नशे को छोड़कर जिंदगी को चुनें

नशे की लत वह भयंकर बीमारी है, जो न केवल उस शख्स को, बल्कि उस के पूरे परिवार को खोखला कर देती है. इस की भयावहता का अंदाजा उस परिवार को देख कर आसानी से लगाया जा सकता है, जिस का मुखिया ही नशे की गिरफ्त में हो. नशेड़ी बेरोजगार हो जाता है और तरहतरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है. उस के परिवार की हालत दरदर भटकते भिखारी जैसी हो जाती है और उस की समाज में इज्जत वगैरह सब खत्म हो जाती है. नशेड़ी 2 तरह के होते हैं. एक वे, जो नशा करने को बुरा नहीं मानते हैं. दूसरे वे, जो इसे बुरा मानते हैं, पर लत से मजबूर हैं. जो बुरा नहीं मानते हैं, उन को कुछ भी समझाओ, उन के पास जवाब पहले से हाजिर होते हैं. आओ उन के जवाब देखते हैं :

सवाल : अरे भैया, देखो तो नशे से तुम्हारा शरीर कैसा हो गया है?

नशेड़ी : कैसा हो गया है. एक दिन तो सब का शरीर मिट्टी में मिलना ही है.

सवाल : पर उस दिन के आने से पहले ही क्यों मरना चाहते हो?

नशेड़ी : आप को पता है क्या, मौत कब आएगी? मौत तो जब आनी है, तब आएगी.

सवाल : देखो कितना पैसा इस में लग जाता है. सही कहा न?

नशेड़ी : मैं अपने पैसे की पीता हूं, आप से मांगने तो नहीं आता?

सवाल : तुम्हारी पत्नी, मांबाप, बच्चे सब दुखी होंगे?

नशेड़ी : उन की चिंता मुझे करनी है. आप अपने काम से काम रखो.

इस दर्जे के नशेडि़यों से नशा नहीं छुड़ा सकते. नशा छुड़ाने के लिए इन्हें ‘नशा मुक्ति केंद्र’ में ले जाना ही उचित रहेगा. दूसरे नशेड़ी वे हैं, जो नशे को बुरा मानते हैं. वे इसे छोड़ना भी चाहते हैं, पर लत से मजबूर हैं. ऐसे नशेड़ी अगर कोशिश करें, तो नशा छोड़ सकते हैं. कुछ सुझाव पेश हैं:

1. बुरी संगत से दूर रहें

नशा देखादेखी का शौक है. अगर ऐसे लोगों से दूर रहें जो नशा करते हैं, तो आप की इच्छा नहीं होगी या इच्छा होगी भी, तो आप दबा पाएंगे. ऐसे लोगों को आप को बताना भी नहीं चाहिए कि आप ने नशा करना छोड़ दिया है, वरना वे आप को जबरदस्ती उस जगह ले जाएंगे और तरहतरह से आप को फुसलाएंगे. फिर आप खुद को रोक नहीं पाएंगे, इसलिए ठीक यही है कि ऐसे लोगों की संगत से दूर रहें.

2. अपनी सेहत पर ध्यान दें

कभी जिम में जाना शुरू करें, सुबह घूमने जाना शुरू करें. हर रोज आईने में देखें और अपनेआप से कहें कि अब चेहरा कितना सुंदर होता जा रहा है. अच्छे कपड़े पहनें और बनठन कर रहना शुरू करें.

3. परिवार के साथ रहें

आमतौर पर नशे की तलब एक खास समय पर होती है. उस समय अपने परिवार के साथ बिताएं. परिवार को भी चाहिए कि उस समय नशे करने वाले सदस्य को जितना हो सके, बिजी रखें. प्यार भरा बरताव करें और किसी भी बात पर उन्हें गुस्सा न दिलाएं.

4. जेब में पैसे न रखें

जहां तक हो सके, जेब में पैसे ही न रखें या बहुत ही कम रखें. जब जेब में पैसे ही नहीं होंगे, तो आप नशा खरीद नहीं पाएंगे और तलब का समय निकल जाएगा.

5. ऐसी जगह से बचें

आनेजाने का रास्ता बदल लें, जहां आप नशा करते थे. कितनी भी तलब उठे, उस जगह न जाएं. इसी तरह से शादी या दूसरे कार्यक्रमों में जहां नशे की पार्टी चल रही हो, वहां न जाएं. आप खुद को शाबाशी दें कि आप में कितनी मजबूती है. इस से तलब धीरेधीरे कम हो जाएगी. शुरू में ज्यादा तलब होगी, पर अगर आप मन को मजबूत रखेंगे और नशा नहीं करेंगे, तो जैसेजैसे दिन बीतते जाएंगे, आप की तलब कम होती जाएगी और धीरेधीरे खत्म हो जाएगी.

6. शपथ ले लीजिए

आप शपथ भी ले सकते हैं कि चाहे कोई मुझ पर कितना भी दबाव डाले, मैं  प्रतिज्ञा करता हूं कि अब किसी तरह का नशा नहीं करूंगा.

इसे रोजाना 3 बार बोलिए. जब भी आप को नशे की तलब उठे, तो मन को मजबूत बनाए रखें. कुलमिला कर आप को हर हाल में अपने मन की मजबूती बनाए रखनी है. न तो यह सोचें कि आज नशा कर लेते हैं, कल से नहीं लेंगे. बहादुर बनिए. गम का डट कर सामना कीजिए. इस बात पर भरोसा रखिए कि समय के साथसाथ सब ठीक हो जाता है. पहले भी आप की जिंदगी में कितने ही गम आए होंगे, पर आज वे बीती बात बन गए हैं. इसी तरह से ये भी आने वाले समय में बीती बात बन जाएंगे. आप इस दुनिया में नशेड़ी बनने के लिए नहीं आए हैं. आप की जिंदगी बहुत कीमती है. यह दोबारा नहीं मिलेगी. इसे नशे की भेंट न चढ़ाइए.

रेड वाइन है सेहत के लिए फायदेमंद, जानें कैसे

हाल ही में एक रिसर्च के अनुसार रेड वाइन में मौजूद एक ऐसा यौगिक (Compound) पाया है जो डीप्रेशन और टेंशन से निपटने की क्षमता रखता है. इस वाइन को रोज अगर आप सिमित मात्रा में ले तो आप काफी रोगों से सुरक्षित रहेंगे. रेड वाइन रेसवेराट्रोल का होता है. इस कंपोउंड में एंटीऔक्सिडेंट गुण होता है जो आपको टेंशन से दूर रखता हैं. ध्यान देने वाली बात ये है की रेड वाइन में अल्कोहल होता है- जिसका अगर अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. रेड वाइन का कभी-कभार सेवन जब आप थोड़ा बहुत तनाव महसूस करते हैं तो सहायक हो सकता है.

अब तक, कंपाउन्ड में एंटी-डिप्रेसेंट के समान प्रभाव पाए गए थे. लेकिन इसके संबंध फौस्फोडाइस्टरेज़ 4 के साथ थे, जोकि स्‍ट्रेस हार्मोन कौर्टिकौस्टेरौन से प्रभावित एक एंजाइम थे. अंगूर और जामुन रेड वाइन की तुलना में रेसवेराट्रौल का एक बेहतर सौर्स हैं.

