस की चीख निकल गई. बेटी के चीखने की आवाज सुन कर संगीता छत पर गई तो वह भी अपनी चीख नहीं रोक सकी. क्योंकि उस का पति मुकेश लहूलुहान पड़ा था. उस की मौत हो चुकी थी. संगीता रोने लगी. उस की और बेटी की रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. तभी किसी ने पुलिस को और मुकेश के भाई रमेश को यह खबर कर दी.

रमेश चूंकि उसी मोहल्ले में रहता था, इसलिए भाई की हत्या की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. बड़े भाई की लाश देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि रात को तो सब ने मिल बैठ कर खाना खाया था.कुछ ही देर में थाना फोकल पौइंट के इंसपेक्टर अमनदीप सिंह बराड़ दलबल के साथ दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

इंसपेक्टर अमनदीप ने घटनास्थल का मुआयना किया. मुकेश की खून से लथपथ लाश एक चारपाई पर पड़ी थी. देख कर लग रहा था कि उस के सिर और चेहरे पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे.

छत पर 3 कमरे बने थे. एक कमरे में मृतक का दोस्त शामजी पासवान अपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था. एक कमरे में मृतक का 7 वर्षीय बेटा करन सो रहा था और मृतक आंगन में बिछी चारपाई पर था.

जब मृतक पर वार किया गया होगा तो उस की चीख भी निकली होगी. यही सोच कर पुलिस ने शामजी पासवान से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गहरीनींद में सोने की वजह से उस ने कोई आवाज नहीं सुनी थी.

निरीक्षण करने पर इंसपेक्टर अमनदीप ने देखा कि छत पर जाने का केवल एक ही रास्ता था. उस दरवाजे में ताला लगाया जाता था. मृतक की पत्नी संगीता से पूछने पर पता चला कि सीढि़यों के दरवाजे पर ताला उस रात भी लगाया गया था. जब ताला लगा था तो वह किस ने खोला. इंसपेक्टर ने संगीता से पूछा तो वह कुछ नहीं बोली.

कुल मिला कर यह बात साबित हुई कि बिना ताला खोले या घर वालों की मरजी के बिना किसी का भी छत पर जाना संभव नहीं था.

बहरहाल घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और रमेश की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की तहकीकात शुरू कर दी. यह बात 16 अगस्त, 2018 की है.

पूछताछ करने पर रमेश ने इंसपेक्टर अमनदीप को बताया, ‘‘कल 15 अगस्त होने की वजह से भैया मुकेश ने हमें अपने घर बुला लिया था. दिन भर हम सब लोग मिल कर पतंगें उड़ाते रहे. शाम को संगीता भाभी ने खाना बनाया.

‘‘भैया और मैं ने पहले शराब पी फिर खाना खाया. बाद में मैं अपने बच्चों के साथ रात के करीब 9 बजे अपने घर चला गया था. सुबह होने पर मुझे भैया की हत्या की खबर मिली.’’

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस में बताया गया कि मुकेश की मौत सिर पर किसी भारी चीज के वार करने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद इंसपेक्टर अमनदीप अपने अधीनस्थों के साथ बैठे इस केस पर चर्चा कर रहे थे.

उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि कोई बाहर का आदमी मृतक की छत पर कैसे पहुंच सकता है. क्योंकि मृतक के मकान के साथ ऊंचेऊंचे मकान बने हुए हैं.

उन ऊंचे मकानों से नीचे वाले मकान पर उतरना बहुत खतरनाक था. मान लो अगर कोई किसी तरह नीचे उतर भी गया तो मुकेश की हत्या कर के वहां से कैसे गया. क्योंकि संगीता के अनुसार सीढि़यों वाला और घर का दरवाजा अंदर से बंद था. सुबह उस ने ही सीढि़यों का और घर का मुख्य दरवाजा खोला था.

