उत्तरी दिल्ली के जय माता मार्केट, त्रिनगर का रहने वाला कमलेश कुमार एलआईसी ऐजेंट था. अपने इस काम की वजह से उसे दिन भर इधरउधर भागदौड़ करनी पड़ती थी. इस मेहनत से उसे महीने में ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. 25 मई, 2016 को वह किसी काम से त्रिनगर के पोस्ट औफिस गया. तभी उस के मोबाइल पर ज्योति नाम की एक महिला का फोन आया. वह ज्योति को पिछले 5-6 सालों से जानता था. कमलेश ने उस की जीवन बीमा पौलिसी की थी. ज्योति के सहयोग से उसे कई और भी पौलिसी मिली थीं. ज्योति ने उसे बताया, ‘‘मेरी एक बहन रोहिणी में रहती है. उसे एक पौलिसी करानी है. आप उस की कोई अच्छी सी पौलिसी कर देना.’’

‘‘उन के पास कब पहुंचना है?’’ कमलेश कुमार ने पूछा.

‘‘आज ही चले जाओ. मैं भी उसी के पास ही जा रही हूं.’’ ज्योति ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं अभी पोस्ट औफिस में हूं. यहां से निबट कर मैं रोहिणी पहुंच जाऊंगा. वहां का एड्रेस बता दो?’’ कमलेश ने कहा.

‘‘जब तुम यहां से निकलो तो मुझे फोन कर देना, मैं वहां कहीं मिल जाऊंगी और अपने साथ ले चलूंगी.’’ ज्योति बोली.

‘‘ठीक है, मैं बता दूंगा.’’

कोई नया केस तलाशने के लिए कभीकभी कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इस बात को कमलेश अच्छी तरह जानता था, पर अब उसे ज्योति के माध्यम से एक केस आसानी से मिलने जा रहा था. इसलिए वह खुश था. उस ने फटाफट पोस्ट औफिस का काम निपटाया और बाहर आते ही ज्योति को फोन किया. ज्योति ने उसे बताया कि वह दोपहर एक बजे रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 2 पर मिलेगी. ज्योति से बात करने के बाद कमलेश ने मोबाइल में समय देखा तो साढ़े 11 बज रहे थे. एक बजने में डेढ़ घंटा बाकी था. वह सोचने लगा कि यह टाइम कहां बिताए. उस ने कुछ लोगों को फोन किया. इत्तेफाक से पीतमपुरा के एक क्लाइंट ने उसे मिलने के लिए अपने घर बुला लिया. कमलेश के लिए तो यह अच्छा ही था क्योंकि दोपहर एक बजे उसे पीतमपुरा से आगे रोहिणी जाना था, इसलिए उस ने फटाफट अपनी स्कूटी स्टार्ट की और पीतमपुरा की तरफ चल दिया.

15 मिनट में वह पीतमपुरा में अपने क्लाइंट के यहां पहुंच गया. उस क्लाइंट को एकमुश्त मोटी रकम एलआईसी में जमा करनी थी. उसी संबंध में बातचीत करने के लिए उस ने कमलेश को घर बुलाया था. कमलेश को रोहिणी भी पहुंचना था, इसलिए बातचीत करने के बाद वह निश्चित समय पर रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 2 पर पहुंच गया. वादे के मुताबिक ज्योति वहां खड़ी मिली. रोहिणी सेक्टर-1 की तरफ जाने की बात कह कर ज्योति उस की स्कूटी पर बैठ गई. सेक्टर-1 में पानी की टंकी के पास पहुंच कर ज्योति ने किसी महिला से बात की. फिर उस ने कमलेश से कुछ देर वहीं इंतजार करने को कहा. करीब 10 मिनट बाद वहां 30-35 साल की एक महिला आई. ज्योति ने उस का परिचय अपनी सहेली के रूप में कराया. उसे भी स्कूटी पर बैठा कर कमलेश उन के बताए अनुसार विजय विहार में बी.डी. जैन पब्लिक स्कूल के पास एक फ्लैट पर पहुंच गया.

