बौडी में क्यों है इम्युनिटी की जरूरत, जानें यहां

स्वस्थ रहने की पहली शर्त यह है कि शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता हो. शरीर बीमार न पड़े, यह अच्छी बात है, लेकिन ऐसा होता नहीं है. शरीर में मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है तो बीमारी आप को दबोच लेगी. यानी बीमार पड़ने और बीमार न पड़ने के बीच की सब से मजबूत दीवार है रोग प्रतिरोधक क्षमता या बौडी इम्यून. जिस का बौडी इम्यून जितना ताकतवर होगा उस के सेहतमंद रहने और लंबी उम्र तक जीने के उतने ही ज्यादा आसार होंगे.

आज की तेज रफ्तार जीवनशैली ने इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पहले के मुकाबले कमजोर कर दिया है. नियमित ऐक्सरसाइज, संतुलित आहार व समय पर भोजन के चौतरफा सुझाव मिलते हैं ताकि मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके लेकिन मल्टीनैशनल कल्चर के इस दौर में हम अपने खानपान व सेहत संबंधी कार्यक्रमों को जानतेबूझते हुए भी नियमित व अनुशासित नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी का कमजोर होना स्वाभाविक है. नतीजतन, शरीर में विभिन्न प्रकार के भौतिक व पर्यावरणीय तनावों को सह पाने की क्षमता नहीं होती.

आज अनुशासित जीवन जीना बहुत ज्यादा कठिन है फिर भी अगर बेहतर स्वास्थ्य चाहिए तो इस कठिन अनुशासन को भी अपनाना ही पड़ेगा. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपने शरीर को रोग प्रतरोधात्मक क्षमता के नजरिए से ऐसा बनाएं कि वह तमाम रोगों से लड़ सके और उन्हें शरीर में प्रविष्ट न होने दे. इस के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपनी सेहत, जीवनशैली और कार्यस्थल के माहौल पर विशेष ध्यान दे.

1. मजबूत प्रतिरोधात्मक क्षमता

दरअसल, जब शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होती है तो तापमान के गिरने या बढ़ने से या संक्रामक रोगों के फैलने से हम फौरन बीमार पड़ जाते हैं जबकि जिन की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत होती है वे कभीकभार ही बीमार पड़ते हैं. यह सही है कि इम्यूनिटी काफी हद तक वंशानुगत यानी जैनेटिक होती है लेकिन हमारे वातावरण में जो कीटाणु यानी जर्म्स होते हैं उन का सामना करने से यह बढ़ जाती है. जितने अधिक प्रकारों के कीटाणुओं का हम सामना करेंगे जाहिर है उतना ही मजबूत हमारा इम्यून सिस्टम हो जाएगा क्योंकि हमारा शरीर न केवल कीटाणुओं को पहचानने लगेगा बल्कि उन का प्रतिरोध भी करने लगेगा. इसलिए टीकाकरण महत्त्वपूर्ण हो जाता है. टीकाकरण के अतिरिक्त कोई और जरिया नहीं है जिस से विरासत में मिली इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सके. लेकिन हम अपने वातावरण को जरूर परिवर्तित कर सकते हैं.

इम्यून कोशिकाएं शरीर में त्वचा से ले कर अंदर तक सभी जगह होती हैं. आमतौर से वयस्कों का इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत होता है जिस में हजारों कीटाणुओं की मेमोरी होती है. लेकिन पर्यावरण की वजह से इन इम्यून कोशिकाओं का स्तर प्रभावित हो सकता है और अध्ययनों से मालूम हुआ है कि अस्वस्थ जीवनशैली, कान व तनाव भी इम्यूनिटी को कम कर देते हैं. शायद यही वजह है कि मधुमेह या डायबिटीज व हृदय रोगों को ‘जीवनशैली रोग’ कहा जाता है. यह अच्छी बात है कि जीवनशैली रोगों से हम अपनी जीवनशैली में सुधार कर के अच्छी तरह से निबट सकते हैं क्योंकि इस के जरिए हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ा सकते हैं.

सक्रिय जीवनशैली सेहत के लिए हमेशा अच्छी होती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते भी हैं कि आप दिन में कम से कम आधा घंटा कोई न कोई ऐसा काम अवश्य करें जिस से शरीर हरकत में रहे, जैसे

तेज चहलकदमी करना, जिम, स्पोर्ट्स, साइकिलिंग, ऐरोबिक्स इत्यादि. ऐक्सरसाइज का सब से बड़ा फायदा यह है कि पसीने के जरिए शरीर से जहरीले पदार्थ यानी टौक्सिन बाहर निकल जाते हैं और शरीर के भीतर एंड्रोफिन्स हार्मोन जारी होते हैं जो तनाव स्तर को नियंत्रित रखते हैं. ध्यान रहे कि तनाव से इम्यूनिटी बहुत अधिक प्रभावित होती है. ऐक्सरसाइज का चयन हमेशा अपनी आयुवर्ग व खानपान के हिसाब से करें.

पुरानी कहावत पूरी तरह से सही है कि ‘हम जैसा खाएंगे अन्न वैसा ही बनेगा मन और शरीर.’ अगर हम पौष्टिक व संतुलित आहार लेते हैं तो शरीर में ऐसे लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता होगी जो संतुलित व पौष्टिक भोजन नहीं लेते.

2. संतुलित आहार

पौष्टिक और संतुलित भोजन हमें रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. संतुलित आहार का अर्थ है वह भोजन जिस में सब्जियों और प्रोटीन का अच्छा मिश्रण होता है. पौष्टिक आहार का अर्थ है, ऐसा भोजन जिस में पर्याप्त मात्रा में विटामिंस व खनिज मौजूद हों ताकि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को मजबूत किया जा सके. जिन फूड्स में विटामिन ए, बी, सी व ई, फोलेट और कैरोनाइड्स व खनिज जैसे जिंक, क्रोमियम व सेलिनियम होते हैं वे न केवल इम्यूनिटी बढ़ाते हैं बल्कि स्वस्थ इम्यून सिस्टम के लिए भी जरूरी हैं. प्रोटीन के लिए चिकन, फिश और दाल (विशेष रूप से मूंग व मसूर) खाएं ताकि शरीर को ईंधन मिले. विटामिन सी के लिए संतरा, मौसमी, आंवला, नीबू आदि लें और अपनी इम्यूनिटी का स्तर बढ़ाएं.

शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में 5 खाद्य  पदार्थों को 5 वंडर फूड्स की संज्ञा दी गई है. इस में दही को पहले नंबर पर इसलिए रखा गया है कि वह प्रोबायोटिक्स, अच्छे बैक्टीरिया जो पाचन में मदद करते हैं, का अच्छा स्रोत है. बाकी अन्य 4 फूड्स हैं – संतरा, पालक, मछली व नट्स.

वहीं, यह भी आवश्यक है कि जो भी फूड्स हम लें वे ताजे अवश्य हों. रैफ्रिजरेटर में रखे या प्रोसैस्ड फूड सांस व पेट की परेशानियां पैदा कर सकते हैं. दमा या कुछ प्रकार की एलर्जियां पहले विरासत में मिले रोग समझे जाते थे लेकिन अब ये जीवनशैली रोगों में शामिल हो गए हैं क्योंकि हम ऐसी चीजें खाने लगे हैं जिन में कृत्रिम रंग या प्रिजर्वेटिव्स होते हैं.

3. संतुलित जीवन

इम्यूनिटी का मन व शरीर से गहरा संबंध है. अगर हम तनावग्रस्त होंगे तो बहुत आसानी से हमें संक्रामक रोग पकड़ लेंगे. डिप्रैशन या तनावग्रस्त होने पर हम अपने आहार और जीवनशैली पर भी ध्यान नहीं दे पाते. मानसिक थकान की वजह से नींद नहीं आती और हम रोगों से लड़ने के लायक नहीं रहते. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि तनाव को नियंत्रित रखें या तनावमुक्त रहें. तनावमुक्त रहने के लिए यह सुनिश्चित करें कि रोजमर्रा की स्थितियों पर हमारी प्रतिक्रिया संतुलित हो. हास्य, ऐक्सरसाइज व सैक्स के जरिए हम अपने मस्तिष्क में अच्छे रसायनों का स्तर बढ़ा सकते हैं और तनावमुक्त रह सकते हैं.

बहरहाल, ऐक्सरसाइज, संतुलित व पौष्टिक आहार और तनावमुक्त रहने से हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता या इम्यूनिटी को मजबूत कर लेते हैं और इस तरह हमारा शरीर ऐसा कवच बन जाता है जो हमें रोगों से दूर रखता है, फिर चाहे मौसम का मिजाज कितना ही बदलता रहे.

विशेषज्ञों का कहना है कि दिन में 3 बार पेट भर कर खाने से बेहतर है छोटेछोटे मील दिन में 4 या 5 बार लिए जाएं जिन में विशेष रूप से फल, सब्जियां, ओमेगा-3 युक्त मछली, थोड़ा सा जैतून का तेल विशेष रूप से शामिल हो. अदरक व लहसुन को नियमित सप्लीमैंट के तौर पर लेना चाहिए. यह भी सुनिश्चित कर लें कि हमें पर्याप्त मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट विटामिन सी और ई मिल रहे हैं. सक्रिय जीवनशैली भी बहुत जरूरी है.

फिट रहने के लिए जरूर फौलो करें ये 7 टिप्स, हमेशा रहेंगे हेल्दी

आज के समय में अपनी हेल्थ और खानपान का खयाल रखना हर किसी के लिए जरूरी है फिर चाहे वे पुरुष हो या महिला लेकिन हमारी सोसाइटी में पुरुषों का लाइफस्टाल महिलाओं के तुलना में ज्यादा भाग-दौड़ भरा और तनाव भरा रहता है. घर और घर के बाहर की चीजों को संभालना काफी मुश्किल हो जाता है.

इन सब चीजों को बैलेंस करने में पुरुष अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते. कुछ देर के लिए तनाव मुक्त होने के लिए कई पुरुष कुछ गलत चीजों का सहारा भी लेने लग जाते हैं जैसे कि शराब का सेवन करना या सिगरेट पीना. इन सब चीजों से वे थोड़ी देर के लिए को तनाव मुक्त महसूस कर लेते हैं लेकिन इन्हीं कारणों की वजह से उनका शरीर और अस्वस्थ होने लगता है.

गलत आदतों का सहारा लेने से अच्छा अगर हम कुछ हेल्थी टिप्स अपनाते हैं तो इससे हमें ना सिर्फ टेंशन फ्री होने का एहसास होगा बल्कि साथ ही हमारी सेहत भी स्वस्थ रहेगी. तो आज हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे हेल्थ टिप्स जिसे आप जरूर अपनी डेली रूटीन में ट्राय कर सकते हैं.

1. देर से उठने की आदत बदलनी होगी. एक सर्वे के हिसाब से जो व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है वे काफी स्वस्थ और फिट रहता है उस व्यक्ति की तुलना से जो देरी से उठते हैं.

2. अपने खानपान का ख्याल रखें. ज्यादा मिर्च मसालों वाली चीजें ना खाएं और अपने खाने में तेल का ध्यान जरूर रखें. हमेशा वे चीजें खाएं जो कि अच्छी क्वालिटी के तेल में बनी हों.

3. अपना खाना हमेशा समय पर खाएं. सुबह का नाश्ता अच्छे से करें और अगर हो सके तो रात का डिन्नर 8 बजे से पहले कर लें ताकी खाने को डाइजेस्ट होने के लिए समय मिल सके. रात को खाना खाते ही तुरंत ना लेटें.

