नाजायज : कैप्टन शेखर गुप्ता की आंखे क्यों फटी रह गई

अस्पताल का यह कमरा काफी बड़ा, खुला और हवादार था. 3-4 दिन पहले ही कैप्टन शेखर गुप्ता को घायल हालत में एक लंबे, बड़े कमरे में, जिस में एक सीध में दर्जनों बैड बिछे थे, उस के कई घायल साथियों के साथ एक बैड पर लिटाया गया था. उसी कमरे में कई साधारण मरीज भी अपनेअपने बैड पर आराम कर रहे थे.

फिर अचानक कैप्टन शेखर गुप्ता को इस अकेले बिस्तर वाले कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था. उन्होंने किसी की सिफारिश भी नहीं लगवाई थी. इस सुदूर अफ्रीकन देश में उन की सिफारिश करने वाला था भी कौन?

संयुक्त राष्ट्र संघ के संयुक्त शांति मिशन के तहत दूसरे सदस्य देशों की सैनिक टुकडि़यों के साथ भारतीय सेना की यह टुकड़ी, जिस में तकरीबन सौ सैनिक थे, इस दक्षिणी अफ्रीकी देश में उस देश की सरकार के संयुक्त राष्ट्र संघ से किए गए शांति बहाल करने की गुजारिश पर आई थी.

समुद्र के किनारे बसा यह देश आकार में काफी छोटा था. इस की अपनी सेना थी, मगर वह काफी कमजोर और तादाद में कम थी.

चुनी हुई सरकार को देश में गृहयुद्ध जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा था. सरकार विरोधी आतंकवादी दलों को दबाने में सेना नाकाम थी, इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने सेना की टुकडि़यां यहां भेजी थीं.

3-4 दिन पहले हुई मुठभेड़ में कैप्टन शेखर गुप्ता अपने साथी सैनिकों और दूसरे देशों के सैनिकों के साथ घायल हो गए थे और अब इस बड़े सरकारी अस्पताल में भरती थे.

कैप्टन शेखर गुप्ता अपने बिस्तर पर लेटे किसी सोच में डूबे थे, तभी सांवले रंग की कसे बदन वाली एक अफ्रीकी लड़की नर्स की पोशाक पहने आई.

नर्स ने पास आ कर मीठी आवाज में पूछा, ‘‘आप कैसे हैं सर?’’

‘‘मैं ठीक हूं,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने मुसकरा कर कहा.

‘‘जरा आप की नब्ज तो देखूं,’’ इतना कह कर उस नर्स ने सधे हाथ से कैप्टन शेखर गुप्ता की कलाई

थाम कर नब्ज पर उंगलियां दबाईं.

नब्ज सामान्य थी. फिर उस ने उन का माथा छुआ. बुखार भी नहीं था.

‘‘आप को एक इंजैक्शन देना होगा,’’ सूई में दवा भरते हुए नर्स की आंखें कैप्टन की आंखों से टकराईं. उन्हें उन में अपने प्रति प्यार की चमक दिखाई पड़ी.

नर्स अपने काम में माहिर थी. कैप्टन शेखर गुप्ता को इंजैक्शन लगवाते समय जरा भी दर्द नहीं हुआ.

‘‘जरा मुंह खोलिए और ये टेबलेट निगल लें,’’ नर्स ने कहा.

भारत में नर्स को ‘सिस्टर’ कह कर पुकारा जाता है, लेकिन पश्चिमी और दूसरे देशों में ऐसा है या नहीं, कैप्टन शेखर गुप्ता को पता नहीं था, इसलिए उन्होंने सिर्फ ‘थैंक्यू’ कहा.

कैप्टन शेखर गुप्ता के घाव काफी गहरे थे. उन को भरने में समय लगना था. दिन में 2 बार डाक्टर चैकअप

करने आता था. 2 दिन बाद पट्टियां भी बदली जाती थीं. नर्स तो कई बार आती थी. उस नर्स को कैप्टन से शायद प्यार हो गया था.

धीरेधीरे नर्स का आनाजाना काफी बढ़ गया था. कैप्टन कुंआरे थे. नर्स भी कुंआरी थी. उस का नाम स्टे्रसा गार्बो था. वह एक नीग्रो मां और अंगरेज पिता की औलाद थी.

उस कैप्टन का रंग सांवला था, बाल क्रीम रंग के थे. वह किसी यूनानी जैसा दिखता था.

समय के साथसाथ कैप्टन शेखर गुप्ता के घाव भरने लगे थे. वे अब चलनेफिरने लगे थे.

एक शाम स्ट्रेसा गार्बो सामान्य पोशाक स्कर्टटौप में कैप्टन शेखर के कमरे में आई. काले चमकीले रंग का स्कर्टटौप और उस पर कौटन का बना बड़ा हैट अच्छा लग रहा था. उस के दिलकश रूप को देख कर कैप्टन मुसकराए.

‘‘हैलो मिस्टर शेखर, अब कैसे हैं आप?’’

‘‘मैं अच्छा हूं… और आप?’’

‘‘कहीं बाहर घूमने चलेंगे?’’

स्ट्रेसा गार्बो की यह बात सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता चौंक पड़े. इस अफ्रीकी देश में आए उन्हें 2 महीने हो चुके थे, मगर उन्होंने कभी घूमनेफिरने के बारे में नहीं सोचा था, क्योंकि उन की ड्यूटी के घंटे निश्चित नहीं थे. तकरीबन 24 घंटे ही ड्यूटी होती थी.

सैरसपाटे के नाम पर उस अफ्रीकी देश में उन्हें क्या सूझ सकता था? जवान लड़की के प्रति खिंचाव होना स्वाभाविक था, मगर उस हब्शियों के देश में औरतें या लड़कियां भी काले रंग की ही थीं. उन के मोटे होंठों वाले काले चेहरे, छल्लेदार बालों वाले सिर और भारी काले मांसल शरीर में उन फौजियों को भला क्या मजा आ सकता था?

मगर सैक्स की चाहत भी अपनी जगह थी. अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कैप्टन शेखर गुप्ता के साथी चकलाघरों का पता लगा ही लेते थे, मगर वे उन के साथ कभी नहीं गए थे.

‘‘किस सोच में खो गए आप?’’ स्ट्रेसा गार्बो की आवाज सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता बोले, ‘‘ओह, कुछ नहीं. कहां जा सकते हैं हम?’’

‘‘यहां बहुत सी जगहें हैं.’’

‘‘ठीक है. मैं तैयार होता हूं,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता बाथरूम गए और हाथमुंह धोने के बाद काले रंग की पैंटशर्ट पहन कर तैयार हुए.

‘‘अरे, आप ने तो मेरे कपड़ों की नकल कर ली,’’ स्ट्रेसा गार्बो ने हंसते हुए कहा.

‘‘तो क्या मैं सफेद सूट पहन लूं?’’

‘‘नहींनहीं, यही ठीक है. बस, जरा कोई चमकीले रंग की टाई भी पहन लें.’’

कैप्टन शेखर गुप्ता ऊंचे कद, कसे जिस्म वाले फौजी थे. उन पर काली पैंटशर्ट और ग्रे रंग की चमकीली टाई व सफेद चमड़े के बढि़या जूते काफी अच्छे लग रहे थे. उन के साथ चलती गठीले बदन की स्ट्रेसा गार्बो भी काफी अच्छी लग रही थी.

अस्पताल का सारा स्टाफ और कैप्टन शेखर गुप्ता के साथी भी फटी आंखों से इस जोड़ी को अस्पताल से बाहर निकलते देख रहे थे.

‘‘कैप्टन साहब तो छिपे रुस्तम निकले. पता भी नहीं चला, कब इश्क का पेंच लड़ा कर नर्स फंसा ली. अस्पताल का बड़ा कमरा हासिल कर लिया और अब नर्स के साथ मौजमस्ती करने चले गए,’’ एक साथी फौजी ने दूसरे फौजी से कहा.

‘‘ये कैप्टन ऐसे ही नहीं बन गए. काबिल आदमी हैं,’’ दूसरे फौजी की इस बात पर सारे हंसने लगे.

अस्पताल से बाहर आ कर स्ट्रेसा गार्बो ने एक टैक्सी को रुकने का इशारा किया. इस के बाद वे दोनों एक शानदार रैस्टोरैंट में पहुंचे.

कैप्टन शेखर गुप्ता को इस पिछड़े दक्षिणी अफ्रीकी देश में इस तरह के रैस्टोरैंट की उम्मीद नहीं थी.

डांसिंग फ्लोर पर जोड़े थिरक रहे थे.

‘‘क्या आप नाचना जानते हैं?’’

कैप्टन शेखर गुप्ता ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘सीखना मुश्किल नहीं है.’’

‘‘मैं ने कभी किया नहीं.’’

‘‘क्या आप ने कभी फ्लर्ट किया है?’’ स्ट्रेसा गार्बो ने शोखी से पूछा.

‘‘कभी चांस नहीं मिला,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने हंस कर कहा.

‘‘प्यारमुहब्बत चांस की नहीं, दिल की बात है.’’

‘‘दिल तो मेरा खुला है, मगर आवारा नहीं,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने भी अब शोखी से कहा.

‘‘यह आवारा क्या होता है?’’

‘‘अंगरेजी भाषा में इस का सही मतलब मु?ो पता नहीं है. फिलहाल तो आप खुद ही इस का मतलब निकाल लो,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने कहा.

खाना खाने के बाद स्ट्रेसा गार्बो उन्हें बोटिंग के लिए ले गई.

‘‘क्या आप को मोटरबोट चलानी आती है?’’ स्ट्रेसा गार्बो ने पूछा.

‘‘हां, आती है. हमें सेना में हर वाहन चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है.’’

एक मोटरबोट ले कर स्ट्रेसा गार्बो खुले समुद्र में उसे दौड़ाने लगी. वह तैराक भी थी. उस दिन काफी रात गए दोनों वापस लौटे.

कैप्टन के घाव अब काफी भर गए थे. उन्हें और दूसरे कई साथियों को अस्पताल से छुट्टी मिल गई.

अब वे सभी ड्यूटी पर जाने लगे थे, लेकिन जब भी मौका मिलता, कैप्टन शेखर गुप्ता स्ट्रेसा गार्बो के साथ सैरसपाटे पर निकल जाते.

स्ट्रेसा गार्बो को अस्पताल में क्वार्टर मिला हुआ था. साथ ही, उस ने शहर में भी एक फ्लैट लिया हुआ था, जहां वह अकेली रहती थी.

मेलमुलाकातों, सैरसपाटे से आगे बढ़ते हुए वे दोनों हदें पार कर एकदूसरे में समा गए. नतीजतन, स्ट्रेसा गार्बो पेट से हो गई.

इधर कैप्टन शेखर गुप्ता की टुकड़ी का काम पूरा हो गया. अब टुकड़ी को वापस जाना था. आदेश आ चुका था.

कैप्टन शेखर गुप्ता स्ट्रेसा गार्बो के फ्लैट पर पहुंचे. उन की वापस जाने की खबर पा कर वह गंभीर हो गई.

‘‘मैं आप को कुछ बताना चाहती हूं,’’ स्ट्रेसा गार्बो की गंभीर आवाज सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता चौंक पड़े.

‘‘कहो, क्या बात है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मैं पेट से हूं,’’ स्ट्रेसा गार्बो ने कहा.

थोड़ी देर खामोशी छाई रही. दोनों एकदूसरे के चेहरे से दिल का हाल जानना चाहते थे.

‘‘वैसे, यह बड़ी समस्या नहीं है. आप बच्चा गिरवा लो,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने कहा.

यह सुन कर स्ट्रेसा गार्बो ने उन की तरफ गहरी नजरों से देखा.

‘‘मैं बच्चा नहीं गिराना चाहती. मैं बच्चे को जन्म देना चाहती हूं. क्या आप मु?ा से शादी करेंगे?’’

स्ट्रेसा गार्बो का सीधा सवाल सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता सकपका गए.

खामोशी को तोड़ते हुए स्ट्रेसा गार्बो ने कहा, ‘‘मैं आप पर कोई दबाव नहीं डालूंगी. आप की मरजी हो तो ठीक, नहीं तो कोई बात नहीं.’’

स्ट्रेसा गार्बो के इस सहजसपाट जवाब को सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता हैरानी से उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मगर बिना शादी के बच्चा… ऐसे तो वह नाजायज या हरामी कहलाएगा?’’ उन के मुंह से निकला.

‘‘कोई भी बच्चा नाजायज या हरामी नहीं होता. बच्चा सिर्फ बच्चा होता है. मेरे पिता भी मु?ो मेरी मां के पेट में डाल कर चले गए थे. मैं ने अपने पिता को कभी नहीं देखा.

‘‘मु?ो किसी ने हरामी नहीं कहा. हमारा समाज पिछड़ा नहीं है. हमारी

सोच इतनी छोटी नहीं है, बल्कि यहां पिता का नाम बताना या न बताना अपनी मरजी पर है.’’