वहां पहुंच कर 30-35 साल की उस महिला ने कमलेश से कहा, ‘‘मैं आप से अभी बात करती हूं. तब तक आप अंदर एसी वाले कमरे में बैठ जाएं. कमलेश अंदर वाले कमरे में चला गया. पहले से उस कमरे में जो लड़की बैठी थी, वह कमलेश से बातचीत करने लगी. उसे वहां आए अभी 5 मिनट ही हुए थे कि उसी दौरान वहां 4 व्यक्ति आए. लंबेचौड़े डीलडौल वाले वह चारों खुद को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के लोग बता रहे थे. उन में से एक व्यक्ति पुलिस वरदी में था.’’

कमरे में घुसते ही उन्होंने कमलेश को हड़काते हुए कहा, ‘‘यहां बैठे इस लड़की के साथ गलत काम कर रहे हो?’’

उन लोगों की बात सुनते ही कमलेश हक्काबक्का रह गया. कमलेश ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘नहीं सर, आप लोगों को शायद कोई गलतफहमी हुई है. मैं तो यहां बीमा केस के संबंध में आया हूं. आप चाहें तो बाहर बैठी ज्योति से पूछ सकते हैं. ज्योति सारी सच्चाई बता देगी.’’

कमलेश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वरदी वाले ने कमलेश के गाल पर जोरदार तमाचा मारा. पलभर के लिए कमलेश का दिमाग घूम गया. उसी दौरान कमरे में बैठी महिला वहां से चली गई. कमरे में अब कमलेश के अलावा वही 4 लोग ही थे.

कमलेश समझ गया कि उसे फंसाया गया है. ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए, उस की समझ में नहीं आ रहा था. फिर भी खुद को बचाने के लिए वह उन के सामने गिड़गिड़ाने लगा. पर उन लोगों ने उस की एक नहीं सुनी. वह उसे हड़काते हुए जेल भेजने की धमकी देने लगे. तभी उन में से एक ने कमलेश की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्होंने उस का पर्स निकाल लिया और बैग की भी तलाशी ली. उस के पर्स में 4-5 सौ रुपए निकले, जबकि बैग में 25 हजार रुपए थे. वह रुपए उन्होंने अपने पास रख लिए. उस के पर्स में बैंक औफ बड़ौदा, आंध्रा बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम कार्ड थे. कमलेश को ले कर वह चारों फ्लैट से बाहर निकल आए. ज्योति नाम की जिस महिला के साथ वह एलआईसी केस के लालच में उस फ्लैट में आया था, वह दूसरे कमरे में बैठी हुई थी. कमलेश समझ गया कि यह सब उसी की साजिश है.

फ्लैट के बाहर आने के बाद उन में से एक व्यक्ति ने कमलेश को एक साइड में ले जा कर कहा, ‘‘देखो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो गई तो परेशानी में फंस जाओगे. जेल तो जाना ही पड़ेगा साथ में बदनामी होगी अलग से. फिर सालों साल कोर्ट जा कर मुकदमा लड़ते रहना. वकीलों की फीस तो तुम जानते ही हो. अगर तुम इन सब से बचना चाहते हो तो 2 लाख रुपए खर्च कर दो. सारी बात यहीं रफादफा हो जाएगी और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’ यह सुन कर कमलेश कुछ सोचने लगा. फिर कुछ पल बाद वह बोला, ‘‘इतने पैसे मेरे पास तो हैं नहीं. कहां से दूंगा. मैं आप लोगों से फिर से अनुरोध करता हूं कि मुझे छोड़ दीजिए.’’ कमलेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

‘‘हम ने तुझे जो तरीका बताया, तेरी समझ में नहीं आया. जब जेल जाएगा तब अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’ उसी शख्स ने धमकाया जिस ने 2 लाख रुपए में मामला रफादफा करने को कहा था. इस के बाद पुलिस वरदी वाले ने कमलेश के पर्स से निकाले हुए एटीएम कार्ड अपने एक साथी को देते हुए कहा, ‘‘इस के साथ कहीं आसपास के एटीएम बूथ पर जाओ और देखो कि इन खातों में पैसे हैं कि नहीं. यदि हों तो 2 लाख रुपए निकाल कर इस का मामला यहीं निपटा दो.’’

