इस हमले में विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित, ड्राइवर गुलाब यादव और राहगीर कमल कुमार दीक्षित की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के अलावा राहगीर पंकज कुमार श्रीवास्तव और कल्लन यादव को भी गंभीर चोटें आईं. बाद में पंकज की मौत हो गई थी. इस केस की गवाही शुरू हाने से पहले ही कल्लन यादव की मृत्यु भी हो गई थी.
नामजद लिखाई रिपोर्ट
एकमात्र जीवित बचे और घटना के चश्मदीद गवाह विधायक के भाई सुलाकी यादव ने थाना सिविल लाइंस में इस वारदात की नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई. नामजद लोगों के नाम थे कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्यामनारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी. यह केस भादंसं की धारा 147, 148, 149, 302, 307 और 7 सीएल एक्ट के तहत दर्ज किया था.
विधायक जवाहर यादव की हत्या की खबर सुन कर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव खुद उन के घर पहुंचे और परिवार के लोगों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. बाद में उन्होंने उन की पत्नी विजमा यादव को फूलपुर विधानसभा से टिकट दिया और वह जीत कर विधायक बन गईं.
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जवाहर यादव की मौत के बाद उन की सियासी विरासत उन की पत्नी विजमा को मिली. अब तक सिर्फ घर संभाल रहीं विजमा ने पति की विरासत को बखूबी संभाला और फूलपुर से 2 बार लगातार विधायक बनीं. कहानी आगे बढ़ाने से पहले करवरिया बंधुओं के बारे में भी जान लें—
57 वर्षीय कपिलमुनि करवरिया मूलरूप से कौशांबी जिले के चकनारा के रहने वाले हैं. तब तक जिला कौशांबी नहीं बना था और यह इलाका इलाहाबाद जिले में आता था. करवरिया प्रयागराज के थाना अतरसुइया के मोहल्ला कल्याणी देवी में रहते थे. करवरिया बंधु दोआबा की गलियों से निकल कर सियासतदां बने थे.
इन के बाबा जगतनारायण करवरिया ने समाज में रुतबा पाने के लिए 1962 में पहली बार सिराथू विधानसभा सीट (तब इलाहाबाद) से चुनाव लड़ा था. हालांकि वह चुनाव हार गए. बाद में उन की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई.
जगतनारायण करवरिया के 2 बेटे थे श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला और वशिष्ठ मुनि करवरिया उर्फ भुक्खल महाराज. पिता उन के बड़े बेटे श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला महाराज ने पिता की हत्या को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया.
श्याम नारायण ने सियासी कदम बढ़ाते हुए मंझनपुर विकास खंड से ब्लौक प्रमुख का चुनाव लड़ा. लेकिन चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.
इस के बाद भी श्याम नारायण करवरिया ने कई चुनाव लड़े. हर चुनाव में उन्होंने हार का सामना किया. बावजूद इस के वह हताश नहीं हुए. छोटे बेटे वशिष्ठ नारायण उर्फ भुक्खल महाराज ने अपनी किस्मत प्रयागराज से आजमाई और चुनावी मैदान में उतर गए. वह वशिष्ठ मुनि के नाम से कम और भुक्खल महाराज के नाम से ज्यादा मशहूर थे. बड़े भाई श्याम नारायण के मुकाबले भुक्खल महाराज ज्यादा गरम मिजाज थे. सियासत के साथसाथ आपराधिक दुनिया में भी उन की अच्छी पैठ थी. कौशांबी से इलाहाबाद तक भुक्खल महाराज के नाम की तूती बोलती थी. इसी दौरान वह इलाहाबाद दक्षिणी से विधानसभा चुनाव लडे़ और हार गए.
भुक्खल महाराज का मंझला बेटा उदयभान करवरिया दोनों भाइयों से अलग मिजाज का था. मिलनसार होने की वजह से समाज पर उस की अच्छी पकड़ थी. उस में जमीनी नेताओं के गुण थे, इसलिए जनता के बीच उस का कारवां बढ़ता गया.
वर्चस्व की लड़ाई
डिस्ट्रिक्ट कोऔपरेटिव बैंक का चुनाव था. उदयभान ने चुनाव में हाथ डाल दिया. जिले के कद्दावर नेता और पूर्व डिस्ट्रिक्ट कोऔपरेटिव बैंक के अध्यक्ष शिवसागर सिंह को पराजित कर के वह अध्यक्ष बन गए. उदयभान करवरिया अपने परिवार में पहले जनता के सिरमौर बने थे.
