उत्तर प्रदेश जिला रायबरेली के थाना बछरावां का एक गांव है गजियापुर. इसी गजियापुर का छोटा सा मजरा है शेखपुरा समोधा. पुत्तीलाल लोध अपने परिवार के साथ इसी मजरे में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां आशा व माया और एक बेटा था उमेश. पुत्तीलाल कास्तकार था और खेतीकिसानी से अपने परिवार का भरणपोषण करता था. वह सीधासादा सरल स्वभाव का व्यक्ति था.

पुत्तीलाल की 3 संतानों में आशा सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही 16वां बसंत आतेआते उस की खूबसूरती और भी निखर गई थी. उस का अंगअंग फूलों की तरह महक उठा था. उस की पतली कमर, नैननक्श और गोरा रंग किसी को भी आंखों में चाहत जगा देने के लिए काफी थे.

खूबसूरत होने के साथ आशा पढ़ाई-लिखाई में भी तेज थी. प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर के बीए में एडमिशन ले लिया था. आशा की खूबसूरती ने कई युवकों को उस का दीवाना बना दिया था. लड़के उस के आगेपीछे घूमते थे. इन लड़कों में बृजेंद्र कुमार भी था.

बृजेंद्र शेखपुरा समोधा का ही रहने वाला था. उस का घर आशा के घर से कुछ दूरी पर था. बृजेंद्र के पिता जागेश्वर दबंग किसान थे. उन की आर्थिक व पारिवारिक स्थिति भी मजबूत थी. बृजेंद्र कुमार हृष्ट-पुष्ट सजीला नौजवान था. रहता भी बनसंवर कर था. वह पढ़ने में भी वह अच्छा था. बीए पास करने के बाद उस का चयन बीटीसी में हो गया था. वह अध्यापक बनने का इच्छुक था.

बृजेंद्र और आशा बचपन से एकदूसरे को जानते थे. कालेज आतेजाते दोनों की मुलाकातें होती रहती थीं. दोनों एकदूसरे को चाहत भरी नजरों से देखते और फिर मुसकरा देते थे. बृजेंद्र आशा को चाहने लगा था. आशा भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. उसे अपने लिए बृजेंद्र की आंखों में प्यार का सागर हिलोरे मारता लगता था. धीरेधीरे उस के मन में भी बृजेंद्र के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

जब बृजेंद्र को आभास हुआ कि आशा उस की ओर आकर्षित है तो वह दिल की बात दिल में नहीं रख सका. एक दिन आशा कालेज से अकेली घर लौट रही थी. बृजेंद्र ने उसे रास्ते में रोक लिया. आशा भले ही अकेली थी, लेकिन रास्ता सुनसान हीं था. इसलिए वहां दिल की बात नहीं कहीं जा सकती थी. मिनट 2 मिनट बात करने पर भले ही कोई संदेह न करता, लेकिन दिल की बात कहने के लिए समय चाहिए था, क्योंकि इजहारे इश्क करते के लिए भूमिका बांधने में ही समय लग जाता है.

यही वजह थी कि उस समय दिल की बात कहने के बजाए बृजेंद्र ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आशा, क्या आज शाम 7 बजे तुम मुझ से मिलने गांव के बाहर बगीचे में आ सकती हो?’’

आशा कुछ कहती उस के पहले ही बृजेंद्र ने एक बार फिर कहा, ‘‘मैं बेसब्री से तुम्हारा वहीं इंतजार करूंगा.’’

आशा का जवाब सुने बगैर बृजेंद्र चला गया. आशा हैरानी से तब तक उसे जाते देखती रही जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया. वह जानती थी कि बृजेंद्र ने उसे क्यों बुलाया है? सवाल यह था कि वह उस से मिलने जाए या न जाए. यही सोचते हुए वह घर पहुंच गई.

दोनों की पहली मुलाकात
आशा घर जरूर पहुंच गई, लेकिन उस का मन बेचैन था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जाए या न जाए. वह भले ही कितनी भी बेचैन रही. लेकिन शाम को बृजेंद्र से मिलने जाने से खुद को रोक नहीं सकी.