यह सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता हैरान थे. वे कुछ बोले बिना चुपचाप वहां से चले आए.

टुकड़ी के हवाईजहाज पर सवार होने का समय हो गया था. हवाईअड्डा खाली सा था. एक गुलदस्ता लिए स्ट्रेसा गार्बो कैप्टन शेखर गुप्ता के पास आई.

‘‘मु?ो अपना पता दोगे? चिंता मत करो. मैं कभी तुम्हारे रास्ते में रुकावट नहीं बनूंगी. तुम्हें खबर करने के लिए कि बच्चा लड़का है या लड़की, मैं पता मांग रही हूं.’’

कैप्टन शेखर गुप्ता ने उस को एक कागज पर अपना पता व फोन नंबर लिख कर दे दिया.

‘‘मेरी ओर से शुभकामनाएं,’’ कहती हुई स्ट्रेसा गार्बो सधे कदमों से मुड़ी और चली गई.

कैप्टन शेखर गुप्ता की दिमागी हालत उस फौजी के समान थी, जो एक बार लड़ाई में फिर हार गया था.

एक असभ्य जाति की कही जाने वाली औरत ने सभ्यता, जायजनाजायज के सवाल के नाम पर जो तमाचा उन्हें मारा था, वह काफी करारा था.

हवाईजहाज का सायरन बजा. कैप्टन शेखर गुप्ता अपना सामान उठाए सीढि़यां चढ़ गए.

पहचान कौन? : किसकी खुली लौटरी

गरीबदास घर में अकेले थे. टैलीविजन चालू कर के वे कार्यक्रम देखने लगे. टैलीविजन स्क्रीन पर जो तसवीर आ रही थी, वह आधे गोविंदा और आधे अजय देवगन की थी.

गोविंदा और अजय देवगन के फोटो को नाक से नाक सटा कर इस तरह मिला दिया गया था कि एक नजर में लगता था कि यह तसवीर किसी एक ही शख्स की है और दर्शकों से उसे पहचानने के लिए एंकर अपने मनमोहक अंदाज में कह रही थी, ‘पहचानिए इस तसवीर में दिखाए गए 2 फिल्मी कलाकारों को और जीतिए 50 हजार रुपए… इस के लिए आप को बस एक नंबर मिलाना है और दोनों फिल्मी कलाकारों के नाम बताने हैं.’

‘ट्रिनट्रिन’ तभी टैलीविजन में फोन की घंटी बजती है. एंकर बड़ी अदा से दोनों हाथ जोड़ कर बोलती है, ‘हैलो…’

उधर से आवाज आती है, ‘हैलो…’

‘तो बताइए कि इस तसवीर में किन 2 फिल्मी कलाकारों के चेहरे हैं?’ एंकर ने पूछा

‘एक तो गोविंदा हैं और दूसरे हैं सोहेल खान.’

‘माफ कीजिए, यह गलत जवाब है,’ एंकर ने मुसकराते हुए कहा और फिर अपनी मादक आवाज में दर्शकों को लुभाना शुरू कर दिया, ‘उठाइए अपना फोन और बताइए इन 2 फिल्मी कलाकारों के नाम, जिन के चेहरे इस तसवीर में हैं और जीतिए 50 हजार रुपए.’

फिर कोई दर्शक फोन करता है और जवाब देता है, ‘गोविंदा और सैफ अली खान.’

‘‘नहीं, यह भी गलत जवाब है. इतना आसान सवाल और इस का जवाब सही नहीं मिल पा रहा. आप सोच क्या रहे हैं? आप को तो जवाब मालूम ही है, तो फिर देर किस बात की? सही जवाब दीजिए और 50 हजार रुपए आप के…’

गरीबदास को कुछ खीज सी हो रही थी. उन्होंने सोचा, ‘अरे यार, यह तो बिलकुल आसान सवाल है. गोविंदा को तो सभी पहचान रहे हैं, पर अजय देवगन को पहचानने में लोग भूल कैसे कर रहे हैं? शायद अजय देवगन के फोटो में मूंछें हैं, इसलिए… पर ‘गंगाजल’ में, ‘सिंघम’ में और कई अनेक फिल्मों में तो लोगों ने अजय देवगन को मूंछों में देखा ही होगा.’

लिहाजा, गरीबदास ने टैलीविजन स्क्रीन पर देख कर फोन नंबर मिलाया. घंटी बज रही थी. गरीबदास खुश हो गए. उन्हें लगा कि अब उन की काल को एंकर रिसीव करेगी और जवाब पूछेगी. वे सही जवाब बताएंगे और एंकर खुशी से चीख पड़ेगी, ‘यह बिलकुल सही जवाब है. आप ने जीत लिए हैं पूरे 50 हजार रुपए…’

लेकिन मोबाइल फोन पर कुछ और ही बताया जा रहा था कि वे प्रतीक्षा लाउंज में पहुंच गए हैं और कुछ ही देर में उन की काल को रिसीव किया जाएगा. उस के बाद संगीत बजना शुरू हो गया. कुछकुछ देर के बाद फिर वही राग अलापा जाता रहा.

फिर सुर बदला, ‘आप की जानकारी के लिए बता दें कि इस कार्यक्रम में आप से प्रति मिनट 10 रुपए चार्ज किया जाता है… बने रहिए हमारे साथ…’

जब गरीबदास ने जान लिया कि उन की काल का प्रति मिनट 10 रुपए चार्ज किया जा रहा है, तो उन के सब्र का बांध टूटने लगा.

गरीबदास सोचते रहे कि कहीं उन्हें मौका मिलता, तो जवाब दे कर वे 50 हजार रुपए जीत लेते, पर तभी उन के जेहन में एक घटना कौंध गई और उन्होंने बिना कुछ सोचेसमझते फोन काट दिया.

हुआ यों था कि बचपन में उन्होंने लौटरी में एक रुपया गंवाया था. इस की कहानी कुछ इस तरह है : गरीबदास की मां ने उन्हें एक किलो आलू खरीदने के लिए एक रुपया दिया था. बात उन दिनों की है, जब आलू सस्ता हुआ करता था.

रास्ते में गरीबदास ने देखा कि एक लौटरी वाले को लोग घेरे हुए थे और अपनीअपनी किस्मत आजमा रहे थे. लौटरी में एक चकरी को जोर से घुमा कर छोड़ दिया जाता था. चकरी रुकने पर लकड़ी का फट्टा जिस खाने में रुकता था, उसी नंबर की चीज लौटरी लगाने वाले को दे दी जाती थी.

गरीबदास के सामने एक शख्स आया और उस ने लौटरी खेली. वह जीता और 5 पैसे में एक रेडियो ले कर चला गया. दूसरा शख्स आया और लौटरी में घड़ी जीत कर चला गया.

अब गरीबदास कैसे रुक सकते थे. 5-5 पैसे दे कर वे 20 बार कोशिश करते रहे, पर हर बार उन्हें यह उम्मीद थी कि उन्हें रेडियो या घड़ी इनाम में जरूर मिलने वाली है और उन की मां तो उसे देख कर खुशी से फूली नहीं समाएंगी. पर एकएक कर के गरीबदास के सारे चांस बेकार गए और रेडियोघड़ी तो दूर, वे बेचारे एक किलो आलू खरीदने से भी रह गए.

घर लौट कर मां से डांट पड़ी, सो अलग. बाद में गरीबदास को पता चला कि रेडियो और घड़ी जीतने वाले लौटरी वाले के ही दोस्त थे और भीड़ को गुमराह करने के लिए उन्हें रेडियो और घड़ी जिताई गई थी.

गरीबदास को लगा कि वही लौटरी वाला औरत के रूप में एंकर बन कर ‘पहचान कौन’ का खेल खेल रहा है.

मुझे नहीं लिखानी रपट : क्यों बहू पहुंची सास के खिलाफ थाने

‘‘इंस्पैक्टर साहिबा…’’

इंस्पैक्टर मोहिनी वर्मा ने नजरें उठा कर देखा. एक लड़की सामने खड़ी उन्हीं की ओर देख रही थी.

उन्होंने पलभर के लिए उस लड़की के चेहरे को देखा, फिर बोलीं, ‘‘कहिए?’’

‘‘रपट लिख लीजिए.’’

‘‘किस के खिलाफ?’’

‘‘सास के खिलाफ.’’

‘‘क्यों, क्या किया है सास ने?’’

‘‘उन्होंने मेरे गहने ले लिए हैं.’’

‘‘वे गहने तुम्हें किस ने दिए थे?’’

‘‘जब सगाई हुई थी न, तब ससुराल वालों ने ही दिए थे.’’

‘‘क्यों… शादी में तेरे बाप ने गहने नहीं दिए थे?’’

‘‘दिए थे. वे गहने मेरे पास ही हैं.’’

‘‘तो यह बात है…’’ जरा सोच कर मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘मामला बड़ा पेचीदा है.’’

‘‘कुछ भी करो इंस्पैक्टर साहिबा, आप मेरे गहने दिलवा दीजिए.’’

‘‘तुझे गहने की पड़ी है. तुम्हारी पारिवारिक लड़ाई में पुलिस क्या करेगी? बोल, क्या करेगी?’’

‘‘इंस्पेक्टर साहिबा, यों पल्ला झाड़ने से काम नहीं चलेगा.’’

‘‘तू कहना क्या चाहती है?’’

‘‘आप को अपने फर्ज की याद दिलाना चाहती हूं.’’

‘‘ऐ फर्ज वाली, मुझे मालूम है मेरा फर्ज क्या है.’’

‘‘आप को फर्ज मालूम है, तब मेरी रपट अभी लिख लीजिए. यों बातों में उलझ कर समय बरबाद न करें.’’

‘‘तू बहुत बोलती है, तभी तो तेरी सास से नहीं बनती है. यही बात है न?’’

‘‘देखिए इंस्पैक्टर साहिबा, मेरे घरेलू मामले में आप दखल न दें. आप रपट लिख लीजिए.’’

‘‘मगर रपट लिखने के भी कुछ कानूनकायदे होते हैं.’’

‘‘तो आप मुझे वे कायदेकानून समझा दीजिए.’’

‘‘पालन करोगी?’’

‘‘अगर करने जैसे होंगे तो.’’

‘‘रहने दे, रहने दे. यहां रपट मुफ्त में नहीं लिखी जाती है.’’

‘‘यानी आप को रिश्वत चाहिए?’’

‘‘रिश्वत नहीं, नजराना कहो.’’

‘‘आखिर बात तो वही हुई न?’’

‘‘रिश्वत व नजराने में जमीनआसमान का फर्क है.’’

‘‘वह कैसे, मुझे समझाइए?’’

‘‘ऐ, तू थाने में रपट लिखाने आई है या बहस करने?’’

‘‘मैं थाने में रपट लिखाने आई हूं.’’

‘‘तब बहू हो कर बदतमीजी से बातें क्यों कर रही है?’’

‘‘मैं तो आप की बात का जवाब

दे रही हूं, जिसे आप बदतमीजी समझ रही हैं.’’

‘‘क्या नाम है तेरा?’’

‘‘मीना नाम है मेरा.’’

‘‘देख मीना,’’ गुस्से से आंखें दिखाते हुए मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘रपट लिखानी है, तो…’’

‘‘यहां बिना पैसों के रपट नहीं लिखी जाती है,’’ मीना बीच में ही बात काटती हुई बोली, ‘‘यही कहना चाहती हैं न आप?’’

‘‘सो तो है,’’ मोहिनी वर्मा मुसकारते हुए बोलीं.

‘‘एक बात बता, क्या अभी तू सास के साथ रहती है?’’

‘‘हां, मगर जब वे गहने दे देंगी, तब मैं अलग हो जाऊंगी.’’

‘‘मतलब, गहने मिलने तक तू उस घर में रहेगी?’’

‘‘मगर आप ये सब क्यों पूछ रही हैं?’’ जरा नाराज होते हुए मीना बोली, ‘‘आप को रपट लिखनी है, तो जल्दी लिखिए.’’

‘‘किस के लिए बने हैं ये थाने?’’

‘‘रिश्वत लेने के लिए.’’

‘‘झूठ, एकदम बकवास.’’

‘‘मगर, मैं शिकायत करूंगी.’’

‘‘करो, शौक से करो.’’

मोहिनी वर्मा ने जब यह सुना, तो खुश हो गईं. वे बोलीं, ‘‘चाहे तो अन्ना हजारे को भी शिकायत कर दो, पर बहन शिकायत करने से कुछ न होगा.’’

‘‘क्या आप यों रपट नहीं लिख सकती हैं?’’ उदास मन से मीना ने कहा.

‘‘पुलिस की डिक्शनरी में यह नहीं लिखा है. फिर सास से गहने लेने हैं. तब इतना त्याग करना पड़ेगा… क्या सोचा है? यह तो आजकल का रिवाज हो गया है. इस हाथ ले, उस हाथ दे. मैं चाहूं, तो तेरी यों भी रपट लिख लूंगी. मगर कानून में ऐसा छेद कर दूंगी कि खुद उलझ कर रह जाएगी. नजराना दे दोगी, तब तुम्हारी सास दौड़ती हुई आएंगी मेरे पास गहनों को ले कर.’’