4. फिट रहने के लिए शारीरिक एक्सरसाइज बेहद जरूरी है. मोटापा पुरुषों की यौन क्षमता पर असर डालता है जो कि काफी खराब बात है. अगर योगा करने या जिम जाने का समय नहीं मिल पाता तो जितना हो सके व्यक्ति को पैदल चलना चाहिए और लिफ्ट का प्रयोग ना कर सीढ़ियों का इस्तमान करना चाहिए.

5. शराब या सिगरेट/बीड़ी का सेवन बिल्कुल ना करें और अगर करते हैं तो अपनी इस आदत तो जल्द से जल्द छोड़ने की कोशिश करें.

6. लैपटौप को जांघों पर रखकर काम ना करें. इससे पौरुष क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इससे आप नपुंसक भी बन सकते हैं.

7. जितना हो सके उतना समय अपनी फैमिली और बच्चों के साथ बिताएं और कामकाज की भागदौड भरी जिंदगी से थोड़ा समय निकाल कर वैकेशंस पर जाएं.

इन तरीकों को अपनी डेली-रूटीन की हिस्सा जरूर बनाएं और एक हेल्दी और फिट लाइफस्टाइल जिएं.

15 टिप्स: ओमेगा 3 फैटी एसिड है सेहतमंद

1. क्या है ओमेगा 3 फैटी एसिड

ओमेगा 3 फैटी एसिड एक प्रकार की वसा है. जिसे आप हैल्थी फैट या पोली अनसैचुरेटेड फैट भी कह सकते हैं. जो हॉर्मोन का निर्माण करने के साथसाथ शारीरिक और मानसिक विकास में मदद करती है. फैटी एसिड रासायनिक बांड द्वारा एक साथ जुड़े कार्बन परमाणुओं  की श्रंखलाओ से मिलकर बनता है. कार्बन परमाणुओं  के बीच रासायनिक बांड सिंगल भी हो सकता है और डबल भी. आपको बता दें कि सिंगल बांड में डबल बांड से ज्यादा हाइड्रोजन अणु होते हैं. यही रासायनिक बांड बताता है कि यह कौन सा फैट है, सैचुरेटेड, मोनो अनसैचुरेटेड या पोली अनसैचुरेटेड.

2. सैचुरेटेड फैटी एसिड

सैचुरेटेड फैटी एसिड में सिंगल बांड होता है. जैसे मक्खन, क्रीम, चॉकलेट , अंडे का अधिक सेवन ब्लड कैलोस्ट्रोल को बढ़ाने के साथ हार्ट के खतरे को बढ़ाते हैं.

3. मोनो अनसैचुरेटेड

इसमें डबल बांड होता है. जैसे नट्स, मूंगफली और ऐवोकेड़ा , इसका अधिक सेवन करने से बेड कैलोस्ट्रोल कम होने के साथ हार्ट का खतरा कम होता है.

4. पोली अनसैचुरेटेड फैट

इसमें एक से ज्यादा डबल बांड होते हैं.  जैसे वेजिटेबल ऑयल , सोया आदि.  जरूरी फैटी एसिड में पोली अनसैचुरेटेड फैट होता है, जो शरीर के मेटाबोलिक फंक्शन के लिए जरूरी है.

5. ओमेगा 3 हमें तीन खास स्रोत्रों से प्राप्त होता है.

-इसके 3 स्रोत्र इस प्रकार हैं –

  • अल्फा लिनोलेनिक एसिड (एएलए ) – यह पेड़पौधों से मिलने वाला आयल है.
  • ऑय कोसेमेंतानाइक एसिड (इपीए ) – सीफ़ूड या जरूरी जीवजन्तुओ से मिलने वाला ऑयल है.
  • डोकोसेहक़सनाइक एसिड (डीएचए ) – सी फ़ूड या जरूरी जीव जंतुओं से मिलने वाला ऑयल है.

6. फिश ऑयल

यह ऑयल फिश के टिश्यू से निकाला जाता है. वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाईजेशन  रिकमंड करता है कि हफ्ते में 2 बार फिश जरूर खाएं. क्योंकि इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड हैल्थ के लिए काफी फायदेमंद होता है. अगर ये नहीं ले पा रहे हैं तो फिश ऑयल सप्लीमेंट बेस्ट विकल्प है.

आपको बता दें कि 30 पर्सेंट फिश ऑयल ओमेगा 3 से बनता है जबकि उसमें 70 पर्सेंट अन्य फैट्स होते हैं. साथ ही उसमें विटामिन ए और डी की भी अधिक मात्रा होती है.

7. जानें इनके फायदे, दिल की सेहत को रखे दुरूस्त

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार ओमेगा 3 से हार्ट अटैक के चान्सेस बहुत कम हो जाते हैं. ये बेड  कैलोस्ट्रोल के लेवल को  घटाकर गुड़ कैलोस्ट्रोल के लेवल को बढ़ाने का काम करता है. ये ब्लड में फैट को जमा होने से रोकता है.

8. वजन कम करे

यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ ऑस्ट्रेलिया की रिसर्च के अनुसार , फिश ऑयल से हमारी एक्सरसाइज करने की क्षमता बढ़ती है. जो वजन कम करने में सहायक है.  इसलिए अगर आप अपना वजन कम करने के बारे में सोच रहे हैं तो अपनी डाइट में फिश ऑयल को जरूर शामिल करें.

9. इम्युनिटी बढ़ाए

इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होने के कारण यह इम्युनिटी बढ़ाने का काम करता है. जिससे आप जल्दीजल्दी खांसी, जुखाम जैसी बीमारियों की गिरफ्त में नहीं आते. यह एक ऑटो इम्यून बीमारी है, जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम हमारे अंगों और टिश्यू पर हमला करता है. स्टडी के अनुसार, फिश ऑयल से फीवर, स्किन रैशेस की समस्या कंट्रोल हो जाती है.