  • रेस्वेराट्रोल (Resveratrol) आपके हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है और कैंसर और यहां तक कि दृष्टि हानि से सुरक्षा प्रदान कर सकता है.
  • रेड वाइन प्लाज्मा और लाल रक्त कोशिकाओं में ओमेगा-3 फैटी एसिड के स्तर में वृद्धि कर सकता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड हृदय स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं.
  • अध्ययनों से पता चला है कि एक ग्लास रेड वाइन पीने से टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम को कम किया जा सकता है. बहरहाल, डायबिटीज के रोगियों को अपने डाक्टर से परामर्श लेने के बाद ही वाइन पीना चाहिए.
  • ब्रिटेन स्थित वैज्ञानिकों ने पाया कि रेड वाइन में मौजूद प्रोसेनिडिन्स रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं. वाइन जो पारंपरिक उत्पादन विधियों के साथ तैयार की जाती है, रेड वाइन यौगिकों को निकालने में अधिक प्रभावी प्रतीत होती है, इस प्रकार वाइन में प्रोसीएनिडिन के उच्च स्तर तक ले जाती है.
  • जौन्स हौपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल औफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि रेस्वेराट्रोल, मस्तिष्क को स्ट्रोक से होने वाले नुकसान से बचा सकता है.

आखिर क्यों यौन अक्षमता से पीड़ित होती हैं महिलाएं, जानें कारण

अगर आपका पार्टनर लम्‍बे समय से सेक्‍स के लिए न कह रही हैतो यह चिंता का विषय हो सकता है. ये भी संभव है कि आपकी पार्टनर सेक्‍स के प्रति रुझान न होने की समस्‍या से जूझ रही है. इसे महिला यौन अक्षमता भी कहा जाता है.

इस शब्द का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो अपने साथी को सेक्‍स के दौरान सहयोग नहीं करता. महिलाओं में एफएसडी यानी फीमेल सेक्सुअल डिसफंक्शन होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे सेक्स के दौरान दर्द या मनोवैज्ञानिक कारण. 

ज्यादातर मामलों मेंहालांकिएफएसडी को मनोवैज्ञानिक कारणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इस परिदृश्य मेंमहिलाओं के लिए किसी पेशेवर से मदद लेना महत्वपूर्ण होता है.

इस समस्या के मुख्य कारण हैं ;

1. मनोवैज्ञानिक कारण

पुरुषों के लिए सेक्‍स एक शारीरिक मुद्दा हो सकता हैलेकिन महिलाओं के लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा है. पिछले बुरे अनुभवों के कारण कुछ महिलाएं भावनात्मक रूप से टूट जाती हैं. वर्तमान में बुरे अनुभवों के कारण मनोवैज्ञानिक मुद्दे या फिर अवसाद इसका कारण हो सकता है.

2. और्गेज्‍म तक न पहुंच पाना

एफएसडी का दूसरा भाग एनोर्गस्मिया कहलाता है. यह स्थिति तब होती है जब व्‍यक्ति को या तो कभी और्गेज्‍म नहीं होता या वह कभी इस तक पहुंच ही नहीं पाता.र्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता भी एक मेडिकल कंडीशन है. सेक्स में रुचि की कमी और और्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता दोनों ही स्थिति गंभीर हैं. 

यह मुख्य रूप से इसलिए होता है क्योंकि महिलाएं अधिक फोरप्ले पसंद करती हैं. अगर ऐसा नहीं हो रहा तो और्गेज्‍म तक पहुंचना मुश्किल है. इसका मनोचिकित्सा के माध्यम से इलाज किया जा सकता है. महिलाओं को अपने रिश्ते में सेक्स के साथ समस्याएं होती हैं. यदि आपको ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हैतो आपको अपने एंड्रोलौजिस्ट को जल्द से जल्द दिखाना चाहिए ताकि समस्या संबंधों को प्रभावित न करे.

3.  फीमेल सेक्सुअल डिसफंक्शन का इलाज और उपचार

जहां तक घरेलू उपचार का सवाल हैएफएसडी के इलाज में वास्तव में यह बहुत प्रभावी नहीं होते. बाजार में कई तरह के महिला वियाग्रा मौजूद हैं लेकिन ये आमतौर पर अपेक्षित नतीजे नहीं दे पाते. महिलाएं लेजर के साथ योनि कायाकल्प ट्राई कर सकती हैं. आप चाहें तो प्लेटलेट रिच प्लाज़्मा (पी आर पी ) थेरेपी भी अपना सकती हैं. इस क्षेत्र में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के लिए योनि के पास इंजेक्शन दिया जाता है. इसे ओ-शौट के रूप में जाना जाता है.

यदि आप यौन संबंध का आनंद नहीं ले रहे हैं तो डाक्टर को दिखाना जरूरी है। उसके बाद डाक्टर जांच करेगा. दोनों भागीदारों के लिए यौन परामर्श उपयोगी हो सकता है. दिनचर्या बदलने और अलग-अलग पदों की कोशिश करके इसे और अधिक रोचक बनाने की कोशिश करना उपयोगी हो सकता है. योनि क्रीम या स्नेहक की कोशिश की जा सकती है.

ज्यादातर महिलाओं कोविशेष रूप से जब वे बूढी हो जाती हैं तो संभोग शुरू करने से पहले अधिक उत्तेजना और फोरप्ले की आवश्यकता होती है. योनि प्रवेश के साथ ज्यादातर महिलाओं को संभोग के दौरान संतुष्टि नहीं होती है. उन्हें अपने साथी द्वारा अपने निप्पलस और क्लिटोरिस को संभोग करने में सक्षम होने के लिए चूमने, छूने इत्यादि की आवश्यकता हो सकती है. हस्तमैथुन या मौखिक सेक्स जैसी अन्य यौन गतिविधियों की कोशिश की जा सकती है.

गंभीर स्वास्थ समस्या के लिए भी असरकारक है मुलेठी

इस भागदौड़ भरी जिंदगी सेहत से जुड़ी समस्या का होना एक आम बात है. सर्दी जुखाम एक ऐसी समस्या है जो मौसम के बदलने पर सभी को हो ही जाती है और इसे एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है  खत्म होने में. कई बार तो हम इन छोटी-छोटी समस्या के लिए डाक्टर की सलाह भी नही लेते. आयुर्वेद ने हम ऐसी कई औषधी से मिलाया है जिसके इस्तेमाल से एक दो नहीं बल्कि कई बीमारियों में फायदेमंद शाबित हो सकती है. जी हां हम बात कर रहे है स्वाद में मीठी मुलेठी की. आमतौर पर मुलेठी का इस्‍तेमाल पान में किया जाता हैं. मुलेठी सर्दी-जुखाम जैसी छोटी बीमारियों के साथ-साथ आपकी कई अन्‍य बड़ी बीमारियों में भी वरदान साबित हो सकती है. तो चलिए जानते है मुलठि के फायदें…

बच्चे को स्‍तनपान के संबंध में

अधिकतर महिलाओं में गर्भावस्‍था के बाद दूध का उत्‍पादन र्प्‍याप्‍त नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में आप मुलेठी का सेवन कर सकते हैं. इसके लिए आप 2 चम्‍मच मुलेठी पाउडर, 3 चम्‍मच शतावरी पाउडर और 2 ग्राम मिश्री को एक गिलास उबले दूध में मिलाकर पिएं. इससे महिला के दूध उत्‍पादन में वृद्धि होती है और बच्‍चे के लिए र्प्‍याप्‍त मां का दूध मिल पाता है.

अल्‍सर और कमजोरी के लिए रामबाण

अगर आप हमेशा थका हुआ महसूस करते हैं, तो आप 2 ग्राम मुलेठी चूर्ण के साथ 1 चम्‍मच घी और 1 चम्‍मच शहद को गर्म दूध के साथ मिलाकर पिएं. इससे आपकी थकान व कमजोरी दूर होगी. इसके अलावा पेट में अल्‍सर की समस्‍या होने पर आप 1 गिलास दूध के साथ 1 चम्‍मच मुलेठी चूर्ण मिलाकर दिन में 2 या 3 बार मिलाकर पी सकते हैं.

