27 फरवरी, 2022 की सुबह करीब 9 बजे ग्वालियर के थाना जनकगंज के थानाप्रभारी संतोष यादव अपने कक्ष में बैठे थे. तभी एक युवक उन के पास आया. उस के चेहरे पर परेशानी के भाव और आंखों में चिंता झलक रही थी. वह बेहद घबराया हुआ लग रहा था. उस युवक की शक्ल देख कर ही लगा कि वह किसी भारी मुसीबत में है.
उन्होंने उसे बैठा कर उस की परेशानी पूछी तो उस ने रोते हुए बताया, ‘‘साहब, बीती रात किसी ने मेरी बहन सविता की गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में गला रेत कर हत्या कर दी.’’
‘‘क्या नाम है तुम्हारा? तुम कहां रहते हो और क्या काम करते हो?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.
युवक ने रोते हुए बताया, ‘‘साहब, मेरा नाम परमाल बंजारा है और मैं काली माता मंदिर के सामने गोल पहाडि़या इलाके में बंजारों की बस्ती में रहता हूं. मैं लक्ष्मीगंज सब्जीमंडी में पल्लेदारी का काम करता हूं.’’
‘‘अपनी बहन के बारे में पूरी बात विस्तार से बताओ, वह घर से बाहर गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में कब गई थी और वह करती क्या थी?’’
‘‘साहब, उस का नाम सविता बंजारा था. उस के पति प्रकाश बंजारा की 10 साल पहले बिलौआ में स्थित महाकालेश्वर स्टोन क्रैशर वालों की खदान में काम करते समय हुए ब्लास्ट में मौत हो गई थी. पति की अचानक हुई मौत का सविता को काफी सदमा लगा था. पति की मौत के बाद उस के देवर ने उसे रख लिया था.
‘‘लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का है. एक केस में उसे जेल जाना पड़ा. उस के जेल जाते ही ससुराल वाले उसे ताने देने लगे थे कि वह डायन है, उस ने पति को डंस लिया. ससुराल में दिए जाने वाले तानों से जब वह बहुत ज्यादा दुखी रहने लगी तो फिर एक दिन अपनी ससुराल को हमेशा के लिए छोड़ बेटे रवि और बेटी खुशी को साथ ले कर मायके में ग्वालियर आ गई और अपना मकान बनवा कर रहने लगी थी.
‘‘साहब, धीरेधीरे उस का जीवन सामान्य होता जा रहा था. हालांकि उस की माली हालत कोई खास नहीं थी, किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के अपने बच्चों को पाल रही थी. वह मेरे साथ लक्ष्मीगंज सब्जी मंडी में भी काम पर जाने लगी थी.
‘‘हम लोगों को इस बात की चिंता सताने लगी कि विधवा होने के कारण बहन का पहाड़ सा जीवन कैसे कटेगा. हम उस के लिए बिरादरी में ही लड़का तलाशने में लगे हुए थे. इसी बीच यह घटना घट गई.’’
थानाप्रभारी ने परमाल से पूछा, ‘‘तुम्हें सविता की हत्या की जानकारी कैसे मिली?’’
‘‘साहब, मैं वहां पर नहीं गया था. सुबह होते ही मेरी भतीजी सपना नित्यक्रिया के लिए जंगल में गई थी. उस ने ही सुबहसुबह यह खबर दी. हत्या की खबर सुन कर घर में रोनाधोना शुरू हो गया तो पड़ोसी भी हमारे घर पर जमा हो गए. इस के बाद जब पहाड़ी पर पहुंचे तो वहां सविता की खून में सनी लाश झाडि़यों में पड़ी मिली.’’
कत्ल की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतोष यादव तुरंत सविता के भाई परमाल बंजारा को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ निकल गए.
पुलिस के पहुंचने तक घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी और वह सलवारसूट पहने हुए थी.
उस का गला किसी धारदार हथियार से रेता हुआ था. थानाप्रभारी की सूचना पर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड की टीमें भी घटनास्थल पर पहुंच गईं.
फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो खबर पा कर एसपी अमित सांघी, एएसपी (सिटी पश्चिम) सत्येंद्र सिंह तोमर, एसपी (सिटी लश्कर) आत्माराम शर्मा भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे.
इन पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण किया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और मृतका की लाश का अवलोकन करने के बाद अनुमान लगाया कि हत्यारा मृतका का कोई करीबी हो सकता है. इस की कुछ खास वजह भी थी जैसे कि सुनसान जगह पर रात के वक्त कोई क्यों जाएगा.
आसपड़ोस के किसी भी व्यक्ति को इस हत्या के बारे में सुबह होने तक भी बिलकुल पता नहीं चल सका था. घटनास्थल पर किसी को आतेजाते भी नहीं देखा गया था.
पुलिस अधिकारियों ने परमाल बंजारा से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’
कुछ पल के लिए खामोश रहने के बाद उस ने शून्य में ताकते हुए कहा, ‘‘नहीं साहब.’’
‘‘तुम आखिरी बार सविता से उस के घर पर कब मिले थे?’’
‘‘साहब, 26 फरवरी की रात 10 बजे,’’ परमाल ने बिलखते हुए कहा.
घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी ने सविता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.
प्राथमिक काररवाई के बाद थानाप्रभारी ने मोहल्ले के कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि शफीकुल से सविता के गहरे ताल्लुकात थे. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग था, वह सविता के परिवार का खर्च भी उठाता था.
इस महत्त्वपूर्ण जानकारी से थानाप्रभारी को पक्का यकीन हो गया कि सविता की हत्या अवैध संबंधों के कारण ही हुई होगी. हकीकत जानने के लिए थानाप्रभारी ने उसी दिन सविता और शफीकुल के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.
काल डिटेल्स देख कर पुलिस हैरान रह गई. उस से पता चला कि उन दोनों की एकदूसरे से अकसर बातें होती रहती थीं. इस घटना से पहले भी दोनों की बातें हुई थीं. पुलिस उस वक्त और ज्यादा चौंकी, जब शफीकुल के मोबाइल की लोकेशन रात के 11 बजे गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल की मिली.
इस का मतलब हत्या वाली रात वह गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में ही था. पुलिस के शक की सुई उसी पर जा कर ठहर गई. पुलिस टीम ने आरोपी के बिलौआ, ग्वालियर में स्थित घर पर दबिश डाली तो वह अपने घर से नदारद मिला, जिस से पुलिस का शक और बढ़ गया. उस की तलाश के लिए पुलिस ने अपने मुखबिरों को अलर्ट कर दिया. तब एक मुखबिर ने आरोपी शफीकुल के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी थानाप्रभारी को दी.
इस के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए स्थान बिजली घर रोड गोल पहाडि़या पर पहुंच गए. वहां से उन्होंने शफीकुल को हिरासत में ले लिया.
पुलिस को देखते ही शफीकुल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. उस ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपना अपराध स्वीकार करते हुए सविता की हत्या के पीछे की सारी सच्चाई बयां कर दी.
पुलिस ने शफीकुल की निशानदेही पर खून से सने कपड़े और हत्या में प्रयुक्त उस्तरा भी बरामद कर लिया.
शफीकुल पश्चिम बंगाल का रहने वाला था और 14 साल पहले वहां से भाग कर ग्वालियर के कस्बा बिलौआ आया था. वह सविता के पति प्रकाश के साथ महाकालेश्वर स्टोन क्रेशर की खदान में काम करता था, इसलिए प्रकाश का अच्छा दोस्त बन गया था.
प्रकाश की मौत के बाद शफीकुल ने प्रकाश के बच्चों और पत्नी सविता की खैरखबर लेने के बहाने नजदीकी बढ़ा ली और काफी देर तक सविता के बच्चों से बतियाता रहता था. उस की बातचीत का यह सिलसिला तभी टूटता, जब सविता उस के लिए चाय बना कर ले आती.
