मंगेतर बना मौत का हरकारा

एक दिन पहले बारिश हो कर हटी थी, जिस से ठिठुरन में खासा इजाफा हो गया था. बादलों की वजह से सूरज सुबह से ही ओझल था. लिहाजा पूरा शहर धुंधलके की गिरफ्त में था. चंबल नदी के करीब होने के कारण शहर के स्टेशन का इलाका कुछ ज्यादा ही सर्द था. लगभग आधा दरजन छोटीमोटी बस्तियों में बंटे इस इलाके में तकरीबन 20 हजार की आबादी वाला क्षेत्र नेहरू नगर कहलाता है.

मिलीजुली बिरादरी वालों की इस बस्ती में ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग के दिहाड़ी कामकाजी लोग रहते हैं. बस्ती के करीब से अच्छीखासी चौड़ाई में फैला एक नाला गुजरता है. इसलिए इस की तरफ से गुजरने वाला करीब एक फर्लांग का फासला कुछ संकरा हो जाता है.

इसी बस्ती की रहने वाली शाहेनूर अपनी छोटी बहन इशिका के साथ कोचिंग के लिए जा रही थी. हाथों में किताबें थामे दोनों बहनें चलतेचलते आपस में बातचीत करती जा रही थीं. जैसे ही वे नेहरू नगर बस्ती से निकलने वाले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाने को हुईं, शाहेनूर एकाएक ठिठककर रह गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर पीछे देखा. पीछे एक बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई. क्योंकि वह उस युवक को जानती थी. शाहेनूर ने तुरंत अपनी छोटी बहन का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ‘‘जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

इशिका ने बहन को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा माजरा समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

दाढ़ीमूंछ और सख्त चेहरे वाला वह युवक साबिर था, जो शाहेनूर का मंगेतर था. पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. उस युवक को देख कर दोनों बहनों की चाल में लड़खड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर शाहेनूर ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही साबिर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए शाहेनूर का गला दबोच लिया. गले पर कसती सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए शाहेनूर ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, साबिर ने जेब में रखा मिर्च पाउडर उस के ऊपर फेंक दिया.

चीखते हुए शाहेनूर ने एक हाथ से आंखें मलने लगी और दूसरे हाथ से छोटी बहन इशिका का हाथ पकड़ने की कोशिश की. इशिका भी बहन के लिए चीखने लगी. तभी साबिर ने चाकू निकाल कर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए.

बदहवास इशिका ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. तब तक दरिंदगी पर उतारू साबिर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करता हुआ उसे छलनी कर चुका था. उस की दर्दनाक चीखों से आसपास का इलाका गूंज रहा था और उस के शरीर से फव्वारे की मानिंद छूटता खून जमीन को सुर्ख कर रहा था.

उधर से गुजरते लोगों ने यह खौफनाक नजारा देखा भी, लेकिन बीचबचाव करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. सभी मुंह फेर कर चलते बने. इशिका ने राहगीरों को मदद के लिए पुकार भी लगाई, लेकिन उस की कोशिश नाकाम रही. नतीजतन उस ने वापस अपने घर की तरफ गली में दौड़ लगा दी. घर पहुंच कर उस ने बहन पर हमले वाली बात घर वालों को बता दी.यह खबर सुन कर घर वालों की चीख निकल गई.

वे रोतेबिलखते इशिका के साथ चल दिए. करीब 5 मिनट बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए. शाहेनूर की खून से लथपथ लाश वहां पड़ी थी. घर वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. कुछ लोग वहां जमा हो चुके थे. खबर आग की तरह इलाके में फैली तो भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा.

किसी ने इस वारदात की खबर फोन द्वारा भीममंडी थाने को दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की छोटी बहन इशिका ने सारी बात पुलिस को बता दी. इस से पुलिस को पता चल गया कि इस का हत्यारा साबिर है. घटनास्थल पर उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो गली में दूर तक खून सने पावों के निशान मिले, जो निश्चित रूप से भागते हुए साबिर के थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और खुद वहां मौजूद लोगों से बातें करने लगे. अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी अंशुमान भोमिया, एडिशनल एसपी अनंत कुमार और सीओ शिवभगवान गोदारा समेत अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद लोगों में डर बैठ गया. एसपी अंशुमान भोमिया ने सीओ शिवभगवान गोदारा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा सहित अन्य तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया.

टीम ने आरोपी साबिर की संभावित जगहों पर तलाश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली. उस के बाद मुखबिर की सूचना पर साबिर को मुरगीफार्म के पास जंगल से दबोच लिया गया. वह चंबल नदी क्षेत्र के घने जंगल में छिपने की कोशिश कर रहा था. अगर एक बार वह बीहड़ में पहुंच जाता तो उस का गिरफ्त में आना मुश्किल था.

छाबड़ा में तैनात शाहेनूर के पिता असलम खान को हादसे की खबर कर दी गई, लेकिन तब तक वह कोटा नहीं पहुंचे थे. शव इस कदर क्षतविक्षत था कि एक पल के लिए तो डाक्टर भी स्तब्ध रह गए. उन के मुंह से निकले बिना नहीं रहा कि लगता है हमलावर साइकोपेथी का शिकार था और वह अपना दिमागी संतुलन पूरी तरह खो चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहेनूर के शरीर पर 2 दरजन से ज्यादा घाव मिले थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह वे घातक वार बने, जिन्होंने दाएं फेफड़े और लीवर को पंक्चर कर दिया था. चाकू के गहरे वार पीठ, सीना, हाथ सिर, मुंह और आंखों सहित हर जगह पाए गए. चाकू का हर वार 2 से 3 सेंटीमीटर चौड़ा था. डाक्टरों के मुताबिक हर वार पूरी ताकत से किया गया था.

शुरुआती पूछताछ में शाहेनूर के मामा फिरोज अहमद और मां शमीम बानो ने पुलिस को बताया कि पिछले साल अगस्त में शाहेनूर उर्फ शीनू की मंगनी साबिर हुसैन से की गई थी. साबिर फेब्रिकेशन का काम करता था. इस के बाद साबिर का उन के घर आनाजाना शुरू हो गया.

इसी दौरान उन्हें साबिर के चालचलन के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पता चला कि साबिर न सिर्फ अव्वल दरजे का नशेड़ी है, बल्कि उस की सोहबत जरायमपेशा किस्म के लोगों से भी है. शमीम बानो ने कहा, ‘तब हम ने घर बैठ कर आपस में मशविरा कर के इस नतीजे पर पहुंचे कि साबिर से बेटी का रिश्ता कायम रखने का मतलब शाहेनूर सरीखी संजीदा लड़की का भविष्य दांव पर लगाना होगा. नतीजतन रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा गया. काफी सोचनेसमझने के बाद करीब 6 महीने पहले हम ने साबिर से रिश्ता तोड़ दिया.’

साबिर असलम खान के घर आनेजाने का आदी हो चुका था और शाहेनूर से प्यार भी करने लगा था. वह शाहेनूर से शादी करना चाहता था. शमीम बानो का कहना था कि मंगनी तोड़ने से साबिर इस हद तक बौखला गया कि एक दिन वह तूफान मचाता हुआ घर पहुंच गया. उन की मौजूदगी में शाहेनूर के साथ मारपीट कर बैठा.

शाहेनूर के पिता असलम उन दिनों घर पर नहीं थे. वह छाबड़ा में अपनी नौकरी पर थे. असलम छोटीछोटी बातों पर बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे. बेटी की पिटाई वाली बात उन्हें इसलिए नहीं बताई गई कि वह गुस्से में आगबबूला हो कर कोई अनर्थ न कर बैठें या कहीं कोई बवाल ना मच जाए.

इस के बाद यह बात आईगई हो गई. साबिर का भी असलम के यहां आनाजाना एक तरह से बंद हो गया. पर वह अकसर शाहेनूर के घर के आसपास की गलियों में घूमता दिखाई देता था.

बाद में जब असलम को बात पता चली तो उन्होंने पुलिस में जाना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि खामखाह बिरादरी में बदनामी होती. शाहेनूर से दूरी बनाने के बजाय साबिर उसे फोन पर परेशान करने लगा. शाहेनृर ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वालों ने उस से यह कह दिया कि वह साबिर से बात न करे.

साबिर की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शाहेनूर 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस ने ऐच्छिक विषय उर्दू ले रखा था, इस की वजह से वह 3 बजे के करीब एक इंस्ट्टीयूट में उर्दू की पढ़ाई करने जाती थी. साबिर जब शाहेनूर को रास्ते में परेशान करने लगा तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे कोचिंग तक छोड़ने जाने लगा.

4 बेटियों के पिता असलम खान कोटा से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर बारां जिले के छाबड़ा कस्बे में नौकरी करते थे. वह थर्मल में बतौर तकनीशियन तैनात थे. शाहेनूर और इशिका के अलावा उन की 2 बेटियां और थीं, जो काफी छोटी थीं. नौकरी के लिहाज से असलम छाबड़ा में ही रहते थे. लेकिन हफ्तापंद्रह दिन में कोटा में अपने घर आते रहते थे.

पुलिस ने जिस वक्त चंबल के बीहड़ों से साबिर को गिरफ्तार किया था. उस की कलाइयां लहूलुहान थीं और वो नशे में धुत था. तलाशी में पुलिस ने उसकी जेब से पाउडर सरीखा जहरीला पदार्थ बरामद किया था. पूछताछ में उस ने कबूल किया कि आत्महत्या करने की कोशिश में उस ने अपनी कलाई की नसें काटने की कोशिश की थी. जहर की पुडि़या भी उस ने खुदकुशी की खातिर ही अपने पास रखी थी. लेकिन वह उसे इस्तेमाल करता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

साबिर ने पुलिस को बताया कि वह पहले अपने परिवार के साथ बोरखेड़ा में रहता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खेडली इलाके में कमरा किराएपर ले कर अकेला रह रहा था. पूछताछ के दौरान वह हर सवाल पर ठहाके मार कर हंस रहा था.

सुबह होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने रोना शुरू कर दिया. शायद उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर सोमवार 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

13 दिसंबर को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने शाहेनूर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का दिल तो उसी दिन टूट गया था, जिस दिन शाहेनूर से उस का रिश्ता टूटा था. वह उसे दिलोजान से चाहता था, पर उस ने मेरी मोहब्बत को तरजीह नहीं दी.

साबिर ने बताया कि उसे मारने के बाद वह खुद भी मर जाना चाहता था. इसलिए उस ने अपनी कलाई की नसें काटीं. वह जंगल में जहर खा कर मर जाता, लेकिन पुलिस ने उस की मंशा पूरी नहीं होने दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक बेरहम हत्या : सपनों के पीछे भागने का नतीजा

29 दिसंबर, 2018. समय सुबह के 4 बजे. स्थान थाणे. मुंबई से सटे जनपद थाणे के सिविल अस्पताल से कासारवाडवली पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिली, जिसे थाने में मौजूद इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने गंभीरता से लिया. उन्होंने चार्जरूम की ड्यूटी पर तैनात एसआई संतोष धाडवे को बुला कर अस्पताल से मिली सूचना के बारे में बताया और केस डायरी तैयार करने का निर्देश दिया. साथ ही उन्होंने इस की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी.

थाने में सूचना दर्ज करवाने के बाद इंसपेक्टर वैभव धुमाल अपने सहायक इंसपेक्टर कैलाश टोकले, एसआई विनायक निबांलकर, संतोष धाडवे, कांस्टेबल राहुल दडवे, दिलीप भोसले, राजकुमार महापुरे और महिला कांस्टेबल मीना धुगे को साथ ले कर थाणे सिविल अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में दाखिल हुई, तब तक डाक्टरों ने उस व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया था, जिसे संदिग्ध अवस्था में अस्पताल लाया गया था और लाने वाले उसे अस्पताल में छोड़ कर गायब हो गए थे. पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि मृतक को अस्पताल में उपचार के लिए रात के साढे़ 3 बजे लाया गया था.

उसे लाने वालों में एक सुंदर महिला और एक हट्टाकट्टा युवक था. उन का कहना था कि वह व्यक्ति घायल अवस्था में उन्हें कलवा बांध विलगांव की सुरंग के पास सड़क किनारे तड़पता हुआ मिला था. शायद वह किसी भारी वाहन की चपेट में आ गया होगा. इंसानियत के नाते वे उसे अस्पताल ले आए थे.

घायल की स्थित देख कर डाक्टर उस के उपचार में जुट गए. डाक्टर घायल के बारे में कुछ बताते उस से पहले ही उसे लाने वाली महिला और युवक दोनों अस्पताल से गायब हो गए. मृतक की उम्र 30 साल के आसपास थी. उस के सिर पर घाव और गले पर खरोचों के अलावा काले रंग का एक गहरा निशान भी था.

रहस्यमय लाश और अंजान महिला व युवक

अस्पताल के डाक्टरों और अस्पताल में तैनात पुलिस कांस्टेबल के बयानों के हिसाब से मामला काफी जटिल था. इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने मृतक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया तो उन्हें ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया जो महिला और उस के साथी युवक ने अस्पताल के डाक्टरों और कांस्टेबल को बताया था. बहरहाल प्राथमिक काररवाई के बाद इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने लाश का पंचनामा बना कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने लौट आए.

थाने लौट कर इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने अपने सहायकों के साथ विचारविमर्श कर तफ्तीश की रूप रेखा तैयार की. इस के साथ ही उन्होंने इस बारे में डीसीपी अभिनाश आंमोरे, एसीपी महादेव भोर और थानाप्रभारी दत्तात्रेय ढोले को बता कर तफ्तीश शुरू कर दी.

जांच आगे बढ़ाने के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी. वह कौन था, कहां रहता था. उसे अस्पताल लाने वाली महिला और युवक कौन थे. जैसे कई सवाल थे, जिन का जवाब मिले बिना तफ्तीश आगे नहीं बढ़ सकती थी.

अस्पताल के सीसीटीवी के जो फुटेज मिले उन में मृतक और उसे लाने वालों की तसवीरें अस्पष्ट थीं. सारी कडि़यों को जोड़ना आसान तो नहीं था, लेकिन नामुमकिन भी नहीं था. सोचविचार कर इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने अपने स्टाफ के अनुभवी कर्मचारियों की एक टीम तैयार की और उसे 2 भागों में बांट कर अलगअलग जिम्मेदारी सौंप दी.

पहली टीम को उन्होंने कलवा बांध विलगांव सुरंग के पास की सच्चाई का पता लगाने भेज दिया. जिस का जिक्र डाक्टर और कांस्टेबल के बयानों में आया था. दूसरी टीम को उन्होंने अस्पताल से मिले सीसीटीवी के उन फुटेज के आधार पर आसपास के गांवों में जा कर मृतक और उसे अस्पताल लाने वालों के बारे में जानकारी हासिल करने को कहा.कहावत है कि विश्वास का वृक्ष कभी नहीं सूखता. इस मामले में भी यही हुआ.

पहली टीम बांध विलगांव से खाली हाथ लौट आई. बांध विलगांव के पास ऐसा कुछ नहीं हुआ था, जैसा उस महिला और युवक ने डाक्टरों को बताया था. इंसपेक्टर वैभव धुमाल को जो संदेह था सही निकला. इंसपेक्टर वैभव धुमाल को विश्वास था कि कोई न कोई राह जरूर निकलेगी.

शक की सूई सीधे हत्या की तरफ इशारा कर रह थी. यह बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गई थी. पता चला, उस के सिर पर घातक वार तो किया गया था, लेकिन उस की मौत गला घोंटने से हुई थी. साफ पता चल रहा था कि उस की बेरहमी से हत्या कर के पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की गई थी. इसी वजह से वह महिला और युवक शक के दायरे में आ गए.

पहली टीम को भले ही कोई सुराग नहीं मिला था, लेकिन दूसरी टीम खाली हाथ नहीं लौटी.

इस टीम ने उस औटो वाले को खोज निकाला, जिस के औटो से मृतक को अस्पताल लाया गया था. औटो वाले की निशानदेही पर पुलिस टीम मृतक के परिवार तक पहुंच गई.

उस के परिवार ने मृतक की शिनाख्त गोपी नाइक के रूप में की. गोपी नाइक पत्नी अैर बेटी के सथ घोड़बंदर रोड गायमुख इलाके की टीएमसी कालोनी में रहता था. वह थाणे म्युनिसिपल कारपोरेशन में नौकरी करता था.

इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने तत्काल मृतक गोपी नाइक के भाई दिलीप नाइक और परिवार वालों से पूछताछ की. जब दिलीप नाइक को अस्पताल ले जा कर लाश दिखाई गई तो वह गोपी नाइक का शव देख कर फूटफूट कर रोने लगा.

दिलीप नाइक को अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई तो उस ने गोपी नाइक को अस्पताल लाने वाली महिला और उस के साथ के युवक को पहचान लिया. वह महिला मृतक की पत्नी प्रिया नाइक थी और उस के साथ वाला युवक उस का बौयफ्रैंड महेश कराले था.

पुलिस ने गोपी नाइक के भाई दिलीप नाइक की तहरीर पर केस दर्ज कर के शव गोपी नाइक को सौंप दिया. इंसपेक्टर वैभव धुमाल अपनी टीम के साथ जब गोपी नाइक के घर पहुंचे तो प्रिया घर में नहीं थी. पूछताछ में आसपड़ोस वालों ने बताया कि उन का घर पिछले 2-3 दिनों से बंद है. जब उन लोगों को यह जानकारी मिली कि गोपी नाइक की हत्या हो गई है, तो वे सन्न रह गए. उन का कहना था कि एक न एक दिन यह तो होना ही था. उन्होंने भी अंगुली प्रिया और महेश कराले की ओर उठाई.

खुलता गया रहस्य

पुलिस टीम को हत्या की सारी कडि़यों को जोड़ने के लिए साक्ष्यों की जरूरत थी. उन्होंने कालोनी के 2 व्यक्तियों को पंच बना कर घर की तलाशी ली तो घर की साफसफाई के बाद भी वहां गुनाह के निशान मिल ही गए, जिन्हें देख कर पुलिस टीम को यह समझने में देर नहीं लगी कि हत्या की साजिश घर के अंदर ही रची गई थी. घर के बैडरूम और बाथरूम के फर्श पर पडे़ खून के धब्बे हत्या की पूरी कहानी बयान कर रहे थे.

पुलिस टीम ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर के तेजी से तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस टीम ने प्रिया और महेश के सभी उन ठिकानों पर दबिश दी, जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी. घटना को 36 घंटे से अधिक बीत गए थे. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना थी कि प्रिया और महेश शहर छोड़ कर कहीं चले गए हों या शहर छोड़ने की कोशिश में हों.