10. जलन को कम करे

ब्लड और टिश्यू में जलन को कम करने में फिश आयल कारगर है. फिश ऑयल खास कर गैस प्रॉब्लम, शार्ट बाउल सिंड्रोम , इन्फ्लैमटरी बाउल डिजीज में सक्षम है.

11. आँखों की रोशनी बढ़ाए

यह आँखों की रोशनी को बढ़ाने का काम करता है. शोध में यह साबित हुआ है कि यह मस्कुलर डिजनरेशन में भी कारगर है.

12. डिप्रेशन को कंट्रोल करे

फिश ऑयल में ओमेगा 3 फैटी एसिड होने के कारण यह स्ट्रेस व डिप्रेशन को कम करता है. यह बिपोलर डिसऑर्डर में भी मददगार है. शोध में यह साबित हुआ है कि जिन देशों में फिश बहुत अधिक मात्रा में खाई जाती है वहां के लोगों में डिप्रेशन की शिकायत  बहुत कम होती है.

13. आर्थराइटिस में सक्षम

अकसर आर्थराइटिस की शिकायत होने पर हमें स्ट्रोंग दवाइयों का सहारा लेना पड़ता  है ताकि हम जल्दी ठीक हो सके. जबकि फिश ऑयल आर्थराइटिस को जड़ से खत्म कर सकता है.

14. फ़ूड रिच इन ओमेगा 3 फैटी एसिड

  •  साबुत अनाज और फ़्रेश फ़ूड खाएं
  • मटर , बीन्स , नट्स फल व सब्ज़ियाँ खाएं
  • मछली, अख़रोट , हरी पत्तेदार सब्ज़ियों से ओमेगा 3 फैटी एसिड का इन्टेक बढ़ाएं.
  •  ब्लूबेरी में लगभग 174 मिलीग्राम ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है.
  • सलयान मछली ओमेगा 3 का अच्छा स्रोत है.
  • अलसी के बीज पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ ओमेगा 3  का अच्छा स्रोत है.

15. ओवरडोज़ है नुकसानदायक

कहते है न की अति हर चीज़ की बुरी होती है. इसलिए आप इसका सीमा में रहकर इस्तेमाल करें. क्योंकि इससे ब्लड क्लोटिंग का खतरा रहता है. साथ ही पाचन तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है. फिश ऑयल में विटामिन ए और डी की अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है. इसका सेवन उम्र, जेंडर और हेल्थ इशू पर निर्भर करता है. एक हैल्थी वयक्ति एक दिन में ओमेगा 3 फैटी एसिड की 3 -4 ग्राम खुराक ले.  जबकि बच्चे, गर्भवती व स्तनपान करवाने वाली महिलाएँ एक दिन में 2 -3 ग्राम से ज्यादा न लें.

सांस की तकलीफ को ना करें अनदेखा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

सिगरेट पीने से ना सिर्फ आपके लंक्स खराब होते है बल्की इसके चलते आपको कई घातक बीमारियों से भी दो चार होना पड़ता है. सिगरेट पीने से सबसे ज्यादा देखी जाने वाली बीमारी है क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज.

1. क्या है क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज

क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) एक क्रौनिक इंफ्लेमेटरी लंग डिजीज है, जो फेफड़ों से हवा के बहाव को बाधित करती है. लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, खांसी, बलगम (थूक) का उत्पादन और घरघराहट शामिल हैं. यह लंबे समय तक एक्सपोजर गैसों या सूक्ष्म कणों के कारण होता है, जो कि ज्यादातर सिगरेट के धुएं से होता है. सीओपीडी वाले लोगों में निमोनिया, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और कई अन्य स्थितियों के विकास का खतरा होता है. एम्फिसीम (वातस्फीति) और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस दो प्रकार के क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज हैं और दोनों ही आमतौर पर धूम्रपान के कारण होते हैं. धुएं में विषाक्त पदार्थों के कारण, फेफड़े के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और सांस की हवा से औक्सीजन को रक्त प्रवाह में स्थानांतरित करने की अपनी क्षमता खो देते हैं।

2. क्या है सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी एक ऐसी घातक बीमारी है जिसका शुरुआती समय में पता ही नहीं चलता. इसके लक्षण अक्सर तब तक प्रकट नहीं होते हैं जब तक कि पूरी तरह से फेफड़ों खराब ना हो जाएं. हालांकि वे आमतौर पर समय के साथ खराब हो जाते हैं, खासकर अगर धूम्रपान करना आप जारी रखते है तो. क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के के मुख्‍य लक्षण में रोजाना की खांसी और बलगम का उत्पादन शामिल है यह लगातार दो साल तक या कम से कम तीन महीने तक होता है.

3. कैसे पहचाने सीओपीडी

  1. सांस की तकलीफ, खासकर शारीरिक गतिविधियों के दौरान
  2. घरघराहट
  3. सीने में जकड़न
  4. आपके फेफड़ों में अतिरिक्त बलगम
  5. होंठ या नाखूनों का नीलापन (सायनोसिस)
  6. बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
  7. शक्ति की कमी
  8. वजन में कमी (बाद के चरणों में)
  9. टखनों, पैरों या पैरों में सूजन

4. सीओपीडी के कारण

विकसित देशों में सीओपीडी का मुख्य कारण तंबाकू धूम्रपान है. विकासशील देशों में, सीओपीडी अक्सर खराब हवादार घरों में खाना पकाने और हीटिंग के लिए जलने वाले ईंधन से धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में होता है.

केवल 20 से 30 प्रतिशत लोग जो लंबे समय से धूम्रपान कर रहे हैं उनमें स्‍पष्‍ट रूप से सीओपीडी विकसित हो सकता है. हालांकि लंबे धूम्रपान इतिहास वाले लोगों में धूम्रपान से फेफड़ों के कार्यों में बाधा पैदा करते है.

