दुलारी की आस बंध गई थी. क्लिनिक के बरामदे में बैठा राम मनोहर पुरानी यादों में खो गया. वह दलित समाज का लड़का था और दुलारी ऊंची जाति की, पर गरीब घर की. उन दोनों के गांव आसपास ही थे और वे स्कूल के समय से एकदूसरे को जानते थे.
दरअसल, उन का स्कूल गांव से थोड़ा दूर था और वे दोनों साइकिल से स्कूल जाते थे. इसी आनेजाने में उन की बातचीत शुरू हुई और वे एकदूसरे को पसंद करने लगे. तब राम मनोहर 12वीं जमात में था और दुलारी 10वीं जमात में पढ़ती थी.
एक दिन स्कूल से घर जाते समय राम मनोहर ने दुलारी को कुछ दूर जा कर रोक लिया. वह बोला, ‘‘दुलारी, मैं 12वीं के बाद शहर चला जाऊंगा. वहां दिल्ली में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते हैं. उन्होंने वहां मुझे काम दिलाने का वादा किया है.’’
दुलारी ने कहा, ‘‘तो यह सब तुम मुझे क्यों बता रहे हो? दिल्ली तो दुनिया जाती है, इस में नया क्या है?’’
‘‘नया यह है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं और अपने साथ तुम्हें भी दिल्ली रखना चाहता हूं. क्या तुम मेरे साथ दिल्ली चलोगी?’’ राम मनोहर ने पूछा.
‘‘अरे, दिल्ली जाना कोई हंसीखेल है क्या? फिर मैं तुम पर यकीन क्यों करूं? क्या पता मुझे वहां बेचबाच दो…’’ दुलारी ने कहा.
‘‘मैं जानता हूं कि तुम भी मुझे पसंद करती हो, पर हमारी जाति इस प्यार के बीच में आ रही है,’’ राम मनोहर ने कहा.
‘‘बात वह नहीं है. मैं जाति के झमेले में नहीं पड़ती, पर अभी हम दोनों की उम्र ही क्या है. तुम 20 के हो और मैं 18 की. किस रिश्ते से वहां रहेंगे?’’
‘‘हम अपनी शादी को एक साल तक छिपा कर रखेंगे और फिर कोर्ट से सर्टिफिकेट बनवा लेंगे,’’ राम मनोहर ने अपना प्लान बताया.
‘‘देखो, मुझे सोचने का समय दो. अभी तो कुछ समय गांव में ही रहते हैं, एकदूसरे को समझते हैं, फिर आगे की सोचेंगे,’’ दुलारी बोली और साइकिल चला कर आगे बढ़ गई.
उस दिन से राम मनोहर और दुलारी की प्रेम कहानी शुरू हुई थी. राम मनोहर ने दिल्ली जाने का जो प्लान बनाया था, वह समय के साथसाथ ठंडा पड़ता गया था, पर दुलारी ने अपने प्यार से इस रिश्ते में गरमी बनाए रखी.
एक शाम को वे दोनों खेतों में बैठे थे. दुलारी ने उस दिन टाइट सूट पहना हुआ था. उस का अंगअंग बाहर आने को मचल रहा था.
राम मनोहर ने कहा, ‘‘दुलारी, आज तो तुम कहर ढा रही हो. मेरा मन मचल रहा है…’’ इतना कह कर उस ने दुलारी को चूम लिया.
दुलारी ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें मींचे जमीन पर लेट गई. राम मनोहर
उस के ऊपर झुक गया और उसे गले लगा लिया.
दुलारी की सांसें तेज चलने लगीं. उस ने भी राम मनोहर को भींच लिया. उस दिन उन दोनों के बीच की दूरियां मिट गई थीं. फिर वे दोनों अकसर खेतों में मिलने लगे.
पर यह छिप कर मिलना ज्यादा दिन तक नहीं चला. दुलारी के घर में किसी ने बता दिया कि उन की लड़की खेतों में किसी निचली जाति के लड़के के साथ मुंह काला कर रही है.
वह दिन है और आज का दिन, राम मनोहर और दुलारी ने कभी गांव का मुंह दोबारा नहीं देखा. पर दिल्ली में कौन सा सुख ही धरा था. दुलारी कम उम्र में मां बनने वाली थी और राम मनोहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में भटक रहा था.