‘‘मतलब यह इंस्पैक्टर साहिबा, चित भी मेरी और पट भी मेरी,’’ मीना अपना पक्ष रखते हुए बोली, ‘‘कितना पैसा चाहिए?’’

‘‘पहले यह बता कि गहने कितने के होंगे?’’

‘‘तकरीबन 2 लाख रुपए के.’’

‘‘तब तो तुम्हारा पक्ष मजबूत कर दूंगी,’’ मोहिनी वर्मा अपना पक्ष रखते हुए बोलीं, ‘‘तुम 75 हजार रुपए ला कर दे दो.’’

‘‘75 हजार…’’ हैरानी से आंखें फाड़ते हुए मीना बोली, ‘‘मगर इतनी बड़ी रकम मैं नहीं ला सकती.’’

‘‘दरअसल, हमें भी ऊपर लिफाफे भेजने पड़ते हैं,’’ मोहिनी वर्मा अपना पक्ष रखते हुए बोलीं.

यह कह कर इंस्पैक्टर साहिबा ने गेंद उस के पाले में डाल दी.

मीना सोच में पड़ गई कि इतनी रकम कहां से जुटाएगी? उस का पति मुकेश टीचर है. क्या वह अपने पिता द्वारा दहेज में दिए गहने बेच कर रिश्वत दे. इस में समझादारी कहां है.

जहां तक पैसों का सवाल है, उस के पास नहीं है और थाने में बिना रिश्वत दिए रपट नहीं लिखते हैं. अगर किसी की सिफारिश लगाओ, तब वे लोग झट से रपट लिख लेते हैं. सरकारी काम में इतना जंग लग गया है, जिसे छुड़ाना अब किसी के बूते की बात नहीं है.

मीना पुरानी यादों में खो गई. एक दिन मीना की पड़ोसन विमला उस से बोली भी थी, ‘क्यों मीना, मैं देख रही हूं कि बहुत दिनों से तुम्हारी सास और तुम में बन नहीं रही है?’’

‘हां, सो तो है विमला बहन,’ अफसोस जताते हुए मीना बोली थी, ‘क्या करूं?’

‘करना क्या है, अलग हो जा,’ विमला सलाह देते हुए बोली थी.

‘आजकल अगर नहीं निभे, तब अलग रहने में ही भलाई है.’

‘कहती तो ठीक हो, मगर…’

‘मगर क्या…?’ बीच में ही बात काट कर विमला ने पूछा था.

‘सास ने गहने दबा लिए हैं, जो सगाई के वक्त मुझे दिए थे.’

‘अरे, लो न उस से, उन पर तो पूरा हक है तुम्हारा?’

‘कैसे लूं… कई बार कह चुकी हूं, मगर देती नहीं. मैं कुछ कहती हूं, तो वे लड़नेझगड़ने लगती हैं.’

जब मीना ने अपनी बात कही, तब विमला सोचते हुए बोली थी, ‘एक काम कर. महिला थाने में रपट लिखा आ, सास के खिलाफ…’

काफी सोचनेसमझाने के बाद एक दिन मीना थाने में रपट लिखाने आ गई. मगर थाने में कितना भ्रष्टाचार है, यह उस ने आज जाना. सच कहा है, कानून पैसों वालों का है.

‘‘ऐ, क्या सोचने लगी?’’ मोहिनी वर्मा ने मीना की सोच को झटका दिया, तो वह यादों से लौटी.

मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘सास से गहने लेने हैं कि नहीं?’’

‘‘मगर, मैं इतनी बड़ी रकम का इंतजाम नहीं कर सकती,’’ मना करते हुए मीना बोली.

‘‘सोच ले. तेरी सास ने तेरे गहने जहां कहीं भी छिपाए होंगे, तुझे निकाल कर दे दूंगी…’’ मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘मगर शर्त यह है कि तुम हमारी मदद करो, हम तुम्हारी मदद करें.’’

‘‘मुझे नहीं लिखानी रपट,’’ कह कर मीना थाने से बाहर निकल गई.

इंस्पैक्टर मोहिनी वर्मा यह देख मुसकरा दीं.

तब महिला सिपाही पास आ कर बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहिबा, आप ने उस से इतनी भारीभरकम रिश्वत क्यों मांगी?’’

‘‘मैं नहीं चाहती थी कि यह परिवार टूटे, इसलिए…’’ समझाते हुए मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘मुझे मालूम था कि वह इतनी बड़ी रकम नहीं दे सकती है. सास आज नहीं तो कल खुद ही गहने उसे दे देगी. शायद, अब वह अपनी सास से अलग न हो.’’

 

मुखौटा : हिस्ट्रीशीटर अमित अख्तर की कहानी

अमित अख्तर ने जब परचा मेरे आगे रखा, तो मैं हैरान हो उठा, ‘‘तुम एमएलए का चुनाव लड़ोगे?’’

‘‘हां, वकील बाबू, लेकिन आप को हैरानी क्यों हुई?’’

‘‘दरअसल…’’ मैं थोड़ा हिचकिचाया, ‘‘तुम तो हिस्ट्रीशीटर हो… क्या तुम्हें कोई पार्टी टिकट देगी? क्या तुम चुनाव जीत जाओगे? क्यों अपनी जिंदगीभर की कमाई मुफ्त में गंवाना चाहते हो?’’

‘‘वकील बाबू, इसी को तो राजनीति कहते हैं. अगर आप को राजनीति के हथकंडे मालूम होते, तब चुनाव हम नहीं आप लड़ रहे होते. और रही हमारे हिस्ट्रीशीटर होने की बात, तो आप को बता दें, हमारे प्रदेश के एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं, उन पर 38 मुकदमे चले हैं, जबकि हम पर तो अभी 22 ही चल रहे हैं.’’

मैं ने अमित अख्तर का परचा भर कर दे दिया. फिर शाम को उस के घर भी पहुंच गया.

अमित अख्तर के घर पर उस के चेलेचपाटों की महफिल जमी थी. शहर के नामीगिरामी गुंडे वहां मौजूद थे.

मुझे देखते ही अमित अख्तर ने हाथ मिलाया और अपने बराबर में ही एक कुरसी पर बैठा लिया, फिर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘वकील बाबू, अब आप हमारे हथकंडे देखिए.’’

फिर उस ने अपने एक चेले को आवाज दी, ‘‘मुकीम, तुम अपने साथ बब्बू, राम सिंह, राजू और अनीस को ले कर सेठ जहांगीरी के यहां चले जाओ और उस से कहो कि अमित दादा ने 50 हजार रुपए मंगवाए हैं.’’

‘‘जैसा हुक्म दादा…’’ मुकीम ने किसी पालतू कुत्ते की तरह गरदन हिलाई, ‘‘अगर सेठ रुपए देने से मना करे, तो उस का काम तमाम कर दूं?’’

‘‘नहीं, अगर वह मना करे, तो मुझे टैलीफोन करना. मैं उस से खुद बात कर लूंगा. और हां, एक बात और सुन… तुम और तुम्हारे सभी साथी आज से मुझे दादा नहीं, बल्कि नेताजी कह कर पुकारा करेंगे.’’

‘‘जैसा हुक्म, नेताजी.’’

कुछ ही पलों में 2 मोटरसाइकिलें स्टार्ट हुईं और तेज रफ्तार से दूर होती चली गईं.

करीब 15 मिनट बाद टैलीफोन की घंटी बजी, तो अमित अख्तर ने चोंगा उठा कर कान से लगाया, ‘‘मुकीम, क्या कहा सेठ ने?’’

‘‘सेठ पैसा देने से मना कर रहा है.’’

‘‘तुम सेठ को फोन दो.’’

अगले ही पल सेठ की आवाज सुनाई दी, ‘‘अमित बाबू, हम पर दया कीजिए. 2-4 हजार की बात हो तो दे देता हूं, लेकिन 50 हजार रुपए मेरे बस की बात नहीं है.’’

‘‘सेठ, हमारी बात गौर से सुनो, हम चुनाव लड़ रहे हैं. हमें तलवार पार्टी से टिकट लेना है… हम एमएलए भी बनेंगे और बाद में मंत्री भी.

‘‘अगर हम मंत्री बन गए, तो तेरे सारे लाइसेंस रद्द करवा देंगे, तुझे भिखारी बना देंगे. अगर हम कुछ न बन पाए, तो सुन… हमारे ऊपर 22 मुकदमे चल रहे हैं, इन में से 10 कत्ल के हैं, 23 वां मुकदमा तेरे कत्ल का शुरू हो जाएगा… मैं चोंगा रखूं या तू कुछ बकता है?’’

‘‘मैं 50 हजार रुपए दे रहा हूं… लेकिन तुम मंत्री बनने के बाद हमारा खयाल जरूर रखना.’’

‘‘चिंता मत कर, तू अभी से गेहूं, चावल, चीनी जमा कर ले, चुनाव के बाद मैं मुख्यमंत्री से कह कर सभी चीजों के दाम बढ़वा दूंगा.’’

‘‘क्या आप की मुख्यमंत्री से बात हो गई है?’’

‘‘हां, उन्होंने ही मुझे मंत्री बनने के नुसखे बताए हैं. उन्होंने पार्टी का टिकट देने के लिए 5 लाख का चंदा मांगा

है… यह चंदा मुझे तुम्हारे जैसे लोग ही तो देंगे.’’

चोंगा रख कर अमित अख्तर मेरी तरफ देख कर मुसकराया.

कुछ ही देर में उस के गुंडे सेठ जहांगीरी से 50 हजार रुपए ले आए.

‘‘नेताजी, इन रुपयों का क्या करना है?’’ मुकीम ने नोटों का बैग अमित अख्तर के आगे रख दिया.

‘‘सुनो, 1-1 हजार की 50 गड्डियां बनाओ. हर मंदिरमसजिद को हमारी तरफ से चंदा दे दो. जो रुपया बचे, उस की हरिजन बस्ती में शराब और गरीब मुसलमानों में बिरयानी बांट दो.’’

मुकीम और उस के साथियों के जाने के बाद मैं ने अमित अख्तर को घूरा, ‘‘तुम यह हराम की दौलत मंदिर, मसजिद को दान दे रहे हो?’’

‘‘अरे वकील बाबू, यह हराम… हलाल क्या होता है… रुपया तो रुपया होता है… इस पर हराम या हलाल कुछ नहीं लिखा होता. फिर मंदिर, मसजिद वालों को क्या मालूम, यह रुपया मैं ने कहां से और कैसे कमाया है.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ, कुछ देर पहले तुम ने टैलीफोन पर मुख्यमंत्री को 5 लाख का चंदा देने की बात कही थी… यह 5 लाख तुम कहां से लाओगे?’’

अमित अख्तर ने जोरदार कहकहा लगाया, ‘‘बताए देता हूं, लेकिन इस बात का खयाल रखना, चुनाव से पहले यह यह बात किसी को बताना नहीं… अगर बताई तो… खैर सुनो, कुछ जगहों पर लूटखसोट होगी और 2-4 अपहरण की घटनाएं…’’

‘‘अगर पकड़े गए, तब क्या होगा?’’

‘‘यह काम मैं थोड़े ही करूंगा, चेले किस काम आएंगे.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ, तुम अख्तर से अमित अख्तर क्यों बन गए?’’

‘‘यह वोटों की राजनीति है. मैं ने हिंदू व मुसलिम वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए अमित अख्तर नाम रखा है. मुसलमानों से मिलने जाऊंगा, तो सिर पर टोपी लगा लूंगा और हिंदुओं से मिलूंगा, तो माथे पर तिलक लगा लूंगा.’’

‘‘अगर दोनों धर्म वालों से एकसाथ मिले, तब…’’

‘‘तब मैं सिर पर गांधी टोपी लगा कर आदर्शवादी बन जाऊंगा,’’ कहते हुए उस ने जोरदार ठहाका लगाया.

फिर वैसा ही हुआ, जैसा अमित अख्तर ने कहा था. तलवार पार्टी ने अपने पुराने एमएलए को टिकट न दे कर अमित अख्तर को टिकट दे दिया. अमित अख्तर के गुंडों ने कहीं डराधमका कर, कहीं मतपेटियां लूट कर, तो कहीं दौलत लुटा कर चुनाव जीत लिया.

इस के बाद अमित अख्तर ने तलवार पार्टी के अध्यक्ष को सोने की तलवार भेंट की. इस के बदले में पार्टी ने उसे उपमंत्री बना दिया.

मंत्री बनने के बाद अमित अख्तर का नगर में शानदार स्वागत किया गया. जब वह मंच पर भाषण दे रहा था, तब लोगों की भीड़ में खड़े हुए मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह तो हिस्ट्रीशीटर अमित अख्तर है, मंत्री कैसे बन गया?’’

