सौजन्य- सत्यकथा

दगाबाजी में दोस्त समेत 3 निर्दोषों की भी मौत हो गई

राजस्थान के शहर हनुमानगढ़ में राष्ट्रीय समाचार पत्र के ब्यूरो प्रमुख और स्थानीय संवाददाता एक सप्ताह पहले नहर में इनोवा कार गिरने की घटना को साधारण दुर्घटना मानने को तैयार नहीं थे. उस हादसे में 4 लोगों की नहर में डूब कर मौत हो गई थी, 3 एक ही परिवार के सदस्यों में पतिपत्नी और उन की बेटी के अलावा एक लिफ्ट ले कर कर सफर कर रही अपरिचित महिला थी.

ब्यूरो प्रमुख ने स्थानीय संवाददाता से इस बारे में अपना तर्क देते हुए कहा, ‘‘माना कि इंदिरा गांधी मेन कैनाल में अकसर गाडि़यों के गिरने की दर्दनाक घटनाएं होती रहती हैं. परंतु यह भी उतनी ही कड़वा सच है कि वैसी घटनाओं को ले कर पुलिस भी ज्यादा छानबीन नहीं करती. महज एक हादसा बता कर आगे की जांच बंद कर देती है. 8 फरवरी की रात को हुई इस घटना को एक हादसा कह कर नजरंदाज करना ठीक नहीं होगा.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं सर. एक तो इनोवा. भारीभरकम कार. ऊपर से उस में बैठे 4 लोग. तो फिर अचानक कैसे खिसक जाएगी?’’ स्थानीय संवाददाता बोला.

‘‘और हां, कार तो सड़क के किनारे उबड़खाबड़ पटरी पर खड़ी की गई थी.’’ ब्यूरो प्रमुख बोले.

‘‘ऐसा करते हैं कि हम लोग घटनास्थल पर वैसी ही एक कार ले कर चलते हैं और उसे पटरी पर लगा कर देखते हैं कि वह अपने आप कैसे खिसक सकती है? कितनी दूरी तक जा सकती है..?’’ संवाददाता ने सुझाव दिया.

‘‘एक इनोवा किराए पर लो और कल ही वहां चलने का प्रोग्राम बनाओ. हमें पुलिस प्रशासन को सचेत करना होगा, वरना आगे भी दुर्घटनाएं होती रहेंगी और वे फाइलों में बंद होती रहेंगी.’’

ब्यूरो प्रमुख के इस निर्णय का संवाददाता ने एक आदेश की तरह पालन किया और फिर दोनों अगले ही रोज इनोवा कार ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने सुरक्षा के लिए कार को पीछे से एक रस्से के सहारे बांध रखा था. रस्से को ढीला कर इनोवा को अपने आप खिसकने के लिए छोड़ दिया, लेकिन यह क्या कार टस से मस नहीं हुई. यहां तक कि उसे हलका सा धक्का भी दिया गया और कई एंगल से हिलाडुला कर देखा गया. कार वहीं रुकी रही.

2 पत्रकारों द्वारा किए गए इस प्रयोग की खबर अगले दिन समाचार पत्र में प्रमुखता से मुख्य पृष्ठ पर छपी. उस में एक हफ्ते पहले हुई इनोवा कार हादसे को एक सुनियोजित घटना बताया गया.

यह भी कहा गया कि किसी साजिश के तहत कार को कैनाल में ढकेला गया होगा. आशंका जताई गई कि कार में सवार से किसी के साथ दुश्मनी हो. कारण कार ड्राइव करने वाला व्यक्ति भी हादसे के बारे में साफ जानकारी नहीं दे पाया था.

खबर पढ़ कर लोग चौंक गए. वे तरहतरह की चर्चा करने लगे. किसी ने उस जगह को पूरी तरह से सुरक्षित बनाने का तर्क दिया, तो किसी ने पुलिस पर निकम्मेपन का दोष मढ़ दिया.

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दूसरी ओर पुलिस प्रशासन पर भी इस खबर का असर हुआ. वैसे पुलिस के आला अधिकारी पहले से ही इस घटना को शंका की निगाह से देख रहे थे.