सहेली के घर जाने का बहाना बना कर वह बगीचे में पहुंची तो बृजेंद्र वहीं बैठा उस का इंतजार कर रहा था. उसे देख कर बृजेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘चलो यह अच्छी बात है कि तुम्हारा विश्वास नहीं टूटा. बताओ मुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘पहली बात तो यह कि तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. फिर भी बता दूं कि मैं ने तुम्हें यह बताने के लिए बुलाया है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

बृजेंद्र की इस बात पर आशा को कोई हैरानी नहीं हुई. क्योंकि उसे पहले से ही पता था कि बृजेंद्र ने यही कहने के लिए बुलाया है. फिर भी बनावटी हैरानी व्यक्त करते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो?’’

‘‘आशा मेरे दिल में जो था, मैं ने कह दिया. बाकी तुम जानो. यह बात सच है कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं.’’ बृजेंद्र की इन बातों से आशा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. बृजेंद्र उसे अच्छा लगता ही था. वह उसे चाहने भी लगी थी. इसलिए उस ने बृजेंद्र को चाहत भरी नजरों से देखते हुए बड़ी ही धीमी आवाज में कहा,

‘प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन डर लगता है.’’

बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘डर किस बात का आशा, मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर तो मैं तुम्हारा साथ आखिरी सांस तक निभाऊंगी.’’ आशा ने अपना दूसरा हाथ बृजेंद्र के हाथ पर रखते हुए कहा.

इस तरह प्यार का इजहार हो गया तो आशा और बृजेंद्र की दुनिया ही बदल गई. आशा कालेज जाने के बहाने घर से निकलती और पहुंच जाती बृजेंद्र के पास. बृजेंद्र उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाता, फिर दोनों बछरावां, रायबरेली घूमने निकल जाते. कभीकभी एकांत में बैठ कर दोनों भविष्य के सपने बुनते. जबकि उन्हें पता था कि वे जो सोच रहे हैं, वह इतना आसान नहीं है.

मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई जाने लगीं. हालांकि दोनों परिवारों में समानता नहीं थी. इसलिए यह इतना आसान नहीं था. फिर भी दोनों ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए वे अपनी दुनिया बसा कर रहेंगे.

प्यारमोहब्बत ज्यादा दिनों तक छिपने वाली चीज नहीं होती. कुछ दिनों बाद पुत्तीलाल को भी शुभचिंतकों से पता चल गया कि बेटी गलत राह पर चल पड़ी है. पतिपत्नी ने बेटी को डांटाफटकारा भी और प्यार से समझाया भी. इस के बावजूद भी उन्हें बेटी पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें लगा कि जवानी के जोश में आशा गलत कदम उठा सकती है. इसलिए उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया.

पुत्तीलाल और सुशीला ने अब आशा पर निगाह रखनी शुरू कर दी, जिस से दोनों के मिलन में बाधा पड़ने लगी. फिर भी आशा को जब मौका मिलता वह बृजेंद्र से बतिया लेती थी. बृजेंद्र उसे सांत्वना देता कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.

एक रात सुशीला ने आशा को बृजेंद्र से मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. उस ने उसी समय आशा को डांटा, ‘‘देखो, आशा इज्जतआबरू और मानमर्यादा औरत के गहने हैं और तू इन गहनों पर दग लगा रही है. तुझे तो अपनी इज्जत की परवाह है नहीं, कम से कम हम लोगों की इज्जत का तो खयाल रख. तू पढ़ीलिखी है, समझदार है, फिर भी मना करने के बावजूद तू बृजेंद्र से संबंध बनाए हुए है.’’

सुशीला ने गुस्से में आशा को डांटा भी और उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से समझाया भी, ‘‘बेटी, औरत की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं धुल पाता. अब भी समय है. तू बृजेंद्र को भूल जा. मैं जल्दी ही तेरा रिश्ता अच्छा घरवर देख कर कर दूंगी.’’

बदल गया आशा का मन…
मां की बात आशा के दिल को छू गई. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह बृजेंद्र को भुलाने की पूरी कोशिश करेगी. मांबाप उस का रिश्ता, जहां भी जैसा भी करेंगे वह स्वीकार कर लेगी. उस ने मां को अपने फैसले के बारे में बता भी दिया. बेटी के चेहरे पर विश्वास देख कर मां खुश हुई.