दिल की समस्या के लिए असरकारक

अगर आप दिल की बीमारी से परेशान है तो इसके लिए आप 2 ग्राम मुलेठी और 2 ग्राम कुटकी का चूर्ण,  ग्राम मिश्री लें और इसे एक गिलास पानी में घोल लें. इसे आप प्रतिदिन दो बार से अधिक न पिएं. अगर आपको दिल की बीमारियों के अलावा भी कोई रोग या समस्या है, तो उसमें भी आपको इससे फायदा मिलेगा.

एक ग्लास पानी करे सभी समस्याओं को दूर, जानें कैसे

पानी का महत्व यूं तो हम सभी जानते है. पानी हमारे जीवन की उन औषधियों में से एक है जिसके पीने मात्र से कई सारी बीमारियों को हम खुद से दूर रख सकते है. अगर आप नियमित रुप से पानी पीते है और दिनभर में कम से कम 1.5 लि. पानी पीते है तो यकीन मानिएं आप कई सभी शरिरीक समस्या से बच सकते है. तो चलिएं जानते है पानी कैसे और की समस्या के लिए फायदेमंद है…

1. अगर करना है वजन कम तो पिएं पानी

वजन कम करने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है कि आप आपने सभी ड्रिंक्‍स को पानी के साथ बदल दें. जब आप ज्यादा पानी का सेवन करते हैं तो आपका वजन तेजी से कम होता है. आप सभी पेय को नौ दिनों के लिए पानी से बदल देते हैं तो आप दिन में 8 किमी दौड़ते के बाराबर कैलोरी बर्न करते हैं.

2. मेटाबौलिज्‍म को बढ़ाता है पानी

पानी के साथ अपने सभी पेय को बदलने से आपके डाईजेशन सुधरेगा और आपकी ऊर्जा का स्तर बढ़ेगा. इसलिए दिन भर खूब पानी पिएं और पूरे दिन एनर्जेटिक बने रहें. यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने के लिए आपकी दक्षता (Efficiency) में भी सुधार करेगा.

3. ब्रेन के लिए हेल्दी है पानी पीना

ह्यूमन ब्रेन का 75% से 85% तक पानी है, इसलिए अधिक पानी पीने से आपको बेहतर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी. आप डेली के सभी काम को जल्दी और कुशलता से करेंगे.

4. क्रैविंग से दूर रखे पानी

जब आप पानी पीते हैं तो आप कम खाते हैं. यदि आपमें कैलोरी लेने की तीव्र इच्‍छा होती है, तो बस एक गिलास पानी पिएं. यह आपके वजन को प्रबंधित करने और आपको स्वस्थ रखने में आपकी मदद करेगा. कभी-कभी प्यास cravings को ट्रिगर करती है. हर समय अपने साथ पानी रखें और अनावश्यक कैलोरी को अलविदा कहें.

भरपूर पानी पीने से कई बीमारियों और हाई ब्लडप्रेशर, हृदय रोगों, मूत्राशय की स्थिति और डाईजेशन से संबंधी जैसी गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का खतरा कम हो जाता है. इसलिए अधिक पानी पीकर डाक्टर के पास जाने के अपने अवसरों को कम करें और स्वस्थ जीवन जिएं.

अगर आपके अंदर भी है सिक्स पैक ऐब्स का जुनून तो जरूर पढ़ें ये खबर

युवा अपने बौडी लुक और फिटनैस को ले कर कुछ ज्यादा ही क्रेजी हो गए हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि सिक्स पैक बनाना इतना आसान नहीं है. इस के लिए संतुलित डाइट के साथसाथ ट्रेनर की देखरेख में ऐक्सरसाइज करने की जरूरत भी होती है.

अगर आप फिट हैं तो हर खुशी हासिल कर सकते हैं और फिटनैस आप को मिलेगी संतुलित डाइट और नियमित व्यायाम से.

बौडी बनाने का अर्थ है मांसपेशियों को कसना, जिस से कि आप सुडौल दिखें. इस काम में खासी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐब्स बनाने के लिए कार्बोहाइड्रेट तथा फैट की मात्रा को घटा कर प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई जाती है, ताकि मांसपेशियां सख्त हो सकें.

चाहिए सिक्स पैक तो देना होगा समय

यदि आप चाहते हैं कि आप की बौडी सुडौल व आकर्षक बने, तो इस के लिए आप को समय निकालना होगा. ‘बौडी फिटनैस सैंटर’ के ट्रेनर पवन मान के मुताबिक, ‘‘युवाओं को सिक्स पैक बनाने से पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उन की बौडी पर फैट कितना चढ़ा है. यदि शरीर अधिक फैटी है तो पहले उसे घटाने के लिए कुछ खास तरह की ऐक्सरसाइज करनी होती है. साथ ही डाइट पर भी ध्यान देना होता है.’’

यदि आप फैटी हैं तो जिम जाने से पहले नियमित व्यायाम बहुत जरूरी है. नियमित व्यायाम में स्विमिंग, साइकिलिंग, जौगिंग आदि जरूरी हैं. इन के अलावा मौर्निंगवाक भी बहुत जरूरी है.

वैसे सिक्स पैक ऐब्स बनाने के लिए जिम ट्रेनर कई प्रकार के डाइट सप्लिमैंट्स देते हैं, जिन में सिंथैटिक पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं. ये तत्त्व शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. आमतौर पर लिए जाने वाले सप्लिमैंट्स में क्रिएटिन, प्रोटीन, स्टीरायड आदि हारमोन होते हैं. इस बारे में वरिष्ठ चिकित्सक डा. उमेश सरोहा कहते हैं, ‘‘ये पोषक तत्त्व शरीर को सुडौल बनाने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. सुडौल बौडी पाने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित डाइट ज्यादा लाभदायक है.’’

कुछ लोग फैट कम करने के लिए अपने भोजन से फैट वाली चीजें बिलकुल हटा देते हैं, जिस से शरीर को लाभ पहुंचने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचता है. फैट की अधिक कमी से शरीर के अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए फैट की प्रचुर मात्रा शरीर के लिए बहुत जरूरी है.

फिटनैस के लिए जरूरी डाइट

–       सिक्स पैक बौडी के लिए फाइबरयुक्त भोजन लेना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस से शरीर का विकास होता है. प्रोटीन की मात्रा बनाए रखने के लिए मौसमी फलों का सेवन बहुत लाभदायक है.

–       सुबह का नाश्ता अति आवश्यक है. नाश्ता हैवी व लंच हलका लें. डिनर तो नाश्ते व लंच से भी हलका लें. इस तरह का चार्ट बना लें. यह आप की सेहत के लिए जरूरी है.

–       दिन भर में कम से कम 10 गिलास पानी पीएं. पानी हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, क्योंकि अधिक ऐक्सरसाइज करने से शरीर में डिहाइडे्रशन की आशंका बनी रहती है, इसलिए इस से बचने के लिए व्यक्ति को अपने वजन के हिसाब से पानी पीना चाहिए.

–       ढेर सारा भोजन एकसाथ न लें. हिस्सों में बांट कर दिन में कई बार भोजन करें. इस से पाचन तंत्र मजबूत बना रहता है. साथ ही ऐक्सरसाइज करने के लिए और अधिक ताकत मिलती है.

–       हरी सब्जियों का सेवन ज्यादा करें. ये शरीर को ऊर्जा देने के साथसाथ आप को तरोताजा रखती हैं. प्रोटीन डाइट में अंडा, पनीर, दूध, दही, मछली आदि लें.

–       अलकोहल का सेवन बिलकुल न करें. यह आप के शरीर को बेकार करता है.

–       भोजन नियमित मात्रा में ही लें. संतुलित आहार शरीर को रोगमुक्त रखता है. एक सीमा में रह कर ही जिम में वर्कआउट करें. ऐसी किसी दवा का सेवन न करें, जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

जोड़ों के दर्द को न करें अनदेखा

कुछ तरह के गठिया में जोड़ों का बहुत ज्यादा नुकसान होता है. गठिया यानी जोड़ों की सूजन, जो एक या एक से ज्यादा जोड़ों पर असर डाल सकती है. डाक्टरों की मानें, तो हमारे शरीर में 10 से ज्यादा तरह का गठिया होता है.