घटना के 8 दिन बाद मृतक रेणु के भाई रमेश प्रसाद विजय नगर में हनुमानगढ़ पुलिस थाना गया. वह सिडाना निवासी जगदीश प्रसाद का बेटा था, उस ने इनोवा कार ड्राइवर रमेश स्वामी के खिलाफ लापरवाही से कार चलाने की शिकायत दर्ज की.

शिकायत में रमेश प्रसाद ने लिखा कि कार चालक की लापरवाही की वजह से ही उस की बहन रेणु, बहनोई विनोद और भांजी इशिका समेत एक अन्य महिला सुनीता भाटी की मौत हुई.

उस ने चालक पर जानबूझ कर हत्या करने का मुकदमा दर्ज करने की गुहार लगाई. चालक को मृतक व्यक्ति का दोस्त और एक ही औफिस में साथसाथ काम करने वाला बताया.

इस आरोप के आधार पर भादंसं की धारा 304 के तहत एक मामला दर्ज कर लिया गया. मामले को एसपी प्रीति जैन ने गंभीरता से लेते हुए जांच की जिम्मेदारी रणवीर सिंह मीणा को सौंप दी.

साथ ही हनुमानगढ़ के डीएसपी प्रशांत कौशिक और साइबर सेल के हैडकांस्टेबल वाहेगुरु सिंह, रिछपाल सिंह को सहयोगी के तौर पर उन के साथ लगा दिया.

उस के बाद पुलिस मुस्तैदी से जांच करने लगी. साइबर सेल टीम ने कार चालक रमेश स्वामी के मोबाइल नंबर की डिटेल्स निकलवाई.

पिछले 10 दिनों के भीतर मोबाइल पर हुई उस की तमाम बातचीत की स्टडी की. उसी सिलसिले में रमेश की कुछ संदिग्ध काल की भी जानकारी मिली. साइबर सेल टीम चौंक गई कि इनोवा कार विनोद की ही थी. तब रमेश ने उस बारे में रामलाल नायक नाम के व्यक्ति से क्यों बातें की थी? रामलाल के मोबइल नंबर की लोकेशन लखुपाली की थी.

पुलिस ने रामलाल को उस के मोबाइल लोकेशन के आधार पर थाने बुला लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह पिछले कई सालों से रमेश स्वामी  के खेत बंटाई पर जोता करता था.

रमेश स्वामी पहले ही हिरासत में लिया जा चुका था. उस ने भी रामलाल की बातों की पुष्टि कर दी. उस के बाद आगे की जांच के लिए रामलाल को भी हिरासत में ले लिया गया.

पुलिस ने जब रामलाल पर उस की रमेश के साथ फोन पर हुई बातचीत को विस्तार से जानने के लिए सख्ती की, तब उस ने बताया कि उस ने एक सहयोग मांगा था. उस के लिए वह तैयार भी हो गया था. रमेश के कहने पर घटना के दिन रामलाल शाम ढलते ही इंदिरा गांधी मेन कैनाल पर पहुंच गया था.

रमेश स्वामी ने जब गाड़ी पटरी पर खड़ी की तब रामलाल वहीं पास में अंधेरे में खड़ा था. रमेश कार में बैठे लोगों को क्या कह कर उतरा था रामलाल को नहीं मालूम, लेकिन रमेश ने रामलाल के पास आ कर कार को पीछे धक्का देने के लिए कहा.

उस ने धक्का देने के बारे में कुछ भी जानने की जरूरत नहीं समझी. उस के कहे अनुसार उस ने जोर से धक्का लगा दिया. बताया कि कार के थोड़ा हिलने के बाद रमेश स्वामी ने उसे वहां से चले जाने को कहा और खुद कार की दूसरी ओर चला गया.

उस के बाद रमेश स्वामी और रामलाल कहां गए इस का खुलासा नहीं हो पाया था

इस मामले में पुलिस के सामने यह सवाल खड़ा था कि आखिर कार को रमेश और रामलाल ने जानबूझकर क्यों पीछे से धकेला? कार के हिलने के बाद रमेश वहां से थोड़े समय के लिए क्यों चला गया? उस ने रामलाल को धक्का देने के तुरंत बाद क्यों चले जाने को कहा? रामलाल ने कार के धक्का देने के बारे में उस से कुछ भी क्यों नहीं पूछा? इन सवालों के कुछ जवाब से पुलिस के सामने एक और सच्चाई सामने आई. उस सच में एक दोस्त की दगाबाजी भी उजागर हो गई.