5. किन लोगों को हो सकता है सीओपीडी रोग 

  1. धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहने वालों को ये समस्‍या हो सकती है।
  2. जो लोग अस्‍थमा से पीडि़त हैं और स्‍मोक करते हैं।
  3. ऐसे लोग जो केमिकल और धुएं युक्‍त फैक्ट्रियों के आस-पास रहते हैं।

मूंग की दाल क्यों है सेहत के लिए खास? जानें

खानपान में गरबड़ी के कारण अकसर हम शरीर में तनाव और किसी ना किसी बीमारी से परेशान रहते है. ज्यादातर ये समस्या औफिस जाने वाले और वो लोग जो सिटिंग जौब करते है उनमें देखी जाती है. ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी ना करना और बेठे रहना शरीर को बीमारी का घर बना देता है. ऐसे में यदि हम आपको कहे की दाल का पानी आपके और आपकी सेहत के लिए पावर ड्रिंक बन सकता है तो क्या आप मानेंगे?

मूंग दाल का नाम सुनते ही हम सभी इसे बीमारों की दाल कहते है. ऐसा है भी क्योंकि मूंग दाल कई सारे फायदों से भरपूर है. मूंग दाल बहुत हल्की और सुपाच्य होती है इसलिए ये सभी के लिए फायदेमंद होती है. अगर आप मूंग की दाल का सेवन सप्ताह में दो-तीन बार करते हैं, तो आपको सभी जरूरी विटामिन्स और मिनरल्स तो मिलते ही हैं, साथ ही आप कई तरह के रोगों से भी बचाव रहता है. मूंग की दाल में मैग्नीज, पोटैशियम, मैग्नीशियम, फौलेट, कौपर, जिंक और कई तरह के विटामिन्स भरपूर होते हैं.

1. मूंग की दाल के फायदे क्यों है खास

मूंग की दाल सभी दालों में सबसे ज्यादा पौष्टिक और सुपाच्य होती है. इनमें ढेर सारे मिनरल्स और विटामिन्स के अलावा प्रोटीन, रेजिस्टेंट स्टार्च और डाइट्री फाइबर की मात्रा भी भरपूर होते हैं. मूंग के एक कप उबले बीज में 212 कैलोरीज, 14 ग्राम प्रोटीन, 15 ग्राम फाइबर, 1 ग्राम फैट, 4 ग्राम शुगर, 321 माइक्रोग्राम फॉलेट, 97 मिलीग्राम मैग्नीशियम, 7 मिलीग्राम जिंक, 55 मिलीग्राम कैल्शियम होते हैं. इसके अलावा विटामिन बी1 या थियामिन, विटामिन बी5 और विटामिन बी6 भी होता है. 

2. कैसे बनाए मूंग दाल का पानी?

मूंग की दाल का पानी बनाना बहुत आसान है. इसके लिए जब भी आप सामान्य तरीके से ही दाल बनाएं मगर इसमें 2 कप पानी ज्यादा डाल दें और 2 सीटी ज्यादा लगा दें ताकि दाल अच्छी तरह गल जाए. पकने के बाद जब दाल पूरी तरह गल जाएगी तो पानी में मूंग के सभी पौष्टिक तत्व आ जाते हैं. अगर बच्चों के लिए बना रहे हैं, तो चम्मच से दाल को मेस कर लें.

3. शरीर में मौजूद गंदगी को निकाले बाहार

मूंग दाल का पानी पीने से आपके शरीर में मौजूद गंदगी बाहर निकल जाती है. मूंग के दाल में ढेर सारे पौष्टिक तत्व और एंटीऔक्सीडेंट्स होते हैं, जो पूरे शरीर को पोषण देते हैं. इसके अलावा इसमें फाइबर की मात्रा भी भरपूर होती है इसलिए ये आंतों और लिवर को अच्छी तरह साफ करता है. बच्चों और बूढ़ों के लिए भी दाल का पानी बहुत फायदेमंद होता है.

4. हेल्दी तरीके से घटाना वजन

अगर आप अपना वजन हेल्दी तरीके से घटाना चाहते हैं और तेजी से फैट बर्न करना चाहते हैं, तो मूंग दाल का पानी आपके लिए बहुत फायदेमंद है. ये न सिर्फ आपकी कैलोरी को कम करती है बल्कि इसका पानी पीने से आपको लम्‍बे वक्‍त तक भूख का भी अहसास नहीं होता है. इसे पीने से न सिर्फ आप एनर्जेटिक फील करते है बल्कि आसानी से वजन भी कम कर सकते है. इसके लिए सुबह और शाम आपको एक-एक कटोरी मूंग दाल का पानी पीना है.

अंडकोष के दर्द को अनदेखा करना हो सकता है खतरनाक, जानें कैसे

अंडकोष के कैंसर पर नई रिसर्च करने वाले अमेरिका के आर्मी मैडिकल सैंटर के यूरोलौजी औंकोलौजिस्ट विभाग के प्रमुख डा. जूड डब्लू मोले का कहना है कि पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. कैंसर विशेषज्ञ डा. एम के राणा का कहना है कि अधिकतर भारतीय पुरुष अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं.

हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोष में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोष का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

अंडकोष कैंसर के कारण

-किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म : यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोष शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

  • आनुवंशिकता : यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.
  • बचपन की चोट : बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.
  • हर्निया : हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोष में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.
  • हाइड्रोसील : हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोष प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.
  • इंपोटैंसी : नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.
  • अंडकोष का इलाज : अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोष का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.

तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.

किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोष का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.

सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.

हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.

अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.

अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

दुबलेपन को कहें बाय-बाय, वज़न बढ़ाएं ऐसे 

मौजूदा भागदौड़भरी लाइफस्टाइल में खुद को फिट बनाए रखना हर लिहाज से जरूरी है. दुबलेपन को दूर करने और कमजोर शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए लोग दवाओं से ले कर तरहतरह के हैल्थ सप्लीमैंट्स लेते हैं. लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों का शरीर कमजोर और दुबलापतला ही रहता है.