गठिया जोड़ों के ऊतकों में जलन और टूटफूट के चलते पैदा होता है. जलन के चलते ही ऊतक लाल, गरम, सूजन और दर्द से भर जाते हैं. गठिया के लक्षण आमतौर पर बुढ़ापे में दिखते हैं, लेकिन आजकल ये लक्षण बच्चों और नौजवानों में भी देखे जा रहे हैं.

क्यों होता है गठिया

पोषण की कमी और प्रदूषण के चलते गठिया की बीमारी आज बच्चों, नौजवानों और बूढ़ों तक सभी को अपना निशाना बना रही है. इस की वजह आनुवांशिक भी हो सकती है.

अगर इस बीमारी का समय पर और जल्दी इलाज नहीं करवाया जाए तो यह स्थायी अपंगता की वजह भी बन सकती है. इस हालत में चलनाफिरना और घर के आम कामकाज करने में भी परेशानी होने लगती है.

घुटनों और कुहनी की जकड़न चलनाफिरना तक मुश्किल कर देती है और ज्यादातर बैठे रहने की वजह से शरीर का वजन बढ़ने लगता है और बीमारी और भी खतरनाक हो जाती है.

पहचानें लक्षण

गठिया में शरीर के जोड़ों में दर्द और सूजन महसूस होती है. कई बार जोड़ों में पानी भर जाता है. एक जगह बैठे रहने पर अकड़न होती है. हर वक्त थकान महसूस होती है. भूख भी कम लगती है और धीरेधीरे वजन भी कम होने लगता है. कई बार बुखार भी आता है.

कई मामलों में ये लक्षण कुछ दिनों बाद ही दिखने लगते हैं, तो कुछ में कई महीनों या सालों बाद ये लक्षण सामने आते हैं. कई लोगों में ये लक्षण उभर कर ठीक भी हो जाते हैं और दोबारा कुछ साल बाद वापस आ सकते हैं.

गठिया में जब बीमारी अपनी हद होती है, तो सुबह उठने के साथ ही जोड़ों, हड्डियों में दर्द के साथ अकड़न भी होती है और यह अकड़न तकरीबन 1 घंटे से 5 घंटे तक बनी रहती है.

शुरुआती हालात में डाक्टर जोड़ों में दर्द के प्रकार, सूजन वगैरह के आधार पर ही बीमारी का पता लगाते हैं. हालांकि कई बार डाक्टर सीरिऐक्टिव प्रोटीन, कंपलीट ब्लड काउंट (सीबीसी), ईएसआर वगैरह टैस्ट भी कराते हैं. कुछ गठिया में खास टैस्ट कराए जाते हैं, लेकिन यह बीमारी की स्टेज पर निर्भर करता है. इस के अलावा ऐक्सरे, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई भी करानी पड़ सकती है.

बीमारी की शुरुआत में दर्द से नजात पाने के लिए डाक्टर कार्टिसोन टेबलेट या इंजैक्शन देते हैं. हालांकि कई बार यह दर्द तो ठीक कर देते हैं, लेकिन इस के चलते सही बीमारी का पता लगाने में दिक्कत होती है और बीमारी होने के बावजूद उस के लक्षण बंद जाते हैं.

कितनी तरह का गठिया

गठिया खासतौर पर 2 तरह का होता है रूमेटौयड और स्पोंडिलोआर्थोपैथी. रूमेटौयड में हड्डियों के जोड़ों पर, खासतौर पर दोनों हाथ, कलाइयां, घुटने, कुहनी, कंधे, पैर के पंजे और एडि़यों में दर्द होता है. वहीं स्पोंडिलोआर्थोपैथी में कूल्हे, कंधे और रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता है. औरतों में रूमेटौयड गठिया की शिकायत ज्यादा होती है, वहीं मर्दों में स्पोंडिलोआर्थोपैथी की शिकायत ज्यादा होती है.

कई बार ज्यादा उम्र की औरतों में अचानक किसी एक जोड़ में, अकसर पैर के पंजे या उंगली में गंभीर दर्द और सूजन हो सकती है. यह खून में बढ़े हुए यूरिक एसिड के चलते भी हो सकता है.

जल्दी शुरू करें इलाज

अगर गठिया के लक्षण दिख रहे हैं, तो इस दर्द और सूजन को टालें नहीं और न ही दर्द कम करने वाली दवा खा कर इस को दबाने की कोशिश करें. गठिया के लक्षण दिखने पर तुरंत माहिर डाक्टर के पास जाएं. इलाज जितना जल्दी शुरू होगा, उतना ही जोड़ों को कम नुकसान पहुंचेगा और भविष्य में जोड़ों के विकार के आसार कम होंगे.

गठिया में होने वाले दर्द, सूजन और दूसरी परेशानियों को कम करने के लिए डाक्टर दवाएं देते हैं, लेकिन अच्छी जिंदगी जीने के लिए मरीज को दवाओं के साथसाथ रोजाना कसरत भी करनी चाहिए. सरसों या जैतून के गरम तेल की मालिश दर्द और सूजन में राहत पहुंचाती है.

अगर आप भी हैं सिगरेट पीने की आदत से परेशान, तो जरूर फौलौ करें ये टिप्स

युवा ये जानते हैं कि सिगरेट पीना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है लेकिन चाह कर भी उन्हें इस लत से छुटकारा नहीं मिल पाता. लेकिन ये संभव है. आज हम आपकों बताएंगे ऐसे उपाय जिनके इस्तेमाल से आप इस जानलेवा लत से छुटकारा पा सकते हैं.

  • जेब में सिगरेट की बजाय मुलेठी रखें. स्मोकिंग की इच्छा होने पर मुलेठी चबाएं. सिगरेट पीने की तलब कम हो जाएगी.
  • स्मोकिंग की तलब होने पर च्युइंगम चबाएं. इससे आपका मुंह भी बिजी हो जाएगा और सिगरेट पीने की तरफ से आपका ध्यान हट जाएगा.
  • अपनी डाइट में ओट्स को शामिल करें. ओट्स शरीर के टौक्सिन्स को बाहर निकालता है और स्मोकिंग की इच्छा को कम करता है.
  • आंवले के टुकड़ों में नमक मिलाकर सुखा लें. स्मोकिंग होने पर इनको चूस लें. इसमें मौजूद विटामिन सी निकोटिन लेने की इच्छा को कम करता है.
  • सिगरेट पीने की इच्छा हो तो दालचीनी चबाएं या इसका टुकड़ा मुंह में रखें. इसका स्वाद निकोटिन की इच्छा को कम करता है.
  • दिन भर में 6 से 8 गिलास पानी पीएं. इससे आपकी बॉडी हाइड्रेट रहती है साथ ही खतरनाक टौक्सिन भी बौडी से निकल जाते हैं.
  • बेकिंग सोडा बौडी में पीएच लेवल को मेंटेन करता है. जिससे निकोटिन लेने की इच्छा में भी कमी आती है. दिन में दो-तीन बार पानी में बेकिंग सोडा घोलकर पीएं.
  • जब सिगरेट पीने की तलब लगे तो एक चम्मच शहद चाट लें. ये स्मोकिंग से हुए नुकसान को ठीक करते हैं.

एड्स एक खतरनाक बीमारी है !

1 दिसम्बर का दिन पूरे विश्व में  एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है. जागरूकता के तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है और कई अभियान चलाए जाते हैं जिससे इस महामारी को जड़ से खत्म करने के प्रयास किए जा सकें. साथ ही एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सकें.

विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े मिथ को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था.  चूंकि एड्स का अभी तक कोई इलाज नही है इसलिए यह आवश्‍यक है‍ कि लोग एड्स के बारे में जितना संभव हो सके रोकथाम संबंधी जानकारी प्राप्‍त करे और इसे फ़ैलाने से रोके.

एड्स यानि एक्‍वायर्ड इम्‍युनोडेफिशिएंसी सिन्‍ड्रोम एक खतरनाक बीमारी है जो हर किसी के लिए चिंता का विषय है.  1981 में  न्यूयॉर्क में एड्स के बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ ”समलिंगी यौन क्रिया” के शौकीन अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए. इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी. फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी और इसे नाम दिया गया ”एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम” यानी एड्स.

एड्स का मतलब 

– ए यानी एक्वायर्ड यानी यह रोग किसी दूसरे व्यक्ति से लगता है.

– आईडी यानी इम्यूनो डिफिशिएंसी यानी यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त कर देता है.

– एस यानी सिण्ड्रोम यानी यह बीमारी कई तरह के लक्षणों से पहचानी जाती है.

एड्स का बढ़ता क्षेत्र

कई देशों में एड्स मौत का सबसे बड़ा कारण बन गया है. पहली बार ऐसा हुआ है कि पिछले एक साल में अफ्रीका में एचआईवी के मामलों में कमी दर्ज की गई है . लेकिन सच यह भी है कि अब भी अफ्रीका में करीब 38 लाख लोग एचआईवी से बुरी तरह से प्रभावित हैं. पूरी दुनिया धीरे-धीरे जानलेवा बीमारी एचआईवी/एड्स की चपेट में आ रही है. संयुक्त राष्ट्र के नए आंकडों के अनुसार  एड्स एक भयावह बीमारी बनाते जा रहा है . संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि पूरी दुनिया में करीब 33.3 मिलियन लोग एचआईवी/ एड्स से ग्रस्त हो चुके हैं और हर साल करीब 53 लाख एड्स के नए मामले सामने आ रहे हैं. हर चौबीस घंटे में 7 हजार एचआईवी के नये मामले सामने आ रहे हैं. यही नहीं इस दौरान एक मिलियन संचारित यौन संक्रमण(एसटीडी) के मामले आ रहे हैं. दस साल में तेजी से फ़ैल रहा है यह बीमारी .  एड्स और एचआईवी से ग्रस्त लोगों की संख्या विशेषज्ञों द्वारा दस साल पहले लगाए गए अनुमानों से 50 फीसद अधिक है.

2019 तक 2.9 मिलियन लोग इस इंफेक्शन के संपर्क में आए हैं, जिसमें से 3 लाख 90 हजार बच्चे भी इसकी चपेट में आएं. इतना ही नहीं पिछले पांच सालों में  एड्स से ग्रसित लगभग 1.8 मिलियन लोगों की मौत हो चुकी है.

आमतौर पर देखा गया है कि एड्स अधिकतर उन देशों में है जहां लोगों की आय बहुत कम है या जो लोग मध्यवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं.

बहरहाल, एचआईवी एड्स आज दुनिया भर के सभी महाद्वीपों में महामारी की तरह फैला हुआ है जो कि पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है और जिसे मिटाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की कुल मामलों में से 15 से 24 साल की लड़कियां एचआईवी पीड़ित हैं. जबकि 23 फीसद कुल एचआईवी पीड़ितों में 24 की आयु के हैं. 35 फीसद मामले नए संक्रमणों के हैं. संयुक्त राष्ट्र सहायता के कार्य निदेशक पीटर पीयोट कहते हैं कि पूरी दुनिया को इस बात का अंदाजा हो चुका है कि एड्स कितना भयानक रूप ले चुका है.

एक अनुमान के अनुसार 2009-2019 तक करीब 40 लाख लोग एड्स की बलि चढ़ चुके है. इससे पहले के दशक में  एड्स से इतने लोगों की मौत नहीं हुई है. साथ ही पहली बार ऐसा हुआ है कि जहाँ से यह बीमारी फैलाना शुरू हुई वही अब इस बीमारी के मामले काफी कम प्रकाश में आ रहे है. पिछले एक साल में अफ्रीका में एचआईवी के मामलों में कमी दर्ज की गई है. लेकिन  अब भी अफ्रीका में करीब 38 लाख लोग एचआईवी से बुरी तरह से प्रभावित हैं.  यह हालत तब है जब इस बीमारी की रोकथाम के प्रयास ईमानदारी के साथ किए जा रहे हैं.

विश्व में ढाई करोड़ लोग अब तक इस बीमारी से मर चुके हैं और करोड़ों अभी इसके प्रभाव में हैं. अफ्रीका पहले नम्बर पर है, जहाँ एड्स रोगी सबसे ज्यादा हैं. भारत दूसरे स्थान पर है. भारत में अभी करीबन 1.25 लाख मरीज हैं, प्रतिदिन इनकी सँख्या बढ़ती जा रही है. भारत में पहला एड्स मरीज 1986 में मद्रास में पाया गया था.

क्या है एचआईवी और एड्स?

एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) एक ऐसा से एड्स होता है. जिस इंसान में इस वायरस की मौजूदगी एचआईवी पॉजिटिव कहते हैं. एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब एड्स रोगी नहीं होता. जब एचआईवी वायरस शरीर में प्रवेश हो जाता है, उसके बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. एचआईवी वायरस व्हाइट ब्लड सेल्स पर आक्रमण करके उन्हें धीरे-धीरे मारते हैं. इस कारण से कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं, जिनका असर तत्काल महसूस नहीं होता. यह लगभग 10 साल बाद प्रत्यक्ष रूप में सामने आती है. व्हाइट सेल्स के खत्म होने के बाद संक्रमणऔर बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम होने लगती है. परिणामस्वरूप शरीर में विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन होने लगते हैं. एचआईवी इन्फेक्शन वह अंतिम पड़ाव है, जिसे एड्स कहा जाता है.

एचआईवी दो तरह का होता है. एचआईवी-1 और एचआईवी-2. एचआईवी-1 पूरी दुनिया में पाया जाता है.

भारत में भी 80 प्रतिशत मामले इसी श्रेणी के हैं. एचआईवी- 2 खासतौर से अफ्रीका में मिलता है. भारत में भी कुछ लोगों में इसके संक्रमण से पीड़ित पाए जाते हैं.

क्या है एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब ?

एच.आई.वी. पॉजिटिव होने का मतलब है, एड्स वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर गया है. इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको एड्स है. एच.आई.वी. पॉजिटिव होने के 6 महीने से 10 साल के बीच में कभी भी एड्स हो सकता है. स्वस्थ व्यक्ति अगर एच.आई.वी. पॉजिटिव के संपर्क में आता है, तो वह भी संक्रमित हो सकता है. एड्स का पूरा नाम है ˜ एक्वार्यड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम ˜ और यह बीमारी एच.आई.वी. वायरस से होती है.

यह वायरस मनुष्य की प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर कर देता है. एड्स एच.आई.वी. पॉजिटिव गर्भवती महिला से उसके बच्चे को, असुरक्षित यौन संबंध से या संक्रमित रक्त या संक्रमित सुई के प्रयोग से हो सकता है. जब आपके शरीर की प्रतिरक्षा को भारी नुकसान पहुंच जाता है, तो एच आई वी का संक्रमण, एड्स के रूप में बदल जाता है. अगर नीचे लिई हुई स्थितियों में से आपको कुछ भी है, तो आपको एड्स है : 200 से कम सी 4 डी सेल (200), 14 प्रतिशत से कम सी डी 4 सेल (14), मौकापरस्त संक्रमण (पुराना), मुंह या योनि में फफूंद, आंखों में सी एम वी संक्रमण (सीएमवी), फेफड़ा में पी सी पी निमोनिया, कपोसी कैंसर.