पुत्तीलाल आशा के लिए योग्य वर की खोज में जुट गया. थोड़ी मेहनतमशक्कत के बाद उसे एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाने अंतर्गत कुशहारी गांव निवासी बच्चूलाल लोध के 25 वर्षीय बेटे साजन के बारे में पता चला तो वह उस के घर पहुंचे. साजन उन्हें पसंद आ गया. साजन बीए पास कर चुका था और कंप्टीशन की तैयारी में जुटा था. कई प्रतियोगी परीक्षाओं में वह शामिल भी हो चुका था.

साजन के पिता बच्चूलाल के पास 10 बीघा उपजाऊ जमीन थी. जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. बच्चूलाल, पुत्तीलाल का दूर का रिश्तेदार भी था. इसलिए घरपरिवार जाना समझा था. घरवर पसंद आया तो पुत्तीलाल ने अपनी बेटी आशा की शादी साजन के साथ तय कर दी. चूंकि लड़का और लड़की दोनों पढ़ेलिखे थे, अत: तय हुआ कि जब लड़कालड़की एकदूसरे को देख लें और पसंद कर लेंगे, तभी शादी की तारीख फाइनल कर दी जाएगी.

कुछ दिन बाद साजन अपने मातापिता व बहनों के साथ आशा को देखने आया. दोनों ने एकदूसरे को देखा और बातचीत भी की. उस के बाद दोनों ने अपनी रजामंदी दे दी. इस के बाद सगाई की रस्म भी पूरी हो गई. शादी की तारीख तय हुई 12 मार्च, 2019.

इधर बृजेंद्र को आशा की शादी तय हो जाने की खबर लगी तो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उसे अपना सपना बिखरता नजर आया. आशा की बेवफाई की बात सुन कर बृजेंद्र विचलित हो उठा. वह उस दिन किसी तरह आशा से मिला और गुस्से में उस की आंखों में झांकते हुए शादी की सच्चाई के बारे में पूछा.

आशा को बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला नजर आ रही थी. सच कहने में ही उसे भलाई नजर आई. उस ने कहा, ‘‘हां, बृजेंद्र, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे मातापिता ने मेरी शादी तय कर दी है. अब तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं तुम्हें? मैं ने तुम से प्यार किया है, सपना संजोया था कि तुम मेरी दुलहन बनोगी. लेकिन तुम तो बेवफा निकली.’’

‘‘मैं बेवफा नहीं हूं, बृजेंद्र. मेरी मजबूरी समझो.’’ आशा ने बृजेंद्र को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम बेवफा नहीं तो और क्या हो? जब तुम्हें दूसरी जगह ही ब्याह रचाना था तो मुझे सपने क्यों दिखाए, क्यों मेरी दुलहन बनने का वादा किया. अब भी समय है आशा, तुम शादी के लिए मना कर दो और मांबाप के विरुद्ध खड़ी हो जाओ. मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

‘‘नहीं बृजेंद्र, मैं ऐसा नहीं कर सकती. मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है कि मांबाप के फैसले के खिलाफ कुछ कर सकूं.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’

‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है,” आशा ने दो टूक जवाब दिया और घर वापस चली गई.

बृजेंद्र नहीं छोड़ना चाहता था आशा को
आशा और बृजेंद्र के प्यार की डोर भले ही टूट गई थी, लेकिन इस सब के बावजूद दोनों की कभीकभी फोन पर बातें होती रहती थीं. इस बातचीत में बृजेंद्र अकसर आशा से कहता था कि वह रिश्ता तोड़ कर उस के साथ भाग चले. लेकिन आशा इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह घर से भाग कर मांबाप के मुंह पर कालिख नहीं पोतना चाहती.

लेकिन बृजेंद्र के दिलोदिमाग पर आशा कुछ इस तरह छाई थी कि उस के मना करने के बावजूद वह उसे भुला नहीं पा रहा था. कभी उसे आशा की बेवफाई पर गुस्सा आता तो कभी उस की मजबूरी पर तरस. आशा की वजह से उस की जिंदगी निराशा में बदल गई थी. अब उस का मन किसी भी काम में नहीं लगता था.

बृजेंद्र का एक दोस्त अजय बछरांवा कस्बे में रहता था. कस्बे में ढाबे के पास उस की मोबाइल शौप थी. बृजेंद्र हमेशा उसी की दुकान से मोबाइल रिचार्ज कराता था. इसी वजह से दोनों के बीच अच्छा परिचय हो गया था. बाद में धीरेधीरे यह परिचय दोस्ती में बदल गया था.