यही सोच कर पुलिस टीमों ने शहर और जनपद की नाकेबंदी करा दी. साथ ही मुखबिरों को भी सचेत कर दिया गया. नतीजा यह निकला कि घटना के एक सप्ताह बाद पुलिस ने मुखबिरों की सूचना पर 5 जनवरी, 2019 की रात प्रिया नाइक और महेश कराले को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे अपने गांव से पैसों का जुगाड़ कर के महाराष्ट्र से बाहर भागने की तैयारी में थे.

मैट्रिक पास 28 वर्षीय प्रिया नाइक जितनी खूबसूरत और स्मार्ट थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. उस के सपने बहुत ऊंचे थे. शादी से पहले उस ने एक सुंदर स्वस्थ जीवनसाथी की कामना की थी. लेकिन उस के सपने उस समय धराशायी हो गए जब उस का विवाह उस के मनमुताबिक न हो कर दिव्यांग गोपी नाइक से हो गया.

गोपी और प्रिया का कोई मेल नहीं था. लेकिन परिवार की गरीबी और सामाजिक दबाव की वजह से उस ने समझौता कर लिया. गोपी को पति के रूप में स्वीकार कर वह अपनी गृहस्थी में रम गई.

गोपी नाइक थाणे म्युनिसिपल कारपोरेशन में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था. वह अपने परिवार के साथ कलवा के अंकलेश्वर नगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के मध्यम वर्गीय परिवार में पिता किसान नाइक, मां, बहन और एक भाई दिलीप नाइक था. भाईबहन सभी की शादी हो चुकी थी और सब सेटल थे.

किशन नाइक सीधेसादे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. समाज में उन का मानसम्मान था. प्रिया उन के दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थी. जिसे किशन नाइक ने स्वयं अपने बेटे गोपी नाइक के लिए चुना था. प्रिया जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर गोपी नाइक और उस का पूरा परिवार बहुत खुश था.

गोपी नाइक प्रिया को बहुत प्यार करता था और उस की हर खुशी का ध्यान रखता था. पूरे परिवार के दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. शादी के कुछ साल बाद गोपी नाइक को परिवार से अलग रहने के लिए जाना पड़ा.

उसे टीएमसी की तरफ से डा. भीमराव अंबेडकर कालोनी में मकान मिल गया था. यहां आने के कुछ दिनों बाद प्रिया ने एक बेटी को जन्म दिया. इस से गोपी और प्रिया का जीवन और भी हंसीखुशी से बीतने लगा. देखतेदेखते प्रिया की बेटी 7 साल की हो गई. वह सीनियर केजी में पढ़ रही थी. गोपी नाइक नौकरी कर रहा था और प्रिया कुशल गृहिणी की तरह घर संभाल रही थी.

मोबाइल ने बदल दी सोच और दुनिया

सामान्य रूप से चलते उन के दांपत्य जीवन के 8-10 साल कैसे निकल गए पता ही नहीं चला. इस की वजह गोपी का प्रिया के प्रति प्यार और विश्वास था. प्रिया भी गोपी के प्यार और अपनी गृहस्थी में डूबी थी. हालांकि कभीकभी गोपी की दिव्यांगत की सूई प्रिया के दिल में चुभ जाती थी. उस ने जवानी के चौखट पर खड़े हो कर जो सपना देखा था, वह पूरा नहीं हुआ था.

2016 में प्रिया नाइक का यह सपना उस समय अस्तित्व में आने लगा, जब उस के सामने 22 वर्षीय महेश कराले की तसवीर आई. महेश कराले ठीक वैसा ही था, जिस की प्रिया ने कभी कल्पना की थी. सुंदर आंखें, बलिष्ठ बाहें, गठीला बदन, चौड़ी छाती. प्रिया उस की दीवानी हो गई. धीरेधीरे प्रिया की इस दीवानगी ने गोपी और उस के बीच दरार पैदा कर दी. 2018 के मध्य में आ कर दरार इतनी बढ़ गई कि साल पूरा होतेहोते यह दरार गोपी नाइक के पूरे अस्तित्व को ही निगल गई.

22 वर्षीय महेश कराले और प्रिया नाइक की जानपहचान फेसबुक पर हुई थी. प्रिया नाइक जब से टीएमसी कालोनी में रहने आई थी, तब से उस के पास घर का ज्यादा काम नहीं था. बेटी को स्कूल और पति को काम पर भेजने के बाद वह घर में अकेली बोर हो जाती थी. थोड़ाबहुत समय टीवी के साथ जरूर गुजार लेती थी. लेकिन इस से मन को सुकून नहीं मिलता था. ऐसे में गोपी नाइक ने प्रिया को एक महंगा मोबाइल ला कर दे दिया. उस वक्त उस ने सोचा भी नहीं होगा कि वही मोबाइल उस के दांपत्य जीवन के मायने ही बदल देगा.

मोबाइल हाथ में आया तो प्रिया नाइक का दैनिक जीवन ही बदल गया. उस का मन घर के कामों में कम और मोबाइल में ज्यादा लगने लगा. वह फेसबुक पर अपना प्रोफाइल बना कर नएनए दोस्त बनाती और उन से चैटिंग करती. इसी के चलते वह महेश कराले की ओर आकर्षित हो गई. वह भूल गई कि वह 7 साल की बच्ची की मां और उस पर अटूट विश्वास करने वाले पति की पत्नी है.

महेश कराले का परिवार महाराष्ट्र के जनपद रायगढ़ के नेरल गांव का रहने वाला था. उस के पिता गोविंद कराले गांव के सम्मानित किसान थे. महेश कराले उन का सब से छोटा और लाडला बेटा था.

ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद जब उसे मुंबई रेलवे बोर्ड में सर्विस मिली तो उस ने गांव से थाणे आ कर उपनगर कर्जत में किराए का एक कमरा ले लिया. प्रिया की तरह महेश भी फुरसत के समय फेसबुक में डूब जाता था. प्रिया का प्रोफाइल और फोटो देख कर वह इतना प्रभावित हुआ कि उस की दोस्ती की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

फेसबुक के माध्यम से दोनों की 2 सालों तक दोस्ती चलती रही. दोनों फोन पर भी बातें करने लगे थे. मिलनेमिलाने की बात भी होने लगी. घटना से 6 महीने पहले दोनों एक तयशुदा जगह पर मिले और एकदूसरे के आगोश में सुकून खोज लिया. एक बार जब मर्यादा टूटी तो फिर यह एक आम सी बात हो गई. जब भी मौका मिलता दोनों अपनी जरूरतों को पूरा कर लेते थे.

शुरुआती कुछ दिनों तक प्रिया नाइक और महेश कराले का मिलनाजुलना पार्कों और रेस्टोरेंटों तक सी सीमित था. फिर धीरेधीरे यह सिलसिला प्रिया के घर तक पहुंच गया. चूंकि ऐसी बातें छिपती नहीं हैं, इसलिए इस की भनक आसपड़ोस के लोगों तक पहुंची तो उन में कानाफूसी होने लगी. यह भनक गोपी नाइक के कानों तक भी पहुंच गई.

उस ने जब प्रिया से सच्चाई जानने की कोशिश की तो उस ने बड़ी सफाई से इस बात को ऐसा घुमाया कि गोपी चुप रह गया. महेश कराले को उस ने अपना दूर का भाई बताया, जिस से बात वहीं खत्म हो गई.

प्रिया ने महेश कराले को अपना भाई बता कर अपने पापों को छिपाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन इस में वह पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाई. उस के कारनामों का सच एक दिन सामने आ ही गया. प्रिया मोबाइल में सेव्ड उस के और महेश कराले के नंबर मैसेज और सेल्फी वगैरह ने हर राज से परदा उठा दिया.

सब कुछ देख कर गोपी नाइक का दिमाग घूम गया. प्रिया से उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह प्रिया को बहुत ही प्यार करता था. उस की सारी जरूरतें पूरी करता था. उस ने किसी तरह अपने आप को संभाला और इस मुद्दे पर प्रिया को आडे़ हाथों लिया. यही नहीं उस ने प्रिया का मोबाइल फोन भी ले लिया. इस के साथ ही वह प्रिया को मानसिक और शारीरिक रूप से टौर्चर भी करने लगा.

यह सब प्रिया और महेश की सहनशक्ति से बाहर हो गया था. तंग आ कर उन दोनों ने गोपी नाइक को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इसीलिए वह धीरेधीरे पति से दूरियां बढ़ाती गई. लेकिन सीधासादा गोपी इसे समझ नहीं पाया. जब तक यह सब उस की समझ में आया तब तक काफी देर हो चुकी थी.

हत्या की योजना के बाद

अपनी योजना के अनुसार घटना के एक सप्ताह पहले महेश कराले ने गोपी को अपने रास्ते से हटाने के लिए अपने एक परिचित कैमिस्ट की मदद से ढेर सारी नींद की गोलियां खरीदीं और ला कर प्रिया को दे दीं. साथ ही उसे समझा भी दिया कि मौका मिलते ही गोपी को कैसे देगी.

घटना के दिन प्रिया ने वैसा ही किया भी, जैसा महेश कराले ने कहा था. उस ने गोपी नाइक की बीयर में करीब 30 गोलियां डाल दीं. लेकिन पता नहीं क्यों गोपी नाइक पर नींद की गोलियों का उतना असर नहीं हुआ. जितना होना चाहिए था. वह अर्द्धनिद्रा में बैड पर पड़ा करवटें बदलता रहा. प्रिया ने जब यह बात महेश कराले को बताई तो वह गोपी के घर आ गया. उस ने साथ लाए फिनायल का इंजेक्शन गोपी के शरीर में लगा दिया.

जैसेजैसे समय बीत रहा था वैसेवैसे प्रिया और महेश कराले के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. उन की धड़कनें तब और बढ़ गईं जब गोपी पर फिनाइल के इंजेक्शन का भी कोई खास असर नहीं हुआ. वह बाथरूम में जा कर उल्टियां करने लगा. प्रिया और महेश से यह सब सहन नहीं हुआ तो दोनों ने गोपी को खुद मौत की नींद सुला दिया.

महेश कराले ने गोपी नाइक का गला पकड़ा और प्रिया ने घर के अंदर रखे लोहे की रौड से उस के सिर पर वार किया. इस के बावजूद गोपी अपने आप को बचाने के लिए बाथरूम से भाग कर बैडरूम में आया, लेकिन वह गिर कर बेहोश हो गया. उस के बेहोश होने के बाद भी महेश कराले और प्रिया ने अपनी तसल्ली के लिए एक बार फिर पूरी ताकत से उस का गला दबाया.

गोपी नाइक की बेरहमी से हत्या करने के बाद दोनों ने संतोष की सांस ली. इस के बाद दोनों गोपी के शव को ठिकाने लगाने के बारे में विचारविमर्श करने लगे. काफी सोचविचार के बाद दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि पुलिस को गुमराह करने के लिए गोपी को घायल बता कर थाणे सिविल अस्पताल ले जाएं और उसे डाक्टरों के हवाले कर के वहां से निकल लें.

इसी योजना के तहत रात 2 बजे दोनों मृत गोपी के लहूलुहान शव को स्कूटर पर लाद कर थाणे बांध विलगांव की सड़क पर ले गए. वहां गोपी के शव को लेटा कर महेश ने अपना स्कूटर पास की झाडि़यों में छिपा दिया.

वहां से आटो पकड़ कर दोनों गोपी नाइक के शव को अस्पताल ले गए और डाक्टरों के हवाले कर के वहां से निकल गए. दोनों अस्पताल और पुलिस कांस्टेबल की नजरों से तो बच कर निकल गए. लेकिन अस्पताल की तीसरी आंख से नहीं बच पाए.

अस्पताल से निकल कर प्रिया और महेश कराले गोपी के घर आए. उन्होंने घर के अंदर बैडरूम और बाथरूम के फर्श पर बिखरे खून की साफसफाई कर दी. साढ़े 5 बजे प्रिया ने अपनी बेटी को उठाया और घर में ताला लगा कर महेश कराले के साथ निकल गई. वहां से दोनों सीधे माथेरान हिल चले गए.

लेकिन पैसों की कमी की वजह से महेश प्रिया को ले कर अपने गांव आ गया. ताकि पैसों का जुगाड़ कर के प्रिया को कहीं दूर ले जा सके. दोनों कहीं जा पाते इस से पहले ही पुलिस के हत्थे चढ़ गए. दोनों ने योजना तो अच्छी बनाई थी, लेकिन उन का गुनाह छिप नहीं सका.

जांचअधिकारी इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने प्रिया नाइक और महेश कराले से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 228, 201 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज किया और उन्हें थाणे के मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नरेश वर्मा हत्याकांड : नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह

घटना मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा थाने की है. 12 नवंबर, 2018 को आष्टा के टीआई कुलदीप खत्री थाने में बैठे थे. तभी क्षेत्र के कोठारी गांव का हेमराज अपने गांव के कन्हैयालाल को साथ ले कर टीआई के पास पहुंचा. उस ने उन्हें अपने 29 वर्षीय बेटे नरेश वर्मा के लापता होने की खबर दी.

हेमराज ने बताया कि नरेश कराटे में ब्लैक बेल्ट होने के अलावा पौवर लिफ्टिंग का राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी रह चुका है. वह सीहोर में अपना जिम खोलना चाहता था. जिम का सामान खरीदने के लिए वह सुबह 10 बजे के आसपास घर से 4 लाख रुपए ले कर निकला था.

उस ने रात 8-9 बजे तक घर लौटने को कहा था. लेकिन जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं आया तो हम ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की,पर उसका मोबाइल फोन बंद मिला. उस के दोस्तों से पता किया तो उन से भी नरेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

नरेश के पास 4 लाख रुपए होने की बात सुन कर टीआई कुलवंत खत्री को मामला गंभीर लगा, इसलिए उन्होंने नरेश की गुमशुदगी दर्ज कर मामले की जानकारी एसपी राजेश चंदेल और एडीशनल एसपी समीर यादव को दे दी.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर टीआई खत्री ने जब हेमराज सिंह से किसी पर शक के बाबत पूछा तो उस ने बादशाही रोड पर रहने वाले सुहैल खान का नाम लिया. उस ने बताया कि सुहैल व उस के बेटे नरेश का वैसे तो कोई मेल नहीं था, इस के बावजूद काफी लंबे समय से नरेश का सुहैल के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था.

सुहैल और नरेश की दोस्ती किस तरह बनी और बढ़ी थी, इस बात की जानकारी हेमराज को भी नहीं थी. परंतु लोगों में इस तरह की चर्चा थी कि सुहैल की खूबसूरत बेटी इस का कारण थी और घटना वाले दिन भी नरेश के मोबाइल पर सुहैल का कई बार फोन आया था.

हेमराज ने आगे बताया कि जब देर रात तक नरेश घर नहीं लौटा था तो हम ने सुहैल से ही संपर्क किया. उस ने बताया कि नरेश के बारे में उसे कुछ पता नहीं है. इतना ही नहीं नरेश का अच्छा दोस्त होने के बावजूद सुहैल ने उसे ढूंढने में भी रुचि नहीं दिखाई.

यह जानकारी मिलने के बाद एडीशनल एसपी समीर यादव ने सीहोर कोतवाली की टीआई संध्या मिश्रा को सुहैल की कुंडली खंगालने के निर्देश दिए. टीआई संध्या मिश्रा ने जब सुहैल के बारे में जांच की तो पता चला कि सुहैल कई बार नशीले पदार्थ बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है.

इस के बाद अगले ही दिन पुलिस ने सुहैल के घर दबिश डाली,लेकिन सुहैल घर पर नहीं मिला. घर में केवल उस की बीवी इशरत और बेटा अमन मिले. सुहैल के बारे में पत्नी इशरत ने बताया कि उन की तबीयत खराब हो गई थी और वह भोपाल के एलबीएस अस्पताल में भरती हैं.

‘‘उन की तबीयत को क्या हुआ?’’पूछने पर परिवार वालों ने बताया,‘‘कभीकभी अधिक नशा करने पर उन की ऐसी ही हालत हो जाती है. इस बार हालत ज्यादा खराब हो गई,जिस से वह कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे.’’

यह बात एडीशनल एसपी समीर यादव के दिमाग में बैठ गई. क्योंकि सुहैल की तबीयत उसी रोज खराब हुई, जिस रोज नरेश गायब हुआ था. दूसरे अब तक तो वह तबीयत खराब होने पर बातचीत करता था,लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि वह बोल भी नहीं पा रहा था.

यादव समझ गए कि वह न बोल पाने का नाटक पुलिस पूछताछ से बचने के लिए कर रहा है, इसलिए उन्होंने आष्टा थाने के टीआई को जरूरी निर्देश दे कर सुहैल से पूछताछ के लिए भोपाल के एलबीएस अस्पताल भेज दिया.

सुहैल से पूछताछ के लिए टीआई कुलदीप खत्री एलबीएस अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने वार्ड में भरती सुहैल से पूछताछ की तो उस ने पुलिस की किसी बात का जवाब नहीं दिया. तब टीआई अस्पताल से लौट आए, लेकिन उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए सादे कपड़ों में एकस कांस्टेबल को वहां छोड़ दिया.

पुलिस के जाने के कुछ देर बाद सुहैल जेब से मोबाइल निकाल कर किसी से बात करने लगा. यह देख कर कांस्टेबल चौंका और समझ गया कि सुहैल वास्तव में न बोलने का ढोंग कर रहा है. यह बात उस ने टीआई कुलदीप खत्री को बता दी.

अब टीआई समझ गए कि जरूर नरेश के लापता होने का राज सुहैल के पेट में छिपा है. लेकिन सुहैल इलाज के लिए अस्पताल में भरती था. डाक्टर की सहमति के बिना उस से अस्पताल में पूछताछ नहीं हो सकती थी. तब पुलिस ने सुहैल के बेटे और पत्नी को पूछताछ के लिए उठा लिया.

सांप की पूंछ पर पैर रखो तो वह पलट कर काटता है,लेकिन पैर अगर उस के फन पर रखा जाए तो वह बचने के लिए छटपटाता है. यही इस मामले में हुआ.

जैसे ही सुहैल को पता चला कि पुलिस उस के बीवीबच्चों को थाने ले गई है तो वह खुदबखुद स्वस्थ हो गया. इतना ही नहीं, अगले दिन ही वह अस्पताल से छुट्टी करवा कर पहले घर पहुंचा और वहां से सीधे आष्टा थाने जाने के लिए रवाना हुआ. सुहैल भी कम शातिर नहीं था. वह किसी तरह पुलिस पर दबाव बनाना चाहता था. इसलिए आष्टा बस स्टैंड से थाने की तरफ जाने से पहले उस ने सल्फास की कुछ गोलियां मुंह में डाल लीं.