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जांच की दूसरी कड़ी के तौर पर शिकायतकर्ता रमेश प्रसाद से कुछ अन्य जानकारियां जुटाई जाने लगी. उस के बहनोई की मौत परिवार समेत हो गई थी. प्रसाद ने बताया कि उस के बहनोई विनोद कुमार पिछले कुछ महीने से काफी मानसिक तनाव में थे.

4 बीघा खेती की जमीन खरीदने की बात करते रहते थे, जिस के लिए उन्होंने अपने एक बहुत ही खास दोस्त रमेश को 15 लाख रुपए एडवांस भी दिए थे. यह बात बीते साल 2020 के अगस्त माह में कोरोना का असर कम होने के समय की थी. बताते हैं कि उस की रजिस्ट्री नहीं हो पाने से वह बहुत परेशान चल रहे थे.

प्रसाद की इस जानकारी के आधार पर पुलिस ने विनोद कुमार के दोस्त रमेश स्वामी को भी संदिग्ध मानते हुए अपनी गिरफ्त में ले लिया था.

पुलिस के सामने अब कुछ तसवीर साफ होती नजर आने लगी थी. रमेश से जमीन की खरीदबिक्री संबंधी सवाल पूछे गए, जिस में जमीन से ले कर उस के लिए पैसे के लेनदेन की भी बातें थीं.

पहले तो रमेश दोस्त की आकस्मिक मौत का मातम मनाते हुए खुद को निर्दोष बताता रहा. काफी समय तक एक दोस्त खोने का रोना रोता रहा. लेकिन जब पुलिस ने खेती की जमीन के लिए एडवांस और रजिस्ट्री नहीं होने की बात सख्ती से पूछी तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि वह  जमीन विनोद के नाम रजिस्ट्री नहीं कर सकता था, क्योंकि जमीन उस के पिता के नाम थी.

उस ने यह भी बताया कि जमीन का सौदा 25 लाख रुपये में हुआ था. उसे एडवांस में 15 लाख मिले थे. एडवांस की एक कच्ची रसीद बनाई गई थी. बाकी पैसे रजिस्ट्री के समय मिलने थे.

रमेश से पूछताछ के सिलसिले में जमीन के भारत माला प्रोजेक्ट के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग में चिन्हित होने की भी बात सामने आई. बताते हैं कि इस कारण जमीन की कीमत एक झटके में कई गुना बढ़ गई थी.

इस आधार पर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रमेश के मन में अधिक मुनाफे का लालच आ गया होगा और रजिस्ट्री नहीं होने की बहानेबाजी पर उतर आया होगा.

रमेश और विनोद एक शिक्षण संस्थान एसकेएम में नौकरी करते थे. वहां विनोद कुमार अकाउंटेंट थे, जबकि रमेश स्वामी क्लर्क के पद पर तैनात था. विनोद एकदम शांत स्वभाव के थे तो वहीं स्वामी का स्वभाव उन के उलट था, लेकिन उन की दोस्ती की सभी मिसाल देते थे.

विनोद कुमार के साले प्रसाद ने पुलिस को उन की परेशानी में कही हुई एक और बात बताई. बहनोईं ने एक बार कहा था कि उस के दोस्त ने उस के पीठ में खंजर घोंपा है, वह पैसा वापस नहीं कर रहा है. केवल बहाने बनाता है.

एडवांस की रकम वापसी नहीं किए जाने को ले कर भी पुलिस ने रमेश से पूछताछ की. इस पर रमेश ने बताया कि उस ने दिसंबर 2020 के अंत में पैसा लौटाने का वादा किया था, लेकिन उस की नीयत में खोट आ गई थी. पैसा लौटाने के बजाय उस ने विनोद के मुंह को हमेशा के लिए बंद करने की खतरनाक योजना बना ली थी.