एक दिन सविता ने चाय की प्याली उस के हाथ में थमाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘शफीकुल भाई, क्या आप सिर्फ बच्चों से ही बतियाते रहोगे? हम से बात नहीं करोगे?’’
‘‘क्यों मजाक कर रही हो भाभी, अगर आप को सच में मुझ से बात करनी होती तो इतनी दूरदूर न रहती,’’ शफीकुल ने सविता को ऊपर से नीचे तक गहरी नजरों से देखते हुए जवाब दिया.
शफीकुल का जवाब सुन सविता के चेहरे पर दिलकश मुसकान दौड़ गई. उस की निगाहें शफीकुल की चौड़ी छाती और बलिष्ठ भुजाओं का मुआयना करने लगीं, क्योंकि पति की मौत के बाद तन्हा जिंदगी उसे उबाऊ लगने लगी थी. दिन तो मंडी में काम में कट जाता था पर रातें कटनी मुश्किल थीं.
महीनों से अतृप्त सविता की देह समुद्री ज्वार की तरह ठाठे मारमार कर शफीकुल से संसर्ग करने को उकसाने लगी. सविता सोचने लगी कि शफीकुल सचमुच कुंवारा और एकदम जिंदादिल मर्द है. उस की बाहों में अलग ही आनंद आएगा.
अभी सविता यह सब सोच ही रही थी कि शफीकुल ने चारपाई से उठते हुए कहा, ‘‘अच्छा भाभी, अब मैं चलता हूं.’’
सविता तुरंत बोल पड़ी, ‘‘शफीकुल, कल कुछ जल्दी आना, तुम्हारे देर से आने की वजह से बच्चों के सामने मुझे तुम से बात करने का मौका ही नहीं मिलता.’’
सविता ने जिस अदा और अंदाज से यह बात कही, उस से शफीकुल के दिल में कुछकुछ होने लगा. वह मुसकराते हुए अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर अपने घर चला गया.
उस दिन के बाद शफीकुल नियमित रूप से बच्चों से मिलने के बहाने सविता के घर आने लगा. शफीकुल की जाति ही नहीं धर्म भी अलग था, इस के बावजूद सविता ने उस में ऐसा न जाने क्या देखा कि उस का मन उस पर रीझ गया.
नियमित रूप से सविता के घर इस आवाजाही से जहां सविता के दोनों बच्चे उस से काफी घुलमिल गए थे, वहीं उसे सविता पर डोरे डालने का भरपूर मौका मिल गया.
2 बच्चों की मां होने के बाद भी सविता के शरीर में कसाव था, ऊपर से वह बनसंवर कर रहती थी.
शफीकुल ने पहले सविता से हंसीमजाक शुरू की, फिर थोड़ीबहुत शारीरिक छेड़खानी भी करने लगा. लेकिन सविता को इतने से संतोष नहीं हुआ. वह चाहती थी कि शफीकुल और आगे बढ़े.
संकोच और डर की वजह से शफीकुल ज्यादा आगे नहीं बढ़ पा रहा था तो सविता ने खुद ही पहल करने का फैसला ले लिया. एक दिन ऐसा भी आया, जब दोपहर को शफीकुल सविता के घर जा पहुंचा. दरवाजे पर पहुंच कर हलकी सी दस्तक दी और हौले से दरवाजा धकेला. दरवाजा खुद ही अंदर की तरफ खुल गया.
उस वक्त दोनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. दरवाजे से ही उस ने आवाज दी, ‘‘भाभी, कहां हो?’’
सविता भीतर चारपाई पर लेटी हुई थी. शफीकुल की आवाज सुन कर वह बोली, ‘‘मैं भीतर वाले कमरे में हूं. दरवाजे की कुंडी बंद कर के यहीं चले आओ. दरवाजा ठीक से बंद कर देना, वरना बिल्ली चौके में घुस जाएगी और सारा दूध पी जाएगी. आज मेरी तबीयत कुछ खराब है.’’