सल्फास जितना तेज जहर होता है, उतनी ही तेज उस की दुर्गंध भी होती है. सुहैल का इरादा कुछ देर मुंह में सल्फास की गोली रखने के बाद बाहर थूक देने का था, ताकि जहर अंदर न जाए और उस की दुर्गंध मुंह से आती रहे, जिस से डर कर पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ किए बिना ही छोड़ दे. हुआ इस का उलटा. मुंह में रखी एक गोली हलक में अटकने के बाद सीधे पेट में चली गई. इस से वह घबरा गया. उस ने तुरंत थाने पहुंचने की सोची, लेकिन थाने से बाहर कुछ दूरी पर गिर कर तड़पने लगा.

पुलिस को इस बात की खबर लगी तो उसे पहले आष्टा, फिर सीहोर अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन उपचार के दौरान सुहैल की मौत हो गई. सुहैल की मौत हो जाने से पुलिस को सुहैल की बीवी और बेटे को छोड़ना पड़ा. अब तक पुलिस पूरी कहानी समझ चुकी थी. नरेश के साथ जो कुछ भी हुआ है, उस में सुहैल और उस के परिवार का ही हाथ है.

हकीकत यह जानते हुए भी एडीशनल एसपी समीर यादव को कुछ दिनों के लिए जांच का काम रोक देना पड़ा. कुछ दिन बाद फिर जांच आगे बढ़ी तो सुहैल की बीवी और बेटे से पूछताछ की गई. लेकिन वे कुछ भी जानने से इनकार करते रहे.

इस बीच पुलिस ने नरेश के फोन की काल डिटेल निकलवा ली थी, जिस में पता चला कि नरेश की दिन में कई-कई बार सुहैल से बात होती थी. इतना ही नहीं, सुहैल की पत्नी के अलावा सुहैल की जवान बेटी रुकैया से भी नरेश की अकसर बात होने के सबूत मिले.

घटना वाले दिन भी नरेश और सुहैल के बीच कई बार बात हुई थी. जिस समय नरेश का मोबाइल बंद हुआ था, तब वह उसी टावर के क्षेत्र में था, जिस में सुहैल का घर है. अब तक पुलिस के सामने यह साफ हो चुका था कि जिस रोज नरेश गायब हुआ था,वह सुहैल के घर आया था यानी उस के साथ अच्छाबुरा जो भी हुआ इसी इलाके में हुआ था.

इस इलाके में सुहैल का मकान ही एक ऐसा ठिकाना था, जहां नरेश का लगभग रोज आनाजाना था. लेकिन पुलिस पूछताछ से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी, इसलिए यह मामला पुलिस के सामने बड़ी चुनौती बन कर खड़ा हो गया था. पुलिस अभी और सबूत हासिल करना चाहती थी ताकि सुहैल की बीवी से पूछताछ की जा सके.

एएसआई आर.एस. शर्मा ने सुहैल के घर के आसपास के रास्तों पर लगे सीसीटीवी की फुटेज चैक की. जल्द ही इस के अच्छे परिणाम सामने आए. पता चला कि 12 नवंबर की सुबह कोई 4 बजे सुहैल 4 बार अपनी एक्टिवा से निकला और एक निश्चित दिशा में जा कर वापस आता हुआ दिखा. जाते समय हर बार उस की एक्टिवा पर प्लास्टिक का एक बोरा रखा था, जो सफेद रंग का था.

इतनी रात में किसी काम से आदमी का एक ही दिशा में 4-4 बार जाना संदेह पैदा कर रहा था. पता नहीं उन बोरों में वह क्या ले कर गया था.

इस बारे में पुलिस ने सुहैल की पत्नी इशरत और बेटे अमन से पूछताछ की. इस पर उन का कहना था कि नशा कर के वह आधी रात में कहां आतेजाते थे,इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. पूछने पर वह झगड़ा करने लगते थे, इसलिए उन से कोई बात नहीं करता था.

मुख्य संदिग्ध सुहैल की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए ये दोनों मांबेटे सारी बात उस के ऊपर टाल कर बच निकलना चाहते थे. लेकिन पुलिस उन की मंशा जान चुकी थी. उन के साथ वह सख्ती भी नहीं करना चाहती थी. लिहाजा पुलिस टीम ने उन रास्तों की जांच की जो सुहैल के घर से निकल कर आगे जाते थे. उन रास्तों से पुलिस कर्बला तक पहुंच गई. वहीं पर पुलिस को सीवन नदी में सफेद रंग के बोरे तैरते दिखे.

प्लास्टिक के उन बोरों के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही थीं. अब शक करने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. क्योंकि सुहैल भी हर बार अपनी एक्टिवा पर घर से सफेद रंग की प्लास्टिक के बोरे ले कर निकला था. पुलिस ने उन बोरों को बाहर निकाल कर खोला तो उन में से एक युवक का 8 टुकड़ों में कटा सड़ागला शव मिला. पुलिस को 3 बोरे मिल चुके थे. चौथा बोरा वहां नहीं था. यानी मृतक के पैर अभी नहीं मिले थे. पुलिस चौथे बोरे को भी तलाशती रही.

दूसरे दिन सुबह कुछ दूरी पर चौथी बोरी भी मिल गई, जिस में शव के पैर व खून सने कपड़े और जूते थे. इन अंगों को जब नरेश के भाई को दिखाया तो उस ने शव की पहचान नरेश के रूप में कर दी. मामला अब सीहोर कोतवाली के हाथ आ चुका था, इसलिए एडीशनल एसपी समीर यादव के निर्देश पर टीआई संध्या मिश्रा की टीम ने सुहैल के घर की तलाश ली तो टीम को एक कमरे की दीवारों पर लगे खून के दाग मिल गए, जिन के नमूने जांच के लिए सुरक्षित रख लिए गए.

घर की दीवारों पर खून के धब्बे मिलने के अलावा नरेश वर्मा की लाश भी बरामद हो चुकी थी, इसलिए अब सुहैल की पत्नी और बेटे के सामने बचने का कोई रास्ता नहीं था. पुलिस ने इशरत और उस के बेटे से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 11 नवंबर को किसी बात पर नरेश से विवाद हो जाने पर सुहैल ने नरेश की हत्या कर दी थी.

मांबेटे द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उन के घर से हत्या में प्रयुक्त चाकू और बांका के अलावा खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. दोनों से पूछताछ के बाद नरेश वर्मा की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के कोठारी गांव के रहने वाले नरेश को बचपन से ही खेलों में रुचि थी. उम्र बढ़ने के साथ उस की खेलों में रुचि और भी बढ़ती गई. नतीजतन उस ने कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल कर ली.

इस के अलावा वह पौवर लिफ्टिंग जैसे खेल में भी बढ़चढ़ कर भाग लेने लगा. पौवर लिफ्टिंग की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले कर मैडल भी हासिल किए. खेलों से उसे बेहद लगाव था, इसलिए वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहता था. जब उसे मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने सीहोर में अपना खुद का जिम खोलने की कवायद शुरू कर दी. वैसे भी उस के पिता कोठारी गांव के संपन्न किसान थे, उस के पास पैसों की कमी नहीं थी.

सीहोर में ही दूल्हा बादशाह रोड पर सुहैल अपने परिवार के साथ रहता था. सुहैल कोकीन और ब्राउन शुगर बेचता था. वह कई सालों से नए युवकों को अपने जाल में फांस कर नशे का लती बना देता था. कोकीन और ब्राउन शुगर की तस्करी के आरोप में वह कई बार गिरफ्तार हो चुका था. लेकिन जमानत पर बाहर आने के बाद फिर अपने इसी धंधे से जुड़ जाता था. केवल सुहैल ही नहीं,इस काम में उस का पूरा परिवार संलिप्त था.

सुहैल पैसे वाले युवकों से दोस्ती कर उन्हें अपने घर बुलाता, जहां उस की पत्नी इशरत और खूबसूरत बेटी रुकैया पिता के इशारे पर उस युवक पर ऐसा जादू चलातीं कि वह बारबार उस के घर के चक्कर लगाने लगता था. जब सुहैल देखता कि शिकार उस के फैलाए जाल में फंस चुका है तो पहले वह उसे कोकीन या ब्राउन शुगर का फ्री में नशा करवाता था, फिर बाद में धीरेधीरे नशे की पुड़िया के बदले पैसे वसूलने लगता.

जब युवक को नशे की लत लग जाती तो उस की पत्नी और बेटी शिकार से दूरी बना लेती थीं. लेकिन तब तक उस युवक की चाह दूसरे सुख से अधिक नशे के सुख की बन जाती थी. इसलिए वह सुहैल का गुलाम बन कर रहने के लिए भी तैयार हो जाता था, जिस के बाद सुहैल उस से तो पैसा लूटता ही, साथ ही उस की मदद से दूसरे युवकों को भी अपने नशे का आदी बना देता था.

कोई डेढ़ दो साल पहले एक युवक के माध्यम से सुहैल को पता चला कि कोठारी के रईस किसान का जवान बेटा जिम खोलने के लिए सीहोर के चक्कर लगा रहा है. नरेश देखने में था भी हैंडसम,इसलिए मोटी मुर्गी देख कर सुहैल किसी तरह नरेश से जानपहचान करने के बाद एक रोज उसे अपने घर ले गया.

वास्तव में सुहैल शिकार को फांसने के लिए हर किस्म के हथियार का इस्तेमाल करता था. इसलिए नरेश को फांसने के लिए सुहैल की पत्नी और बेटी रुकैया खुल कर अपना जादू दिखाने लगीं.

नरेश भी रुकैया की खूबसूरती पर फिदा हो गया,जिस से वह अकसर सुहैल से मिलने के बहाने उस के घर आनेजाने लगा. आखिर रुकैया उसे फांसने में सफल हो ही गई. फिर सुहैल ने धीरेधीरे नरेश को मुफ्त में कोकीन और ब्राउन शुगर का नशा करवाना शुरू कर दिया. जब वह नशे का आदी हो गया तो सुहैल ने नशे की कीमत वसूलनी शुरू कर दी.

नरेश के पास पैसों की कमी नहीं थी, इसलिए वह रुकैया के चक्कर में पैसा लुटाने लगा. योजना के अनुसार नरेश के नशे की गिरफ्त में आ जाने के बाद रुकैया को पीछे हट जाना था, लेकिन नरेश के मामले में रुकैया खुद शिकार हो चुकी थी. इसलिए वह नरेश से नजदीकी बनाए रही, जिस के चलते सुहैल को नरेश से परेशानी होने लगी. लेकिन वह खूब पैसे लुटा रहा था, इसलिए सुहैल अपनी आंखें बंद किए रहा.

धीरेधीरे नरेश के हाथ की वह रकम खत्म होने लगी, जो उस ने जिम खोलने के लिए घर से ली थी. पैसा खत्म हो गया तो सुहैल उसे उधारी में नशे की पुड़िया देने लगा. इस में सुहैल को कोई परेशानी नहीं थी. उसे डर केवल इस बात का था कि रुकैया और नरेश को ले कर समाज में कोई बवाल खड़ा न हो जाए. इसलिए वह नहीं चाहता था कि अब नरेश उस के घर आए.

लेकिन नरेश के ऊपर प्यार और कोकीन का ऐसा नशा सवार था कि गांव से निकल कर सीधे सुहैल के घर पहुंच जाता. बाद में धीरेधीरे नरेश को अपनी गलती का अहसास होने लगा था. उस का स्वास्थ्य भी गिरने लगा था इसलिए उस ने सुहैल के घर जाना कुछ कम कर दिया. सुहैल को अब अपने पैसों की चिंता होने लगी, जो नरेश के ऊपर उधार थे.

11 नवंबर को नरेश ने जिम के उपकरण खरीदने के लिए घर से 4 लाख रुपए लिए,लेकिन पैसा जेब में आया तो उसे नशे की सुध आ गई.

वह सीधे सुहैल के घर जा पहुंचा,जहां सुहैल ने नशे की पुड़िया देने से पहले अपने उधार के 2 लाख रुपए मांगे. इस पर नरेश ने कहा कि पैसा तो उस के पास इस समय भी है, लेकिन वह इस से जिम का सामान खरीदने जा रहा है. बाद में जिम से पैसे कमा कर उस का सारा हिसाब चुकता कर देगा.

उस दौरान नरेश की नजरें घर में रुकैया की तलाश कर रही थीं. यह देख कर सुहैल का दिमाग खराब हो गया. उसे लगा कि अगर आज नरेश का फाइनल हिसाब कर दिया जाए तो उस का पैसा वसूल हो जाएगा. यह सोच कर उस ने कमरे में पड़ा चाकू उठा कर सीधे नरेश के सीने पर वार कर दिया.

नरेश काफी ताकतवर था. चाकू से घायल होने के बावजूद भी वह सुहैल से भिड़ गया. इधर कमरे में हल्ला सुन कर सुहैल की पत्नी इशरत और बेटा अमन अंदर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर चौंक गए. चूंकि नरेश सुहैल पर भारी पड़ रहा था, इसलिए सुहैल ने पत्नी और बेटे से मदद करने को कहा.

इशरत और अमन नरेश पर पिल पड़े,जिस के चलते सुहैल ने जल्द ही उस पर चाकू से कई वार कर खेल खत्म कर दिया. अब जरूरत नरेश की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इतनी भारी लाश एक बार में चोरीछिपे नहीं ले जाई जा सकती थी. इसलिए तीनों ने मिल कर बांके की मदद से रात में ही नरेश की लाश के 8 टुकड़े कर दिए.

इस के बाद एक प्लास्टिक के बोरे में धड़ और दूसरे में सिर तथा तीसरे में हाथ व चौथे बोरे में उस के पैर एवं कपड़े और जूते भर दिए. फिर रात में 4 बजे के करीब सुहैल अपनी स्कूटी पर एकएक बोरा ले जा कर कर्बला के पास सीवन नदी में फेंक आया.

इस दौरान रात में ही नरेश के घर वाले बेटे के बारे में सुहैल से पूछ चुके थे, इसलिए वह समझ गया कि अगर वह घर पर रहा तो फंस जाएगा.

योजनानुसार सुबह होते ही वह बीमारी के नाम पर भोपाल के एलबीएस अस्पताल में भरती हो गया. लेकिन एडीशनल एसपी समीर यादव के सामने उस की एक नहीं चली, जिस के चलते खुद सुहैल के हिस्से में मौत आई, जबकि आरोपी मांबेटे को मिलीं सलाखें.

इशरत और अमन से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा में रुकैया परिवर्तित नाम है…

डांसर हिना और हैवानियत के शिकार 2 मासूम

घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह कक्षा 9 तक ही पढ़ सकी थी. सन 2012 में उस का निकाह बड़ौत निवासी आरिफ से हो गया था. आरिफ से हिना को 2 बच्चे महक व अर्श हुए. आरिफ दकियानूसी विचारों वाला था. जबकि हिना खुले विचारों की थी. फलस्वरूप दोनों में अकसर मनमुटाव होने लगा. इसी के चलते सन 2015 में उन का तलाक हो गया था. तलाक के बाद हिना अपने बच्चों के साथ हरिद्वार के कस्बा मंगलौर के मोहल्ला पठानपुरा में मुशर्रत के मकान में किराए पर रहने लगी थी.

पति से अलग होने के बाद हिना के सामने अपना और बच्चों का खर्च चलाने की समस्या खड़ी हो गई. इस के लिए वह शादीविवाह में डांस करने लगी. डांस के लिए उसे बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना होता था, इसलिए उस ने अपनी छोटी बहन आरजू को अपने पास बुला लिया, ताकि वह बच्चों का ध्यान रख सके.
पहली जनवरी, 2019 को हिना मुजफ्फरनगर गई थी. घर पर उस के दोनों बच्चों के अलावा छोटी बहन आरजू थी. उसी रात हिना जब वहां से घर लौटी तो दोनों बच्चे घर पर नहीं थे. उस ने आरजू से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि शाम के समय अर्श और महक पास की दुकान से चौकलेट लेने गए थे, तब से वापस नहीं लौटे.

यह सुन कर हिना के होश उड़ गए. वह बोली, ‘‘वहां से कहां गए? तूने उन्हें ढूंढा नहीं?’’

‘‘मैं ने उन्हें बहुत ढूंढा, लेकिन उन का पता नहीं चला.’’ आरजू बोली.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इतनी रात को वह बच्चों को कहां ढूंढे, यह हिना की समझ में नहीं आ रहा था. जिस दुकान पर वे गए थे वह भी बंद हो चुकी थी. 4 साल के बेटे अर्श और 6 साल की बेटी महक की चिंता में हिना रात भर लिहाफ ओढ़े बैठी रही. बच्चों की चिंता में भूखप्यास तो दूर, उसे नींद तक नहीं आई. उस ने सारी रात जागते हुए गुजारी.

सुबह होते ही वह बच्चों की खोज में जुट गई. परचून की दुकान खुलने पर वह दुकान वाले के पास गई. दुकानदार ने बताया कि दोनों बच्चे उस की दुकान पर आए तो थे, लेकिन जब वह चौकलेट ले कर अपने घर लौट रहे थे तो उसी वक्त वहां 2 युवक आए थे. उन दोनों ने बच्चों को गोद में उठा लिया था. इस के बाद वे उन्हें एक सफेद रंग की कार में बैठा कर उन्हें ले गए. बच्चे उन के साथ इस तरह चले गए थे, मानो वे दोनों युवक उन के परिचित हों.

यह सुन कर हिना घबरा गई. उस ने सोचा कि ऐसा कौन परिचित हो सकता है, जो बच्चों को कार में बैठा कर ले गया. हिना को अपने तलाकशुदा पति आरिफ पर शक हुआ. फिर भी उस ने अपनी सभी रिश्तेदारियों में बच्चों को ढूंढा. पूरे दिन बच्चों को यहांवहां तलाशने के बाद भी जब उन का कहीं पता न चला तो हिना 2 जनवरी को ही शाम के समय हरिद्वार की कोतवाली मंगलौर पहुंच गई.

वहां मौजूद इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा को उस ने बच्चों के गायब होने की बात बता दी.

‘‘कल शाम बच्चों का अपरहण हुआ था, वारदात को 24 घंटे होने वाले हैं. तुम ने और तुम्हारी बहन ने घटना की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी?’’ इंसपेक्टर शर्मा ने नाराजगी भी जाहिर की.

‘‘सर, हम पहले तो बच्चों को आसपास ढूंढते रहे, इस के बाद सुबह से हम बच्चों को अपने रिश्तेदारों के घर जा कर ढूंढते रहे. जब वे वहां भी नहीं मिले तब हम यहां आए हैं.’’ हिना बोली.

‘‘ठीक है, तुम बच्चों के फोटो दे दो ताकि उन्हें तलाश करने में आसानी हो.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने कहा तो हिना ने अपने पर्स से दोनों बच्चों के फोटो निकाल कर दे दिए.

हिना की तहरीर पर इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा ने 4 वर्षीय अर्श उर्फ चांद और 6 वर्षीय महक के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस की जानकारी उन्होंने सीओ (मंगलौर) मनोज कत्याल, एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी.

एक ही परिवार के 2 बच्चों के अपहरण की सूचना पा कर सीओ मनोज कत्याल और एसपी देहात मणिकांत मिश्रा कुछ देर में ही मंगलौर कोतवाली पहुंच गए. एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने इंसपेक्टर शर्मा को बच्चों के अपहरण के मामले में तेजी से काररवाई करने के निर्देश दिए.

इस के बाद कोतवाल शर्मा ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. उस वक्त शाम के 6 बज चुके थे. उसी समय हिना 2 युवकों के साथ कोतवाली पहुंची. हिना ने अपने साथ आए एक युवक का परिचय कराते हुए बताया कि इन का नाम ताबीज है. यह पास के ही गांव बुक्कनपुर में रहते हैं और मेरे पारिवारिक मित्र हैं.

दूसरे युवक का नाम हिना ने आजम बताया. वह भी गांव बुक्कनपुर में रहता था. हिना ने बताया कि वे दोनों अकसर उस के घर पर आते रहते हैं. यदाकदा उस की मदद भी करते हैं. इस के बाद इंसपेक्टर शर्मा हिना, ताबीज व आजम को ले कर एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व सीओ मनोज कत्याल के पास पहुंचे.

उन के हावभाव से एसपी (देहात) को उन पर शक हुआ तो उन्होंने दोनों युवकों से बच्चों के अपहरण की बाबत पूछताछ की. दोनों ने बताया कि जब बच्चे गायब हुए थे तो वे अपने घरों पर थे. उन्हें बच्चों के गायब होने की जानकारी हिना से मिली थी.

काफी पूछताछ के बाद भी उन से बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर मणिकांत मिश्रा ने तत्काल उस दुकानदार को थाने बुलवाया, जिस के सामने 2 युवकों द्वारा दोनों बच्चों को गोद में उठा कर कार में ले जाया गया था.

जब दुकानदार वहां आया तो उस ने थाने में आए ताबीज व आजम को देख कर कहा कि ये दोनों ही अर्श व महक को अपने साथ ले गए थे. दुकानदार के यह बताते ही ताबीज व आजम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. ताबीज ने पुलिस को बताया कि वे दोनों बच्चों को अपने साथ ले तो गए थे, लेकिन बच्चों को चौकलेट दिलवा कर उन्हें उन के घर के पास छोड़ दिया था.

हिना ने भी दोनों अधिकारियों को बताया कि वे दोनों उस के परिवार के हितैषी हैं. ये उस के बच्चों का अपहरण नहीं कर सकते. इस के बाद जब एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने हिना की बहन आरजू से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि बच्चे चौकलेट ले कर एक बार घर आए थे. उस के बाद ही वे लापता हुए थे.

इस से पुलिस को आरजू की बातों पर भी शक होने लगा, क्योंकि उस ने पहले बताया था कि बच्चे दुकान से चौकलेट ले कर घर लौटे ही नहीं थे. इस तरह ताबीज और आजम के साथ आरजू भी संदेह के दायरे में आ गई. अधिकारियों ने उस समय उन से और पूछताछ नहीं की, बल्कि उन सभी को घर भेज दिया. इस मामले की जांच एसआई चंद्रमोहन सिंह को सौंप दी गई.

एसआई चंद्रमोहन सिंह ने एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा को बताया कि जहां से हिना के बच्चों का अपहरण होना बताया जा रहा है, वह स्थान सीसीटीवी कैमरे की रेंज में नहीं है. चूंकि ताबीज व आजम शक के घेरे में थे, इसलिए उन्होंने एसआई चंद्रमोहन सिंह को निर्देश दिए कि उन दोनों से अलगअलग वीडियो रिकौर्डिंग के साथ पूछताछ करें.

3 जनवरी, 2019 को पुलिस ताबीज व आजम को थाने ले आई. दोनों ने पुलिस को बताया कि वे पहली जनवरी को अपनी कार से हिना के घर आए थे. हिना उस वक्त घर पर नहीं थी. घर पर हिना की बहन आरजू थी. अर्श व महक को चौकलेट दिलाने के बाद वे वापस अपने घर चले गए थे.

जिस तरह से दोनों युवकों ने बताया उस से पुलिस को ऐसा लगा वे दोनों रटीरटाई बात बोल रहे हों. इसलिए कोतवाल शर्मा ने एसआई चंद्रमोहन को निर्देश दिए कि वह ताबीज को अलग कमरे में ले जा कर पूछताछ करें. खुद कोतवाल आजम से पूछताछ करने लगे.

दूसरे कमरे में जाते ही ताबीज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने आजम के साथ हिना के दोनों बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया था. आजम ने भी यह अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद बच्चों के अपरहण की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

मंगलौर में रहते हुए घर का खर्च चलाने के लिए हिना शादियों में डांस करने लगी थी. एक दिन हिना पिरान कलियर में एक निकाह में डांस कर रही थी. इस निकाह में गांव बुक्कनपुर निवासी ताबीज भी शामिल था. हिना को डांस करते देख ताबीज उस की अदाओं पर फिदा हो गया.

डांस समाप्त होने के बाद ताबीज ने हिना के डांस की तारीफ की. इस के बाद उस ने हिना से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया. इस के बाद वह जबतब हिना से बात करने लगा. कुछ दिनों बाद ताबीज ने हिना के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. वह जब भी जाता, हिना व उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता था.

हिना से दोस्ती के बाद ताबीज ने उस के साथ निकाह करने के सपने भी देखने शुरू कर दिए. ताबीज के परिजन भी उस से हिना का निकाह कराने को तैयार थे लेकिन वह हिना के पहले शौहर के बच्चों को नहीं अपनाना चाहते थे.

ताबीज अच्छी तरह जानता था कि अगर उसे हिना से निकाह करना है तो हिना के बच्चों को रास्ते से हटाना होगा. इस बारे में उस ने हिना की छोटी बहन आरजू से बात की. आरजू भी दूसरी बार बहन का घर बसाने के लालच में ताबीज की इस दरिंदगी में शामिल हो गई.

घटना वाले दिन ताबीज अपनी वैगनआर कार से अपने दोस्त आजम के साथ हिना के घर के बाहर पहुंचा. वहां पर आरजू ने अर्श व महक को चौकलेट लेने के बहाने बाहर भेज दिया. बच्चे चूंकि ताबीज को पहचानते थे, इसलिए वे खुश हो कर उस के साथ कार में बैठ गए. उन मासूमों को क्या पता था कि वे दोनों उन्हें कार में बैठा कर घुमाने नहीं बल्कि मौत के घाट उतारने ले जा रहे हैं.

थोड़ी देर बाद आजम ने अर्श व महक को नशीली गोलियां मिली हुई चौकलेट खाने के लिए दीं. उस वक्त उन की कार मुजफ्फरनगर की ओर जा रही थी. कुछ ही देर में दोनों बच्चे नशे में बेसुध हो गए. जैसे ही कार गांव कुम्हेड़ा के पास गंगनहर पुल पर पहुंची तो ताबीज ने कार से दोनों बेसुध बच्चों को गंगनहर में फेंक दिया.

पुलिस ने आरजू को भी गिरफ्तार कर लिया और बच्चों के शवों की तलाश के लिए गोताखोरों की मदद ली. कई दिनों तक की खोजबीन के बाद भी दोनों बच्चों में से किसी का शव गोताखोरों को नहीं मिला. पुलिस ने ताबीज की निशानदेही पर उस के घर से अपहरण में इस्तेमाल की गई वैगनआर कार भी बरामद कर ली.

10 जनवरी, 2019 को मुजफ्फरनगर के थाना जानसठ के अंतर्गत पड़ने वाली गंगनहर की चित्तौड़ झाल पर तैनात कर्मचारी ने एक बच्ची का शव झाल में फंसा हुआ देखा, जिस की उम्र 5-6 साल थी.
उसे अखबारों की खबरों से यह पहले ही पता था कि हरिद्वार के मंगलौर थाने से 2 बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया गया था, जिन की लाशें गोताखोर भी नहीं ढूंढ पाए थे. इसलिए उस ने फोन कर के बच्ची की लाश मिलने की सूचना फोन द्वारा मंगलौर कोतवाली को दे दी.

यह खबर मिलते ही एसआई चंद्रमोहन चित्तौड़ झाल पर पहुंचे. शव को उन्होंने पहचान लिया. वह शव महक का ही था. जरूरी काररवाई कर के उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया. बाद में पुलिस को महक की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस में उस की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया.

पुलिस ने ताबीज, आजम और आरजू से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

परफैक्ट क्राइम : पीबी65-3372 नंबर कार का अंतिम संस्कार

इस केस की कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं थी. यह अलग बात है कि ऐसे विषयों पर अब तक कई फिल्में और धारावाहिक बन चुके हैं, जो काफी लोकप्रिय भी रहे. इस केस की स्क्रिप्ट चालाक अपराधियों ने इतनी सफाई से लिखी थी कि किसी को उन पर तनिक भी शक न हो. कहानी में दुर्घटना से ले कर मौत और मौत के बाद अंतिम संस्कार से ले कर भोग तक के हर दृश्य को बड़ी होशियारी और सफाई से लिखा गया था.

हिमाचल प्रदेश स्थित सिरमौर के काला अंब-पांवटा साहब हाइवे पर एक गांव है जुड्दा का जोहड़. वहां से 5 किलोमीटर दूर नवोदय स्कूल है. घटना 19-20 नवंबर, 2018 की रात की है. नवोदय स्कूल के पास एक कार, जिस का नंबर था पीबी65-3372, संतुलन खो कर पहले साइनबोर्ड से टकराई, फिर एक चट्टान से टकराने के बाद धूधू कर जलने लगी.

हादसे के वक्त कार की ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति बैठा था. किसी ने फोन कर के इस की सूचना सिरमौर नाहन पुलिस को दी. फोन करने वाले ने एंबुलैंस को भी इस घटना की जानकारी दे कर तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने का अनुरोध किया था.

जिस समय एंबुलैंस घटनास्थल पर पहुंची, तभी उन के फोन के वाट्सऐप पर किसी ने घटना से संबंधित एक वीडियो क्लिप भेजा, जिस में कार धूधू कर जलती नजर आ रही थी. सिरमौर पुलिस को भी ऐसा ही वीडियो भेजा गया था. इस के बाद यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था.

बहरहाल, सूचना मिलते ही एसएचओ नाहन इंसपेक्टर विजय कुमार, एडीशनल एसएचओ योगिंदर सिंह और हवलदार जीरक व अमरिंदर के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. कार में सवार व्यक्ति पूरी तरह जल चुका था. आग इतनी भयानक लगी थी कि ड्राइवर को बाहर निकलने का मौका नहीं मिल पाया था. हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे आग लगते ही कार का औटोमैटिक लौक लग गया हो.

कार में सवार व्यक्ति ऐसी स्थिति में नहीं था कि उसे उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया जाता. संभवत: जिंदा जलने से उस की मौत हो गई थी. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए मृत व्यक्ति के कंकाल का पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए नाहन मैडिकल कालेज अस्पताल भेजा गया.

घटना की जानकारी मिलते ही एसपी रोहित मालपानी, एडीशनल एसपी वीरेंदर ठाकुर, डीएसपी नाहन बबीता राणा सहित क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई. कार को फोरैंसिक और मकैनिकल जांच के लिए पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

कार लगभग पूरी तरह से जल कर राख हो चुकी थी. तलाशी लेने पर कार के डैशबोर्ड की दराज से कार की जो आरसी मिली वो खरड़ निवासी नरिंदर कुमार पुत्र प्रताप सिंह के नाम थी. पुलिस ने कार दुर्घटना का मामला धारा 304, 279 के तहत दर्ज कर इस की सूचना पंजाब पुलिस को दे दी.

पंजाब पुलिस ने खरड़ जा कर जांच की, तो पता चला कार नरिंदर की ही थी, जो उस ने कुछ समय पहले डेराबस्सी निवासी आकाश को बेच दी थी. उस ने कार के पेपर अभी ट्रांसफर नहीं करवाए थे. आकाश डेराबस्सी का नामी बिल्डर था. दुर्घटना की सूचना जब उस के घर वालों को दी गई, तो उन्होंने मृतक की शिनाख्त आकाश के रूप में कर दी.

रहस्य बनी रही बर्निंग कार

पोस्टमार्टम के बाद मृतक की कंकालनुमा लाश उस के परिजनों के हवाले कर दी गई, जिस का उन्होंने अंतिम संस्कार भी कर दिया. पुलिस ने इसे दुर्घटना मान कर फाइल बंद कर दी. देखने को तो दुर्घटना के इस मामले का पटाक्षेप यहीं हो गया था, पर पिक्चर अभी बाकी थी.

इस कहानी का एक पहलू यह भी था कि दुर्घटना के 2 दिन बाद 22 नवंबर को ढोलपुर राजस्थान निवासी बबलू नामक एक युवक और उसकी मां ने थाना डेराबस्सी में अपने भाई राजू के गुमशुदा होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. बबलू के अनुसार उस का भाई आकाश नामक बिल्डर के पास काम करता था और हर समय उस के साथ ही रहता था.

बबलू ने अपने बयान में यह भी बताया कि आकाश के घर वालों के अनुसार आकाश की मृत्यु हो चुकी है. राजू को आखिरी बार आकाश के साथ ही देखा गया था. डेराबसी पुलिस ने राजू की गुमशुदगी दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. इसी सिलसिले में डेराबस्सी पुलिस ने सिरमौर पुलिस से भी संपर्क किया.

सिरमौर पुलिस ने पंजाब पुलिस को बताया कि कार एक्सीडेंट के समय कार में केवल एक ही व्यक्ति था.
इस जानकारी के बाद पुलिस को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि कार में जब अकेला आकाश था तो फिर हर वक्त उस के साथ रहने वाला राजू कहां गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि कार में आकाश नहीं बल्कि राजू रहा हो. लेकिन राजू के भाई बबलू के अनुसार, राजू को कार चलाना नहीं आता था.

इस जानकारी के बाद सिरमौर और पंजाब पुलिस को यह मामला संदिग्ध लगने लगा. सिरमौर पुलिस ने मामले की तह तक जाने के लिए गुपचुप तरीके से जांच शुरू कर दी. मामले के संदिग्ध होने की एक वजह यह भी थी कि जलती कार का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भेजा गया था. उस वीडियो को भेजने वाला व्यक्ति कौन था?

साधारण मामला नहीं था

पुलिस अधिकारियों ने जब उस वीडियो को ध्यान से देखा तो पता चला कि एक कार चट्टान से टकराती है और फिर उस में आग लग जाती है. इस के बावजूद कार में सवार व्यक्ति बिना हिलेडुले चुपचाप बैठा रहता है. आग लगने पर ना तो वह तड़पता है और न ही कार से बाहर निकलने की कोशिश करता है. भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आदमी अपना बचाव किए बिना खामोशी से जल कर मौत को गले लगा ले. यह बात पुलिस के गले से नहीं उतरी.

इस बीच मृतक आकाश के घर वालों ने थाने आ कर आकाश के मृत्यु प्रमाण पत्र की मांग करनी शुरू कर दी. मृत्यु प्रमाणपत्र प्राप्त करने के मामले में उन्होंने इतनी जल्दी मचाई कि पुलिस को सोचना पड़ा. आखिर ऐसा क्या कारण है कि आकाश के घर वाले इतनी जल्दी कर रहे हैं. इस मामले में किसी षडयंत्र की बू आती दिखाई दे रही थी.

सिरमौर पुलिस ने इस केस में डेराबस्सी पुलिस से सहयोग मांगा और केस को महज दुर्घटना का साधारण मामला न समझ इस की तह तक जाने का निश्चय किया. एडीशनल एसपी वीरेंदर ठाकुर की देखरेख में एसएचओ इंसपेक्टर विजय कुमार ने इस केस की पुन: तफ्तीश शुरू करते हुए शहर में लगे उन तमाम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई जो दुर्घटना वाली रात काम कर रहे थे. उस रात की फुटेज देखी गईं, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.

दुर्घटना वाली रात सैंट्रो एचआर03-3504 और मारुति पीबी65-डब्ल्यू 3372 नंबर की 2 कारें शहर में आगेपीछे चलती नजर आईं. ये कारें शहर में 2 बार देखी गईं. इन दोनों कारों ने पहले शहर का एक चक्कर काटा और फिर दूसरा चक्कर काटते हुए मौकाएवारदात की ओर निकल गईं. दोनों कारों में एकदो मिनट का अंतर था.

शक यकीन में तब बदला जब मारुति कार के पीछे सैंट्रो कार भी घटनास्थल पर गई. अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रही थी. जलते वक्त आदमी छटपपटाता है, जान बचाने की लाख कोशिश करता है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था. आकाश के घर वालों द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र मांगने की जल्दी करना, स्वयं घटनास्थल का वीडियो बना कर वायरल करना, एक सोचीसमझी साजिश का हिस्सा लग रहा था.
इंसपेक्टर विजय कुमार ने इस मामले के तमाम पुख्ता सबूत इकट्ठा कर के 3 दिसंबर को डेराबस्सी से आकाश के भतीजे रवि को हिरासत में ले लिया. रवि की गिरफ्तारी के बाद इस मामले की परतें खुदबखुद खुलती चली गईं.

इस षडयंत्र का मुख्य आरोपी विदेश भागने की फिराक में था, इसलिए उस की गिरफ्तारी से पहले रवि की गिरफ्तारी को भी परदे में रखा गया. पूछताछ के दौरान रवि ने पुलिस को बताया कि कार में जलने वाला आकाश नहीं था. आकाश नेपाल के रास्ते विदेश जाने वाला था.

50 लाख का बीमा लेने के लिए रचा षडयंत्र 

खास मुखबिरों से इंसपेक्टर विजय को खबर मिली कि आकाश रेल मार्ग से नेपाल जाने वाला है. इस मामले में नाहन पुलिस ने रेलवे पुलिस की मदद से अपना जाल बिछा दिया और आकाश को ट्रेन में सफर करते हुए हरियाणा के पलवल से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने आकाश और रवि को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के दौरान इस बर्निंग कार मामले की पूरी कहानी सामने आ गई. आकाश अपने भतीजे के साथ मिल कर खुद को मरा हुआ साबित करना चाहता था ताकि 50 लाख की बीमा राशि उस के घर वालों को मिल जाए.

योजना को कार दुर्घटना का जामा पहना कर आकाश ने अपने नौकर राजू को जिंदा जला दिया था. जबकि उस की मां और भाई राजू की तलाश में दरदर की ठोकरें खाते भटक रहे थे.

पैसों के लालच में मानवीय संवेदनाएं भुला कर पेशे से ठेकेदार आकाश इतने वहशीपन पर उतर आया था कि उस ने अपने ही मजदूर राजू को जिंदा जला कर ऐसी दर्दनाक मौत दी, जिसे देखना तो दूर सुनने वाले की भी रूह कांप जाए.

