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इस के 2 साल बाद 4 फरवरी, 2009 को डुमरिया के जादूगोड़ा गांव में आयोजित फुटबाल टूर्नामेंट में पुरस्कार वितरण के दौरान कैलाश हेम्ब्रम को नक्सलियों ने गोलियों से भून कर अपने साथियों की मौत का बदला ले लिया.

नक्सली हमले में कैलाश की मौत के बदले राज्य सरकार ने अनुकंपा के आधार पर उस की पत्नी सविता को 2013 में सिपाही की नौकरी दी थी.

सविता की इस नौकरी के लिए ससुराल में विवाद छिड़ गया था. सविता की सास बहू के बजाय अपने दूसरे बेटे को नौकरी दिलाना चाहती थी जबकि छोटा बेटा दाखीन हेम्ब्रम नेत्रहीन था. कानूनन उस नौकरी पर सविता का ही अधिकार बनता था. उस के पास उस समय 5 साल की बेटी गीता थी. पति का सिर से साया उठ जाने के बाद बेटी की परवरिश का वही एक सहारा था.

सास, देवर और भौजाई के बीच नौकरी को ले कर सालों तक रस्साकशी चलती रही. इस बीच सविता की सास की स्वाभाविक मौत हो गई तो दाखीन ने कोर्टकचहरी शुरू कर दी. अंतत: जीत सविता की हुई और वह नौकरी करने लगी.

सविता पढ़ीलिखी तो थी ही. योग्यता के आधार पर उसे एसएसपी का रीडर बना दिया गया. तब से वह इसी पद पर तैनात थी.

पति की मौत के बाद सविता की मां लखिमा मुर्मू अकेली रह गई थीं. 70 साल की उम्र में सविता के अलावा उन के आगेपीछे सेवाजतन करने वाला कोई नहीं था.

ऐसी हालत में वह मां को अकेला छोड़ भी नहीं सकती थी, इसलिए उस ने उन्हें अपने पास बुला लिया. मां के पास आ जाने से सयानी हो रही बेटी गीता की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उस के सिर से कम हो गई थी.

समय करवट कैसे लेता है, कोई नहीं जानता. समय के साथ ही सविता की जिंदगी में भी बदलाव आया. सविता जवान थी, सुंदर थी, उस का भरापूरा बदन था.

बेवा होने के बावजूद उस के अंगअंग से सौंदर्य झलकता था. हमदर्द तो कम लेकिन उस के हुस्न के दीवाने बहुत थे, जिस में से एक नाम सुंदर का भी था, जो सविता के दिल पर अपने प्यार की मुहर लगा चुका था.

सविता भी सुंदर के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल चुकी थी ताकि उस के दिल पर सुंदर की हुकूमत चले. हमदर्दी का मरहम लगातेलगाते उस ने सविता के दिल पर कब्जा कर लिया.

दिल के साथसाथ सुंदर के लिए सविता के घर के दरवाजे खुले थे. सविता की मां लखिमा मुर्मू और बेटी गीता को सुंदर के घर आनेजाने से कतई गुरेज नहीं था.

यहां तक कि वह उस पर पति जैसा अधिकार जताता था. इस पर भी किसी को ऐतराज नहीं था, बल्कि उन के मिलन की घड़ी में कोई बाधा नहीं डालता था. उन्हें एक कमरे में अकेले रहने के लिए छोड़ दिया जाता था. ऐसा रिश्ता सविता और सुंदर के बीच में बन चुका था.

सुंदर सविता के प्यार में इस कदर अंधा हो चुका था कि उसे अपनी शादीशुदा जिंदगी भी याद नहीं थी. घर पर उस की पत्नी और 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उसे तो कुछ याद था तो आंखों के सामने नाचता सविता का हसीन चेहरा.

वह कईकई दिनों तक अपने घर नहीं जाता था. प्रेमिका के घर पर ही पड़ा रहता था. ऐसा भी नहीं था कि सविता सुंदर की शादीशुदा जिंदगी से रूबरू नहीं थी, बावजूद इस के वह उस से टूट कर प्यार करती थी.

दोनों शादी के बंधन में अभी बंधे नहीं थे, लेकिन प्यार की पींगें भरते कैसे 6 साल बीत गए, न तो सविता ही जान सकी और न ही सुंदर. बस, दोनों अपने प्यार की दुनिया में मस्त थे.

सुंदर सविता पर करने लगा था शक

पता नहीं सविता और सुंदर के प्यार को किस की बुरी नजर लग गई थी. जान छिड़कने वाला सुंदर उस पर शक करने लगा था. हुआ कुछ यूं था कि पति जैसा हक जताने वाला सुंदर यह कभी नहीं चाहता था कि उस का प्यार बंटे. सविता उस की ब्याहता तो थी नहीं लेकिन पत्नी से कम भी नहीं थी.

दिलदार और हंसमुख स्वभाव की सविता हर किसी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंस कर बातें करने के अंदाज को लोग दूसरे अर्थों में समझने लगते थे. उस के विभाग के ऐसे कई लोग थे, जिन का सविता पर दिल लट्टू था लेकिन सविता उन्हें घास तक नहीं डालती थी. हां, टाइमपास के लिए गपशप जरूर कर लेती थी.

सविता की यही बातें सुंदर को खटकती थीं. उस के दिल में शक ने घर कर लिया था. सुंदर ने फैसला कर लिया था कि सविता सिर्फ उस की है और उसी की रहेगी. अगर उस ने किसी और की बाहें थामने की कोशिश की तो उस की जिंदगी की बची हुई सांसों की डोर काट देगा.

सुंदर के मन में उसे ले कर कैसीकैसी खिचड़ी पक रही थी, इस से वह बिलकुल बेखबर थी. सविता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस पर जान छिड़कने वाला उसे शक की नजरों से देखता होगा.

एक दिन की बात है. शाम का समय था. घर पर सविता अकेली थी. बेटी और मां बाजार गई हुई थीं. उसी समय सुंदर वहां आ पहुंचा. देखा घर में सन्नाटा पसरा है, किसी की आवाज नहीं आ रही थी. भीतर से सविता भी सोफे पर बैठी हुई थी.

‘‘क्या बात है, घर में बड़ी शांति है? मांजी और गीता बेटी कहीं गई हैं क्या?’’ सुंदर ने सवाल किया.

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