दुबलेपतले शरीर के कारण किशोरों, युवाओं और अधेड़ पुरुषों को क्रमशः स्कूल, कालेज और औफिस या बिज़नैस प्रतिष्ठानों तक में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है. वजन बढ़ाने के लिए पुरुषजाति न जाने क्याक्या करती है, खाती है, लेकिन वजन नहीं बढ़ता और शरीर जस का तस ही बना रहता है.

1. क्यों नहीं बनती सेहत :

वजन न बढ़ने और तंदुरुस्त न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं.  इन कारणों में कुछ ऐसी गलत आदतें भी शामिल होती हैं, लोग जिन के शिकार हो जाते हैं. ऐसी आदतें न केवल शरीर को बाहरी तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि शरीर को भीतर से भी नुकसान पहुंचाती हैं.

आप उन में से हैं जो खाते तो बहुत हैं लेकिन उन के शरीर में लगता नहीं है, तो वो गलतियां न करें जिन का ज़िक्र यहां किया जा रहा है. आप अगर चाहते हैं कि आप तंदुरुस्त रहें और आप की पर्सनैलिटी दूसरों की तरह चमके तो इन गलत आदतों को बायबाय कर दें.

2. भूख लगने पर खाना न खाने की आदत :

व्यस्त जीवनशैली में अधिकतर लोग अपने शैड्यूल के चक्कर में  सही समय पर खाना नहीं खाते  हैं. कोई ऐसा अगर नियमितरूप से करता  है तो उस की सेहत पर बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है. दरअसल, ऐसा करने से भूख मर सी जाती है, भूख लगना बंद हो जाती है. सही समय पर खाना नहीं खाने से शरीर पर विपरीत असर पड़ता है. किसी भी इंसान की यह गलत आदत उस के शरीर को तंदुरुस्त नहीं होने देती.

3. रोज एक सी ऐक्सरसाइज करने की आदत :

फिट रहने और शरीर के वजन को बढ़ाने के लिए रोजाना ऐक्सरसाइज करना अनिवार्य है. सुबह की सैर पर जाना, किसी मैदान या पार्क में थोड़ीबहुत कसरत या उछलकूद करने से सेहत बेहतर होती है. इस के लिए अधिकतर पुरुषों ने जिम को एक आसान विकल्प समझा हुआ है.

लोग जिस्म बनाने के चक्कर में दवाएं और हैल्थ सप्लीमैंट्स ले लेते हैं, जो उन्हें भले ही  मसल्स बनाने में जरूर मदद करते हैं लेकिन इस के साइड इफैक्ट बाद में सामने आते हैं. दूसरों को बौडी बनाता देख नए लड़के भी वही करने लग जाते हैं और रोजाना एक ही ऐक्सरसाइज करने लगते हैं. तंदुरुस्त न होने के पीछे एक वजह यह भी है. बहुत से लोग जिम जा कर रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करते हैं. रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करने से शरीर के अंग कमजोर होने लग जाते हैं और फिर बौडी नहीं बन पाती.

दरअसल, अगर इंग्लिश ऐक्सरसाइज कर रहे हैं तो उसे ट्रेनर के निरीक्षण में करें क्योंकि उस का एक साइंस होता है. जिम ट्रेनर इंसान के जिस्म के मुताबिक ऐक्सरसाइज करने का चार्ट बना देते हैं, जिस में हफ्ते के 6 दिनों का ब्योरा होता है कि किस दिन कौनकौन सी ऐक्सरसाइज करनी हैं. जिम ट्रेनर के निरीक्षण में ऐक्सरसाइज करने से जिस्म फिट रहने के साथ वजन बढ़ कर आदर्श लैवल पर बना रहता है.

4. पानी कम पीने की आदत :

24 घंटे के रातदिन के दौरान इंसान को भरपूर पानी पीना चाहिए. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शरीर को भीतर व बाहर दोनों तरफ से फायदा मिलता है. यह शरीर के वजन को बढ़ाने व जिस्म की स्किन और बालों को पोषण प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है.

देशविदेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान को अपनेआप को हाइड्रेट रखने और शरीर से टौक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए दिनभर में 8 से 10 गिलास पानी या कोई तरल पदार्थ पीना चाहिए. इंसान चाहे तो नारियल पानी और ताजे फलों का जूस भी पी सकता है. सो, अगर कोई कम पानी पीता है तो उसे यह आदत छोड़नी होगी.

5. सोने में कंजूसी की आदत :

ऊर्जावान और स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि इंसान नियमित रूप से पूरी नींद लें. नींद न पूरी होने से सिर भारी रहने के साथ शरीर का ब्लडप्रैशर यानी बीपी बढ़ सकता है. नींद न पूरी होने की वजह से थकान के साथसाथ चिड़चिड़ाहट भी महसूस होती है और बातबात पर गुस्सा आता है. मैडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 7 घंटे की नींद लेनी जरूरी है. पूरी नींद लेने से इंसान स्वस्थ महसूस करने के साथ ऊर्जावान बना रहता है. यह इंसान की फिटनैस और आदर्श वजन के लिए भी बेहद ज़रूरी है. ऐसे में जो लोग रात में सोने में कंजूसी करते हैं वे अपनी इस आदत को छोड़ दें.

यानी, सेहतमंद जीवन के लिए जरूरी होती हैं अच्छी आदतें. ये इंसान को खुश रखने के साथ ऊर्जा से भरपूर भी रखती हैं. यही नहीं, ये इंसान को बीमारियों से काफी हद तक दूर भी रखती हैं. तो, गलत आदतों को त्याग कर कोई भी तंदुरुस्त होने के साथ आइडियल वज़न हासिल कर सकता है.

