अब पछताए होत क्या : कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया

आज मंत्री पद गंवा कर दामोदर दुखी भाव से घर लौटे थे. टैलीविजन चालू करते ही वे चौंक गए. हर जगह उन्हीं की महिमा का गुणगान हो रहा था.

दामोदर के ऊपर कामिनी समेत 20 औरतों ने छेड़छाड़ करने का केस दायर किया था. प्रधानमंत्री ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें मंत्री पद से हटा दिया. चूंकि वे वरिष्ठ मंत्री रहे हैं इसलिए उन से इस्तीफा लिया गया और अदालत के फैसले के आधार पर उन के ऊपर कार्यवाही होगी.

इस सब में प्रधानमंत्री का बयान आग में घी का काम कर रहा था, ‘मैं ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारियों का पालन करते हुए दामोदर से इस्तीफा ले कर मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया है. अदालत बिना किसी दबाव के इस मसले पर फैसला लेगी.’

‘‘बड़ा ईमानदार बनता है. सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली,’’ दामोदर गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. वे राजनीति में 50 साल यों ही नहीं गुजार चुके थे. उस में भी वे 30 साल से ज्यादा पत्रकारिता जगत में गुजार चुके थे. कामिनी को वे ही पत्रकारिता में लाए थे.

शाम को अपनी सफाई में दी गई प्रैस कौंफ्रैंस में दामोदर वहां आए पत्रकारों पर फट पड़े, ‘‘मैं खुद पत्रकार के रूप में सालों से आप के साथ रहा हूं और काम कर रहा हूं. इन आरोपों में कोई दम नहीं है, पर पत्रकार के रूप में आप सब जांच में सहयोग दें और सच को छापें.

‘‘मैं ने भी मंत्री पद से इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि न्यायपालिका में मेरा पूरा विश्वास है कि वह सही जांच करेगी. दूसरी बात यह है कि जिस दिन की बात कामिनी बता रही हैं, उस दौरान मैं प्रधानमंत्री के श्रीलंका दौरे को कवर करने वहां गया था और एक वक्त में मैं 2 जगह नहीं रह सकता.’’

‘‘फिर कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया?’’ एक पत्रकार का यह सवाल था.

‘‘आरोप तो कोई भी किसी पर लगा सकता है, मेरे इतने साल के पत्रकारिता और राजनीति के कैरियर में जब कोई गलती नहीं दिखाई दी तो मेरा सीधा चरित्र हनन कर डाला,’’ दामोदर मानो सफाई देते हुए बोले.

मीटिंग खत्म कर के वे कमरे में लौटे तो उन का कामिनी की पुरानी बातों और यादों पर ध्यान चला गया.

‘कामिनी, आप क्या लिखती हैं?’ दामोदर उस की रचनाओं और बायोडाटा को देखते हुए बोले थे.

‘कुछ नहीं बस आज से जुड़े विषयों पर छिटपुट रचनाएं लिखी हैं.’

‘अभी तुरंत कुछ लिख कर दीजिए,’ दामोदर 4 पेज देते हुए बोले थे.

कामिनी ने थोड़ी ही देर में एक ज्वलंत विषय पर रचना लिख कर दे दी थी. इस के बाद इतिहास से एमए पास कामिनी अकसर लिखती और उस की रचना छपने लगी थी.

उस दिन भी कवरेज के लिए जब दामोदर कानपुर गए थे, तो कामिनी उन के साथ थी. बारिश हो रही थी. रात के 11 बजे जब वे कमरे में पहुंचे तो दोनों भीग चुके थे.

इस के बाद दामोदर ने कामिनी के साथ होटल में छक कर मजे लूटे थे. कामिनी ने भी भरपूर सहयोग दिया था. आग में घी तब पड़ा था, जब दामोदर कामिनी के बजाय राधा से शादी कर बैठे थे.

‘इतने दिनों तक मेरा इस्तेमाल किया, फिर…’ कामिनी बिफरते हुए बोली थी.

‘फिर क्या, हम दोनों ने एकदूसरे का इस्तेमाल किया है. तुम ने मेरे नाम का और मैं ने तुम्हारा. यह दुनिया ऐसे ही कारोबार पर चलती है,’ दामोदर सपाट लहजे में बोले थे.

‘मैं आप को बदनाम कर दूंगी. आखिर उस राधा ने क्या दिया है आप को?’ कामिनी गुस्सा में बड़बड़ा रही थी.

‘तुम खुद टूट जाओगी. दूसरी बात यह कि मैं ने मंत्री की बेटी से शादी की है, तो अब सब अपनेआप मिल जाएगा,’ दामोदर सफाई देते हुए बोले थे.

फिर धीरेधीरे दोनों दूर हो गए थे. दामोदर ने सालों से कामिनी का चेहरा नहीं देखा था. इतने सालों के बाद वह न जाने कहां से टपक पड़ी थी.

अगर कामिनी ने अदालत में सुबूत पेश कर दिया तो उन्हें जेल होगी और हर्जाना भी देना पड़ेगा. सांसद की कुरसी भी छिन जाएगी.

‘क्या करूं…’ दामोदर सोच रहे थे कि उन्हें जग्गा याद आ गया. वे जग्गा के पास खुद पहुंचे थे.

‘‘आप जाइए, मैं इस का इलाज कर देता हूं. आप बस 20 औरतों के लिए 25 लाख रुपए का इंतजाम कर दें,’’ वह शराब पीता हुआ बोला.

‘‘पैसा कल तक पहुंच जाएगा. तुम काम शुरू कर दो,’’ दामोदर हामी भरते हुए बोले.

अगले दिन दोपहर के 12 बजे प्रैस कौंफ्रैंस कर उन सभी 20 औरतों ने नाम समेत माफी मांगी और आरोप वापस ले लिया.

अब तो दामोदर मंत्री पद पर दोबारा आ गए. इस मसले पर जब उन से पूछा गया तो वे ?ाट बोल उठे, ‘‘वे सब मेरी बहन जैसी हैं. मैं तो उन से कभी मिला नहीं, उन्हें जानता तक नहीं. बस राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल की गई मुहरें थीं. मुझे साजिश करने वाला चाहिए मुहरें नहीं.’’

‘‘मगर, वे सब औरतें कहां गईं?’’ एक पत्रकार ने पूछा.

‘‘यह सवाल आप उन से पूछिए जिन्होंने मुझ पर ऐसा घिनौना आरोप लगवाया है.

वह तो भला हो उन बहनों का, जिन का जमीर जाग गया और आज मैं आप के सामने हूं. मेरे सामने खुदकुशी के सिवा कोई रास्ता नहीं था,’’ घडि़याली आंसू बहाते दामोदर के इस जवाब ने सब को चुप कर दिया था.

दामोदर दोबारा सही हो गए, तो झट रात में जग्गा को फोन लगाया.

‘आप चिंता मत करो, सारा काम ठीक से हो गया है,’ जग्गा ने कहा.

‘‘फिर भी कहीं कुछ…’’ दामोदर थोड़े शंकित थे.

‘कोई अगरमगर नहीं… जग्गा पूरे पैसे ले कर आधा काम नहीं करता है.’

अब दामोदर ने चैन की सांस ली. अब वे कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, ऐसा सोच कर वे हलका महसूस करने लगे और धीरेधीरे नींद के आगोश में चले गए.

आलिया: एक होशियार लड़की

सब कहते हैं कि दुनिया बहुत ही खूबसूरत है. यहां देखने के लिए एक से एक शानदार जगहें हैं. पहाड़, नदियां, कई मौसम और हर रंगढंग के लोग. अगर कोई कुछ सीखना चाहता है तो वह इन्हीं अच्छेबुरे लोगों के बीच रह कर ही सीख सकता है. अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है तो उसे इन्हीं लोगों के साथ ही आगे चलना होगा.

लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने यह दुनिया जी ही नहीं? ऐसे लोग जो अपने ख्वाबों में अपनी एक अलग दुनिया जीते हैं. वे किताबों, घर के बनाए उसूलों और टैलीविजन देख कर ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं.

ऐसे ही लोगों में से एक है आलिया. वह 12वीं क्लास में पढ़ती है. देखने में होशियार लगती है. और है भी, लेकिन उस ने अपना दिमाग सिर्फ किताब के कुछ पन्नों तक ही सिमटा रखा है. 12वीं क्लास में होने के बावजूद उस ने आज तक बाजार से अपनेआप एक पैन नहीं खरीदा है. वह छोटे बच्चों की तरह लंच बौक्स ले कर स्कूल जाती है और अपने पास 100 रुपए से ज्यादा जेबखर्च नहीं रखती है.

आलिया के पास आर्ट स्ट्रीम है और स्कूल में उस की एक ही दोस्त है हिना, जो साइंस स्ट्रीम में पढ़ती है. दोनों का एक सब्जैक्ट कौमन है, इसलिए वे दोनों उस एक सब्जैक्ट की क्लास में मिलती हैं और लंच बे्रक साथ ही गुजारती हैं.

आलिया को लगता है कि अगर कोई बच्चा 100 रुपए से ज्यादा स्कूल में लाता है तो वह बिगड़ा हुआ है. पार्टी करना, गपें मारना और किसी की खिंचाई करना गुनाह के बराबर है.

अगर कोई लड़की स्कूल में बाल खोल कर और मोटा काजल लगा कर आती है और लड़कों से बिंदास बात करती है तो वह उस के लिए बहुत मौडर्न है.

सच तो यह है कि आलिया बनना तो उन के जैसा ही चाहती है, पर चाह कर भी ऐसा बन ही नहीं पाती है. क्लास के आधे से ज्यादा बच्चों से उस ने आज तक बात नहीं की है.

एक बार रोहन ने आलिया से पूछा, ‘‘आलिया, क्या तुम हमारे साथ पार्टी में चलोगी? श्वेता अपने फार्महाउस पर पार्टी दे रही है.’’

आलिया का मन तो हुआ जाने का, पर उसे यह सब ठीक नहीं लगा. उस ने सोचा कि इतनी दूर फार्महाउस पर वह अकेली कैसे जाएगी.

‘‘नहीं, मैं नहीं आऊंगी. वह जगह बहुत दूर है,’’ आलिया बोली.

‘‘तो क्या हुआ. हम तुम्हें अपने साथ ले लेंगे. तुम कहां रहती हो, हमें जगह बता दो,’’ श्वेता ने भी साथ चलने के लिए कहा.

‘‘नहीं, मैं वहां नहीं जा पाऊंगी,’’ आलिया ने साफ लहजे में कहा.

‘‘बाय आलिया,’’ छुट्टी के वक्त रोहन ने आलिया से कहा.

आलिया सोचने लगी कि आज वह इतनी बातें क्यों कर रही है. वह रोहन की बात को अनसुना करते हुए आगे निकल गई.

रोहन को लगा कि वह बहुत घमंडी है. इस के बाद उस ने कभी आलिया से बात नहीं की.

अगले दिन आलिया को लंच ब्रेक में हिना मिली. अरे, हिना के बारे में तो बताया ही नहीं. वह आलिया की तरह भीगी बिल्ली नहीं है, बल्कि बहुत बिंदास और मस्त लड़की है. लेकिन अलग मिजाज होने के बावजूद दोस्ती हो ही जाती है. हिना की भी अपनी क्लास में ज्यादा किसी से बनती नहीं थी. इसी वजह से वे दोनों दोस्त बन गईं.

हिना को आलिया इसलिए पसंद थी, क्योंकि वह ज्यादा फालतू बात नहीं करती थी और कभी भी हिना की बात नहीं काटती थी. आलिया को कभी पता ही नहीं चलता था कि कौन किस तरह की बात कर रहा है.

बचपन से ले कर स्कूल के आखिरी साल तक आलिया सिर्फ स्कूल पढ़ने जाती है. बाकी बच्चे कैसे रहते हैं और कैसे पढ़ते हैं, इस पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. अपनी 17 साल की जिंदगी में वह इतना कम बोली है कि शायद बात करना ही भूल गई है. उस की जिंदगी के बारे में जितना बताओ, उस से कहीं ज्यादा अजीब है.

हां, तो हम कहां थे. अगले दिन आलिया लंच ब्रेक में हिना से मिली और रोहन के बारे में बताया.

‘‘आलिया, सिर्फ ‘बाय’ कहने से कोई तुम्हें खा नहीं जाएगा. अगर बच्चे पार्टी नहीं करेंगे, तो क्या 80 साल के बूढ़े करेंगे. वैसे, कर तो वे भी सकते हैं, पर इस उम्र में पार्टी करने का ज्यादा मजा है. स्कूल में हम सब पढ़ने आते हैं, पर यों अकेले तो नहीं रह सकते हैं न. बेजान किताबों के साथ तो बिलकुल नहीं.

‘‘खुद को बदलो आलिया, इस से पहले कि वक्त हाथ से निकल जाए. क्या पता कल तुम्हें उस से काम पड़ जाए, पर अब तो वह तुम से बात भी नहीं करेगा. तू एवरेज स्टूडैंट है, पर दिनभर पढ़ती रहती है और तेरी क्लासमेट पूजा जो टौपर है, वह कितना ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेती है. इतने सारे दोस्त हैं उस के.