कपिलमुनि करवरिया ने साल 2000 में जिला पंचायत के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा तो जिला पंचायत अध्यक्ष की कुरसी उन की झोली में आ गिरी.
इलाहाबाद के राजनीतिक गलियारों में करवरिया बंधुओं की तूती बोलने लगी. दोआबा की गलियों से ले कर इलाहाबाद तक उन की हनक थी. उदयभान करवरिया ने इस का फायदा उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया और सन 2002 में बारा विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर विधायक बन गए.
इसी बीच विधायक उदयभान के छोटे भाई सूर्यभान करवरिया भी ताल ठोंक कर राजनीति के अखाड़े में कूद पड़े. उन्होंने समाजवादी पार्टी के बाहुबली कहे जाने वाले कद्दावर नेता हरिमोहन यादव को हरा कर सन 2005 में मंझनपुर ब्लौक प्रमुख की सीट छीन ली.
बाद में ब्लौक प्रमुख सूर्यभान करवरिया ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया. उस वक्त विधानसभा चुनाव होने वाले थे. सूर्यभान ने विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन हार का सामना करना पड़ा.
जिला पंचायत अध्यक्ष और बड़े भाई कपिलमुनि करवरिया को सूरजभान ने बसपा की सदस्यता दिलाई. करवरिया बंधुओं की सियासी ताकत को देखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने सन 2009 में बतौर ईनाम कपिलमुनि करवरिया को फूलपुर सीट से चुनाव लड़ाया. भुक्कल महाराज ने फूलपुर सीट जीत कर अपना दबदबा कायम रखा.
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किसी की मजाल नहीं थी कि करवरिया बंधुओं से आंख से आंख मिला सके. इसी राजनैतिक कवच का फायदा यह मिला कि विधायक जवाहर यादव हत्याकांड में नामजद आरोपी होने के बावजूद उन की गिरफ्तारी नहीं हुई.
बहरहाल, विधायक जवाहर यादव हत्याकांड की शुरुआती जांच सिविल लाइंस पुलिस ने की थी. घटना के एक हफ्ते बाद यानी 20 अगस्त, 1996 को भाजपा सांसद डा. मुरली मनोहर जोशी ने विवेचना बदलने के लिए पत्र लिखा.
जिस के बाद 28 अगस्त को इस केस की विवेचना सीबीसीआईडी इलाहाबाद को स्थानांतरित कर दी गई. वहां 3 साल तक विवेचना की फाइल धूल फांकती रही. अंतत: 12 फरवरी, 1999 को विवेचना इलाहाबाद सीबीसीआईडी से ले कर सीबीसीआईडी वाराणसी को सौंप दी गई. वहां भी जांच ठंडे बस्ते में पड़ी रही.
सवा 3 साल बाद वाराणसी से लखनऊ सीबीसीआईडी को यह केस स्थानांतरित कर दिया गया. 25 नवंबर, 2003 को सीबीसीआईडी लखनऊ ने पहली प्रोग्रेस रिपोर्ट अदालत में दाखिल की. 20 जनवरी, 2004 को लखनऊ सीबीसीआईडी ने अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. आरोप पत्र में कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू का नाम दर्ज किया गया था.
आरोप पत्र दाखिल होने के बाद करवरिया बंधु गिरफ्तारी पर रोक के लिए हाईकोर्ट की शरण में गए. 16 अगस्त, 2005 को हाईकोर्ट ने कपिलमुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी के खिलाफ मुकदमे पर रोक लगा दी. फलस्वरूप तीनों गिरफ्तारी से बच गए. आरोप पत्र प्रस्तुत होने के बाद काफी दिनों तक इस मुकदमे की काररवाई स्पैशल सीजेएम के न्यायालय में विचाराधीन रही.
पहली जनवरी, 2015 को उदयभान करवरिया ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. करवरिया बंधुओं को हाईकोर्ट से मिला 8 अप्रैल, 2015 तक का स्टे आर्डर समाप्त हो गया.
20 दिनों बाद यानी 28 अप्रैल, 2015 को कपिलमुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से सभी को जेल भेज दिए गया. इस दौरान श्याम नारायण करवरिया का देहांत हो चुका था.