फिलहाल घर का खर्चा चलाने के लिए राम मनोहर दिल्ली की साइकिल मार्केट में बने एक गोदाम से शोरूम तक माल कंधे पर ढोने का काम करता था. इस मजदूरी के उसे 11,000 रुपए महीना मिलते थे. वे दोनों शादीपुर गांव की दड़बेनुमा कालोनी में एक कमरे के मकान में रहते थे.
लोकल झोलाछाप डाक्टर ने कहा था कि दुलारी कमजोर है, इसलिए बच्चे पर भी इस का बुरा असर पड़ रहा है. केस थोड़ा पेचीदा है, इसलिए इसे किसी बड़े अस्पताल में दिखा आओ.
राम मनोहर दिल्ली के एम्स अस्पताल में दुलारी को दिखाने ले गया. वहां पता चला कि परची बनाने की ही लंबी लाइन लगी थी. उसे महसूस हुआ कि इस से अच्छा तो डाक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दुलारी को ले जाता, पर उस ने तो एम्स का नाम सुन रखा था, तो मुंह उठाया और चल दिया एम्स.
राम मनोहर ने अपने आगे खड़े एक आदमी से इतनी भीड़ की वजह पूछी, तो वह आदमी बोला, ‘‘भाई, गरमी बहुत ज्यादा है, ऐसे में परची बनवाने के लिए लोग रात से ही नंबर लगाने के लिए लाइन में लग जाते हैं. एक घंटे के काम में पूरा दिन लग जाता है. यहां के एक चपरासी ने बताया कि एम्स के ज्यादातर सीनियर डाक्टर गरमियों की छुट्टी पर हैं. ऐसे में मरीजों को भी काफी ज्यादा दिक्कतें हो रही हैं.’’
राम मनोहर के पसीने छूटने लगे. ऐसे तो दुलारी की डिलीवरी के समय बाद ही उस का नंबर आएगा. छठा महीना जो चल रहा है. वह घर लौट आया. मैक्स जैसे बड़े अस्पताल में तो उस के बस का घुसना तक नहीं था. वहां तो बच्चा पैदा कराने का पूरा पैकेज था. इतने पैसे उस ने सपने में भी नहीं देखे थे.
तभी किसी ने बताया कि शादीपुर गांव के पास ही एक सस्ता सा क्लिनिक है, जहां किस्तों पर इलाज किया जाता है. मान लो, तकरीबन 10,000 रुपए का खर्चा है, तो पहले 5,000 रुपए जमा करा लिए जाते हैं, बाकी रकम की किस्तें बंध जाती हैं.
राम मनोहर अगले ही दिन दुलारी को उस क्लिनिक में ले गया. वह तिमंजिला क्लिनिक बड़ी सड़क से थोड़ा अंदर एक छोटी सी गली में था, जहां की लिफ्ट अकसर खराब रहती थी और सीढि़यां भी संकरी थीं. अगर लाइट न जलाओ तो दिन में भी वहां अंधेरा रहता था.
डाक्टर ने दुलारी का मुआयना किया. वह बोली, ‘‘लगता है, बच्चा 7वें महीने में ही पैदा कराना पड़ेगा. मां और बच्चा दोनों का खास खयाल रखना पड़ेगा.’’
डाक्टर ने सिजेरियन का खर्चा 25,000 रुपए बताया और 15,000 रुपए पहले जमा कराने को कहा. वैसे तो डाक्टर और ज्यादा पैसे मांग रही थी, पर राम मनोहर की माली हालत देख उस ने कुछ डिस्काउंट दे दिया.
फिर वह दिन भी आया, जब राम मनोहर बाप बना. बेटा पैदा हुआ था. पर चूंकि बच्चा कमजोर था, तो वह नर्सरी में रखा गया था. दुलारी ठीक थी. आज बच्चे के नर्सरी में होने का चौथा दिन था. डाक्टर बोल रहे थे कि कल बच्चे को उन्हें सौंप दिया जाएगा.
राम मनोहर मन ही मन अपने दिल्ली वाले रिश्तेदार का शुक्रिया अदा कर रहा था, जिस ने उस की 10,000 रुपए की मदद की थी.