बड़ेबड़े ठेकेदारों के साथ ठेकेदारी करने वाले आकाश ने अपनी मौत की ही नहीं, बल्कि अपने क्रियाकर्म तक की स्क्रिप्ट खुद लिखी थी. इस स्क्रिप्ट के अनुसार उस के घर वालों ने बाकायदा उस के अंतिम संस्कार से ले कर उस की तेरहवीं पर क्रियाकर्म का खाना खिलाने तक बखूबी भूमिका निभाई थी. पुलिस अब इस बात की भी जांच करेगी कि इस मामले में उस के घर वालों का भी हाथ था या नहीं?

बीमा राशि डकारने के लिए आकाश ने पहले अपने नौकर राजू को जम कर शराब पिलाई थी. इस के बाद जब वह नशे में बेसुध हो गया तो रवि और आकाश ने मिल कर आकाश के कपड़े राजू को पहना दिए. साथ ही अपनी अंगूठी और ब्रैसलेट भी राजू के हाथ में पहना दिया, ताकि पुलिस उसे आकाश समझे.

इस के बाद आकाश कार में काला अंब-पांवटा सड़क पर जुड्दा का जोहड़ के पास पहुंचा और तारपीन का तेल छिड़क कर कार को आग लगा दी. शातिरों ने हत्या की वारदात को दुर्घटना का रूप देने के लिए बाकायदा जलती कार का वीडियो बना कर खुद ही वायरल कर दिया था.

बेचारा गरीब मजदूर मारा गया

राजस्थान का राजू आकाश के पास बतौर मजदूर काम करता था. लेकिन मेहनतमजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरणपोषण करने आए राजू को शायद इस बात का तनिक भी इल्म नहीं था कि जिस के पास वह काम करता है वही उसे ऐसी दर्दनाक मौत देगा.

उधर रोरो कर बुरा हाल करती राजू की मां का कहना था कि उस ने जिगर के टुकड़े को पालपोस कर बड़ा किया. पढ़ायालिखाया. वह पैसा कमाने के लिए पंजाब चला आया था. लेकिन बुढ़ापे में सहारा बनने वाला बेटा मिलना तो दूर मां को उस के अंतिम दर्शन भी नहीं हो सके. अपने दिल के टुकड़े के खोने से वह भीतर तक टूट चुकी थी.

सिरमौर पुलिस की सूचना के बाद मृतक राजू की मां और भाई बबलू नाहन पुलिस के बुलावे पर नाहन गए. पुलिस ने दोनों से राजू के बारे में जानकारी ली और जली हुई कार से बरामद मृतक राजू के शरीर के कुछ अंशों का डीएनए करवाने के लिए उस की मां और भाई के ब्लड सैंपल लिए. डीएनए मैच होने के बाद वैज्ञानिक तौर पर यह पुष्टि हो पाएगी कि मृतक राजू ही था.

इस मामले में हैरान करने वाली बात यह भी थी कि बर्निंग कार हत्याकांड की स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी. पर सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने के लिए सिरमौर ही क्यों चुना गया था.

दरअसल स्क्रिप्ट के लेखकों को ऐसा स्थान चाहिए था, जहां कार को न्यूट्रल करने के बाद आग लगाई जा सके. यह सुनसान स्थान नाहन से 5 किलोमीटर की दूरी पर था.

इस बर्निंग कार हत्याकांड के मामले से लगभग एक दशक पूर्व हुए सूटकेस कांड की भी यादें जुड़ी हुई है. 10 वर्ष पहले इसी इलाके में सूटकेस कांड हुआ था. पुलिस को यहीं पर एक महिला और एक बच्ची की लाशें 2 अलगअलग सूटकेसों में बंद मिली थीं. यह मामला अभी तक अनसुलझा है.

इस मामले में पुलिस काररवाई पूरी करने के बाद 12 दिसंबर को दोनों दोषियों को अदालत में पेश कर न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक हत्या ऐसी भी : फिर पुलिस भी चकमा खा गई

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था. मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का इंतजाम किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह नतीजा निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया.

मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे दिलासा दिया. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था.

न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तोंयारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से गहरा दोस्त हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौनकौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरनेमारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह बेऔलाद औरतों को औलाद देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गालीगलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से औलाद ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी औलाद समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरीशराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा मंजूरे, ‘‘मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलगअलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का मतलब यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेनादेना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई. मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है.

मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सचसच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारीबारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सचसच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यारमोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था.

कयूम को सेशन कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.

खून में डूबा प्यार का दामन : किस ने उजाड़ी दो दिलों की दुनिया

18 वर्ष की वैष्णवी दरमियाने कद की सुंदर युवती थी. उस के पिता हरीराम गुप्ता अपने सब बच्चों से ज्यादा उसे प्यार करते थे. चूंकि वह जवान थी, इसलिए सतरंगी सपने उस के दिल में आकार लेने लगे थे. वह अपने भावी जीवनसाथी के बारे में सोचती रहती थी. कभी खयालों में तो कभी कल्पनाओं में वह उस के वजूद को आकार देने की कोशिश करती रहती.

वैष्णवी उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला कस्बे के मोहल्ला इमलिया बाग में रहने वाले हरीराम गुप्ता की बेटी थी. हरीराम के 3 बेटे थे, वेद प्रकाश उर्फ उत्तम, ज्ञानप्रकाश उर्फ ज्ञानू, सर्वेश उर्फ शक्कू और 2 बेटियां वैष्णवी और लक्ष्मी थीं.

वेदप्रकाश उर्फ उत्तम ने घर में ही बनी दुकान में किराने की दुकान खोल रखी थी. हरीराम और ज्ञानू उस की मदद करते थे. हरीराम ने तीसरे बेटे सर्वेश को एक पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी थी. वह उसी में सवारियां ढो कर अच्छेखासे पैसे कमा लेता था.

एक दिन वैष्णवी की मुलाकात गांव के ही रहने वाले गोविंदा से हुई तो वह उसे देखती रह गई. वह बिलकुल वैसा ही था, जैसा अक्स उस के ख्वाबोंखयालों में उभरता था. गोविंदा से निगाहें मिलते ही उस के शरीर में सनसनी सी फैल गई.

उधर गोविंदा का भी यही हाल था. वैष्णवी के मुसकराने का अंदाज देख कर उस का दिल भी जोरों से धड़क उठा. मन हुआ कि वह आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में ले ले, मगर यह मुमकिन नहीं था, इसलिए वह मन मसोस कर रह गया. होंठों की मुसकराहट ने दोनों को एकदूसरे के आकर्षण में बांध दिया था. उस दिन के बाद उन के बीच आंखमिचौली का खेल शुरू हो गया.

गोविंदा भी संडीला के मोहल्ला अशरफ टोला में रहने वाले दिलीप सिंह का बेटा था. दिलीप सिंह के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे, जिस में गोविंदा तीसरे नंबर का था. दिलीप सिंह चाय का स्टाल लगाते थे.

सन 2002 में दिलीप बीमार हो कर बिस्तर से लग गए. उस समय उन के दोनों बेटे गोविंदा और आकाश पढ़ रहे थे. पिता के बीमार होने से घर की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गई तो दोनों भाइयों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए दोनों भाई कस्बे की एक गारमेंट शौप पर नौकरी करने लगे. दिलीप सिंह की बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. 2 बेटे और एक बेटी अविवाहित थे.

नजरें चार होने के बाद गोविंदा रोजाना वैष्णवी के घर के कईकई चक्कर लगाने लगा. वैष्णवी को भी चैन नहीं था. वह भी उस का दीदार करने के लिए जबतब बाहरी दरवाजे की चौखट पर आ बैठती.

जब नजरें मिलतीं तो दोनों मुसकरा देते. इस से उन के दिल को सुकून मिल जाता था. यह उन की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया था.

दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे. दिलों ही दिलों में मोहब्बत जवान होती जा रही थी. लब खामोश थे, मगर निगाहें बातें करती थीं और दिल का हाल बयान कर देती थीं. लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलता.
गोविंदा चाहता था कि वह वैष्णवी से बात कर के अपने दिल का हाल बता दे. पर यह बात सरेआम नहीं कही जा सकती थी. आखिर एक दिन गोविंदा को मौका मिल गया तो उस ने अपने दिल की बात उस से कह दी. चूंकि वैष्णवी भी उसे चाहती थी इसलिए मुसकरा कर उस ने नजरें झुका लीं.

प्यार स्वीकार हो जाने पर वह बहुत खुश हुआ. जैसे आजकल अधिकांश लड़के लड़कियों के पास स्मार्टफोन होता है तो वे दूसरों को दिखाने के लिए उसे हाथ में पकड़े रहते हैं. ऐसा करते हुए उस ने वैष्णवी को नहीं देखा था. फिर भी उस ने मौका मिलने पर एक दिन वैष्णवी से उस का मोबाइल नंबर मांगा. वैष्णवी ने उसे बता दिया कि उस के पास फोन नहीं है.

‘‘कोई बात नहीं, मैं जल्द ही एक फोन खरीद कर तुम्हें दे दूंगा.’’ गोविंदा ने कहा.

इतना सुन कर वैष्णवी मन ही मन खुश हुई. अगले ही दिन गोविंदा ने एक मोबाइल खरीद कर वैष्णवी को दे दिया. वैष्णवी ने उसे पहले ही बता दिया था कि मोबाइल इतना बड़ा ले कर आए, जिसे वह आसानी से छिपा कर रख सके, इसलिए गोविंदा उस के लिए बटन वाला फीचर मोबाइल ले कर आया था. उस मोबाइल को वैष्णवी ने छिपा कर रख लिया. जब उसे समय मिलता, वह गोविंदा से बात कर लेती.

दोनों ही फोन पर काफीकाफी देर तक प्यारमोहब्बत की बातें करते थे. उन की मोहब्बत दिनोंदिन बढ़ती गई. दोनों जब तक बात नहीं कर लेते, तसल्ली नहीं होती थी. उन्हें मोहब्बत के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता था. दोनों शादी के फैसले के अलावा यह भी तय कर चुके थे कि वे साथ जिएंगे, साथ ही मरेंगे.
बात 2 जनवरी, 2019 की है. दोपहर के समय गोविंदा अपने घर आया. उस समय वह कुछ परेशान था. उस ने खाना भी नहीं खाया. गोविंदा ने अपनी छोटी बहन सोनम से सारी बातें बता देता था. उस ने वैष्णवी और अपने प्यार की बात सोनम को बता दी थी. उस दिन छोटी बहन ने गोविंदा से उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने अपनी परेशानी बता दी. साथ ही उसे कसम दी कि इस बारे में घर वालों को कुछ न बताए.

इतना कह कर वह अपराह्न 3 बजे के करीब घर से चला गया. जब वह देर रात तक घर नहीं लौटा तो मां सुशीला और भाई आकाश ने उसे सारी जगह खोजा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

4 जनवरी, 2019 को सीतापुर के थाना संदना की पुलिस ने एक अज्ञात युवक की लाश बरामद की. चूंकि लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी, इसलिए इस की सूचना आसपास के जिलों की पुलिस को भी भेज दी गई.

गोविंदा के भाई आकाश के किसी दोस्त को वाट्सऐप पर एक लाश की फोटो मिली तो वह उस फोटो को पहचान गया. वह लाश गोविंदा की थी. उस ने वह फोटो आकाश को वाट्सऐप कर के फोन भी कर दिया. आकाश ने जैसे ही भाई गोविंदा की लाश देखी तो वह फफक कर रो पड़ा. घर के सदस्यों को पता चला तो वह भी गमगीन हो गए.

गोविंदा की छोटी बहन सोनम ने रोते हुए मां और भाई को बताया कि गोविंदा इमलिया बाग मोहल्ले में रहने वाले हरीराम की बेटी वैष्णवी से प्यार करता था. 2 जनवरी को वैष्णवी का मोबाइल उस के घर वालों ने छीन लिया था. यह बात गोविंदा को पता चली तो वह वैष्णवी के घर गया था. गोविंदा ने सोनम को कसम दी थी कि वह यह बात किसी को न बताए.

आकाश पता कर के किसी तरह वैष्णवी के घर पहुंचा तो हरीराम घर पर ही मिल गया. उस ने गोविंदा के घर पर आने की बात से साफ इनकार कर दिया.

तब गोविंदा की मां सुशीला कोतवाली संडीला पहुंच गई. उस ने इंसपेक्टर जगदीश यादव को पूरी बात बता दी. इंसपेक्टर यादव ने सुशीला से कहा कि पहले सीतापुर के संदना थाने जा कर बरामद की गई लाश देख लें. हो सकता है वह गोविंदा की न हो कर किसी और की लाश हो.

सुशीला अपने बेटे आकाश को ले कर थाना संदना, सीतापुर पहुंच गई. थानाप्रभारी ने मांबेटों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उन्होंने उस की शिनाख्त गोविंदा के रूप में कर दी. पोस्टमार्टम के बाद गोविंदा की लाश उन्हें सौंप दी गई.

5 जनवरी की देर रात सुशीला ने संडीला कोतवाली के इंसपेक्टर जगदीश यादव को एक तहरीर दी. तहरीर के आधार पर पुलिस ने हरीराम गुप्ता और उस के बेटों वेदप्रकाश गुप्ता, ज्ञानप्रकाश गुप्ता, सर्वेश गुप्ता के अलावा दोनों बेटियों वैष्णवी और लक्ष्मी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 302, 201, 342 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए अगले ही दिन एएसपी ज्ञानंजय सिंह के निर्देश पर इंसपेक्टर यादव ने हरीराम गुप्ता, वेदप्रकाश गुप्ता और ज्ञानप्रकाश गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही गोविंदा की हत्या की थी. इस के बाद उन्होंने उस की हत्या के पीछे की सारी कहानी बता दी.

गोविंदा और वैष्णवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने अपनी मोहब्बत की कहानी को घर वालों और जमाने से छिपाने की बहुत कोशिश की थी, परंतु कामयाब नहीं हो सके. उन के प्रेम संबंधों की खबर किसी तरह वैष्णवी के घर वालों को लग गई. इस के बाद वे उस पर निगाह रखने लगे.

एक दिन वैष्णवी घर पर अकेली थी. गोविंदा ने वैष्णवी को मोबाइल दे ही रखा था. उस दिन वैष्णवी ने गोविंदा को फोन कर के घर आने को कह दिया. गोविंदा उस के दरवाजे पर पहुंच गया. जैसे ही गोविंदा ने दस्तक दी, वैष्णवी ने दरवाजा खोल दिया. गोविंदा को सामने देख वह खुशी से झूम उठी.

वह उसे घर के अंदर ले गई. गोविंदा के अंदर दाखिल होते ही वैष्णवी ने दरवाजा बंद कर दिया और उस से लिपट गई. वैष्णवी की आंखों में आंसू छलक आए. गोविंदा ने उस से पूछा, ‘‘क्या हुआ वैष्णवी?’’

‘‘गोविंदा, घर में सब को हमारे संबंधों का पता चल गया है. मेरे घर वाले हमें कभी एक नहीं होने देंगे.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा नहीं होगा वैष्णवी. तुम मेरे ऊपर विश्वास रखो. मैं जल्द तुम्हें यहां से कहीं दूर ले जाऊंगा. वहां सिर्फ हम दोनों होंगे, हमारा प्यार होगा और हमारी खुशियां होंगी.’’ गोविंदा ने भरोसा दिया.

‘‘सच कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित होते हुए बोली.

‘‘एकदम सच.’’ गोविंदा ने कहा. इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को बांहों में लिया तो तनहाई के आलम में उन्हें बहकते देर नहीं लगी.

उस दिन गोविंदा काफी देर तक वैष्णवी के घर में रहा. दोनों ने जी भर कर बातें कीं और भावी जिंदगी के सपने बुने. फिर गोविंदा अपने घर चला गया.

उन की इस मुलाकात की जानकारी किसी तरह हरीराम और उस के बेटों को हो गई. वे सभी गुस्से से भर उठे और अपने घर की इज्जत नीलाम करने वाले को सबक सिखाने की ठान ली.

2 जनवरी, 2019 को हरीराम ने वैष्णवी को मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. हरीराम को समझते देर नहीं लगी कि वह गोविंदा से बात कर रही है और मोबाइल भी उसी का दिया हुआ है. हरीराम ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

दूसरी ओर गोविंदा को फोन पर वैष्णवी के पिता की गुस्से से भरी आवाज सुनाई दे गई थी, क्योंकि जिस समय वैष्णवी की गोविंदा से बात चल रही थी, उसी समय हरीराम कमरे में आया था. बेटी को फोन पर बात करते देख वह दरवाजे से ही दहाड़ा था.

पिता के दहाड़ने की आवाज सुन कर गोविंदा को समझते देर नहीं लगी कि वैष्णवी के पिता ने उसे बातें करते पकड़ लिया है. वह परेशान हो उठा.

वह घर पहुंचा तो काफी परेशान था. मां सुशीला ने गोविंदा से खाना खा लेने को कहा, लेकिन उस ने खाना नहीं खाया. छोटी बहन सोनम को समझते देर नहीं लगी कि जरूर कोई बात है.

उस ने पूछा तो गोविंदा ने वैष्णवी के मोबाइल पर बात करते पकड़े जाने की बात बता दी और कहा कि वह वैष्णवी के घर जा रहा है. जाते समय उस ने सोनम को कसम दी कि यह बात किसी को न बताए. इस के बाद वह घर से निकल गया.

गोविंदा सीधे वैष्णवी के घर पहुंचा. घर पर हरीराम मिला तो वह उस से लड़ने लगा. शोर सुन कर हरीराम के तीनों बेटे वेदप्रकाश, ज्ञानप्रकाश और सर्वेश बाहर निकल आए. उन्होंने उसे दबोच लिया और पिटाई शुरू कर दी. फिर उस के मुंह पर टेप चिपकाने के बाद उस के हाथपैर बांध कर जिंदा ही बोरे में बंद कर दिया. यह सब वैष्णवी और लक्ष्मी के सामने हुआ था.

देर रात साढ़े 10 बजे सभी ने बोरे में बंद गोविंदा को सर्वेश की पिकअप गाड़ी में रख लिया. फिर वे सीतापुर की तरफ रवाना हो गए. सीतापुर के संदना थाना क्षेत्र में एक सुनसान जगह पर उन्होंने हाथपैर बंधे गोविंदा को बोरे से निकाला और साथ लाए बांके से उस का गला रेत दिया. उस की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस का पर्स, आधार कार्ड और बोरे को जला दिया. लेकिन वह पूरी तरह नहीं जल पाए थे.