घबराहट में क्यों आता है पसीना

क्याआप के साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप कौंफ्रैंस रूम में खड़े हो कर प्रेजैंटेशन दे रहे हैं, सामने बौस, सीनियर्स और कोवर्कर्स बैठे हैं. मीटिंग काफी महत्त्वपूर्ण है और आप के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. हथेलियां पसीने से भीग रही हैं?

अपने हाथों को आप किसी तरह पोंछने का प्रयास कर रहे होते हैं और घबराहट में आप के हाथों से नोट्स गिरतेगिरते बचते हैं. ऐसी परिस्थिति में न सिर्फ आप का आत्मविश्वास घटता है बल्कि आप के व्यक्तित्त्व को ले कर दूसरों पर नकारात्मक असर पड़ता है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो अकसर हमारे साथ होती है. यह अत्यधिक तनाव अथवा तनावपूर्ण परिस्थितियों की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है.

पहली मुलाकात, सामाजिक उत्तरदायित्व अथवा किसी निश्चित कार्य को न कर पाने के भय के दौरान भी कुछ इसी तरह की स्थिति महसूस होती है. कई दफा तीखे मसालेदार भोजन, जंक फूड्स, शराब का सेवन, धूम्रपान या कैफीन के अधिक प्रयोग से भी ऐसा हो सकता है.

पसीना शरीर के कुछ खास हिस्सों में अधिक आता है. जैसे हमारी हथेलियां, माथा, पैर के तलवे, बगल की जगहों आदि में, क्योंकि इन हिस्सों में स्वेटग्लैंड्स अधिक मात्रा में होते हैं.

पसीना निकलता है ताकि हमारे शरीर का तापमान घट जाए. यही वजह है कि जब आप जौगिंग पर जाते हैं, व्यायाम करते हैं, मेहनत का काम करते हैं या फिर गरमी अधिक हो रही होती है तो आप को पसीना आने लगता है. तनावपूर्ण परिस्थिति में भी हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पसीना आता है.

  1. सरोज सुपर स्पैश्यल्टी हौस्पिटल के

डा. संदीप गोविल कहते हैं कि जब आप नर्वस होते हैं तो आप के स्ट्रैस हारमोन ऐक्टिवेट हो जाते हैं. इस से आप के शरीर का तापमान और हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं. मस्तिष्क में मौजूद हाइपोथेलेमस जो पसीने को नियंत्रित करता है, स्वेट ग्लैंड्स को संदेश भेजता है कि शरीर को ठंडा करने के लिए थोड़ा पसीना निकालना जरूरी है. सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम इमोशनल सिग्नल्स को पसीने में बदल देता है. आप इस प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं कर सकते.

2. कैसे बचें इन परिस्थितियों से

परेशान न हों और न ही घबराएं. इस से आप की परेशानी और बढ़ जाएगी. घबराहट में सांसें तेजतेज चलने लगती हैं. रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है, जिस से और अधिक पसीना निकलने लगता है.

3. रिलैक्सेशन और मैडिटेशन

4.अगर आप के दिल की धड़कनें तेज हो गईं

हों तो थोड़ा रिलैक्स होने का प्रयास करें. अपनी ब्रीदिंग पर फोकस करें. गहरी सांसें लें. कुछ देर तक (5-6 सेकंड) रोक कर रखें और फिर छोड़ दें. इस से आप का मन शांत होगा और स्ट्रैस घट जाएगा.

5.नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें

जो लोग नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करते हैं, उन्हें तनाव कम होता है. आत्मविश्वास बढ़ता है. आप जितने अधिक आत्मविश्वासी होंगे तनावपूर्ण स्थितियों को उतने बेहतर तरीके से हैंडल कर पाएंगे.

6. शरीर में जल का स्तर बनाए रखें

अपने शरीर का तापमान कम रखने के लिए पानी अधिक पीएं ताकि अधिक ऊष्मा को आप का शरीर त्वचा से पसीने के रूप में बाहर निकाल दे.

7. ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल करें

ऐंटीपर्सपिरैंट में पसीने को ब्लौक करने की क्षमता होती है. अगर आप को नर्वस, स्ट्रैस या ऐंग्जाइटी स्वैट की समस्या है, हथेलियों में पसीना ज्यादा आता है तो ऐंटीपर्सपिरैंट लगाएं.

8. अपने पास थोड़ा बेकिंग

पाउडर, कौर्नस्टार्च आदि रखें और किसी तनावपूर्ण स्थिति का सामना करने से पहले इसे हथेलियों पर अप्लाई करें.

कटहल के बीज क्यों है आपके लिए खतरनाक? जानें यहां

कटहल आमतौर सब्जी और फल के रुप में प्रयोग में लाया जाता है जो खाने में तो काफी स्वादिष्ट तो होती ही है और ये काफी सेहत के लिए फायदेमंद भी होती है. भारत के कुछ हिस्सों में इसका अचार भी काफी पसंद किया ज्यादा है. इसके अलावा लोग कटहल के बीजों को भी खूब चाव से खाते हैं. हालांकि कटहल के बीजों में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं, फिर भी कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि कई बार कटहल के बीज जहरीले हो सकते हैं और व्यक्ति की सेहत बिगाड़ सकते हैं या जान भी ले सकते हैं. तो चलिएं जानते है कटहल के बीज आपकी सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसान दायक.

पोषक तत्व से भरपूर है कटहल

कटहल के बीजों में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं. इन बीजों में स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में होते हैं. इसके अलावा 28 ग्राम कटहल के बीजों में 53 कैलोरीज, 11 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 2 ग्राम प्रोटीन, 0.5 ग्राम फाइबर होते हैं. कटहल के बीजों में विटामिन बी, मैग्नीशियम, फौस्फोरस आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

कटहल के बीज किन बीमारियां के लिए है फायदेमंद

  1. डायरिया के मरीजों के लिए कटहल के बीज फायदेमंद हो सकते हैं क्योंकि इनमें ऐंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं.
  2. कटहल के बीजों में कुछ खास एंटीऔक्सीडेंट्स होते हैं, जो आपको कैंसर के खतरे भी बचाते हैं. इन एंटीऔक्सीडेंट्स में फ्लैवोनौइड्स, सैपोनिन्स और फेनौलिक्स हैं.
  3. कटहल के बीज बैड कोलेस्ट्रौल घटाने में भी मददगार होते हैं.

