अगर आपके अंदर भी है सिक्स पैक ऐब्स का जुनून तो जरूर पढ़ें ये खबर

युवा अपने बौडी लुक और फिटनैस को ले कर कुछ ज्यादा ही क्रेजी हो गए हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि सिक्स पैक बनाना इतना आसान नहीं है. इस के लिए संतुलित डाइट के साथसाथ ट्रेनर की देखरेख में ऐक्सरसाइज करने की जरूरत भी होती है.

अगर आप फिट हैं तो हर खुशी हासिल कर सकते हैं और फिटनैस आप को मिलेगी संतुलित डाइट और नियमित व्यायाम से.

बौडी बनाने का अर्थ है मांसपेशियों को कसना, जिस से कि आप सुडौल दिखें. इस काम में खासी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐब्स बनाने के लिए कार्बोहाइड्रेट तथा फैट की मात्रा को घटा कर प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई जाती है, ताकि मांसपेशियां सख्त हो सकें.

चाहिए सिक्स पैक तो देना होगा समय

यदि आप चाहते हैं कि आप की बौडी सुडौल व आकर्षक बने, तो इस के लिए आप को समय निकालना होगा. ‘बौडी फिटनैस सैंटर’ के ट्रेनर पवन मान के मुताबिक, ‘‘युवाओं को सिक्स पैक बनाने से पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उन की बौडी पर फैट कितना चढ़ा है. यदि शरीर अधिक फैटी है तो पहले उसे घटाने के लिए कुछ खास तरह की ऐक्सरसाइज करनी होती है. साथ ही डाइट पर भी ध्यान देना होता है.’’

यदि आप फैटी हैं तो जिम जाने से पहले नियमित व्यायाम बहुत जरूरी है. नियमित व्यायाम में स्विमिंग, साइकिलिंग, जौगिंग आदि जरूरी हैं. इन के अलावा मौर्निंगवाक भी बहुत जरूरी है.

वैसे सिक्स पैक ऐब्स बनाने के लिए जिम ट्रेनर कई प्रकार के डाइट सप्लिमैंट्स देते हैं, जिन में सिंथैटिक पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं. ये तत्त्व शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. आमतौर पर लिए जाने वाले सप्लिमैंट्स में क्रिएटिन, प्रोटीन, स्टीरायड आदि हारमोन होते हैं. इस बारे में वरिष्ठ चिकित्सक डा. उमेश सरोहा कहते हैं, ‘‘ये पोषक तत्त्व शरीर को सुडौल बनाने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. सुडौल बौडी पाने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित डाइट ज्यादा लाभदायक है.’’

कुछ लोग फैट कम करने के लिए अपने भोजन से फैट वाली चीजें बिलकुल हटा देते हैं, जिस से शरीर को लाभ पहुंचने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचता है. फैट की अधिक कमी से शरीर के अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए फैट की प्रचुर मात्रा शरीर के लिए बहुत जरूरी है.

फिटनैस के लिए जरूरी डाइट

–       सिक्स पैक बौडी के लिए फाइबरयुक्त भोजन लेना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस से शरीर का विकास होता है. प्रोटीन की मात्रा बनाए रखने के लिए मौसमी फलों का सेवन बहुत लाभदायक है.

–       सुबह का नाश्ता अति आवश्यक है. नाश्ता हैवी व लंच हलका लें. डिनर तो नाश्ते व लंच से भी हलका लें. इस तरह का चार्ट बना लें. यह आप की सेहत के लिए जरूरी है.

–       दिन भर में कम से कम 10 गिलास पानी पीएं. पानी हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, क्योंकि अधिक ऐक्सरसाइज करने से शरीर में डिहाइडे्रशन की आशंका बनी रहती है, इसलिए इस से बचने के लिए व्यक्ति को अपने वजन के हिसाब से पानी पीना चाहिए.

–       ढेर सारा भोजन एकसाथ न लें. हिस्सों में बांट कर दिन में कई बार भोजन करें. इस से पाचन तंत्र मजबूत बना रहता है. साथ ही ऐक्सरसाइज करने के लिए और अधिक ताकत मिलती है.

–       हरी सब्जियों का सेवन ज्यादा करें. ये शरीर को ऊर्जा देने के साथसाथ आप को तरोताजा रखती हैं. प्रोटीन डाइट में अंडा, पनीर, दूध, दही, मछली आदि लें.

–       अलकोहल का सेवन बिलकुल न करें. यह आप के शरीर को बेकार करता है.

–       भोजन नियमित मात्रा में ही लें. संतुलित आहार शरीर को रोगमुक्त रखता है. एक सीमा में रह कर ही जिम में वर्कआउट करें. ऐसी किसी दवा का सेवन न करें, जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

बौडी में क्यों है इम्युनिटी की जरूरत, जानें यहां

स्वस्थ रहने की पहली शर्त यह है कि शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता हो. शरीर बीमार न पड़े, यह अच्छी बात है, लेकिन ऐसा होता नहीं है. शरीर में मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है तो बीमारी आप को दबोच लेगी. यानी बीमार पड़ने और बीमार न पड़ने के बीच की सब से मजबूत दीवार है रोग प्रतिरोधक क्षमता या बौडी इम्यून. जिस का बौडी इम्यून जितना ताकतवर होगा उस के सेहतमंद रहने और लंबी उम्र तक जीने के उतने ही ज्यादा आसार होंगे.