ऐसा निर्णय लेने के बारे में उस ने बताया कि बारबार पैसा मांगने से वह तंग आ गया था. उसे ले कर औफिस के सभी लोग तरहतरह की बातें किया करते थे. पीठ पीछे उस की बुराई करते थे, जबकि विनोद को ईमानदार बताते थे.

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रमेश के अनुसार पैसे वापसी को ले कर उस की आखिरी खुशनुमा मुलाकात औफिस में ही हुई थी. रमेश ने माफी मांगते हुए मात्र 3 दिनों में ही पैसा लौटाने का आश्वासन दिया था.

उस दिन दोनों ने कई महीने बाद औफिस में एक साथ बैठ कर नाश्ता किया और चाय पी. उन के बीच महीनों से चले आ रहे गिलेशिकवे दूर हो गए थे.

विनोद खुश हो गए थे कि उन का पैसा मिलने वाला है. मिलने वाले पैसे को ले कर उन्होंने मन ही मन कुछ योजनाएं भी बना ली थीं.

इस से अलग रमेश के मन में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. उस ने रकम लौटाने का वादा तो कर लिया था, लेकिन सच तो यह था कि रकम उस के पास थी ही नहीं.

पलक झपकते ही 2 दिन गुजर गए. रमेश के हाथ खाली ही थे. उस ने नया बहाना बनाया. चौथे दिन विनोद के घर पहुंच गया, विनोद ने प्यार से उसे बिठाया और पत्नी को उस के लिए चायनाश्ता लाने के लिए कहा.

लेकिन रमेश मना करता हुआ मायूसी से बोला, ‘‘दोस्त, मैं अपने वायदे पर खरा नहीं उतर पाया हूं. मैं ने अपने सभी बकाएदारों के यहां तकादा कर लिया. सब ने हाथ खड़े कर दिए हैं. उन में 3 तो अनाज के व्यापारी हैं. उन्होंने मार्च के बाद ही रकम लौटाने की बात कही है. भैया, चलो मुझे पुलिस के हवाले कर दो, जो चाहे सजा दिलवा दो’’

‘‘ऐसी बात क्यों करते हो, मुझे तुम पर भरोसा है. मैं थानापुलिस के झमेले में नहीं पड़ना चाहता.’’ विनोद बोला.

‘‘नहींनहीं भाई, मैं तुम्हारा और ज्यादा नुकसान नहीं होने दूंगा. अब मैं सारी रकम का ब्याज भी दूंगा. ब्याज के साथ मूल रकम अप्रैल 2021 तक मिल जाएगी.’’ रमेश ने एक और आश्वासन दिया.

रमेश की बातें सुन कर विनोद को मन मारना पड़ा. उन के पास न तो कोई मजबूत कागजात थे. और न वह किसी कानूनी विवाद में पड़ना चाहते थे. उन्होंने कहा कि उन्हें मूल रकम ही मिल जाए वही काफी है. वह यह भी जानते थे कि अगर रमेश पर ज्यादा दबाव बनाया तो वह मूल रकम से भी मुकर सकता है.

विनोद का मन एक बड़ी रकम के फंस जाने से दुखी था, जबकि रमेश स्वामी के दिमाग में कुछ और ही खुराफात चल रही थी. वह खुश था कि विनोद उस के जाल में फंस गया है.

हालांकि इस के अलावा एक और सच्चाई थी, जिसे रमेश ने पुलिस के सामने कबूल कर ली थी. उस ने तय कर लिया था विनोद को इस दुनिया से ही चलता कर देगा. इस के लिए वह उधेड़बुन करता रहा कि कैसे विनोद की मौत को स्वाभाविक मौत में बदला जाए.

उसे अचानक एशिया की सब से लंबी नहर इंदिरा गांधी मेन कैनाल के बारे में मालूम था, जिस में कई वाहनों की जल समाधि हो चुकी थी.

उस हादसे की पुलिस विशेष जांच नहीं करती थी और वैसे हादसों की फाइल पर ‘मर्ग’ दर्ज कर मामले को हमेशा के लिए दफन कर दिया जाता था. इसी तरह की रमेश ने योजना बनाई.

नए साल 2021 की शुरुआत हो चुकी थी. विनोद अपनी बड़ी बेटी रिया को सीकर ले जाना चाहता था. वहां उसे एक कोचिंग संस्थान में दाखिला करवाना था. हालांकि उस के पास खुद की इनोवा कार थी, लेकिन उस से वह दूर की यात्रा के लिए खुद ड्राइव नहीं करता था. उसे रमेश के बारे में पता था कि वह कार अच्छी तरह ड्राइव कर लेता है. उस के साथ वह पहले भी सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर चुका था.

इस बारे में विनोद ने रमेश से बात की. वह झट तैयार हो गया. उसे मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. तय प्रोग्राम के अनुसार विनोद अपनी पत्नी रेणुका, बड़ी बेटी रिया, छोटी बेटी इशिका के साथ 8 फरवरी को इनोवा से सीकर के लिए निकल पड़े.

कार रमेश स्वामी ने ड्राइव की. वे साढ़े 3 घंटे में सीकर पहुंच गए. वहां रिया का दाखिला हो गया. अब उन के लौटने की बारी थी.

इसी बीच विनोद कुमार के एक जानकार संदीप भाटी ने फोन कर बताया कि उस की पत्नी सुनीता भाटी इन दिनों सीकर में है, सो उसे भी वह अपनी गाड़ी में साथ लेते आएं. उन्होंने सुनीता के मिलने की जगह भी बता दिया.

शाम होने से करीब एक घंटा पहले विनोद सीकर से वापस लौट पड़े. इस बार कार में बेटी रिया की जगह सुनीता थी. थोड़ी देर गाड़ी ड्राइव करने के बाद रमेश स्वामी ने चायनाश्ता करने की इच्छा जताई. सभी एक ढाबे के पास रुके. उस दौरान रमेश उन से दूर जा कर फोन पर किसी से बातें करता रहा.

रात के 10 बज चुके थे. विनोद की कार लखुवाली गांव से गुजरते हुए नहर के पुल पर पहुंच गई. नहर करीब 35 फीट गहरी है. पुल से करीब एक किलोमीटर आगे मेन रगुलेटर बना हुआ है. उस से अन्य नहरों में पानी बहा दिया जाता है.

रमेश ने कार को मेन सड़क से हटा कर कैनाल की पटरी पर खड़ा कर दिया. वह नीचे उतर गया. बाकी लोग नींद में कार में ही बैठे रहे.

विनोद ने सोचा कि वह शायद पेशाब वगैरह के लिए उतरा होगा. वह भी नींद में था. थकावट भी महसूस कर रहा था. कुछ मिनट में ही कार खिसकने लगी. देखते ही देखते कार नहर में जा गिरी. खिसकती कार से सुनीता ने अपने पति संदीप को फोन किया था. अनहोनी की आशंका के साथ जब वे कैनाल के पास पहुंचे, तब तक वहां तो अनहोनी हो चुकी थी.

लोगों की भीड़ जुट चुकी थी. उन्हीं में से किसी ने दुर्घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. रात होने और काफी अंधेरा होने के कारण पुलिस कुछ नहीं कर सकी थी. घना कोहरा भी छा गया था.

अगले रोज 9 फरवरी, 2021 को पुलिस ने गोताखोरों और क्रेन की मदद से इनोवा कार बाहर निकाली. उस में चारों सवार भी थे. उन की मौत हो चुकी थी. पुलिस ने उसे सीधेसीधे हादसा करार देते हुए फाइल तैयार की और मीडिया को इस की जानकारी दे दी.

कुछ दिनों बाद कोरोना संक्रमण के फैलने के कारण इलाके में कोरोना कर्फ्यू लग गया. भारी संख्या में पुलिस बल व्यस्त हो गए. नतीजतन इस मामले की जांचपड़ताल थम गई.

लौकडाउन में ढील दिए जाने के बाद इस मामले की सुनवाई जून महीने से दोबारा शुरू की गई. तमाम तरह की पूछताछ के बाद रामलाल और रमेश स्वामी को 12 जुलाई, 2021 को अदालत में पेश किया गया. बाद में उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

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