‘‘टौपर वही होता है, जो दिमागी और जिस्मानी तौर पर मजबूत होता है. जो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करता, बल्कि जिंदगी को भी ऐंजौय करता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है. अब लैक्चर देना बंद कर,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तू फेसबुक पर कब आएगी? मु?ो अपनी कजिन की शादी की पिक्स दिखानी हैं तु?ो,’’ हिना ने कहा.

‘‘मेरे यहां इंटरनैट नहीं है. फोटो बन जाएं तब दिखा देना.’’

‘‘ठीक है देवीजी, आप के लिए यह भी कर देंगे,’’ हिना ने मजाक में कहा.

लंच ब्रेक खत्म हो गया और वे दोनों अपनीअपनी क्लास में चली गईं.

‘‘मम्मी, पापा या भाई से कह कर घर में इंटरनैट लगवा दो न.’’

‘‘भाई तो तेरा बाहर ही इंटरनैट इस्तेमाल कर लेता है और पापा से बात की थी. वे कह रहे थे कि कुछ काम नहीं होगा, सिर्फ बातें ही बनाएंगे बच्चे.’’

‘‘तो आप ने पापा को बताया नहीं कि भाई तो बाहर भी इंटरनैट चला लेते हैं और मु?ो उस का कखग तक नहीं आता है. मेरे स्कूल में सारे बच्चे इंटरनैट इस्तेमाल करते हैं,’’ आलिया ने थोड़ा गुस्सा हो कर कहा.

‘‘अच्छा, अब ज्यादा उलटीसीधी जिद न कर. पता नहीं, किन जाहिलों में रह रही है. बात करने की तमीज नहीं है तु?ो. इतना चिल्लाई क्यों तू?’’ मां ने डांटते हुए कहा.

आलिया अकेले में सोचने लगी कि भाई तो बाहर भी चला जाता है. उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और वह घर में ही रहती है, फिर भी भिखारियों की तरह हर चीज मांगनी पड़ती है.

कुछ पेड़ हर तरह का मौसम सह लेते हैं और कुछ बदलते मौसम का शिकार हो जाते हैं. आलिया ऐसे ही बदलते मौसम का शिकार थी.

आलिया का परिवार सहारनपुर से है. उस की चचेरी और ममेरी बहनें हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ती हैं. 12वीं क्लास के बाद ही ज्यादातर सब की शादी हो जाती है. दिल्ली में रहने के बाद भी आलिया नहीं बदली. जब वह छोटी थी तब उस के सारे काम भाई और मम्मी ही करते थे.

वे जितना प्यार करते थे, उतनी ही उस पर पाबंदी भी रखते थे. दिल्ली में एक अच्छे स्कूल में होने की वजह

से उसे पढ़ाई का बढि़या माहौल मिला, पर स्कूल के दूसरे बच्चों के घर के माहौल में और उस के घर के माहौल में जमीनआसमान का फर्क था.

आलिया स्कूल से घर दोपहर के

3 बजे आती है, फिर खाना खाती है, ट्यूशन पढ़ती है. रात में थोड़ा टीवी देखने के बाद 10 या 11 बजे तक पढ़ कर सो जाती है. उस के घर के आसपास कोई उस का दोस्त नहीं है और उस के स्कूल का भी कोई बच्चा वहां नहीं रहता है.

कुछ दिनों के बाद स्कूल के 12वीं क्लास के बच्चों की फेयरवैल पार्टी थी. आलिया भी जाना चाहती थी, पर भाई और पापा काम की वजह से उसे ले कर नहीं गए और अकेली वह जा नहीं सकती थी. न घर वाले इस के लिए तैयार थे, न उस में इतनी हिम्मत थी.

12वीं क्लास के एग्जाम हो गए. पास होने के बाद हिना और आलिया का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. आलिया की आगे की कहानी क्या है. जो हाल स्कूल का था, वही हाल कालेज का भी था. घर से कालेज और कालेज से घर. पूरे 3 साल में बस 2-3 दोस्त ही बन पाए.

बाद में आलिया ने एमबीए का एंट्रैस एग्जाम दिया, पर पापा के कहने पर बीएड में एडमिशन ले लिया. उस के पापा को प्राइवेट कंपनी में जौब तो करानी नहीं थी, इसलिए यही ठीक लगा.

बीएड के बाद आलिया का रिश्ता पक्का हो गया. नवंबर में उस की

शादी है.

एक बात तो बतानी रह गई. 12वीं क्लास के बाद उस ने अपना फेसबुक अकाउंट बना लिया था. जैसेतैसे घर पर इंटरनैट लग गया था. एक दिन उस ने फेसबुक खोला तो हिना का स्टेटस मिला कि उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है.

आलिया ने फिर हिना के फोटो देखे और दूसरे क्लासमेट के भी. सभी अपने दोस्तों के साथ किसी कैफे में तो किसी फंक्शन के फोटो डालते रहते हैं. सभी इतने खुश नजर आते हैं.

अचानक आलिया को एहसास हुआ कि सभी अपनी जिंदगी की छोटीबड़ी यादें साथ रखते हैं. सभी जितना है, उसे और अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं. स्कूल टाइम से अब तक सब कितने बदल गए हैं. कितने अच्छे लगने लगे हैं.

सभी काफी खुश लगते हैं और वह… आलिया को एहसास हुआ कि उस ने कभी जिंदगी जी ही नहीं. स्कूल या कालेज की एक भी तसवीर उस के पास नहीं है. शादी के बाद जिंदगी न जाने कौन सा रंग ले ले, पर जिसे वह अपने हिसाब से रंग सकती थी, वह सब उस ने मांबाप के डर और अकेलेपन से खो दिया.

वह दिन भी आ गया, जब आलिया की शादी हुई. हिना भी उस की शादी में आई थी. विदाई के वक्त आलिया की आंखों में शायद इस बात के आंसू थे कि वह जिस वक्त को बिना डरे खुशी से जी सकती थी, उसे किताबों के पन्नों में उल?ा कर खत्म कर दिया. जो वक्त बीत गया है, उस में कोई कमी नहीं थी, पर आने वाला वक्त उसे नापतोल कर बिताना होगा.

New Kahani: अस्पताल अग्निकांड में सपने हुए खाक

दुलारी की आस बंध गई थी. क्लिनिक के बरामदे में बैठा राम मनोहर पुरानी यादों में खो गया. वह दलित समाज का लड़का था और दुलारी ऊंची जाति की, पर गरीब घर की. उन दोनों के गांव आसपास ही थे और वे स्कूल के समय से एकदूसरे को जानते थे.

दरअसल, उन का स्कूल गांव से थोड़ा दूर था और वे दोनों साइकिल से स्कूल जाते थे. इसी आनेजाने में उन की बातचीत शुरू हुई और वे एकदूसरे को पसंद करने लगे. तब राम मनोहर 12वीं जमात में था और दुलारी 10वीं जमात में पढ़ती थी.

एक दिन स्कूल से घर जाते समय राम मनोहर ने दुलारी को कुछ दूर जा कर रोक लिया. वह बोला, ‘‘दुलारी, मैं 12वीं के बाद शहर चला जाऊंगा. वहां दिल्ली में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते हैं. उन्होंने वहां मुझे काम दिलाने का वादा किया है.’’

दुलारी ने कहा, ‘‘तो यह सब तुम मुझे क्यों बता रहे हो? दिल्ली तो दुनिया जाती है, इस में नया क्या है?’’

‘‘नया यह है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं और अपने साथ तुम्हें भी दिल्ली रखना चाहता हूं. क्या तुम मेरे साथ दिल्ली चलोगी?’’ राम मनोहर ने पूछा.

‘‘अरे, दिल्ली जाना कोई हंसीखेल है क्या? फिर मैं तुम पर यकीन क्यों करूं? क्या पता मुझे वहां बेचबाच दो…’’ दुलारी ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम भी मुझे पसंद करती हो, पर हमारी जाति इस प्यार के बीच में आ रही है,’’ राम मनोहर ने कहा.

‘‘बात वह नहीं है. मैं जाति के झमेले में नहीं पड़ती, पर अभी हम दोनों की उम्र ही क्या है. तुम 20 के हो और मैं 18 की. किस रिश्ते से वहां रहेंगे?’’

‘‘हम अपनी शादी को एक साल तक छिपा कर रखेंगे और फिर कोर्ट से सर्टिफिकेट बनवा लेंगे,’’ राम मनोहर ने अपना प्लान बताया.

‘‘देखो, मुझे सोचने का समय दो. अभी तो कुछ समय गांव में ही रहते हैं, एकदूसरे को समझते हैं, फिर आगे की सोचेंगे,’’ दुलारी बोली और साइकिल चला कर आगे बढ़ गई.

उस दिन से राम मनोहर और दुलारी की प्रेम कहानी शुरू हुई थी. राम मनोहर ने दिल्ली जाने का जो प्लान बनाया था, वह समय के साथसाथ ठंडा पड़ता गया था, पर दुलारी ने अपने प्यार से इस रिश्ते में गरमी बनाए रखी.

एक शाम को वे दोनों खेतों में बैठे थे. दुलारी ने उस दिन टाइट सूट पहना हुआ था. उस का अंगअंग बाहर आने को मचल रहा था.

राम मनोहर ने कहा, ‘‘दुलारी, आज तो तुम कहर ढा रही हो. मेरा मन मचल रहा है…’’ इतना कह कर उस ने दुलारी को चूम लिया.

दुलारी ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें मींचे जमीन पर लेट गई. राम मनोहर

उस के ऊपर झुक गया और उसे गले लगा लिया.

दुलारी की सांसें तेज चलने लगीं. उस ने भी राम मनोहर को भींच लिया. उस दिन उन दोनों के बीच की दूरियां मिट गई थीं. फिर वे दोनों अकसर खेतों में मिलने लगे.

पर यह छिप कर मिलना ज्यादा दिन तक नहीं चला. दुलारी के घर में किसी ने बता दिया कि उन की लड़की खेतों में किसी निचली जाति के लड़के के साथ मुंह काला कर रही है.

वह दिन है और आज का दिन, राम मनोहर और दुलारी ने कभी गांव का मुंह दोबारा नहीं देखा. पर दिल्ली में कौन सा सुख ही धरा था. दुलारी कम उम्र में मां बनने वाली थी और राम मनोहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में भटक रहा था.

फिलहाल घर का खर्चा चलाने के लिए राम मनोहर दिल्ली की साइकिल मार्केट में बने एक गोदाम से शोरूम तक माल कंधे पर ढोने का काम करता था. इस मजदूरी के उसे 11,000 रुपए महीना मिलते थे. वे दोनों शादीपुर गांव की दड़बेनुमा कालोनी में एक कमरे के मकान में रहते थे.

लोकल झोलाछाप डाक्टर ने कहा था कि दुलारी कमजोर है, इसलिए बच्चे पर भी इस का बुरा असर पड़ रहा है. केस थोड़ा पेचीदा है, इसलिए इसे किसी बड़े अस्पताल में दिखा आओ.

राम मनोहर दिल्ली के एम्स अस्पताल में दुलारी को दिखाने ले गया. वहां पता चला कि परची बनाने की ही लंबी लाइन लगी थी. उसे महसूस हुआ कि इस से अच्छा तो डाक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दुलारी को ले जाता, पर उस ने तो एम्स का नाम सुन रखा था, तो मुंह उठाया और चल दिया एम्स.

राम मनोहर ने अपने आगे खड़े एक आदमी से इतनी भीड़ की वजह पूछी, तो वह आदमी बोला, ‘‘भाई, गरमी बहुत ज्यादा है, ऐसे में परची बनवाने के लिए लोग रात से ही नंबर लगाने के लिए लाइन में लग जाते हैं. एक घंटे के काम में पूरा दिन लग जाता है. यहां के एक चपरासी ने बताया कि एम्स के ज्यादातर सीनियर डाक्टर गरमियों की छुट्टी पर हैं. ऐसे में मरीजों को भी काफी ज्यादा दिक्कतें हो रही हैं.’’

राम मनोहर के पसीने छूटने लगे. ऐसे तो दुलारी की डिलीवरी के समय बाद ही उस का नंबर आएगा. छठा महीना जो चल रहा है. वह घर लौट आया. मैक्स जैसे बड़े अस्पताल में तो उस के बस का घुसना तक नहीं था. वहां तो बच्चा पैदा कराने का पूरा पैकेज था. इतने पैसे उस ने सपने में भी नहीं देखे थे.

तभी किसी ने बताया कि शादीपुर गांव के पास ही एक सस्ता सा क्लिनिक है, जहां किस्तों पर इलाज किया जाता है. मान लो, तकरीबन 10,000 रुपए का खर्चा है, तो पहले 5,000 रुपए जमा करा लिए जाते हैं, बाकी रकम की किस्तें बंध जाती हैं.