शफीकुल ने दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी और सीधे भीतर वाले कमरे में जा पहुंचा. उस ने देखा सविता अस्तव्यस्त लेटी हुई थी. उस की साड़ी, पेटीकोट जांघ तक सरका हुआ था. ब्लाउज के ऊपरी हुक भी खुले हुए थे. बेताब हुस्न अपने जलवे दिखा रहा था.
सविता का उघड़ा बदन देख कर उत्तेजना से शफीकुल का हलक सूखने लगा. बड़ी मुश्किल से थूक निगल कर वह बोला, ‘‘भाभी, कल तो तुम बिलकुल ठीक थी, फिर अचानक तुम्हारी तबीयत कैसे खराब हो गई?’’
कह कर शफीकुल चारपाई के सिरहाने बैठ कर सविता के माथे पर हाथ रख बोला, ‘‘भाभी तुम्हें बुखार तो नहीं है, फिर क्या तकलीफ है?’’
‘‘बुखार तो बदन में चढ़ा हुआ है, पर तुम्हें एहसास नहीं हो रहा,’’ कहते हुए सविता ने शफीकुल का हाथ थाम लिया. फिर उसे हौलेहौले सहलाने लगी.
अब उस का इरादा शफीकुल की समझ में आने लगा. सविता उस का हाथ अपने वक्ष के ऊपर रखते हुए बोली, ‘‘अंदर हाथ डाल कर तो देखो, तब तुम्हें पता चलेगा कितना बुखार चढ़ा हुआ है.’’
‘‘भाभी, अभी सारा बुखार उतार देता हूं, क्यों परेशान हो रही हो.’’ कहते हुए उस ने सविता के ब्लाउज के बाकी हुक भी खोल दिए.
सविता के सुडौल वक्ष अब पूरी तरह आजाद हो चुके थे. शफीकुल ने उन्हें हाथों में भर कर आहिस्ताआहिस्ता दबाना शुरू किया तो सविता को भी मजा आने लगा.
जिस्म की आग ने सविता को इतना झुलसा रखा था कि वह सारी लोकलाज, मानमर्यादा भूल गई थी.
सविता से चारपाई पर लिपटा शफीकुल धीरेधीरे मदहोश हो रहा था, उत्तेजना से उस का भी जिस्म आग सा तप रहा था. सविता के वक्ष का मर्दन करतेकरते उस ने फुसफुसा कर पूछा, ‘‘भाभी, बुखार कुछ कम हुआ?’’
‘‘हां,’’ सविता ने स्वीकारते हुए कहा, ‘‘मुआ छाती से नीचे उतर गया है.’’
‘‘चिंता मत करो भाभी,’’ शफीकुल उस की साड़ी पलटते हुए बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि छाती का ताप जब नीचे उतर जाए तो उसे कैसे कम किया जाता है.’’
कुंवारेपन से उस ने ऐसे ही ठोस जवाब की तमन्ना की थी. शफीकुल उस की कसौटी पर एकदम खरा उतरा.
शफीकुल सविता से 10 साल छोटा था, लेकिन उस का गठीला बदन सविता को भा गया, उस ने अपनी मर्दानगी के ऐसेऐसे जौहर दिखाए कि सविता की कलीकली खिल गई.
अवैध संबंधों की राह एक मर्तबा खुली तो शफीकुल और सविता अकसर वासना के कुंड में गोते लगाने लगे. सविता अब हरदम खिलीखिली रहने लगी थी.
इसी तरह महीनों बीत गए, उन दोनों के अवैध संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. शफीकुल सविता के सान्निध्य में मस्त था. उधर शफीकुल ने सविता के दिल में अपने लिए जगह बना ली, सविता शफीकुल की ऐसी दीवानी हुई कि सुबह से शाम तक उसी के खयालों में खोई रहने लगी.
सविता अपने घर में एक बेटी और एक बेटे के साथ रहती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई न होने की वजह से वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो गई थी.
उसे अपने प्रेमी को घर में बुलाने के लिए किसी मौके की जरूरत नहीं रहती थी. जब भी दोनों का जिस्म वासना की आग मे दहकने लगता तो दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.