उस के कहने पर एक आदमी कमलेश की स्कूटी पर बैठ कर आईसीआईसीआई के एटीएम बूथ पर पहुंच गया. कमलेश ने डर की वजह से उसे अपना पिन बता दिया था. जिस के बाद उस शख्स ने कमलेश के एटीएम कार्डों से 82,200 रुपए निकाल लिए. इस तरह उन लोगों ने कमलेश से 1,10,200 ऐंठ लिए पैसे लेने के बाद उन्होंने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. बिना कुछ किएधरे ही कमलेश लुटपिट कर घर पहुंचा. उस का चेहरा उतरा हुआ था. पत्नी ने उस से वजह भी पूछी पर उस ने उसे कुछ नहीं बताया. यह ऐसी बात थी, जिसे वह किसी को बताने की हिम्मत भी नहीं जुटा रहा था. 3-4 दिन बीत जाने के बाद भी वह उस घटना को भुला नहीं पा रहा था. आखिर एक दिन उस के दोस्त ने उस से उस की खामोशी और परेशानी का कारण पूछ ही लिया. सोचविचार कर कमलेश ने अपने साथ घटी पूरी घटना उसे बता दी.

उस की बात सुनने के बाद दोस्त को लगा कि उस के साथ धोखाधड़ी हुई है क्योंकि असली पुलिस होती तो उसे सीधे थाने ले जाती. अगर किसी तरह की कोई सैटिंग होती भी तो थाने में होती. दूसरे पुलिस को इस तरह किसी के खाते से पैसे निकालने का कोई हक नहीं होता. ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि करूं तो क्या करूं.’’ कमलेश दुखी मन से बोला.

‘‘करना क्या है, तुम्हें थाने जाना चाहिए. तुम थाने जाओगे तो उन चारों पुलिसवालों में से कोई न कोई तो वहां दिख ही जाएगा. अगर उन में से कोई न दिखे तो थानाप्रभारी को बता देना. यह भी तो हो सकता है कि वो लोग पुलिसवाले हों ही नहीं. क्योंकि इसी तरह से एक पायलट से 15 लाख रुपए लेने के आरोप में पुलिस ने दिल्ली होमगार्ड के एक पूर्व कमांडर को गिरफ्तार किया था. मेरी बात मानो, तुम थाने चलो. मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं.’’ दोस्त ने उस की हिम्मत बढ़ाई. इस के बाद कमलेश दोस्त के साथ बाहरी दिल्ली के थाना विजय विहार पहुंचा. कमलेश ने थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन को आपबीती सुनाई. थानाप्रभारी ने शाम 5 बजे थाने के समस्त स्टाफ की ब्रीफिंग के दौरान शिनाख्त कराई. कमलेश को उन में से कोई नहीं दिखा. इस से थानाप्रभारी को लगा कि कमलेश के साथ ठगी करने वाले या तो किसी दूसरे थाने के रहे होंगे या फिर उन्होंने फरजी पुलिस बन कर कमलेश से पैसे ऐंठे होंगे.

जो भी हो, उन्होने अपराध तो किया ही था. इसलिए थानाप्रभारी ने कमलेश की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 384/388/208/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज करवा दी. थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ विजय विहार स्थित उस फ्लैट पर गए, जहां ज्योति कमलेश को ले गई थी. वह फ्लैट बंद मिला. पता चला कि वह फ्लैट अवध गुप्ता नाम के व्यक्ति का था. पुलिस अवध गुप्ता की तलाश में जुट गई. मुखबिर की सूचना के बाद पुलिस टीम ने 2 दिन बाद ही उसे रोहिणी के विजय विहार क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि कई सालों से वह इस फ्लैट में अकेला रहता है. उस की दोस्ती रोहिणी सेक्टर-22 के रहने वाले सुनील कुमार से थी. सुनील दिल्ली होमगार्ड में था. वह कभीकभी ज्योति नाम की एक महिला को ले कर उस के फ्लैट पर आता था. जब कभी ज्योति किसी व्यक्ति को ले कर आती थी तो सुनील अपने दोस्तों सीताराम, अनिल और आरिफ उर्फ बंटी को ले कर आ जाता था. उस वक्त सुनील पुलिस की वरदी में होता था. ये लोग उस व्यक्ति को रेप के आरोप में बंद करने की धमकी दे कर उस से मोटे पैसे ऐंठते थे. जितने पैसे ऐंठे जाते उसे सभी लोग आपस में बांट लेते थे. अवध गुप्ता ने बताया कि वह सुनील और ज्योति के ठिकानों के बारे में जानता है.