राम मनोहर अगले ही दिन दुलारी को उस क्लिनिक में ले गया. वह तिमंजिला क्लिनिक बड़ी सड़क से थोड़ा अंदर एक छोटी सी गली में था, जहां की लिफ्ट अकसर खराब रहती थी और सीढि़यां भी संकरी थीं. अगर लाइट न जलाओ तो दिन में भी वहां अंधेरा रहता था.

डाक्टर ने दुलारी का मुआयना किया. वह बोली, ‘‘लगता है, बच्चा 7वें महीने में ही पैदा कराना पड़ेगा. मां और बच्चा दोनों का खास खयाल रखना पड़ेगा.’’

डाक्टर ने सिजेरियन का खर्चा 25,000 रुपए बताया और 15,000 रुपए पहले जमा कराने को कहा. वैसे तो डाक्टर और ज्यादा पैसे मांग रही थी, पर राम मनोहर की माली हालत देख उस ने कुछ डिस्काउंट दे दिया.

फिर वह दिन भी आया, जब राम मनोहर बाप बना. बेटा पैदा हुआ था. पर चूंकि बच्चा कमजोर था, तो वह नर्सरी में रखा गया था. दुलारी ठीक थी. आज बच्चे के नर्सरी में होने का चौथा दिन था. डाक्टर बोल रहे थे कि कल बच्चे को उन्हें सौंप दिया जाएगा.

राम मनोहर मन ही मन अपने दिल्ली वाले रिश्तेदार का शुक्रिया अदा कर रहा था, जिस ने उस की 10,000 रुपए की मदद की थी.

राम मनोहर अपनी यादों से लौट आया. रात के 11 बज रहे थे. दुलारी अपने नवजात के कमरे के बाहर दरवाजे पर ही कुरसी लगाए बैठी थी. राम मनोहर ने बहुत बार कहा कि किसी तरह आज की रात कट जाए, फिर हमारा बच्चा तेरी गोद में ही होगा. वह कुछ दूरी पर एक बैंच पर बैठा ऊंघ रहा था.

पूरे क्लिनिक में एक मुर्दनी सी छाई थी. एक ही चपरासी था, जो दुलारी को अपनी कुरसी दे कर खुद राम मनोहर के पास जा बैठा. इस तीसरे फ्लोर पर नर्सरी में वे 4 नवजात, दुलारी, राम मनोहर और उस चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.

इसी बीच राम मनोहर की नींद टूटी. उस ने एक नजर दुलारी पर और दूसरी नजर अपने आसपास डाली. फिर वह आंखें मींचताखोलता सा पानी पीने के लिए उठा. उस की आहट से चपरासी भी उठ गया. वह बोला, ‘‘भाई, एक गिलास मेरे लिए भी पानी ले आओ.’’

राम मनोहर ने उसे पानी ला कर दिया और बोला, ‘‘अब नहीं सहा जाता. बस, किसी तरह हमारा बेटा नर्सरी से बाहर आ जाए, तो मैं पहली फुरसत में अपने गांव चला जाऊंगा. बहुत झेल ली दिल्ली. कहने को यहां गरीबों के लिए मुफ्त इलाज का ढिंढोरा पीटा जाता है, पर असलियत बड़ी काली है दोस्त.’’

चपरासी ने राम मनोहर की बात को बड़े गौर से सुना. वह खुद हाल ही में दिल्ली बड़ेबड़े सपने ले कर आया था. पर मिला क्या… बीए करने के बावजूद इस अस्पताल में चपरासी की नौकरी.

चपरासी कुछ बोल पाता, उस से पहले ही राम मनोहर ने बैंच पर बैठते हुए कहा, ‘‘विवेक विहार में हुए हादसे ने तो मुझे डरा ही दिया है.’’

‘‘विवेक विहार में क्या हुआ था?’’ उस चपरासी ने पानी पीते हुए पूछा.

‘‘नाश हुआ था, नाश. कई घरों के चिराग अस्पताल में लगी आग से झुलस गए थे. हमतुम जैसों के लिए यह अखबार में छपी छोटी सी खबर है, पर जिन मांबाप पर यह विपदा आई है, उन से पूछो कि नन्ही सी जान, जिस ने अभी ढंग से अपनी मां का दूध भी नहीं पिया है, जिस के पिता ने उसे गोद में उठा कर एक बार भी चूमा तक नहीं है, का यों दर्दनाक मौत का भागीदार बनना क्या होता है.’’

उस चपरासी का मुंह खुला का खुला रह गया. उस ने कहा, ‘‘अरे भैया, पहेलियां मत बुझाइए. मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए हैं. पूरी बात बताओ. मैं ने यह खबर नहीं पढ़ी है.’’

राम मनोहर ने कुछ सोचते हुए बताना शुरू किया, ‘‘हम सब गरीबों का खयाल रखने का दावा करने वाली दिल्ली के विवेक विहार इलाके में बने बच्चों

के एक अस्पताल में शनिवार, 25 मई, 2024 की देर रात आग लग गई थी. यह आग इतनी ज्यादा भयंकर थी कि इस हादसे में 6 नवजात की मौत हो गई थी.

‘‘दोमंजिला इमारत की पहली मंजिल पर नवजात बच्चों की देखभाल के लिए एक सैंटर बना हुआ था, जिस में उस समय कुल 12 बच्चे भरती थे. ऐसी भी खबर थी कि निचली मंजिल पर गैरकानूनी तरीके से औक्सीजन सिलैंडर भरने का काम चल रहा था.’’

यह सुन कर चपरासी की नींद काफूर हो गई. वह राम मनोहर के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘भैया, आगे क्या हुआ था?’’

राम मनोहर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘दमकल अधिकारी ने बताया कि उन्हें रात साढ़े 11 बजे आग लगने की सूचना मिली थी. मौके पर दमकल की कुल 16 गाडि़यां पहुंची थीं, तब तक आग की लपटें ऊपर की मंजिल और पास की 2 इमारतों में भी फैल चुकी थी. नवजात बच्चों की देखभाल वाले सैंटर में जाने के लिए बाहर की तरफ से लोहे की एकमात्र घुमावदार सीढ़ी थी, उस में भी आग लग गई थी.

‘‘खबर यह थी कि उस सैंटर में भरती 12 बच्चों में से एक बच्चे की मौत आग लगने से पहले ही हो चुकी थी. कमरे में धुआं भरने के चलते बाकी 11 बच्चों की हालत गंभीर हो गई थी.

‘‘दमकल की टीम और स्थानीय लोगों ने लकड़ी की सीढि़यों पर चढ़ कर खिड़की से उन 11 बच्चों को बाहर निकाला था, पर तब तक दम घुटने से 6 बच्चों की मौत हो गई थी. उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेजा गया था. फायर सर्विस ने तकरीबन डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद आग पर पूरी तरह काबू पाया.’’

‘‘पर भैया, किसी ने तो देखा होगा कि यह आग कैसे लगी थी?’’ चपरासी ने पूछा.

राम मनोहर ने कहा, ‘‘अगर खबर पर यकीन करें, तो वहां रहने वाले एक आदमी ने बताया था, ‘हमारा घर पास

ही है. हमें रात में फोन आया कि यहां धमाके हुए हैं. मौके पर आए तो पता चला कि बिल्डिंग के सामने वैन में औक्सीजन सिलैंडर में गैस भरने का काम चल रहा था कि तभी सिलैंडर में धमाका हो गया.’

‘‘उस आदमी ने आगे बताया, ‘पहला सिलैंडर फट कर बिल्डिंग के अंदर गया, जिस से आग लग गई. आग लगते ही अस्पताल के सभी स्टाफ बच्चों को छोड़ कर भाग गए. उस के बाद एक के बाद एक 3 और सिलैंडर में धमाके हुए. हम बिल्डिंग के पीछे गए और शीशे तोड़ कर बच्चों को बाहर निकाला.’

‘‘लोकल लोगों का आरोप है कि बेबी केयर सैंटर के नीचे काफी समय से औक्सीजन भरने का काम होता था. यहां रोज बड़ी तादाद में औक्सीजन सिलैंडर लाए जाते थे. इस को ले कर पहले ही कई बार शिकायत की गई थी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई.’’

राम मनोहर के इतना कहने पर उस काली रात का सन्नाटा और ज्यादा गहरा हो गया. दुलारी अभी गहरी नींद में लग रही थी. रात के साढ़े 12 बज रहे थे.

चपरासी ने राम मनोहर से कहा, ‘‘भैया, मेरा घर पास में ही है. अगर आप कहें तो थोड़ी देर अपनी नींद निकाल आऊं, बस आप किसी को बताना मत. मैं 4 बजे तक लौट आऊंगा.’’

राम मनोहर ने कहा, ‘‘ठीक है, वैसे भी यहां कौन आने वाला है. दिन में तो डाक्टर दिखते नहीं, फिर इस काली रात में…’’

राम मनोहर को नहीं पता था कि वह रात सच में उस के लिए काली साबित हो जाएगी. रात के 3 बज रहे थे. राम मनोहर और दुलारी गहरी नींद में सो रहे थे.

इतने में सब से निचली मंजिल में बिजली की तारों में आग लग गई. ज्यादा गरमी की वजह से आग तेजी से फैलने लगी. देखते ही देखते आग इतनी ज्यादा बढ़ गई कि धुएं का गुबार सा उठने लगा.

राम मनोहर और दुलारी को नींद में पता ही नहीं चला और वे धुएं की चपेट में आ गए. देखते ही देखते बच्चों की नर्सरी वाली वह मंजिल गैस का चैंबर बन गई.

दमकल की 12 गाडि़यों ने बड़ी मशक्कत के बाद उस आग पर काबू पाया, पर तब तक राम मनोहर, दुलारी और वे 4 नवजात बच्चे मौत के आगोश में समा गए.

कल तक बच्चों की दर्दनाक मौत का गम मनाने वाला राम मनोहर आज खुद अखबार की सुर्खियां बन गया था..

मसीहा: शांति की लगन

दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे. मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.     द्य

अनकही व्यथा: दामाद अशोक के बारे में सुदर्शन को क्या पता चला था

कालोनी में सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर सुदर्शन के यहां उन की पुत्री के विवाह की तैयारियां जोरों पर थीं. सुदर्शन ने 3 वर्ष पहले ही कालोनी में मकान बनवाया था और उस समय की लागत के अनुसार मकान बनवाने में केवल 1 लाख रुपए लगे थे. 4 बडे़ कमरे, बैठक, रसोईघर, हरेक कमरे से जुड़ा गुसलखाना, सामने सुंदर लान जिस में तरहतरह के फूल लगे थे और पीछे एक बड़ा आंगन था. मकान की शान- शौकत देखते ही बनती थी.

उसी सुदर्शन के मकान के सामने आज विवाह की तैयारियां जोरों पर थीं. पूरी सड़क घेर कर काफी दूर तक कनातें लगाई गई थीं. शहर की सब से नामी फर्म ने सजावट का ठेका लिया था. चांदी और सुनहरे तारों की लडि़यां, रंगबिरंगे बल्ब, सोफे और गद्दीदार कुरसियां, झाड़-फानूस, सभी से वह पूरा क्षेत्र सजा हुआ था. स्वागत द्वार के पास ही परंपरागत शहनाईवादन हो रहा था. उस के लिए भी प्रसिद्ध कलाकार बुलाए गए थे.

जब मकान बना था तब भी पड़ोस में रहने वाले प्रोफेसर बलराज को बड़ा आश्चर्य हुआ था कि इतना रुपया सुदर्शन के पास कहां से आया. उन्हीं को नहीं, अन्य लोगों को भी इस बात पर अचंभा हुआ था, लेकिन यह पूछने का साहस किसी में नहीं था. आज बलराज को सुदर्शन की पुत्री के विवाह पर की गई सजावट और शानशौकत देख कर विस्मय हो रहा था.

बलराज हजार रुपए वेतन पा कर भी कभी मकान बनवाने की कल्पना नहीं कर सके और 15  वर्षं से इस कालोनी में किराए के मकान में रह रहे थे. उन की पत्नी कभीकभी व्यंग्य में कह दिया करती थीं, ‘‘जाइए, देख ली आप की प्रोफेसरी. इस मास्टरी लाइन में रखा ही क्या है? देख लो, सामने वाले नायब तहसीलदार विजय ने कैसी शानदार कोठी बनवा ली है और उधर देखो, थानेदार जयसिंह ने नए ढंग से क्या प्यारा बंगला बनवाया है. अपने बाईं ओर सुदर्शन की कोठी तो देख ही रहे हो, दाईं तरफ वाली विकास अधिकारी रतनचंद्र की कोठी पर भी नजर डाल लो.

‘‘इन्हें क्या तन- ख्वाह मिलती है? सच तो यह है कि शायद तुम से आधे से भी कम तनख्वाह मिलतीहोगी, लेकिन देख लो, क्या ठाट हैं. सभी के बच्चे कानवेंट स्कूलों में पढ़ रहे हैं. फल और मेवों से घर भरे हुए हैं. और एक हम लोग हैं, न ढंग से खा पाते हैं और न पहन पाते हैं. वही कहावत हुई न, नाम बडे़ और दर्शन छोटे.’’