राम मनोहर अपनी यादों से लौट आया. रात के 11 बज रहे थे. दुलारी अपने नवजात के कमरे के बाहर दरवाजे पर ही कुरसी लगाए बैठी थी. राम मनोहर ने बहुत बार कहा कि किसी तरह आज की रात कट जाए, फिर हमारा बच्चा तेरी गोद में ही होगा. वह कुछ दूरी पर एक बैंच पर बैठा ऊंघ रहा था.
पूरे क्लिनिक में एक मुर्दनी सी छाई थी. एक ही चपरासी था, जो दुलारी को अपनी कुरसी दे कर खुद राम मनोहर के पास जा बैठा. इस तीसरे फ्लोर पर नर्सरी में वे 4 नवजात, दुलारी, राम मनोहर और उस चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.
इसी बीच राम मनोहर की नींद टूटी. उस ने एक नजर दुलारी पर और दूसरी नजर अपने आसपास डाली. फिर वह आंखें मींचताखोलता सा पानी पीने के लिए उठा. उस की आहट से चपरासी भी उठ गया. वह बोला, ‘‘भाई, एक गिलास मेरे लिए भी पानी ले आओ.’’
राम मनोहर ने उसे पानी ला कर दिया और बोला, ‘‘अब नहीं सहा जाता. बस, किसी तरह हमारा बेटा नर्सरी से बाहर आ जाए, तो मैं पहली फुरसत में अपने गांव चला जाऊंगा. बहुत झेल ली दिल्ली. कहने को यहां गरीबों के लिए मुफ्त इलाज का ढिंढोरा पीटा जाता है, पर असलियत बड़ी काली है दोस्त.’’
चपरासी ने राम मनोहर की बात को बड़े गौर से सुना. वह खुद हाल ही में दिल्ली बड़ेबड़े सपने ले कर आया था. पर मिला क्या… बीए करने के बावजूद इस अस्पताल में चपरासी की नौकरी.
चपरासी कुछ बोल पाता, उस से पहले ही राम मनोहर ने बैंच पर बैठते हुए कहा, ‘‘विवेक विहार में हुए हादसे ने तो मुझे डरा ही दिया है.’’
‘‘विवेक विहार में क्या हुआ था?’’ उस चपरासी ने पानी पीते हुए पूछा.
‘‘नाश हुआ था, नाश. कई घरों के चिराग अस्पताल में लगी आग से झुलस गए थे. हमतुम जैसों के लिए यह अखबार में छपी छोटी सी खबर है, पर जिन मांबाप पर यह विपदा आई है, उन से पूछो कि नन्ही सी जान, जिस ने अभी ढंग से अपनी मां का दूध भी नहीं पिया है, जिस के पिता ने उसे गोद में उठा कर एक बार भी चूमा तक नहीं है, का यों दर्दनाक मौत का भागीदार बनना क्या होता है.’’
उस चपरासी का मुंह खुला का खुला रह गया. उस ने कहा, ‘‘अरे भैया, पहेलियां मत बुझाइए. मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए हैं. पूरी बात बताओ. मैं ने यह खबर नहीं पढ़ी है.’’
राम मनोहर ने कुछ सोचते हुए बताना शुरू किया, ‘‘हम सब गरीबों का खयाल रखने का दावा करने वाली दिल्ली के विवेक विहार इलाके में बने बच्चों
के एक अस्पताल में शनिवार, 25 मई, 2024 की देर रात आग लग गई थी. यह आग इतनी ज्यादा भयंकर थी कि इस हादसे में 6 नवजात की मौत हो गई थी.
‘‘दोमंजिला इमारत की पहली मंजिल पर नवजात बच्चों की देखभाल के लिए एक सैंटर बना हुआ था, जिस में उस समय कुल 12 बच्चे भरती थे. ऐसी भी खबर थी कि निचली मंजिल पर गैरकानूनी तरीके से औक्सीजन सिलैंडर भरने का काम चल रहा था.’’
यह सुन कर चपरासी की नींद काफूर हो गई. वह राम मनोहर के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘भैया, आगे क्या हुआ था?’’
