पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 1
(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)
इस साजिश में उस ने पिंकी उर्फ मधु शर्मा को भी शामिल कर लिया. हरीश अरोड़ा ने मधु को मजबूर किया कि वह उस से शादी कर ले. यह शादी सिर्फ दिखावे के लिए होगी, क्योंकि शादी के कुछ दिनों बाद उसे रास्ते से हटा दिया जाएगा. इस के बाद उस की पूरी संपत्ति उन की हो जाएगी और जीवन भर दोनों पतिपत्नी की तरह एक साथ रहेंगे.
हालांकि मधु इस के लिए आसानी से राजी नहीं हुई थी. पर वह हरीश के दबाव में आ कर अपने प्यार की खातिर तैयार हो गई थी. योजना के मुताबिक, सन 1997 में मधु शर्मा उर्फ पिंकी की शादी ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा से हो गई. मधु अशोक की पत्नी बन तो गई, लेकिन उस की रगरग में हरीश अरोड़ा का प्यार दौड़ रहा था. पत्नीधर्म निभाते हुए मधु ने अशोक को शरीर तो सौंप दिया था, लेकिन उस की आत्मा हरीश में ही बसी थी. मधु हरीश को अपना वादा बारबार याद दिलाती रहती थी.
दोस्त ही बन गया जान का दुश्मन
हरीश अरोड़ा को अपना वादा अच्छी तरह याद था. रास्ते के कांटे अशोक शर्मा को हटाने के लिए वह ऐसी योजना बनाना चाहता था कि पुलिस को उस पर कभी शक न हो और पुलिस इसे व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता में की गई हत्या मान कर उस के कारोबारी प्रतिद्वंदियों को गिरफ्तार कर ले.
हरीश अरोड़ा ने भाड़े के 2 शूटरों परमजीत सिंह और रणजीत चौधरी को अशोक शर्मा की हत्या की सुपारी दे कर उस की हत्या करा दी. यह सब कुछ इस तरह किया गया कि पुलिस का पूरा शक उस के व्यावसायिक साथियों अखिलेश सिंह, विक्रम सिंह, विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू और बालाजी बालकृष्णन पर गया.
हुआ वही जो हरीश अरोड़ा चाहता था. इस के बाद हरीश अरोड़ा अशोक शर्मा की पत्नी और संपत्ति पर कब्जा करने में लग गया. लेकिन वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया. अशोक की मां, बहन और भाई को हरीश अरोड़ा और पिंकी पर शक हो गया था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. उन्होंने मजिस्ट्रैट के सामने कुछ ऐसा बयान दिया कि दोनों शक के दायरे में आ गए.
फलस्वरूप केस की जांच थाने से ले कर सीआईडी को सौंप दी गई. अपनी जांच में सीआईडी ने अशोक शर्मा हत्याकांड का राजफाश कर दिया. उधर घटना का परदाफाश होने से पहले पुलिस अखिलेश सिंह को गिरफ्तार करने के लिए दिनरात उस के ठिकानों पर दबिश दे रही थी. बाद में पिता के दबाव में आ कर उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.
बहरहाल, 27 जून 2005 को अनिल कुमार आर्य के फास्टट्रैक कोर्ट (5) ने हरीश अरोड़ा को ट्रांसपोर्टर, पारिवारिक मित्र अशोक शर्मा की हत्या के लिए दोषी ठहराया. उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. जबकि पिंकी शर्मा उच्च न्यायालय झारखंड से जमानत ले कर फरार हो गई थी. उसे हरीश अरोड़ा के साथ मिल कर आपराधिक षडयंत्र रचने के लिए दोषी पाया गया था.
ये भी पढ़ें- कालाधन रोकने के लिए नोटबंदी कानून
अदालत ने अशोक शर्मा हत्याकांड के चारों आरोपियों अखिलेश सिंह, विक्रम शर्मा, विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू और बालाजी बालकृष्णन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. भाड़े के 2 शूटर परमजीत सिंह और रंजीत चौधरी गिरफ्तार कर लिए गए थे. उन से हत्या में इस्तेमाल हथियार भी बरामद कर लिए गए थे.