बलराज पत्नी की बातों पर अकसर झुंझलाया करते थे. किंतु वह जानते थे कि उन की पत्नी की बातों में दम है, गहरी सचाई है. वह आज तक नहीं समझा सके कि इन लोगों के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है? कैसे वे इतना बढि़या शानशौकत भरा जीवन बिता रहे हैं? और वह ऐसा क्यों नहीं कर पाते? बलराज जैसे सीधेसादे प्रोफेसर इस प्रश्न का उत्तर खोजने पर भी नहीं ढूंढ़ पाते थे.

वह एक कालिज में भारतीय इतिहास के प्राध्यापक थे. प्राय: उन का अधिकांश समय गहरे अध्ययन और चिंतनमनन में ही बीतता था. परिवार में पत्नी के अलावा एक बड़ा पुत्र और 2 पुत्रियां थीं. पुत्र केवल बी.ए. तक ही पढ़ सका और एक फर्म में विक्रय प्रतिनिधि हो गया. उन की दोनों लड़कियों ने अवश्य एम.ए., बी.एड. कर लिया था. तीनों बच्चे बहुत सुंदर थे. लड़के का विवाह हो चुका था और एक बच्चा था.

लड़कियों के विवाह की चिंता उन्हें परेशान किए हुए थी. कई वरों को उन्होंने देख लिया था और कई वर और उन के मातापिता उन की पुत्रियों को देख चुके थे किंतु फिर भी कहीं बात तय नहीं हो पाई थी. वह काफी परेशान थे. सोचते थे कि दोनों ही लड़कियां विवाह योग्य हैं. 2-4 दिन के अंतर से दोनों का ही विवाह कर देंगे, लेकिन जब वर मिलेगा तभी तो विवाह होगा. किंतु वर कहां मिले?

उन की नजर सुदर्शन की कोठी की ओर चली गई. इस समय तक पंडाल भर चुका था. बड़ेबडे़ सेठसाहूकार अपनीअपनी कारों में आए थे. आखिर आते क्यों नहीं? सुदर्शन सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर जो था, इसीलिए शहर के व्यापारी वर्ग के सभी गण्यमान्य व्यक्ति वहां उपस्थित थे.

बलराज चौंके. ओह, वे व्यर्थ की बातें क्यों सोच रहे हैं? उन्हें भी अब सुदर्शन के यहां पहुंच जाना चाहिए. घर की महिलाएं पड़ोस में जा चुकी थीं. घर में अब उन के सिवा कोई नहीं था. वह भी जल्दी जाना चाहते थे, किंतु मन में अनजाने ही एक ऐसी अव्यक्त वेदना घर कर गई थी कि हृदय पर उन्हें एक भारी बोझ सा अनुभव हो रहा था. यह शायद अपनी पुत्रियों के विवाह तय न हो पाने के कारण था.

पटाखों और बैंडबाजों की आवाज से उन की विचारधारा टूटी. ओह, बरात आ गई. बलराज तुरंत दरवाजे पर ताला लगा कर पड़ोस में लपके.

बरात अब बिलकुल नजदीक आ चुकी थी और बैंड के शोर में ‘ट्विस्ट’ नाच अपनी चरमसीमा पर था. आगत अतिथिगण उठ कर खडे़ हो गए थे. उन में से कुछ आगे बढ़ कर नाच देखने लगे. वर का सजासजाया घोड़ा अब ‘स्वागतम्’ वाले द्वार के बिलकुल निकट आ गया था. बलराज भी अब आगे बढ़ आए थे.

परिवार की महिलाओं द्वारा अब वर का स्वागत हो रहा था. फूलों का सेहरा उठा कर वर के माथे पर तिलक किया जा रहा था. वर के मुख को देखने की उत्सुकता से बलराज ने भीड़ में सिर ऊपर उठा कर उस के मुख को देखा तो वह बुरी तरह चौंक गए. वर का मुख उन का अत्यंत जानापहचाना था.

बलराज का पूरा शरीर पसीने से भीग गया. यह सब कैसे हुआ? सचमुच यह कैसे हुआ? अशोक यहां कैसे आ गया?

लगभग 3 महीने पहले यही अशोक अपने पिता, भाई, मां तथा बहन के साथ उन की पुत्री रुचि को देखने उन के यहां आया था. उस दिन उन्होंने भी अपने आसपड़ोस के 4 आदमियों को इकट्ठा कर लिया था जिस में पड़ोस के सुदर्शन का परिवार भी सम्मिलित था.

बलराज को वह दिन अच्छी तरह याद था. अशोक अत्यंत सुंदर व सुसंस्कृत नवयुवक था. वह अच्छे पद पर था. एकाध वर्ष में स्टेट बैंक की किसी शाखा का मैनेजर बनने वाला था. उन के एक मित्र ने उस से तथा उस के परिवार से बलराज का परिचय कराया था. लड़का उन्हें बहुत पसंद आया था और उन्होंने अपनी रूपमती पुत्री रुचि का उस से विवाह कर देने का निश्चय कर लिया था.

किंतु निश्चय कर लेना एक बात है और कार्यरूप में परिणत करना दूसरी बात है. उन की हार्दिक इच्छा होने के बावजूद अशोक और रुचि का विवाह तय नहीं हो सका था. इस में सब से बडे़ बाधक अशोक के पिता थे. उन के उस समय कहे गए शब्द अब बलराज के कानों में गूंज रहे थे :

‘प्रोफेसर साहब, यह ठीक है कि आप एक बडे़ कालिज में प्रोफेसर हैं. यह भी सही है कि आप अच्छी तनख्वाह पाते हैं, लेकिन यह बताइए, आप हमें क्या दे सकते हैं? मेरा लड़का एम.ए., बी.काम. है, बैंक में बड़ा अफसर होने जा रहा है. हम ने उस की पढ़ाईलिखाई पर 40-50 हजार से ऊपर खर्च कर दिया है और अफसर बनवा दिया है, इसीलिए न कि हमें यह सब रुपया वापस मिल जाएगा.’

उन्होंने रुक कर फिर कहा, ‘यदि आप हमें 1 लाख रुपए नकद दे सकते हैं और लड़की के जेवर, कपड़ों के अलावा फ्रिज, रंगीन टेलीविजन और स्कूटर दे सकते हैं तो मिलाइए हाथ. बात अभी और इसी समय पक्की समझिए. नहीं तो हमें माफ कीजिए.’

बलराज उस मांग को सुन कर अत्यंत विचलित हो गए थे. वह मात्र एक प्रोफेसर थे जिस के पास वेतन और कुछ परीक्षाओं में परीक्षक होने से प्राप्त धन की ही आमदनी थी. वह दहेज को सदा समाज और देश के लिए अभिशाप समझते रहे, इसीलिए उन्होंने अपनी आदर्शवादिता का निर्वाह करते हुए अपने पुत्र के विवाह में कुछ नहीं लिया था.

उन्हें अपनी पुत्रवधू पसंद आ गई थी और वह प्रसन्नता के साथ उसे अपनी बहू बना कर ले आए थे. वह उस से आज भी पूर्णतया संतुष्ट थे. उन्हें कभी भी उस से या उस के परिवार से शिकायत नहीं हुई थी. वे यही सोचते थे कि जब मैं ने अपने पुत्र के विवाह में कुछ नहीं लिया तो मेरी पुत्रियों के विवाह में भी मुझ से कोई कुछ नहीं मांगेगा.

किंतु आज उन का वह स्वप्न छिन्नभिन्न हो गया, वह पराजित हो गए, उन के सम्मुख ठोस यथार्थ आ चुका था. उन्होंने बड़े निराशा भरे स्वर में अशोक के पिता से कहा था, ‘आप की मांग ऐसी है कि मुझ जैसा अध्यापक कभी पूरी नहीं कर पाएगा, कैलाशजी. एक पिता का सब से बड़ा कर्तव्य यही है कि वह अपनी संतानों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दे कर हर रूप में योग्य व समर्थ बना कर उन का जीवन व्यवस्थित कर दे. वह कर्तव्य मैं ने कर दिया है.

‘मेरी लड़की अत्यंत सुंदर होने के साथसाथ एम.ए., बी.एड. है, गृहकार्य में पूर्णतया दक्ष है. मुझे विश्वास है कि जहां भी जाएगी, वह घर उसे पा कर सुखी होगा. मैं आप को केवल एक ही भरोसा दे सकता हूं कि अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर अच्छे से अच्छा विवाह करूंगा और आप को संतोष देने का प्रयत्न करूंगा, लेकिन किसी भी चीज को देने का वादा नहीं कर सकता.’

और कैलाशजी अपने पुत्र अशोक को ले कर वापस चले गए थे. बलराज की पुत्री का विवाह तय नहीं हो पाया था. उस दिन वह बेहद निराश और मायूस रहे. उन्होंने उस दिन खाना नहीं खाया और किसी से बोले भी नहीं. जीवन में पहली बार उन्हें यथार्थ के ठोस धरातल का एहसास हुआ था. वह जान गए थे कि यह दुनिया अब उन के स्वप्नों की दुनिया नहीं रही है. यह बहुत बदल गई है, सचमुच बेहद बदल गई है.

अब वही लड़का अशोक वर के रूप में सामने खड़ा था और वह भी पड़ोसी सुदर्शन के यहां. क्या सुदर्शन ने अशोक के पिता की पूरी मांगें मान लीं? लेकिन यह कैसे हो सकता है? सुदर्शन के पास इतना रुपया कहां से आया? और उन की लड़की भी तो अत्यंत कुरूप और मात्र इंटर पास है. अशोक को तो सुंदर लड़की चाहिए थी. क्या अशोक ने उसे पसंद कर लिया?

वह अपने कंधे पर किसी के हाथ की थपथपाहट से चौंके. सड़क के उस पार की कोठी के मालिक रामेंद्र बगल में खडे़ थे. उन्होंने पसीने में भीगा अपना चेहरा उन के मुख पर टिका दिया और खोएखोए से देखते रहे.

रामेंद्र उन्हें भीड़ से अलग एक किनारे ले गए और धीरे से बोले, ‘‘मैं जानता हूं कि आप इस लड़के अशोक को देख कर बेहद चौंके हैं और शायद दुखी भी हुए हैं. मैं आप के मन की व्यथा समझ रहा हूं, प्रोफेसर साहब. बात इतनी है कि आजकल वरों की नीलामी हो रही है. जो जितनी अधिक ऊंची बोली लगाएगा वही अपनी पुत्री का विवाह कर पाएगा. सुदर्शन ने आप के यहां इस लड़के को देख लिया और उस के बाप से उसे खरीद लिया.

‘‘उधर देखिए,’’ सामने इशारा करते हुए उन्होंने फिर कहा, ‘‘इसे देने के लिए नया स्कूटर खड़ा है, फ्रिज, रंगीन टेलीविजन, स्टीरियो और टेपरिकार्डर कोने में रखे हैं. मंडप के नीचे साडि़यों और जेवरात की बहार पर भी नजर डालिए. यही सब तो इस वर के पिता को चाहिए था जो आप दे नहीं सके थे. शायद आप को यह भी पता नहीं कि सुदर्शन ने तिलक की रस्म के समय 51 हजार रुपए दिए थे और शेष अब दिए जाएंगे.’’

बलराज ने भर्राए, अटकते स्वरों में कहा, ‘‘लेकिन सुदर्शन की लड़की… वह तो बहुत बदसूरत है, ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं है. क्या लड़के ने उसे पसंद कर लिया?’’

रामेंद्र व्यंग्य से मुसकराए. धीरे से बोले, ‘‘लड़के ने ही तो लड़की पसंद कर के शादी की है. लड़के को लड़की नहीं, रुपया चाहिए था. दहेज चाहिए था. वह मिल गया. एक बडे़ होटल में दावत पर इन सभी को बुलाया गया था. वहीं मोलभाव हुआ था और तुरंत वहीं तिलक की रस्म भी कर दी गई थी. तभी तो हम लोगों को पता नहीं चला. वह तो कल मेरी पत्नी को कहीं से यह सबकुछ पता चला, तब मैं जान पाया.’’

बलराज ने खोएखोए स्वर में कहा, ‘‘रामेंद्रजी, इतना सबकुछ देना मेरी सामर्थ्य के बाहर है. अब मैं क्या करूंगा. मेरी लड़कियों का विवाह कैसे होगा?’’

रामेंद्रजी ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, ‘‘मैं आप की कठिनाई समझ रहा हूं, प्रोफेसर साहब, लेकिन आज का युग तो मोलभाव का युग है, नीलामी का युग है. आप ने दुकानों में सजी हुई वस्तुओं पर कीमतें टंगी हुई देखी होंगी. बढि़या माल चाहिए, बढि़या दाम देने होंगे. वही हाल आजकल वरों का है. वर का जितना बड़ा पद होगा उसी अनुपात में आप को उस की कीमत नकद एवं सामान के रूप में देनी होगी.’’