लोगों ने मुझे घूर कर देखा. एक आदमी बोला, ‘‘लगता है, तुम पुलिस के आदमी हो… शायद तुम्हें मालूम

नहीं, नेताजी के ऊपर पुलिस द्वारा झूठे मुकदमे चलाए गए थे. नेताजी तो गरीबों के हमदर्द हैं, दयालु हैं और महान देशभक्त हैं.’’

तभी वहां मौजूद भीड़ ‘नेताजी जिंदाबाद’ के नारे लगाने लगी.

मैं हैरान था और साथ ही मुझे गुस्सा भी आ रहा था कि हमारे देश की जनता कितनी जल्दी मुखौटों के पीछे छिपे चेहरों को भूल जाती है.

Top 7 Social Story In Hindi: टॉप 7 सोशल स्टोरी हिन्दी में

Top 7 social story in hindi 2024: समाज में जगह-जगह हर दिन कुछ ना कुछ घटित होता रहता है जिससे जानने के लिए पाठक उत्सुक रहते है इतना ही नहीं समाज के कुछ नियम कानून होते है जिन्हे फोलो करने के लिए मजबूर तक किया जाता है, जो आज हम कुछ ऐसे ही सरस सलिल की टॉप सोशल स्टोरी लेकर आए है जिन्हे पढ़ कर आप जागरुक बन सकते है.समाज से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जिससे आप समाज में हो रहे घटनाओं से परिचित होंगे. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Top 7 Social Story Of 2024.

  1. जलन: रमा को अपनी बहू से क्यों दुश्मनी थी?

पिछले कुछ दिनों से सरपंच का बिगड़ैल बेटा सुरेंद्र रमा के पीछे पड़ा हुआ था. जब वह खेत पर जाती, तब मुंडे़र पर बैठ कर उसे देखता रहता था. रमा को यह अच्छा लगता था और वह जानबूझ कर अपने कपड़े इस तरह ढीले छोड़ देती थी, जिस से उस के उभार दिखने लगते थे. लेकिन गांव और समाज की लाज के चलते वह उसे अनदेखा करती थी. सुरेंद्र को दीवाना करने के लिए इतना ही काफी था. रातभर रमेश के साथ कमरे में रह कर रमा की बहू सुषमा जब बाहर निकलती, तब अपनी सास रमा को ऐसी निगाह से देखती थी, जैसे वह एक तरसती हुई औरत है.

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2. दामाद: अमित के सामने आई आशा की सच्चाईsocial story 1

अमित आज शादी के बाद पहली बार अपनी पत्नी को ले कर ससुराल जा रहा था. पढ़ाईलिखाई में अच्छा होने के चलते उसे सरकारी नौकरी मिल गई थी. सरकारी नौकरी लगते ही उसे शादी के रिश्ते आने लगे थे. उस के गरीब मांबाप भी चाहते थे कि अमित की शादी किसी अच्छी जगह हो जाए. अमित के गांव के एक दलाल ने उस का रिश्ता पास के शहर के एक काफी अमीर घर में करवा दिया.अमित तो गांव की ऐसी लड़की चाहता था जो उस के मांबाप की सेवा कर सके लेकिन पता नहीं उस दलाल ने उस के पिता को क्या घुट्टी पिलाई थी कि उन्होंने तुरंत शादी की हां कर दी.

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3. एक ही आग में: एक विधवा की अधूरी चाहsocial story2

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं सुगंधा?’’ मीना ने जब यह बात कही, तब सुगंधा बोली, ‘‘क्या सुन रही हो मीना?’’ ‘‘तुम्हारा पवन के साथ संबंध है…’‘‘हां है.’’‘‘यह जानते हुए भी कि तुम विधवा हो और एक विधवा किसी से संबंध नहीं रख सकती,’’ मीना ने समझाते हुए कहा. पलभर रुक कर वह फिर बोली, ‘‘फिर तू 58 साल की हो गई है.’’‘तो क्या हुआ?’’ सुगंधा ने कहा, ‘‘औरत बूढ़ी हो जाती है तब उस की इच्छा नहीं जागती क्या? तू भी तो 55-56 साल के आसपास है. तेरी भी इच्छा जब होती होगी तो क्या भाई साहब के साथ हमबिस्तर नहीं होती होगी?’’ मीना कोई जवाब नहीं दे पाई. सुगंधा ने जोकुछ कहा सच कहा है. वह भी तो इस उम्र में हमबिस्तर होती है, फिर सुगंधा विधवा है तो क्या हुआ? आखिर औरत का दिल ही तो है. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

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4. कॉलगर्ल: होटल में उस रात क्या हुआsocial story 3

मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर.थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा.मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली.

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5. मृगतृष्णा: क्या विजय और राखी की शादी हुईsocial story 4

लौकडाउन में काम छूट जाने के चलते लखन अपने परिवार समेत पैदल ही दिल्ली से अपने गांव मीरपट्टी लौट आया था.लखन के परिवार में उस की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा थे. बेटी का नाम राखी और बेटे का नाम सूरज था.दिल्ली में राखी अपनी मां के साथ दूसरों के घरों में चौकाबरतन का काम करती थी. सूरज अभी छोटा था और सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था. लखन कपड़े की एक फैक्टरी में मजदूर था.लखन गांव के जमींदार चौधरी साहब का पुराना कारिंदा था, इसलिए चौधरी साहब ने तरस खा कर उसे खेत और बगीचे की देखभाल के लिए रख लिया.लखन की पत्नी और बेटी राखी चौधरी साहब के घर में महरी का काम करने लगीं. इस तरह परिवार की गुजरबसर का इंतजाम हो गया.

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6. मजा या सजा: एक रात में बदली किशन की जिंदगीsocial story 5

वह उस रेल से पहली बार बिहार आ रहा था. इंदौर से पटना की यह रेल लाइन बिहार और मध्य प्रदेश को जोड़ती थी. वह मस्ती में दोपहर के 2 बजे चढ़ा. लेकिन 13-14 घंटे के सफर के बाद वह एक हादसे का शिकार हो गया. पूरी रेल को नुकसान पहुंचा था. वह किसी तरह जान बचा कर उतरा. उसे कम ही चोट लगी थी. उसे पता नहीं था कि अब वह कहां है कि तभी एक बूढ़ी अम्मां ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘बेटा, अम्मां से रूठ कर तू कहां भाग गया था?’’

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7. पीर साहब: औलाद की खातिर किस हद तक गई नफीसाsocial story 5

नफीसा को तो पता ही नहीं चला कि नदीम कब उस के पास आ कर खड़ा हो गया था. जब नदीम ने उस के कंधे पर हाथ रखा तो वह चौक पड़ी और पूछा, ‘‘आप यहां पर कब आए जनाब?’ ‘‘जब तुम ने देखा,’’ कहते हुए नदीम ने नफीसा को गौर से देखा.‘‘ऐसे क्या देख रहे हैं?’’ नफीसा ने शरारत भरे लहजे में पूछा.‘तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. ऐसा लगता है जैसे कमरे में चांद उतर आया है,’’ नदीम ने नफीसा की आंखों में झांकते हुए कहा.‘आप की दीवानगी भी निकाह के 7 साल बाद भी कम नहीं हुई है,’’ नफीसा हंसते हुए बोली ‘‘क्या करूं, यह तुम्हारे हुस्न की ही करामात है,’’ नदीम उस की हंसी को गौर से देखे जा रहा था.

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एक बार फिर: क्या प्यार के मरहम से भरे दिल के घाव?

शिखा ने कमरे में घुसते ही दरवाजा बंद कर लिया और धम्म से पलंग पर बैठ गई. नयानया घर, नईनई दुलहन… सबकुछ उसे बहुत अजीब सा लग रहा था. 25 वर्ष की उम्र में इतना सबकुछ देखा था कि बस, ऐसा लगता था कि जीवन खत्म हो जाए. अब बहुत हो चुका. हर क्षण उसे यही एहसास होता कि असंख्य निगाहें उस के शरीर को भेदती हुई पार निकल जातीं और आत्मा टुकड़ेटुकड़े हो कर जमीन पर बिखर जाती.

पलंग पर लेटते ही उस की निगाहें छत पर टिक गईं. पंखा पूरी तेजी से घूम रहा था. कमरे की ट्यूबलाइट बंद थी. एक पीला बल्ब बीमार सी पीली रोशनी फेंक रहा था. अचानक उस की निगाहें कमरे के कोने में फैले एक जाले पर पड़ीं, जिस में एक बड़ी सी मकड़ी झूल रही थी. कम रोशनी के कारण जाला पूरी तरह दिख नहीं रहा था, लेकिन मकड़ी के झूलने की वजह से उस का आभास जरूर हो रहा था.

वह एकटक उसे देखती रही. पता नहीं क्यों जाला उसे सम्मोहित कर देता है. उसे लगता है कि इस जाल में फंसी मकड़ी की तरह ही उस का जीवन भी है. आज एक महीना हो गया उस की शादी को, पर हर पल बेचैनी और घबराहट उसे घेरे रहती है. रोज मां का फोन आता है. हमेशा एक ही बात पूछती हैं, ‘कैसे लोग हैं शिखा, शेखर कैसा है, उस के मातापिता का व्यवहार ठीक है. चल बढ़िया, वैसे भी पढ़ेलिखे लोग हैं.’

मां बारबार उसे कुरेदती पर उस का जवाब हमेशा एक जैसा ही होता, ‘‘हां, मम्मी, सब अच्छे हैं.’’

वैसे भी यह उत्तर उस के जीवन की नियति बन गया था. चाहे कोई कुछ भी पूछता, उस की जबान से तो सिर्फ इस के अलावा कुछ निकल ही नहीं सकता था. चाहे कोई उसे मार ही क्यों न डाले. पहले ही उस ने मांबाप को कितने दुख दिए हैं. पुराने खयालों से जुड़े मांबाप के लिए यह कितना दुखद अनुभव था कि मात्र 25 साल की उम्र में उन्हें उस की दूसरी शादी करनी पड़ी.

उस की आंखें डबडबा आईं. पीली रोशनी उसे चुभती हुई महसूस हुई. उस ने उठ कर लाइट बंद की और दोबारा लेट गई. आंसू बरबस ही निकल कर गालों पर ढुलकने लगे.

3 साल पहले उस का जीवन कितना खूबसूरत था. पंछी की तरह स्वच्छंद, खिलीखिली, पढ़ाईलिखाई करती, खेलतीकूदती एक अबोध युवती. मांबाप भले ही बहुत ज्यादा अमीर नहीं थे, अधिक सुखसुविधाएं भी नहीं थीं, लेकिन घर का माहौल कुल मिला कर बहुत अच्छा था. वैसे घर में था भी कौन. अम्मांबाबूजी, वह खुद और छोटा भाई नवीन जो अभी हाल ही में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर के निबटा था.

दोनों भाईबहनों के बीच गहरी समझ थी. घर पर मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. एक बार बातोंबातों में बहू की बात चलने लगी, पर फिर सभी को लगा कि पहले लड़की के हाथ पीले हो जाएं, फिर नवीन के बारे में सोच सकते हैं. स्वयं नवीन भी यही सोचता था.

शिखा परिवार के इस आकस्मिक निर्णय से हैरान रह गई. ‘अभी से शादी, अभी तो उस की उम्र ही क्या है. पूरी 22 साल की भी नहीं हुई.’ उस ने बहुत विरोध किया.

लाड़प्यार में पली शिखा का विरोध सफल भी हो जाता, पर तभी एक घटना घट गई. पड़ोस के त्रिभुवनजी के लड़के की शादी में शैलेश व उस के परिवार वाले आए. दोचार दिन साथ रहे. त्रिभुवनजी से इन के संबंध बहुत अच्छे थे. उन की लड़की विभा, शिखा की अच्छी सहेली थी. घर पर आनाजाना था. शिखा के परिवार वालों ने भी कामकाज में हाथ बंटाया. इस दौरान सभी लोग न केवल एकदूसरे के संपर्क में आए, वरन प्रभावित भी हुए.

शैलेश का परिवार जल्दी ही विदा तो हुआ, पर थोड़े ही दिन बाद उन का प्रस्ताव भी आ गया. प्रस्ताव था, शैलेश व शिखा की शादी का. शिखा के पिताजी शादी की सोच तो रहे थे, पर यह बात अभी तक केवल विचारों में ही थी. जीवन में कई बार इस तरह की घटनाएं घटती रहती हैं.

आदमी किसी बात के लिए अपनी मानसिकता तैयार करता है, लेकिन एकदम से ही स्थिति सामने आ कर खड़ी हो जाए, तो वह हड़बड़ा जाता है. शिखा के घर वाले इस अप्रत्याशित स्थिति से असमंजस में पड़ गए, क्या करें, क्या न करें.

पहले तो यही सोचा कि अभी से शादी कर के क्या करेंगे. अभी उम्र ही क्या है, पर अंतत: रिश्तेदारों से बातचीत की तो उन की सोच बदल गई.