एच.आई.वी. पॉजिटिव को इस बीमारी का तब तक नहीं चलता, जब तक कि इसके लक्षण प्रदर्शित नहीं होते. इसका मतलब है वे जीवाणु जो शरीर की प्रतिरक्षा को कम करे. एच.आई.वी. से संक्रमित होने पर आपका शरीर इस रोग से लड़ने की कोशिश करता है. आपका शरीर रोग प्रतिकारक कण बनाता है, जिसे एंटीबॉडीज कहते हैं. एच.आई.वी. के जांच में अगर आपके खून में एंटीबॉडीज पाया जाता है, तो इसका मतलब है कि आप एच आई वी के रोगी हैं और आप एच आई वी पॉजिटिव (सकारात्मक एचआईवी) हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आपको एड्स है. कई लोग एच आई वी पॉजिटिव होते हैं किंतु वे सालों तक बीमार नहीं पड़ते हैं.

समय के साथ एच आई वी आपके शरीर की प्रतिरक्षा को कमजोर कर देता है. इस हालत में, विभिन्न प्रकार के मामूली जीवाणु, कीटाणु, फफूंद आपके शरीर में रोग फैला सकते हैं, जिसे मौकापरस्त संक्रमण (अवसरवादी संक्रमण/पुराना) कहते हैं.

ऐसे फैल सकता है एड्स

* एचआईवी पॉजिटिव पुरुष या महिला के साथ अनसेफ (कॉन्डम यूज किए बिना) सेक्स से, चाहे सेक्स होमोसेक्सुअल ही क्यों न हो.

* संक्रमित (इन्फेक्टेड) खून चढ़ाने से.

* एचआईवी पॉजिटिव महिला से पैदा हुए बच्चे में. बच्चा होने के बाद एचआईवी ग्रस्त मां के दूध पिलाने से भी इन्फेक्शन फैल सकता है.

* खून का सैंपल लेने या खून चढ़ाने में डिस्पोजेबल सिरिंज (सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल में आने वाली सुई) न यूज करने से या फिर स्टर्लाइज किए बिना निडल और सिरिंज का यूज करने से.

* हेयर ड्रेसर (नाई) के यहां बिना स्टर्लाइज्ड (रोगाणु-मुक्त) उस्तरा, पुराना इन्फेक्टेड ब्लेड यूज करने से.

* सलून में इन्फेक्टेड व्यक्ति की शेव में यूज किए ब्लेड से. सलून में हमेशा नया ब्लेड यूज हो रहा है, यह इंशुअर करें.

ऐसे नहीं फैलता एड्स 

* चूमने से. अपवाद अगर किसी व्यक्ति को एड्स है और उसके मुंह में कट या मसूड़े में सूजन जैसी समस्या है, तो इस तरह के व्यक्ति को चूमने से भी एड्स फैल सकता है.

* हाथ मिलाना, गले मिलना, एक ही टॉयलेट को यूज करना, एक ही गिलास में पानी पीना, छीकने, खांसने से इन्फेक्शन नहीं फैलता.

* एचआईवी शरीर के बाहर ज्यादा देर तक नहीं रह सकता, इसलिए यह खाने और हवा से भी नहीं फैलता.

* रक्तदान करने से बशर्ते खून निकालने में डिस्पोजेबल (इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली) सुई का इस्तेमाल किया गया हो.

* मच्छर काटने से.

* टैटू बनवाने से, बशर्ते इस्तेमाल किए जा रहे औजार स्टर्लाइज्ड हों.

* डॉक्टर या डेंटिस्ट के पास इलाज कराने से. ये लोग भी आमतौर पर स्टरलाइज्ड औजारों का ही इस्तेमाल करते हैं.

इनके जरिए शारीर में पहुंचता है वायरस

* ब्लड

* सीमेन (वीर्य)

* वैजाइनल फ्लूइड (स्त्रियों के जननांग से निकलने वाला दव)

* ब्रेस्ट मिल्क

* शरीर का कोई भी दूसरा फ्लूइड, जिसमें ब्लड हो मसलन, बलगम

लक्षण –  एचआईवी से ग्रस्त इंसान शुरू में बिल्कुल नॉर्मल और सेहतमंद लगता है. कुछ साल बाद ही इसके लक्षण सामने आते हैं. अगर किसी को नीचे दिए गए लक्षण हैं, तो उसे एचआईवी का टेस्ट कराना चाहिए  .

* एक महीने से ज्यादा समय तक बुखार बने रहना, जिसकी कोई खास वजह भी पता न चले.

* बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना.

* लगातार सूखी खांसी.

* मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना.

* बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना.

* याददाश्त में कमी, डिप्रेशन आदि.

एचआईवी के लिए मेडिकल टेस्ट  –  एड्स के लक्षणों से शक होने पर निम्न टेस्ट  कराये .

टेस्ट कराएं अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि

* कभी वह एचआईवी के संपर्क में आ गया होगा.

* पिछले 12 महीनों के दौरान अगर एक से ज्यादा पार्टनर के साथ उसके सेक्स संबंध रहे हों.

* अपने पार्टनर के सेक्सुअल बिहेवियर को लेकर वह निश्चिंत न हो.

* वह पुरुष हो और उसने कभी किसी पुरुष के साथ अनसेफ सेक्स किया हो. उसे एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) हो. वह हेल्थ वर्कर हो, जो ब्लड आदि के सीधे संपर्क में आता हो.

* वह प्रेग्नेंट हो.  बचाव ही  इलाज है!

दुनिया भर में तेजी से पांव पसारते जा रहे एड्स का इलाज भी तक खोजा नहीं जा  सका है, इससे बचाव में ही इसका कारगर इलाज है.

एड्स का कोई उपचार नहीं है. एड्स के लिए जो दवा हैं, वे या तो एच आई वी के जीवाणु को बढ़ने से रोकते हैं या आपके शरीर के नष्ट होते हुए प्रतिरक्षा को धीमा करते हैं. ऐसा कोई ईलाज नहीं है कि एच आई वी के जीवाणु का शरीर से सफाया हो सके. अन्य दवाएं मौकापरस्त संक्रमण को होने से रोकती हैं या उनका उपचार कर सकती हैं. आधिकांश समय, ये दवाइयां सही तरह से काम करती हैं.

हालांकि दवाओं की मदद से एचआईवी पॉजिटिव होने से लेकर एड्स होने तक के समय को बढ़ाया जा सकता है. दवाएं देकर व्यक्ति को ज्यादा लंबे समय तक बीमारियों से बचाए रखने की कोशिश की जाती है. इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं. एजेडटी, डीडीएल, डीडीसी कुछ कॉमन ड्रग्स हैं, लेकिन इनका असर कुछ ही वक्त के लिए होता है.

होम्योपैथी होम्योपैथी कहती है कि बीमारियों से नहीं लड़ा जाता, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता.

लक्षण –  एचआईवी से ग्रस्त इंसान शुरू में बिल्कुल नॉर्मल और सेहतमंद लगता है. कुछ साल बाद ही इसके लक्षण सामने आते हैं. अगर किसी को नीचे दिए गए लक्षण हैं, तो उसे एचआईवी का टेस्ट कराना चाहिए  .

* एक महीने से ज्यादा समय तक बुखार बने रहना, जिसकी कोई खास वजह भी पता न चले.

* बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना.

* लगातार सूखी खांसी.

* मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना.

* बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना.

* याददाश्त में कमी, डिप्रेशन आदि.

एचआईवी के लिए मेडिकल टेस्ट  –  एड्स के लक्षणों से शक होने पर निम्न टेस्ट  कराये .

* टेस्ट कराएं अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि

* कभी वह एचआईवी के संपर्क में आ गया होगा.