रामेंद्रजी ने थोड़ा रुक कर, फिर सांस भर कर धीरे से कहा, ‘‘बोलिए, आप कैसा और कौन सा माल खरीदेंगे? चाहे जैसा माल खरीदिए, शर्त यही है कि कीमत आप को देनी होगी.’’

बलराज हलकी सर्दी में भी पसीने से बुरी तरह भीग चुके थे. वह एकटक असहाय दृष्टि से ठाकुर साहब को देखते रहे और फिर बिना कुछ बोले तेजी से अपने घर की ओर बढ़ गए.

बलराज कब तक निश्चेष्ट पडे़ रहे, यह उन्हें याद नहीं. उन का शरीर निश्चेष्ट अवश्य था, किंतु उन का मस्तिष्क सक्रिय था. वह अनर्गल विचारों में डूबतेउतराते रहे और उन की तंद्रा तब टूटी जब उन की पत्नी ने उन के माथे को सहलाया. फिर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘क्या सो गए?’’

उन्होंने धीरे से नेत्र खोल कर एक क्षण अपनी पत्नी को देखा और फिर निर्निमेष उसे देखते ही रहे.

पत्नी ने घबराए स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न? आप की आंखें लाल क्यों हैं?’’

बलराज धीरे से उठ कर बैठ गए और हौले स्वर में बोले, ‘‘मैं ठीक हूं, रमा. मुझे कुछ नहीं हुआ है.’’

पलंग के पास पड़ी कुरसी पर पत्नी बैठ गई. कुछ क्षणों तक खामोशी रही, फिर रमा ने धीरे से कहा, ‘‘सुदर्शनजी रात्रिभोज के लिए आप को काफी ढूंढ़ते रहे. शायद वह लड़की के दहेज का सामान भी आप को दिखाना चाहते थे, लेकिन मैं जानती हूं कि आप क्यों चले आए. मैं तो इतना ही कहूंगी कि इस तरह दुखी होने से क्या होगा. हम अपनी विवशताओं की सीमाओं में बंधे हैं. हम अपनेआप को बेच कर भी इतना सब कुछ नहीं दे सकते.

‘‘किंतु मुझे विश्वास है कि चाहे देर से ही सही, वह समय जरूर आएगा जब कोई समझदार नौजवान इन दहेज के बंधनों को तोड़ कर हमारी बेटी को ब्याह ले जाएगा. हां, हमें तब तक प्रतीक्षा करनी होगी.’’

बलराज ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘नहीं, रमा, ऐसा विश्वास व्यर्थ है. सोने और चांदी से चमचमाते इस युग में हम सीमित साधनों वाले इनसान जिंदा नहीं रह सकते. क्या तुम्हें यह विचित्र नहीं लगता कि पड़ोसियों की कम पढ़ीलिखी, बदसूरत लड़कियां एकएक कर ब्याही जा रही हैं, क्योंकि वे अच्छा दहेज दे सकने में समर्थ हैं, इसलिए कि उन के पास रिश्वत, सरकारी माल की हेराफेरी और भ्रष्टाचार से कमाया पैसा है और हम ईमानदार लोग असहाय एवं बेबस हो कर यह सब देख रहे हैं और सह रहे हैं.

‘‘रमा, आज धन और पैसे का बोलबाला है, चांदी के जूते के सामने इनसान ने अपनी शर्महया, इज्जतआबरू, मानअपमान सभी को ताक पर रख दिया है. इनसान सरेबाजार बिक गया है. नीलाम हो गया है.’’

बलराज थोड़ी देर रुके. फिर सांस भर कर बोले, ‘‘मेरे दिल में एक ही बात की कसक है कि एक अध्यापक अपनी सीमित आय के कारण अपनी पुत्री का विवाह नहीं कर सकता क्योंकि वह एक वर की कीमत दे सकने में असमर्थ है. वर पक्ष वाले भी इसीलिए अध्यापकों के पास नहीं आते. तब समाज का यह प्रबुद्ध वर्ग कहां जाए? क्या करे? मैं जानता हूं कि इस प्रश्न का उत्तर मैं या तुम नहीं दे सकते. इस प्रश्न का तो पूरे समाज को ही उत्तर देना होगा.’’

पत्नी की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला, केवल हलकी सिसकियों की आवाज सुनाई देती रही.

पास के कमरे से कुछ और सिसकियों की आवाज सुनाई दे रही थी. ये सिसकियां उन लड़कियों की थीं जो शादी का जोड़ा पहनने की प्रतीक्षा में जाने कब से बैठी हैं और जाने कब तक बैठी रहेंगी. पता नहीं, उन के सपनों का राजकुमार कब घोड़े पर चढ़ कर उन्हें लेने आएगा.

विश्वास: क्या अंजलि अपनी बिखरती हुई गृहस्थी को समेट पाई?

फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही अंजलि ने अपने पति राजेश की आवाज पहचान ली.

राजेश ने अपनी बेटी शिखा का हालचाल जानने के बाद तनाव भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम यहां कब लौट रही हो?’’

‘‘मेरा जवाब आप को मालूम है,’’ अंजलि की आवाज में दुख, शिकायत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘तुम अपनी मूर्खता छोड़ दो.’’

‘‘आप ही मेरी भावनाओं को समझ कर सही कदम क्यों नहीं उठा लेते हो?’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में घुसे बेबुनियाद शक का इलाज कर ने को मैं गलत कदम नहीं उठाऊंगा…अपने बिजनेस को चौपट नहीं करूंगा, अंजलि.’’

‘‘मेरा शक बेबुनियाद नहीं है. मैं जो कहती हूं, उसे सारी दुनिया सच मानती है.’’

‘‘तो तुम नहीं लौट रही हो?’’ राजेश चिढ़ कर बोला.

‘‘नहीं, जब तक…’’

‘‘तब मेरी चेतावनी भी ध्यान से सुनो, अंजलि,’’ उसे बीच में टोकते हुए राजेश की आवाज में धमकी के भाव उभरे, ‘‘मैं ज्यादा देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगा. अगर तुम फौरन नहीं लौटीं तो…तो मैं कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दूंगा. आखिर, इनसान की सहने की भी एक सीमा…’’

अंजलि ने फोन रख कर संबंधविच्छेद कर दिया. राजेश ने पहली बार तलाक लेने की धमकी दी थी. उस की आंखों में अपनी बेबसी को महसूस करते हुए आंसू आ गए. वह चाहती भी तो आगे राजेश से वार्तालाप न कर पाती क्योंकि उस के रुंधे गले से आवाज नहीं निकलती.

शिखा अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी. अंजलि के मातापिता अपने कमरे में आराम कर रहे थे. अपनी चिंता, दुख और शिकायत भरी नाराजगी से प्रभावित हो कर वह बिना किसी रुकावट के कुछ देर खूब रोई.

रोने से उस का मन उदास और बोझिल हो गया. एक थकी सी गहरी आस छोड़ते हुए वह उठी और फोन के पास पहुंच कर अपनी सहेली वंदना का नंबर मिलाया.

राजेश से मिली तलाक की धमकी के बारे में जान कर वंदना ने उसे आश्वासन दिया, ‘‘तू रोनाधोना बंद कर, अंजलि. मेरे साहब घर पर ही हैं. हम दोनों घंटे भर के अंदर तुझ से मिलने आते हैं. आगे क्या करना है, इस की चर्चा आमने- सामने बैठ कर करेंगे. फिक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा.’’

वंदना उस के बचपन की सब से अच्छी सहेली थी. उस का व उस के पति कमल का अंजलि को बहुत सहारा था. उन दोनों के साथ अपने सुखदुख बांट कर ही पति से दूर वह मायके में रह रही थी. अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए अंजलि जो बात अपने मातापिता से नहीं कह पाती, वह इन दोनों से बेहिचक कह देती.

राजेश से फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा अंजलि से सुन कर वंदना चिंतित हो उठी तो उस के पति कमल की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘अंजलि, कोई चोर कोतवाल को उलटा नहीं धमका सकता है. राजेश को तलाक की धमकी देने का कोई अधिकार नहीं है. अगर वह ऐसा करता है तो समाज उसी के नाम पर थूथू करेगा,’’ कमल ने आवेश भरे लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘मेरी समझ से हमें टकराव का रास्ता छोड़ कर राजेश से बात करनी चाहिए,’’ चिंता के मारे अपनी उंगलियां मरोड़ते हुए वंदना ने अपने मन की बात कही.

‘‘राजेश से बातचीत करने को अगर अंजलि उस के पास लौट गई तो वह अपने दोस्त की विधवा के प्रेमजाल से कभी नहीं निकलेगा. उस पर संबंध तोड़ने को दबाव बनाए रखने के लिए अंजलि का यहां रहना जरूरी है.’’

‘‘अगर राजेश ने सचमुच तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी तो क्या करेंगे हम? तब भी तो अंजलि

को मजबूरन वापस लौटना पडे़गा न.’’

‘‘मैं नहीं लौटूंगी,’’ अंजलि ने सख्त लहजे में उन दोनों को अपना फैसला सुनाया, ‘‘मैं 2 महीने अलग रह सकती हूं तो जिंदगी भर को भी अलग रह लूंगी. मैं जब चाहूं तब अध्यापिका की नौकरी पा सकती हूं. शिखा को पालना मेरे लिए समस्या नहीं बनेगा. एक बात मेरे सामने बिलकुल साफ है. अगर राजेश ने उस विधवा सीमा से अपने व्यक्तिगत व व्यावसायिक संबंध बिलकुल समाप्त नहीं किए तो वह मुझे खो देंगे.’’

वंदना व कमल कुछ प्रतिक्रिया दर्शाते, उस से पहले ही बाहर से किसी ने घंटी बजाई. अंजलि ने दरवाजा खोला तो सामने अपनी 16 साल की बेटी शिखा को खड़ा पाया.

‘‘वंदना आंटी और कमल अंकल आए हुए हैं. तुम उन के पास कुछ देर बैठो, तब तक मैं तुम्हारे लिए खाना लगा लाती हूं,’’ भावुकता की शिकार बनी अंजलि ने प्यार से अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मेरा मूड नहीं है, किसी से खामखां सिर मारने का. जब भूख होगी, मैं खाना खुद ही गरम कर के खा लूंगी,’’ बड़ी रुखाई से जवाब देने के बाद साफ तौर पर चिढ़ी व नाराज सी नजर आ रही शिखा अपने कमरे में जा घुसी.

अंजलि को उस का अचानक बदला व्यवहार बिलकुल समझ में नहीं आया. उस ने परेशान अंदाज में इस की चर्चा वंदना और कमल से की.

‘‘शिखा छोटी बच्ची नहीं है,’’ वंदना की आंखों में चिंता के बादल और ज्यादा गहरा उठे, ‘‘अपने मातापिता के बीच की अनबन जरूर उस के मन की सुखशांति को प्रभावित कर रही है. उस के अच्छे भविष्य की खातिर भी हमें समस्या का समाधान जल्दी करना होगा.’’

‘‘वंदना ठीक कह रही है, अंजलि,’’ कमल ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम शिखा से अपने दिल की बात खुल कर कहो और उस के मन की बातें सहनशीलता से सुनो. मेरी समझ से हमारे जाने के बाद आज ही तुम यह काम करना. कोई समस्या आएगी तो वंदना और मैं भी उस से बात करेंगे. उस की टेंशन दूर करना हम सब की जिम्मेदारी है.’’

उन दोनों के विदा होने तक अपनी समस्या को हल करने का कोई पक्का रास्ता अंजलि के हाथ नहीं आया था. अपनी बेटी से खुल कर बात करने के  इरादे से जब उस ने शिखा के कमरे में कदम रखा, तब वह बेचैनी और चिंता का शिकार बनी हुई थी.

‘‘क्या बात है? क्यों मूड खराब है तेरा?’’ अंजलि ने कई बार ऐसे सवालों को घुमाफिरा कर पूछा, पर शिखा गुमसुम सी बनी रही.

‘‘अगर मुझे तू कुछ बताना नहीं चाहती है तो वंदना आंटी और कमल अंकल से अपने दिल की बात कह दे,’’  अंजलि की इस सलाह का शिखा पर अप्रत्याशित असर हुआ.

‘‘भाड़ में गए कमल अंकल. जिस आदमी की शक्ल से मुझे नफरत है, उस से बात करने की सलाह आज मुझे मत दें,’’  शिखा किसी ज्वालामुखी की तरह अचानक फट पड़ी.

‘‘क्यों है तुझे कमल अंकल से नफरत? अपने मन की बात मुझ से बेहिचक हो कर कह दे गुडि़या,’’ अंजलि का मन एक अनजाने से भय और चिंता का शिकार हो गया.

‘‘पापा के पास आप नहीं लौटो, इस में उस चालाक इनसान का स्वार्थ है और आप भी मूर्ख बन कर उन के जाल में फंसती जा रही हो.’’