आज की तेज रफ्तार जीवनशैली ने इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पहले के मुकाबले कमजोर कर दिया है. नियमित ऐक्सरसाइज, संतुलित आहार व समय पर भोजन के चौतरफा सुझाव मिलते हैं ताकि मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके लेकिन मल्टीनैशनल कल्चर के इस दौर में हम अपने खानपान व सेहत संबंधी कार्यक्रमों को जानतेबूझते हुए भी नियमित व अनुशासित नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी का कमजोर होना स्वाभाविक है. नतीजतन, शरीर में विभिन्न प्रकार के भौतिक व पर्यावरणीय तनावों को सह पाने की क्षमता नहीं होती.

आज अनुशासित जीवन जीना बहुत ज्यादा कठिन है फिर भी अगर बेहतर स्वास्थ्य चाहिए तो इस कठिन अनुशासन को भी अपनाना ही पड़ेगा. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपने शरीर को रोग प्रतरोधात्मक क्षमता के नजरिए से ऐसा बनाएं कि वह तमाम रोगों से लड़ सके और उन्हें शरीर में प्रविष्ट न होने दे. इस के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपनी सेहत, जीवनशैली और कार्यस्थल के माहौल पर विशेष ध्यान दे.

1. मजबूत प्रतिरोधात्मक क्षमता

दरअसल, जब शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होती है तो तापमान के गिरने या बढ़ने से या संक्रामक रोगों के फैलने से हम फौरन बीमार पड़ जाते हैं जबकि जिन की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत होती है वे कभीकभार ही बीमार पड़ते हैं. यह सही है कि इम्यूनिटी काफी हद तक वंशानुगत यानी जैनेटिक होती है लेकिन हमारे वातावरण में जो कीटाणु यानी जर्म्स होते हैं उन का सामना करने से यह बढ़ जाती है. जितने अधिक प्रकारों के कीटाणुओं का हम सामना करेंगे जाहिर है उतना ही मजबूत हमारा इम्यून सिस्टम हो जाएगा क्योंकि हमारा शरीर न केवल कीटाणुओं को पहचानने लगेगा बल्कि उन का प्रतिरोध भी करने लगेगा. इसलिए टीकाकरण महत्त्वपूर्ण हो जाता है. टीकाकरण के अतिरिक्त कोई और जरिया नहीं है जिस से विरासत में मिली इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सके. लेकिन हम अपने वातावरण को जरूर परिवर्तित कर सकते हैं.

इम्यून कोशिकाएं शरीर में त्वचा से ले कर अंदर तक सभी जगह होती हैं. आमतौर से वयस्कों का इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत होता है जिस में हजारों कीटाणुओं की मेमोरी होती है. लेकिन पर्यावरण की वजह से इन इम्यून कोशिकाओं का स्तर प्रभावित हो सकता है और अध्ययनों से मालूम हुआ है कि अस्वस्थ जीवनशैली, कान व तनाव भी इम्यूनिटी को कम कर देते हैं. शायद यही वजह है कि मधुमेह या डायबिटीज व हृदय रोगों को ‘जीवनशैली रोग’ कहा जाता है. यह अच्छी बात है कि जीवनशैली रोगों से हम अपनी जीवनशैली में सुधार कर के अच्छी तरह से निबट सकते हैं क्योंकि इस के जरिए हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ा सकते हैं.

सक्रिय जीवनशैली सेहत के लिए हमेशा अच्छी होती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते भी हैं कि आप दिन में कम से कम आधा घंटा कोई न कोई ऐसा काम अवश्य करें जिस से शरीर हरकत में रहे, जैसे

तेज चहलकदमी करना, जिम, स्पोर्ट्स, साइकिलिंग, ऐरोबिक्स इत्यादि. ऐक्सरसाइज का सब से बड़ा फायदा यह है कि पसीने के जरिए शरीर से जहरीले पदार्थ यानी टौक्सिन बाहर निकल जाते हैं और शरीर के भीतर एंड्रोफिन्स हार्मोन जारी होते हैं जो तनाव स्तर को नियंत्रित रखते हैं. ध्यान रहे कि तनाव से इम्यूनिटी बहुत अधिक प्रभावित होती है. ऐक्सरसाइज का चयन हमेशा अपनी आयुवर्ग व खानपान के हिसाब से करें.

पुरानी कहावत पूरी तरह से सही है कि ‘हम जैसा खाएंगे अन्न वैसा ही बनेगा मन और शरीर.’ अगर हम पौष्टिक व संतुलित आहार लेते हैं तो शरीर में ऐसे लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता होगी जो संतुलित व पौष्टिक भोजन नहीं लेते.