संदेह करने वाली बात यह थी कि छत पर रहने वाले किराएदार शामजी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं थी और ना ही उस ने कोई आवाज सुनी थी. यह हैरत की बात थी. यह सब देखनेसमझने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हुआ था, घर के अंदर ही हुआ था. इस मामले में बाहर के किसी आदमी का हाथ नहीं था.

क्योंकि मृतक या उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पड़ोसियों ने भी किसी को उस के यहां आतेजाते नहीं देखा था. इंसपेक्टर अमनदीप सिंह ने अपने खबरियों को इस परिवार की कुंडली निकलने के लिए कहा.

जल्द ही पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इस के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने मृतक के छोटे भाई रमेश को थाने बुला कर उस से बड़ी बारीकी से पूछताछ की तो मुकेश की हत्या का कारण समझ में आ गया.

रमेश से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने पुलिस टीम के साथ संगीता के घर छापा मारा लेकिन तब तक वह और उस का किराएदार शामजी पासवान घर से फरार हो चुके थे.

थानाप्रभारी ने संगीता और शामजी को तलाश करने के लिए एसआई रिचा, एएसआई हरजीत सिंह, हवलदार विजय कुमार, हरविंदर सिंह, अनिल कुमार, बुआ सिंह और सिपाही परमिंदर की टीम को उन की तलाश के लिए लगा दिया.

पुलिस टीम ने सभी संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा लेकिन वह नहीं मिले. फिर एक मुखबिर की सूचना पर इस टीम ने 22 अगस्त, 2018 को संगीता और शामजी पासवान को ढंडारी रेलवे स्टेशन से दबोच लिया.

दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने मुकेश की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसी दिन दोनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड में दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के दौरान मुकेश की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

संगीता बचपन से ही अल्हड़ किस्म की थी. अपने मांबाप की लाडली होने के कारण वह मनमरजी करती थी. मात्र 12 साल की उम्र में उस की शादी मुकेश के साथ कर दी गई. मुकेश बिहार के लक्खीसराय जिले के गांव महिसोनी का रहने वाला था. मुकेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

मांबाप का नियंत्रण न होने की वजह से संगीता पहले से ही बिगड़ी हुई थी. मुकेश से शादी हो जाने के बाद भी वह नहीं सुधरी. ससुराल में भी उस ने कई लड़कों से संबंध बना लिए. ससुराल वालों ने उसे ऊंचनीच और मानमर्यादा का पाठ पढ़ाया पर संगीता की समझ में किसी की कोई बात नहीं आती थी.

कई साल पहले मुकेश काम की तलाश में लुधियाना आ गया था. लुधियाना में काम सेट होने के बाद मुकेश संगीता को यह सोच कर अपने साथ ले आया कि गांव से दूर एक नए माहौल में शायद वह सुधर जाए. बाद में अपने दोनों भाइयों को भी उस ने लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना आने के बाद मुकेश ने कड़ी मेहनत कर के पैसापैसा बचाया और दुर्गा कालोनी में अपना खुद का मकान बना लिया.

करीब 3 साल पहले मुकेश ने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और अपने घर में ही किराने की दुकान खोल ली. अब घर रह कर ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. मकान के ऊपर एक कमरा उस ने शामजी पासवान को किराए पर दे रखा था. शामजी मुकेश का दोस्त था. कभी दोनों एक साथ फैक्ट्री में काम किया करते थे.

शामजी बड़ा चतुर था. उस की नजर शुरू से ही संगीता पर थी. मुकेश ने जब साइकिल पार्ट्स फैक्ट्री का काम छोड़ दिया, तब उस की जगह संगीता ने फैक्ट्री में जाना शुरू कर दिया था. संगीता और शामजी दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. यहीं से दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए.

शामजी शादीशुदा था. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं था. उस की पत्नी साधारण और सीधीसादी थी. उसे अपने पति और संगीता के बींच संबंधों का पता नहीं चल पाया था.