‘‘कैसा स्वार्थ? कैसा जाल? शिखा, मेरी समझ में तेरी बात रत्ती भर नहीं आई.’’

‘‘मेरी बात तब आप की समझ में आएगी, जब खूब बदनामी हो चुकी होगी. मैं पूछती हूं कि आप क्यों बुला लेती हो उन्हें रोजरोज? क्यों जाती हो उन के घर जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं? पापा बारबार बुला रहे हैं तो क्यों नहीं लौट चलती हो वापस घर.’’

शिखा के आरोपों को समझने में अंजलि को कुछ पल लगे और तब उस ने गहरे सदमे के शिकार व्यक्ति की तरह कांपते स्वर में पूछा, ‘‘शिखा, क्या तुम ने कमल अंकल और मेरे बीच गलत तरह के संबंध होने की बात अपने मुंह से निकाली है?’’

‘‘हां, निकाली है. अगर दाल में कुछ काला न होता तो वह आप को सदा पापा के खिलाफ क्यों भड़काते? क्यों जाती हो आप उन के घर, जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं?’’

अंजलि ने शिखा के गाल पर थप्पड़ मारने के लिए उठे अपने हाथ को बड़ी कठिनाई से रोका और गहरीगहरी सांसें ले कर अपने क्रोध को कम करने के प्रयास में लग गई. दूसरी तरफ तनी हुई शिखा आंखें फाड़ कर चुनौती भरे अंदाज में उसे घूरती रहीं.

कुछ सहज हो कर अंजलि ने उस से पूछा, ‘‘वंदना के घर मेरे जाने की खबर तुम्हें उन के घर के सामने रहने वाली रितु से मिलती है न?’’

‘‘हां, रितु मुझ से झूठ नहीं बोलती है,’’ शिखा ने एकएक शब्द पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया.

‘‘यह अंदाजा उस ने या तुम ने किस आधार पर लगाया कि मैं वंदना की गैर- मौजूदगी में कमल से मिलने जाती हूं?’’

‘‘आप कल सुबह उन के घर गई थीं और परसों ही वंदना आंटी ने मेरे सामने कहा था कि वह अपनी बड़ी बहन को डाक्टर के यहां दिखाने जाएंगी, फिर आप उन के घर क्यों गईं?’’

‘‘ऐसा हुआ जरूर है, पर मुझे याद नहीं रहा था,’’ कुछ पल सोचने के बाद अंजलि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया.

‘‘मुझे लगता है कि वह गंदा आदमी आप को फोन कर के अपने पास ऐसे मौकों पर बुलाता है और आप चली जाती हो.’’

‘‘शिखा, तुम्हें अपनी मम्मी के चरित्र पर यों कीचड़ उछालते हुए शर्म नहीं आ रही है,’’ अंजलि का अपमान के कारण चेहरा लाल हो उठा, ‘‘वंदना मेरी बहुत भरोसे की सहेली है. उस के साथ मैं कैसे विश्वासघात करूंगी? मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारे पापा बसते हैं, और कोई नहीं.’’

‘‘तब आप उन के पास लौट क्यों नहीं चलती हो? क्यों कमल अंकल के भड़काने में आ रही हो?’’ शिखा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बेटी, तेरे पापा के और मेरे बीच में एक औरत के कारण गहरी अनबन चल रही है, उस समस्या के हल होते ही मैं उन के पास लौट जाऊंगी,’’ शिखा को यों स्पष्टीकरण देते हुए अंजलि ने खुद को शर्म के मारे जमीन मेें गड़ता महसूस किया.

‘‘मुझे यह सब बेकार के बहाने लगते हैं. आप कमल अंकल के कारण पापा के पास लौटना नहीं चाहती हो,’’ शिखा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘‘तुम जबरदस्त गलतफहमी का शिकार हो, शिखा. वंदना और कमल मेरे शुभचिंतक हैं. उन दोनों का बहुत सहारा है मुझे. दोस्ती के पवित्र संबंध की सीमाएं तोड़ कर कुछ गलत न मैं कर रही हूं न कमल अंकल. मेरे कहे पर विश्वास कर बेटी,’’ अंजलि बहुत भावुक हो उठी.

‘‘मेरे मन की सुखशांति की खातिर आप अंकल से और जरूरी हो तो वंदना आंटी से भी अपने संबंध पूरी तरह तोड़ लो, मम्मी. मुझे डर है कि ऐसा न करने पर आप पापा से सदा के लिए दूर हो जाओगी,’’ शिखा ने आंखों में आंसू ला कर विनती की.

‘‘तुम्हारे नासमझी भरे व्यवहार से मैं बहुत निराश हूं,’’ ऐसा कह कर अंजलि उठ कर अपने कमरे में चली आई.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में बहुत खिंचाव आ गया. आपस में बातचीत बस, बेहद जरूरी बातों को ले कर होती. अपने दिल पर लगे घावों को दोनों नाराजगी भरी खामोशी के साथ एकदूसरे को दिखा रही थीं.

शिखा की चुप्पी व नाराजगी वंदना और कमल ने भी नोट की. अंजलि उन के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकी. वह कैसे कहती कि शिखा ने कमल और उस के बीच नाजायज संबंध होने का शक अपने मन में बिठा रखा था.

करीब 4 दिन बाद रात को शिखा ने मां के कमरे में आ कर अपने मन की बातें कहीं.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं कि मेरी सहेली रितु ने अन्य सहेलियों को सब बातें बता कर मेरे लिए इज्जत से सिर उठा कर चलना ही मुश्किल कर दिया है. अपनी ये सब परेशानियां मैं आप के नहीं, तो किस के सामने रखूं?’’

‘‘मुझे तुम्हारी सहेलियों से नहीं सिर्फ तुम से मतलब है, शिखा,’’ अंजलि ने शुष्क स्वर में जवाब दिया, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन क्यों मान लिया? मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है?’’

‘‘मम्मी, बात विश्वास करने या न करने की नहीं है. हमें समाज में मानसम्मान से रहना है तो लोगों को ऊटपटांग बातें करने का मसाला नहीं दिया जा सकता.’’

‘‘तब क्या दूसरों को खुश करने के लिए तुम अपनी मां को चरित्रहीन करार दे दोगी? उन की झूठी बातों पर विश्वास कर के अपनी मां को उस की सब से प्यारी सहेली से दूर करने की जिद पकड़ोगी?’’

‘‘मुझ पर क्या गुजर रही है, इस की आप को भी कहां चिंता है, मम्मी,’’ शिखा चिढ़ कर गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं आप की सहेली नहीं बल्कि सहेली के चालाक पति से आप को दूर देखना चाहती हूं. अपनी बेटी की सुखशांति से ज्यादा क्या कमल अंकल के साथ जुडे़ रहना आप के लिए जरूरी है?’’

‘‘कमल अंकल मेरे लिए तुम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकते हैं, शिखा? मुझे तो अफसोस और दुख इस बात का है कि मेरी बेटी को मुझ पर विश्वास नहीं रहा. मैं पूछती हूं कि तुम ही मुझ पर विश्वास क्यों नहीं कर रही हो?  अपनी सहेलियों की बकवास पर ध्यान न दे कर मेरा साथ क्यों नहीं दे रही हो? मेरे मन में खोट नहीं है, इस बात को मेरे कई बार दोहराने के बावजूद तुम ने उस पर विश्वास न कर के मेरे दिल को जितनी पीड़ा पहुंचाई है, क्या उस का तुम्हें अंदाजा है?’’ बोलते हुए अंजलि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘यों चीखचिल्ला कर आप मुझे चुप नहीं कर सकोगी,’’ गुस्से से भरी शिखा उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी का चालाकी भरा खेल मेरे साथ न खेलो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अंजलि फौरन उलझन का शिकार बन गई.

‘‘मतलब यह कि पापा ने अपनी बिजनेस पार्टनर सीमा आंटी को ले कर आप को सफाई दे दी तब तो आप ने उन की एक नहीं सुनी और यहां भाग आईं, और जब मैं आप से कमल अंकल के साथ संबंध तोड़ लेने की मांग कर रही हूं तो किस आधार पर आप मुझे गलत और खुद को सही ठहरा रही हो?’’

अंजलि को बेटी का सवाल सुन कर तेज झटका लगा. उस ने अपना सिर झुका लिया. शिखा आगे एक भी शब्द न बोल कर अपने कमरे में लौट गई. दोनों मांबेटी ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रात का खाना नहीं खाया. शिखा के नानानानी को उन दोनों के उखडे़ मूड का कारण जरा भी समझ में नहीं आया.

उस रात अंजलि बहुत देर तक नहीं सो सकी. अपने पति के साथ चल रहे मनमुटाव से जुड़ी बहुत सी यादें उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा रही थीं. शिखा द्वारा लगाए गए आरोप ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया था.

राजेश ने कभी स्वीकार नहीं किया था कि अपने दोस्त की विधवा के साथ उस के अनैतिक संबंध थे. दूसरी तरफ आफिस में काम करने वाली 2 लड़कियों और राजेश के दोस्तों की पत्नियों ने इस संबंध को समाप्त करवा देने की चेतावनी कई बार उस के कानों में डाली थी.

तब खूबसूरत सीमा को अपने पति के साथ खूब खुल कर हंसतेबोलते देख अंजलि जबरदस्त ईर्ष्या व असुरक्षा की भावना का शिकर रहने लगी.

राजेश ने उसे प्यार से व डांट कर भी खूब समझाया पर अंजलि ने साफ कह दिया, ‘मेरे मन की सुखशांति, मेरे प्यार व खुशियों की खातिर आप को सीमा से हर तरह का संबंध समाप्त कर लेना होगा.’

‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से अपनी नजरों में गिर जाऊं. मैं कुसूरवार हूं ही नहीं, तो सजा क्यों भोगूं? अपने दिवंगत दोस्त की पत्नी को मैं बेसहारा नहीं छोड़ सकता हूं. तुम्हारे बेबुनियाद शक के कारण मैं अपनी नजरों में खुद को गिराने वाला कोई कदम नहीं उठाऊंगा,’ राजेश के इस फैसले को अंजलि किसी भी तरह से नहीं बदलवा सकी.

पहले अपने पति और अब अपनी बेटी के साथ हुए टकरावों में अंजलि को बड़ी समानता नजर आई. उस ने सीमा को ले कर राजेश पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया था और शिखा ने कमल को ले कर खुद उस पर.

वह अपने को सही मानती थी, जैसे अब शिखा अपने को सही मान रही थी. वहां राजेश अपराधी के कटघरे में खड़ा हो कर सफाई देता था और आज वह अपनी बेटी को सफाई देने के लिए मजबूर थी.

अपने दिल की बात वह अच्छी तरह जानती थी. उस के मन में कमल को ले कर रत्ती भर भी गलत तरह का आकर्षण नहीं था. इस मामले में शिखा पूरी तरह गलत थी.

तब सीमा व राजेश के मामले में क्या वह खुद गलत नहीं हो सकती थी? इस सवाल से जूझते हुए अंजलि ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी.

अगली सुबह शिखा के जागते ही अंजलि ने अपना फैसला उसे सुना दिया, ‘‘अपना सामान बैग में रख लो. नाश्ता करने के बाद हम अपने घर लौट रहे हैं.’’

‘‘ओह, मम्मी. यू आर ग्रेट. मैं बहुत खुश हूं,’’ शिखा भावुक हो कर उस से लिपट गई.

अंजलि ने उस के माथे का चुंबन लिया, पर मुंह से कुछ नहीं बोली. तब शिखा ने धीमे स्वर में उस से कहा, ‘‘गुस्से में आ कर मैं ने जो भी पिछले दिनों आप से उलटासीधा कहा है, उस के लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं. आप का फैसला बता रहा है कि मैं गलत थी. प्लीज मम्मा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

अंजलि ने उसे अपने सीने से लगा लिया. मांबेटी दोनों की आंखों में आंसू भर आए. पिछले कई दिनों से बनी मानसिक पीड़ा व तनाव से दोनों पल भर में मुक्त हो गई थीं.

उस के बुलावे पर वंदना उस से मिलने घर आ गई. कमल के आफिस चले जाने के कारण अंजलि के लौटने की खबर कमल तक नहीं पहुंची.

वंदना को अंजलि ने अकेले में अपने वापस लौटने का सही कारण बताया, ‘‘पिछले दिनों अपनी बेटी शिखा के कारण राजेश और सीमा को ले कर मुझे अपनी एक गलती…एक तरह की नासमझी का एहसास हुआ है. उसी भूल को सुधारने को मैं राजेश के पास बेशर्त वापस लौट रही हूं.

‘‘सीमा के साथ उस के अनैतिक संबंध नहीं हैं, मुझे राजेश के इस कथन पर विश्वास करना चाहिए था, पर मैं और लोगों की सुनती रही और हमारे बीच प्रेम व विश्वास का संबंध कमजोर पड़ने लगा.

