Exclusive Interview: डाक्टर परमानंद यादव गायन में डाक्टरेट करने के बाद साल 1994 में वाराणसी से मुंबई बौलीवुड में प्लेबैक सिंगर बनने नहीं, बल्कि शास्त्रीय संगीत की साधना करने के लिए आए थे. अब तक डाक्टर परमानंद यादव के कई संगीत अलबम भी बाजार में आ चुके हैं. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश :
आप ने शास्त्रीय संगीत के प्रति जीवन समर्पित करने की बात क्यों सोची?
मैं देवरिया, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं. मुझे लगता है कि संगीत मुझे विरासत में मिला है. मेरे दादाजी लोकगीत गाते थे, आल्हा गाते थे. यहां तक कि उन दिनों हमारे मझौली के जो स्थानीय राजा थे, उन के यहां भी एक बार मेरे दादाजी ने जा कर आल्हा गाया था.
दादाजी के संस्कार मेरे पिताजी श्रीकृष्ण यादव में आए. मेरे पिताजी भी गाने के साथसाथ ढोलक भी बहुत अच्छी बजाते थे. उन की आवाज बहुत अच्छी थी. मेरी मां फुलवासी यादव में भी भोजपुरी गानों का स्वर था. वे शादीब्याह के मौके पर बहुत सुर में गाती थीं.
दादाजी और मातापिता के संस्कार सुर के रूप में मेरे अंदर भी आए, जिस के चलते मैं शास्त्रीय संगीत से जुड़ गया. मैं ने रामवृक्ष तिवारी, अजीत भट्टाचार्य, आचार्य नंदन, कुमार गंधर्व सहित कई गुरुओं से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली.
कुमार गंधर्व को ‘आधुनिक कबीर’ कहा जाता है. कुमार गंधर्व ने कबीर को कई फार्म में गाया है. मैं ने बनारस यूनिवर्सिटी के संगीत कालेज से गायन में डाक्टरेट की. मैं ने डाक्टरेट गुरु चित्तरंजन ज्योतिषी के मार्गदर्शन में किया. कुमार गंधर्व के पास जीवन के कटु अनुभवों के साथ ही संगीत का रियाज भी था. वे कहते थे कि मूर्खों की तरह केवल गाना ही मत गाओ, पढ़नालिखना भी सीखो.
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