सभी ने एक ही बात कही, ‘भई, शादी तो करनी ही है. ऐसी कम उम्र तो है नहीं, 22 की होने वाली है. लड़की की शादी समय से हो जाए, वही अच्छा है. फिर 2-3 साल बाद परेशानी शुरू हो जाएगी. तब फिर दुनिया भर में भागते फिरो और दोचार साल और निकल गए तो लड़की को कुंठाएं घेर लेंगी और मांबाप की नींद हराम हो, सो अलग. फिर इस से अच्छा परिवार उन्हें भला कहां मिलेगा.

‘लड़का सुंदर है. अच्छा कमाता है. पिताजी अच्छेखासे पद पर थे. अभी काफी नौकरी बाकी थी. कोई लड़की नहीं, बस, एक छोटा भाई जरूर था. सीमित परिवार. इस से अच्छा विकल्प मिलना बहुत मुश्किल था.’

और फिर शिखा का भी इतना सशक्त विरोध नहीं रहा. वह बिलकुल ही घरेलू लड़की थी. पढ़ने में औसत थी ही और जीवन के बारे में कोई बड़ी भारी योजनाएं थीं भी नहीं. कुल मिला कर चट मंगनी और पट ब्याह. सबकुछ ठीकठाक संपन्न हो गया.

हंसतीखिलखिलाती शिखा विदा हुई और शैलेश के घर पहुंच गई. शुरूशुरू में सब अच्छा रहा, पर धीरेधीरे सबकुछ बदल गया. घर वालों की असलियत धीरेधीरे सामने आ गई. अपने पढ़ेलिखे व कमाऊ लड़के के लिए साधारण सा दहेज पा कर वे जरा भी संतुष्ट नहीं हुए.

रिश्तेदारों की व्याख्या ने आग में घी का काम किया और धीरेधीरे छोटे से अंसतुष्टि के बीज ने दावानल का रूप ले लिया. फिर क्या था, हर बात में कमी, हर बात पर शिकवाशिकायत. सारी बातें इतना गंभीर रूप नहीं लेतीं, लेकिन शैलेश भी अपने मातापिता के सुर में सुर मिला कर बोलने लगा.

शिखा सुदंर थी, पढ़ीलिखी थी, पर उस की मानसिकता घरेलू लड़की की थी. जब शैलेश अपने साथ काम कर रही लड़कियों से शिखा की तुलना करता तो उसे कुंठा घेर लेती. उसे लगता कि उस के लिए तो एक प्रोफैशनल लड़की ही ज्यादा अच्छी रहती.

बस फिर क्या था. शिखा का जीवन बिलकुल ही नरक हो गया. जहां तक उस के बस में रहा उस ने सहा भी, पर जब पानी सिर से गुजरने लगा, तो उसे मजबूरन घर वालों को बताना पड़ा. घर वाले उस की बातें सुन कर सन्न रह गए. उन के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. उन्होंने बहुत हाथपांव जोड़े, मनुहारमन्नतें कीं, पर कोई परिणाम नहीं निकला.

और फिर धीरेधीरे यह भी नौबत आ गई कि छोटीमोटी बातों पर शैलेश उस के साथ मारपीट करने लगा. सारे घर वाले मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते रहते. शिखा को लगा कि अब कोई विकल्प नहीं बचा इसलिए वह घर छोड़ कर वापस मायके आ गई.

मांबाप ने उसे इस हालत में देखा तो उन्हें बहुत धक्का लगा. नवीन तो गुस्से के मारे पागल हो गया. पिताजी ने ताऊजी को बुलवाया. सलाहमशविरा चल ही रहा था कि एक दिन शिखा के नाम तलाक का नोटिस आ पहुंचा.

घर के आंगन में तो सन्नाटा पसर गया. अम्मांबाबूजी दोनों ने जीवन देखा था. वे मतभेद की घटनाओं से दुखी हुए पर उन्हें इस परिणाम का जरा भी एहसास नहीं था. उन्होंने लड़ाईझगड़े तो जीवन में बहुत देखे थे, सभी लोग बातें तो न जाने कहांकहां तक पहुंचने की करते थे, पर अंतत: परिणति सब मंगलमय ही देखी थी. पर अब खुद के साथ यह घटित होते देख वे बिलकुल टूट ही गए. वे ताऊजी को ले कर शैलेश के घर गए भी पर कोई परिणाम नहीं निकला.

इसी तरह दिन गुजरने लगे. मांबाप की हालत देख कर शिखा का कलेजा मुंह को आ जाता था. उसे लगता था कि वह ही इस हालत के लिए जिम्मेदार है. एक गहरा अपराधबोध उसे अंदर तक हिला देता था. वह मन ही मन घुटने लगी. उधर अम्मांबाबूजी व नवीन भी उस की यह हालत देख कर दुखी थे, पर उन्हें भी कुछ नहीं सूझता था. उन्होंने उस से भी आगे पढ़ने के लिए जबरदस्ती फार्म भरवा दिया.

उधर मुकदमा चलने लगा और फिर एक दिन तलाक भी हो गया. शिखा ने इसे नियति मान कर स्वीकार कर लिया. इंसान के जीवन में जब तकलीफें आती हैं, तो उसे लगता है कि वह उन्हें कैसे बरदाश्त कर पाएगा.

पर वह स्वयं नहीं जानता कि उस के मन में सहने की कितनी असीम शक्ति मौजूद है. वह धीरेधीरे अपनी पढ़ाई करने लगी.

इसी तरह काफी समय निकल गया. नवीन की शादी की बात चलने लगी. लोग बातचीत करने आते, पर शिखा का सवाल प्रश्नचिह्न की तरह सब के सामने खड़ा हो जाता था. शिखा को बस, लगता कि धरती फट जाए और वह उस में समा जाए.

नवीन को भी उस की बहुत चिंता थी. उस ने अम्मांबाबूजी पर जोर डाला कि वे दीदी को पुनर्विवाह के लिए राजी करें.

शिखा इस बात को सुन कर बहुत भड़की, चिल्लाई. उस ने 2 दिन तक खाना नहीं खाया, पर फिर जब अम्मां उस के कमरे में आ कर रोने लगीं, तो उसे लगा, बस, अब वह उन की इच्छाएं पूरी कर के ही उन्हें तार सकती है. उस ने खुद को नदी में बहती हुई लकड़ी की तरह छोड़ दिया, जिसे धारा बहाती ले जा रही है.

बस, जल्दी ही शादी हो गई. न कोई उमंगउल्लास, न कोई धूमधड़ाका. बहुत ही सीधेसादे ढंग से. उस ने वरमाला के समय ही तो दूल्हे को पहली बार देखा, पर कोई एहसास उस के मन में नहीं जगा.

बहुत ज्यादा लोग इकट्ठा नहीं थे, फिर भी उसे ऐसा लग रहा था कि वह उन्हें बरदाश्त नहीं कर पा रही है. पलपल वह रस्में दोहराई जा रही थीं. हवनकुंड में अग्नि प्रज्ज्वलित हो गई थी. छोटी व सूखी लकड़ियां चटकचटक कर जल रही थीं.

कैसी किस्मत है उस की, यही सब दोबारा दोहराना पड़ रहा है. 7 फेरे, पहले और किसी के साथ वचन… अब किसी और के साथ. पहले भी तो पवित्र अग्नि के सामने मंत्र उच्चारित किए गए थे, किसी ने मना नहीं किया था. क्यों नहीं निभा पाए इस वचन को? ऐसा क्यों हो जाता है?

पंडितजी ने सिक्के में सिंदूर भर कर नीलेश को पकड़ा दी. उस ने मुसकराते हुए शिखा की मांग में सिंदूर भर दिया. उस की सूनी मांग एक बार फिर सिंदूर से चमकने लगी. सिक्के का सिर पर स्पर्श होते ही उसे अजीब सा लगा. क्यों दोहराया जा रहा है उस के साथ ये सब. क्यों कोई मंत्र इतना ताकतवर नहीं रहा कि वह उस के सिंदूर को बचा पाता. छोटीछोटी बातें उस की मांग का सिंदूर उजाड़ गईं… तो फिर… उस की आंखें गीली हो गईं.

और फिर वह विदा हो कर पति के घर आ गई. ठीक वैसे ही जैसे कभी अम्मांबाबूजी का साथ छोड़ कर शैलेश के साथ चल दी थी. तब भी यही दोहराया गया था कि यही पति परमेश्वर है. यह घर ही सबकुछ है. अब ये ही तुम्हारे मातापिता हैं. तुम्हें मोक्ष तभी मिल पाएगा, जब तुम्हारी अंतिम यात्रा पति के कंधों पर जाएगी, पर शैलेश ने तो जीतेजी मोक्ष दिला दिया. जीतेजी उस की अंतिम यात्रा संपन्न करा दी. और अब यहां नए घर में… अब वह फिर पति के कंधों पर चढ़ कर मोक्ष की कामना करेगी.

तभी दरवाजे की आहट से वह चौंक गई. आंखों से आंसू पोंछते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने नीलेश मुसकराते हुए बोला, ‘क्या बात है, क्यों अंधेरा कर रखा है.’ वह क्या कहती, बस चुप ही रही.

नीलेश ने शिखा को सोफे पर बिठाया और खुद भी सामने सोफे पर बैठ गया.

‘तुम परेशान हो.’

वह फिर कुछ नहीं बोली. बस, आंखों से अश्रुधारा बहने लगी.

‘शिखा, पता नहीं, तुम क्यों अपराधबोध से ग्रसित हो. इतनी बड़ी दुनिया है. तरहतरह के लोग हैं. सब की मानसिकता अलगअलग है. यदि अम्मांबाबूजी ने तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जोड़ दिया, जिस के मापदंडों पर तुम खरी नहीं उतर सकीं तो क्या तुम अपनेआप को खत्म कर लोगी. एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिस ने केवल भौतिकवादी मापदंडों के आगे तुम्हें नकार दिया. तुम्हारी भावनाओं को बिलकुल नहीं समझा. एक ऐसे व्यक्ति के दिए गए कटु अनुभव को तुम क्यों जिंदगी भर संजो कर रखना चाहती हो.’

वह एक क्षण रुका और शिखा के आंसू पोंछते हुए बोला, ‘जीवन में हम दिनरात देखते हैं, इतनी विसंगतियों से भरा है जीवन. हर पल कहीं न कहीं किसी व्यक्ति के साथ ऐसा कुछ घटता ही रहता है, ऐसे में व्यक्ति क्या करे. क्या वह किसी दूसरे के द्वारा की गई गलत हरकत से अपने अस्तित्व को मिटा डाले. कोई दूसरा अगर बुरा निकल जाए तो क्या तुम अपने सारे जीवन को अभिशप्त कर लोगी?’

वह रोने लगी, ‘नहीं, पर मुझे लगता है कि आप के साथ कहीं नाइंसाफी तो नहीं हुई है. मैं आप के लायक…’

‘तुम भी बस,’ नीलेश बीच में ही बोला, ‘अगर तुम्हारे साथ पहले कुछ घट गया हो, जिस के लिए तुम जिम्मेदार नहीं हो तो, क्या तुम्हारे व्यक्तित्व पर प्रश्नचिह्न लग गया. शिखा, तुम्हारा व्यक्तित्व बहुत अच्छा है. तुम्हारी सहजता, सौम्यता सभी कुछ अच्छा है. व्यक्तित्व का मूल निर्माण आदमी के आंतरिक गुणों से निर्मित होता है. अगर हमारे बाहरी जीवन में कुछ गलत हो गया तो इस का मतलब यह नहीं कि हम गलत हो गए.’

और सही बात तो मैं ने तुम से शादी कोई सहानुभूति की वजह से नहीं की. मैं ने तुम्हें देखा, तुम अच्छी लगी. बस, यही पर्याप्त है, पर अब आज से नया जीवन जीने का संकल्प लो. बीते हुए कल की छाया कहीं से अपने जीवन पर मत पड़ने दो. अब तुम्हें मेरे साथ जीना है. मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है.’

शिखा क्या कहती. उसे लग रहा था कि उस के जीवन पर छाई कुहासे की परत धीरेधीरे हटती जा रही थी. वह नीलेश से लिपट गई और उस के सीने में मुंह छिपा लिया. उस के आंसू निकल कर नीलेश के सीने पर गिर रहे थे. उसे लगा कि उस की पुरानी जिंदगी की कड़वाहट आंसुओं से धुलती जा रही थी. अब शिखा खुश थी, बहुत खुश.

ममता : नवजात शिशु का मोह

दिनेश और महेश अपने घर के सूरजचांद थे. मांबाप ने उन्हीं की रोशनी से अपनी जिंदगी को रोशन करना चाहा. दोनों को कालेज में पढ़ने के लिए लखनऊ भेजा गया.

नवाबों की नगरी को देख कर वे दोनों दंग रह गए. लखनऊ की हवा लगते ही वे पढ़ाईलिखाई भूल गए. वे कभीकभार ही कालेज जाते, बाकी समय मीना बाजार की हवाखोरी में बिताते, जहां हमेशा सुंदरियों का बाजार सा लगा रहता.