‘‘अगर राजेश निर्दोष हैं तो मेरा झगड़ालू रवैया उन्हें कितना गलत और दुखदायी लगता होगा. बिना कुछ अपनी आंखों से देखे, पत्नी का पति पर विश्वास न करना क्या एक तरह का विश्वासघात नहीं है?

‘‘मैं राजेश को…उन के पे्रम को खोना नहीं चाहती हूं. हो सकता है कि सीमा और उन के बीच गलत तरह के संबंध बन गए हों, पर इस कारण वह खुद भी मुझे छोड़ना नहीं चाहते. उन के दिल में सिर्फ मैं रहूं, क्या अपने इस लक्ष्य को मैं उन से लड़झगड़ कर कभी पा सकूंगी?

‘‘वापस लौट कर मुझे उन का विश्वास फिर से जीतना है. हमारे बीच प्रेम का मजबूत बंधन फिर से कायम हो कर हम दोनों के दिलों के घावों को भर देगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है.’’

अंजलि की आंखों में दृढ़निश्चय के भावों को पढ़ कर वंदना ने उसे बडे़ प्यार से गले लगा लिया.

ऊपर तक जाएगी: ललन ने कौन सा धंधा शुरू किया

‘‘बा बूजी, मुझ से खेती न होगी. थोड़े से खेत में पूरा परिवार लगा रहे, फिर भी मुश्किल से सब का पेट भरे.

‘‘मैं यह काम नहीं करूंगा. मैं तो हरि काका के साथ मछली पकड़ूंगा,’’ कहता हुआ ललन मछली रखने की टोकरी सिर पर रख कर घर से बाहर निकल गया.

ललन के बाबा बड़बड़ाए, ‘नालायक, कभी नदी में डूब कर मर न जाए.’

‘पहाडि़यों से उतरती नदी की धारा. नदी के किनारे देवदार के पेड़, कलकल करती नदियों का मधुर संगीत… कितना अच्छा नजारा है यह,’ ललन बड़बड़ाया, ‘अभी एक धमाका होगा और ढेर सारी मछलियां मेरी टोकरी में भर जाएंगी. एक घंटे में सारी मछलियां मंडी में बेच कर घर पहुंच जाऊंगा और मोबाइल फोन पर फिल्में देखूंगा… मगर यह ओमप्रकाश कहां मर गया…’

तभी ललन ने ओमप्रकाश को ढलान पर चढ़ते देखा तो वह खुश हो गया.

ललन ने जल्दी से थैले में से कांच की एक बोतल निकाली और उस में कुछ बारूद जैसी चीज भरी. दोनों नदी के किनारे पहुंच कर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गए और पानी में चारा डाल कर मछलियों के आने का इंतजार करने लगे.

दरअसल, दोनों बोतल बम बना कर जहां ढेर सारी मछलियां इकट्ठा होतीं, वहीं पानी में फेंक देते, जिस से तेज धमाका हो जाता और मछलियां घायल हो कर किनारे पर आ जातीं. दोनों ?ाटपट उन्हें इकट्ठा कर मंडी में बेच देते, जिस से तुरंत अच्छी आमदनी हो जाती.

‘‘जब मछलियां इकट्ठा हो जाएंगी, तो मैं इशारा कर दूंगा… तू बम फेंक देना,’’ ओमप्रकाश बोला.

हरि काका इसे कुदरत के खिलाफ मानते थे. उन्हें जाल फैला कर मछली पकड़ना पसंद था, इसीलिए ललन उन के साथ मछली पकड़ने नहीं जाता था. उसे ओमप्रकाश का तरीका पसंद था.

अभी भी इक्कादुक्का मछलियां ही चारा खाने पहुंची थीं. शायद बम वाले तरीके को मछलियों ने भांप लिया था.

नदी के किनारे एक बड़ा सा पत्थर था, जिस का एक हिस्सा पानी में डूबा हुआ था. ओमप्रकाश मछलियों के न आने से निराश हो कर पत्थर पर लेट गया और आसमान की ओर देखने लगा.

ललन थोड़ी दूरी पर दूसरे पत्थर पर खड़ा था एक बोतल बम हाथ में लिए. वह ओमप्रकाश के इशारे का इंतजार कर रहा था.

तभी ओमप्रकाश को सामने की पहाड़ी की तरफ से आता एक बाज दिखा, जिस के पंजों में कुछ दबा था.

‘‘अरे, बाज के पंजों में तो सांप है,’’ ज्यों ही बाज ओमप्रकाश के ऊपर पहुंचा, उस ने पहचान लिया. वह  चिल्लाया, ‘‘ललन, बाज के पंजों में सांप…’’

ललन ने तुरंत ऊपर निगाह उठाई तो देखा कि वह सांप बाज के पंजों से छूट कर नीचे गिर रहा था. जब तक वह कुछ सम?ा पाता, सांप ओमप्रकाश पर गिर गया और उसे डस लिया.

डर के मारे ललन की चीख निकल गई. वह संभलता, इस से पहले बोतल बम उस के हाथ से छूट कर गिर पड़ा.

तभी जोर का धमाका हुआ. ललन को उस धमाके से एक तेज झटका लगा और ललन का बायां हाथ उस के शरीर से टूट कर दूर जा गिरा.

जब होश आया तो ललन ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. बोतल बम ने उस का हाथ छीन लिया था.

ललन ने ओमप्रकाश के बारे में पूछा. पता चला कि वह सांप के डसने से मर चुका था.

ललन के घाव भरने में महीनाभर लग गया. लेकिन अपना एक हाथ और अपने दोस्त ओमप्रकाश को खोने का दुख उसे बहुत सताता था.

‘मैं कुदरत के खिलाफ काम कर रहा था, उसी की सजा है यह. हरि काका ठीक कहते थे. मैं जिंदा बच गया. मु?ो गलतियां सुधारने का मौका मिल गया. लेकिन बेचारा ओमप्रकाश…’ एक सुबह ललन यह सब सोच रहा था कि उस के बाबा उस से बोले, ‘‘ललन, घर में खाने को नहीं है. तुम्हारे इलाज में सब पैसा खर्च हो गया. अब कुछ कामधंधे की सोचो, नहीं तो एक दिन हम सब भूख से मर जाएंगे.’’

बाबा की बात से ललन को ध्यान आया कि कोई कामधंधा शुरू किया जाए, लेकिन एक हाथ से वह क्या कर सकता था?

एक दिन गांव के मुखिया से ललन को मालूम हुआ कि सरकार विकलांग लोगों को कामधंधा शुरू करने के लिए आसानी से कम ब्याज पर लोन देती है. उस ने विकलांगता का प्रमाणपत्र बनवा कर लोन के लिए अर्जी दे दी.

एक दिन बैंक से ललन को बुलावा आया. वह खुश हो गया कि उसे आज लोन मिल जाएगा और वह 2 भैंसें खरीद कर दूध बेचने का धंधा शुरू कर देगा.

‘‘लोन का 10 फीसदी मुझे पहले देना होगा तभी लोन मिलेगा,’’ बैंक मुलाजिम ने उस के कान में कहा.

‘‘यह क्या अंधेरगर्दी है, तुम लोगों को तनख्वाह नहीं मिलती क्या…’’ ललन को गुस्सा आ गया.

‘‘यहां का यही कायदा है,’’ बैंक मुलाजिम ललन को समझाने लगा, ‘‘भैया, गुस्सा क्यों करते हो? मैं कोई अकेला थोड़े ही न यह पैसा लूंगा. सब का हिस्सा बंटा होता है.’’

मायूस ललन घर की ओर लौट पड़ा.

अगले दिन ललन ने कुछ पैसों का जुगाड़ किया और कलक्टर के दफ्तर पहुंच गया.

‘‘मुझे साहब से जरूरी बात करनी है,’’ ललन ने संतरी से कहा.

संतरी ने बारी आने पर ललन को साहब के कमरे में भेज दिया.

‘‘कहो, क्या बात है?’’ कलक्टर साहब ने ललन की ओर देख कर पूछा.

ललन ने तुरंत अपने गमछे में बंधे रुपयों को निकाल कर टेबल पर रख दिया और बोला, ‘‘साहब, मैं गरीब हूं. आप अपना यह हिस्सा रख लीजिए और मेरा लोन पास कर दीजिए.’’

‘‘किस ने कहा कि मैं काम कराने के बदले पैसे लेता हूं?’’ कलक्टर ने पूछा.

ललन ने बैंक मुलाजिम की बात बताते हुए कहा, ‘‘साहब, उस ने कहा था कि पैसा ऊपर तक जाएगा. इसीलिए मैं आप का हिस्सा देने आ गया.’’

‘‘ठीक है, तुम ये पैसे उठा लो और घर जाओ. तुम्हें लोन मिल जाएगा,’’ कलक्टर ने कहा.

‘‘अच्छा साहब,’’ कह कर ललन  कमरे से बाहर निकल गया.

तीसरे दिन एक सूटबूट वाला आदमी ललन को खोजता हुआ उस के घर आया. ललन को रुपयों का पैकेट पकड़ाते हुए बोला, ‘‘ऊपर से आदेश है, लोन के रुपए सीधे तुम्हारे घर पहुंचाने का, इसीलिए मैं आया हूं. ये पैसे लो.

‘‘और हां, बैंक का कोई भी काम हो तो मुझ से मिलना. मैं बैंक मैनेजर हूं. मैं ही तुम्हारा काम कर दूंगा.’’

वह बैंक मुलाजिम, जिस ने ललन से घूस मांगी थी, अब जेल में था. ललन कुछ समझ नहीं पा रहा था कि ऊपर के लोगों ने बिना रुपए लिए उस का काम कैसे कर दिया?

फार्महाउस : सरिता ने मोहन को क्यों कहा ठंडा आदमी

मोहन 22-23 साल का नौजवान था जो चौधरी सुरजीत सिंह के फार्महाउस पर खेती के काम में मजदूरी करता था. मोहन का चेहरामोहरा अच्छा था. 6 फुट की लंबाई, भरापूरा ताकतवर बदन, चेहरे पर हलकी मूंछ व दाढ़ी.

मोहन दिनभर फार्महाउस पर कभी फसल को पानी लगाता तो कभी फसल की निराईगुड़ाई करता रहता. कभी पशुओं के लिए बरसीम तो कभी चरी खेत से काट कर बिजली से चलने वाले गंड़ासे से काट कर पशुओं के लिए तैयार कर घर भिजवाता यानी दिनभर मोहन अपने काम में लगा रहता था.

सुरजीत सिंह ने फार्महाउस पर ही मोहन के रहने का इंतजाम कर दिया था. बढ़िया कमरा, टैलीविजन, कूलर, पंखा सभी चीजों का इंतजाम. खाना भी सुरजीत सिंह के घर से वहां पहुंचा दिया जाता था.

मोहन गरीब घर से था. उस की अभी तक शादी नहीं हुई थी. वह अपने गांव, जो यहां से 28 किलोमीटर दूर था, कभीकभार ही जाता था, वरना सारा समय उस का फार्महाउस पर ही गुजरता था.

मोहन खेती के काम में सुबह जल्दी उठ कर लग जाता था और दोपहर में कुछ देर आराम कर लेता था. उस की मौजूदगी के चलते फार्महाउस को कोई नुकसान पहुंचाने की सोच भी नहीं सकता था पर गांव की 5-6 लड़कियों का एक ग्रुप था जो अकसर इस फिराक में रहता था कि मोहन कब दोपहर में आराम करने जाए और वे मौके का फायदा उठा कर फार्महाउस में घुस कर जल्दीजल्दी घास काट कर गट्ठर बना कर घर लौटे. लेकिन मोहन ने कभी भी इस ग्रुप की चाल को कामयाब नहीं होने दिया.

इस ग्रुप की काम करने की रणनीति भी अलग ही थी. यह ग्रुप दोपहर के समय घर से खेतों के लिए निकलता था जबकि लोग सुबह जल्दी काम पर जा कर दोपहर तक वापस घरों को लौटने लगते थे. सुनसान पड़े खेतों में घुस कर ये लड़कियां मनमाने तरीके से घास काट कर गट्ठर बना कर ले आती थीं.

माया, मेनका, सरिता, मंजू और गीता ये सभी इस ग्रुप की सदस्य थीं. इन की उम्र भी 18-20 साल की थी.

सरिता इन में सब से खूबसूरत थी. सुराहीदार गरदन, पतलेपतले होंठ, गोरा रंग और भरापूरा बदन बरबस किसी का भी ध्यान अपनी तरफ खींच लेता था.

मोहन का रोजाना इन लड़कियां से सामना होता था लेकिन वह इन्हें घास नहीं डालता था. उस को पता था कि एक बार वह उन की मीठीमीठी बातों में आया तो वे पूरी फसल का सत्यानाश कर देंगी.

यही सोच कर मोहन उन से बात नहीं करता और न ही उन को फार्महाउस में घुसने देता था.