बृजेंद्र को जब भी मोबाइल रिचार्ज कराने की जरूरत होती थी उसे फोन कर लेता था. अजय उस का मोबाइल फोन रिचार्ज कर देता था. बृजेंद्र अपनी प्रेमिका आशा का मोबाइल फोन भी उसी से रिचार्ज कराता था. दोनों के प्रगाढ़ संबंधों की उसे जानकारी थी. बृजेंद्र स्वयं भी उस से हर बात शेयर करता था.

इधर कुछ समय से बृजेंद्र गुमसुम रहने लगा था. उस में आए बदलाव को देख कर अजय ने कारण पूछा तो उस ने अपने दिल की बात उसे बता दी.

अजय चूंकि बृजेंद्र का दोस्त था, इसलिए उस ने बृजेंद्र को सलाह दी कि वह आशा को भुला दे. क्योंकि अब वह किसी और की अमानत बनने जा रही है. आशा की खुशी के लिए उसे अपने सीने पर पत्थर रखना ही होगा.

बृजेंद्र ने दोस्त की सलाह पर कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन उस की बात स्वीकार भी नहीं की. आशा के प्यार में आकंठ डूबे बृजेंद्र ने एक शाम आशा के मोबाइल पर फोन कर के प्यार की दुहाई दी और उसे गांव के बाहर उसी बगीचे में बुलाया, जहां उन की पहली मुलाकात हुई थी.

उस ने कहा था कि एक हफ्ते बाद 12 मार्च को वह किसी और की हो जाएगी. इसलिए सिर्फ इस बार उस से मिल ले. बृजेंद्र की इस विनती को आशा ठुकरा नहीं सकी और उस से मिलने बगीचे में जा पहुंची.
आशा जैसे ही वहां पहुंची बृजेंद्र उसे अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘आशा, तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हें अपनी दुलहन बनाना चाहता हूं, जबकि तुम पीछे हट रही हो.’’

खुद को बृजेंद्र की बांहों में आजाद कर के आशा ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कह दिया था कि मैं अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठा सकती. मेरी वजह से मांबाप की इज्जत पर दाग लगे, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी.’’

‘‘प्यार करने वाले, इस सब की परवाह नहीं करते. तुम मुझ से प्यार करती हो, यह बात तुम न जाने कितनी बार कह चुकी हो. इसलिए अब तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए.’’ बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर विनती की, ‘‘हम दोनों बालिग हैं. इसलिए हम अपनी मरजी से शादी कर सकते हैं. शादी के बाद कुछ दिनों में घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा.’’

‘‘तुम कुछ भी कहो, पर मैं तुम्हें साफसाफ बता रही हूं. मैं तुम से कभी प्यार करती थी, लेकिन अब नहीं करती. इसलिए तुम से शादी नहीं कर सकती. भाग कर शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता. आशा ने अपना हाथ छुड़ाते हुए अपना आखिरी फैसला सुना दिया.’’

आशा के प्रति भर गई नफरत
आशा ने बृजेंद्र के प्यार को ठुकराया और शादी से इनकार किया तो उस के मन में आशा के प्रति नफरत और गुस्से की चिंगारी सुलगने लगी. एक रात बृजेंद्र ने मोबाइल फोन पर फिल्म ‘बेवफा सनम’ देखी. फिल्म की कहानी उस की असल जिंदगी की कहानी से मिलतीजुलती थी. आशा भी उस के प्यार को ठुकरा कर दूसरे से शादी रचा रही थी.

यह ‘बेवफा सनम’ फिल्म बृजेंद्र ने अपने मोबाइल फोन पर कई बार देखी. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि फिल्म की तरह वह भी आशा को उस की बेवफाई की सजा देगा.

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे बृजेंद्र की नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था. बृजेंद्र के चाचा लोधेश्वर के पास डबल बैरल (दोनाली) बंदूक थी. लोधेश्वर जब शादी तिलक समारोह में जाता था तो बंदूक साथ ले जाता था और शादी समारोह में हर्ष फायरिंग करता था. चूंकि बृजेंद्र भी चाचा के साथ जाता था, सो उस ने भी बंदूक चलानी सीख ली थी. चाचा के साथ वह भी हर्ष फायरिंग करता था.