उन दोनों के पिताजी फौज में कर्नल थे. वे हर महीने मोटी रकम भेजते और हमेशा चिट्ठियों में लिखते कि पढ़ाई में किसी तरह की लापरवाही न करना, पर लाड़ले तो ऐश कर रहे थे.

उन्होंने 2 कमरे का मकान किराए पर लिया हुआ था. छोटा भाई महेश शुरू में कुछ पढ़तालिखता रहा, पर जब उस ने बड़े भाई को मस्ती करते देखा, तो वह भी उसी रास्ते पर चल पड़ा. वे दोनों अपनीअपनी प्रेमिकाओं को ले कर शहीद पार्क में गपशप करते रहते.

कुछ समय बाद उन के पिता का तबादला जम्मू हो गया. वे दोनों चिट्ठी में ?ाठ लिखते रहते कि उन की पढ़ाई ठीकठाक चल रही है. साथ ही, महंगाई का रोना रोते हुए वे ज्यादा पैसे भेजने को लिखते. उन के पिता अब पहले से भी ज्यादा रुपए भेजने लगे थे.

दिनेश के यहां एक लड़की ममता का काफी दखल रहता था, जो अपनी छोटी बहन के साथ पढ़ने आई थी. वे दोनों खूब सैरसपाटा करते. आखिर में दोनों ने शादी कर ली.

फिर ममता की छोटी बहन की मुहिम भी शुरू हो गई. महेश को लगा कि वह दौड़ में पीछे छूटा जा रहा है. उस ने भी हाथपैर मारे और छोटी बहन के साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

प्रेमिकाएं अब पत्नियां बन चुकी थीं. पत्नियों को लिए वे दोनों अपनेअपने कमरों में पड़े रहते. बहाना पढ़ाई का था, सो खर्च के लिए मोटी रकम भी आ रही थी.

एक बार उन के पिता अचानक लखनऊ आ पहुंचे. दोपहर के 2 बजे वे लाड़लों के यहां दाखिल हुए. सब खाना खा कर सो रहे थे.

पिताजी ने दरवाजा खटखटाया, तो ममता ने नाइटी पहने ही दरवाजा खोला.

कर्नल साहब कमरे के अंदर पैर रखते हुए बोले, ‘‘दिनेश नहीं है क्या?’’

पिताजी की आवाज सुनते ही दिनेश पहचान गया. उस की नींद हवा हो गई कि अब आफत आ गई है.

उस ने दौड़ कर पिता के पैर छुए. पिताजी उस लड़की का सिंदूर देख कर सब समझ गए.

दिनेश पैर छू कर सीधा हो ही रहा था कि कर्नल साहब ने उस के गाल पर जोरदार थप्पड़ दे मारा.

थप्पड़ पड़ते ही दिनेश तिलमिला गया और उस ने पिता का हाथ पकड़ लिया. अब कर्नल साहब के गुस्से का पारावार न था. उन्होंने फौजी हाथ दिखाए, तो बेटे की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

इस हादसे के बारे में सुन कर छोटा लड़का भी दौड़ कर आया. पीछेपीछे उस की पत्नी भी आ रही थी.

कर्नल साहब ने इस जोड़े को देखा, तो गुस्से की बची आग उन की सारी देह को धधकाने लगी. बड़े बेटे को छोड़ कर वे छोटे बेटे पर टूट पड़े. उसे इतना मारा कि खुद की सांस फूल गई.

अब वे लड़कों को छोड़ बहुओं की ओर बढ़े. वे दोनों पलंगों के नीचे जा घुसी थीं. इस नजारे को देखने के लिए पड़ोसियों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी.

कुरसी का एक पाया निकाल कर कर्नल साहब उन दोनों बहुओं पर गरजे, ‘‘बताओ, कौन हो तुम दोनों?’’

दोनों बहुओं की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने कोर्ट मैरिज की बात दोहराई. कर्नल साहब के डंडे पड़ने से सुकोमल लड़कियां कठोर होती जा रही थीं. ऊपर से नीचे तक कोई जगह बाकी नहीं थी, जहां डंडा न पड़ा हो.

लड़के तो पहले ही भाग गए थे, अब बहुएं भी रोतीबिलखती वहां से भागीं. कर्नल साहब डंडा लिए उन्हें दौड़ाए चले जा रहे थे.

फिर कर्नल साहब लौट कर आए और सारा सामान सड़क पर फेंक दिया. ताला बंद कर उन्होंने चाबी मकान मालिक को दे दी. साथ ही, यह भी कहते गए कि उन में से किसी को अंदर मत घुसने देना.

घर पहुंच कर कर्नल साहब पत्नी पर भी खूब बिगड़े, ‘‘तुम तो मेरी जान खा गई कि बच्चों को पैसों की कमी न पड़े. दोनों नालायक तो वहां स्वयंवर रचाए बैठे हैं. खबरदार, उन निकम्मों को घर के अंदर भी पैर रखने दिया… अगर रखने दिया, तो इस बार तुम्हारा नंबर आएगा.’’

वे बेचारे चारों कुछ दिनों तक यों ही इधरउधर भटकते रहे. पर महेश का बंधन अभी ढीला था, सो उस ने हाथ झटकना ही सही समझ. एक दिन उस की पत्नी भाग खड़ी हुई. बाकी तीनों के सामने खाने के लाले पड़े थे. जैसतैसे 2 महीने काटे, पर अब काम नहीं चल रहा था.

आखिर महेश घर के लिए चल पड़ा. उस ने अपनी गलती कबूल कर ली. माफी मांगने के बाद उसे घर के भीतर जाने की इजाजत मिल गई.

लेकिन बड़ा भाई दूसरी ही मिट्टी का बना था. उस ने घर का खयाल छोड़ ममता के साथ रहने का इरादा किया. उस ने ममता को प्राइवेट स्कूल में नौकरी दिलवाई और खुद ट्यूशन पढ़ाने लगा.

जैसे पानी के मिलने से सीमेंट मजबूत हो जाता है, वैसे ही कंगाली ने दोनों के संबंधों को और भी मजबूत बनाया.

किसी तरह 2 साल बीत गए, पर अभी भी उन दोनों के तन पर पिताजी के दिए कपड़े ही थे. ममता को बच्चा हुआ, तो दिनेश की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. वह सुबह 5 बजे उठता और रात 11 बजे सोने का मौका मिलता. सुबह से शाम तक काम ही काम था.

काम की मार ने संबंधों में खटास लानी शुरू कर दी, पर नवजात शिशु का मोह दोनों को बंधन में बांधे रहा.

हाय री ममता, दुनिया चाहे भूल जाए, पर मां अपने जाए को कभी नहीं भूलती. मां अपने बेटे का मुंह देखने के लिए बेचैन हो उठी. उस ने चोरी से दिनेश के नाम एक चिट्ठी लिखी.

चिट्ठी पा कर दिनेश घर जाने के लिए तैयार हुआ, तो ममता बोली, ‘‘मैं अकेली यहां क्या करूंगी?’’

‘‘तो तुम भी चलो,’’ वह बोला.

ममता को गांव के बाहर बैठा कर महेश घर पहुंचा. दरवाजे पर मां मिली, जो उसे देखते ही फूटफूट कर रोने लगी. फिर पूछा कि और कोई साथ में है?

दिनेश ने ‘हां’ में सिर हिलाया और गांव के बाहर चल पड़ा. साथ में मां भी चली. ममता और बच्चे को देख कर उस का दिल खुशियों से भर उठा.

मां ने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. लेकिन कर्नल साहब के डर से वह उन्हें घर चलने को न कह सकी.

थोड़ी देर बाद दिनेश अपनी पत्नी और बच्चे के साथ लौट गया. कुछ समय बाद कर्नल साहब घर लौटे, पर दिनेश के आने की बात उन्हें पता न चली.

आखिर मां को एक उपाय सूझ.

उस ने बड़े पोस्ट औफिस से ममता के नाम से अपने घर के पते पर एक तार कर दिया.

अगले दिन वह तार कर्नल साहब को मिला. उन्होंने जब उसे पढ़ा, तो उन के हाथ कांपने लगे, दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

तार में लिखा था, ‘आप का लड़का कई दिनों से बीमार था. उस के सिर में तेज दर्द हो रहा था. पर अब दर्द ठंडा हो गया है और आज वह दुनिया से कूच कर गया?है. मैं ने लाश को 2 दिन के लिए रोक रखा है. अगर आप चाहें, तो उस के आखिरी दर्शन कर सकते हैं.’

कर्नल साहब ने घबरा कर पत्नी को बताया, लेकिन वह तो सब जानती थी. उसी का रचा खेल था. मगर रोना भी जरूरी था, सो वह गला फाड़फाड़ कर रोने लगी.

जल्दी ही कर्नल साहब बीवी को साथ ले कर बेटे का दाह संस्कार करने चल दिए. पूछताछ करते हुए एक तंग गली की सीलन भरी कोठरी के सामने जा पहुंचे. फिर खुद ही दरवाजा ठेल कर अंदर पहुंचे.

दिनेश ने उन्हें देखा, तो कलेजा धक से रह गया कि इस बला ने हमारा पीछा यहां भी नहीं छोड़ा. ममता भी उन्हें देख कर कांप उठी, पर फौलादी कर्नल अब मोम बन चुके थे और अपने ही ताप से पिघल रहे थे.

कहां तो वे बेटे के लिए कफन साथ ले कर आए थे, लेकिन जब वह जिंदा हालत में मिला, तो खुशी की सीमा न रही. ऐसा लगा, मानो अंधे को दोनों आंखें मिल गई हों.

दिनेश ने डरतेडरते पिता के पैर छुए. कर्नल साहब उसे गले से लगा कर रोने लगे. उन्हें रोते देख सभी रोने लगे. ये आंसू दुख के नहीं, बल्कि मिलन के थे.

कर्नल साहब हाथ में लिए कफन को फाड़ते हुए बोले, ‘‘मैं अपनी गलती कबूल करता हूं. तुम्हें सबकुछ करने की छूट है, पर पहले घर चलो.’’

जल्दी ही सब घर की ओर चल दिए. आगेआगे पिताजी चल रहे थे, मां बच्चे को गोदी में लिए थी. दिनेश और ममता सामान लिए पीछेपीछे जा रहे थे.

कर्नल साहब मुड़े कि बच्चे को धूप लग रही होगी. उन्होंने अपने सिर से तौलिया उतार कर बच्चे को ढक दिया.

पर कर्नल साहब का जी इतने से नहीं भरा, उन्होंने खुद बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उसे धूप से बचाने के लिए अपनी रफ्तार तेज कर दी.

तभी दिनेश धीरे से बोला, ‘‘मां, पिताजी में अचानक बदलाव कैसे हो गया?’’

‘‘क्या करूं, मैं तुम्हारे बिना बहुत बेचैन थी. तुम्हें पाने के लिए पहले मैं ने तुम को मरा बताया, तब कहीं जा कर जिंदा पाया.’’

मौत पर मौज : रघू के दर्द पर किसकी बांछें खिली

रघु का बापू मर गया. गांव के सब लोग आ कर रघु को धीरज बंधा रहे थे.  गांव का सेठ दीनदयाल भी आया. वह रघु से 20 हजार रुपए मांगने लगा.

रघु के बाप ने एक बार रघु के इलाज के लिए पैसे लिए थे. ब्याज दर ब्याज बढ़ कर अब वे 20 हजार रुपए हो गए थे.

बैठते ही सेठ दीनदयाल ने कहा, ‘‘रघु, यह दिन सभी को देखना पड़ता?है… इस में रोने की क्या बात है. जग की रीत तो सभी को निभानी पड़ती है.’’

‘‘सेठजी, मगर बापू की उम्र ज्यादा नहीं थी. अगर वे थोड़े दिन और जीते, तो आप का कर्ज उतार जाते.’’

‘‘होनी को कौन टाल सकता है. जो होना था, हो गया. अब तो उन का क्रियाकर्म करना बाकी है और फिर मेरा कर्ज भी उतर जाएगा.’’

‘‘मगर सेठजी, क्रियाकर्म और आप के कर्ज के लिए रुपया आएगा कहां से?’’ रघु ने अपनी चिंता जताई.

‘‘इस में चिंता की क्या बात?है… तेरे पास जमीन है.’’

‘‘3 बीघा जमीन से क्या होता है…’’ रघु ने कहा, ‘‘आप तो जानते?हैं, घर में 6 लोग हैं… उन का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से होता है… उस पर यह क्रियाकर्म…’’

‘‘रघु, चिंता करने से कुछ नहीं होगा. तेरे बापू ने कभी चिंता नहीं की, जबकि उस ने तेरे लिए बहुत दुख देखे हैं…’’ सेठजी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या तू उन का अच्छी तरह क्रियाकर्म भी नहीं कर सकता? ऐसे में उन की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? आत्मा बेचारी इधरउधर भटकती रहेगी.

‘‘इस से तू भी परेशान रहेगा और तेरे बालबच्चों समेत पूरे गांव वाले भी परेशान होंगे…’’ सेठजी ने रघु की नीयत भांपते हुए कहा, ‘‘रुपए की परवाह मत करना, मु?ो से बन पड़ा तो मैं ही दे दूंगा.’’

रघु सेठजी की बात सम?ा गया. वह उस की जमीन हड़पना चाहता था, ताकि वह जमीन ले कर उसी से उस जमीन में खेती करवा कर अच्छाखासा मुनाफा कमाए.

इसलिए रघु ने पूछा, ‘‘मगर आप मु?ो रुपए किस शर्त पर देंगे? मेरे पास तो कुछ भी देने को नहीं है?’’

‘‘अरे, रघु कैसी बात करता है, तेरे पास सबकुछ है. फिर तेरा बाप तेरे लिए 3 बीघा जमीन छोड़ गया है, उसे गिरवी रख कर रुपए ले जाना. जब रुपए आ जाएं, तो जमीन छुड़ा लेना,’’ सेठजी ने कहा, तो रघु सम?ा गया कि वह दिन कभी नहीं आएगा, जिस दिन वह अपनी जमीन सेठ दीनदयाल से छुड़ा पाएगा.

वह सोच में डूब गया कि क्रियाकर्म करना जरूरी है. अगर वह ऐसा नहीं करेगा, तो गांव में कोई उस की मदद नहीं करेगा. यहां तक कि उसे गांव या जाति से बाहर कर दिया जाएगा.

रघु को खेतीबारी के लिए सभी का सहयोग चाहिए था. बिना सहयोग के खेतीबारी नहीं होती?है. बीज, पानी, मजदूर और रुपएपैसे, ये सब गांव से ही मिल सकते हैं.

यदि वह क्रियाकर्म करता है, तो उस की एकमात्र पूंजी वह जमीन सेठ के पास चली जाती है. तब वह एक मजदूर बन कर रह जाएगा. तब वह अपनी माली हालत कैसे सुधार पाएगा, क्योंकि उस पर कर्ज चुकाना और खेती करना कैसे मुमकिन है, यह बात वह अच्छी तरह जानता था.

वह सोच रहा था कि किसी तरह क्रियाकर्म टल जाता, तो उसे फायदा था. वह चाहता था कि मौत पर मौज न मनाई जाए. इस से गरीब आदमी मर जाता है. यह बात उस ने अपने कई दोस्तों को सम?ाई कि एक तो मरने वाले का दुख, ऊपर से कर्ज की मार. एक गरीब कैसे यह सह सकता है. मगर किसी ने उस की बात न मानी.

इस बारे में वह देर तक सोचता रहा, तो उसे लगा कि क्रियाकर्म न करना ही अच्छा है. मगर वह गांव वालों को नाराज भी नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने कोई बीच का रास्ता निकालने की सोची.

आखिरकार रघु को एक उपाय सूझ गया. वह बहुत खुश हुआ. उस ने पंडित रामसुख से बात की. फिर उन से अस्थि विसर्जन का मुहूर्त निकलवाया और तब हरिद्वार जाने की तैयारी करने लगा.

यह बात सुन कर गांव वाले बड़े खुश हुए कि चलो, रघु अपने बापू की अस्थियां गंगा में बहाने ले जा रहा है, इसलिए सभी ने उसे धूमधाम से विदाई दी. जिस से जो बन पड़ा, वह दिया, क्योंकि वह पहला आदमी था, जो पिता की अस्थियां मरने के तुरंत बाद हरिद्वार ले जा रहा था.

रघु बस में बैठ कर हरिद्वार चला गया. इस बात को तकरीबन 8 दिन हो गए, मगर रघु लौट कर न आया, जबकि उस के बापू के क्रियाकर्म का एक दिन बाकी रह गया था. इस वजह से सेठ दीनदयाल और पंडित रामसुख बहुत चिंता में थे.

उन्होंने बहुत सोचसम?ा कर चौपाल पर गांव वालों की एक बैठक बुलाई, जहां पर यह फैसला होना था कि रघु के बाप के क्रियाकर्म का क्या होगा? अगर रघु नहीं आया, तो क्या किया जाएगा?

पंडितजी अपनी दानदक्षिणा की चिंता में थे. उन्हें क्रियाकर्म के दिन पलंग, बिस्तर वगैरह मिलना था, जबकि सेठ दीनदयाल की निगाह रघु की 3 बीघा जमीन पर थी.

गांव वाले इसलिए चिंता में डूबे थे कि अगर रघु ने बापू का क्रियाकर्म न किया, तो गांव में उस की आत्मा कहर ढा सकती है, इसलिए गांव में चौपाल पर बैठक जमा थी.

तभी सामने से डाकिया आता दिखाई दिया. उस ने सेठजी, पंडित रामसुख और सभी गांव वालों के लिए 3 निमंत्रणपत्र दिए.

निमंत्रणपत्र में लिखा था, ‘गांव दैपालपुर को बड़ी खुशी के साथ सूचित किया जाता है कि मेरे बापू किसनाजी की आत्मा की शांति के लिए हरिद्वार के सर्वसिद्ध परम योगेश्वरजी महाराज की इच्छानुसार हरिद्वार में 18 जून, 2013 को क्रियाकर्म संपन्न होना तय हुआ है.

आप सब महानुभावों से करबद्ध निवेदन है कि यहां पधार कर मेरे बापू की आत्मा को मोक्ष प्रदान करने में सहयोग करें.

एक शोकाकुल पुत्र का निवेदन.

रघु,

गांव दैपालपुर,

हाल मुकाम,

हर की पौड़ी,

हरिद्वार.’

निमंत्रणपत्र पढ़ कर सेठजी और पंडितजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. मगर गांव वाले खुश थे कि चलो, रघु अपने पिता का क्रियाकर्म भी हरिद्वार में कर रहा है.

इधर रघु खुश था कि मौत पर मौज मनाने वालों की इच्छा पूरी नहीं हो पाई, क्योंकि वे 8 सौ किलोमीटर दूर आने से तो रहे. साथ ही, उस की जिंदगीभर की कमाई देने वाली जमीन भी लुटने से बच गई.

मुहिम : जमींदार बाबू का घोड़ा

देश में बदलाव की नई बयार बह रही थी और जाहिर है कि हर नई हवा का असर पहलेपहल शहरों और उन के नजदीक के गांवों तक आता है. इसी तरह यह असर समोहा गांव तक भी आया और जहां पहले जमींदार और उन के चुनिंदा कारिंदे ही थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे थे, वहां अब आबादी का 60 फीसदी हिस्सा पढ़लिख गया था.

अब तो गांव की लड़कियां भी पढ़नेलिखने में काफी आगे निकल गई थीं. यहां तक कि बैजू मास्टर की बेटी कांती पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद में भी काफी आगे निकल गई. उसे लंबी दौड़ में कमिश्नरी लैवल पर इनाम मिला. जब वह सवेरे सड़क पर दौड़ लगाती, तो साथ में 3-4 और लड़कियां भी होतीं.

लड़कियों की देखादेखी एक महीने बाद लड़कों ने भी इसी उछलकूद में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी.

गांव के बाहर मैदान में 2 खंभे गाड़े गए, जिन में सांझ को वौलीबौल का नैट बांधा जाता और खेल चालू हो जाता. छोटेछोटे बच्चे जमा हो कर ताली पीटते. गांव की सारी रौनक ही जैसे वहां जमा हो जाती.

पुराने जमींदार शिवधर सिंह का पोता अनिल इस आयोजन की जान होता था. लंबा, छरहरा, गोरा, सलोने चेहरे वाला अनिल पढ़ाई के मामले में भी किसी से पीछे नहीं था.

पहले तो लड़कियों की दौड़ वगैरह पर गांव वालों ने नाकभौं चढ़ाई और कहा, ‘यह उलटा नाच किसी भले काम के लिए नहीं हो रहा है.’

मगर जब लड़कों का खेल क्लब तैयार हो गया और उस क्लब की अगुआई अनिल करने लगा, तब जमींदार साहब को भी मजबूरन कहना पड़ा, ‘खेलकूद से तंदुरुस्ती बनती है और नौकरी वगैरह में भी काफी सहूलियत हो जाती?है.

‘हमारा अनिल तो शुरू से ही पुलिस अफसर बनने लायक लगता है. अब खेलकूद की वजह से तो वह सीधे कप्तानी करेगा.’

हालांकि जब केवल लड़कियां ही खेलकूद में दिलचस्पी लेती थीं, तब उन का कहना था कि यह सब लड़कियां बिगड़ कर रहेंगी. सालभर में भागमभाग न लग जाए, तो देखना.

गांव के बहुतेरे लोगों की भी यही राय थी. वे लड़कियों को घर की दहलीज से बाहर नहीं देखना चाहते थे. मगर खुलेआम राय जाहिर करना उन के बस की बात नहीं थी और छिप कर चलने वाली चर्चा भला कहीं रुक पाती है? यहां भी कैसे रुकती? ऐसे लोगों का हालांकि खेलकूद से कोई वास्ता नहीं था, मगर कुढ़ने से तो था.

यह कुढ़न तब और बढ़ गई, जब एक ही मैदान में लड़कियों का भी खेल का अभ्यास शुरू हो गया.

अनिल ने घर आ कर बैजू मास्टर की बेटी कांती को उसी मैदान में खेल के अभ्यास का न्योता देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी देखादेखी लड़कों में भी खेल भावना जागी है. अगर तुम सभी वहां खेलो, तो खेल का लैवल उठ सकेगा. हर तरफ लड़केलड़कियों की बराबरी की बात होती है, इसलिए बराबरी के जमाने में भेदभाव की क्या जरूरत?’’

मास्टर हो जाने के बावजूद बैजू मास्टर पुराने समय के असर वाले और जमींदार का दबदबा देखे हुए इनसान थे. यह बात और थी कि उन्होंने नए जमाने की हवा को पहचाना था.

गांव में पहलेपहल बेटी को ऊंची तालीम दी थी और नई हवा को वे दकियानूसी निगाह से न देख कर समाज के लिए कल्याणकारी मानते थे.

उन्होंने अनिल की बात मान ली. कांती ने भी खुशीखुशी अनिल की पेशकश का स्वागत किया. उस के बाद कांती के हाथ की बनी चाय पी कर जब अनिल चला गया, तो दलित तबके के बैजू मास्टर का रोमरोम पुलक रहा था. उन्हें लग रहा था कि सचमुच नई हवा में दम है, वरना उन की छुअन से भी परहेज बरतने वाले जमींदार का पोता यहां चाय कैसे पीता?

बैजू मास्टर को कई लोग आगाह कर चुके थे कि लड़कों के साथ लड़की का इतना घुलनामिलना, मेलमुहब्बत ठीक नहीं है. लड़के का कुछ बिगड़ता नहीं, जबकि लड़की बरबाद हो जाती है. मगर मास्टर साहब को कांती पर भरोसा था. उन्हें अनिल की शराफत पर भी पूरा यकीन था.

अनिल और कांती दोनों ने एकसाथ फर्स्ट डिवीजन में एमए का इम्तिहान पास किया. दोनों एकदूसरे को गहराइयों से चाहने लगे. लेकिन उन की चाहत में छिछोरापन न था.

वे थके पंछी की तरह अब जैसे अलसा कर एक डाल पर ही बैठने को अधीर हो उठे. आंखों की भाषा कब अधरों तक आई, यह तो नहीं कहा जा सकता, मगर जब कांती का नाम पीसीएस में आ गया, तो उस ने अनिल से शादी करने का बाकायदा ऐलान कर दिया.

गांव में कांती के पीसीएस बनने की खबर फैलने से पहले जमींदार परिवार के साथ एक दलित लड़की के ब्याह की बात गांवभर में गूंज गई.

जिसे देखो, उस के मुंह से यही चर्चा, लेकिन इतने नए विचार अभी गांव वालों के गले नहीं उतर पा रहे थे.

यह खबर जमींदार बाबू शिवधर सिंह तक पहुंची. उन्हें लगा कि जन्मभर की ठकुरा शान एक ही बार में जिबह हुई जा रही है.

उन्होंने कहा, ‘‘अनिल की यह हैसियत नहीं कि वह मेरी इच्छा के खिलाफ चूं तक कर सके. जिस दिन ऐसी नौबत आएगी, उस दिन मेरी बंदूक में 2 गोलियां मौजूद होंगी.’’

इन गोलियों की चर्चा बैजू मास्टर तक पहुंची और उन्होंने अनिल से ब्याह की दिली इच्छा रखते हुए भी खूनखराबे के डर के चलते कांती से अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा. पर न तो कांती अपने फैसले से टस से मस हुई और न ही अनिल.

अनिल से उस के दादा शिवधर सिंह ने कहा, ‘‘अभी तू मेरी जायदाद की बदौलत अंगरेजी बोलता है. अगर तू ने यह जिद न छोड़ी, तो मैं तुझे दानेदाने को मुहताज कर दूंगा.

‘‘वह भुक्खड़ परिवार की बेटी, जो जायदाद के चलते ही तेरे पीछे पड़ी है, खुद तुझ से बात करना बंद कर देगी. कुछ समझ? लाठी भी नहीं टूटेगी, सांप भी मर जाएगा. 2 गोलियां बरबाद करने से क्या फायदा?’’

