Gay and Lesbian: आज के समय में आप ने 'Gay' और 'Lesbian' जैसे शब्द अकसर सुने होंगे. सोशल मीडिया, फिल्मों और न्यूज के जरीए अब लोग इन टौपिक्स पर खुल कर बात करने लगे हैं. कई लोग अब अपने दिल की बात कहने और अपने सच्चे रिश्ते को अपनाने की हिम्मत दिखा रहे हैं. कुछ लड़के लड़कों से और लड़कियां लड़कियों से शादी कर रहे हैं और इसे समाज में भी इसे धीरेधीरे अपनाने लगा है. हालांकि, आज भी बहुत से लोग सिर्फ समाज के डर से अपनी फीलिंग्स छिपा कर जीते हैं. वे खुद से लड़ते हैं, पहचान छिपाते हैं और अंदर ही अंदर टूटते रहते हैं.

अगर हम कुछ सालों पहले की बात करें, जब सोशल मीडिया जैसी चीजें नहीं थीं, तो समाज में कुछ टौपिक्स पर खुल कर बात करना मुश्किल था. खासकर जब बात 'Gay', 'Lesbian', 'Bisexual' जैसे रिश्तों की हो तो लोग या तो इन फीलिंग्स को पहचान ही नहीं पाते थे या फिर डर के मारे दबा देते थे. उस समय ज्यादातर लोग वही करते थे जो परिवार और समाज कहता था, जहां शादी तय हुई, वहां कर ली और कोशिश की कि जिंदगी नौर्मल तरीके से चलती रहे.

अब सवाल यह उठता है कि क्या उस समय लोगों के अंदर ऐसी भावनाएं थी ही नहीं या फिर वे बस कभी जाहिर नहीं कर पाए?

दरअसल, इनसान के अंगर फीलिंग्स समय या टैक्नोलौजी से नहीं आती, वे तो हमेशा से होती हैं. फर्क इतना है कि पहले उन के बारे में बोलने, समझने और स्वीकार करने का मंच नहीं था. सोशल मीडिया और इंटरनै ने लोगों को वह स्पेस दिया जहां वे खुद को बेहतर तरीके से समझ पाएं और यह जान पाएं कि वे अकेले नहीं हैं. जब कोई किसी कहानी, ऐक्सपीरियंस या वीडियो में खुद जैसी फीलिंग्स देखता है, तो वह खुद से रिलेट कर पाता है. इसलिए नहीं कि यह सब देख कर अब ऐसी फीलिंग पैदा हुई है, बल्कि इसलिए कि उसे पहली बार यह समझ आता है कि उस की फीलिंग भी सच है और उसे भी समाज की ऐक्सैप्टैंस मिल सकती है.

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