एक दिन संगीता के बेटे ने अपनी मां शामजी को एक बिस्तर में देखा तो उस ने यह बात अपने पिता को बता दी. इस के बाद मुकेश सतर्क हो गया. एक दिन उस ने भी अपनी पत्नी को शामजी के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने शामजी को खरीखोटी सुनाई और उस से कमरा खाली करने के लिए कह दिया.

संगीता मुकेश पर हावी रहती थी उस ने पति से झगड़ा करते हुए कह दिया कि शामजी उसी मकान में रहेगा. अगर उसे निकाला गया तो वह भी उसी के साथ चली जाएगी. इस धमकी पर मुकेश डर गया. फलस्वरूप संगीता ने शामजी को कमरा खाली नहीं करने दिया.

इस बात को ले कर घर में हर समय कलह रहने लगी. मुकेश पत्नी से नौकरी छोड़ने को कहता था, जबकि वह नौकरी छोड़ने को तैयार नहीं थी.

मुकेश ने किसी तरह पत्नी को समझा कर साइकिल फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा कर, के.एस. मुंजाल धागा फैक्ट्री में लगवा दी. अलग फैक्ट्री में काम करने से संगीता और शामजी की बाहर मुलाकात नहीं हो पाती थी.

इस से संगीता और शामजी दोनों परेशान रहने लगे. अंतत: दोनों ने मुकेश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. योजना बनाने के बाद संगीता ने पति से अपने किए पर माफी मांग ली और वादा किया कि भविष्य में वह शामजी से नहीं मिलेगी.

योजना को अंजाम देने के लिए शामजी ने 2 हथौड़े खरीद लिए थे. इस के बाद दोनों हत्या करने का मौका तलाशते रहे. संगीता के 5 बच्चे थे. वह अकसर घर पर रहते थे, जिन की वजह से उन्हें हत्या करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर 15 अगस्त वाले दिन उन्हें मौका मिल गया.

मुकेश शराब पीने का आदी था. शाम को मुकेश ने अपने छोटे भाई रमेश के साथ शराब पी थी. खाना खा कर रमेश अपने घर चला गया था. संगीता ने पति से झगड़ा किया. संगीता जानती थी कि झगड़े के बाद पति छत पर ही सोएगा. हुआ भी यही.

मुकेश अपने छोटे बेटे के साथ छत पर सो गया. संगीता नीचे आ गई. इस के बाद जब रात गहरा गई तो रात 2 बजे संगीता छत पर पहुंची. शामजी भी अपने कमरे से बाहर निकल आया. बिना कोई अवसर गंवाए संगीता ने अपने पति के पैर कस कर पकड़े और पासवान ने उस के सिर पर हथौड़े के भरपूर वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

नशे में धुत होने के कारण उस की चीख तक नहीं निकल सकी. मुकेश की हत्या के बाद शामजी पासवान अपने कमरे में सोने चला गया. जबकि संगीता नीचे कमरे में आ गई. लेकिन उसे सारी रात नींद नहीं आई. सुबह जब बेटी ने छत पर जा कर खून देख कर शोर मचाया. जिस के बाद संगीता ने रोने का ड्रामा करना शुरू कर दिया. पुलिस को पहले से ही संगीता पर शक था. क्योंकि संगीता का रोना महज एक ढोंग दिखाई दे रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर घर के पीछे खाली प्लौट में भरे पानी में फेंका गया हथौड़ा बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद संगीता और शामजी को फिर से अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

इस पूरे प्रकरण में दया की पात्र शामजी की पत्नी थी. वह इतनी साधारण और भोली थी कि उसे अभी तक यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस के पति ने मकान मालिक की हत्या कर दी है. वह मृतक मुकेश के पांचों बच्चों का ध्यान रखे हुए है और सभी को सुबहशाम खाना बना कर खिला रही है.     ?

-पुलिस सूत्रों पर आधारित, Hindi Crime Story

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