पुलिस ने अवध की निशानदेही पर ज्योति को गिरफ्तार कर लिया. शादीशुदा ज्योति की दोस्ती सुनील से थी. पैसे के लालच में वह हनीट्रैप में लोगों को फंसाने का धंधा करने लगी. कम मेहनत में उसे अच्छी कमाई होने लगी तो वह नएनए शिकार को तलाशने लगी थी. इसी चक्कर में उस ने कमलेश को फांसा था. पुलिस ने अवध गुप्ता और ज्योति को गिरफ्तार कर रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अन्य अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने उन के संभावित ठिकानों पर दबिशें दीं, पर वे लोग अपने घरों से फरार मिले. इसी तरह करीब 5 महीने बीत गए. आरोपियों का कहीं कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. इस पर उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी ने यह केस जिले की स्पैशल स्टाफ यूनिट को सौंप दिया. तेजतर्रार सब इंसपेक्टर राममनोहर मिश्रा की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई गई.

यह पुलिस टीम फरार अभियुक्त सुनील कुमार, सीताराम, अनिल, आरिफ उर्फ बंटी व उन की एक महिला साथी को तलाशने लगी. लेकिन आरोपी बेहद शातिर थे. उन्हें पता चल गया था कि पुलिस उन्हें ढूंढ रही है. इसलिए वह गुप्त ठिकानों पर छिप गए थे. टीम को किसी तरह से सुनील और उस के दोस्त सीताराम के फोन नंबर मिल गए थे. पुलिस उन के फोन नंबरों के सहारे उन्हें तलाशने लगी. उन के फोन नंबरों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को एसआई राममनोहर मिश्रा की टीम ने सुनील कुमार और सीताराम को दिल्ली के बाहरी रिंग रोड स्थित विवेकानंद इंस्टीट्यूट के पास से गिरफ्तार कर लिया. वह अपनी होंडा अमेज कार नंबर डीएल 4सीएयू1658 में वहां किसी का इंतजार कर रहे थे. दोनों को स्पैशल स्टाफ औफिस ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि सुनील दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-22 में रहने वाले मेवालाल का बेटा था. वह शादीशुदा था लेकिन किसी बात को ले कर उस की पत्नी से नहीं बनती थी, इसलिए वह पत्नी से अलग रहता था. सुनील दिल्ली होमगार्ड था. करीब 6 महीने पहले उस की नौकरी छूट गई थी. जब वह होमगार्ड में नौकरी करता था, तभी उस की ड्यूटी सुल्तानपुरी थाने में थी. वहीं पर सीताराम भी उस के साथ ड्यूटी करता था. सीताराम का एक भाई दिल्ली पुलिस में था. सुनील और सीताराम गहरे दोस्त थे. दोनों ही ज्यादा पैसे कमाने की बातें करते रहते थे. तभी उन के दिमाग में हनीट्रैप के जरिए पैसा कमाने का विचार आया. इस के लिए एक महिला की जरूरत थी. उस का इंतजाम सुनील ने कर दिया. दरअसल सुनील ज्योति नाम की एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहता था.

ज्योति को उस ने तैयार कर लिया. अब बात आई जगह की तो सुनील का एक जानकार था अवध गुप्ता, जिस का विजय विहार में फ्लैट था. पैसे के लालच में वह भी तैयार हो गया. सीताराम ने अपने 2 दोस्तों अनिल व आरिफ उर्फ बंटी को भी इस गैंग में शामिल कर लिया. यह दोनों गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र में रहते थे. ज्योति शिकार को फांस कर अवध गुप्ता के मकान पर ले जाती थी. फिर कुछ देर बाद सुनील अपने सभी साथियों के वहां आ धमकता था. सुनील पुलिस वरदी में होता था. इसलिए वह शिकार को डराधमका कर आसानी से पैसे झटक लेते थे. फिर उस रकम को आपस में बांट लेते थे. इस तरह उन का यह धंधा आसानी से चल रहा था. पर कमलेश कुमार के मामले में सभी फंस गए पुलिस ने सुनील और सीताराम को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया जबकि अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी है.

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