हरीराम, वेदप्रकाश व ज्ञानप्रकाश से पूछताछ करने के बाद इसंपेक्टर यादव ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बांका और पिकअप गाड़ी भी बरामद कर ली. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

फिर 23 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर यादव ने वैष्णवी और सर्वेश को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक लक्ष्मी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. बाकी अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

किसी का किसी से प्यार करना गलत नहीं है, लेकिन प्यार करने वाले सोचते हैं कि वे अपनेअपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्यार की मंजिल तक पहुंच जाएंगे. उन की यही भूल कई बार…

प्यार में हद पार करने का खतरनाक नतीजा

अगस्त, 2016 की सुबह मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के थाना पुरानी छावनी के खेरिया गांव के अटल गेट के पास खेत में 24-25 साल के एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना गांव वालों ने पुलिस को दी तो अधिकारियों को सूचना दे कर थानाप्रभारी प्रीति भार्गव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रही थीं कि एसपी हरिनारायण चारी मिश्र और एएसपी दिनेश कौशल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ लगी थी.

थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका. इस से साफ हो गया कि मृतक वहां का रहने वाला नहीं था. मृतक की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब से मोटरसाइकिल की चाबी मिली. लाश से थोड़ी दूरी पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. पुलिस ने मृतक की जेब से मिली चाबी उस मोटरसाइकिल में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस से पुलिस को लगा कि इस मोटरसाइकिल से मृतक की शिनाख्त हो सकती है.

पुलिस ने मोटरसाइकिल जब्त कर अन्य तमाम काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन जब पुलिस ने आरटीओ औफिस से मोटरसाइकिल के बारे में पता किया तो पता चला कि वह मोटरसाइकिल विनयनगर, सेक्टर 3, पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष किरार की थी.

पुलिस ने उस के घर जा कर पता किया तो घरवालों ने बताया कि संतोष एक अगस्त की सुबह अपनी मोटरसाइकिल से निकला है तो अब तक घर लौट कर नहीं आया है. इस से पुलिस को लगा कि खेत में पड़ी लाश संतोष की हो सकती है. लेकिन जब पुलिस ने वह लाश उस के पिता रामकिशोर को दिखाई तो उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे संतोष की नहीं है. इस के बाद पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में संतोष की कोई न कोई भूमिका जरूर है.

प्रीति भार्गव लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रही थीं कि शाम को थाना हजीरा के रहने वाले तुलसीराम पिछली शाम से गायब अपने बेटे की तलाश करतेकरते उन के पास आ पहुंचे. दरअसल, पिछली शाम को घर से निकला उन का बेटा शीतल न लौट कर आया था और न उस का फोन मिला था, तब परेशान हो कर वह थाना हजीरा में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए थे.

वहां से जब उन्हें बताया गया कि थाना पुरानी छावनी पुलिस ने एक लड़के की लाश बरामद की है तो वह थाना पुरानी छावनी पहुंच गए थे. थाना पुरानी छावनी पुलिस ने तुलसीराम को बरामद लाश दिखाई तो वह फफकफफक कर रोने लगे. इस के बाद उन्होंने खेतों में मिली लाश की शिनाख्त अपने बेटे शीतल की लाश के रूप में कर दी थी.

प्रीति भार्गव ने हत्यारे का पता लगाने के लिए तुलसीराम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं थी कि उन के बेटे की इस तरह हत्या कर दी जाती. उन से पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उस के बारे में जानने से मना कर दिया. तुलसीराम के बताए अनुसार, उन की किराने की दुकान थी. दोपहर को दुकान पर उन का बेटा शीतल बैठता था. इस तरह वह पिता के कारोबार में हाथ बंटाता था.

पुलिस ने हत्याकांड के खुलासे के लिए जितने भी लोगों से पूछताछ की, उन में से कोई भी ऐसी बात नहीं बता सका, जिस से वह हत्यारे तक पहुंच पाती. प्रीति भार्गव की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शीतल खेरिया गांव क्यों गया? अगर वह संतोष के साथ वहां गया था तो उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि संतोष ने उसे मौत के घाट उतार दिया? यह सब जानने के लिए पुलिस को संतोष की तलाश थी. आखिर आठवें दिन काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में वह असलियत छिपा नहीं सका और उस ने शीतल की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने शीतल की हत्या की जो कहानी सुनाई वह हैरान करने वाली तो थी ही, साथ ही आज के युवाओं में स्त्रीसुख की जो लालसा उपजी है, उस की हकीकत बयां करने वाली थी. पत्रकार कालोनी का रहने वाला इलेक्ट्रिशियन संतोष 31 जुलाई, 2016 की शाम घर लौट रहा था तो रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क पर खड़े एक युवक ने उसे हाथ दे कर रोक कर कहा, ‘‘भाई साहब, मैं यहां काफी देर से किसी सवारी का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन कोई सवारी मिल नहीं रही है. अगर आप मुझे अपनी मोटरसाइकिल से लिफ्ट दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

संतोष ने उसे मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. इस के बाद उस युवक ने अपना नाम शीतल बताते हुए कहा, ‘‘हजीरा के इंद्रनगर में मेरे पिता की किराने की दुकान है. मैं उसी पर बैठता हूं. लेकिन अब मेरा मन दुकान पर बैठने को नहीं होता, इसलिए मैं नौकरी खोज रहा हूं. इंटरव्यू देने ही मैं झांसी जा रहा था, लेकिन दुर्भाग्य से मेरी ट्रेन छूट गई.’’

‘‘कोई बात नहीं, यार, मैं तुम्हारी नौकरी यहीं लगवा दूंगा.’’ संतोष ने कहा. विजयनगर पहुंचतेपहुंचते दोनों में ऐसी दोस्ती हो गई कि उन्होंने पीनेपिलाने का प्रोग्राम बना डाला. फिर इस नई दोस्ती के नाम पर दोनों में एकदूसरे को शराब पिलाने की होड़ लग गई, जिस में करीब 500 रुपए खर्च हो गए. शराब के नशे ने अपना असर दिखाया तो संतोष ने जाने कितनी बार शीतल को भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह उस की नौकरी ग्वालियर में लगवा देगा. उसे यह शहर छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जाना नहीं पड़ेगा.

संतोष शीतल से बातें कर रहा था, तभी उस की प्रेमिका रेखा (बदला हुआ नाम) का उस के मोबाइल पर फोन आ गया. शीतल से उस की दोस्ती हो ही चुकी थी, इसलिए उस से बिना कुछ छिपाए वह रेखा से अश्लील यानी शारीरिक संबंधों की बातें करने लगा. संतोष रेखा से जो बातें कर रहा था, उन्हें सुनसुन कर शीतल उत्तेजित हो उठा. तब उस ने बिना किसी संकोच के संतोष से कहा, ‘‘कल तुम अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहे हो न, मुझे भी कल उस से मिलवा दो.’’

‘‘तुम उस से मिल कर क्या करोगे?’’ संतोष ने कहा तो जरा भी झिझके बिना शीतल ने कहा, ‘‘जो तुम करोगे, वही मैं भी करूंगा.’’

इस पर संतोष नाराज होते हुए बोला, ‘‘रेखा ऐसी लड़की नहीं है. वह केवल मुझ से ही बातें करती है और केवल मुझ से उस के शारीरिक संबंध हैं.’’ उस समय तो संतोष ने शीतल को समझाबुझा कर उस के घर भेज दिया. लेकिन सुबह होते ही शीतल संतोष को फोन कर के कहने लगा कि वही उस का सच्चा दोस्त है. सिर्फ एक बार वह अपनी प्रेमिका से उसे भी मौजमजा ले लेने दे. यही नहीं, उस ने यहां तक पूछ लिया कि वह कितनी देर में रेखा को उस के पास भिजवा रहा है.

नए दोस्त के मुंह से सुबहसुबह प्रेमिका के बारे में ऐसी बातें सुन कर संतोष को गुस्सा आ गया. किसी तरह अपने गुस्से पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘एक घंटे के भीतर तू मेरे घर आ जा, आज मैं तुझे रेखा से मिलवा ही देता हूं. तू भी याद करेगा कि कोई दोस्त मिला था.’’ शीतल के आने से पहले संतोष ने तय कर लिया था कि प्रेमिका पर बुरी नजर रखने वाले शीतल को अब वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. जैसे ही शीतल उस के घर पहुंचा, वह उसे ले कर निकल पड़ा.

संतोष ने ठेके से शराब की 2 बोतलें खरीदीं और मोटरसाइकिल से शीतल को ले कर पुरानी छावनी की ओर चल पड़ा. वहां एक पेड़ के नीचे बैठ कर दोनों ने शराब पी. अपनी योजना के अनुसार संतोष ने शीतल को कुछ ज्यादा शराब पिला दी थी. शीतल को जैसे ही शराब का नशा चढ़ा, उस ने कहा, ‘‘चलो बुलाओ रेखा को. तुम ने उस के साथ बहुत मजा लिया है, आज मैं उस के साथ ऐसा मजा लूंगा कि वह भी याद करेगी.’’

संतोष रात से ही शीतल की इन बातों से जलाभुना बैठा था. उस ने पैंट की जेब में रखा चाकू निकाला और एक ही झटके में शीतल का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने शराब की बोतल उठा कर एक ही सांस में पूरी शराब पी ली और शीतल की लाश को वहीं अटल गेट के पास एक खेत में छोड़ कर चला आया. मोटरसाइकिल वह इसलिए नहीं ला सका, क्योंकि उस की मोटरसाइकिल रास्ते में शीतल ने चलाने के लिए ले ली थी और उस की चाबी उस ने अपनी जेब में रख ली थी.

इसलिए शीतल की हत्या करने के बाद जब संतोष ने अपनी जेब में मोटरसाइकिल की चाबी देखी. चाबी न पा कर नशे में होने की वजह से उसे लगा कि चाबी कहीं गिर गई है. हड़बड़ाहट में वह गाड़ी वहीं छोड़ कर घर चला और घर से कानपुर चला गया. उसे उम्मीद थी कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. एक सप्ताह तक वह निश्चिंत हो कर कानपुर में रहा. लेकिन शायद उसे पता नहीं था कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक न एक दिन उस का राज खुल ही जाता है. पैसे खत्म होने के बाद संतोष पैसे लेने के लिए जैसे ही घर आया, थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने उसे पकड़ लिया. संतोष से पूछताछ में पता चला कि उस ने शीतल की हत्या जिस खेत में की थी, लाश वहां नहीं मिली थी.

पुलिस ने खेत की रखवाली करने वाले सोनू कुशवाह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने लाश पड़ी देखी तो डर के मारे उस ने अपने रिश्तेदार सैकी कुशवाह की मदद से लाश ले जा कर खेरिया मोड़ पर अटल गेट के पास रमेश शर्मा के खेत में फेंक दी थी. पुलिस ने सोनू और सैकी को हिरासत में ले लिया. इन का दोष यह था कि इन्होंने लाश पड़ी होने की सूचना पुलिस को नहीं दी थी, इस के अलावा सबूत नष्ट किए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भिजवा दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सहयोग : रंजीत सुर्वे

प्यार का खौफनाक पहलू

उत्तर प्रदेश जिला रायबरेली के थाना बछरावां का एक गांव है गजियापुर. इसी गजियापुर का छोटा सा मजरा है शेखपुरा समोधा. पुत्तीलाल लोध अपने परिवार के साथ इसी मजरे में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां आशा व माया और एक बेटा था उमेश. पुत्तीलाल कास्तकार था और खेतीकिसानी से अपने परिवार का भरणपोषण करता था. वह सीधासादा सरल स्वभाव का व्यक्ति था.

पुत्तीलाल की 3 संतानों में आशा सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही 16वां बसंत आतेआते उस की खूबसूरती और भी निखर गई थी. उस का अंगअंग फूलों की तरह महक उठा था. उस की पतली कमर, नैननक्श और गोरा रंग किसी को भी आंखों में चाहत जगा देने के लिए काफी थे.

खूबसूरत होने के साथ आशा पढ़ाई-लिखाई में भी तेज थी. प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर के बीए में एडमिशन ले लिया था. आशा की खूबसूरती ने कई युवकों को उस का दीवाना बना दिया था. लड़के उस के आगेपीछे घूमते थे. इन लड़कों में बृजेंद्र कुमार भी था.

बृजेंद्र शेखपुरा समोधा का ही रहने वाला था. उस का घर आशा के घर से कुछ दूरी पर था. बृजेंद्र के पिता जागेश्वर दबंग किसान थे. उन की आर्थिक व पारिवारिक स्थिति भी मजबूत थी. बृजेंद्र कुमार हृष्ट-पुष्ट सजीला नौजवान था. रहता भी बनसंवर कर था. वह पढ़ने में भी वह अच्छा था. बीए पास करने के बाद उस का चयन बीटीसी में हो गया था. वह अध्यापक बनने का इच्छुक था.

बृजेंद्र और आशा बचपन से एकदूसरे को जानते थे. कालेज आतेजाते दोनों की मुलाकातें होती रहती थीं. दोनों एकदूसरे को चाहत भरी नजरों से देखते और फिर मुसकरा देते थे. बृजेंद्र आशा को चाहने लगा था. आशा भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. उसे अपने लिए बृजेंद्र की आंखों में प्यार का सागर हिलोरे मारता लगता था. धीरेधीरे उस के मन में भी बृजेंद्र के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

जब बृजेंद्र को आभास हुआ कि आशा उस की ओर आकर्षित है तो वह दिल की बात दिल में नहीं रख सका. एक दिन आशा कालेज से अकेली घर लौट रही थी. बृजेंद्र ने उसे रास्ते में रोक लिया. आशा भले ही अकेली थी, लेकिन रास्ता सुनसान हीं था. इसलिए वहां दिल की बात नहीं कहीं जा सकती थी. मिनट 2 मिनट बात करने पर भले ही कोई संदेह न करता, लेकिन दिल की बात कहने के लिए समय चाहिए था, क्योंकि इजहारे इश्क करते के लिए भूमिका बांधने में ही समय लग जाता है.

यही वजह थी कि उस समय दिल की बात कहने के बजाए बृजेंद्र ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आशा, क्या आज शाम 7 बजे तुम मुझ से मिलने गांव के बाहर बगीचे में आ सकती हो?’’

आशा कुछ कहती उस के पहले ही बृजेंद्र ने एक बार फिर कहा, ‘‘मैं बेसब्री से तुम्हारा वहीं इंतजार करूंगा.’’

आशा का जवाब सुने बगैर बृजेंद्र चला गया. आशा हैरानी से तब तक उसे जाते देखती रही जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया. वह जानती थी कि बृजेंद्र ने उसे क्यों बुलाया है? सवाल यह था कि वह उस से मिलने जाए या न जाए. यही सोचते हुए वह घर पहुंच गई.

दोनों की पहली मुलाकात
आशा घर जरूर पहुंच गई, लेकिन उस का मन बेचैन था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जाए या न जाए. वह भले ही कितनी भी बेचैन रही. लेकिन शाम को बृजेंद्र से मिलने जाने से खुद को रोक नहीं सकी.

सहेली के घर जाने का बहाना बना कर वह बगीचे में पहुंची तो बृजेंद्र वहीं बैठा उस का इंतजार कर रहा था. उसे देख कर बृजेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘चलो यह अच्छी बात है कि तुम्हारा विश्वास नहीं टूटा. बताओ मुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘पहली बात तो यह कि तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. फिर भी बता दूं कि मैं ने तुम्हें यह बताने के लिए बुलाया है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

बृजेंद्र की इस बात पर आशा को कोई हैरानी नहीं हुई. क्योंकि उसे पहले से ही पता था कि बृजेंद्र ने यही कहने के लिए बुलाया है. फिर भी बनावटी हैरानी व्यक्त करते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो?’’

‘‘आशा मेरे दिल में जो था, मैं ने कह दिया. बाकी तुम जानो. यह बात सच है कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं.’’ बृजेंद्र की इन बातों से आशा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. बृजेंद्र उसे अच्छा लगता ही था. वह उसे चाहने भी लगी थी. इसलिए उस ने बृजेंद्र को चाहत भरी नजरों से देखते हुए बड़ी ही धीमी आवाज में कहा,

‘प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन डर लगता है.’’

बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘डर किस बात का आशा, मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर तो मैं तुम्हारा साथ आखिरी सांस तक निभाऊंगी.’’ आशा ने अपना दूसरा हाथ बृजेंद्र के हाथ पर रखते हुए कहा.

इस तरह प्यार का इजहार हो गया तो आशा और बृजेंद्र की दुनिया ही बदल गई. आशा कालेज जाने के बहाने घर से निकलती और पहुंच जाती बृजेंद्र के पास. बृजेंद्र उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाता, फिर दोनों बछरावां, रायबरेली घूमने निकल जाते. कभीकभी एकांत में बैठ कर दोनों भविष्य के सपने बुनते. जबकि उन्हें पता था कि वे जो सोच रहे हैं, वह इतना आसान नहीं है.

मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई जाने लगीं. हालांकि दोनों परिवारों में समानता नहीं थी. इसलिए यह इतना आसान नहीं था. फिर भी दोनों ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए वे अपनी दुनिया बसा कर रहेंगे.

प्यारमोहब्बत ज्यादा दिनों तक छिपने वाली चीज नहीं होती. कुछ दिनों बाद पुत्तीलाल को भी शुभचिंतकों से पता चल गया कि बेटी गलत राह पर चल पड़ी है. पतिपत्नी ने बेटी को डांटाफटकारा भी और प्यार से समझाया भी. इस के बावजूद भी उन्हें बेटी पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें लगा कि जवानी के जोश में आशा गलत कदम उठा सकती है. इसलिए उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया.

पुत्तीलाल और सुशीला ने अब आशा पर निगाह रखनी शुरू कर दी, जिस से दोनों के मिलन में बाधा पड़ने लगी. फिर भी आशा को जब मौका मिलता वह बृजेंद्र से बतिया लेती थी. बृजेंद्र उसे सांत्वना देता कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.

एक रात सुशीला ने आशा को बृजेंद्र से मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. उस ने उसी समय आशा को डांटा, ‘‘देखो, आशा इज्जतआबरू और मानमर्यादा औरत के गहने हैं और तू इन गहनों पर दग लगा रही है. तुझे तो अपनी इज्जत की परवाह है नहीं, कम से कम हम लोगों की इज्जत का तो खयाल रख. तू पढ़ीलिखी है, समझदार है, फिर भी मना करने के बावजूद तू बृजेंद्र से संबंध बनाए हुए है.’’

सुशीला ने गुस्से में आशा को डांटा भी और उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से समझाया भी, ‘‘बेटी, औरत की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं धुल पाता. अब भी समय है. तू बृजेंद्र को भूल जा. मैं जल्दी ही तेरा रिश्ता अच्छा घरवर देख कर कर दूंगी.’’

बदल गया आशा का मन…
मां की बात आशा के दिल को छू गई. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह बृजेंद्र को भुलाने की पूरी कोशिश करेगी. मांबाप उस का रिश्ता, जहां भी जैसा भी करेंगे वह स्वीकार कर लेगी. उस ने मां को अपने फैसले के बारे में बता भी दिया. बेटी के चेहरे पर विश्वास देख कर मां खुश हुई.