* पिछले 12 महीनों के दौरान अगर एक से ज्यादा पार्टनर के साथ उसके सेक्स संबंध रहे हों.

* अपने पार्टनर के सेक्सुअल बिहेवियर को लेकर वह निश्चिंत न हो.

* वह पुरुष हो और उसने कभी किसी पुरुष के साथ अनसेफ सेक्स किया हो. उसे एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) हो. वह हेल्थ वर्कर हो, जो ब्लड आदि के सीधे संपर्क में आता हो.

* वह प्रेग्नेंट हो.

बचाव ही  इलाज है!

दुनिया भर में तेजी से पांव पसारते जा रहे एड्स का इलाज भी तक खोजा नहीं जा  सका है, इससे बचाव में ही इसका कारगर इलाज है.

एड्स का कोई उपचार नहीं है. एड्स के लिए जो दवा हैं, वे या तो एच आई वी के जीवाणु को बढ़ने से रोकते हैं या आपके शरीर के नष्ट होते हुए प्रतिरक्षा को धीमा करते हैं. ऐसा कोई ईलाज नहीं है कि एच आई वी के जीवाणु का शरीर से सफाया हो सके. अन्य दवाएं मौकापरस्त संक्रमण को होने से रोकती हैं या उनका उपचार कर सकती हैं. आधिकांश समय, ये दवाइयां सही तरह से काम करती हैं.

हालांकि दवाओं की मदद से एचआईवी पॉजिटिव होने से लेकर एड्स होने तक के समय को बढ़ाया जा सकता है. दवाएं देकर व्यक्ति को ज्यादा लंबे समय तक बीमारियों से बचाए रखने की कोशिश की जाती है. इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं. एजेडटी, डीडीएल, डीडीसी कुछ कॉमन ड्रग्स हैं, लेकिन इनका असर कुछ ही वक्त के लिए होता है.

होम्योपैथी होम्योपैथी कहती है कि बीमारियों से नहीं लड़ा जाता, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है. होम्योपैथिक इलाज में शरीर के इम्युनिटी स्तर को बढ़ाने की कोशिश की जाती है. इसके अलावा एड्स में होने वाले हर्पीज, डायरिया, बुखार आदि का इलाज किया जाता है.

एचआईवी पर काउंसलिंग  – एचआईवी टेस्ट और काउंसलिंग के लिए सरकार ने पूरे देश में 5 हजार इंटिग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) बनाए हैं. इन सेंटरों पर व्यक्ति की काउंसलिंग और उसके बाद बाजू से खून लेकर जांच की जाती है. यह जांच फ्री होती है और रिपोर्ट आधे घंटे में मिल जाती है. आमतौर पर सभी जिला अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और कुछ कम्यूनिटी हेल्थ सेंटरों पर यह सुविधा उपलब्ध है. यहां पूरी जांच के दौरान व्यक्ति की आइडेंटिटी गुप्त रखी जाती है. पहले रैपिड या स्पॉट टेस्ट होता है, लेकिन इस टेस्ट में कई मामलों में गलत रिपोर्ट भी पाई गई हैं. इसलिए स्पॉट टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद व्यक्ति का एलाइजा टेस्ट किया जाता है. एलाइजा टेस्ट में कन्फर्म होने के बाद व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव होने की रिपोर्ट दे दी जाती है.

एड्स के साथ जिंदगी

एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने का मतलब यह नहीं है कि जिंदगी में कुछ नहीं रहा. एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति भी आम लोगों की तरह जिंदगी जी सकते हैं.  अगर डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक चला जाए तो यह सम्भव  हैं. तो  आईये जानते है  एड्स के साथ जिंदगी जीने के लिए किन- किन  बातो का ध्यान रखे.

* अपने डॉक्टर से मिलकर एचआईवी इन्फेक्शन से संबंधित अपना पूरा मेडिकल चेकअप कराएं.

* टीबी और एसटीडी का चेकअप भी जरूर करा लें. डॉक्टर की सलाह के मुताबिक दवाएं लें.

* महिलाएं थोड़े-थोड़े दिनों बाद अपनी गाइनिकॉलिजकल जांच कराती रहें.

* अपने पार्टनर को इस बारे में बता दें.

* दूसरे लोग वायरस से प्रभावित न हों, इसके लिए पूरी तरह से सावधानी बरतें.

*अगर अल्कोहल और ड्रग्स का इस्तेमाल करते है , तो बंद कर दें.

* अच्छी पौष्टिक डाइट लें और टेंशन से दूर रहें.

* नजदीकी लोगों से मदद लें और वक्त-वक्त पर प्रफेशनल काउंसलिंग कराते रहें.

* ब्लड, प्लाज्मा, सीमेन या कोई भी बॉडी ऑर्गन डोनेट न करें.

डायबिटीज को ना करें अनदेखा, पैरों को चुकानी पड़ सकती है भारी कीमत

आजकल जैसे जैसे डायबिटीज के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, वैसेवैसे ही उन के पैरों की दुर्दशा भी हो रही है. अपने देश में डायबिटीज के मरीजों के पैर कटने की प्रतिवर्ष की औसत दर अब 10% है यानी 100 डायबिटीज के मरीजों में से 10 मरीज हर साल अपने पैर खोते हैं. लोग यह नहीं जानते कि डायबिटीज के मरीजों को पैर कटने का खतरा बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना ज्यादा होता है. लंबे समय से चल रही डायबिटीज, खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा, पेशाब में ऐल्ब्यूमिन का होना, आंखों की रोशनी का कम होना, पैरों में झनझनाहट की शिकायत रहना व खून की सप्लाई का कम होना आदि बातें डायबिटीज के मरीजों में पैर खोने का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण बनती हैं.

डायबिटीज शरीर के सारे अंगों को देरसवेर दबोच लेती है. दिल और दिमाग पर तो इस का खास असर होता है, पर टांगें भी इस की शिकार होती हैं.

लापरवाही बरतें

डायबिटीज के मरीज यह नहीं समझते कि डायबिटीज पैरों का सब से बड़ा दुश्मन है. और तो और लोग भ्रमवश यह भी समझते हैं कि डायबिटीज के मरीज के घास पर नंगे पैर चलने से शरीर के सभी अंगों, विशेषकर पैरों को बड़ा लाभ मिलता है. चलने से पैरों में अगर दर्द व झनझनाहट होती है, तो उस को नजरअंदाज कर दिया जाता है. लोग नहीं समझते कि डायबिटीज के मरीज द्वारा बरती गई लापरवाही उस के विकलांग होने का सीधा कारण बन सकती है. पैर की तो छोड़ो, लोग अपने खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित करने को ले कर ही गंभीर नहीं होते. इस का परिणाम यह होता है कि खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा दिनोंदिन बढ़ती चली जाती है.

अगर चलने से पैरों में दर्द होता है और ज्यादा चलने से पीड़ा असहनीय हो जाती है तो डायबिटीज के मरीज को समझ लेना चाहिए कि उस के पैरों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. डायबिटीज में पैरों को सब से ज्यादा नुकसान 2 चीजें पहुंचाती हैं. एक तो न्यूरोपैथी और दूसरी टांगों की रक्त नली में जाने वाली शुद्ध खून की मात्रा में कमी होना.

पैरों में शुद्ध खून की सप्लाई में कमी होने के 2 कारण होते हैं. एक तो टांगों की खून की नली के अंदर निरंतर चरबी व कैल्सियम जमा होना, जिस के कारण नली में सिकुड़न आ जाती है. इस का परिणाम यह होता है कि पैरों में जाने वाली शुद्ध खून की सप्लाई में बाधा पहुंचती है और अगर समय रहते रोकथाम न की गई तो खून की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती है. यह एक गंभीर अवस्था है.