12 मार्च, 2019 को मंगलवार था. उस दिन पुत्तीलाल की 22 वर्षीय बेटी आशा की शादी होनी थी. बारात उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाना अंतर्गत गांव कुशहरी से आनी थी. सुबह से ही पुत्तीलाल के घर पर चहलपहल शुरू हो गई थी. नातेरिश्तेदार आने शुरू हो गए थे. पुत्तीलाल अपने परिवार के लोगों के साथ व्यवस्था में जुटा था. उस की तमन्ना थी कि उस की बेटी की शादी में किसी तरह की कोई कमी न रह जाए.

बृजेंद्र भी शादी में कर रहा था सहयोग
बृजेंद्र के दिल में क्या था, और वह किस उधेड़बुन में लगा था. किसी को पता नहीं था. सुबह से ही वह पुत्तीलाल के घर मौजूद था और उस की हर तरह से मदद कर रहा था. कभी वह व्यंजन तैयार कर रहे हलवाइयों के पास जाता और उन्हें आदेश देता तो कभी डेकोरेशन का काम कर रहे कर्मचारियों को ठीक से डेकोरेशन करने की हिदायत देता. उसे देख कर किसी को नहीं लग रहा था कि उस के दिल में कोई भयंकर तूफान उमड़ रहा है.

घरपरिवार व रिश्तेदार महिलाएं मंगल गीत गाते हुए शादी की पूर्व होने वाली रस्मों को पूरा कर रही थीं. कुछ मंडप के नीचे परछन कर रही थीं तो कुछ गीत गाते हुए आशा को उबटन लगा रही थीं. कुछ ऐसी भी थीं जो चुहलबाजी और हंसीमजाक कर माहौल को खुशनुमा बना रही थीं. पूरा घर आंगन खुशियों से सराबोर था.

शाम ढलतेढलते सारी तैयारियां पूरी हो गईं. पंडाल सज गया और मेहमानों के बैठने के लिए पंडाल में कुरसियां डाल दी गईं. दूल्हादुलहन के लिए पंडाल में भव्य स्टेज सजाया गया. पूरा पंडाल लाइटों से जगमगा रहा था. छोटछोटे बच्चे सजधज कर मस्ती करने लगे थे.

आशा भी अपनी सहेलियों के साथ सजधज कर अपने कमरे में आ गई थी. वह बछरावां स्थित मधु ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराने गई थी. सजीधजी आशा आज बेहद खूबसूरत लग रही थी. सखीसहेलियां उस से हंसीमजाक कर रही थीं, जबकि वह अपने भविष्य के सुनहरे सपनों में खोई थी.

रात साढ़े 10 बजे के लगभग बारात गाजेबाजे के साथ पुत्तीलाल के दरवाजे पर पहुंची. पुत्तीलाल ने हर एक बाराती के गले में फूलमाला डाल कर स्वागत किया. फिर दूल्हे साजन को स्टेज पर लाया गया. उस समय रिश्तेदारों, गांव वालों और बारातियों से पूरा पंडाल भरा हुआ था. सजीधजी महिलाओं की रौनक देखते ही बन रही थी. सभी खुशी में डूबे हुए थे.

कुछ देर बाद आशा दुलहन के वेश में स्टेज पर आई. उस के साथ उस की सहेलियां भी थीं. स्टेज पर दूल्हा और दुलहन ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर सिर झुका लिया. फिर एकदूसरे को जयमाला पहना कर रस्म पूरी की. कई युवकयुवतियां खुशी से स्टेज के सामने नाचने लगे. इस के बाद वरवधू को दोनों पक्षों के लोग आशीर्वाद देने आने लगे. फोटोग्राफर फोटो खींचने में लगा था.

शादी का स्टेज हो गया खून से लाल
जयमाला होने के बाद स्टेज पर दुलहन आशा और उस के दूल्हे साजन का फोटो सेशन चल रहा था. तभी अचानक आशा का पूर्व प्रेमी बृजेंद्र कुमार अपने चाचा लोधेश्वर की दोनाली बंदूक ले कर वहां आ धमका. बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला साफ झलक रही थी.

उस के हाथ में बंदूक देख कर आशा सहम गई और उठ कर खड़ी हो गई. उसी समय बृजेंद्र आशा के नजदीक आ कर बोला, ‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी, तो मैं जीते जी तुम्हें किसी और की दुलहन बन जाने दूंगा. नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता.’’