पुत्तीलाल आशा के लिए योग्य वर की खोज में जुट गया. थोड़ी मेहनतमशक्कत के बाद उसे एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाने अंतर्गत कुशहारी गांव निवासी बच्चूलाल लोध के 25 वर्षीय बेटे साजन के बारे में पता चला तो वह उस के घर पहुंचे. साजन उन्हें पसंद आ गया. साजन बीए पास कर चुका था और कंप्टीशन की तैयारी में जुटा था. कई प्रतियोगी परीक्षाओं में वह शामिल भी हो चुका था.

साजन के पिता बच्चूलाल के पास 10 बीघा उपजाऊ जमीन थी. जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. बच्चूलाल, पुत्तीलाल का दूर का रिश्तेदार भी था. इसलिए घरपरिवार जाना समझा था. घरवर पसंद आया तो पुत्तीलाल ने अपनी बेटी आशा की शादी साजन के साथ तय कर दी. चूंकि लड़का और लड़की दोनों पढ़ेलिखे थे, अत: तय हुआ कि जब लड़कालड़की एकदूसरे को देख लें और पसंद कर लेंगे, तभी शादी की तारीख फाइनल कर दी जाएगी.

कुछ दिन बाद साजन अपने मातापिता व बहनों के साथ आशा को देखने आया. दोनों ने एकदूसरे को देखा और बातचीत भी की. उस के बाद दोनों ने अपनी रजामंदी दे दी. इस के बाद सगाई की रस्म भी पूरी हो गई. शादी की तारीख तय हुई 12 मार्च, 2019.

इधर बृजेंद्र को आशा की शादी तय हो जाने की खबर लगी तो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उसे अपना सपना बिखरता नजर आया. आशा की बेवफाई की बात सुन कर बृजेंद्र विचलित हो उठा. वह उस दिन किसी तरह आशा से मिला और गुस्से में उस की आंखों में झांकते हुए शादी की सच्चाई के बारे में पूछा.

आशा को बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला नजर आ रही थी. सच कहने में ही उसे भलाई नजर आई. उस ने कहा, ‘‘हां, बृजेंद्र, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे मातापिता ने मेरी शादी तय कर दी है. अब तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं तुम्हें? मैं ने तुम से प्यार किया है, सपना संजोया था कि तुम मेरी दुलहन बनोगी. लेकिन तुम तो बेवफा निकली.’’

‘‘मैं बेवफा नहीं हूं, बृजेंद्र. मेरी मजबूरी समझो.’’ आशा ने बृजेंद्र को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम बेवफा नहीं तो और क्या हो? जब तुम्हें दूसरी जगह ही ब्याह रचाना था तो मुझे सपने क्यों दिखाए, क्यों मेरी दुलहन बनने का वादा किया. अब भी समय है आशा, तुम शादी के लिए मना कर दो और मांबाप के विरुद्ध खड़ी हो जाओ. मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

‘‘नहीं बृजेंद्र, मैं ऐसा नहीं कर सकती. मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है कि मांबाप के फैसले के खिलाफ कुछ कर सकूं.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’

‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है,” आशा ने दो टूक जवाब दिया और घर वापस चली गई.

बृजेंद्र नहीं छोड़ना चाहता था आशा को
आशा और बृजेंद्र के प्यार की डोर भले ही टूट गई थी, लेकिन इस सब के बावजूद दोनों की कभीकभी फोन पर बातें होती रहती थीं. इस बातचीत में बृजेंद्र अकसर आशा से कहता था कि वह रिश्ता तोड़ कर उस के साथ भाग चले. लेकिन आशा इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह घर से भाग कर मांबाप के मुंह पर कालिख नहीं पोतना चाहती.

लेकिन बृजेंद्र के दिलोदिमाग पर आशा कुछ इस तरह छाई थी कि उस के मना करने के बावजूद वह उसे भुला नहीं पा रहा था. कभी उसे आशा की बेवफाई पर गुस्सा आता तो कभी उस की मजबूरी पर तरस. आशा की वजह से उस की जिंदगी निराशा में बदल गई थी. अब उस का मन किसी भी काम में नहीं लगता था.

बृजेंद्र का एक दोस्त अजय बछरांवा कस्बे में रहता था. कस्बे में ढाबे के पास उस की मोबाइल शौप थी. बृजेंद्र हमेशा उसी की दुकान से मोबाइल रिचार्ज कराता था. इसी वजह से दोनों के बीच अच्छा परिचय हो गया था. बाद में धीरेधीरे यह परिचय दोस्ती में बदल गया था.

बृजेंद्र को जब भी मोबाइल रिचार्ज कराने की जरूरत होती थी उसे फोन कर लेता था. अजय उस का मोबाइल फोन रिचार्ज कर देता था. बृजेंद्र अपनी प्रेमिका आशा का मोबाइल फोन भी उसी से रिचार्ज कराता था. दोनों के प्रगाढ़ संबंधों की उसे जानकारी थी. बृजेंद्र स्वयं भी उस से हर बात शेयर करता था.

इधर कुछ समय से बृजेंद्र गुमसुम रहने लगा था. उस में आए बदलाव को देख कर अजय ने कारण पूछा तो उस ने अपने दिल की बात उसे बता दी.

अजय चूंकि बृजेंद्र का दोस्त था, इसलिए उस ने बृजेंद्र को सलाह दी कि वह आशा को भुला दे. क्योंकि अब वह किसी और की अमानत बनने जा रही है. आशा की खुशी के लिए उसे अपने सीने पर पत्थर रखना ही होगा.

बृजेंद्र ने दोस्त की सलाह पर कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन उस की बात स्वीकार भी नहीं की. आशा के प्यार में आकंठ डूबे बृजेंद्र ने एक शाम आशा के मोबाइल पर फोन कर के प्यार की दुहाई दी और उसे गांव के बाहर उसी बगीचे में बुलाया, जहां उन की पहली मुलाकात हुई थी.

उस ने कहा था कि एक हफ्ते बाद 12 मार्च को वह किसी और की हो जाएगी. इसलिए सिर्फ इस बार उस से मिल ले. बृजेंद्र की इस विनती को आशा ठुकरा नहीं सकी और उस से मिलने बगीचे में जा पहुंची.
आशा जैसे ही वहां पहुंची बृजेंद्र उसे अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘आशा, तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हें अपनी दुलहन बनाना चाहता हूं, जबकि तुम पीछे हट रही हो.’’

खुद को बृजेंद्र की बांहों में आजाद कर के आशा ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कह दिया था कि मैं अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठा सकती. मेरी वजह से मांबाप की इज्जत पर दाग लगे, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी.’’

‘‘प्यार करने वाले, इस सब की परवाह नहीं करते. तुम मुझ से प्यार करती हो, यह बात तुम न जाने कितनी बार कह चुकी हो. इसलिए अब तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए.’’ बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर विनती की, ‘‘हम दोनों बालिग हैं. इसलिए हम अपनी मरजी से शादी कर सकते हैं. शादी के बाद कुछ दिनों में घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा.’’

‘‘तुम कुछ भी कहो, पर मैं तुम्हें साफसाफ बता रही हूं. मैं तुम से कभी प्यार करती थी, लेकिन अब नहीं करती. इसलिए तुम से शादी नहीं कर सकती. भाग कर शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता. आशा ने अपना हाथ छुड़ाते हुए अपना आखिरी फैसला सुना दिया.’’

आशा के प्रति भर गई नफरत
आशा ने बृजेंद्र के प्यार को ठुकराया और शादी से इनकार किया तो उस के मन में आशा के प्रति नफरत और गुस्से की चिंगारी सुलगने लगी. एक रात बृजेंद्र ने मोबाइल फोन पर फिल्म ‘बेवफा सनम’ देखी. फिल्म की कहानी उस की असल जिंदगी की कहानी से मिलतीजुलती थी. आशा भी उस के प्यार को ठुकरा कर दूसरे से शादी रचा रही थी.

यह ‘बेवफा सनम’ फिल्म बृजेंद्र ने अपने मोबाइल फोन पर कई बार देखी. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि फिल्म की तरह वह भी आशा को उस की बेवफाई की सजा देगा.

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे बृजेंद्र की नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था. बृजेंद्र के चाचा लोधेश्वर के पास डबल बैरल (दोनाली) बंदूक थी. लोधेश्वर जब शादी तिलक समारोह में जाता था तो बंदूक साथ ले जाता था और शादी समारोह में हर्ष फायरिंग करता था. चूंकि बृजेंद्र भी चाचा के साथ जाता था, सो उस ने भी बंदूक चलानी सीख ली थी. चाचा के साथ वह भी हर्ष फायरिंग करता था.

12 मार्च, 2019 को मंगलवार था. उस दिन पुत्तीलाल की 22 वर्षीय बेटी आशा की शादी होनी थी. बारात उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाना अंतर्गत गांव कुशहरी से आनी थी. सुबह से ही पुत्तीलाल के घर पर चहलपहल शुरू हो गई थी. नातेरिश्तेदार आने शुरू हो गए थे. पुत्तीलाल अपने परिवार के लोगों के साथ व्यवस्था में जुटा था. उस की तमन्ना थी कि उस की बेटी की शादी में किसी तरह की कोई कमी न रह जाए.

बृजेंद्र भी शादी में कर रहा था सहयोग
बृजेंद्र के दिल में क्या था, और वह किस उधेड़बुन में लगा था. किसी को पता नहीं था. सुबह से ही वह पुत्तीलाल के घर मौजूद था और उस की हर तरह से मदद कर रहा था. कभी वह व्यंजन तैयार कर रहे हलवाइयों के पास जाता और उन्हें आदेश देता तो कभी डेकोरेशन का काम कर रहे कर्मचारियों को ठीक से डेकोरेशन करने की हिदायत देता. उसे देख कर किसी को नहीं लग रहा था कि उस के दिल में कोई भयंकर तूफान उमड़ रहा है.

घरपरिवार व रिश्तेदार महिलाएं मंगल गीत गाते हुए शादी की पूर्व होने वाली रस्मों को पूरा कर रही थीं. कुछ मंडप के नीचे परछन कर रही थीं तो कुछ गीत गाते हुए आशा को उबटन लगा रही थीं. कुछ ऐसी भी थीं जो चुहलबाजी और हंसीमजाक कर माहौल को खुशनुमा बना रही थीं. पूरा घर आंगन खुशियों से सराबोर था.

शाम ढलतेढलते सारी तैयारियां पूरी हो गईं. पंडाल सज गया और मेहमानों के बैठने के लिए पंडाल में कुरसियां डाल दी गईं. दूल्हादुलहन के लिए पंडाल में भव्य स्टेज सजाया गया. पूरा पंडाल लाइटों से जगमगा रहा था. छोटछोटे बच्चे सजधज कर मस्ती करने लगे थे.

आशा भी अपनी सहेलियों के साथ सजधज कर अपने कमरे में आ गई थी. वह बछरावां स्थित मधु ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराने गई थी. सजीधजी आशा आज बेहद खूबसूरत लग रही थी. सखीसहेलियां उस से हंसीमजाक कर रही थीं, जबकि वह अपने भविष्य के सुनहरे सपनों में खोई थी.

रात साढ़े 10 बजे के लगभग बारात गाजेबाजे के साथ पुत्तीलाल के दरवाजे पर पहुंची. पुत्तीलाल ने हर एक बाराती के गले में फूलमाला डाल कर स्वागत किया. फिर दूल्हे साजन को स्टेज पर लाया गया. उस समय रिश्तेदारों, गांव वालों और बारातियों से पूरा पंडाल भरा हुआ था. सजीधजी महिलाओं की रौनक देखते ही बन रही थी. सभी खुशी में डूबे हुए थे.

कुछ देर बाद आशा दुलहन के वेश में स्टेज पर आई. उस के साथ उस की सहेलियां भी थीं. स्टेज पर दूल्हा और दुलहन ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर सिर झुका लिया. फिर एकदूसरे को जयमाला पहना कर रस्म पूरी की. कई युवकयुवतियां खुशी से स्टेज के सामने नाचने लगे. इस के बाद वरवधू को दोनों पक्षों के लोग आशीर्वाद देने आने लगे. फोटोग्राफर फोटो खींचने में लगा था.

शादी का स्टेज हो गया खून से लाल
जयमाला होने के बाद स्टेज पर दुलहन आशा और उस के दूल्हे साजन का फोटो सेशन चल रहा था. तभी अचानक आशा का पूर्व प्रेमी बृजेंद्र कुमार अपने चाचा लोधेश्वर की दोनाली बंदूक ले कर वहां आ धमका. बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला साफ झलक रही थी.

उस के हाथ में बंदूक देख कर आशा सहम गई और उठ कर खड़ी हो गई. उसी समय बृजेंद्र आशा के नजदीक आ कर बोला, ‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी, तो मैं जीते जी तुम्हें किसी और की दुलहन बन जाने दूंगा. नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता.’’

इसी के साथ बृजेंद्र ने आशा पर फायर झोंक दिया. गोली उस के पेट में धंसी और वह खून से लथपथ हो कर स्टेज पर ही गिर पड़ी. गांव के 2 साहसी युवक बृजेंद्र के हाथ से बंदूक छीनने उस की ओर लपके लेकिन बृजेंद्र उन दोनों पर भी बंदूक तानते हुए बोला, ‘‘खबरदार, जो मेरे पास आए. अभी हिसाब बराबर नहीं हुआ.’’ कहते हुए बृजेंद्र ने बंदूक की नाल अपने गले पर सटाई और ट्रिगर दबा दिया.

धांय की आवाज के साथ बृजेंद्र भी जमीन पर बिछ गया. कुछ देर छटपटाने के बाद आशा और बृजेंद्र दोनों ने दम तोड़ दिया.

इधर गोली चलने की आवाज सुन कर लोगों में भगदड़ मच गई. दूल्हा साजन तो बेहोश ही हो गया. बच्चूलाल उसे कार में डाल कर अपने गांव की ओर भागा. अन्य बाराती भी भाग लिए. बारातियों को इस बात का संतोष था कि दूल्हा सहीसलामत था और किसी भी बाराती को हानि नहीं पहुंची थी.

डोली की जगह उठी अर्थी
जिस घर में कुछ देर पहले खुशियां छाई थीं. अब वहां मौत की परछाइयों के अलावा कुछ नहीं था. चारों ओर चीखपुकार मची थी. आशा के मातापिता व घर वाले उस के शव के पास विलाप कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर बृजेंद्र के मातापिता और परिजन आंसू बहा रहे थे. गांव वाले भी अवाक थे कि जिस घर से सुबह डोली उठनी थी, वहां से अब अर्थी उठेगी.

इसी बीच किसी ने मोबाइल फोन के जरिए इस गंभीर वारदात की सूचना थाना बछरावां को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी रविंद्र सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाने से रवाना होते समय उन्होंने वारदात से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. शेखपुरा समोधा गांव, बछरावां थाने से मात्र 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

रात करीब 12 बजे के लगभग एसपी सुनील कुमार सिंह, एएसपी शशि शेखर सिंह तथा सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही भी घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी रवींद्र सिंह पहले से ही वहां मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. स्टेज पर एक युवती की लाश पड़ी थी, जो दुलहन के वेश में थी और स्टेज के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी. पूछताछ से पता चला कि युवती का नाम आशा था और मृतक बृजेंद्र कुमार था.

आशा की उम्र 22 वर्ष के आसपास थी, जबकि बृजेंद्र की उम्र लगभग 25 वर्ष थी. मृतक के पास दोनाली बंदूक पड़ी थी. इसी बंदूक से वारदात को अंजाम दिया था. अत: पुलिस ने जांच हेतु बंदूक अपने पास सुरक्षित रख ली.

घटनास्थल पर मृतका और मृतक के मातापिता व घर वाले मौजूद थे. एसपी सुनील कुमार सिंह व अपर पुलिस अधीक्षक शशिशेखर सिंह ने उन सब से पूछताछ की तो पता चला कि यह सब प्रेम प्रसंग की वजह से हुआ है.

इस मामले में सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही ने मौके पर मौजूद गवाह रमेश आदि के बयान दर्ज किए. वहीं थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के मातापिता सुशीला और पुत्तीलाल तथा बृजेंद्र के पिता जागेश्वर व उस के भाई लोधेश्वर के बयान दर्ज किए. इस के बाद दोनों शव राजकीय अस्पताल रायबरेली पोस्मार्टम हेतु भेज दिए.

पुलिस अधिकारियों ने दूसरे रोज थाने बुला कर दूल्हे साजन तथा उस के पिता बच्चूलाल से भी पूछताछ की. उन के भी बयान दर्ज किए गए.

इधर थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के पिता पुत्तीलाल को वादी बना कर आशा की हत्या के आरोप में भादंवि की धारा 302 के तहत बृजेंद्र कुमार के विरुद्ध रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन बृजेंद्र द्वारा आत्महत्या कर लेने से इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

शराब माफिया के निशाने पर थानेदार

17 जनवरी, 2019 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली ने खगड़िया जिले के पसराहा थाने में तैनात युवा और तेजतर्रार थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड का विस्तृत विवरण जानने के लिए भागलपुर जिलाधिकारी और नवगछिया एसपी से रिपोर्ट मांगी है.

मृतक दरोगा आशीष कुमार के पिता गोपाल सिंह ने कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली को अपने बेटे आशीष कुमार सिंह की साजिशन हत्या किए जाने के संबंध में एक दुख भरा पत्र भेजा था. आयोग ने उन के पत्र को गंभीरता से लेते हुए यह कड़ा कदम उठाया था, इसी संबंध में दोनों अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई.

12 अक्तूबर, 2018 को पुलिस और बदमाशों के बीच हुए एक एनकाउंटर में खगड़िया के पसराहा थाना के दारोगा आशीष कुमार सिंह शहीद हो गए थे. एनकाउंटर पसराहा थाने की पुलिस और दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि और उस के गैंग के बीच हुआ था. एनकाउंटर में पुलिस की गोली से दिनेश मुनि गैंग का शातिर अपराधी श्रवण यादव मारा गया था.

इसी संबंध में मानवाधिकार आयोग ने भागलपुर डीएम और नवगछिया एसपी से घटना से संबंधित विस्तृत जानकारी मांगी थी. आयोग ने उन्हें 8 सप्ताह यानी 16 मार्च, 2019 के अंदर संबंधित कागजात उपलब्ध कराने का आदेश दिया है.