जवाहर की पत्नी को आना पड़ा सामने
19 अक्तूबर, 2015 से विधायक जवाहर यादव हत्याकांड की गवाही शुरू हुई. नवंबर, 2018 में उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथों में आई. हत्यारोपी और पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया (भाजपा) ने केस की सुनवाई में हस्तक्षेप किया. चूंकि मुकदमा राज्य बनाम आरोपीगण था, इसलिए योगी सरकार ने इस मुकदमे को जनहित में वापस लेने का पत्र न्यायालय में दिया.
जैसे ही यह बात जवाहर यादव की पत्नी पूर्व विधायक विजमा यादव को पता लगी तो उन्होंने योगी सरकार के इस पत्र को चुनौती दी. इस के अलावा अपर सेशन जज रमेशचंद्र ने यह कहते हुए सरकार के पक्ष को खारिज कर दिया था कि तिहरे हत्याकांड में सुनवाई खत्म होने के समय केस वापस लिया जाना ठीक नहीं है.
सरकार ने निचली अदालत के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने भी अपर सेशन जज द्वारा दिए गए आदेश को बरकरार रखा और मामले की शीघ्र सुनवाई के आदेश दिए. इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान जेल जाने के बाद करवरिया बंधुओं की जमानत अरजी सभी न्यायालयों से खारिज हो गई थी.
साल 2015 से मामले की सुनवाई लगातार जारी रही. तब से करवरिया बंधु जेल में बंद हैं. पहली जुलाई, 2017 को जवाहर यादव उर्फ पंडित हत्याकांड में करवरिया बंधुओं के पक्ष में गवाही के लिए कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र को तलब किया था.
आखिर आ ही गई फैसले की घड़ी
31 अगस्त, 2019 को अदालत में इस बहुचर्चित केस की सुनवाई पूरी हुई और जज ने फैसला सुरक्षित रख लिया. न्यायाधीश बद्री विशाल पांडेय को 4 नवंबर, 2019 को करवरिया बंधुओं समेत जेल में बंद चारों आरोपियों को धारा 147, 148, 149, 302, 307, 34 भादंसं व 7 सीएल एक्ट के तहत फैसला सुनाना था.
फैसला सुनने के लिए अभियुक्तों की तरफ से उन के तमाम शुभचिंतक कोर्ट परिसर में मौजूद थे. करीब शाम 4 बजे न्यायाधीश बद्री विशाल पांडेय ने फैसला सुनाया. अपने फैसले में उन्होंने कहा कि कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों की बहस सुनी.
बचाव पक्ष के वकील अपने मुवक्किलों को बचा पाने में विफल रहे हैं. जबकि अभियोजन पक्ष के वकील चारों अभियुक्तों का दोष सिद्ध करने में सफल रहे.
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अभियुक्तगण कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया एवं रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू में से सभी अभियुक्तों को धारा 302, 149 भादंवि के तहत दोषी पाते हुए अदालत आजीवन कारावास एवं एकएक लाख रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाती है. अर्थदंड अदा न करने पर प्रत्येक अभियुक्त को 2-2 साल का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा.
अदालत ने अभियुक्तगण कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू में से प्रत्येक को आईपीसी की धारा 307, 149 के अपराध में दोषी पाते हुए 10-10 साल के कठोर कारावास एवं 50-50 हजार रुपए का जुरमाना देने की सजा सुनाई. जुरमाना अदा न करने पर प्रत्येक दोषी को 1-1 साल की अतिरिक्त सजा भुगतने के आदेश दिए.
अदालत ने अभियुक्तगण कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया एवं रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू में से प्रत्येक अभियुक्त को भादंसं की धारा 147 में दोषी सिद्ध होने पर 2-2 साल की कठोर सजा एवं 10-10 हजार रुपए का जुरमाना अदा करने की सजा सुनाई. फैसले में जुरमाना अदा न करने पर प्रत्येक अभियुक्त को 3-3 महीने के अतिरिक्त कारावास की सजा का प्रावधान था.
अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद करवरिया बंधुओं ने फैसले पर सवाल उठाए और कहा कि अदालत ने मैरिट के बजाए प्रोफाइल पर फैसला दिया है. वे लोग इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे और वहां उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा.
– कथा पीड़ित परिवार के बयानों और दस्तावेजों पर आधारित