कटहल के बीजों के जहरीले हो सकते है

अगर आप कुछ खास दवाएं खाते हैं, तो कहटल के बीजों के कारण आपके शरीर से अधिक मात्रा में खून निकल सकता है. ये दवाएं जैसे- एस्पिरिन, आईबूप्रोफेन, नैपरोक्सेन, प्लेटलेट्स घटाने वाली दवाएं, खून पतला करने वाली दवाएं है.

हालांकि अगर आप कटहल के बीजों को उबाल लेते हैं या आग पर भून लेते हैं, तो ये एंटीन्यूट्रिएंट्स खत्म हो जाते हैं और फिर आपको कटहल के बीजों को खाने से कोई नुकसान नहीं होगा.

कटहल के बीजों को कैसे खाएं?

कहटल के बीज तमाम पौष्टिक गुणों से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. मगर इन्हें खाते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. कभी भी कटहल के बीजों को कच्चा न खाएं. खाने से पहले इन्हें 20-30 मिनट तक पानी में उबाल लें, तभी खाएं. अगर भूनकर खा रहे हैं, तो इन बीजों को 205 डिग्री सेल्सियस पर कम से कम 20 मिनट तक भूनें.

नर्सिंग एक अच्छा ऑप्शन

कम पढ़ीलिखी लड़कियों के लिए नर्सिंग एक अच्छा काम है और नर्स टे्रन करने के लिए देशभर में नर्सिंग कालेजों और इंस्टीट्यूटों की कुकुरमुत्तों की तरह भरमार होने लगी है. इन में 20,000-30,000 खर्च कर के नर्स का डिप्लोमा मिल जाता हैनर्सिंग का काम आता हो या न आता हो,  झारखंड में 20 कालेजों को नोटिस दिया गया कि उन का रजिस्टे्रशन क्यों रद्द नहीं किया जाए क्योंकि कुछ के पास पर्याप्त कमरे नहीं थे तो ज्यादा के पास अनुभवी टीचिंग स्टाफ भी नहीं था. अकेले  झारखंड में ही 232 कालेज नर्सिंग की शिक्षा दे रहे हैं.

वैसे यह जांच जरूरी है पर सवाल है कि अगर अब पता चल रहा है कि नर्सिंग कालेज 2 कमरे के मकान में चल रहा है तो रजिस्ट्रेशन मिल कैसे गया. वजह साफ हैरजिस्ट्रेशन के समय से धांधलियां शुरू हो जाती हैं. नर्सिंग करने के इच्छुक यह भी नहीं देखते कि सुविधाएं हैं या नहींकुछ पढ़ायासम झाया जा रहा है या नहीं. उन्हें तो केवल डिगरी से मतलब होता है. किसी तरह डिगरी मिल जाए फिर देशविदेश में कहीं नौकरी लग जाएगी और फिर अस्पताल अपनेआप सिखा देंगे.

नर्सिंग के काम के लिए शिक्षा और ट्रेनिंग में अगर इस तरह की धांधलियां हैं तो भी नर्स का काम करने के इच्छुकों की कमी नहीं है तो जाहिर है कि लोग कैरियर बनाने के लिए कितना जोखिम लेते हैं. नर्सिंग ही नहींहर तरह की शिक्षा में इस तरह का गोरखधंधा हर राज्य में चल रहा है क्योंकि सरकारों ने अपना मूलभूत काम देश को चलानेपढ़ाने का इंतजाम करनासड़कें बनानापानीबिजली देनापुलों की देखभाल करना छोड़ दिया है. सभी सरकारें मंदिर बनाने में लगी हैं. किसी भी दिन का अखबार खोल कर देख लोकिसी न किसी मंदिरधामघाट पर प्रधानमंत्रीमंत्रियोंविपक्षी नेताओं के पहुंचनेकुछ करनेकराने के समाचार फोटो समेत दिख जाएंगे.

हैल्थ केयर में अस्पताल तो जरूरी हैं. डाक्टर भी जरूरी हैंपर उन से ज्यादा जरूरी नर्स हैं जो मरीज के अस्पताल में घुसते ही पहली देखरेख करती हैं. उन के बिना न डाक्टर कुछ कर सकता है और न छोटा या  20 मंजिला भव्य अस्पताल.

नर्स बनने के लिए लोग तैयार हैंपैसा खर्च कर रहे हैं पर सरकारी लापरवाही की वजह से ढंग की पढ़ाई कराने वाले कालेज नहीं खुले रहे. शायद इसलिए कि सरकार तो सोचती है कि चारधाम जा कर मरीज ठीक हो सकता है तो नर्सिंग की क्या जरूरत है. देश में ओ झाओंस्वामियोंझोलाछाप नीमहकीमों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है.

सरकार की पढ़ाईलिखाई के बारे में पौलिसी कुछ पंडितपुरोहित बनाने जैसी है. जैसे जन्म से पुरोहित के घर का बेटा (और बेटी भी) पुरोहित बन सकता है वैसे ही शिक्षा सिर्फ ठप्पेनुमा सर्टिफिकेट कहीं से ले कर भी काम बन सकता है. यह देश के साथ खिलवाड़ है. यही बढ़ती बेकारी की वजह है क्योंकि आज कोई स्कूलकालेज ऐसी पढ़ाई नहीं कराता कि कुछ हुनरमंद जना बन सकेकुछ काम ढंग से कर सके. नर्सिंग कालेजों की धांधलियां तो नमूना भर हैंपढ़ाई कराने वाली हर जगह का हाल यही है.   

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें