40 करोड़ की डील: अमेरिका से लौटे दंपति हुए लापता

नेपाली मूल के लाल शर्मा और उस की पत्नी बिजनैसमैन आर. श्रीकांत के बंगले पर पिछले 20 सालों से नौकर थे. इतना ही नहीं, श्रीकांत ने लाल शर्मा के बेटे पदम लाल उर्फ कृष्णा को न सिर्फ अपनी औलाद की तरह पाला बल्कि उसे अपना ड्राइवर बना दिया. इस सब के बावजूद भी 40 करोड़ रुपए के लालच में कृष्णा ने बंगले में ऐसा खून बहाया कि…

अपनी पत्नी अनुराधा (55 वर्ष) के साथ अमेरिका से भारत लौट रहे श्रीकांत (58 वर्ष) ने अपने सहायक और ड्राइवर कृष्णा को फोन कर के बता दिया था कि उन की फ्लाइट सुबह करीब साढ़े 3 बजे चेन्नई पहुंच जाएगी. वह समय पर उन्हें लेने पहुंच जाए.

श्रीकांत तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित माईलापुर थाना क्षेत्र की द्वारका कालोनी के निवासी थे. ड्राइवर कृष्णा मूलरूप से नेपाल का रहने वाला था. वह अपने दोस्त रवि राय को साथ ले कर अपने मालिक आर. श्रीकांत को लेने के लिए समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पहुंच गया था.

फ्लाइट निश्चित समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पर पहुंच गई. वहां ड्राइवर कृष्णा पहले से मौजूद था. वह श्रीकांत और उन की पत्नी को ले कर सवा 4 बजे घर की ओर चल दिया.

संयुक्त राज्य अमेरिका से दंपति की बेटी सुनंथा का फोन आ गया. पिता श्रीकांत ने बेटी को बताया कि उन की फ्लाइट ने ठीक साढ़े 3 बजे लैंड कर लिया था, उन्हें लेने के लिए कृष्णा आया हुआ है. वे अब माईलापुर के लिए निकल चुके हैं.

बताते चलें कि आर. श्रीकांत चार्टर्ड एकाउंटेंट थे, साथ ही रियल एस्टेट का काम भी करते हैं. वह एक फाइनैंस कंपनी में कारपोरेट फाइनैंस का प्रमुख होने के साथसाथ गुजरात में एक निजी आईटी कंपनी भी चलाते थे. अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया में उन की बेटी सुनंथा और बेटा शाश्वत डाक्टर हैं. दंपति अपने बच्चों के पास लगभग 6 माह रह कर 7 मई, 2022 को चेन्नई वापस आए थे.

इस के बाद सुबह साढ़े 8 बजे बेटे शाश्वत ने फोन लगाया तो श्रीकांत का मोबाइल बंद था. तब पापामम्मी का हालचाल लेने के लिए उस ने ड्राइवर कृष्णा को फोन लगाया. कृष्णा ने बताया कि दोनों सो रहे हैं.

लगभग 2 घंटे बीतने के बाद शाश्वत ने फिर फोन किया तो कृष्णा ने ऊटपटांग जबाव दिया. इस से शाश्वत को संदेह हुआ. जब यह बात शाश्वत ने बहन सुनंथा को बताई तो वह घबरा गई. उस ने भाई को राय दी कि वह तुरंत वहां रह रहे रिश्तेदारों से संपर्क करे.

शाश्वत ने तब इंद्रानगर निवासी अपने चचेरे भाई रमेश परमेश्वरन को फोन किया कि पापामम्मी सुबह चेन्नई वापस आ गए थे. अब उन से बात नहीं हो पा रही है, दोनों के मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हैं और कृष्णा भी सही जबाव नहीं दे रहा है. वह घर जा कर देखे कि वहां क्या हुआ है.

रमेश पत्नी दिव्या और अपने मित्र श्रीनाथ के साथ माईलापुर थाना क्षेत्र की द्वारका कालोनी स्थित श्रीकांत के घर दोपहर साढ़े 12 बजे पहुंचे. उन्हें दरवाजा पर ताला लगा मिला. किसी अनहोनी की आशंका पर उन्होंने माईलापुर थानाप्रभारी एम. रवि को सूचना देने के साथ ही पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. इस के साथ ही अमेरिका में शाश्वत को भी अवगत कराया.

बगले के हालात दे रहे थे अनहोनी के सबूत दंपति के गायब होने की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी तुरंत हरकत में आ गए और वह टीम के साथ श्रीकांत के बंगले पर पहुंच कर छानबीन में जुट गए. बंगले के गेट पर लटके ताले ने थानाप्रभारी की भी बेचैनी बढ़ा दी. लिहाजा उन्होंने गेट का ताला तुड़वा दिया. जैसे ही पुलिस बंगले में दाखिल हुई तो अंदर का नजारा देखते ही सभी के होश उड़ गए.

सूटकेस और 3 लेयर वाला लौकर और अलमारी खुले पड़े थे. पुलिस ने घर की तलाशी ली. घर के फर्श पर खून के हलके दाग मिलने के साथ ही फर्श को डेटोल से धोए जाने की महक भी आ रही थी. यूटिलिटी रूम में खून के धब्बे मिले. वहीं टायलेट के ड्रेन होल में भी खून था. हालांकि वहां दंपति दिखाई नहीं दिए. दंपति घर से गायब थे.

ड्राइवर कृष्णा भी दिखाई नहीं दे रहा था. इस के साथ ही श्रीकांत की कार भी नहीं थी. घर में लगे सीसीटीवी कैमरों का डीवीआर (डिजिटल वीडियो रिकौर्डर) व पलंग से बैडशीट भी गायब थी.

थानाप्रभारी एम. रवि ने मामले की गंभीरता को देखते हुए माईलापुर के डीसीपी गौतमन को अवगत कराया. वे कुछ देर में फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए और जांच शुरू की.

जैसे ही अमेरिका में रह रहे भाईबहनों को इस की जानकारी दी गई तो दोनों परेशान हो गए और मातापिता की कुशलता की प्रार्थना करने लगे. दोनों ही बहुत घबराए हुए थे और बारबार पुलिस तथा चचेरे भाई रमेश को फोन कर रहे थे.

दंपति के मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहे थे. इस पर पुलिस ने ड्राइवर कृष्णा के मोबाइल पर काल की लेकिन अब उस ने अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लिया था. पुलिस को आशंका हुई कि कहीं ड्राइवर कृष्णा ने ही दंपति का अपहरण तो नहीं कर लिया? वह उन से बड़ी रकम तो वसूलना नहीं चाहता.

लेकिन पुलिस के सामने प्रश्न यह था कि कृष्णा यह काम अकेले नहीं कर सकता, जरूर कुछ लोग उस के साथ होंगे.

लेकिन दूसरी ओर घर में खून के दाग मिलने व डेटोल की महक से ऐसा लगता था कि अपहरण घर से ही किया गया था और शायद लौकर व सूटकेस की चाबी मांगने के दौरान दंपति के साथ मारपीट करने से खून निकला होगा.

पुलिस ने दंपति के फोन नंबरों की लोकेशन चैक की. तब पता चला कि एअरपोर्ट पर उतरने के बाद दोनों के साथ कृष्णा भी था. तीनों के फोन नंबरों की लोकेशन साथ आई थी, घर तक तीनों साथ आए थे. इस के कुछ देर बाद दंपति के मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गए थे.

कुछ देर बाद कृष्णा का भी फोन स्विच औफ आने लगा था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती दंपति का शीघ्र पता लगाने की थी कि वे कहां हैं और किस अवस्था में हैं?

पुलिस ने मामला दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने कृष्णा का पता लगाने के लिए घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज और काल डिटेल्स का इस्तेमाल किया.

इस के साथ ही श्रीकांत के फोन के काल डेटा रिकौर्ड को एक्सेस किया, जिस में फास्ट टैग संदेश प्राप्त हुए थे. उस में दिखाया गया था कि कई टोल बूथों से हो कर कार गुजरी थी. उस के फास्ट टैग रिकौर्ड को खंगालने पर पता चला कि उन की कार चेन्नई-कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग पर जा रही है.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने धर दबोचे आरोपी

कंट्रोल रूम की मदद से कृष्णा और कार खोजने के लिए नाकाबंदी शुरू कर दी गई. चूंकि कृष्णा नेपाल का रहने वाला था और उस के नेपाल भागने की आशंका ज्यादा थी, इसलिए देश छोड़ने से पहले उसे पकड़ने के लिए आंध्र प्रदेश पुलिस को भी अलर्ट कर दिया गया.

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एसपी मलिका गर्ग के निर्देश पर हाईवे थाना ओंगोल के डीएसपी यू. नागराजू के आदेश पर तंगुटुक टोलगेट पर हाईवे पुलिस ने कृष्णा और उस के साथी रवि को कार सहित 7 मई, 2022 की शाम साढ़े 4 बजे ओंगोल पर दबोच लिया.

इस के बाद मामला परत दर परत खुलता चला गया. दोनों की गिरफ्तारी के बाद आंध्र प्रदेश पुलिस ने चेन्नई पुलिस को सूचित किया. चेन्नई पुलिस की एक टीम आंध्र प्रदेश के लिए रवाना हो गई. पुलिस टीम दोनों आरोपियों कृष्णा व रवि राय को कार व लूटे गए 8 किलोग्राम सोना, 50 किलोग्राम चांदी के बरतन, नकदी और 5 करोड़ के जेवरात सहित उन्हें ले कर माईलापुर थाना ले आई.

यहां दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई. दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उन्होंने बताया कि 40 करोड़ रुपयों के लिए दंपति की हत्या की थी. आरोपियों ने बताया कि दोनों लाशों को उन के ही चेन्नई के बाहर स्थित फार्महाउस में दफन कर दिया था. इस के बाद वे लोग नेपाल जा रहे थे.

लाशों को बरामद करने के लिए थानाप्रभारी एम. रवि दोनों आरोपियों को ले कर दंपति के नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस पर पहुंचे. वहां आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने  फार्महाउस में पीछे की ओर पेड़ों के बीच एक जगह पर ताजा मिट्टी को हटाया तो वहां गड्ढा खोदा हुआ मिला.

कत्ल कर उन के ही फार्महाउस में दफना दिया दंपति को आरडीओ थिरूपोरूर की मौजूदगी में दंपति के नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस में गड्ढे से मिट्टी हटाने पर श्रीकांत और उन की पत्नी अनुराधा की खून से लथपथ लाशें बरामद हुईं. गड्ढे से दंपति के मोबाइल फोन और फ्लाइट टिकट के आधे जले हुए अवशेष भी बरामद हुए.

जब माईलापुर थाने की पुलिस टीम शवों को निकालने की काररवाई कर रही थी, तब वहां फावड़ा व एक आधा जला हुआ क्रिकेट स्टंप मिला. संभवत: यह वही स्टंप था, जिस का प्रयोग हत्यारों ने दंपति की हत्या में किया था. इसी के साथ लाशों को दफन करने के लिए इसी फावड़े से गड्ढा खोदा गया था.

पुलिस ने सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया.  पुलिस को बाड़ से जुड़ा एक बिजली का तार भी मिला, इस तार को हत्यारों ने इसलिए लगाया था ताकि सुरक्षा गार्ड के न होने पर लोग फार्महाउस में प्रवेश न कर सकें और जहां शव दफनाए गए थे, उस स्थान पर न पहुंच सकें. इस पूरी काररवाई की वीडियो रिकौर्डिंग की गई. मौके पर फोरैंसिक टीम भी मौजूद रही.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर शवों को पोस्टमार्टम के लिए चेंगल पट्टू के सरकारी अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दंपति की मौत अत्यधिक पिटाई से आई चोटों व खून बहने से हुई थी.

हत्यारोपियों ने दंपति को बेरहमी से पीटा था, जिस से उन की मौत हो गई थी. मामला दर्ज होने के 8 घंटे के अंदर पुलिस ने आरोपियों को आंध्र प्रदेश पुलिस की मदद से पकड़ कर अपहरण, हत्या और 5 करोड़ की लूट का  परदाफाश कर दिया.

चार्टर्ड एकाउंटेंट श्रीकांत ने सिम्मापुर, नेपाल निवासी लाल शर्मा व उन की पत्नी को 20 साल पहले अपने यहां काम पर रखा था. लगभग 10 साल पहले उन्होंने उन के बेटे कृष्णा उर्फ पदमलाल कृष्णा को भी घरेलू सहायक व ड्राइवर के रूप में रख लिया था.

अब कृष्णा के पिता सिक्योरिटी गार्ड के रूप में फार्महाउस की देखभाल करते थे.  बंगले में श्रीकांत ने रहने के लिए कृष्णा को एक क्वार्टर दे रखा था. इस के साथ ही देश से बाहर जाने पर वह कृष्णा को कार के प्रयोग की अनुमति दे जाते थे.

40 करोड़ की डील के लिए आए थे दंपति

कृष्णा घरेलू कामों के साथ ही श्रीकांत की कार भी चलाता था. उसे श्रीकांत के व्यापार के संबंध में जानकारी रहती थी. एडिशनल सीपी (दक्षिण) डा. एन. कन्नन ने प्रैस कौन्फैंस में बताया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट श्रीकांत रियल एस्टेट का काम भी करते थे.

श्रीकांत अमेरिका जाने के बाद मार्च, 2022 में अकेले अमेरिका से संक्षिप्त यात्रा पर चेन्नई वापस आए थे.

उस अवधि में कार में यात्रा के दौरान ड्राइवर कृष्णा ने श्रीकांत को 40 करोड़ रुपए की एक बड़ी संपत्ति की बिक्री के बारे में फोन पर डील करते सुन लिया था. इस के बाद उस ने मान लिया कि घर के लौकर में 40 करोड़ कैश रखा हुआ है.

कृष्णा भले ही बंगले में मिले एक बाहरी क्वार्टर में रह रहा था, लेकिन उसे बंगले के अंदर की सारी जानकारी रहती थी. श्रीकांत को प्रौपर्टी बेचने के बाद वापस अमेरिका चले जाना था. विश्वासपात्र और घरेलू सहायक व ड्राइवर होने के कारण कृष्णा को श्रीकांत के बिजनैस और घर के अन्य क्रियाकलापों  की पूरी जानकारी रहती थी.

वह जानता था कि दंपति की हत्या के बाद ही वह 40 करोड़ की रकम हासिल कर सकता है. पुलिस ने जांच में पाया कि दंपति की नृशंस हत्या के पीछे का मकसद पैसा था. इसलिए लूट की योजना के लिए उस ने दंपति के आने का इंतजार करने का फैसला किया.

सावधानी से बनाई थी लूट की योजना

हत्या के बाद लूट की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी. कृष्णा इस बात को अच्छी तरह जानता था कि श्रीकांत और उन की पत्नी अमेरिका में रहते हुए भी मोबाइल के जरिए यहां बंगले पर लगे सीसीटीवी के माध्यम से अपने घर को देख रहे थे. वे कृष्णा को फोन करते थे और उस के ठिकाने के बारे में पूछते रहते थे.

पकड़े जाने के डर से वह बंगले के ताले व लौकर को तोड़ने से बचता रहा. उस का सोचना था कि दंपति के आने पर ही हत्या कर उन से चाबी ले कर 40 करोड़ रुपयों को हासिल किया जा सकता है.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त ने बताया कि आरोपी नेपाल मूल के कृष्णा ने एक तमिल महिला से शादी की थी और अब वे अलग हो गए हैं. उन का बेटा दार्जिलिंग में पढ़ रहा है.

इस बीच अपने दार्जिलिंग के एक दोस्त रवि राय को इस योजना में शामिल कर लिया. कृष्णा का जो दोस्त रवि राय इस अपहरण, हत्या व लूट में शामिल था, उस से कृष्णा परिचित था.

जब कृष्णा अपने बेटे का दार्जिलिंग के एक स्कूल में दाखिला कराने का प्रयास कर रहा था, तब रवि ने इस में उस की मदद की थी. तभी से वे दोस्त बन गए थे.

बड़ी रकम हाथ लगने की बात सुन कर रवि लालच में आ गया और कृष्णा का साथ देने को तैयार हो गया.

दोस्त को भी योजना में किया शामिल

घटना से एक महीना पहले कृष्णा ने रवि को 40 करोड़ की पूरी बात बताई और उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया. दोनों हत्यारों का ऐसा मानना था कि श्रीकांत की तिजोरी में 40 करोड़ रुपए रखे हैं. तय हुआ कि दंपति की हत्या के बाद वे रकम को ले कर नेपाल भाग जाएंगे.

तिजोरी की चाबियों के लिए वे दंपति के लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगे. घटना से 2 सप्ताह पहले श्रीकांत ने फोन कर कृष्णा को बताया था कि वे 7 मई, 2022 को चेन्नई लौट रहे हैं.

माईलापुर की डीसीपी दिशा मित्तल के अनुसार माईलापुर क्षेत्र निवासी श्रीकांत अपनी पत्नी अनुराधा के साथ पिछले साल नवंबर में अमेरिका के कैलिफोर्निया में बसी बेटी सुनंदा और बेटे शाश्वत से मिलने गए थे. बेटी सुनंदा गर्भवती है.

हवाई अड्डे पर कार में दंपति को बैठाने के बाद योजनानुसार कृष्णा दंपति को माईलापुर उन के बंगले में ले गया. उस समय सुबह के साढ़े 8 बजे का समय था. घर पहुंचते ही हत्यारों ने योजनानुसार घर की बिजली आपूर्ति बंद कर दी.

श्रीकांत कुछ समझ पाते, इस से पहले ही अंधेरे की आड़ में कृष्णा ने श्रीकांत को भूतल के कमरे में बंद कर दिया. जबकि उस का दोस्त रवि अनुराधा के पीछे पहली मंजिल तक गया.

कृष्णा ने श्रीकांत को क्रिकेट के स्टंप से  बुरी तरह से पीटा और उन से जबरन लौकर व सूटकेस की चाबियां छीन लीं. इस के बाद उन के गले में नुकीली ओर से स्टंप घोंप दिया. इसी तरह अनुराधा को मौत के घाट उतार दिया गया. दोनों को अलगअलग कमरों में मार दिया गया.

आरोपी यहां लगभग 2 घंटे तक रहे. इस दौरान उन्होंने खून के धब्बों को साफ करने के साथ ही सोने और डायमंड के जेवरात, जिन की संख्या एक हजार से अधिक थी, व चांदी के बरतनों आदि को पैक किया. बंगले से निकलने से पहले आरोपी सीसीटीवी रिकौर्डर अपने साथ ले गए.

दोनों के शवों को बैडशीट में लपेट कर श्रीकांत की कार में रखा. इस के बाद रवि और कृष्णा घर में ताला लगा कर निकल गए. दोनों सुबह लगभग साढ़े 10 बजे लाशों को चेन्नई के बाहर ईस्ट कोस्ट रोड पर नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस ले गए, जहां पहले से खोदे गए गड्ढे में दंपति को दफना दिया.

10 दिन पहले खोदा था गड्ढा

हत्यारों को बड़ी नकदी मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें लगभग 5 करोड़ कीमत के 8 किलोग्राम सोने के आभूषण तथा 50 किलोग्राम चांदी के बरतन, कुछ नकदी ही मिली थी.

दंपति की हत्या करने के बाद ही उन्हें पता चला कि 40 करोड़ रुपए की रकम श्रीकांत के बैंक एकाउंट में पहले ही जमा हो चुकी थी.

कृष्णा ने दंपति की हत्या की योजना एक माह पहले रची थी. श्रीकांत ने अमेरिका से जब फोन कर कृष्णा को बताया कि वह 7 मई को वापस आ रहे हैं. तब कृष्णा ने साथी रवि के साथ मिल कर अपनी योजना को कार्यान्वित करते हुए उन के फार्महाउस में घटना से 10 दिन पहले 6 फुट गहरा गड्ढा खोदा.

यह कार्य गोपनीयता के चलते दोनों ने स्वयं किया. हत्या के बाद उन्होंने दंपति की लाशों को इसी गड्ढे में दफन कर दिया. अमेरिका से लौटे दंपति को शायद भनक भी नहीं थी कि चेन्नई एयरपोर्ट पर विश्वसनीय ड्राइवर कृष्णा के रूप में मौत उन का इंतजार कर रही है.

विधानसभा में गूंजा यह मामला

दोहरे हत्याकांड की दिल दहलाने वाली इस घटना से चेन्नई में सनसनी फैल गई थी. दंपति की हत्या के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया. इस की गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी.

विधानसभा में विपक्ष के नेता एडपाडि पलनीसामी द्वारा उठाए गए प्रश्न का जवाब देते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने जानकारी दी कि लूट के इरादे से दंपति की हत्या की गई थी और हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के 8 घंटे के अंदर हत्यारों को लूटे गए माल सहित गिरफ्तार कर लिया गया.

हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए विशेष दल का गठन किया गया था और आंध्र प्रदेश की पुलिस की मदद से दोनों आरोपी अपहरण, हत्या व लूट के बाद आभूषण ले कर नेपाल भाग रहे थे. लेकिन पुलिस की तत्परता के चलते घटना को अंजाम देने के 12 घंटे के अंदर वे पकड़ लिए गए.

पुलिस को जांच से यह भी पता चला कि फार्महाउस पर गार्ड के रूप में कार्यरत 70 वर्षीय पिता लाल शर्मा व मां को कृष्णा ने कुछ समय पहले नेपाल स्थित घर भेज दिया था. पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि कृष्णा के पिता का भी इस घटना में हाथ तो नहीं है?

चेन्नई पुलिस ने तुरंत लाल शर्मा से संपर्क किया, जो अब नेपाल में हैं और उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया. उन्हें पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा बेटा मेरे मालिक के साथ ऐसा कैसे कर सकता है? मैं हैरान हूं.’’

शुरू में उन्होंने यह मानने से इंकार कर दिया कि उन के बेटे ने दंपति को मार डाला है. उन्होंने पुलिस को बताया कि दंपति द्वारा उन का और परिवार का अच्छी तरह से खयाल रखा जाता था. हालांकि पुलिस सतर्क है और उस का कहना है कि वह जांच पूरी होने तक पिता को बेगुनाह नहीं कह सकते.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से दंपति के बंगले से लूटे गए आभूषण, कार, घर का सीसीटीवी रिकौर्डर जिस में हत्या किए जाने के सबूत हैं, के साथ ही, फार्महाउस में शव दफन करने के बाद लौटते समय के सीसीटीवी फुटेज, हवाई यात्रा के टिकट, स्टंप, फावड़ा आदि बरामद किए हैं.

पुलिस के पास आरोपियों का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त मजबूत सबूत हैं. पुलिस ने दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

इस संबंध में आरोपियों से पूछताछ करने पर जो बात उजागर हुई, उस पर कोई भी व्यक्ति सोचने को मजबूर हो जाता है कि दंपति ने जहां अपनी औलाद की तरह कृष्णा को अपने पास रखा और उस की व उस के वृद्ध मातापिता की सुखसुविधाओं का पूरा ध्यान रखा.

दगाबाज कृष्णा ने अपने दोस्त के साथ मिल कर 40 करोड़ रुपयों की खातिर अपने मालिक के भरोसे का कत्ल कर दिया. पालनहारों की जान ले ली.

जहां कृष्णा इन रुपयों से नेपाल में रह कर शाही अंदाज में जीवन गुजारना चाहता था, वहीं अब उसे अपने किए गुनाह के लिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बुराई: जानलेवा नशा और नामचीन लोग

अभी कुछ दिन पहले जब गोवा में अचानक हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी की नेता और ‘टिकटौक’ पर अपने डांस से लोगों को दीवाना बना देने वाली सोनाली फोगाट के मरने की खबर आई थी, तो लोगों को लगा था कि इतनी फिट औरत कैसे अचानक हार्ट अटैक से मर सकती है? पर सोनाली फोगाट के घर वालों को उन की मौत पर शक हुआ और उन की फरियाद पर पुलिस ने दोबारा छानबीन की. फिर कुछ ऐसा पता चला, जो सोनाली फोगाट की मौत में ट्विस्ट ले आया.

इस सिलसिले में पुलिस ने सुधीर सागवान और सुखविंदर सिंह नाम के

2 लोगों को धरा और उन पर इलजाम लगाया कि उन्होंने कथित तौर पर पानी में नशीली चीज मिलाई थी और 22 और 23 अगस्त, 2022 की रात को कर्लीज रैस्टोरैंट में एक पार्टी के दौरान सोनाली फोगाट को इसे पीने के लिए मजबूर किया था.

अभी यह मामला सुर्खियों में ही था कि हालिया बर्मिंघम कौमनवैल्थ गेम्स में कांसे का तमगा जीतने वाली हरियाणा की एक पहलवान पूजा सिहाग नांदल के पति अजय नांदल की संदिग्ध हालत में मौत हो गई. वे रोहतक के मेहर सिंह अखाड़े के नजदीक कार में अपने 2 पहलवान दोस्तों के साथ पार्टी कर रहे थे.

गांव गढ़ी बोहर के बाशिंदे बिजेंद्र नांदल के 30 साल के बेटे अजय नांदल भी पहलवान थे. उन्हें कुश्ती के आधार पर ही सीआईएसएफ में नौकरी मिली थी. वे शनिवार, 27 अगस्त, 2022 को ही नौकरी कर के घर लौटे थे और उसी शाम को अपने 2 साथी पहलवान रवि और सोनू के साथ कार में पार्टी कर रहे थे.

पुलिस की शुरुआती जांच में सामने आया कि उन तीनों ने कुछ ऐसा पी लिया था, जिस के बाद उन की तबीयत बिगड़ने लगी थी. इस के बाद वे कार ले कर देव कालोनी में बने मेहर सिंह अखाड़े के पास पहुंचे, जहां और ज्यादा तबीयत खराब होने पर वे निजी अस्पताल में गए, वहां अजय नांदल की मौत हो गई.

अजय नांदल के पिता बिजेंद्र किसान हैं, जबकि मां सुनीता घरेलू औरत हैं. अजय और पूजा ने 28 नवंबर, 2021 को ही लव मैरिज की थी, जिस में दोनों के परिवारों की रजामंदी थी.

खबरों की मानें, तो पुलिस को कार में सिरिंज मिली थी और नशे में ओवरडोज का शक जताया जा रहा था, जबकि अजय नांदल के पिता बिजेंद्र ने रवि पर अजय को नशे की ओवरडोज दे कर मारने का आरोप लगाया.

अजय नांदल या सोनाली फोगाट को किसी ने नशे की ओवरडोज दी या वे खुद नशे के आदी थे, इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. फर्क इस बात से पड़ता है कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं और उन के सगेसंबंधी सारी उम्र इस दर्द के साथ गुजारेंगे कि नशे ने उन के अपनों की जान ले ली.

ऐसा नहीं है कि इस तरह के कांड पहले नहीं हुए हैं या इन से पहले नामचीन लोगों का नाम नशे के साथ नहीं जुड़ा है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में संजय दत्त, प्रतीक बब्बर, रणबीर कपूर, फरदीन खान, हनी सिंह, पूजा भट्ट, मनीषा कोइराला के अलावा और भी न जाने कितने नाम हैं, जो अपनी नशे की लत के बारे में खुल कर बोल चुके हैं.

संजय दत्त ने ‘इवैंट ऐंड ऐंटरटेनमैंट मैनेजमैंट एसोसिएशन’ के एक सालाना सम्मेलन में खुद खुलासा किया था, ‘‘नशीली दवाओं के सेवन के बारे में कुछ ऐसा है कि अगर आप इन का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इन का इस्तेमाल करेंगे ही. एक बार जब आप इस की लत में पड़ जाते हैं, तो इसे छोड़ना बहुत मुश्किल होता है. दुनिया में कुछ भी इस से बुरा नहीं है. मैं तकरीबन 12 साल तक नशीली दवाओं का सेवन करता रहा.

‘‘दुनिया में ऐसी कोई ड्रग नहीं है, जिस का मैं ने सेवन न किया हो. जब मेरे पिता मुझे नशा मुक्ति के लिए अमेरिका ले गए, तो डाक्टर ने मुझे ड्रग्स की एक लिस्ट दी और मैं ने उस लिस्ट में लिखी हर ड्रग को टिक किया, क्योंकि मैं

उन सभी को पहले ही ले चुका था.

‘‘डाक्टर ने मेरे पिताजी से कहा था कि आप लोग भारत में किस तरह का खाना खाते हैं? इन्होंने जो ड्रग्स ली हैं, उन के मुताबिक इन्हें अब तक मर जाना चाहिए.’’

इसी तरह राज बब्बर और स्मिता पाटिल के बेटे प्रतीक बब्बर ने अपने नशे की लत पर कहा, ‘‘मेरी ड्रग्स की वजह से मेरा बचपन अशांत रहा. लगातार अंदरूनी कलह की वजह से, मेरे सिर में आवाजें गूंजती रहती थीं. मैं खुद से सवाल करता था कि मैं कहां हूं. केवल 13 साल की उम्र में मैं ने पहली बार ड्रग्स ली और फिर लती हो गया.

‘‘ड्रग्स के बिना मेरा बिस्तर से उठना तकरीबन नामुमकिन था. तकरीबन हर सुबह मेरा जी मिचलाता था. मेरे शरीर में दर्द होता था. मुझे कभी गरमी तो कभी सर्दी लगती थी.

‘‘जब मेरे पास कोई पसंदीदा

ड्रग नहीं होती थी, तो मैं किसी

भी ड्रग्स को अपना बना

लेता. जबकि यह मेरे

लिए बहुत ही हानिकारक था.’’

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और राजनीतिक गलियारों में नशे से जुड़ी खबरों का जन्म लेना कोई नई बात नहीं है, पर अब खेल जगत में खासकर पहलवानी जैसे खेलों में ड्रग्स की ऐंट्री खतरे की घंटी है.

हरियाणा से लगते पंजाब में नशे ने जो कोहराम मचाया हुआ है, वह किसी सुबूत का मुहताज नहीं है. पंजाबी रैप सिंगर हनी सिंह भी इस बुराई से जूझ चुके हैं. पर हरियाणा के पहलवानों और दूसरे खिलाडि़यों में अगर ड्रग्स घुस चुकी है तो यह चिंता की बात है.

पर यह नशे की लत लोगों में बढ़ क्यों रही है? इस सिलसिले में लखनऊ की मांडवी पांडेय, जो ‘दार्जुव 9’ में इको एंटरप्रेन्योर हैं, ने बताया, ‘‘आज लोग वास्तविक जिंदगी से ज्यादा आभासी दुनिया में जी रहे हैं. उन का अपनों से मिलना कम हो चुका है. दुख और हैरत की बात है कि वर्चुअल दुनिया में लोगों को एकदूसरे से खुद को बेहतर दिखाने की होड़ लगी हुई है.

‘‘गांव हो या शहर, अब परिवार की भावना बिखर रही है. आभासी दुनिया के ‘लाइक ऐंड कमैंट’ पर दुनिया सिमटती जा रही है. इन्हीं सब से मानसिक अवसाद पैदा हो रहा है, जो लोगों को नशे की तरफ ले जा रहा है. यह खतरनाक है और इसीलिए आज नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाने की बहुत जरूरत है. लोगों को अपने परिवार की अहमियत समझनी होगी. अकेलेपन से बचने का यह सब से कारगर तरीका है.’’

परिवार के साथसाथ यह अकेलापन किसी काम में रमने से भी कम किया जा सकता है, इसलिए काम का नशा कीजिए, जिंदगी जीने का उस से बढि़या कोई तरीका नहीं है.

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 3

‘‘मिस्टर अरूप, मुझे विशाल ने आप का नंबर दिया है. मैं आप की सेवा मुफ्त में नहीं लूंगा. माल आप का होगा, कीमत अदा मैं करूंगा.’’

‘‘विशाल ने नंबर दिया है तो आप से मिलने और आप की खिदमत करना मैं अपना फर्ज समझूंगा. आप इस वक्त कहां खड़े हैं?’’

‘‘मैं पंचशील पार्क में अपने दोस्त के साथ खड़ा हूं.’’ कांस्टेबल सोहनवीर ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं चंद मिनटों में पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से कहा गया और संपर्क कट कर दिया गया.

और फिर थोड़ी ही देर में एजेंट मोहम्मद अरूप उस पार्क के गेट पर हाजिर हो गया.

कांस्टेबल सोहनवीर गर्मजोशी से उस से मिला. दोनों ने हाथ यूं मिलाए, जैसे एकदूसरे को बरसों से जानते हों.

‘‘आप किस प्रकार का एजौय चाहेंगे मिस्टर अभिषेक, मेरे गुलदस्ते में देशीविदेशी दोनों प्रकार के फूल हैं.’’ मोहम्मद अरूप ने पूछा.

‘‘देशी फूल तो इंडिया में मिल जाते हैं, विदेशी फूल की खुशबू सुंघाइए आप.’’ सोहनवीर ने मुसकरा कर कहा.

‘‘विदेशी फूल कीमती है जनाब.’’

‘‘आप रुपयों की चिंता मत कीजिए. बाई द वे, क्या कीमत होगी एक फूल की?’’

‘‘एक शौट 15 हजार रुपए का होगा, फुलनाइट के लिए 25 हजार कीमत है.’’

‘‘फिलहाल एक शौट ही बहुत होगा, फुल एंजौय अगली बार के लिए.’’ सोहनवीर हंस कर बोला, ‘‘हम 30 हजार दे देंगे, आप फूलों की झलक दिखाइए.’’

‘‘आप मेरे साथ आइए,’’ मोहम्मद अरूप ने इशारा किया.

दोनों उस के साथ चल पड़े. मोहम्मद अरूप उन्हें पंचशील विहार की आदर्श हास्पिटल वाली गली के एक फ्लैट बी-49 में लाया. यहां बड़ा लोहे का गेट लगा था. मोहम्मद अरूप ने घंटी बजा कर कोड भाषा में कुछ बोला तो गेट खुल गया.

सामने एजेंट चंदे साहनी उर्फ राजू खड़ा था. उस ने उन दोनों का स्वागत किया. वे चारों सीढि़यों द्वारा चौथी मंजिल पर आ गए. बाहर शानदार बैठक थी, जहां सोफे लगे थे. सोहनवीर और राजेश उन पर बैठ गए.

मोहम्मद अरूप ने ताली बजाई तो अंदर से 10 गोरी चमड़ी वाली विदेशी लड़कियां बाहर आ कर खड़ी हो गईं. जवान व खूबसूरत हसीनाएं. सब एक से बढ़ कर एक. वे मुसकरा रही थीं.

‘‘आप को इन में से जो पसंद हो, उसे लाइन से अलग कर लीजिए.’’ चंदे साहनी ने मुसकरा कर कहा.

कांस्टेबल सोहनवीर ने एक 19 साल की हसीना की कलाई पकड़ कर उसे लाइन से बाहर कर लिया. एएसआई ने भी अपना पार्टनर चुन लिया. शेष 8 वापस कमरों में लौट गईं.

‘‘लाइए, 30 हजार रुपए दीजिए.’’ मोहम्मद अरूप ने हथेली बढ़ाई.

कांस्टेबल सोहनवीर ने पर्स से डीसीपी के हस्ताक्षर किए हुए 5-5 सौ के 30 नोट निकाल कर मोहम्मद अरूप के हाथ में रख दिए.

‘‘यह तो आप के हुए…’’ मोहम्मद अरूप नोट गिनने के बाद बोला, ‘‘इन जनाब के 15 हजार भी दीजिए.’’

‘‘मैं कुछ देर में शौक करूंगा. मुझे पूरी तरह फिट होने के लिए 5 मिनट का वक्त चाहिए. अभिषेक तुम इसे ले कर कमरे में जाओ और मौज करो…’’ एएसआई राजेश आंख दबा कर बोले.

फिर मोहम्मद अरूप की तरफ देख कर बोले, ‘‘मुझे एक गोली खानी है, क्या एक गिलास पानी मिलेगा?’’

एएसआई ने जेब से एक लाल रंग का कैप्सूल निकाला.

‘‘क्यों नहीं,’’ अरूप ने चंदे साहनी को पानी लाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘फिट होने की गोली है क्या जनाब?’’

‘‘हां,’’ एएसआई हंस कर बोले और चंदे साहनी से पानी का गिलास ले कर बालकनी में आ गए. वह कैप्सूल विटामिन का था. पानी के साथ उसे गले से नीचे उतार लेने के बाद गिलास दूसरे हाथ में ले कर एएसआई राजेश ने सिर पर हाथ फेरा. यह रेडिंग पार्टी के लिए इशारा था.

कुछ ही क्षण गुजरे होंगे कि पुलिस रेडिंग पार्टी धड़धड़ाती हुई इमारत में घुस आई. उन्हें देखते ही मोहम्मद अरूप अंदर की ओर भागा लेकिन एएसआई राजेश ने छलांग कर उसे दबोच लिया. चंदे साहनी पर कांस्टेबल सोहनवीर झपट चुका था. उसे भी काबू करते देर नहीं लगी.

कुछ ही देर में रेडिंग पार्टी ने 10 लड़कियां, उन से धंधा करवाने वाले इस देह धंधे के मालिक डोब अहमद और उस की पत्नी जुमायेवा, दोनों एजेंट मोहम्मद अरूप और चंदे साहनी तथा इन युवतियों को यहां दिल्ली लाने वाले अली शेर को गिरफ्तार कर लिया.

ये सभी लड़कियां उज्बेकिस्तानी थीं. अली शेर इन्हें अच्छी नौकरी का झांसा दे कर नेपाल के रास्ते दिल्ली ले कर आया था. यहां इन को इस सैक्स रैकेट के सरगना डोब अहमद के हवाले कर दिया गया था, जो इन के पासपोर्ट और वीजा अपने कब्जे में करने के बाद इन से जबरन देह का धंधा करवा रहा था. इस में इस की पत्नी जुमायेवा भी शामिल थी.

डोब अहमद तुर्कमेनिस्तान का निवासी था और वह अपनी पत्नी के साथ मालवीय नगर के इस पंचशील विहार के फ्लैट में किराया दे कर चौथी मंजिल पर यह सैक्स का धंधा चला रहा था.

दलाल चंदे साहनी वार्ड नंबर 6, नेरिया, पोस्ट सोनहन,थाना किओरी, दरभंगा, बिहार का निवासी था. मोहम्मद अरूप थाना पूर्णिया जिला कटिहार, बिहार से था. ये दोनों ग्राहक पटा कर यहां लाते थे. मोहम्मद अरूप को डोब अहमद 20 हजार रुपया महीना देता था. वह यहां का मैनेजर भी था.

इन सभी को थाना पुष्प विहार, क्राइम ब्रांच लाया गया. पकड़ी गई लड़कियों की तलाशी में पासपोर्ट और वीजा नहीं मिला. इस के लिए अवैध रूप से भारत आने और रहने के लिए मुकदमा दर्ज

किया गया.

इस प्रकरण को एसआई सुमन बजाज के द्वारा भादंवि की धारा 370(4), 34 और आईटीपी एक्ट की धारा 3, 4, 5 के अंतर्गत दर्ज करवाया गया.

डीसीपी विचित्रवीर (क्राइम ब्रांच) ने इस रैकेट का भंडाफोड़ करने वाली टीम को शाबासी दे कर उन का सम्मान किया. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कोई नहीं: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

कोई नहीं- भाग 3: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

उधर बबिता के भाइयों नंद कुमार और नवल कुमार तथा उन की पत्नियों को दूसरी चिंता ने घेर लिया कि बबिता यदि उन के घर में आ कर रहने लगी तो भविष्य में वह पापामम्मी की संपत्ति में दावेदार हो जाएगी और उसे उस का हिस्सा भी देना पडे़गा. इसलिए दोनों भाइयों ने आपस में सुलह कर बबिता से कहा कि दिनेश ने तलाक की बात कही है तो तुम उसे तलाक के लिए आवेदन करने दो. अपनी तरफ से बिलकुल आवेदन मत करना.

‘भैया, मेरा भी उस घर में दम घुट रहा है,’ बबिता बोली, ‘मैं खुद तलाक लेना चाहती हूं और अपनी मरजी का जीवन जीना चाहती हूं. इस अपमान के बाद तो मैं हरगिज वहां नहीं रह सकती.’

नंद कुमार ने कठोर स्वर में कहा, ‘ऐसी गलती कभी मत करना. तुम खुद तलाक लेने जाओगी तो ससुराल से कुछ भी नहीं मिलेगा. दिनेश तलाक लेना चाहेगा तो उसे तुम्हें गुजाराभत्ता देना पडे़गा.’

‘गुजाराभत्ता की मुझे जरूरत नहीं,’ बबिता बोली, ‘मैं पढ़ीलिखी हूं, कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी और अपना खर्च चला लूंगी पर दोबारा उस घर में वापस नहीं जाऊंगी.’

‘नहीं, अभी तुम्हें वहीं जाना होगा और वहीं रहना भी होगा,’ इस बार नवल कुमार ने कहा.

बबिता ने आश्चर्य से छोटे भाई की ओर देखा. फिर बारीबारी से मम्मीपापा व भाभियों की ओर देख कर अपने स्वर में दृढ़ता लाते हुए वह बोली, ‘दिनेश ने तलाक की बात कह कर मेरा अपमान किया है. इस अपमान के बाद मैं उस घर में किसी कीमत पर वापस नहीं जाऊंगी.’

समझाने के अंदाज में पर कठोर स्वर में नंद कुमार ने कहा, ‘तुम अभी वहीं उसी घर में रहोगी, जब तक  कि तुम्हारे तलाक का फैसला नहीं हो जाता. तुम डरती क्यों हो? सभी तुम्हारे साथ हैं. शादी के बाद से कानूनन वही तुम्हारा घर है. देखता हूं, तुम्हें वहां से कौन निकालता है.’

बडे़ भैया की बातों में छिपी धमकी से आहत बबिता ने अपनी मम्मी की ओर इस उम्मीद से देखा कि वही उस की मदद करें. मम्मी ने बेटी की आंखों में व्याप्त करुणा और दया की याचना को महसूस करते हुए नंद कुमार से कहा, ‘बबिता यहीं रहे तो क्या हर्ज है?’

‘हर्ज है,’ इस बार दोनों भाइयों के साथ उन की पत्नियां भी बोलीं, ‘ब्याही हुई बेटी का घर ससुराल होता है, मायका नहीं. बबिता को अपने पति या ससुराल वालों से कोई हक हासिल करना है तो वहीं रह कर यह काम करे. मायके में रह कर हम लोगों की मुसीबत न बने.’

मां ने सिर नीचे कर लिया तो बबिता ने अपने पापा की ओर देखा. बेटी को अपनी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देख कर उन्हें मुंह खोलना ही पड़ा. उन्होेंने कहा, ‘तुम्हारे भाई लोग ठीक ही कह रहे हैं बबिता. बेटी का विवाह करने के बाद पिता समझता है कि उस ने एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली. पर इस के बाद भी उसे बेटी की चिंता ढोनी पडे़ तो उस के लिए इस से बड़ी दूसरी पीड़ा नहीं हो सकती.’

बबिता पढ़ीलिखी थी. उस में स्वाभिमान था तो अहंकार भी था. उस ने अपने भाइयों और मम्मीपापा की बातों का अर्थ समझ लिया था. इस के पश्चात उस ने किसी से कुछ नहीं कहा. वह उठी और चली गई. उस को जाते हुए किसी ने नहीं रोका.

अचानक फोन की घंटी फिर बजने लगी तो रामगोपालजी चौंके और लपक कर फोन उठा लिया.

दिनेश की घबराहट भरी आवाज थी, ‘‘पापा, आप लोग जल्दी आ जाइए न. बबिता ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है.’’

रामगोपाल का सिर घूमने लगा. फिर भी उन्होंने फोन पर पूछा, ‘‘कैसे हुआ यह सब? अभी तो कुछ समय पहले ही वह यहां से गई है.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ दिनेश की आवाज आई, ‘‘वह हमेशा की तरह आप के घर से लौट कर अपने कमरे में चली गई थी और उस ने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया था. अंदर से धुआं निकलता देख कर हमें संदेह हुआ. दरवाजा तोड़ कर हम अंदर घुसे तो देखा, वह जल रही थी. क्या वहां कुछ हुआ था?’’

इस सवाल का जवाब न दे कर रामगोपाल ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘हम लोग तुरंत आ रहे हैं.’’

लक्ष्मी ने बिस्तर पर लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘दिनेश का,’’ रामगोपाल ने घबराहट भरे स्वर में कहा, ‘‘बबिता ने आग लगा ली है.’’

इतना सुनते ही लक्ष्मी की चीख निकल गई. मम्मी की चीख सुन कर नंद कुमार और नवल कुमार भी वहां पहुंच गए.

नंद कुमार ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’

रामगोपाल ने जवाब दिया, ‘‘बबिता ने यहां से लौटने के बाद शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है, दिनेश का फोन आया था,’’ इतना कह कर रामगोपाल सिर थाम कर बैठ गए, फिर बेटों की तरफ देख कर बोले, ‘‘ससुराल से अपमानित बेटी ने मायके में रहने की इजाजत मांगी थी. तुम लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे यहां रहने नहीं दिया. यहां से भी अपमानित होने के बाद उस ने आत्महत्या कर ली.’’

‘‘चुप कीजिए,’’ बडे़ बेटे नंद कुमार ने जोर से अपने पिता को डांटा, ‘‘आप ऐसा बोल कर खुद भी फंसेंगे और साथ में हम सब को भी फंसा देंगे. बबिता ने खुदकुशी नहीं की है, उसे मार डाला गया है. बबिता के ससुराल वालों ने दहेज के खातिर मिट्टी का तेल उडे़ल कर उसे जला डाला है.’’

रामगोपाल ने आशा की डोर पर झूलते हुए कहा, ‘‘चलो, पहले देख लें, शायद बबिता जीवित हो.’’

‘‘पहले आप थाने चलिए,’’ नंद कुमार ने फैसले के स्वर मेंकहा, ‘‘और तुम भी चलो, मम्मी.’’

रामगोपाल का परिवार जिस समय गिरधारी लाल के मकान के सामने पहुंचा, वहां एक एंबुलेंस और पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी. मकान के सामने लोगों की भीड़ जमा थी. जली हुई बबिता को स्ट्रेचर पर डाल कर बाहर निकाला जा रहा था. गाड़ी रोक कर रामगोपाल, लक्ष्मी, नंद कुमार तथा नवल कुमार नीचे उतरे. सफेद कपडे़ में ढंकी बबिता के चेहरे की एक झलक देखने के लिए रामगोपाल लपके पर नंद कुमार ने उन्हें रोक लिया.

थोड़ी देर बाद ही पुलिस के 4 सिपाही और एक दारोगा गिरधारी लाल, दिनेश, सुलोचना और राजेश को ले कर बाहर निकले. उन चारों के हाथों में हथकडि़यां पड़ी हुई थीं. दिनेश, बबिता को बचाने की कोशिश में थोड़ा जल गया था. रामगोपाल की नजर दामाद पर पड़ी तो जाने क्यों उन की नजर नीची हो गई.

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 1

तुर्कमेनिस्तान के रहने वाले डोब अहमद ने दिल्ली में जिस्मफरोशी का अड्डा बना रखा था. उस के यहां देशी ही नहीं, विदेशी कालगर्ल्स भी रहती थीं. इस काम में उस की पत्नी जुमायेवा भी शरीक थी. क्राइम ब्रांच ने उस के अड्डे से 10 विदेशी लड़कियों को पकड़ा तो…

जुलाई का महीना था. वातावरण में काफी उमस थी. बदन चिपचिपा हुआ जा रहा था. कूलर की हवा भी शरीर में ठंडक नहीं पहुंचा पा रही थी. इस झुलसा देने वाले मौसम में भी रविकांत पूरी बांह की कमीज, जींस पहने हुए था. हद तो यह थी कि उस ने एक तकिया इस प्रकार सीने से भींच रखा था जैसे वह उस की माशूका हो और वह पूरी गर्मजोशी से सीने से लगा कर उसे प्यार कर रहा हो.

रविकांत शादीशुदा था. 3 महीने पहले ही उस की शादी कुसुम के साथ हुई थी. वह कंप्यूटर औपरेटर था और 15 हजार की सैलरी पर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. मकान किराए का था, 7 हजार रुपया किराया, कुछ खर्च खुद के, शेष रुपयों में वह अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रहा था.

वह इस से संतुष्ट तो नहीं था लेकिन दिल्ली जैसे महानगर में इतना मिलना भी बहुत था क्योंकि यहां आसपास के क्षेत्र से काम की तलाश में आए युवा 2 वक्त की रोटी पाने के लिए कैसी भी नौकरी करने को तैयार रहते हैं. ऐसे में जो लग गया, वह खुद को भाग्यशाली मानता है और जो नहीं लगा वह नौकरी के लिए भटक रहा है.

रवि 15 हजार की सैलरी वाली नौकरी छोड़ना नहीं चाहता था. हां, आगे बढ़ने के लिए वह हाथपांव जरूर मार रहा था.

शादी के बाद कुसुम के साथ 3 महीने उस ने पूरी मौजमस्ती की थी. उस के बदन की सोंधीसोंधी खुशबू को उस ने अपनी सांसों में समाहित किया था.

कुसुम के गुदाज और रेशमी बदन के एकएक हिस्से को उस ने चूमाचाटा था. 3 महीने में उस ने छक कर कुसुम की दहकती जवानी का रस पीया था. उस की हसरतें उफान पर थीं कि कुसुम की मां की बीमारी का फोन आ गया. मन मसोस कर उसे कुसुम को मायके भेजना पड़ा.

अब उसी की याद में वह पलंग पर पड़ा तड़प रहा था. मन बहुत परेशान था. कुसुम की गोरी देह उसे बारबार याद आ रही थी और वह क्षण भी याद आ रहे थे जब वह कुसुम को बांहों में ले कर पूरी गर्मजोशी से प्यार करता था.

इसलिए उस दिन वह कुसुम की जगह तकिया सीने से भींच कर उन पलों को जीने की कोशिश कर रहा था, जो कुसुम की नग्न देह की गरमाहट से उसे रोमांचित कर डालते थे.

उस की सांसें अनियंत्रित हो चुकी थीं. वह पूरी मस्ती से तकिया सीने से लगा कर उसे यूं भींच रहा था, जैसे उस की बांहों में कुसुम की नग्न देह हो.

एकाएक मोबाइल की घंटी बजी तो उस के रोमांचक क्षणों को झटका लगा. वह बुरा सा मुंह बना कर पलंग पर उठ बैठा. उस का मोबाइल टेबल पर रखा घनघना रहा था.

हाथ बढ़ा कर उस ने मोबाइल उठाया. उस की स्क्रीन पर हरीश शर्मा नाम देख कर उस के चेहरे पर रौनक आ गई. हरीश उस का बहुत गहरा दोस्त था. शादी से पहले हरीश शर्मा के साथ उस ने बहुत सी धंधा करने वाली औरतों के जिस्मों का स्वाद चखा था.

हरीश शर्मा इस रूमानी खेल का गुरु था. उस ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उसी ने रविकांत को स्त्री के जिस्म के भेद समझाए थे और उसे स्त्री की देह का स्वाद भी चखाया था.

इस वक्त जब वह कुसुम के लिए तड़प रहा था, हरीश की काल आना उसे सुखद और फायदेमंद लगा. क्योंकि हरीश शर्मा उस की तनहाई को खत्म करने के लिए कोई न कोई जुगाड़ बैठा सकता था.

उस ने तुरंत हरीश शर्मा की काल अटेंड की, ‘‘हैलो शर्मा, तूने यार ठीक वक्त पर फोन किया है. मुझे तेरी ही जरूरत थी.’’

‘‘क्यों? क्या कुसुम भाभी की जगह बिस्तर पर मुझे मुरगी बनाएगा तू?’’ हरीश ने दूसरी ओर मुंह बिगाड़ा हो जैसे.

‘‘क्या बकवास करता है यार. मैं तेरे लिए ऐसा क्यों सोचने लगा?’’

‘‘क्योंकि कुसुम भाभी को तूने मायके भेज दिया है और इस समय तू उन्हें याद कर के बिस्तर पर कलाबाजियां खा रहा होगा.’’

‘‘वाह! तू तो अंतरयामी भी है यार,’’ रविकांत हंस कर बोला, ‘‘सचमुच मैं कुसुम की याद में तकिया सीने से भींच कर बिस्तर पर करवटें बदल रहा था.’’

‘‘मुझे तेरी रगरग का पता है. जानता था आज संडे है और तू घर में पड़ा बिस्तर पर करवटें बदल रहा होगा. इसलिए मैं ने तुझे फोन किया है.’’

‘‘अच्छा किया, अब यह बता मेरी मचलती हसरतों को शांत करने की कोई दवा है तेरे पास?’’

‘‘है,’’ हरीश शर्मा का स्वर राजदाराना हो गया, ‘‘सुन, मुझे पता चला है कि जिस्म की गरमी शांत करने के लिए यहां गोरी चमड़ी वाली विदेशी युवतियां भी मिलती हैं.’’

‘‘विदेशी? वाव.’’ रवि के होंठ गोल सिकुड़ गए, ‘‘यार ऐसी युवती का सान्निध्य मिल जाए तो जन्म लेना सफल हो जाए. जल्दी बता, कहां मिलेंगी ये गोरी चमड़ी वाली मेम?’’

‘‘मालवीय नगर चलना होगा.’’

‘‘यार हम रोहिणी में रह रहे हैं. यहां से मालवीय नगर दूर पड़ेगा.’’

‘‘अब मालवीय नगर दिल्ली में है,हमें उस के लिए सिंगापुर नहीं जाना है. तू झटपट तैयार हो कर मुझे पांडेय पान वाले की गुमटी पर मिल, मैं बाइक ले कर आधा घंटे में वहां पहुंच रहा हूं. और हां, 5-7 सौ रुपए जेब में डाल लेना.’’

‘‘ठीक है, तू पहुंच मैं भी फटाफट तैयार हो कर आ रहा हूं.’’ रविकांत ने कहा और मोबाइल का स्विच दबा कर पलंग पर रखने के बाद वह टावल उठा कर बाथरूम में घुस गया.

हरीश शर्मा के साथ रविकांत मालवीय नगर पहुंच गया. एक पार्क के गेट पर एजेंट उन का इंतजार कर रहा था. हरीश शर्मा ने पीली शर्ट और काली जींस पहन रखी थी क्योंकि एजेंट ने उसे पहचान के लिए ऐसे ही कपड़े पहन कर आने को कहा था.

हरीश रविकांत को साथ ले कर पार्क के गेट पर आ गया. एजेंट ने उसे गहरी नजर से देखा, फिर तसल्ली हो जाने के बाद उन के पास आ गया.

‘‘आप ने ही मुझ से फोन पर संपर्क किया था?’’ उसे एजेंट ने पूछा.

‘‘जी हां, अगर आप का नाम रूपेश है तो मैं ने ही आप से फोन पर संपर्क किया था.’’ हरीश ने बताया.

‘‘आप को मेरा नंबर किस से मिला?’’

‘‘मेरा परिचित है संजीव, उसी ने आप का नंबर दिया था.’’

‘‘ठीक है, अब आप बताइए आप की चौइस क्या है, देशी या विदेशी गोश्त खाना पसंद करेंगे आप?’’

‘‘देशी का स्वाद तो हमें मिलता रहता है, हम विदेशी मुरगी का स्वाद चखना चाहते हैं.’’

‘‘उस की कीमत ज्यादा है…’’

‘‘कितनी?’’ शर्मा ने बेफिक्री से पूछा.

‘‘एक शौट का 15 हजार और पूरी नाइट बैठोगे तो 30 हजार रुपए लगेंगे.’’

हरीश शर्मा का जोश झाग की तरह नीचे बैठ गया. रविकांत ने भी गहरी सांस छोड़ी. इतनी मोटी रकम उस की पौकेट में नहीं थी. फिर इतनी महंगी आइटम उसे चाहिए भी नहीं थी.

हरीश शर्मा पूरा घाघ था. मालूम था उसे, उस की हैसियत क्या है लेकिन फिर भी गरदन झटक कर बोला, ‘‘आप की इतनी डिमांड वाली हसीना की क्या मैं सूरत देख सकता हूं?’’

कोई नहीं- भाग 2: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

एक दिन बबिता ने उसे बताया कि वह गाड़ी चलाना सीखने के लिए ड्राइविंग स्कूल में एडमिशन ले कर आ रही है. उस ने दिनेश को एडमिशन का फार्म भी दिखाया. हुआ यह कि बबिता के बडे़ भाई नंद कुमार ने उस से कहा कि रोजरोज बस या टैक्सी से आनाजाना न कर के वह अपनी कार से आए और इस के लिए ड्राइविंग सीख ले. आखिर पापा ने दहेज में कार किसलिए दी है.

बबिता को यह बात जंच गई. पर दिनेश इस पर आगबबूला हो गया. अपनी नाराजगी और गुस्से को वह रोक भी नहीं पाया और बोल पड़ा, ‘तुम्हारे पापा ने कार मुझे दी है.’

‘हां, पर वह मेरी कार है, मेरे लिए पापा ने दी है.’

दिनेश बबिता का जवाब सुन कर दंग रह गया. उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए विवाद को तूल न देने के लिए समझौते का रुख अपनाते हुए कहा, ‘ठीक है पर ड्राइविंग सीखने की क्या जरूरत है. गाड़ी पर ड्राइवर तो है?’

‘मुझे किसी ड्राइवर की जरूरत नहीं. मैं खुद चलाना सीखूंगी और मुझे कोई भी रोक नहीं सकेगा. मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं हूं.’

दिनेश ने इस के बाद एक शब्द भी नहीं कहा. बबिता को कुछ कहने के बजाय उस ने अपने पिता को ये बातें बता दीं. गिरधारी लाल ने तुरंत रामगोपाल को फोन मिलाया और उस से बबिता के व्यवहार की शिकायत की तो उधर से उन की समधिन लक्ष्मी का जवाब आया, ‘भाईसाहब, आप के लड़के से बेटी ब्याही है, कोई बेच नहीं दिया है जो उस पर हजार पाबंदियां लगा रखी हैं आप ने. यह मत करो, वह मत करो, पापामम्मी से बातें मत करो, उन के घर मत जाओ, क्या है यह सब? हम ने तो अपने ही शहर में इसीलिए बेटी की शादी की थी कि वह हमारे पास आतीजाती रहेगी, हमारी नजरों के सामने रहेगी.’

‘पर समधिनजी,’ फोन पर गिरधारी लाल ने जोर दे कर अपनी बात कही, ‘यदि आप की बेटी बराबर आप के घर का ही रुख किए रहेगी तो वह अपना घर कब पहचानेगी? संसार का तो यही नियम है कि बेटी जब तक कुंआरी है अपने बाप की, विवाह के बाद वह ससुराल की हो जाती है.’

‘यह पुरानी पोंगापंथी बातें हैं. मैं इसे नहीं मानती. रही बात बबिता की तो वह जब चाहेगी यहां आ सकती है और वह गाड़ी चलाना सीखना चाहती है तो जरूर सीखे. इस से तो आप लोगों के परिवार को ही फायदा होगा.’

गिरधारी लाल ने इस के बाद फोन रख दिया. उन के चेहरे पर चिंता की गहरी रेखा खिंच आई थीं. परिवार वाले चिंतित थे कि इस स्थिति का परिणाम क्या होगा?

दिनेश ने भी इस घटना के बाद चुप्पी साध ली थी. सास सुलोचना ने सब से पहले बहू से बोलना बंद किया था, उस के बाद गिरधारी लाल भी बबिता से सामना होने से बचने का प्रयत्न करते. राजेश को भाभी से बातें करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. उस की जरूरतें मां, नौकर और नौकरानी से पूरी हो जाती थीं.

दिनेश और बबिता के बीच सिर्फ कभीकभार औपचारिक शब्दों का संबंध रह गया था. आफिस से छुट्टी के बाद वह ज्यादा समय बाहर ही गुजारता, देर रात में घर लौटता और खाना खा कर सो जाता.

इस बीच बबिता ने गाड़ी चलाना सीख लिया था. वह सुबह ही गाड़ी ले कर मायके चली जाती और रात में देर से लौटती. कभी उस का फोन आता, ‘आज मैं आ नहीं सकूंगी.’ बाद में इस तरह का फोन आना भी बंद हो गया.

कानूनी और सामाजिक तौर पर बबिता गिरधारी लाल के परिवार की सदस्य होने के बावजूद जैसे उस परिवार की ‘कोई नहीं’ रह गई थी. यह एहसास अंदर ही अंदर गिरधारी लाल और उन की पत्नी सुलोचना को खाए जा रहा था कि उन के बेटे का दांपत्य जीवन बबिता के निरंकुश एवं दायित्वहीन आचरण तथा उस के ससुराल वालों की हठवादिता से नष्ट हो रहा है.

आखिर एक दिन दिनेश ने दृढ़ स्वर में बबिता से कहा, ‘हम दोनों विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं. इस से बेहतर है तलाक ले कर अलग हो जाएं.’

दिनेश को तलाक लेने की सलाह उस के पिता गिरधारी लाल ने दी थी. वह अपने बेटे के बिखरते वैवाहिक जीवन से दुखी थे. उन्होंने यह सलाह भी दी थी कि यदि बबिता उस के साथ अलग रह कर अपनी अलग गृहस्थी में सुखी रह सकती है तो वह ऐसा ही करे. पर दिनेश को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था कि वह अपने मातापिता को छोड़ कर अलग हो जाए.

दिनेश के मुंह से तलाक की बात सुन कर बबिता सन्न रह गई. उसे जैसे इस प्रकार के किसी प्रस्ताव की अपेक्षा नहीं थी. इस में उसे अपना घोर अपमान महसूस हुआ.

मायके आ कर बबिता ने अपने मम्मीपापा और भाइयों को दिनेश का प्रस्ताव सुनाया तो सभी भड़क उठे. रामगोपाल को जहां इस चिंता ने घेर लिया कि इतना अच्छा घरवर देख कर और काफी दानदहेज दे कर बेटी की शादी की, वहां इतनी जल्दी तलाक की नौबत आ गई. समाज और बिरादरी में उन की क्या इज्जत रहेगी? पर लक्ष्मी काफी उत्तेजित थीं. वह चीखचीख कर बारबार एक ही वाक्य बोल रही थीं, ‘उन की ऐसी हिम्मत…उन्हें इस का मजा चखा कर रहूंगी.’

 

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 2

‘‘मेरे पास उन की तसवीर है, देख कर यहां ही पसंद कर लीजिए.’’ एजेंट ने कहने के बाद अपने कीमती मोबाइल पर एक निजी साइट खोल कर हरीश शर्मा के सामने कर दी. उस ने करीब 10 विदेशी युवतियों के फोटो दिखाए. सभी कयामत बरपा देने वाली हसीन गोरी चमड़ी वाली हसीनाएं. एक से बढ़ कर एक थीं.

हरीश शर्मा के साथ रविकांत भी अपनी जगह बेचैनी से पहलू बदलते रहे, गजब की सुंदर, कोमल, चिकनी मलमली देह वाली विदेशी युवतियां थीं वे. देख कर ही दोनों को नशा होने लगा.

हरीश शर्मा ने एक तसवीर पर अंगुली रख दी, ‘‘इस की कीमत बोलिए.’’

‘‘हरेक की कीमत एक बार बैठने की 15 हजार होगी. कहिए तो मैं आप को इस के आशियाने पर छोड़ने चलूं?’’

 

हरीश शर्मा ने जेब टटोलने का अभिनय किया. अपना पर्स निकाल कर जोश में बोला, ‘‘मैं 15 हजार ही दूंगा.’’

हरीश ने बटुआ खोला और उस में झांक कर निराशा भरी सांस ली, ‘‘ओह! रुपए तो मैं अपनी टेबल पर ही छोड़ आया. सौरी यार… कल आ जाऊंगा.’’

‘‘तुम सात जन्म लोगे तब भी यहां लौट कर नहीं आओगे. यहां कोहिनूर हीरे मिलते हैं, तुम्हारे बाजारों की सड़ी बदबूदार मछलियां नहीं, जो पूरी रात के लिए 2-3 सौ में प्लेट में सजने को तैयार रहती हैं.’’ इस बार एजेंट भड़क कर तूतड़ाक पर उतर आया, ‘‘अबे जब जेब में दमड़ी नहीं थी तो मेरा टाइम खराब करने क्यों आ गए? जाओ, दफा हो जाओ यहां से.’’

हरीश शर्मा ने पर्स जेब में रखा और रविकांत का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘चल यहां से, कहीं और मूड बनाएंगे.’’

दोनों मोटरसाइकिल की तरफ बढ़े तो एजेंट ने उन्हें फाड़ खाने वाली नजरों से देख कर भद्दी गाली दी. हरीश शर्मा एक बार ठिठका लेकिन रविकांत ने उसे अपनी तरफ खींच कर धीमे से कहा, ‘‘ये इस का इलाका है, यहां यह अकेला नहीं होगा. इस के एक इशारे पर कई साथी आ टपकेंगे. यहां से चुपचाप निकल चलने में ही भलाई है.’’

‘‘यह हरामी हमें भद्दी गालियां दे रहा है. बेशक हम इतना रुपया एक बार के लिए खर्च नहीं कर सकते, लेकिन इसे हमारी बेइज्जती करने का हक नहीं बनता.’’ हरीश शर्मा झुंझलाए स्वर में बोला.

‘‘हमें अपनी औकात देख कर ही यहां आना चाहिए था. वैसे भी विदेशी माल 4-5 सौ में नहीं मिलता.’’ रविकांत ने गहरी सांस भर कर कहा.

‘‘मैं भी जानता हूं, मुझे उन लड़कियों की झलक देखनी थी, वह मैं ने उसे बेवकूफ बना कर देख ली.’’ शर्मा मुसकरा कर बोला.

‘‘चलो, आज की रात किसी बाजार के कोठे पर गुजारते हैं. मूड ठीक हो जाएगा.’’ रवि ने शर्मा का हाथ दबा कर कहा.

‘‘चलेंगे, लेकिन इस भड़वे का दिमाग ठिकाने जरूर लगाऊंगा मैं. इस की बहन की… इस साले ने हमें गाली दी है.’’

‘‘क्या करोगे यार, कहा न यह इन का इलाका है.’’

‘‘इस इलाके में आग लगाऊंगा मैं.’’ हरीश शर्मा गंभीर स्वर में बोला और मोबाइल पर किसी का नंबर डायल करने लगा. नंबर मिल गया. अब वह धीरेधीरे से किसी से बात कर रहा था और इस इलाके मालवीय नगर में देह व्यापार होने की जानकारी दे रहा था.

 

क्राइम ब्रांच थाना पुष्प विहार में इंसपेक्टर प्रमोद कुमार अपने कक्ष में बैठे सुबह का अखबार देख रहे थे तभी कांस्टेबल सोहनवीर ने आ कर उन्हें सैल्यूट किया.

‘‘कैसे हो सोहनवीर?’’ एक नजर सोहनवीर पर डालते हुए इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने पूछा.

‘‘ठीक हूं सर.’’ सोहनवीर ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं एक खास मकसद से आप से मिलने आया हूं.’’

इंसपेक्टर प्रमोद ने तुरंत अखबार एक ओर रख दिया और सोहनवीर की ओर मुखातिब हो गए, ‘‘गंभीर हो और खास मकसद से आए हो तो पहले मैं आप की बात सुनूंगा. कहिए?’’

‘‘जी, मालवीय नगर में देह व्यापार चल रहा है, जिस में कई विदेशी लड़कियों को देह धंधे में उतारा गया है.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप?’’ इंसपेक्टर प्रमोद चौंक कर बोले, ‘‘यह खबर आप को कैसे लगी?’’

‘‘मेरे खास मुखबिर ने यह खबर दी है, वह दरवाजे पर मौजूद है सर.’’

‘‘उसे अंदर बुलवाइए.’’

कांस्टेबल सोहनवीर बाहर गए और अपने साथ एक दुबलेपतले व्यक्ति को ले कर अंदर आ गए. उस व्यक्ति ने इंसपेक्टर प्रमोद को हाथ जोड़ कर नमस्ते की.

‘‘तुम्हें मालवीय नगर में देह व्यापार होने की खबर कैसे लगी?’’ बगैर कोई भूमिका बांधे इंसपेक्टर प्रमोद ने सवाल किया.

‘‘सर, मेरे एक दोस्त ने रात को मुझे फोन से यह जानकारी दी थी. वह दोस्त कौन है, कहां रहता है, मैं यह नहीं बताऊंगा लेकिन यह खबर सोलह आना सच्ची है सर.’’

‘‘कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें जो बताया है वह सच होगा?’’ इंसपेक्टर प्रमोद ने मुखबिर को पैनी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘वह कल रात को मौजमस्ती के लिए मालवीय नगर गया था सर, सौदा महंगा था वह पे नहीं कर सका तो दलाल ने उसे भद्दीभद्दी गालियां दीं. इस से खफा हो कर उस ने मुझे यह बात बता दी. सर, वह जानता है कि मैं पुलिस के लिए मुखबिरी करता हूं.’’

‘‘हूं. कई दिनों से मुझे भी उड़तीउड़ती जानकारी मिल रही थी कि मालवीय नगर में देह का धंधा किया जा रहा है. आज तुम ने इस की पुष्टि कर दी है, फिर भी मैं पूरी सच्चाई और ठोस प्रमाण पाने के बाद ही कोई कड़ा कदम उठाऊंगा.’’

‘‘मैं इस की सच्चाई पता लगाने में पूरी मेहनत करूंगा सर.’’ मुखबिर ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘सोहनवीर, आप भी मुखबिर के साथ इस के कथन की पुष्टि करने के लिए जुट जाइए. यह काम बहुत सावधानी से और सादे कपड़ों में होना चाहिए. देह व्यापार चलाने वाले बहुत शातिर दिमाग होते हैं और खतरनाक भी.’’

‘‘आप बेफिक्र रहिए सर, एकदो दिन में मैं मुखबिर के साथ मिल कर ठोस जानकारी हासिल कर लूंगा.’’ कांस्टेबल सोहनवीर ने कहा और इंसपेक्टर से इजाजत ले कर मुखबिर के साथ निकल गया.

कांस्टेबल सोहनवीर और मुखबिर (काल्पनिक नाम विनोद) ने मिल कर मालवीय नगर में वह फ्लैट ढूंढ निकाला, जहां विदेशी लड़कियों से देह व्यापार करवाया जा रहा था.

एक कस्टमर को लालच दे कर उन्होंने यह भी मालूम कर लिया कि इस धंधे का दलाल कौन है और उसे कहां और कैसे संपर्क किया जा सकता है. यह पुख्ता जानकारी कांस्टेबल सोहनवीर ने क्राइम ब्रांच पुष्प विहार के सीनियर इंसपेक्टर प्रमोद कुमार को दे दी.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने इस की रिपोर्ट तुरंत डीसीपी (क्राइम ब्रांच) विचित्रवीर को दी. उन्होंने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया और एसीपी एस.के. गुलिया के सुपरविजन में एक जांच दल का गठन कर दिया.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार, प्रदीप कुमार के साथ कांस्टेबल सोहनवीर और एएसआई राजेश तथा अन्य एसआई बहादुर शर्मा, सुमन बजाज, गुंजन सिंह, एएसआई सुनीता, जसबीर, रामचंद्र, नवीन पांडेय और सतीश को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने कांस्टेबल सोहनवीर और एएसआई राजेश को नकली ग्राहक बना कर पंचशील विहार भेजा. सोहनवीर को हस्ताक्षरयुक्त 5 सौ रुपए के 30 नोट दिए गए, जिन के नंबर पहले ही डायरी में दर्ज कर लिए गए.

कांस्टेबल सोहनवीर को नकली ग्राहक बना कर एजेंट मोहम्मद अरूप और चंदे साहनी उर्फ राजू से मिल कर सौदा तय करना था. एएसआई को कांस्टेबल सोहनवीर पर नजर रखनी थी और सौदा होने पर सिर पर हाथ घुमा कर रेड करने का संकेत देना था.

कांस्टेबल सोहनवीर ने अपना हुलिया बदल लिया. वह स्मार्ट और मनचले युवक के हुलिए में तैयार हुआ तथा प्राइवेट वाहन से एएसआई राजेश के साथ पंचशील विहार, मालवीय नगर पहुंच गया. इस वक्त राजेश सादे कपड़ों में थे.

दोनों उस पार्क के पास पहुंच कर रुक गए. सोहनवीर ने अपने मोबाइल में दूसरी सिम डाल ली थी. उस ने एजेंट मोहम्मद अरूप का नंबर डायल किया.

‘‘हैलो, आप को किस से बात करनी है?’’ दूसरी ओर से पूछा गया.

‘‘मुझे मोहम्मद अरूप से बात करनी है. मैं अभिषेक बोल रहा हूं.’’

‘‘मैं मोहम्मद अरूप ही बोल रहा हूं. कहिए, आप को मुझ से क्यों मिलना है?’’

‘‘मुझे एक पार्टनर चाहिए, ऐसा पार्टनर जो मेरी तबीयत को मस्त कर दे.’’

‘‘आप को गलतफहमी हुई है जनाब, मैं लड़कियों का दलाल नहीं हूं.’’

कोई नहीं- भाग 1: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

दूसरी ओर से दिनेश की घबराहट भरी आवाज आई, ‘‘पापा, आप लोग जल्द चले आइए. बबिता ने शरीर पर मिट्टी का तेल उडे़ल कर आग लगा ली है.’’

‘‘क्या?’’ रामगोपाल को काठ मार गया. शंका और अविश्वास से वह चीख पडे़, ‘‘वह ठीक तो है?’’ और इसी के साथ उन की आंखों के सामने वे घटनाएं उभरने लगीं जिन की वजह से आज यह स्थिति बनी है.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का विवाह 6 साल पहले अपने ही शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में किया था. उन के समधी गिरधारी लाल भी व्यवसायी थे और मुख्य बाजार में उन की कपडे़ की दुकान थी, जिस पर वह और उन का छोटा बेटा राजेश बैठते थे.

बड़ा बेटा दिनेश एक फर्म में चार्टर्ड एकाउंटेंट था और अच्छी तनख्वाह पाता था. रामगोपाल की बेटी, बबिता भी कामर्स से गे्रजुएट थी अत: दोनों परिवारों में देखसुन कर शादी हुई थी.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का धूमधाम से विवाह किया. 2 बेटों के बीच वही एकमात्र बेटी थी इसलिए अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दानदहेज भी दिया जबकि समधी गिरधारी लाल की कोई मांग नहीं थी. दिनेश की सिर्फ एक मांग फोरव्हीलर की थी, सो रामगोपाल ने उन की वह मांग भी पूरी कर दी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही ससुराल में बबिता के आचरण और व्यवहार पर आपत्तियां उठनी शुरू हो गईं. इसे ले कर दोनों परिवारों में तनाव बढ़ने लगा. गिरधारी लाल के परिवार में बबिता समेत कुल 5 लोग थे. गिरधारी लाल, उन की पत्नी सुलोचना, दिनेश और राजेश तथा नई बहू बबिता.

सुलोचना पारंपरिक संस्कारयुक्त और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. वह सुबह उठतीं, स्नान करतीं और घरेलू कामों में जुट जातीं. वह चाहती थीं कि उन की बहू भी उन्हीं संस्कारों को ग्रहण करे पर बबिता के लिए यह कठिन ही नहीं, दुष्कर काम था. वास्तविकता यह थी कि वह ऐसे संस्कारों को पोंगापंथी और ढोंग समझती थी और इस के खिलाफ थी.

बबिता आधुनिक विचारों की थी तथा स्वाधीन रहना चाहती थी. रात में देर तक टेलीविजन के कार्यक्रम देखती, तो सुबह साढे़ 9 बजे से पहले उठ नहीं पाती. और जब तक वह उठती थी गिरधारी लाल और राजेश नाश्ता कर के दुकान पर जा चुके होते थे. दिनेश भी या तो आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा होता या जा चुका होता.

सास सुलोचना को अपनी बहू के इस आचरण से बहुत तकलीफ होती. शुरू में तो उन्होंने बहू को घर के रीतिरिवाजों को अपनाने के लिए बहुत समझाया, पर बाद में उस की हठवादिता देख कर उस से बोलना ही छोड़ दिया. इस तरह एक घर में रहते हुए भी सासबहू के बीच बोलचाल बंद हो गई.

घर में काम के लिए नौकर थे, खाना नौकरानी बनाती थी. वही जूठे बरतनों को मांजती थी और कपडे़ भी धो देती. बबिता के लिए टेलीविजन देखने और समय बिताने के सिवा कोई दूसरा काम नहीं था. उस की सास सुलोचना कुछ न कुछ करती ही रहती थीं. कोई काम नहीं होने पर पुस्तकें ले कर पढ़ने बैठ जातीं. वह इस स्थिति की अभ्यस्त थीं पर बबिता को यह भार लगने लगा. एक दिन हालात से ऊब कर बबिता अपने मायके फोन मिला कर अपनी मम्मी से बोली, ‘मम्मी, आप ने कहां, कैसे घर में मेरा विवाह कर दिया? यह घर है या जेलखाना? मर्द तो काम पर चले जाते हैं, यहां दिन भर बुढि़या गिद्ध जैसी आंखें गड़ाए मेरी पहरेदारी करती रहती है. न कोई बोलने के लिए है न कुछ करने के लिए. ऐसे में तो मेरा दम घुट जाएगा, मैं खुदकुशी कर लूंगी.’

‘अरे नहीं, ऐसी बातें नहीं बोलते बेटी,’ उस तरफ से बबिता की मम्मी लक्ष्मी ने कहा, ‘यदि तुम्हारी सास तुम से बातें नहीं करती हैं तो अपने पति के आफिस जाने के बाद तुम यहां चली आया करो. दिन भर रह कर शाम को पति के लौटने के समय वापस चली जाना. ससुराल से मायका कौन सा दूर है. बस या टैक्सी से चली आओ. वे लोग कुछ कहेंगे तो हम उन्हें समझा लेंगे.’

यह सुनते ही बबिता की बाछें खिल गईं. उस ने झटपट कपडे़ बदले, पर्स लिया और अपनी सास से कहा, ‘मम्मी का फोन आया था, मैं मायके जा रही हूं. शाम को आ जाऊंगी,’ और सास के कुछ कहने का भी इंतजार नहीं किया, कदम बढ़ाती वह घर से निकल पड़ी.

इस के बाद तो यह उस की रोज की दिनचर्या हो गई. शुरू में दिनेश ने यह सोच कर इस की अनदेखी की कि घर में अकेली बोर होने से बेहतर है वह अपनी मां के घर घूम आया करे पर बाद में मां और पिताजी की टोकाटाकी से उसे भी कोफ्त होने लगी.

एक तरफा प्यार में जिंदा जल गई अंकिता

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