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लेखक- अलंकृत कश्यप

25 अप्रैल, 2019 को कोराना गांव के लोगों ने बाकनाला पुल के नीचे एक युवक का शव पड़ा देखा.

कोराना गांव लखनऊ के थाना मोहनलालगंज के अंतर्गत आता है, जो  लखनऊ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों ने जब नजदीक जा कर देखा तो उन्होंने मृतक को पहचान लिया.

वह 45 वर्षीय आशाराम रावत का शव था, जो डलोना गांव का रहने वाला था. वह मोहनलालगंज में राजकुमार का टैंपो किराए पर चलाता था. उसी समय किसी ने इस की सूचना थाना मोनहलालगंज पुलिस को दे दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी गऊदीन शुक्ल एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल राजकुमार व लाखन सिंह को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस दल जब घटनास्थल पर पहुंचा तो उन्होंने शव देखते ही पहचान लिया क्योंकि वह टैंपो चालक आशाराम रावत का था. उस के हाथपैर लाल रंग के अंगौछे से बंधे थे और गला कटा हुआ था. उस के रोजाना मोहनलालगंज क्षेत्र में सवारी टैंपो चलाने के कारण पुलिस वाले भी उस से परिचित थे.

वहां से एक किलोमीटर दूरी पर स्थित अवस्थी फार्महाउस के पास एक टैंपो लावारिस हालत में मिला. टैंपो की तलाशी लेने पर जो कागज बरामद हुए, उस से पता चला कि वह टैंपो इंद्रजीत खेड़ा के रहने वाले राजकुमार का है. लोगों ने बताया कि यह वही टैंपो है, जिसे आशाराम चलाता था.

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यह हत्या का मामला था. यह भी लग रहा था कि आशाराम की हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के उस का शव यहां फेंका गया था. क्योंकि वहां पर खून भी नहीं था.

पुलिस ने मृतक के घर सूचना भिजवाई तो उस की पत्नी रामदुलारी उर्फ निरूपमा रोतीबिलखती मौके पर आ गई. उस ने उस की पहचान अपने पति आशाराम रावत के रूप में की. वह रोजाना की तरह कल सुबह करीब 8 बजे टैंपो ले कर घर से निकले थे.

देर रात तक जब वह घर न लौटे तो बड़े बेटे 16 वर्षीय सौरभ ने उन्हें फोन लगाया तो आशाराम ने कुछ देर बाद लौटने को कहा था. काफी देर बाद भी जब वह घर नहीं आया तो निरूपमा ने भी पति को फोन कर के जानना चाहा कि वह कहां हैं. किंतु फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी. तब रात में ही मोहनलालगंज और निकटतम पीजीआई थाने जा कर निरूपमा ने पति के बारे में मालूमात की लेकिन कुछ पता न चलने पर वह निराश हो कर घर लौट आई थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. निरूपमा की तरफ से पुलिस ने गांव के दबंग मोहित साहू, उस के भाई अंजनी साहू, दोस्त अतुल रैदास निवासी जिला कटनी, मध्य प्रदेश और अब्दुल हसन निवासी सीतापुर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 506 और 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मामला एससी/एसटी उत्पीड़न का था, इसलिए इस की जांच एसपी द्वारा सीओ राजकुमार शुक्ला को सौंपी गई. रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. तब पुलिस ने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

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आरोपी लिए हिरासत में

पुलिस ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो उस से उन सब के 24 अप्रैल की रात के एक साथ होने की पुष्टि मिली. इसी बीच 26 अप्रैल को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मोहित साहू और उस के भाई अंजनी साहू को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों भाइयों से आशाराम रावत की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग पर शहर की व्यस्ततम कालोनी के बाहर लखनऊ एवं उन्नाव की सीमा पर थाना पीजीआई है. इसी थाने के अंतर्गत गांव डलोना है. इसी गांव में आशाराम रावत का परिवार रहता है. आशाराम का विवाह करीब 9 साल पहले डलोना गांव के ही प्रीतमलाल की सब से बड़ी बेटी रामदुलारी उर्फ निरूपमा के साथ सामाजिक रीतिरिवाज के साथ हुआ था.

रामदुलारी का जीवन ससुराल में हंसीखुशी के साथ अपने पति के साथ बीत रहा था. धीरेधीरे वह 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. इस समय बड़े बेटे सौरभ की उम्र लगभग 16 साल है. हालांकि आशाराम मूलरूप से लखनऊ के थाना गोसाईगंज के गांव कमालपुर का रहने वाला था, किंतु कामधंधे की तलाश में वह डलोना आ कर रहने लगा. यहां वह टैंपो चलाने लगा.

निरूपमा गोरे रंग की स्लिम शरीर वाली युवती थी. उस के चेहरे पर आकर्षण था. आशाराम टैंपो चालक होने के कारण व्यस्त रहता था. इसलिए घर के सारे काम वह ही करती थी, जिस की वजह से उसे घर से बाहर आनाजाना पड़ता था. तब गांव के कुछ लड़कों की नजरें निरूपमा को चुभती हुई महसूस होती थीं. लेकिन वह उन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी.

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निरूपमा के पीछे पड़ गया था मोहित

उन्हीं लड़कों में से एक मोहित साहू तो जैसे उस के पीछे पड़ गया था. मोहित की दूध डेयरी थी. दूध देने के बहाने वह निरूपमा के पास जाया करता था. इस से पहले निरूपमा ने उस की डेयरी पर करीब डेढ़ साल तक काम भी किया था. उसी दौरान वह निरूपमा के प्रति आकर्षित हो गया था. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा था. फिर एक दिन उस ने अपने मन की बात निरूपमा से कह भी दी.

निरूपमा ने उसे झिड़कते हुए कहा कि तुम ने मुझे समझ क्या रखा है. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बुरा होगा. निरूपमा की इस बेरुखी पर वह काफी आहत हुआ. लेकिन इस के बावजूद मोहित ने उस का पीछा करना नहीं छोड़ा. उसे देख कर निरूपमा आगबबूला हो उठती थी.

अकसर मोहित के द्वारा फब्तियां कसने पर निरूपमा ने कई बार उस की पिटाई कर दी थी किंतु इश्क में अंधे मोहित पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

निरूपमा उस से तंग आ चुकी थी. एक दिन उस ने अपने पति आशाराम को मोहित की हरकतों से अवगत कराया तो आशाराम ने निरूपमा को ही चुप रहने की सलाह दी. उस ने कहा कि वह आतेजाते मोहित को समझा देगा कि गांवघर की बहूबेटियों की इज्जत पर इस तरह कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है.

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एक दिन आशाराम ने मोहित से बात की और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए कहा कि आइंदा वह ऐसा न करे.

कुछ दिन तक तो मोहित शांत रहा किंतु वह अपनी आदतों से मजबूर था. उस का बस एक ही मकसद था कि किसी भी तरह निरूपमा को पाना. कामधंधा छोड़ कर वह दीवानगी में इधरउधर निरूपमा की तलाश में लगा रहता. अंतत: उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

कहानी सौजन्य – मनोहर कहानियां

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