2. संतुलित आहार

पौष्टिक और संतुलित भोजन हमें रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. संतुलित आहार का अर्थ है वह भोजन जिस में सब्जियों और प्रोटीन का अच्छा मिश्रण होता है. पौष्टिक आहार का अर्थ है, ऐसा भोजन जिस में पर्याप्त मात्रा में विटामिंस व खनिज मौजूद हों ताकि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को मजबूत किया जा सके. जिन फूड्स में विटामिन ए, बी, सी व ई, फोलेट और कैरोनाइड्स व खनिज जैसे जिंक, क्रोमियम व सेलिनियम होते हैं वे न केवल इम्यूनिटी बढ़ाते हैं बल्कि स्वस्थ इम्यून सिस्टम के लिए भी जरूरी हैं. प्रोटीन के लिए चिकन, फिश और दाल (विशेष रूप से मूंग व मसूर) खाएं ताकि शरीर को ईंधन मिले. विटामिन सी के लिए संतरा, मौसमी, आंवला, नीबू आदि लें और अपनी इम्यूनिटी का स्तर बढ़ाएं.

शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में 5 खाद्य  पदार्थों को 5 वंडर फूड्स की संज्ञा दी गई है. इस में दही को पहले नंबर पर इसलिए रखा गया है कि वह प्रोबायोटिक्स, अच्छे बैक्टीरिया जो पाचन में मदद करते हैं, का अच्छा स्रोत है. बाकी अन्य 4 फूड्स हैं – संतरा, पालक, मछली व नट्स.

वहीं, यह भी आवश्यक है कि जो भी फूड्स हम लें वे ताजे अवश्य हों. रैफ्रिजरेटर में रखे या प्रोसैस्ड फूड सांस व पेट की परेशानियां पैदा कर सकते हैं. दमा या कुछ प्रकार की एलर्जियां पहले विरासत में मिले रोग समझे जाते थे लेकिन अब ये जीवनशैली रोगों में शामिल हो गए हैं क्योंकि हम ऐसी चीजें खाने लगे हैं जिन में कृत्रिम रंग या प्रिजर्वेटिव्स होते हैं.

3. संतुलित जीवन

इम्यूनिटी का मन व शरीर से गहरा संबंध है. अगर हम तनावग्रस्त होंगे तो बहुत आसानी से हमें संक्रामक रोग पकड़ लेंगे. डिप्रैशन या तनावग्रस्त होने पर हम अपने आहार और जीवनशैली पर भी ध्यान नहीं दे पाते. मानसिक थकान की वजह से नींद नहीं आती और हम रोगों से लड़ने के लायक नहीं रहते. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि तनाव को नियंत्रित रखें या तनावमुक्त रहें. तनावमुक्त रहने के लिए यह सुनिश्चित करें कि रोजमर्रा की स्थितियों पर हमारी प्रतिक्रिया संतुलित हो. हास्य, ऐक्सरसाइज व सैक्स के जरिए हम अपने मस्तिष्क में अच्छे रसायनों का स्तर बढ़ा सकते हैं और तनावमुक्त रह सकते हैं.

बहरहाल, ऐक्सरसाइज, संतुलित व पौष्टिक आहार और तनावमुक्त रहने से हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता या इम्यूनिटी को मजबूत कर लेते हैं और इस तरह हमारा शरीर ऐसा कवच बन जाता है जो हमें रोगों से दूर रखता है, फिर चाहे मौसम का मिजाज कितना ही बदलता रहे.

विशेषज्ञों का कहना है कि दिन में 3 बार पेट भर कर खाने से बेहतर है छोटेछोटे मील दिन में 4 या 5 बार लिए जाएं जिन में विशेष रूप से फल, सब्जियां, ओमेगा-3 युक्त मछली, थोड़ा सा जैतून का तेल विशेष रूप से शामिल हो. अदरक व लहसुन को नियमित सप्लीमैंट के तौर पर लेना चाहिए. यह भी सुनिश्चित कर लें कि हमें पर्याप्त मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट विटामिन सी और ई मिल रहे हैं. सक्रिय जीवनशैली भी बहुत जरूरी है.

फिट रहने के लिए जरूर फौलो करें ये 7 टिप्स, हमेशा रहेंगे हेल्दी

आज के समय में अपनी हेल्थ और खानपान का खयाल रखना हर किसी के लिए जरूरी है फिर चाहे वे पुरुष हो या महिला लेकिन हमारी सोसाइटी में पुरुषों का लाइफस्टाल महिलाओं के तुलना में ज्यादा भाग-दौड़ भरा और तनाव भरा रहता है. घर और घर के बाहर की चीजों को संभालना काफी मुश्किल हो जाता है.

इन सब चीजों को बैलेंस करने में पुरुष अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते. कुछ देर के लिए तनाव मुक्त होने के लिए कई पुरुष कुछ गलत चीजों का सहारा भी लेने लग जाते हैं जैसे कि शराब का सेवन करना या सिगरेट पीना. इन सब चीजों से वे थोड़ी देर के लिए को तनाव मुक्त महसूस कर लेते हैं लेकिन इन्हीं कारणों की वजह से उनका शरीर और अस्वस्थ होने लगता है.

गलत आदतों का सहारा लेने से अच्छा अगर हम कुछ हेल्थी टिप्स अपनाते हैं तो इससे हमें ना सिर्फ टेंशन फ्री होने का एहसास होगा बल्कि साथ ही हमारी सेहत भी स्वस्थ रहेगी. तो आज हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे हेल्थ टिप्स जिसे आप जरूर अपनी डेली रूटीन में ट्राय कर सकते हैं.

1. देर से उठने की आदत बदलनी होगी. एक सर्वे के हिसाब से जो व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है वे काफी स्वस्थ और फिट रहता है उस व्यक्ति की तुलना से जो देरी से उठते हैं.

2. अपने खानपान का ख्याल रखें. ज्यादा मिर्च मसालों वाली चीजें ना खाएं और अपने खाने में तेल का ध्यान जरूर रखें. हमेशा वे चीजें खाएं जो कि अच्छी क्वालिटी के तेल में बनी हों.

3. अपना खाना हमेशा समय पर खाएं. सुबह का नाश्ता अच्छे से करें और अगर हो सके तो रात का डिन्नर 8 बजे से पहले कर लें ताकी खाने को डाइजेस्ट होने के लिए समय मिल सके. रात को खाना खाते ही तुरंत ना लेटें.

4. फिट रहने के लिए शारीरिक एक्सरसाइज बेहद जरूरी है. मोटापा पुरुषों की यौन क्षमता पर असर डालता है जो कि काफी खराब बात है. अगर योगा करने या जिम जाने का समय नहीं मिल पाता तो जितना हो सके व्यक्ति को पैदल चलना चाहिए और लिफ्ट का प्रयोग ना कर सीढ़ियों का इस्तमान करना चाहिए.

5. शराब या सिगरेट/बीड़ी का सेवन बिल्कुल ना करें और अगर करते हैं तो अपनी इस आदत तो जल्द से जल्द छोड़ने की कोशिश करें.

6. लैपटौप को जांघों पर रखकर काम ना करें. इससे पौरुष क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इससे आप नपुंसक भी बन सकते हैं.

7. जितना हो सके उतना समय अपनी फैमिली और बच्चों के साथ बिताएं और कामकाज की भागदौड भरी जिंदगी से थोड़ा समय निकाल कर वैकेशंस पर जाएं.

इन तरीकों को अपनी डेली-रूटीन की हिस्सा जरूर बनाएं और एक हेल्दी और फिट लाइफस्टाइल जिएं.

सांस की तकलीफ को ना करें अनदेखा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

सिगरेट पीने से ना सिर्फ आपके लंक्स खराब होते है बल्की इसके चलते आपको कई घातक बीमारियों से भी दो चार होना पड़ता है. सिगरेट पीने से सबसे ज्यादा देखी जाने वाली बीमारी है क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज.

1. क्या है क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज

क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) एक क्रौनिक इंफ्लेमेटरी लंग डिजीज है, जो फेफड़ों से हवा के बहाव को बाधित करती है. लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, खांसी, बलगम (थूक) का उत्पादन और घरघराहट शामिल हैं. यह लंबे समय तक एक्सपोजर गैसों या सूक्ष्म कणों के कारण होता है, जो कि ज्यादातर सिगरेट के धुएं से होता है. सीओपीडी वाले लोगों में निमोनिया, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और कई अन्य स्थितियों के विकास का खतरा होता है. एम्फिसीम (वातस्फीति) और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस दो प्रकार के क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज हैं और दोनों ही आमतौर पर धूम्रपान के कारण होते हैं. धुएं में विषाक्त पदार्थों के कारण, फेफड़े के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और सांस की हवा से औक्सीजन को रक्त प्रवाह में स्थानांतरित करने की अपनी क्षमता खो देते हैं।

2. क्या है सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी एक ऐसी घातक बीमारी है जिसका शुरुआती समय में पता ही नहीं चलता. इसके लक्षण अक्सर तब तक प्रकट नहीं होते हैं जब तक कि पूरी तरह से फेफड़ों खराब ना हो जाएं. हालांकि वे आमतौर पर समय के साथ खराब हो जाते हैं, खासकर अगर धूम्रपान करना आप जारी रखते है तो. क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के के मुख्‍य लक्षण में रोजाना की खांसी और बलगम का उत्पादन शामिल है यह लगातार दो साल तक या कम से कम तीन महीने तक होता है.

3. कैसे पहचाने सीओपीडी

  1. सांस की तकलीफ, खासकर शारीरिक गतिविधियों के दौरान
  2. घरघराहट
  3. सीने में जकड़न
  4. आपके फेफड़ों में अतिरिक्त बलगम
  5. होंठ या नाखूनों का नीलापन (सायनोसिस)
  6. बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
  7. शक्ति की कमी
  8. वजन में कमी (बाद के चरणों में)
  9. टखनों, पैरों या पैरों में सूजन

4. सीओपीडी के कारण

विकसित देशों में सीओपीडी का मुख्य कारण तंबाकू धूम्रपान है. विकासशील देशों में, सीओपीडी अक्सर खराब हवादार घरों में खाना पकाने और हीटिंग के लिए जलने वाले ईंधन से धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में होता है.

केवल 20 से 30 प्रतिशत लोग जो लंबे समय से धूम्रपान कर रहे हैं उनमें स्‍पष्‍ट रूप से सीओपीडी विकसित हो सकता है. हालांकि लंबे धूम्रपान इतिहास वाले लोगों में धूम्रपान से फेफड़ों के कार्यों में बाधा पैदा करते है.

5. किन लोगों को हो सकता है सीओपीडी रोग 

  1. धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहने वालों को ये समस्‍या हो सकती है।
  2. जो लोग अस्‍थमा से पीडि़त हैं और स्‍मोक करते हैं।
  3. ऐसे लोग जो केमिकल और धुएं युक्‍त फैक्ट्रियों के आस-पास रहते हैं।

अंडकोष के दर्द को अनदेखा करना हो सकता है खतरनाक, जानें कैसे

अंडकोष के कैंसर पर नई रिसर्च करने वाले अमेरिका के आर्मी मैडिकल सैंटर के यूरोलौजी औंकोलौजिस्ट विभाग के प्रमुख डा. जूड डब्लू मोले का कहना है कि पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. कैंसर विशेषज्ञ डा. एम के राणा का कहना है कि अधिकतर भारतीय पुरुष अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं.

हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोष में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोष का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

अंडकोष कैंसर के कारण

-किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म : यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोष शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

  • आनुवंशिकता : यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.
  • बचपन की चोट : बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.
  • हर्निया : हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोष में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.
  • हाइड्रोसील : हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोष प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.
  • इंपोटैंसी : नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.
  • अंडकोष का इलाज : अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोष का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.

तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.

किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोष का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.

सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.

हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.

अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.

अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

दुबलेपन को कहें बाय-बाय, वज़न बढ़ाएं ऐसे 

मौजूदा भागदौड़भरी लाइफस्टाइल में खुद को फिट बनाए रखना हर लिहाज से जरूरी है. दुबलेपन को दूर करने और कमजोर शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए लोग दवाओं से ले कर तरहतरह के हैल्थ सप्लीमैंट्स लेते हैं. लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों का शरीर कमजोर और दुबलापतला ही रहता है.

दुबलेपतले शरीर के कारण किशोरों, युवाओं और अधेड़ पुरुषों को क्रमशः स्कूल, कालेज और औफिस या बिज़नैस प्रतिष्ठानों तक में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है. वजन बढ़ाने के लिए पुरुषजाति न जाने क्याक्या करती है, खाती है, लेकिन वजन नहीं बढ़ता और शरीर जस का तस ही बना रहता है.

1. क्यों नहीं बनती सेहत :

वजन न बढ़ने और तंदुरुस्त न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं.  इन कारणों में कुछ ऐसी गलत आदतें भी शामिल होती हैं, लोग जिन के शिकार हो जाते हैं. ऐसी आदतें न केवल शरीर को बाहरी तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि शरीर को भीतर से भी नुकसान पहुंचाती हैं.

आप उन में से हैं जो खाते तो बहुत हैं लेकिन उन के शरीर में लगता नहीं है, तो वो गलतियां न करें जिन का ज़िक्र यहां किया जा रहा है. आप अगर चाहते हैं कि आप तंदुरुस्त रहें और आप की पर्सनैलिटी दूसरों की तरह चमके तो इन गलत आदतों को बायबाय कर दें.

2. भूख लगने पर खाना न खाने की आदत :

व्यस्त जीवनशैली में अधिकतर लोग अपने शैड्यूल के चक्कर में  सही समय पर खाना नहीं खाते  हैं. कोई ऐसा अगर नियमितरूप से करता  है तो उस की सेहत पर बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है. दरअसल, ऐसा करने से भूख मर सी जाती है, भूख लगना बंद हो जाती है. सही समय पर खाना नहीं खाने से शरीर पर विपरीत असर पड़ता है. किसी भी इंसान की यह गलत आदत उस के शरीर को तंदुरुस्त नहीं होने देती.

3. रोज एक सी ऐक्सरसाइज करने की आदत :

फिट रहने और शरीर के वजन को बढ़ाने के लिए रोजाना ऐक्सरसाइज करना अनिवार्य है. सुबह की सैर पर जाना, किसी मैदान या पार्क में थोड़ीबहुत कसरत या उछलकूद करने से सेहत बेहतर होती है. इस के लिए अधिकतर पुरुषों ने जिम को एक आसान विकल्प समझा हुआ है.

लोग जिस्म बनाने के चक्कर में दवाएं और हैल्थ सप्लीमैंट्स ले लेते हैं, जो उन्हें भले ही  मसल्स बनाने में जरूर मदद करते हैं लेकिन इस के साइड इफैक्ट बाद में सामने आते हैं. दूसरों को बौडी बनाता देख नए लड़के भी वही करने लग जाते हैं और रोजाना एक ही ऐक्सरसाइज करने लगते हैं. तंदुरुस्त न होने के पीछे एक वजह यह भी है. बहुत से लोग जिम जा कर रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करते हैं. रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करने से शरीर के अंग कमजोर होने लग जाते हैं और फिर बौडी नहीं बन पाती.