तब अनिल ने पक्के इरादे के साथ कहा, ‘‘दादाजी, अब तो आप समझदारी की बात करने लगे हैं. गोली से चल कर जतन पर उतर आए हैं.

‘‘मेरी एक बात सुन लीजिए… न तो मुझे और न कांती को आप की जायदाद से एक पैसा चाहिए. दुनिया में इतने सारे लोग क्या जायदाद ले कर ही पैदा होते हैं? अपने हाथपांव का भरोसा ही सब से बड़ा भरोसा होता है.

‘‘फिर भी आप की जानकारी के लिए बता दूं कि कांती डिप्टी कलक्टरी पास कर चुकी?है और मुझे भी कहीं न कहीं दो रोटियों का जुगाड़ हो ही जाएगा. मैं ऐसी जगह को दूर से ही सलाम करता हूं,’’ यह कह कर वह वहां से तीर की तरह से निकल आया.

अनिल जाने को तो चला गया, पर जमींदार बाबू के दिल को हिला गया.

जमींदार के साथसाथ वे ममता से भरे दादा भी थे, जिन्होंने बेटे के न रहने पर पोते की परवरिश की थी. उन का दिल पोते के प्रेम और मर्यादा दोनों की तुलना बन गया.

लेकिन थोड़ी ही देर में वे एक निश्चय पर पहुंच गए. उन्होंने अपनी राइफल कंधे पर टांगी. उन के सिर पर पगड़ी थी और पैर घोड़े की रकाब पर थे.

इधर बैजू मास्टर के घर में अनिल कह रहा था, ‘‘मुझे दादाजी ने जायदाद से बेदखल कर दिया है. मैं इस समय केवल अनिल हूं, जो कांती को प्यार और विश्वास की छांव जरूर दे सकता?हूं, लेकिन जायदाद नहीं.

‘‘आप लोग इस मुगालते में भी न रहिएगा कि मैं कांती के डिप्टी कलक्टरी में आ जाने की वजह से शादी के लिए तैयार हूं. दरअसल, यह बात महीनों पहले हम दोनों में तय थी. आज अफसरी पाने की खुशी में इस के मुंह से निकल गई.’’

बैजू मास्टर मुसकराते हुए बोले, ‘‘यह पीसीएस में आई है, तो तुम आईएएस में आओगे. जब तुम्हारे साथ जायदाद थी, तब जरूर मुझे हिचक हो रही थी कि लोग कहेंगे, मास्टर ने जायदाद के लोभ में लड़की का संबंध अनिल के साथ करना चाहा. मगर अब मुझे इस रिश्ते पर कोई एतराज नहीं है.

‘‘जमींदार बाबू बड़े आदमी हैं, उन के पास जायदाद है, पर मेरे पास भी तुम्हारे लिए नमक, रोटी की कमी नहीं है. उन्हें ठसक ज्यादा प्यारी है और मुझे औलाद की खुशी.’’

तभी जमींदार बाबू का घोड़ा सामने से आता दिखाई पड़ा. उन की फरफराती हुई सफेद मूंछें एक दहशत सी पैदा कर रही थीं.

राइफल देख कर एकबारगी तो बैजू मास्टर सिर से पैर तक कांप गए. मगर दूसरे ही पल उन्होंने सोचा कि मैं पत्नी समेत कांती और अनिल के आगे आकर उन की हिफाजत करूंगा. अपने जीतेजी औलाद की तमन्नाओं का खून नहीं होने दूंगा.

जमींदार बाबू ने पास आ कर घोड़े पर बैठेबैठे ही कहा, ‘‘मैं और मेरी जायदाद दोनों से ही तो सब को चिढ़ है. मेरे दिल में जैसे औलाद का दर्द ही नहीं है… और मेरी जायदाद जैसे तुम लोगों की है ही नहीं. मुझे कौन छाती पर लाद कर ले जानी है… आज मरा कल दूसरा दिन… 70 तो पार कर ही चुका हूं.’’

फिर कुछ पल रुक कर वे आगे बोले, ‘‘बैजू, वाकई मास्टर तो तुम्हीं

हो. हमारे पोते और बहू दोनों को अपनी ओर मिला कर मुझ बूढ़े को अकेला छोड़ दिया.

‘‘अरे, पहले कभी बात तो चलाई होती… इतनी जल्दी तो कोई अदालत भी फैसला नहीं सुना सकती. अब अपनी गलती की जिम्मेदारी मुझ पर डाल रहे हो.’’

उन्होंने जेब में हाथ डाल कर एक अशरफी निकाली और बोले, ‘‘ले बहू, अभी एक से ही सब्र कर… मेरी संदूकची की चाबी तो यही हजरत कहीं रख आए हैं. बहू की दिखाई भी ढंग की नहीं होने दी,’’ फिर वह अनिल से डपट कर बोले, ‘‘ले राइफल, और इस मुबारक मौके पर दनादन फायर कर… और घर चल कर मेरी चाबी भी दे. आज ही ब्याह होना है और सारा इंतजाम करना है.’’

अनिल ने उन के पैर छूने को हाथ बढ़ाए, तो वे रोब से बोले, ‘‘पहले फायर कर…’’

बैजू मास्टर और कांती के साथ उस की मां भी उन के पैरों पर झाकी थी. उन्हें जमींदार के दिल में उगे एक सच्चे इनसान ने बरबस झांका दिया था.

जमींदार बाबू के आंसू बह रहे थे और रुंधे गले से क्या आशीर्वाद दे रहे थे, इसे फायरों की ‘तड़तड़’ की आवाज के चलते किसी ने न सुना.

अगले पल कांती के मातापिता और जमींदार बाबू के चेहरे पर एक जंग जीतने जैसी खुशी नजर आ चुकी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे वे एक नई मुहिम पर जाने के लिए कदमताल कर रहे हों, कुछ ही पलों में उन के कदम आगे बढ़ने वाले हों.

छोटे लोग : रिटायर्ड फौजी विद्या प्रकाश का दर्द

फौज की नौकरी से रिटायर होने के बाद विद्या प्रकाश ने एक सोसाइटी में चौकीदार की नौकरी कर ली थी. रोजाना की तरह आज भी सुबह तड़के ही उठ कर उस ने कसरत की, पर सैर को नहीं निकला, क्योंकि बाहर रात से ही तेज बारिश हो रही थी. फिर नहाधो कर उस ने वरदी के साथ गमबूट पहने और हैट लगाई. आज भी वह 55 की उम्र में 45 साल का लगता है.

विद्या प्रकाश ने ठीक 8 बजे रसोईघर में झांका. पत्नी राधा अभी नहा रही थी. वह तुनक कर बोला, ‘‘कितनी बार कहा है कि खाना समय पर दे दिया करो, पर तुम्हें कौन समझांए. कभी भी समय की कद्र नहीं करती हो.’’

‘‘5 मिनट रुको, चपाती बनानी है. सब्जी तैयार है. वैसे भी आप की ड्यूटी का टाइम 9 बजे से है,’’ राधा बाथरूम से निकलते हुए बोली.

‘‘मैं लेट हो रहा हूं. पहले मुझे मेजर साहब के बंगले पर भी जाना है.’’

‘‘जल्दी जाना था, तो पहले बता देना चाहिए था,’’ चपाती बनाते हुए राधा बोली.

विद्या प्रकाश निकलने लगा, तो बारिश देख कर छाता लेने अंदर लौट आया. तब तक राधा ने खाने की प्लेट हाथ में दे दी.

‘‘यह क्या तरीका है खाना देने का,’’ राधा को घूरते हुए विद्या प्रकाश ने जल्दीजल्दी गुस्से में थोड़ा सा खाना खाया और बाहर निकल आया.

राधा उस के इस बरताव से झंझला गई और मन ही मन बोली, ‘नौकरी के बाद भी कभी प्यार से बात नहीं की.’

जिस सोसाइटी में विद्या प्रकाश चौकीदार है, उस से एक लेन पहले बड़ीबड़ी कोठियों वाली कालोनी है. वहां 7वें नंबर वाली कोठी के गेट में वह दाखिल हो कर अभी लान में खड़ा ही हुआ था कि उस ने मालिक मेजर साहब को अपनी पत्नी पर चिल्लाते हुए सुना.

एक भद्दी सी गाली देने के बाद मेजर साहब की आंखें गुस्से से लाल हो गईं और नथुने फूल गए. वे गरज उठे, ‘‘तुम अपनी कमाई का जो रोब डालना चाहती हो, वह मुझ पर नहीं चलेगा. आज तुम अगर नौकरी कर रही हो तो मेरी बदौलत. मैं तुम्हें इजाजत नहीं देता, तो तुम घर के बाहर कदम भी नहीं रख सकती थी और आज मुझे जता रही हो कि परिवार का स्टैंडर्ड भी तुम्हारी कमाई से सुधरा है. कहे देता हूं कि अपनी औकात मत भूलो, वरना…’’

पर चौकीदार को सामने देख कर मेजर साहब ने अपनी लाल आंखों और फूले हुए नथुनों को सामान्य करने की कोशिश की और अपनी पत्नी को अंदर जाने का इशारा करते हुए धीरे से बोले, ‘‘तुम अंदर जाओ. ये छोटे लोग होते हैं. इन से मैं बात करता हूं.’’

मेजर साहब की पत्नी इतनी डांट सुनने के बाद अपनी जगह से अभी हिल भी नहीं पाई थीं कि विद्या प्रकाश बगीचे में रखी कुरसी के पास पहुंच गया. वह यह सब देख कर हैरत में था.

मैडम अपने आंसुओं को पी कर बोलीं, ‘‘विद्या प्रकाश, आप बैठिए. मैं आप के लिए चाय बनवाती हूं.’’

‘‘नहीं, मैडमजी. मैं आप से ही बात करने आया हूं. मेरे भाई ने आप को धन्यवाद देने को कहा है. अगर आप ने उस दिन बैंक में उस की मदद न की होती, तो उस की बेटी समय पर होस्टल की फीस न भर पाती.’’

मैडम ने बीच में ही विद्या प्रकाश को रोकते हुए कहा, ‘‘अरे, इस में एहसान मानने की कोई जरूरत नहीं है. उन की मदद कर के मुझे अच्छा लगा था.’’

‘‘ये 10,000 रुपए भेजे हैं उस ने,’’ पैसे थमा कर विद्या प्रकाश हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘इजाजत दीजिए, अब मैं चलता हूं. ड्यूटी पर भी पहुंचना है.’’

रास्ते में विद्या प्रकाश की आंखों के सामने मैडम का आंसुओं को थामे रखने वाला चेहरा छा गया. उन की आंखें उसे अंदर तक झंकझोर गई थीं, लेकिन मेजर साहब के धीरे से फुसफुसाए शब्द ‘ये छोटे लोग होते हैं’ उस के मन में कांच के टूटे टुकड़ों की तरह चुभ रहे थे.

विद्या प्रकाश का मन आज काम में नहीं लग रहा था. उस ने आधे दिन की छुट्टी ली और घर आ गया. घर में राधा सोई हुई थी. उस ने बैंक की पासबुक निकाली और बैंक चला गया.

विद्या प्रकाश बैंक से लौट कर घर आया, तो राधा बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी. वह बोली, ‘‘सुनो, मेरे बैंक अकाउंट में सिर्फ 8,000 रुपए ही थे. देखो, फोन में मैसेज आया है. समझ नहीं आ रहा है. शायद मुझे गलती से किसी और का मैसेज आ गया है. इतने सारे पैसे किस के हैं?’’

‘‘किसी और का मैसेज नहीं है, बल्कि मैं ने ही तुम्हारे अकाउंट में रिटायरमैंट के सारे पैसे ट्रांसफर करवा दिए हैं. अब से मेरी पैंशन भी तुम्हारे ही अकाउंट में आएगी.’’

‘‘पर क्यों…?’’ राधा थोड़ा चौंक कर बोली.

‘‘तू ही रोजरोज बोलती रहती है कि मैं दारू पी कर सारी कमाई उड़ा दूंगा. मैं ने यह झगड़ा ही खत्म कर दिया. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’

‘‘पर, वह तो मैं कई सालों से बोल रही हूं, फिर आज ऐसा क्या हुआ जो…’’

राधा को बीच में ही टोकते हुए विद्या प्रकाश बोला, ‘‘बस, यह समझ लो कि मुझे आज कोई बड़ी सीख मिली है. असल में मैं ने आज तक जो भी कमाया है, वह तुम्हारे सहयोग के बिना मुमकिन नहीं था. इस पर तुम्हारा हक ज्यादा है. सुबह तुम पर जो गुस्सा किया, उस के लिए माफ कर देना,’’ कह कर विद्या प्रकाश सुकून सा पा गया.

विद्या प्रकाश का मन अब छोटेपन के एहसास से उबर चुका था. उसे अपना कद मेजर साहब के कद से बहुत ऊंचा महसूस हो रहा था.

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