दूसरा कारण एक विशेष किस्म की न्यूरोपैथी का होना होता है, जिसे मैडिकल भाषा में ए.एस.एन. (औटोनौमिक सिंपैथेटिक न्यूरोपैथी ) कहते हैं. इस विशेष न्यूरोपैथी के कारण शुद्ध खून त्वचा में स्थित अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच पाता है. इस की वजह शुद्ध खून की शौर्ट सर्किटिंग होना होता है. ठीक उसी तरह जैसे कोई रेल यात्री निर्धारित स्टेशन तक न पहुंच कर बीच रास्ते में ही वापसी की ट्रेन पकड़ने लगे.

टांगों में असहनीय पीड़ा

इस तरह से खून की सप्लाई में महत्त्वपूर्ण कमी आने पर टांगों में असहनीय दर्द होता है व त्वचा का रंग बदलने लगता है. डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वह ऐसी दशा में तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श ले.

डायबिटीज के मरीज के पैरों को एक दूसरी न्यूरोपैथी (सेंसरी व मोटर) भी अपनी चपेट में ले लेती है, जिस के कारण पैरों में विशेषकर पैर के तलुओं व एड़ी में दर्द व झनझनाहट की समस्या खड़ी हो जाती है. होता यह है कि पैर की मांसपेशियां, न्यूरोपैथी की वजह से हलके फालिज का शिकार हो जाती हैं, जिस से पैर की हड्डियों को आवश्यक आधार न मिलने के कारण उन पर अनावश्यक दबाव पड़ने लगता है. इस के साथ ही जोड़ों की क्रियाशीलता में भी कमी आ जाती है. इन सब समस्याओं का असर यह होता है कि पैरों में दर्द व झनझनाहट की शिकायत हमेशा बनी रहती है और चलने से और बढ़ जाती है.

डायबिटीज में पैर की त्वचा में कभीकभी जरूरत से ज्यादा खुश्की पैदा हो जाती है. इस खुश्की की वजह से त्वचा में फटन व चटकन होने लगती है और गड्ढे बन जाते हैं, जो पैरों में इन्फैक्शन पैदा होने का सबब बन जाते हैं.

डायबिटीज में त्वचा के खुश्क होने का बहुत बड़ा कारण डायबेटिक ओटौनौमिक न्यूरोपैथी का होना है, जिस की वजह से पसीने को पैदा करने वाली और त्वचा को चिकना बनाने वाली ग्रंथियां सुचारु रूप से काम करना बंद कर देती हैं. इसी खुश्की व फटन के कारण डायबिटीज के मरीजों के पैरों में जल्दी घाव बनते हैं और इन्फैक्शन अंदर तक पहुंच जाता है. इन्फैक्शन को नियंत्रण में लाने में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. कभीकभी तो इस में औपरेशन की जरूरत पड़ती है.

डायबिटीज में पैर की हड्डियों पर मांसपेशियों के कमजोर हो जाने से दबाव बढ़ जाता है. इस निरंतर पड़ने वाले दबाव के कारण त्वचा में दबाव वाले स्थानों पर गोखरू का निर्माण हो जाता है. इस गोखरू के कारण डायबिटीज के मरीज को ऐसा लगता है जैसे जूते के अंदर कोई कंकड़ रखा हुआ है. इस गोखरू की वजह से पैरों में दर्द और असहनीय हो जाता है और इन्फैक्शन होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.

इलाज

अगर डायबिटीज के मरीज को चलने से पैरों में दर्द होता है या रात में बिस्तर पर लेटने पर झनझनाहट की शिकायत रहती है तो वह किसी वैस्क्युलर सर्जन की सलाह ले. दर्द का कारण जानना बहुत जरूरी है. अकसर लोग इस तरह के रोग को गठिया या सियाटिका का दर्द समझ लेते हैं और हड्डी विशेषज्ञ से परामर्श लेने पहुंच जाते हैं. दर्द का कारण जानने के लिए कुछ विशेष जांचें. जैसे डाप्लर स्टडी व मल्टी स्लाइस सी.टी. ऐंजियोग्राफी का सहारा लेना पड़ता है. किसी ऐसे अस्पताल में जाएं जहां इन सब जांचों की सुविधा हो. इन विशेष जांचों के परिणाम के आधार पर ही आगे इलाज की दिशा का निर्धारण होता है.

डायबिटीज में पैरों को कटने से बचाने के लिए टांगों की बाईपास सर्जरी का सहारा लिया जाता है, जिस से पैरों को जाने वाली खून की सप्लाई को बढ़ाया जा सके. इस से घाव को भरने में मदद मिलती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐंजियोप्लास्टी का भी सहारा लेना पड़ता है.

जांघ के नीचे की जाने वाली ऐंजियोप्लास्टी व इंस्टैंटिंग ज्यादा सफल नहीं रहती, क्योंकि इस के परिणाम शुरुआती दिनों में लुभावने लगते हैं पर ज्यादा दिनों तक इस से मिलने वाला लाभ टिकाऊ नहीं रहता. इसलिए इलाज की दिशा निर्धारण करने में बहुत सोचसमझ कर काम करना पड़ता है. हमेशा ऐसे अस्पताल में जाएं जहां किसी अनुभवी वैस्क्युलर सर्जन की उपलब्धता हो और पैरों की बाईपास सर्जरी नियमित रूप से होती हो. पैरों की रक्त सप्लाई को बढ़ाने के लिए कुछ विशेष जरूरी दवाओं का भी सहारा लेना पड़ता है.

पैर को बचाने की दिशा में किए गए सारे प्रयास असफल हो जाते हैं, अगर डायबिटीज के मरीज ने धूम्रपान व तंबाकू का सेवन पूर्णतया बंद नहीं किया. यह बात अच्छी तरह समझ लें कि सिगरेट की संख्या व तंबाकू की मात्रा कम कर देने से पैरों के स्वास्थ्य में कोई फर्क नहीं पड़ता इसलिए सिगरेट या तंबाकू मैं ने कम कर दी हैं की दलील दे कर अपनेआप को झुठलाएं नहीं. इस बात को समझें कि अगर धूम्रपान व तंबाकू से पूरी तरह से नाता नहीं तोड़ा तो टांगों की बाईपास सर्जरी फेल हो जाएगी.

इलाज को असफल करने में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप ने 5-6 किलोमीटर चलने का नियम बरकरार नहीं रखा और कोलैस्ट्रौल, शुगर व वजन पर अंकुश नहीं लगाया तो देरसवेर पैर खोने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. चाहे कितनी भी अच्छी सर्जरी व इलाज हुआ हो.

डायबिटीज का मरीज कभी भी घर के अंदर व बाहर नंगे पांव न चले और जूते कभी भी बगैर मोजों के न पहने. डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष किस्म के जुराब व जूते आजकल उपलब्ध हैं, जिन का चुनाव अपने वैस्क्युलर सर्जन की सलाह पर करना चाहिए. इस के अलावा डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वह प्रतिदिन 5 से 6 किलोमीटर पैदल चले. नियमित चलना पैरों की शुद्ध खून की सप्लाई को बढ़ाने व न्यूरोपैथी का पैरों पर प्रभाव कम करने का सब से उत्तम उपाय है. पैरों को स्वच्छ व नमीरहित रखें और रक्त में हमेशा ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रण में रखें. रक्त में अनियंत्रित शुगर का होना भविष्य में पैर खोने का साफ संकेत है. इस के साथ ही टांगों की त्वचा को खुश्की व सूखेपन से बचाएं और गोखरू को पनपने न दें.

हर 3 महीने में अपने पैरों की जांच किसी वैस्क्युलर सर्जन से जरूर कराएं. अगर किसी भी अवस्था में पैरों में फफोले व लाल चकत्ते दिखें तो बगैर लापरवाही किए किसी वैस्क्युलर सर्जन से तुरंत परामर्श लें.

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