दरअसल, अगर इंग्लिश ऐक्सरसाइज कर रहे हैं तो उसे ट्रेनर के निरीक्षण में करें क्योंकि उस का एक साइंस होता है. जिम ट्रेनर इंसान के जिस्म के मुताबिक ऐक्सरसाइज करने का चार्ट बना देते हैं, जिस में हफ्ते के 6 दिनों का ब्योरा होता है कि किस दिन कौनकौन सी ऐक्सरसाइज करनी हैं. जिम ट्रेनर के निरीक्षण में ऐक्सरसाइज करने से जिस्म फिट रहने के साथ वजन बढ़ कर आदर्श लैवल पर बना रहता है.

4. पानी कम पीने की आदत :

24 घंटे के रातदिन के दौरान इंसान को भरपूर पानी पीना चाहिए. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शरीर को भीतर व बाहर दोनों तरफ से फायदा मिलता है. यह शरीर के वजन को बढ़ाने व जिस्म की स्किन और बालों को पोषण प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है.

देशविदेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान को अपनेआप को हाइड्रेट रखने और शरीर से टौक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए दिनभर में 8 से 10 गिलास पानी या कोई तरल पदार्थ पीना चाहिए. इंसान चाहे तो नारियल पानी और ताजे फलों का जूस भी पी सकता है. सो, अगर कोई कम पानी पीता है तो उसे यह आदत छोड़नी होगी.

5. सोने में कंजूसी की आदत :

ऊर्जावान और स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि इंसान नियमित रूप से पूरी नींद लें. नींद न पूरी होने से सिर भारी रहने के साथ शरीर का ब्लडप्रैशर यानी बीपी बढ़ सकता है. नींद न पूरी होने की वजह से थकान के साथसाथ चिड़चिड़ाहट भी महसूस होती है और बातबात पर गुस्सा आता है. मैडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 7 घंटे की नींद लेनी जरूरी है. पूरी नींद लेने से इंसान स्वस्थ महसूस करने के साथ ऊर्जावान बना रहता है. यह इंसान की फिटनैस और आदर्श वजन के लिए भी बेहद ज़रूरी है. ऐसे में जो लोग रात में सोने में कंजूसी करते हैं वे अपनी इस आदत को छोड़ दें.

यानी, सेहतमंद जीवन के लिए जरूरी होती हैं अच्छी आदतें. ये इंसान को खुश रखने के साथ ऊर्जा से भरपूर भी रखती हैं. यही नहीं, ये इंसान को बीमारियों से काफी हद तक दूर भी रखती हैं. तो, गलत आदतों को त्याग कर कोई भी तंदुरुस्त होने के साथ आइडियल वज़न हासिल कर सकता है.

घबराहट में क्यों आता है पसीना

क्याआप के साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप कौंफ्रैंस रूम में खड़े हो कर प्रेजैंटेशन दे रहे हैं, सामने बौस, सीनियर्स और कोवर्कर्स बैठे हैं. मीटिंग काफी महत्त्वपूर्ण है और आप के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. हथेलियां पसीने से भीग रही हैं?

अपने हाथों को आप किसी तरह पोंछने का प्रयास कर रहे होते हैं और घबराहट में आप के हाथों से नोट्स गिरतेगिरते बचते हैं. ऐसी परिस्थिति में न सिर्फ आप का आत्मविश्वास घटता है बल्कि आप के व्यक्तित्त्व को ले कर दूसरों पर नकारात्मक असर पड़ता है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो अकसर हमारे साथ होती है. यह अत्यधिक तनाव अथवा तनावपूर्ण परिस्थितियों की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है.

पहली मुलाकात, सामाजिक उत्तरदायित्व अथवा किसी निश्चित कार्य को न कर पाने के भय के दौरान भी कुछ इसी तरह की स्थिति महसूस होती है. कई दफा तीखे मसालेदार भोजन, जंक फूड्स, शराब का सेवन, धूम्रपान या कैफीन के अधिक प्रयोग से भी ऐसा हो सकता है.

पसीना शरीर के कुछ खास हिस्सों में अधिक आता है. जैसे हमारी हथेलियां, माथा, पैर के तलवे, बगल की जगहों आदि में, क्योंकि इन हिस्सों में स्वेटग्लैंड्स अधिक मात्रा में होते हैं.

पसीना निकलता है ताकि हमारे शरीर का तापमान घट जाए. यही वजह है कि जब आप जौगिंग पर जाते हैं, व्यायाम करते हैं, मेहनत का काम करते हैं या फिर गरमी अधिक हो रही होती है तो आप को पसीना आने लगता है. तनावपूर्ण परिस्थिति में भी हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पसीना आता है.

  1. सरोज सुपर स्पैश्यल्टी हौस्पिटल के

डा. संदीप गोविल कहते हैं कि जब आप नर्वस होते हैं तो आप के स्ट्रैस हारमोन ऐक्टिवेट हो जाते हैं. इस से आप के शरीर का तापमान और हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं. मस्तिष्क में मौजूद हाइपोथेलेमस जो पसीने को नियंत्रित करता है, स्वेट ग्लैंड्स को संदेश भेजता है कि शरीर को ठंडा करने के लिए थोड़ा पसीना निकालना जरूरी है. सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम इमोशनल सिग्नल्स को पसीने में बदल देता है. आप इस प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं कर सकते.

2. कैसे बचें इन परिस्थितियों से

परेशान न हों और न ही घबराएं. इस से आप की परेशानी और बढ़ जाएगी. घबराहट में सांसें तेजतेज चलने लगती हैं. रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है, जिस से और अधिक पसीना निकलने लगता है.

3. रिलैक्सेशन और मैडिटेशन

4.अगर आप के दिल की धड़कनें तेज हो गईं

हों तो थोड़ा रिलैक्स होने का प्रयास करें. अपनी ब्रीदिंग पर फोकस करें. गहरी सांसें लें. कुछ देर तक (5-6 सेकंड) रोक कर रखें और फिर छोड़ दें. इस से आप का मन शांत होगा और स्ट्रैस घट जाएगा.

5.नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें

जो लोग नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करते हैं, उन्हें तनाव कम होता है. आत्मविश्वास बढ़ता है. आप जितने अधिक आत्मविश्वासी होंगे तनावपूर्ण स्थितियों को उतने बेहतर तरीके से हैंडल कर पाएंगे.

6. शरीर में जल का स्तर बनाए रखें

अपने शरीर का तापमान कम रखने के लिए पानी अधिक पीएं ताकि अधिक ऊष्मा को आप का शरीर त्वचा से पसीने के रूप में बाहर निकाल दे.

7. ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल करें

ऐंटीपर्सपिरैंट में पसीने को ब्लौक करने की क्षमता होती है. अगर आप को नर्वस, स्ट्रैस या ऐंग्जाइटी स्वैट की समस्या है, हथेलियों में पसीना ज्यादा आता है तो ऐंटीपर्सपिरैंट लगाएं.

8. अपने पास थोड़ा बेकिंग

पाउडर, कौर्नस्टार्च आदि रखें और किसी तनावपूर्ण स्थिति का सामना करने से पहले इसे हथेलियों पर अप्लाई करें.

कटहल के बीज क्यों है आपके लिए खतरनाक? जानें यहां

कटहल आमतौर सब्जी और फल के रुप में प्रयोग में लाया जाता है जो खाने में तो काफी स्वादिष्ट तो होती ही है और ये काफी सेहत के लिए फायदेमंद भी होती है. भारत के कुछ हिस्सों में इसका अचार भी काफी पसंद किया ज्यादा है. इसके अलावा लोग कटहल के बीजों को भी खूब चाव से खाते हैं. हालांकि कटहल के बीजों में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं, फिर भी कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि कई बार कटहल के बीज जहरीले हो सकते हैं और व्यक्ति की सेहत बिगाड़ सकते हैं या जान भी ले सकते हैं. तो चलिएं जानते है कटहल के बीज आपकी सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसान दायक.

पोषक तत्व से भरपूर है कटहल

कटहल के बीजों में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं. इन बीजों में स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में होते हैं. इसके अलावा 28 ग्राम कटहल के बीजों में 53 कैलोरीज, 11 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 2 ग्राम प्रोटीन, 0.5 ग्राम फाइबर होते हैं. कटहल के बीजों में विटामिन बी, मैग्नीशियम, फौस्फोरस आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

कटहल के बीज किन बीमारियां के लिए है फायदेमंद

  1. डायरिया के मरीजों के लिए कटहल के बीज फायदेमंद हो सकते हैं क्योंकि इनमें ऐंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं.
  2. कटहल के बीजों में कुछ खास एंटीऔक्सीडेंट्स होते हैं, जो आपको कैंसर के खतरे भी बचाते हैं. इन एंटीऔक्सीडेंट्स में फ्लैवोनौइड्स, सैपोनिन्स और फेनौलिक्स हैं.
  3. कटहल के बीज बैड कोलेस्ट्रौल घटाने में भी मददगार होते हैं.

कटहल के बीजों के जहरीले हो सकते है

अगर आप कुछ खास दवाएं खाते हैं, तो कहटल के बीजों के कारण आपके शरीर से अधिक मात्रा में खून निकल सकता है. ये दवाएं जैसे- एस्पिरिन, आईबूप्रोफेन, नैपरोक्सेन, प्लेटलेट्स घटाने वाली दवाएं, खून पतला करने वाली दवाएं है.

हालांकि अगर आप कटहल के बीजों को उबाल लेते हैं या आग पर भून लेते हैं, तो ये एंटीन्यूट्रिएंट्स खत्म हो जाते हैं और फिर आपको कटहल के बीजों को खाने से कोई नुकसान नहीं होगा.

कटहल के बीजों को कैसे खाएं?

कहटल के बीज तमाम पौष्टिक गुणों से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. मगर इन्हें खाते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. कभी भी कटहल के बीजों को कच्चा न खाएं. खाने से पहले इन्हें 20-30 मिनट तक पानी में उबाल लें, तभी खाएं. अगर भूनकर खा रहे हैं, तो इन बीजों को 205 डिग्री सेल्सियस पर कम से कम 20 मिनट तक भूनें.

अंकुरित अनाज क्यों है सेहत के लिए फायदेमंद, जानें

कहते है सुबह का नाश्ता दिन के खाने से भी ज्यादा जरुरी है क्योंकी सोते हुए उन 8 घंटो में हमारे शरीर में कुछ भी नही जाता. इसलिए सुबह का नाश्ता ऐसा होना चाहिए तो पेट के साथ साथ शरीर के लिए भी स्वस्थ हो. सुबह सुबह तेल मसालों वालों खाना अपकी सेहत के लिए कतरनाक हो सकता है इसलिए अगर आप अंकुरित अनाज सुबह नाश्ते में खाऐंगे तो अच्छा होगा.

अंकुरित अनाज को स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. अंकुरित अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होता है इसीलिए हेल्दी रहने के लिए अंकुरित अनाज का सेवन बहुत जरूरी है अनाज अंकुरित होने के बाद उसमें विटामिन डी सहित मिलिरल और विटामिन का स्तर बढ़ जाता है. इसके अलावा प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है. अंकुरित होने की प्रक्रिया के दौरान, फलियों में कुछ संग्रहित स्टार्च का उपयोग छोटे पत्तों और जड़ों के निर्माण के लिए और विटामिन सी के निर्माण में किया जाता है.

अगर आप बहुत समय से बढ़ते वजन से परेशान है तो जल्द से जल्द अंकुरित अनाज को अपने खाने में शामिल जरुर करें. वजन और पेट संबंधी किसी भी समस्या के लिए अंकुरित काफी असरकारक होते है. अंकुरित अनाज एंटीऔक्सीडेंट और विटामिन ए,बी,सी, ई से भरपूर होता है. इतना ही नहीं इसमें फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, जिंक और मैग्नीशियम जैसी पौष्टिक तत्व भी होते हैं.

नाश्ते है किन किन अनाज को करें अंकुरित

आमतौर पर अंकुरित अनाज नाश्ते के रूप में लिया जाना चाहिए.आपको नाश्ता हैवी करना चाहिए.ऐसे में आप अंकुरित अनाज से नाश्ता करेंगे तो आपको बहुत फायदा होगा. इतना ही नहीं आप यदि सोयाबीन, काले चने, मूंग दाल और  मोंठ को अंकुरित करके खाएंगे तो इन खाघ पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी हो जाएगी.

अंकुरित करें डाइजेशन को दूरुस्त

अंकुरित अनाज खाने से आपकी पेट संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं. फाइबर युक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आपका पाचनतंत्र मजबूत बनता है.

मौनसून में फौलो करें ये डाइटचार्ट

बारिश का मौसम आते ही खाने के स्वाद मे भी बदलाव जरुरी होता होतो है. गरमा गरम खाने का मन सभी को करता है पर खाने में थोड़ी सी लापरवाही आपकी हेल्थ के लिए काफी परेशानी पैदा कर सकती है. बारिश में बाजार में मिलने वाली चटपटी चीजें आपको ज्यादा आकर्षित करती हैं. मौनसून में खानपान में थोड़ी सी लापरवाही आपको फूड पौयजनिंग, पेट के इंफेक्शन और कालरा, डायरिया जैसी बीमारियां दिला सकती है इसलिए आज हम लेकर आए है सेहतमंद और हेल्दी फूड टीप्स जिसे आपको जरुर ट्राय करना चाहिए.

बारिश के मौसम की स्पेशल डाईट

  • इस मौसम में दाल, सब्जि़यां व कम फैट वाला खाना खाएं.
  • बारिश में शरीर में वायु की वृद्धि होती है, इसलिए हल्के व शीघ्र पचने वाले खाने को ही खाएं
  • बरसात के मौसम में वातावरण में काफी नमी रहती है. जिसके कारण प्यास कम लगती है। लेकिन फिर भी पानी जरूर पीयें.
  • बरसात में नींबू की शिकंजी पीयें.
  • फलों को साबुत खाने के बजाय सलाद के रूप में लें. क्योंकि इस मौसम में फलों में कीड़ा होने की संभावना काफी अधिक रहती है और अगर आप उन्हें सलाद के रूप में काटकर खाएंगे तो आप यह देख सकेंगे कि कहीं फल भीतर से खराब तो नहीं है.
  • ब्रेकफास्ट में ब्लैक टी के साथ पोहा, उपमा, इडली, सूखे टोस्ट या परांठे ले सकते है.
  • लंच में तले-भुने खाने की बजाय दाल व सब्जी के साथ सलाद और रोटी लें.
  • डिनर में वेजीटेबल, चपाती और सब्जी लें.
  • इस मौसम में गरमागरम सूप काफी फायदेमंद रहता है.
  • दूध में रोजाना रात को हल्दी मिलाकर पीने से पेट और त्वचा दोनों स्वस्थ्य रहेंगे.

बारिश के मौसम मे इसे खाने से बचे

  • बरसात में गर्मागरम पकौड़े और समोसा खाने को मन जरूर ललचाता है. लेकिन बात अगर सेहत की हो तो इनसे दूर रहने में ही आपकी भलाई है.
  • गरिष्ठ भोजन, उड़द, अरहर, चौला आदि दालें कम खाएं.
  • दही से बनी चीजों का सेवन इस मौसम में कम करें.
  • इस मौसम में फलों के जूस का सेवन सोच-समझकर करें. बारिश में फल पानी में भीगते रहते हैं इससे फलों में रस की तुलना में पानी ज्यादा भर जाता है.
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