घटना खगड़िया और नवगछिया जिले की सीमा से लगे बिहपुर थानाक्षेत्र के सलालपुर दियारा में घटी थी. आयोग ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम की वीडियो सीडी, मजिस्ट्रैट जांच रिपोर्ट, डिटेल रिपोर्ट, एफआईआर की कौपी, घायल पुलिसकर्मी की रिपोर्ट, मृतक अपराधी श्रवण यादव का आपराधिक इतिहास, फोरैंसिक जांच रिपोर्ट, बैलेस्टिक रिपोर्ट, घटनास्थल का ब्यौरा, मृतक का फिंगरप्रिंट, जब्ती सूची आदि मांगी थी.

यही नहीं, आयोग ने सभी कागजात अंगरेजी वर्जन में देने का आदेश दिया है. आयोग इस की जांच कर रहा है. संबंधित कागजात मिलने पर आयोग नोटिस भेज कर इस मामले से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुला सकता है.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जो रिपोर्ट तलब की है, उस की कहानी कुछ ऐसे सामने आई है.

मुखबिर ने खगड़िया जिले के थाना पसराहा के प्रभारी आशीष कुमार सिंह को सेलफोन से सूचना दी थी कि दुर्दांत अपराधी दिनेशमुनि अपने गैंग और साथियों के साथ अपने गांव में छिपा है. उस ने अपने गांव तिहाय में कुछ महिलाओं को रंगरलियां मनाने के लिए बुलाया है. जल्दी की जाए तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. दिनेश मुनि पर जिले के विभिन्न थानों में लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी जैसी गंभीर और संगीन धाराओं में दरजन भर मुकदमे दर्ज थे.

सूचना मिलते ही आशीष कुमार हुए रवाना

खगडि़या जिले के अलावा राज्य के कई अन्य जिलों में भी उस के खिलाफ लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी के मुकदमे दर्ज थे. हत्या वाले मुकदमों में वह वांछित चल रहा था. पुलिस को उस की तलाश थी. पसराहा थाने में भी उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. दारोगा आशीष कुमार सिंह ने दिनेश मुनि की सुरागरसी में एक मुखबिर को लगाया था. उसी मुखबिर ने आशीष कुमार सिंह को यह सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही एसओ आशीष कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिहाय गांव के लिए रवाना हो गए. उन की टीम में ड्राइवर कुंदन यादव, सिपाही दुर्गेश सिंह, होमगार्ड अरुण मुनि और बीएमपी के जवान थे. रवाना होने से पहले यह सूचना जिले की पुलिस कप्तान मीनू कुमारी को दे दी गई थी. कप्तान मीनू ने उन्हें सावधानी से मिशन को अंजाम देने की शुभकामनाएं दी थीं.

तिहाय के करीब पहुंचने पर मुखबिर ने एसओ को फोन कर के बताया कि दिनेश मुनि और उस के साथियों को पुलिस के वहां पहुंचने की सूचना पहले ही मिल गई थी, इसलिए उस ने अपना ठिकाना बदल दिया है. अब वह सलालपुर दियारा में जा छिपा है.

यह सुन कर एसओ आशीष कुमार ने तिहाय से सलालपुर दियारा गांव की तरफ जीप मुड़वा दी. यह इलाका खगड़िया और नवगछिया के सीमावर्ती इलाके में पड़ता है.

सलालपुर दियारा में चारों ओर अंधेरा फैला था. अंधेरे को चीरती पुलिस जीप ऊबड़खाबड़ संकरे रास्ते से होती हुई सलालपुर दियारा की ओर बढ़ती जा रही थी. बदमाशों को पुलिस के आने की भनक न लगे, इसलिए पुलिस ने अपनी जीप की लाइटें बंद कर दी थीं. बीचबीच में एसओ के नंबर पर मुखबिर की काल आ रही थी. वह उसे थोड़ी और रुक जाने को कह रहे थे.

एसओ आशीष कुमार सिंह अभी थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि अचानक धांय धांय की आवाज आई. बदमाशों ने पुलिस के ऊपर 3 गोलियां चलाई थीं. लेकिन तीनों गोलियां पुलिस जीप से बच कर निकल गईं. स्थिति के मद्देनजर एसओ आशीष सिंह और उन की टीम ने जीप रोक कर पोजीशन ले ली और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी.

अंधेरे में दोनों ओर से जवाबी फायरिंग शुरू हो गई. अंधेरे में पुलिस को यह समझने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी कि बदमाश कहांकहां छिपे हैं और उन की संख्या कितनी है. अगर इस का सही अंदाजा लग जाता तो बदमाशों से मोर्चा लेना आसान हो जाता.

स्थिति भांपने के लिए आशीष सिंह जीप से नीचे उतर गए और दोनों हाथों से सर्विस रिवौल्वर थामे पोजीशन ले कर बदमाशों की ओर फायरिंग करने लगे. जवाबी काररवाई में बदमाशों की ओर से भी फायरिंग हो रही थी. उसी दौरान एसओ आशीष कुमार सिंह के सीने में 3 गोलियां जा धंसी, जिस से वह लहराते हुए जमीन पर गिर गए.

एक गोली सिपाही दुर्गेश सिंह के पैर में लगी. वह भी घायलावस्था में नीचे गिरा कर कराहने लगा. कुछ देर बाद बदमाशों की तरफ से फायरिंग बंद हो गई. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि या तो सभी बदमाश ढेर हो गए या फिर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग निकले.

फायरिंग बंद होते ही ड्राइवर कुंदन यादव ने जीप की लाइट औन की. तभी उस ने एसओ आशीष कुमार सिंह को खून से लथपथ जमीन पर गिरा देखा तो वह चीख पड़ा. एसओ साहब से थोड़ा आगे सिपाही दुर्गेश सिंह भी खून से लथपथ पड़ा कराह रहा था. यह देख कर होमगार्ड अरुण मुनि दौड़ा हुआ दुर्गेश की ओर बढ़ा और उसे गोद में उठा लिया.

शरीर से काफी खून बहने से एसओ आशीष सिंह की हालत गंभीर होती जा रही थी. उन के मुंह से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी. ड्राइवर कुंदन यादव ने सीधे कप्तान मीनू कुमारी से बात की और उन्हें स्थिति से अवगत कराने के बाद मौके पर और फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

सूचना मिलते ही एसपी मीनू कुमारी की आंखों की नींद गायब हो गई. उन्होंने उसी वक्त यह सूचना भागलपुर जोन के आईजी सुशील मान सिंह खोपड़े, मुंगेर प्रक्षेत्र के डीआईजी जितेंद्र मिश्र, खगड़िया के डीएम अनिरुद्ध कुमार को दे दी. साथ ही जिले के विभिन्न थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

आशीष कुमार सिंह को बचाने का प्रयास

आदेश मिलते ही सभी थानेदार और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. खून से लथपथ थानेदार आशीष कुमार सिंह और घायल सिपाही दुर्गेश सिंह को जीप से भागलपुर जिला चिकित्सालय ले जाया गया था. डाक्टरों ने एसओ आशीष को देखते ही मृत घोषित कर दिया और दुर्गेश को बेहतर इलाज के लिए भरती कर लिया.

मौके पर पहुंची पुलिस ने सलालपुर दियारा में रात में ही कौंबिंग शुरू कर दी गई. मुठभेड़ के दौरान एक बदमाश श्रवण यादव मारा गया था. मौके से अत्याधुनिक हथियार के तमाम खाली खोखे मिले.

बड़ा सवाल यह था कि मुखबिर ने सलालपुर दियारा में कुख्यात बदमाश दिनेश मुनि और उस के 4-5 साथियों के छिपे होने की पक्की सूचना दी थी. मौके से केवल एक ही बदमाश की लाश बरामद हुई तो दिनेश मुनि और उस के दूसरे साथी कहां चले गए. पुलिस को लगा कि या तो बदमाश अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए होंगे या घायल होने के बाद किसी डाक्टर से इलाज करा रहे होंगे.

एसपी मीनू कुमारी के दिमाग में भी यही विचार उमड़ रहा था. उन्होंने दिनेश मुनि के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए सीओ पसराहा को लगा दिया. बदमाशों को तलाशने में जुटी फोर्स ट्रैक्टर ट्रौली आदि से क्षेत्र में गश्त करने लगी. पुलिस ने पूरे दियारा को छान मारा लेकिन बदमाशों का कहीं पता नहीं लगा.

सीओ को जानकारी मिली कि मुठभेड़ के दौरान गिरोह का सरगना दिनेश मुनि और रमन यादव जख्मी हुए थे. अशोक मंडल और उस के रिश्तेदार पंकज मुनि पुलिस को चकमा दे कर फरार होने में कामयाब हो गए थे. पुलिस ने बिहपुर थाने में कुख्यात अपराधी दिनेश मुनि और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ आशीष कुमार सिंह को पहली बार गोली नहीं लगी थी. पिछले साल जब वह मुफस्सिल थाने में एसओ थे, तब भी एक मुठभेड़ में उन्हें गोली लगी थी. लेकिन तब बच गए थे. आशीष कुमार सिंह जांबाज ही नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील व्यक्ति भी थे. उन की मां कैंसर से पीड़ित थीं. उन का इलाज कराने के लिए वह खुद उन्हें ले कर दिल्ली आतेजाते थे.

मुठभेड़ में एसओ आशीष कुमार सिंह के शहीद होने की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली तो कोहराम मच गया. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. पत्नी सरिता की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद जब आशीष का शव उन के गांव सरौजा पहुंचा तो पूरा गांव गमगीन हो गया. गांव वालों ने अपने घरों में चूल्हे नहीं जलाए.

बहरहाल, आईजी (जोन) सुशील मान सिंह खोपड़े के नेतृत्व में 2 क्यूआरटी, एसटीएफ की 3, चीता फोर्स और 5 डीएसपी को कौंबिंग व सर्च औपरेशन में लगाया गया. लेकिन थानाप्रभारी की हत्या के आरोपी दिनेश मुनि को घटना के 4 दिन बाद भी नहीं ढूंढा जा सका.

अलबत्ता पुलिस ने उस के कपड़े और मोबाइल फोन जरूर जब्त कर लिया. पुलिस ने यह काररवाई दीना चकला में रहने वाली उस की बहन की निशानदेही पर की थी.

कहानी दिनेश मुनि और थानेदार आशीष सिंह की

गौरतलब है कि पुलिस के पास दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि का एक फोटो तक नहीं था, जिस से उस का सही हुलिया पता लगाया जा सकता. बहुत मशक्कत के बाद आखिर पुलिस को दिनेश मुनि का फोटो मिल गया. दरअसल, करीब 3 साल पहले किसी मामले में बेगूसराय में दिनेश मुनि की गिरफ्तारी हुई थी. उसी दौरान उस का फोटो खींचा गया था, जो थाने में था.

पुलिस घायल दिनेश मुनि का इलाज करने वाले गांव के डाक्टर सहित उस के बहनबहनोई और मांबाप सहित आधा दरजन आश्रयदाताओं को हिरासत में ले चुकी थी. लेकिन इस के बावजूद दिनेश मुनि को गिरफ्तार नहीं किया जा सका. इस से लग रहा था कि उस का खुफिया तंत्र पुलिस के खुफिया तंत्र पर भारी पड़ रहा था.

आखिर दिनेश मुनि कौन है? वह पुलिस के लिए सिरदर्द क्यों बन गया था? उस के सिर पर किस का हाथ था, जिस की वजह से पुलिस की हर काररवाई की अग्रिम सूचना उस तक पहुंच जाती थी? थानेदार आशीष सिंह के साथ वो दूसरे थानेदार कौन थे, जो उस के गैंग के निशाने पर थे? उस के अतीत की कहानी जानने से पहले थानेदार आशीष कुमार सिंह के बारे में जान लें.

32 वर्षीय आशीष कुमार सिंह मूलरूप से सहरसा जिले के बलवाहाट के अंतर्गत सरोजा गांव के रहने वाले थे. उन के पिता गोपाल सिंह बिहार के एक जिले में थानेदार थे. गोपाल सिंह के 3 बेटों में आशीष कुमार सिंह सब से छोटे थे. पिता की तरह वह भी पुलिस में जाना चाहते थे. इस के लिए वह मेहनत करते रहे. करीब सवा 6 फीट लंबेतगड़े आशीष सन 2009 में एसआई बन गए.

विभिन्न जिलों में कुशलतापूर्वक ड्यूटी का निर्वहन करते हुए वह 4 सितंबर, 2017 को पसराहा थाने के एसओ बन कर आए. इसी दौरान उन की शादी सरिता सिंह के साथ हो गई थी. जिन से एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई.

धीरेधीरे उन की पहचान तेजतर्रार पुलिस अधिकारी की बन गई थी. वह जिस थाने में तैनात होते, वहां के अपराधियों की धड़कनें बढ़ने लगती थीं. अपराधी दिनेश मुनि पसराहा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर हत्या, हत्या के प्रयास और लूट जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे. कई मामलों में वह वांछित भी था.

एसओ आशीष कुमार को लगातार सूचनाएं मिल रही थीं कि दिनेश मुनि जिले के एक कद्दावर नेता के संरक्षण में रह रहा है. उसी नेता के संरक्षण में वह बड़े पैमाने पर प्रदेश भर में प्रतिबंधित शराब का अवैध तरीके से कारोबार कर रहा है. दिनेश मुनि का पता लगाने के लिए आशीष ने अपने मुखबिर उस के पीछे लगा दिए थे.

आशीष ने जब से पसराहा थाने का चार्ज लिया था, तब से अपने इलाके में शराब की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. इस से शराब माफियाओं के धंधे को काफी नुकसान पहुंच रहा था. आशीष सिंह के इस कदम से शराब माफिया उन से नाराज थे और उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहे थे.

करीब 36 वर्षीय दिनेश मुनि मूलरूप से बिहार के खगड़िया जिले के तीनमुंही गांव का निवासी था. खगड़िया के तिहाय गांव में उस की ससुराल थी. सन 2006 में उस ने अपना गांव तीनमुंही छोड़ दिया था. सन 2007 से उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा और देखतेदेखते पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया.
उस पर आधा दरजन से अधिक मामले मड़ैया, पसराहा, परबत्ता के अलावा चौसा थानों में दर्ज थे. दिनेश मुनि का फंडा यह था कि वह छोटामोटा अपराध कर के छिपने के लिए अपने मूल गांव तीनमुंही चला जाता था.

दिनेश मुनि को उस के साथियों के अलावा बहुत कम लोग ही जानते थे कि वह मूलत: तीनमुंही गांव का रहने वाला है. लोग उस की ससुराल तिहाय गांव को ही उस का असली गांव समझते थे, क्योंकि दिनेश मुनि अधिकांशत: ससुराल में ही रहता था. अपराध के लिए उस ने खगड़िया का चयन किया था और छिपने के लिए अपना गांव. दिनेश मुनि का अपना गिरोह था.

उस के गिरोह में पंकज मुनि (रिश्तेदार), श्रवण यादव, अशोक मंडल, रमन यादव, संतलाल सिंह, बजरंगी सिंह, सुनील सिंह, बत्तीस सिंह, गजना, सुदामा, ननकू सिंह, मनोज सिंह भाटिया, मिथिलेश मंडल, टेपो मंडल, पृथ्वी मंडल आदि शामिल थे.

मुठभेड़ वाले दिन दिनेश मुनि सलालपुर दियारा में रात के वक्त अशोक मंडल के होटल पर रंगरलियां मनाने पहुंचा था. वहां उस के गिरोह के 9 सदस्य थे, जो 3 होटलों में रुके थे. उन के पास महिलाओं के आने की भी सूचना थी. यही सूचना मुखबिर ने पसराहा थानेदार आशीष कुमार सिंह को दी थी.

शहीद एसओ आशीष कुमार सिंह के कातिल को दबोचने के लिए पुलिस द्वारा दियारा में लगातार कौंबिंग औपरेशन चलाए जाने से दिनेश मुनि द्वारा संचालित दारू बेचने वाले लोग जिले से पलायन कर चुके थे.
बहरहाल, सलालपुर दियारा में पुलिस और दिनेश मुनि गिरोह के बीच हुई मुठभेड़ में पुलिस मुखबिर की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह जब तिहाय गांव के लिए निकले थे, तब मुखबिर को क्या पहले से ही पता था कि दियारा में क्या होना है, इसलिए गोली चलते ही वह मौके से भाग निकला था. मुखबिर के फरार होने से उन आशंकाओं को बल मिल रहा है, जिस में माना जा रहा है कि मुखबिर को सब पता था कि आगे क्या होगा और वह धोखे से थानेदार को मौत के दरवाजे तक ले गया.

थानेदार सुमन कुमार भी थे निशाने पर

फिलहाल मृतक थानेदार के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से ही इस बात का खुलासा हो सकता है कि मुखबिर कौन था, क्योंकि मुखबिर का नाम कथा लिखे जाने तक पता नहीं चल सका था. फिलहाल थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जांच चल रही है. तफ्तीश के दौरान जो तथ्य सामने आए हैं, उस से आशीष की हत्या के पीछे बड़ी साजिश के संकेत मिल रहे हैं. उस में शराब माफियाओं के साथसाथ कई बड़ों के नाम सामने आ रहे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह के साथ ही दूसरे थानेदार सुमन कुमार सिंह भी दिनेश मुनि गैंग के निशाने पर आ चुके हैं. यह खुलासा 17 अक्तूबर, 2018 को दिनेश मुनि, गिरोह के अपराधी पंकज मुनि की गिरफ्तारी के बाद उस के मोबाइल में सेव फोटो से पता चला.

एक अखबार में छपी खबर के साथ आशीष के साथ एसआई सुमन कुमार सिंह की तसवीर छपी थी. तसवीर में आशीष के साथ सुमन कुमार के फोटो पर लाल पेन से क्रौस बना हुआ था. पूछताछ में पंकज मुनि ने पुलिस को बताया था कि आशीष कुमार की हत्या के बाद सुमन कुमार की हत्या की योजना बनी थी लेकिन उन का स्थानांतरण हो जाने से फिलहाल वह बच गए थे.

काफी खोजबीन के बाद आखिर पूर्णिया जिले के अरजपुर भिट्ठा टोला के पास से 17 अक्तूबर, 2018 की देर रात को चौसा पुलिस ने कुख्यात अपराधी पंकज मुनि को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. उस के पास से एक देसी कट्टा, 6 जिंदा कारतूस, 2 मोबाइल फोन, करीब 12 हजार रुपए नकद तथा चोरी की एक बाइक बरामद की. आशीष कुमार सिंह हत्याकांड में पंकज मुनि भी शामिल था.

पंकज मुनि के खिलाफ मधेपुरा, पूर्णिया, खगड़िया और भागलपुर जिले के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक संगीन मामले दर्ज थे.

उस से पूछताछ में पता चला कि करीब 2 महीने पहले सितंबर, 2018 में चौसा थाना क्षेत्र के चंदा गांव के चर्चित ईंट भट्ठा व्यवसायी मोहम्मद नसरुल हत्याकांड में पंकज मुनि का हाथ था. हत्या कर के वह फरार हो गया था.

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