राम मनोहर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘दमकल अधिकारी ने बताया कि उन्हें रात साढ़े 11 बजे आग लगने की सूचना मिली थी. मौके पर दमकल की कुल 16 गाडि़यां पहुंची थीं, तब तक आग की लपटें ऊपर की मंजिल और पास की 2 इमारतों में भी फैल चुकी थी. नवजात बच्चों की देखभाल वाले सैंटर में जाने के लिए बाहर की तरफ से लोहे की एकमात्र घुमावदार सीढ़ी थी, उस में भी आग लग गई थी.
‘‘खबर यह थी कि उस सैंटर में भरती 12 बच्चों में से एक बच्चे की मौत आग लगने से पहले ही हो चुकी थी. कमरे में धुआं भरने के चलते बाकी 11 बच्चों की हालत गंभीर हो गई थी.
‘‘दमकल की टीम और स्थानीय लोगों ने लकड़ी की सीढि़यों पर चढ़ कर खिड़की से उन 11 बच्चों को बाहर निकाला था, पर तब तक दम घुटने से 6 बच्चों की मौत हो गई थी. उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेजा गया था. फायर सर्विस ने तकरीबन डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद आग पर पूरी तरह काबू पाया.’’
‘‘पर भैया, किसी ने तो देखा होगा कि यह आग कैसे लगी थी?’’ चपरासी ने पूछा.
राम मनोहर ने कहा, ‘‘अगर खबर पर यकीन करें, तो वहां रहने वाले एक आदमी ने बताया था, ‘हमारा घर पास
ही है. हमें रात में फोन आया कि यहां धमाके हुए हैं. मौके पर आए तो पता चला कि बिल्डिंग के सामने वैन में औक्सीजन सिलैंडर में गैस भरने का काम चल रहा था कि तभी सिलैंडर में धमाका हो गया.’
‘‘उस आदमी ने आगे बताया, ‘पहला सिलैंडर फट कर बिल्डिंग के अंदर गया, जिस से आग लग गई. आग लगते ही अस्पताल के सभी स्टाफ बच्चों को छोड़ कर भाग गए. उस के बाद एक के बाद एक 3 और सिलैंडर में धमाके हुए. हम बिल्डिंग के पीछे गए और शीशे तोड़ कर बच्चों को बाहर निकाला.’
‘‘लोकल लोगों का आरोप है कि बेबी केयर सैंटर के नीचे काफी समय से औक्सीजन भरने का काम होता था. यहां रोज बड़ी तादाद में औक्सीजन सिलैंडर लाए जाते थे. इस को ले कर पहले ही कई बार शिकायत की गई थी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई.’’
राम मनोहर के इतना कहने पर उस काली रात का सन्नाटा और ज्यादा गहरा हो गया. दुलारी अभी गहरी नींद में लग रही थी. रात के साढ़े 12 बज रहे थे.
चपरासी ने राम मनोहर से कहा, ‘‘भैया, मेरा घर पास में ही है. अगर आप कहें तो थोड़ी देर अपनी नींद निकाल आऊं, बस आप किसी को बताना मत. मैं 4 बजे तक लौट आऊंगा.’’
राम मनोहर ने कहा, ‘‘ठीक है, वैसे भी यहां कौन आने वाला है. दिन में तो डाक्टर दिखते नहीं, फिर इस काली रात में…’’
राम मनोहर को नहीं पता था कि वह रात सच में उस के लिए काली साबित हो जाएगी. रात के 3 बज रहे थे. राम मनोहर और दुलारी गहरी नींद में सो रहे थे.
इतने में सब से निचली मंजिल में बिजली की तारों में आग लग गई. ज्यादा गरमी की वजह से आग तेजी से फैलने लगी. देखते ही देखते आग इतनी ज्यादा बढ़ गई कि धुएं का गुबार सा उठने लगा.
राम मनोहर और दुलारी को नींद में पता ही नहीं चला और वे धुएं की चपेट में आ गए. देखते ही देखते बच्चों की नर्सरी वाली वह मंजिल गैस का चैंबर बन गई.
दमकल की 12 गाडि़यों ने बड़ी मशक्कत के बाद उस आग पर काबू पाया, पर तब तक राम मनोहर, दुलारी और वे 4 नवजात बच्चे मौत के आगोश में समा गए.
कल तक बच्चों की दर्दनाक मौत का गम मनाने वाला राम मनोहर आज खुद अखबार की सुर्खियां बन गया था..