मधु की शादी के बाद की पहली दीवाली थी. ससुराल में सब खुश थे. पूरे घर में चहलपहल थी. घर में नई बहू आई थी, सो ननद परिवार समेत दीवाली सैलिब्रेट करने आई थी. मधु ससुराल वालों की खुशी में खुश थी मगर उस के मन के एक कोने में मायके के सूने आंगन का एहसास कसक पैदा कर रहा था. वह एकलौती बेटी थी. शादी के बाद उस के मांबाप अकेले रह गए थे. मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. वैसे भी, पहले पूरे घर में उस की वजह से ही तो रौनक रहती थी. अब उस आंगन में कौन दौड़दौड़ कर दीये जलाएगा, यह एहसास उस के दिल के अंदर एक खालीपन पैदा कर रहा था.

मधु ने पति से कुछ कहा तो नहीं, मगर उस के मन की उदासी पति से छिपी भी न रह सकी. पति ने मधु से रात 9 बजे के करीब कार में बैठने को कहा. मधु हैरान थी कि वे कहां जा रहे हैं. गाड़ी जब उस के मायके के घर के आगे रुकी तो मधु की खुशी का ठिकाना न रहा. घर में सजावट थी पर थोड़ीबहुत ही. वह दौड़ती हुई अंदर पहुंची. मां बिस्तर पर बैठी थीं और पापा किचन में कुछ बना रहे थे. अपनी लाड़ली को देखते ही दोनों ने उसे गले लगा लिया. बीमार मां का चेहरा खुशी से दमकने लगा. दोनों करीब 1 घंटे वहां रहे. घर को रोशन कर जब वापस लौटे तो मधु का दिल पति के प्रेम में आकंठ डूबा हुआ था.

खुशियों के त्योहार दीवाली का आनंद पूरे परिवार के साथ मनाने में आता है.  एक लड़की के लिए उस का मायका और ससुराल दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं.  शादी के बाद उसे अपनी ससुराल में ही दीवाली मनानी होती है और तब वह अपनी मां के हाथों की मिठाई व भाईबहनों की चुहलबाजियां बहुत मिस करती है.  आज जबकि परिवार वैसे ही काफी छोटे होते हैं, दीवाली में सब के साथ मिल कर ही खुशियां बांटी जा सकती हैं.

शरीर से स्त्री भले ही ससुराल में हो  पर उस के मन का कोना मायके की याद में गुम रहता है. क्यों न इस दीवाली की रोशनी हर आंगन में बिखेरें. कभी पति की ससुराल तो कभी पत्नी की ससुराल खुशियों से आबाद करें.

कहां मनाएं दीवाली

आमतौर पर शादी के बाद की पहली दीवाली रिश्तों को बनाने और उन्हें रंगों से सजाने में खास महत्त्वपूर्ण होती है. यह दिन ससुराल में ही बीतना चाहिए ताकि नई बहू के आने की खुशी दोगुनी हो जाए. पर ध्यान रहे आप की बहू किसी घर की बेटी भी है. वह आप के घर में रौनक ले कर आई है पर उस का मायका सूना हो चला है. तो क्यों न पत्नी के मायके को भी नए दामाद के आने की खुशी से रोशन किया जाए.

यदि पत्नी का मायका और ससुराल एक ही शहर में हैं तो दोनों परिवार मिल कर भी दीवाली मना सकते हैं. इस से दोनों परिवारों को आपस में घुलनेमिलने का मौका मिलेगा और बच्चे भी दोनों परिवारों से जुड़ सकेंगे. दोनों घरों की खुशियों के लिए यह भी किया जा सकता है कि पतिपत्नी दोचार घंटे के लिए बच्चों को नानानानी के पास छोड़ आएं.

यदि दोनों घर अलगअलग शहरों में हैं तो पतिपत्नी बच्चों को ले कर एक दीवाली ससुराल में तो दूसरी मायके में मना सकते हैं.

आजकल कई घरों में एकलौती  बेटियां होती हैं. ऐसे में लड़की के मायके वाले यानी उस के मांबाप को भी हक  है कि वे अपनी बेटी और उस के बच्चों के साथ अपने जीवन की खुशियां बांटें.

जब पति दीवाली में अपनी ससुराल जाए तो दामाद के बजाय बेटे की तरह जाए.  अपनी आवभगत  कराने के बजाय इस बात का खयाल ज्यादा रखे कि सासससुर के लिए तोहफा क्या ले जाना है या मिठाइयों, कपड़ों, पटाखों और सजावटी सामानों का बढि़या इंतजाम कैसे किया जाए या घर को इस दिन कैसे अधिक खूबसूरत बनाया जाए या फिर सासससुर के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं कैसे दूर की जाएं.

पति की ससुराल का अर्थ है पत्नी के मांबाप का घर. जब पत्नी पति के मांबाप को अपने मांबाप और उस के घर को अपना घर मान सकती है तो पति क्यों नहीं? आखिर मांबाप तो लड़के के हों या लड़की के, उतने ही प्यारदुलार और केयर के साथ अपने बच्चों का पालनपोषण करते हैं. तो क्या लड़की के मांबाप को  बुढ़ापे में अपने बच्चों का प्यार और साथ पाने का हक नहीं है?

झगड़े दूर करें

यदि किसी बात को ले कर दोनों घरों में किसी भी तरह का मनमुटाव है तो दीवाली के मौके पर उसे जरूर दूर कर दें. परस्पर आगे बढ़ने और खुशियों को बांटने से ही जीवन सुखद बनता है.

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