लेकिन मोहन कनखियों से सरिता को हसरत भरी निगाहों से देखता रहता था. इस का अंदाजा न केवल सरिता को था बल्कि उस की दूसरी सहेलियों को भी था. घर लौटते वक्त वे सरिता से मजाक करती रहतीं.

एक दिन मंजू ने कहा, ‘‘सरिता, मोहन तुझ पर दिलोजान से मरता है. आज मैं ने देखा था कि वह तेरी छाती पर नजरें गड़ाए हुए था.’’

‘‘चल हट…’’ सरिता ने कहा, ‘‘ऐसावैसा कुछ नहीं है. मोहन बहुत ही सीधासादा लड़का है.’’

लेकिन इश्क और मुश्क छिपाए थोड़े ही छिपते हैं. सरिता भी मोहन को पसंद करती थी. उस को भी वह प्यारा लगता था. वह उस का लंबातगड़ा शरीर देख कर रोमांचित हो उठती थी.

अब मोहन को इस ग्रुप के आने का इंतजार रहने लगा था. सरिता घास काटने के बहाने पीछे रह जाती और उस की बाकी सहेलियां आगे निकल जातीं.

मोहन भी सरिता के करीब पहुंच कर घास कटवाने में उस की मदद कराने के बहाने उस से बातचीत करने लग जाता. दोनों के बीच प्यार पनपने लगा था.

सरिता अब फार्महाउस के अंदर आ कर मोहन के साथ बतियाती रहती. दोनों ने एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में जान लिया था. सरिता चाहती थी कि मोहन से उस की जल्दी ही शादी हो जाए, वहीं मोहन का मानना था कि पहले उस के बड़े भाई की शादी होगी, फिर बहन की, उस के बाद उस का नंबर आएगा. उधर सरिता की शादी करने के लिए लड़के की तलाश चल रही थी.

उन दोनों की मुलाकातों का समय बढ़ने लगा था लेकिन ये केवल मुलाकातें थीं, इस से आगे कुछ नहीं.

उस दिन मोहन फार्महाउस पर ट्यूबवैल चला कर खेतों में पानी लगा रहा था. सरिता और उस की सहेलियों का घास काटते बुरा हाल हो गया था.

माया ने मेनका की तरफ आंख दबा कर कहा, ‘‘सरिता, चलो वहां मोहन खेत में पानी लगा रहा है. ट्यूबवैल चल रहा है. वहां नहाते हैं, कुछ तो राहत मिलेगी.’’

यही सोच कर वे सारी लड़कियां फार्महाउस में ट्यूबबैल के पास बने हौज में नहाने के लिए कूद गईं. पानी में काफी देर तक वे मस्ती करती रहीं. हौज में एकदूसरी को छेड़ती रहीं.

इसी छेड़खानी में सरिता की अंगिया की पट्टी टूट गई. वह हौज से बाहर आ गई. उधर से मोहन भी वहां आ गया था.

मोहन ने उस की अंगयि टूटी देखी तो सरिता ने कहा, ‘‘कल नई ले कर आऊंगी तब देखना.’’

इस के बाद सभी सहेलियां वहां से अपनेअपने गट्ठर उठा कर घर के लिए चल पड़ीं.

अगले दिन सरिता ने नई अंगिया पहनी और अपनी सहेलियों के साथ घास लेने खेतों की तरफ चल पड़ी. दोपहर में वे फार्महाउस पहुंचीं. उस वक्त मोहन अपने कमरे में आराम कर रहा था.

सरिता को देख कर मोहन ने पूछा, ‘‘नई अंगिया पहन कर आई है?’’

सरिता ने हां में सिर हिलाया. फिर कमीज ऊपर कर के मोहन को अपनी नई अंगिया दिखाई.

मोहन ने दूर से देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी है.’’

सरिता ने उस का हाथ पकड़ कर अंगिया में घुसाते हुए कहा. ‘‘हाथ लगा कर देख न कितनी मुलायम है.’’

सरिता ने महसूस किया कि मोहन के हाथ में कोई हरकत नहीं है. उसे वह हाथ बेहद ठंडा लगा. काफी देर तक जब कोई हरकत नहीं हुई तो सरिता ने मोहन का हाथ झटक दिया और अपनी कमीज नीचे कर ली. वह वहां से तेजी से निकल कर अपनी सहेलियों के पास पहुंच गई. उसे मोहन बड़ा ही ठंडा आदमी लगा.

इस के बाद सरिता कभी भी मोहन से नहीं मिली.

थोथी सोच : शालिनी क्यों नहीं कर पाई गोदभराई

सामने से तेज रफ्तार से आती हुई जीप ने उस मोटरसाइकिल सवार को जोरदार टक्कर मार दी. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि उस की आवाज ने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए. कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही जीप वाला वहां से जीप ले कर भाग निकला.

सड़क पर 23-24 साल का नौजवान घायल पड़ा था. उस के चारों तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई. उन में से ज्यादातर दर्शक थे और बाकी बचे हमदर्दी जाहिर करने वाले थे. मददगार कोई नहीं था.

उस नौजवान का सिर फूट गया था और उस के सिर से खून बह रहा था. तभी भीड़ में से 39-40 साल की एक औरत आगे आई और तुरंत उस नौजवान का सिर अपनी गोद में रख कर चोट की जगह दबाने लगी ताकि खून बहने की रफ्तार कुछ कम हो. पर दबाने का ज्यादा असर नहीं होता देख कर उस ने फौरन अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर चोट वाली जगह पर कस कर बांध दिया. अब खून बहना कुछ कम हो गया था.

उस औरत ने खड़े हुए लोगों से पानी मांगा और घूंटघूंट कर के उस नौजवान को पिलाने की कोशिश करने लगी. तब तक भीड़ में से किसी ने एंबुलैंस को फोन कर दिया.

एंबुलैंस आ चुकी थी. चूंकि उस घायल नौजवान के साथ जाने को कोई तैयार नहीं था इसलिए उस औरत को ही एंबुलैंस के साथ जाना पड़ा.

उस नौजवान की हालत गंभीर थी पर जल्दी प्राथमिक उपचार मिलने के चलते डाक्टरों को काफी आसानी हो गई और हालात पर जल्दी ही काबू पा लिया गया.

नौजवान को फौरन खून की जरूरत थी. मदद करने वाली उस औरत का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और औरत ने रक्तदान कर के उस नौजवान की जान बचाने में मदद की.

जिस समय हादसा हुआ था उस नौजवान का मोबाइल फोन जेब से निकल कर सड़क पर जा गिरा था, जो भीड़ में से एक आदमी उठा कर ले गया, इसलिए उस नौजवान के परिवार के बारे में जानकारी उस के होश में आने पर ही मिलना मुमकिन हुई थी.

वह औरत अपनी जिम्मेदारी समझ कर उस नौजवान के होश में आने तक रुकी रही. तकरीबन 5 घंटे बाद उसे होश आया. वह पास ही के शहर का रहने वाला था और यहां पर नौकरी करता था. उस के घर वालों को सूचित करने के बाद वह औरत अपने घर चली गई.

दूसरे दिन जब वह औरत उस नौजवान का हालचाल पूछने अस्पताल गई तब पता चला कि वह नौजवान अपने मातापिता की एकलौती औलाद है. उस के मातापिता बारबार उस औरत का शुक्रिया अदा कर रहे थे. वे कह रहे थे कि आज इस का दूसरा जन्म हुआ है और आप ही इस की मां हैं.

कुछ महीने बाद ही उस नौजवान की शादी थी.

उस औरत का नाम शालिनी था. शादी के कुछ दिनों बाद ही एक हादसे में शालिनी के पति की मौत हो गई थी. वह पति की जगह पर सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी कर रही थी. नौजवान का नाम शेखर था.

अब दोनों परिवारों में प्रगाढ़ संबंध हो गए थे. शेखर शालिनी को मां के समान इज्जत देता था.

वह दिन भी आ गया जिस दिन शेखर की शादी होनी थी. शेखर का परिवार शालिनी को ससम्मान शादी के कार्यक्रमों में शामिल कर रहा था. सभी लोग लड़की वालों के यहां पहुंच गए जहां पर लड़की की गोदभराई की रस्म के साथ कार्यक्रमों की शुरुआत होनी थी.

परंपरा के मुताबिक, लड़की की गोद लड़के की मां भरते हुए अपने घर का हिस्सा बनने के लिए कहती है. शेखर की इच्छा थी कि यह रस्म शालिनी के हाथों पूरी हो, क्योंकि उस की नजर में उसे नई जिंदगी देने वाली शालिनी ही थी. शेखर के घर वालों को इस पर कोई एतराज भी नहीं था.

पूरा माहौल खुशियों में डूबा हुआ था. लड़की सभी मेहमानों के बीच आ कर बैठ गई. ढोलक की थापों के बीच शादी की रस्में शुरू हो गईं. शेखर के पिता ने शालिनी से आगे बढ़ कर कहा कि वह गोदभराई शुरू करे.

वैसे, शालिनी इस के लिए तैयार नहीं थी और खुद वहां जाने से मना कर रही थी. पर जब शेखर ने शालिनी के पैर छू कर बारबार कहा तो वह मना नहीं कर पाई.

मंगल गीत और हंसीठठोली के बीच शालिनी गोदभराई का सामान ले कर जैसे ही लड़की के पास पहुंची, तभी एक आवाज आई, ‘‘रुकिए. आप गोद नहीं भर सकतीं,’’ यह लड़की की दादी की आवाज थी.

शालिनी को इसी बात का डर था. वह ठिठकी और रोंआसी हो कर वापस अपनी जगह पर जाने के लिए पलटी.

तभी शेखर बीच में आ गया और बोला, ‘‘दादीजी, शालिनी मम्मीजी सुलक्षणा की गोद क्यों नहीं भर सकतीं?’’

‘‘क्योंकि ब्याह एक मांगलिक काम है और किसी भी मांगलिक काम की शुरुआत किसी ऐसी औरत से नहीं कराई जा सकती जिस के पास मंगल चिह्न न हो,’’ दादी शेखर को सम?ाते हुए बोलीं.

‘‘आप भी कैसी दकियानूसी बातें करती हैं दादी. आप यह कैसे कह सकती हैं कि मंगल चिह्न पहनने वाली कोई औरत मंगल भावनाओं के साथ ही इस रीति को पूरा करेगी?’’

‘‘पर बेटा, यह एक परंपरा है और परंपरा यह कहती है कि मंगल काम सुहागन औरतों के हाथों से करवाया जाए तो भविष्य में बुरा होने का डर कम रहता है,’’ दादी कुछ बुझी हुई आवाज में बोलीं, क्योंकि वे खुद भी विधवा थीं.

‘‘क्या आप भी ऐसा ही मानती हैं?’’

‘‘हां, यह तो परंपरा है और परंपराओं से अलग जाने का तो सवाल ही नहीं उठता,’’ दादी बोलीं.

‘‘इस के हिसाब से तो किसी लड़की को विधवा ही नहीं होना चाहिए क्योंकि हर लड़की की शादी की शुरुआत सुहागन औरत के हाथों से होती है?’’ शेखर ने सवाल किया.

‘‘शेखर, बहस मत करो. कार्यक्रम चालू होने दो,’’ शालिनी शेखर को रोकते हुए बोली.

‘‘नहीं मम्मीजी, मैं यह नाइंसाफी नहीं होने दूंगा. अगर विधवा औरत इतनी ही अशुभ होती तो मुझे उस समय ही मर जाना चािहए था जब मैं ऐक्सिडैंट के बाद सड़क पर तड़प रहा था और आप ने अपने कपड़ों की परवाह किए बिना ही साड़ी का पल्लू फाड़ कर मेरा खून रोकने के लिए पट्टी बनाई थी या आप के रक्तदान से आप का खून मेरे शरीर में गया.

‘‘भविष्य में होने वाली किसी अनहोनी को रोकने के लिए वर्तमान का अनादर करना तो ठीक नहीं होगा न…’’ फिर दादी की तरफ मुखातिब हो कर वह बोला, ‘‘कितने हैरानी की बात है कि जब

तक कन्या कुंआरी रहती है वह देवी रहती है, वही देवी शादी के बाद मंगलकारी हो जाती है, पर विधवा होते ही वह मंगलकारी देवी अचानक मनहूस कैसे हो जाती है? सब से ज्यादा हैरानी इस बात की है कि आप एक औरत हो कर ऐसी बातें कर रही हैं.’’

दादी की कुछ और भी दलीलें होने लगी थीं. तभी दुलहन बनी सुलक्षणा ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘दादीजी, मैं शेखर की बातों से पूरी तरह सहमत हूं और चाहती हूं कि मेरी गोदभराई की रस्म शालिनी मम्मीजी के हाथों से ही हो.’’

इस के बाद विवाह के सारे कार्यक्रम अच्छे से पूरे हो गए.

आज शेखर व सुलक्षणा की शादी को 10 साल हो चुके हैं. वे दोनों आज भी सब से पहले आशीर्वाद लेने के लिए शालिनी के पास जा रहे हैं.

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