चाय की दुकान हो या नाई की या फिर पान की दुकान हो, ये सब ऐसे अड्डे होते हैं, जहां आदमी को तरहतरह की जानकारी ही नहीं मिलती, बल्कि उन पर विस्तार से चर्चा भी होती है. इंटरनेट क्रांति से पहले इन्हीं अड्डों पर इलाके में घटने वाली घटनाओं की जानकारी आसानी से मिल जाती थी.
अब भले ही दुनिया बहुत आगे निकल गई है, लेकिन आज भी ये दुकानें सूचनाओं की वाहक बनी हुई हैं. बाल काटते या हजामत करतेकरते नाई, चाय की दुकान पर बैठे लोग और पान खाने वाले किसी न किसी विषय पर बातें करते रहते हैं.
उत्तरपश्चिम दिल्ली के सराय पीपलथला के रहने वाले सरफराज की भी सराय पीपलथला में बाल काटने की दुकान थी. यह जगह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी से सटी हुई है, इस मंडी में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इस वजह से उस की दुकान अच्छी चलती थी. उस की दुकान पर हर तरह के लोग आते थे. उन्हीं में से उस का एक स्थाई ग्राहक था ओमपाल सिंह.
ओमपाल सिंह रोहिणी के जय अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहता था. उस ने आजादपुर मंडी में कुछ लोगों को हाथ ठेले किराए पर दे रखे थे. उन से किराया वसूलने के लिए वह रोजाना शाम को मंडी आता था. किराया वसूल कर वह सरफराज की दुकान पर कुछ देर बैठ कर उस से बातें करता था.
बातों ही बातों में सरफराज को पता चल गया था कि ओमपाल पहले दिल्ली में ही मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) औफिस में नौकरी करता था, पर अपना काम ठीक से चल जाने के बाद उस ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी थी.
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