शूटरों से बरामद हथियार जांच के लिए कोलकाता प्रयोगशाला भेजे गए. रिपोर्ट से पता चला कि उन से जो हथियार बरामद किए थे, गोली उन्हीं से चली थी. फलस्वरूप रंजीत और परमजीत दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
अशोक शर्मा हत्याकांड से बेदाग निकलने के बाद भी अखिलेश सिंह का बुरे वक्त ने पीछा नहीं छोड़ा. मोबाइल कारोबारी ओमप्रकाश काबरा अपहरण में नाम आने के बाद अखिलेश सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ गया. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए यहांवहां ढूंढ रही थी.
कभीकभी अपराध खुद भी मजबूर कर देता है गलत राह पर जाने को
28 जुलाई, 2001 को किए गए बिजनैसमैन ओमप्रकाश काबरा के अपहरण के मामले में अखिलेश सिंह ज्यादा दिनों तक पुलिस की पकड़ से नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस केस में अखिलेश सिंह के अलावा 5 और आरोपी विजय सिंह मंटू, संतोष तिवारी, रमन सिंह, लालचंद सिंह और अरविंद सिंह नामजद किए गए थे. यह मुकदमा थाना साकची में दर्ज था. गिरफ्तारी के बाद अखिलेश को दूसरी बार जमशेदपुर की घाघीडीह जेल जाना पड़ा.
किसी बात को ले कर अखिलेश सिंह जेलर उमाशंकर पांडेय को अपना दुश्मन मानने लगा था. कुछ दिन जेल में रहने के बाद वह जेल से फरार हो गया और 15 दिन बाद 12 फरवरी, 2002 को जेल कैंपस स्थित जेलर उमाशंकर के घर जा कर उन की गोली मार कर हत्या कर दी और फरार हो गया.
जेलर पांडेय मर्डर केस में न्यायाधीश आर.पी. रवि ने अखिलेश सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई. सजा सुनने के बाद अखिलेश ने 19 मार्च, 2008 को न्यायाधीश आर.पी. रवि के घर में घुस कर उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग की. अखिलेश सिंह जज रवि के फैसले से नाराज था. हालांकि बाद में उसे काबरा अपहरण केस से दोषमुक्त कर दिया गया था.
खैर, हमले में जज आर.पी. रवि बालबाल बच गए थे. इस घटना के बाद जमशेदपुर में अखिलेश सिंह को आतंक का पर्याय माना जाने लगा. जुर्म किए बिना अपराध की सजा पाने के बाद अखिलेश ने जुर्म को ही सब कुछ मान लिया. विक्रम शर्मा अंडरवर्ल्ड डौन के रूप में कुख्यात था. अखिलेश सिंह ने विक्रम की अंगुली पकड़ कर अपराध की दुनिया में पांव रखा और उसे अपना गुरु बना लिया.
विक्रम शर्मा ने उसे जुर्म का ककहरा सिखाया. धीरेधीरे अखिलेश सिंह जुर्म की आग में तप कर कुख्यात बन गया. वह एक के बाद एक जुर्म कर के अपराधों की फेहरिस्त में अपना नाम लिखाता गया. जमशेदपुर की पुलिस, सफेदपोश और व्यापारी उस के नाम से खौफ खाने लगे. जान की सलामती के लिए पुलिस के बड़ेबड़े अधिकारी और सफेदपोश अखिलेश सिंह को संरक्षण देने लगे.
वह शान से नेताओं की कार में घूमता था. किसी की मजाल नहीं थी कि उसे कोई रोके या उस से कोई सवाल पूछे. जो भी उस के रास्ते में रोड़ा बनने की कोशिश करता था, फिल्मी खलनायकों की तरह वह बेदर्दी से गोली मार कर उस की हत्या कर देता था. जमशेदपुर पुलिस के लिए जब वह सिरदर्द बन गया तो उस ने अपना एक गिरोह बना लिया और ठिकाना बनाया राजधानी रांची को.
राजधानी रांची में उस ने गैंग की कमान अपने दाहिने हाथ कहे जाने वाले नंदन यादव को सौंपी. आज भी नंदन यादव अखिलेश सिंह के आपराधिक साम्राज्य की कमान संभालता है. उस के सहारे वह आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता है.
ये भी पढ़ें- लापता क्रिप्टोकरेंसी की लुटेरी महारानी
नंदन यादव का नाम रांची में उस समय उछला, जब लोहारदगा के बाक्साइड कारोबारी ज्ञानचंद अग्रवाल को रातू रोड के गैलेक्सी मोड़ पर गोली मारी गई. इस मामले का मुख्य साजिशकर्ता नंदन यादव ही था. व्यवसाई अरविंद भाई पटेल ने नंदन यादव को ज्ञानचंद अग्रवाल के नाम की सुपारी दी थी. मामला 25 लाख में तय हुआ था और बतौर पेशगी 9 लाख रुपए दिए गए थे, बाकी पैसा काम हो जाने के बाद देना तय हुआ था.
बाद में नंदन यादव गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल भेज दिया गया. जमानत पर रिहा होने के बाद उस ने अखिलेश सिंह का कारोबार संभाल लिया. सुपारी के रुपए अखिलेश के फरजी नामों वाले बैंक एकाउंट में जमा हो जाते थे.
बाद में ओमप्रकाश काबरा के अपहरण के मामले में जेल जाने की वजह से अखिलेश ने अपने सब से भरोसेमंद शूटर रंजीत चौधरी के साथ अपने खिलाफ गवाही देने वाले काबरा को उस के साकची स्थित कार्यालय पहुंच कर दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी थी.
मैच के दिन लगा दिया हत्या का दांव, क्योंकि पुलिस वीआईपी मेहमानों की सेवा में थी
यह हत्या दिन में उस समय की गई थी, जब जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में भारत इंग्लैंड के बीच एकदिवसीय मैच हो रहा था. मैच के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और कई अंतरराष्ट्रीय मेहमान शहर में मौजूद थे, जिस की वजह से पुलिस महकमा कीनन स्टेडियम की सुरक्षा में तैनात था. पुलिस सुरक्षा को धता बताते हुए अखिलेश ने इस घटना को अपने गुर्गों के साथ अंजाम दिया था.
व्यवसाई ओमप्रकाश काबरा की हत्या से बौखलाए कुख्यात परमजीत सिंह ने अखिलेश सिंह को हत्या की चुनौती दे दी. अखिलेश सिंह और परमजीत सिंह के बीच 36 का आंकड़ा था. दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन थे. परमजीत सिंह को अखिलेश के वर्चस्व को चुनौती देना महंगा पड़ा और दोनों के बीच गैंगवार छिड़ गई.
इस गैंगवार में अखिलेश और परमजीत दोनों के कई शूटर मारे गए. अखिलेश और परमजीत की गिरफ्तारी के बाद दोनों को घाघीडीह जेल में रखा गया. तब अखिलेश ने जेल में ही परमजीत सिंह की हत्या करवा दी. परमजीत की हत्या के लिए अखिलेश ने अपने भरोसेमंद गुर्गे कपाली को जेल में ही पिस्टल उपलब्ध करवा दी थी.
अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर से डौन बन चुका था. झारखंड में उस के नाम का सिक्का चलने लगा था. उस के एक फोन से झारखंड के बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं. वे उसे मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहते थे. पाप की कमाई से अखिलेश सिंह ने कई राज्यों में रीयल एस्टेट के धंधे में करोड़ों रुपए निवेश किए थे.
अपराध जगत में कदम रखने के बाद उस ने 500 करोड़ की अकूत संपत्ति अर्जित की थी. अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उस ने ट्रांसपोर्ट, रीयल एस्टेट समेत अन्य कई बिजनैस में लगाया था. टाटा समेत कोल्हान की कई कंपनियों में भी उस का काम चलता था. झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में भी उस ने निवेश किया. सन 2007 में अखिलेश सिंह का अपना कानून चलता था. वह जहां खड़ा हो जाता था, अदालत वहीं लग जाती थी. उस के जबान से जो फरमान जारी हो जाता, कानून बन जाता था.
2 गज जमीन बनी श्रीलेदर के मालिक आशीष डे की हत्या का कारण
उन दिनों झारखंड के बड़े व्यवसायियों में एक श्रीलेदर के मालिक आशीष डे का नाम शुमार था. आशीष लेदर के जूतों के बड़े कारोबारी थे. आशीष डे का मकान जमशेदपुर के साकची स्थित आमबागान के बगल में था. उन के घर के पास 2 गज जमीन खाली थी, जोकि एक बंगाली परिवार की थी. वह परिवार आशीष डे को जमीन बेचना चाहता था और डे वह जमीन अपने एक परिचित बंगाली परिवार को दिलाने का प्रयास कर रहे थे.
ये भी पढ़ें- दिल में अरमान, आंखों में आंसू : सुहागरात के बजाय दूल्हे जेल में बदलते रहे करवटें