इसी के साथ बृजेंद्र ने आशा पर फायर झोंक दिया. गोली उस के पेट में धंसी और वह खून से लथपथ हो कर स्टेज पर ही गिर पड़ी. गांव के 2 साहसी युवक बृजेंद्र के हाथ से बंदूक छीनने उस की ओर लपके लेकिन बृजेंद्र उन दोनों पर भी बंदूक तानते हुए बोला, ‘‘खबरदार, जो मेरे पास आए. अभी हिसाब बराबर नहीं हुआ.’’ कहते हुए बृजेंद्र ने बंदूक की नाल अपने गले पर सटाई और ट्रिगर दबा दिया.

धांय की आवाज के साथ बृजेंद्र भी जमीन पर बिछ गया. कुछ देर छटपटाने के बाद आशा और बृजेंद्र दोनों ने दम तोड़ दिया.

इधर गोली चलने की आवाज सुन कर लोगों में भगदड़ मच गई. दूल्हा साजन तो बेहोश ही हो गया. बच्चूलाल उसे कार में डाल कर अपने गांव की ओर भागा. अन्य बाराती भी भाग लिए. बारातियों को इस बात का संतोष था कि दूल्हा सहीसलामत था और किसी भी बाराती को हानि नहीं पहुंची थी.

डोली की जगह उठी अर्थी
जिस घर में कुछ देर पहले खुशियां छाई थीं. अब वहां मौत की परछाइयों के अलावा कुछ नहीं था. चारों ओर चीखपुकार मची थी. आशा के मातापिता व घर वाले उस के शव के पास विलाप कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर बृजेंद्र के मातापिता और परिजन आंसू बहा रहे थे. गांव वाले भी अवाक थे कि जिस घर से सुबह डोली उठनी थी, वहां से अब अर्थी उठेगी.

इसी बीच किसी ने मोबाइल फोन के जरिए इस गंभीर वारदात की सूचना थाना बछरावां को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी रविंद्र सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाने से रवाना होते समय उन्होंने वारदात से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. शेखपुरा समोधा गांव, बछरावां थाने से मात्र 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

रात करीब 12 बजे के लगभग एसपी सुनील कुमार सिंह, एएसपी शशि शेखर सिंह तथा सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही भी घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी रवींद्र सिंह पहले से ही वहां मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. स्टेज पर एक युवती की लाश पड़ी थी, जो दुलहन के वेश में थी और स्टेज के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी. पूछताछ से पता चला कि युवती का नाम आशा था और मृतक बृजेंद्र कुमार था.

आशा की उम्र 22 वर्ष के आसपास थी, जबकि बृजेंद्र की उम्र लगभग 25 वर्ष थी. मृतक के पास दोनाली बंदूक पड़ी थी. इसी बंदूक से वारदात को अंजाम दिया था. अत: पुलिस ने जांच हेतु बंदूक अपने पास सुरक्षित रख ली.

घटनास्थल पर मृतका और मृतक के मातापिता व घर वाले मौजूद थे. एसपी सुनील कुमार सिंह व अपर पुलिस अधीक्षक शशिशेखर सिंह ने उन सब से पूछताछ की तो पता चला कि यह सब प्रेम प्रसंग की वजह से हुआ है.

इस मामले में सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही ने मौके पर मौजूद गवाह रमेश आदि के बयान दर्ज किए. वहीं थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के मातापिता सुशीला और पुत्तीलाल तथा बृजेंद्र के पिता जागेश्वर व उस के भाई लोधेश्वर के बयान दर्ज किए. इस के बाद दोनों शव राजकीय अस्पताल रायबरेली पोस्मार्टम हेतु भेज दिए.

पुलिस अधिकारियों ने दूसरे रोज थाने बुला कर दूल्हे साजन तथा उस के पिता बच्चूलाल से भी पूछताछ की. उन के भी बयान दर्ज किए गए.

इधर थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के पिता पुत्तीलाल को वादी बना कर आशा की हत्या के आरोप में भादंवि की धारा 302 के तहत बृजेंद्र कुमार के विरुद्ध रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन बृजेंद्र द्वारा आत्महत्या कर लेने से इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

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