वक्त गुजरता रहा, प्रेमी के साथ मौजमस्ती करते 9 साल बीत गए. इन 9 सालों में सविता और शफीकुल खूब खुल कर खेले. अवैध संबंध छिपते कहां हैं सविता और शफीकुल के साथ भी ऐसा ही हुआ.
बंजारा बस्ती वालों को ही नहीं, रिश्तेदारों को भी सविता और शफीकुल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हो गई, इस के बावजूद भी दोनों ने किसी की परवाह नहीं की और पापलीला करते रहे.
सविता के बेटे के जन्मदिन के मौके पर शफीकुल ने सविता को बाजार ले जा कर जम कर खरीदारी भी कराई थी.
बाजार से सामान खरीद कर दोनों जैसे ही घर वापस आए, सविता का कोई जानपहचान वाला उस से मिलने आ गया. उसे देख कर शफीकुल का माथा ठनका.
उसे सविता के साथ बातचीत में मशगूल होते देख शफीकुल उस के घर से अपने घर बिलौआ वापस लौट गया था. उसे शक हो गया कि यह जरूर सविता का कोई यार ही होगा. अपने घर पहुंच कर उस ने धोखेबाज सविता को ठिकाने लगाने की योजना बना ली थी.
दरअसल, शफीकुल के दिमाग में शक का कीड़ा घर कर गया था. वह अपनी प्रेमिका सविता के चरित्र पर शक करने लगा था. उसे शक हो गया कि सविता के किसी और युवक के साथ भी संबंध हैं. शफीकुल के शक्की स्वभाव ने उसे शैतान बना दिया था.
26 फरवरी, 2022 को जब उसे लगा कि सविता के दोनों बच्चे सोने चले गए होंगे तो उस ने अपनी योजनानुसार रात 11 बजे सविता को फोन कर उसे बात करने के बहाने गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में बुलाया.
जैसे ही सविता अपने घर से शौच के बहाने शफीकुल की बताई जगह पर पहुंची, हैवान बने शफीकुल ने अपनी प्रेमिका पर जरा भी दया न दिखाते हुए उस का उस्तरे से गला रेत कर उसे मौत के घाट उतार दिया.
इस के बाद जब शफीकुल को पूरी तरह इत्मीनान हो गया कि सविता मर चुकी है तो उस ने खून से सने हाथ और मुंह पर लगे खून के दागों को रास्ते में एक नल पर साफ किया और अपने घर जा कर बिस्तर पर लेट गया.
सवा 4 बजे उस ने उस्तरा और खून लगे अपने कपड़ों को साथ लिया और घर से ग्वालियर के लिए निकल पड़ा. यह संयोग ही था कि उसे आते हुए किसी ने नहीं देखा था. फिर ग्वालियर आ कर उस ने उस्तरा और कपड़े छिपा दिए. इस के बाद दिन निकलने का इंतजार करने लगा.
सुबह का उजाला होने पर वह सविता के घर से अपनी प्रेमिका की हत्या होने की सूचना मिलने का इंतजार करने लगा था. सूचना मिलते ही वह सविता के घर पहुंच कर दुखी होने का नाटक करने लगा.
वहां मौजूद शोकग्रस्त लोगों में से किसी को अंदाजा नहीं था कि शफीकुल इतना जघन्य अपराध भी कर सकता है. उस ने नाटक तो बहुत बढि़या किया था, लेकिन पुलिस के शिकंजे से बच नहीं सका.
जनकगंज थाने के प्रभारी संतोष यादव ने इस अंधे कत्ल को पहली तफ्तीश में ही 6 घंटे के भीतर कातिल के गिरेबान पर हाथ डाल कर सुलझा दिया.
सविता की हत्या का जुर्म शफीकुल कुबूल कर चुका था और पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस्तरा और खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिए थे.
थानाप्रभारी ने सविता के भाई परमाल बंजारा की तरफ से शफीकुल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्त शफीकुल को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
सविता के 10 और 14 वर्षीय दोनों बच्चों को उन के मामा परमाल बंजारा अपने घर ले गए थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित