मरहम: गुंजन ने अभिनव से क्यों बदला लिया?

गुंजन जल्दीजल्दी काम निबटा रही थी. दाल और सब्जी बना चुकी थी. बस, फुलके बनाने बाकी थे. तभी अभिनव किचन में दाखिल हुआ और गुंजन के करीब रखे गिलास को उठाने लगा. उस ने जानबूझ कर गुंजन को हौले से स्पर्श करते हुए गिलास उठाया और पानी ले कर बाहर निकल गया.

गुंजन की धड़कनें बढ़ गईं. एक नशा सा उस के बदन को महकाने लगा. उस ने चाहत भरी नजरों से अभिनव की तरफ देखा जो उसे ही निहार रहा था. गुंजन की धड़कनें फिर से ठहर गईं. उसे लगा, जैसे पूरे जहान का प्यार लिए अभिनव ने उसे आगोश में ले लिया हो और वह दुनिया को भूल कर अभिनव में खो गई हो.

तभी अम्माजी अखबार ढूंढ़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और गुंजन का सपना टूट गया. नजरें चुराती हुई गुंजन फिर से काम में लग गई.

गुंजन अभिनव के यहां खाना बनाने का काम करती है. अम्माजी का बड़ा बेटा अनुज और बहू सारिका जौब पर जाते हैं. छोटा बेटा अभिनव भी एक आईटी कंपनी में काम करता है. उस की अभी शादी नहीं हुई है और वह गुंजन की तरफ आकृष्ट है.

22 साल की गुंजन बेहद खूबसूरत है और वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. मातापिता ने उसे बहुत लाड़प्यार से पाला है. इंटर तक पढ़ाया भी है. मगर घर की माली हालत सही नहीं होने की वजह से उसे दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम करना पड़ा.

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गुंजन जानती है कि अभिनव ऊंची जाति का पढ़ालिखा लड़का है और अभिनव के साथ उस का कोई मेल नहीं हो सकता. मगर कहते हैं न कि प्यार ऐसा नशा है जो अच्छेअच्छों की बुद्धि पर ताला लगा देता है. प्यार के एहसास में डूबा व्यक्ति सहीगलत, ऊंचनीच, अच्छाबुरा कुछ भी नहीं समझता. उसे तो बस किसी एक शख्स का खयाल ही हरपल रहने लगता है और यही हो रहा था गुंजन के साथ भी. उसे सोतेजागते हर समय अभिनव ही नजर आने लगा था.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. अभिनव की हिम्मत बढ़ती गई और गुंजन भी उस के आगे कमजोर पड़ती गई. एक दिन मौका देख कर अभिनव ने उसे बांहों में भर लिया. गुंजन ने खुद को छुड़ाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘अभिनवजी, अम्माजी ने देख लिया तो क्या सोचेंगी?’’

‘‘अम्मा सो रही हैं, गुंजन. तुम उन की चिंता मत करो. बहुत मुश्किल से आज हमें ये पल मिले हैं. इन्हें बरबाद न करो.’’

‘‘मगर अभिनवजी, यह सही नहीं है. आप का और मेरा कोई मेल नहीं,’’ गुंजन अब भी सहज नहीं थी.

‘‘ऐसी बात नहीं है गुंजन. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार में कोई छोटाबड़ा नहीं होता. बस, मुझे इन जुल्फों में कैद हो जाने दो. गुलाब की पंखुड़ी जैसे इन लबों को एक दफा छू लेने दो.’’

अभिनव किसी भी तरह गुंजन को पाना चाहता था. गुंजन अंदर से डरी हुई थी मगर अभिनव का प्यार उसे अपनी तरफ खींच रहा था. आखिर गुंजन ने भी हथियार डाल दिए. वह एक प्रेयसी की भांति अभिनव के सीने से लग गई. दोनों एकदूसरे के आलिंगन में बंधे प्यार की गहराई में डूबते रहे. जब होश आया तो गुंजन की आंखें छलछला आईं. वह बोली, ‘‘आप मेरा साथ तो दोगे न? जमाने की भीड़ में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल हो क्या? प्यार करता हूं. छोड़ कैसे दूंगा?’’ कह कर उस ने फिर से गुंजन को चूम लिया. गुंजन फिर से उस के सीने में दुबक गई. वक्त फिर से ठहर गया.

अब तो ऐसा अकसर होने लगा. अभिनव प्यार का दावा कर के गुंजन को करीब ले आता.

दोनों ने ही प्यार के रास्ते पर बढ़ते हुए मर्यादाओं की सीमारेखाएं तोड़ दी थीं. गुंजन प्यार के सुहाने सपनों के साथ सुंदर घरसंसार के सपने भी देखने लगी थी.

मगर एक दिन वह देख कर भौचक्की रह गई कि अभिनव के रिश्ते की बात करने के लिए एक परिवार आया हुआ है. मांबाप के साथ एक आधुनिक, आकर्षक और स्टाइलिश लड़की बैठी हुई थी.

अम्माजी ने गुंजन से कुछ खास बनाने की गुजारिश की तो गुंजन ने सीधा पूछ लिया, ‘‘ये कौन लोग हैं अम्माजी?’’

‘‘ये अपने अभि को देखने आए हैं. इस लड़की से अभि की शादी की बात चल रही है. सुंदर है न लड़की?’’ अम्माजी ने पूछा तो गुंजन ने हां में सिर हिला दिया.

उस के दिलोदिमाग में तो एक भूचाल सा आ गया था. उस दिन घर जा कर भी गुंजन की आंखों के आगे उसी लड़की का चेहरा नाचता रहा. आंखों से नींद कोसों दूर थी.

अगले दिन जब वह अभिनव के घर खाना बनाने गई तो सब से पहले मौका देख कर उस ने अभिनव से बात की, ‘‘यह सब क्या है अभिनव? आप की शादी की बात चल रही है? आप ने अपने घर वालों को हमारे प्यार की बात क्यों नहीं बताई?’’

‘‘नहीं गुंजन, हमारे प्यार की बात मैं उन्हें नहीं बता सकता.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि हमारा प्यार समाज स्वीकार नहीं करेगा. मेरे मांबाप कभी नहीं मानेंगे कि मैं एक नीची जाति की लड़की से शादी करूं,’’ अभिनव ने बेशर्मी से कहा.

‘‘तो फिर प्यार क्यों किया था आप ने? शादी नहीं करनी थी तो मुझे सपने क्यों दिखाए थे?’’ तड़प कर गुंजन बोली.

‘‘देखो गुंजन, समझने का प्रयास करो. प्यार हम दोनों ने किया है. प्यार के लिए केवल हम दोनों की रजामंदी चाहिए थी. मगर शादी एक सामाजिक रिश्ता है. शादी के लिए समाज की अनुमति भी चाहिए. शादी तो मुझे घर वालों के कहेनुसार ही करनी होगी.’’

‘‘यानी प्यार नहीं, आप ने प्यार का नाटक खेला है मेरे साथ. मैं नहीं केवल मेरा शरीर चाहिए था. क्यों कहा था मुझे कि कभी अकेला नहीं छोड़ोगे?’’

‘‘मैं तुम्हें अकेला कहां छोड़ रहा हूं गुंजन? मैं तो अब भी तुम ही से प्यार करता हूं मेरी जान. यकीन मानो, हमारा यह प्यार हमेशा बना रहेगा. शादी भले ही उस से कर लूं मगर हम दोनों पहले की तरह ही मिलते रहेंगे. हमारा रिश्ता वैसा ही चलता रहेगा. मैं हमेशा तुम्हारा बना रहूंगा,’’ गुंजन को कस कर पकड़ते हुए अभिनव ने कहा.

गुंजन को लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने उसे जकड़ रखा हो. वह खुद को अभिनव

के बंधन से आजाद कर काम में लग गई. आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और दिल तड़प रहा था.

घर आ कर वह सारी रात सोचती रही. अभिनव की बेवफाई और अपनी मजबूरी उसे रहरह कर कचोट रही थी. अभिनव के लिए भले ही यह प्यार तन की भूख थी मगर उस ने तो हृदय से चाहा था उसे. तभी तो अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था. इतनी आसानी से वह अभिनव को माफ नहीं कर सकती थी. उस के किए की सजा तो देनी ही होगी. वह पूरी रात यही सोचती रही कि अभिनव को सबक कैसे सिखाया जाए.

आखिर उसे समझ आ गया कि वह अभिनव से बदला कैसे ले सकती है. अगले दिन से ही उस ने बदले की पटकथा लिखनी शुरू कर दी.

उस दिन वह ज्यादा ही बनसंवर कर अभि के घर खाना बनाने पहुंची. अभि शाम

4 बजे की शिफ्ट में औफिस जाता था. अम्माजी हर दूसरे दिन 12 से 4 बजे तक के लिए घर से बाहर अपनी सखियों से मिलने जाती थीं. पिताजी के पैर में तकलीफ थी, इसलिए वे बिस्तर पर ही रहते थे.

12 बजे अम्माजी के जाने के बाद वह अभिनव के पास चली आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘अभिनव, आप की शादी की बात सुन कर मैं दुखी हो गई थी. मगर अब मैं ने खुद को संभाल लिया है. शादी से पहले के इन दिनों को मैं भरपूर एंजौय करना चाहती हूं. आप की बांहों में खो जाना चाहती हूं.’’

अभिनव की तो मनमांगी मुराद पूरी हो रही थी. उस ने झट गुंजन को करीब खींच लिया. दोनों एकदूसरे की आगोश में खोते चले गए. बैड पर अभि की बांहों में मचलती गुंजन ने सवाल किया, ‘‘कल आप सच कह रहे थे अभिनव, शादी के बाद भी आप मुझ से यह रिश्ता बनाए रखोगे न?’’

‘‘हां गुंजन, इस में तुम्हें शक क्यों है? शादी एक चीज होती है और प्यार दूसरी चीज. हम दोनों का प्यार और शरीर का यह मिलन हमेशा कायम रहेगा. शादी के बाद भी यह रिश्ता ऐसा ही चलता रहेगा,’’ कह कर अभिनव फिर से गुंजन को बेतहाशा चूमने लगा.

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शाम को गुंजन अपने घर लौट आई. उसे खुद से घिन आ रही थी. वह बाथरूम में गई और नहा कर बाहर निकली. फिर मोबाइल ले कर बैठ गई. आज के उन के शारीरिक मिलन का एकएक पल इस मोबाइल में कैद था. उस ने बड़ी होशियारी से मोबाइल का कैमरा औन कर के ऐसी जगह रखा था जहां से दोनों की सारी हरकतें कैद हो गई थीं.

काफी देर तक का लंबा अंतरंग वीडियो था. 10 दिन के अंदर उस ने ऐसे

3-4 वीडियो और शूट कर लिए. फिर वीडियोज एडिट कर के बड़ी चतुराई से उस ने अपने चेहरे को छिपा दिया.

कुछ दिनों में अभिनव की शादी हो गई. 8-10 दिनों के अंदर ही उस ने अभिनव की पत्नी से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर ले लिया. अगले दिन उस ने अम्माजी को कह दिया कि उस की मुंबई में जौब लग गई है और अब काम पर नहीं आ पाएगी. उस दिन वह अभिनव से मिली भी नहीं और घर चली आई.

अगले दिन सुबहसुबह उस ने अपने और अभिनव के 2 अंतरंग वीडियो अभिनव की पत्नी को व्हाट्सऐप कर दिए. 2 घंटे बाद उस ने 2 और वीडियो व्हाट्सऐप किए और चैन से घर के काम निबटाने लगी.

शाम 4 बजे के करीब अभिनव का फोन आया. गुंजन को इस का अंदाजा पहले से था. उस ने मुसकराते हुए फोन उठाया तो सामने से अभिनव का रोता हुआ स्वर सुनाई दिया, ‘‘गुंजन, तुम ने यह क्या किया मेरे साथ? मेरी शादीशुदा जिंदगी की अभी ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई थी और तुम ने ये वीडियोज भेज दिए. तुम्हें पता है, माया सुबह से ही मुझ से लड़ रही थी और अभीअभी सूटकेस ले कर हमेशा के लिए अपने घर चली गई. गुंजन, तुम ने यह क्या कर दिया मेरे साथ? अब मैं…’’

‘‘…अब तुम न घर के रहोगे न घाट के. गुडबाय मिस्टर अभिनव,’’ गुंजन ने कहा और फोन काट दिया.

उस ने आज अभिनव से बदला ले लिया था. खुद को मिले हर आंसुओं का बदला. आज उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के जख्मों पर किसी ने मरहम लगा दिया हो.

मनोहर कहानियां: मैनेजर निकली किडनैपिंग की मास्टरमाइंड

नसीम अंसारी कोचर

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग के रहने वाले विकास अग्रवाल के बैंक्वेट हाल के बिजनैस में रंगत आ गई थी. बीते साल अच्छी तरह से बीते दशहरादीपावली के बाद शादियों का मौसम आ चुका था. वह खुश थे कि 2021 के लौकडाउन की कई बंदिशें हटाई जा चुकी थीं. जिस से शादियों के लिए बैंक्वेट हाल की बुकिंग तेजी से होने लगी थी.

दिसंबर 2021 की बात है. विकास अग्रवाल 17-18 दिसंबर की शादी की बुकिंग के लिए तैयारियों में लगे थे. काम बहुत था. सब कुछ शादी करवाने वाली पार्टियों के और्डर और फरमाइशों के मुताबिक करना था. बैंड वाले, कैटरिंग वाले, डीजे वाले, फोेटोवीडियो शूट वाले, घोड़ी वाले से ले कर सजावट तक में किसी भी तरह की चूक नहीं रहने देना चाहते थे.

सजावट पर तो उन का विशेष ध्यान था. वे चाहते थे कि लाइटों के अलावा सजावट में ताजे फूलों को ज्यादा से ज्यादा लगाएं. इन सब के लिए अग्रवाल ने अलगअलग डिपार्टमेंट बना रखे थे. मैनेजर ऋचा सब्बरवाल को सभी डिपार्टमेंट को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साथ ही वह डेकोरेशन का काम भी देखती थी. डेकोरेशन में कोई कमी होने पर एक पार्टी ने पैसा काट लेने की बात कही थी. इसलिए अग्रवाल अपने साथ 18 साल के बेटे किंशुक का भी सहयोग लेने लगे थे. मार्केटिंग के लिए उसे भी अपने स्टाफ के साथ भेजते थे.

विकास अग्रवाल चाहते थे कि 12वीं में पढ़ने वाला उन का बेटा धीरेधीरे उन के बिजनैस के बारे में सीखसमझ ले. यही कारण था कि मार्केटिंग वगैरह के लिए उसे भी अपने स्टाफ के साथ भेजते थे.

विकास ने 17 दिसंबर 2021 की सुबहसुबह फूल खरीद लाने के लिए मैनेजर ऋचा और ड्राइवर जितेंद्र के साथ किंशुक को भी दिल्ली-यूपी बोर्डर से सटे गाजीपुर फूलमंडी भेज दिया था.

वे सुबह 6 बजे के करीब फूलमंडी पहुंच गए थे. गाजीपुर फूलमंडी पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आती है. उन्होंने मंडी जा कर अच्छेखासे फूल खरीद लिए थे. जितेंद्र, ऋचा और किंशुक अपनेअपने हाथों में फूलों का एकएक गट्ठर ले कर सड़क के किनारे पार्क गाड़ी के पास आ गए. ड्राइवर ने गाड़ी की डिक्की खोली और सभी ने उन में फूलों के गट्ठर रख दिए.

तब तक किंशुक गाड़ी की अगली सीट पर जा कर बैठने लगा. ऋचा मना करती हुई उस से बोली, ‘‘अरे वहां नहीं, पीछे की सीट पर बैठो न सेठ की तरह. तुम हमारे मालिक के बेटे हो, तो तुम भी तो सेठ हुए न.’’

और फिर ऋचा मुसकराने लगी. किंशुक भी आज्ञाकारी की तरह पीछे की सीट जा बैठा और ऋचा ड्राइवर सीट के बगल में बैठ गई. कुछ समय में जितेंद्र भी रजनीगंधा के फूलों का बंडल ले आया. उसे डिक्की में संभाल कर रख दिया और ड्राइवर की सीट पर बैठ गया.

तभी काले रंग की जैकेट, कैप और मास्क पहने हुए एक व्यक्ति किंशुक का गेट खोलते हुए घुस आया और उसे दूसरी तरफ धकेल दिया. उस ने फुरती से सामने बैठे ड्राइवर पर पिस्तौल तान दी. बोला, ‘‘चुपचाप मैं जैसे कहता हूं करो. जहां कहता हूं चलो.’’

तब तक जितेंद्र गाड़ी स्टार्ट कर चुका था. ऋचा अचानक हुई इस हलचल से पीछे देखने के लिए मुड़़ी. गाड़ी में जबरन आ घुसा व्यक्ति पिस्तौल की नोंक उस की तरफ घुमाते हुए बोला, ‘‘कोई आवाज नहीं. कोई फोन नहीं. तू चुपचाप बैठी रह और आगे देख, पीछे नहीं मुड़ना, वरना…’’

ऋचा डर कर आगे देखने लगी और जितेंद्र ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

‘‘अरे उधर नहीं, अशोक विहार चलो.’’ कहते हुए अज्ञात व्यक्ति ने पिस्तौल जितेंद्र की कनपटी पर तान दी. दूसरे हाथ से उस ने किंशुक के सिर को साथ लाए गमछे से लपेट लिया और अपनी गोद में नीचे झुका दिया. उसे भी डांटते हुए बोला, ‘‘चुपचाप से बैठा रह नहीं तो तुम्हें भी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘मुंह खोल दो सांस नहीं ले पा रहा हूं. मैं चुपचाप बैठूंगा. शोर नहीं मचाऊंगा.’’ किंशुक मिमियाता हुआ बोला.

‘‘चलो ठीक है गमछा हटा लेता हूं.’’ किंशुक के चेहरे से भले ही गमछा हटा दिया गया हो, लेकिन उस की गरदन में लिपटा रहा और उसे वह अज्ञात व्यक्ति मजबूती से पकड़े रहा.

यह सब जितेंद्र अपने सामने लगे शीशे में देख कर समझ गया कि किंशुक का किडनैप हो चुका है और वे सभी किडनैपर की गिरफ्त में हैं. पिस्तौल देख कर तीनों घबरा गए. फिर जितेंद्र ने वैसा ही किया, जैसा वह किडनैपर कहता गया. उस के इशारे पर दाएंबाएं गाड़ी को मोड़ता रहा. अशोक विहार के रास्ते पर किडनैपर ने किंशुक के मोबाइल फोन से उस के पिता विकास अग्रवाल को वाट्सऐप काल किया. उन से कहा कि उस ने उन के बेटे का किडनैप कर लिया है. एक करोड़ रुपए की फिरौती मिलने के बाद ही उसे छोड़ेगा.

सुबहसुबह एक करोड़ फिरौती की बात सुन कर विकास अग्रवाल के होश उड़ गए. वह फोन पर किडनैपर से मिन्नतें करने लगे, ‘‘मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. मैं कहां से दूं पैसे… प्लीज मेरे बेटे को कुछ मत करना…’’

किडनैपर ने बात पूरी होने से पहले ही फोन कट कर दिया और भुनभुनाने लगा, ‘‘हरामजादा, कहता है पैसे नहीं हैं. शादियों के 20-20 लाख की बुकिंग करता है, कहां गए पैसे? …चल रे, गाड़ी घुमा इसे गाजियाबाद ले चलते हैं. वहीं ठिकाने लगा देंगे.’’

‘‘ऐसा मत करना, मेरे मालिक बहुत अच्छे हैं. मुझे पता है उन्होंने बड़ी मुश्किल से काम शुरू किया है.’’ जितेंद्र बोला.

उस की बात खत्म होते ही किंशुक के मोबाइल पर विकास अग्रवाल की काल आ गई. किडनैपर काल में पापा लिखा देख कर समझ गया विकास का ही फोन है. उस ने तुरंत फोन काट दिया और किंशुक से बोला, ‘‘पापा को बोल वाट्सऐप से काल करें.’’

किंशुक ने वैसा ही किया, जैसा किडनैपर ने कहा.  कुछ सेकेंड में ही वाट्सऐप पर काल आ गई. किडनैपर ने झट अपने हाथ में फोन ले लिया. उधर से विकास के गिड़गिड़ाने की आवाज आने लगी, ‘‘देखो, मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. मेरे बेटे को कुछ मत करना. 50 लाख तक का इंतजाम कर सकता हूं मैं.’’

‘‘ज्यादा चालाकी मत दिखाओ. जल्दी करो, वरना मैं इसे ले कर गाजियाबाद जा रहा हूं. फिर इस का जो होगा समझ लेना.’’

‘‘नहींनहीं, मैं आधे घंटे में 50 लाख का इंतजाम कर लूंगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं, लेकिन आधा घंटा नहीं. केवल 20 मिनट. पैसे 2 अलगअलग थैलियों में आधाआधा रख कर अशोक विहार में पार्क के गेट से पहले कूड़ेदान के पास मिलना.’’ यह कहते हुए किडनैपर ने फोन कट कर दिया. जितेंद्र ने पीछे मुड़ना चाहा, तो किडनैपर फिर पिस्तौल उस की कनपटी पर सटाते हुए बोला, ‘‘तू अशोक विहार ही चल. तिकोना पार्क की बाउंड्री के पास.’’

फिरौती में दे दिए 50 लाख रुपए

उधर विकास अग्रवाल जल्दी ही रुपए ले कर बताई गई जगह पर पहुंच गए. कुछ मिनट में ही जितेंद्र की गाड़ी वहां पहुंच गई. किडनैपर ने विकास से पैसे की थैलियां ले लीं और किंशुक, जितेंद्र और ऋचा को गाड़ी से उतरने को कहा.

विकास को जितेंद्र की जगह ड्राइविंग सीट पर बैठने को कह कर खुद उस की बगल वाली सीट पर बैठ गया. पिस्तौल अब भी उस के हाथ में थी, जो विकास की ओर तनी थी. उस ने विकास को गाड़ी चलाने को कहा.

विकास उस के इशारे पर अपनी कार को आधे घंटे तक सड़कों पर दौड़ाते रहे. अंत में किडनैपर ने पश्चिम विहार की मुख्य सड़क पर रेडिसन होटल के पास गाड़ी रोकने को कहा. गाड़ी रुकते ही किडनैपर उतर गया. विकास को गाड़ी ले जाने के लिए कहा.

किडनैपर के उतरते ही विकास की जान में जान आई. किंशुक के मुक्त होने पर वह पहले ही निश्चिंत हो चुके थे. उन्होंने तुरंत शालीमार बाग की ओर गाड़ी घुमा ली और तेजी से अपने घर की ओर निकल गए.

विकास दिन में करीब 11 बजे घर आ गए. घर पर किंशुक को खाने की टेबल पर देख कर खुश हो गए. गले लगे और सिर्फ इतना पूछा, ‘‘तू ठीक है न? उस ने तुम्हारे साथ मारपीट तो नहीं की न?’’

किंशुक बोला, ‘‘नहीं पापा.’’

विकास अग्रवाल के दिमाग में खलबली मची हुई थी. वह पूरा वाकया जानना चाहते थे. बेटे के मुंह से सुनना चाहते थे.

किंशुक ने फूल खरीदने से ले कर किडनैपिंग और घर तक पहुंचने की सिलसिलेवार ढंग से कहानी सुना दी. उसी क्रम में उस ने बताया कि ऋचा रास्ते से ही औफिस चली गई और वह ड्राइवर के साथ घर आया.

विकास को यह बात बड़ी अजीब लगी कि इतनी बड़ी घटना हो जाने के बावजूद वह उन का घर लौटने तक इंतजार करना तो दूर घर तक आई भी नहीं. हालांकि इस पर ज्यादा सोचने के बजाय इस उधेड़बुन में लग गए कि इस घटना की सूचना पुलिस को दी जानी चाहिए या नहीं?

थोड़ी देर में वह तैयार हो कर वैंक्वेट हाल का काम देखने के लिए अपने औफिस आ गए. वहां ऋचा उस रोज की बुकिंग के लिए सजावट के काम में लगी हुई थी.

उन्होंने उसे और जितेंद्र को औफिस में बुलवाया. उन से भी किडनैपिंग की घटना के बारे में पूरा किस्सा सुना. साथ ही पूछा कि क्या वे लोग किडनैपर को पहचान लेंगे?

इस पर उन्होंने कहा कि वह अपना चेहरा पूरी तरह से ढंके हुए था और गाड़ी में आगे बैठे होने के कारण उस की कदकाठी या चालढाल पर ध्यान ही नहीं दिया.

औफिस के केबिन से ऋचा के जाने के बाद जितेंद्र से विकास ने पूछा, ‘‘जितेंद्र, ऋचा इतनी निराश और उखड़ी हुई क्यों लग रही है?’’

‘‘सर जी, वह इस घटना के बाद निराश इसलिए हो गई, क्योंकि उसे लगता है कि अब तो उस की सैलरी किसी भी कीमत पर नहीं बढ़ सकती. यह बात आप के आने से पहले बोल रही थी.’’ जितेंद्र बोला.

‘‘अब तू ही बता न मैं क्या करूं? अभी काम थोड़ा चलना शुरू हुआ ही था कि एक और आफत आ गई. मैं ने कैसेकैसे कर उतने रुपए जुटाए, मैं ही जानता हूं. सोचता हूं पुलिस में इस की शिकायत करवा दूं. शायद किडनैपर पकड़ा जाए और पैसे मिल जाएं. क्यों तुम क्या कहते हो?’’ विकास ने सलाह ली.

‘‘अपने लोगों से भी इस पर सलाह ले लीजिए. मैं क्या बोलूं? मैं ठहरा छोटा आदमी.’’ ऐसा बोल कर ड्राइवर चला गया.

उस के जाने के बाद विकास अग्रवाल ने एक कप कौफी मंगवाई. कौफी की घूंट लेते हुए इसी सोच में डूबे रहे पुलिस को शिकायत करें या नहीं. मन में 2 बातें आजा रही थीं. अगर करते हैं, तो थाने कोर्ट का चक्कर लग जाएगा. काफी काम पसरा हुआ है. अगर नहीं करते हैं, तो किडनैपर उसे डरा हुआ समझेगा और हो सकता है वह दोबारा ऐसा कर दे.

इसी उहापोह में उन्होंने अपने कुछ खास कारोबारी मित्रों और पत्नी तक से सलाह ली. अधिकतर का कहना था कि पुलिस में शिकायत की जानी चाहिए. कइयों ने दावे के साथ कहा कि ऐसा करने पर पुलिस अगर चाहे तो फिरौती का पैसा वापस भी मिल सकता है.

अंतत: विकास अग्रवाल ने अगले रोज 18 दिसंबर, 2021 को पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया थाने में अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को पूरी घटना का जिक्र करते हुए गुजारिश की कि अपहर्त्ता के खिलाफ काररवाई कर उन से वसूला गया पैसा वापस दिलाया जाए.

थानाप्रभारी ने जितेंद्र और किंशुक के अलावा ऋचा को भी गवाही के लिए बुलाया. लेकिन ऋचा नहीं आ पाई. उस ने जितेंद्र को सुबह के समय ही फोन पर कह दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह औफिस नहीं आ पाएगी.

थानाप्रभारी ने इस की सूचना डीसीपी प्रियंका कश्यप को दे दी. अपहरण और फिरौती दे कर छूटे किशोर की घटना पुलिस को काफी अलग तरह की लगी. इसलिए डीसीपी प्रियंका कश्यप ने किडनैपर की तलाश के लिए एसीपी (मधु विहार) नीरव पटेल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार, एसआई नरेंद्र, एएसआई खलील, हैडकांस्टेबल भूपेंद्र, संदीप, कांस्टेबल नितिन राठी, आदि शामिल किए गए.

पुलिस टीम ने खंगाली 200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज

विकास अग्रवाल ने जांच टीम को घटनाक्रम की पूरी कहानी बताई. उन्होंने बताया कि वह दिल्ली के शालीमार बाग में परिवार के साथ रहते हैं. उन के 2 बच्चे हैं. 18 वर्षीय बेटा किंशुक और उस से छोटी एक बेटी है.

घटना के दिन किंशुक बैंक्वेट हाल की सजावट के लिए गाजीपुर फूलमंडी से अपने ड्राइवर और बैंक्वेट हाल की मैनेजर कम डेकोरेटर के साथ फूल खरीदने गया था. वहीं उस का किडनैप हो गया था.

मधु विहार क्षेत्र के एसीपी नीरव पटेल ने जांच टीम को 2 मुख्य काम सौंपें. पहला, उन सड़कों और दुकानों आदि पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जाए, जिन पर एक दिन पहले विकास अग्रवाल की कार करीब 4 घंटे घूमती रही और दूसरा सभी के फोन काल रिकौर्ड्स की जांच की जाए.

इस सिलसिले में पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन 70 किलोमीटर की सड़कों पर जगहजगह लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच का काम आसान नहीं था, मगर उन की टीम इस काम को अंजाम देने में जुट गई थी. 4 दिनों तक रातदिन एक कर करीब 200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई.

उन में विकास की कार कई सड़कों पर दौड़ती दिखाई दी. फिर वह जगह सामने आई, जहां किडनैपर कार से नीचे उतरा था. कुछ मिनट बाद वह एक आटो में बैठ गया था.

पुलिस टीम उन सभी रास्तों के सीसीटीवी फुटेज खंगालती है जिन रास्तों पर किडनैपर को ले कर जाता वह आटो दिखाई दिया. बीच में एक किलोमीटर के रास्ते में आटो कहीं नजर नहीं आया.

ऐसा होने पर पुलिस को लगा कि उन की सारी मेहनत बेकार हो गई. फिर भी टीम ने हिम्मत नहीं हारी. एक बार फिर से सीसीटीवी देखे गए. कड़ी मेहनत के बाद अचानक एक रास्ते पर फिर वह आटो दिखाई दे गया. किडनैपर उसी आटो से एक पैट्रोल पंप के पास उतर गया था. टीम ने लगातार उस के मूवमेंट पर नजर बना रखी थी.

स्कूटी सवार से मिली सफलता

अगली फुटेज में एक स्कूटी सवार उस के पास आता दिखा. किडनैपर जल्दी से उस स्कूटी पर बैठ कर चल दिया. स्कूटी त्रिनगर के ओंकार नगर की ओर जाती नजर आई. सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस ने स्कूटी और लड़के की पहचान कर ली गई.

इस तरह मिले महत्त्वपूर्ण सुरागों के सहारे पुलिस पहले उस स्कूटी वाले लड़के तक पहुंची. उस के बाद पुलिस के हाथ वह किडनैपर भी लग गया, जिस ने किंशुक का अपहरण कर 50 लाख रुपए की फिरौती वसूली थी.

पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की. किडनैपर ने अपना नाम  गुरमीत सिंह बताया. उस की गिरफ्तारी के बाद किडनैपिंग की चौंका देने वाली कहानी सामने आई, जिस के बारे में विकास अग्रवाल कभी सोच भी नहीं सकते थे.

उन्हें आश्चर्य हुआ कि पूरी तरह से उन के खिलाफ रची गई साजिश के तहत अपहरण  किया गया था. उस का मास्टरमाइंड और कोई नहीं, बल्कि उन की मैनेजर 33 वर्षीया ऋचा सब्बरवाल थी.

घटना के अगले दिन से ही ऋचा तबीयत खराब होने का बहाना बना कर काम पर भी नहीं आ रही थी. पुलिस ने उस के मानसरोवर गार्डन निवास से उसे गिरफ्तार कर लिया. उस से गुरमीत का सामना करवाया गया. फिर पूछताछ की गई.

वह अपने पति निकुल सब्बरवाल और 2 बच्चों के साथ दिल्ली के मानसरोवर गार्डन क्षेत्र में रह रही है. उस ने बताया कि किडनैपिंग का काम उस ने मजबूरी में किया. लौकडाउन में उस के पति को कारोबार में भारी घाटा हुआ था. कारोबार ठप हो गया था. उस के लिए अपनी थोड़ी सी तनख्वाह से घर चलाना मुश्किल हो गया था.

2 बच्चों की पढ़ाई का बोझ भी उस पर था. उस के पति ने कई जगह से पैसा उधार ले रखा था. परिवार पर मोटा कर्ज भी चढ़ गया था. बैंक्वेट हाल में उसे 25 हजार रुपए महीने मिलते थे. इस से घर का खर्च ही पूरा नहीं हो पा रहा था. कर्ज की भरपाई करना तो बहुत दूर की बात थी.

मैनेजर ऋचा ने रची पूरी साजिश

उस ने अपने मालिक विकास अग्रवाल से सैलरी बढ़ाने और प्रमोशन करने को कहा था. उन्होंने सैलरी बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया था. इस कारण ही ऋचा ने अपने एक 36 वर्षीय दोस्त गुरमीत सिंह और उस के दोस्त 35 वर्षीय कमल बंसल के साथ मिल कर विकास अग्रवाल के बेटे किंशुक के अपहरण की साजिश रच डाली.

बैंक्वेट हाल की सजावट के लिए फूलमंडी गाजीपुर से फूल लेने किंशुक को भी जाना था. ऋचा को यह मौका सब से अच्छा लगा. उस ने गुरमीत और कमल से बात की.

दोनों ऋचा की साजिश में शामिल हो गए. ऋचा ने इस साजिश में अपनी 56 वर्षीय मां अनीता सब्बरवाल को भी शामिल कर लिया, लेकिन पति निकुल सब्बरवाल को इस साजिश की भनक तक नहीं लगने दी.

17 दिसंबर की सुबह किंशुक ऋचा और जितेंद्र के साथ गाजीपुर मंडी पहुंचे थे. फूल आदि खरीदने के बाद जब तीनों बाहर निकले और अपनी कार में बैठे. तभी कार के पिछले दरवाजे को खोल कर गुरमीत सिंह अंदर घुस आया था.

इस तरह अपहरण की घटना को अंजाम देने के बाद पैसे ले कर आराम से चला गया. पहले आटो, फिर स्कूटी से फरार होने में सफल हो गया. पुलिस ने उस से फिरौती की 50 लाख की रकम में से 40 लाख रुपए बरामद भी कर लिए. बाकी के 10 लाख रुपए ऋचा ने अपन कर्ज आदि चुकाने में लगा दिए थे.

नीरव पटेल ने बताया कि पूरी साजिश ऋचा व गुरमीत सिंह की रची हुई थी. इस में ऋचा के पति की कोई भूमिका नहीं थी. बाद में ऋचा की मां अनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

स्कूटी चालक कमल बंसल को भी पुलिस ने ओंकार नगर से ही गिरफ्तार किया. इन लोगों के पास से कुल 40 लाख रुपए की बरामदगी हुई. इस में सब से मजे की बात यह  रही कि किडनैपर ने जिस पिस्तौल की नोक पर पूरे कांड को अंजाम दिया था वह एक टौय गन यानी नकली थी.

दिल्ली पुलिस ने सभी अपराधियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए (अपहरण व फिरौती के लिए अपहरण) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.

मनोहर कहानियां: चांदनी को लगा शक का तीर

शाहनवाज

26दिसंबर, 2021 की सुबह के करीब 6 बज रहे थे, जब कानपुर के नौबस्ता थाना क्षेत्र में राजीव नगर की एक कालोनी के एक घर में दूसरी मंजिल पर रहने वाले हैदर के घर से बच्चों के रोने की आवाजें तेज हो गईं. हालांकि हैदर के घर से बच्चों की रोने की आवाजें बहुत पहले से ही आ रही थीं, लेकिन ठंड के दिनों में इतनी सुबहसुबह वह बिस्तर से उठना नहीं चाहता था. वैसे भी हैदर के घर के झगड़ेझमेलों में मकान का कोई भी दूसरा पड़ोसी पड़ने को तैयार नहीं था.

उन के घर पर लगभग रोजाना झगड़ा होना, मारपीट और बच्चों के चीखनेचिल्लाने व रोनेपीटने की आवाजें आम बात सी हो गई थी. कुछ ही देर में बच्चों के रोने की आवाजें इतनी तेज हो गईं कि अब लोगों की आंखों की नींद टूटने लगी थी. मकान की पहली मंजिल पर रहने वाला मकान मालिक तो उन के आपसी झगड़ों से इतना परेशान हो गया था कि उस ने तय कर लिया कि वो हैदर को घर खाली करने को कह देगा.

मकान मालिक गुस्से और तैश में अपने बिस्तर से निकला, अपने कमरे से निकलते हुए उस ने अपने पैरों में चप्पल डाली और तेजी से भागता हुआ सीढि़यां चढ़ कर दूसरी मंजिल पर हैदर के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोला, ‘‘हैदर जल्दी बाहर निकल. तुम लोगों का हर दिन का ये ड्रामा अब मैं नहीं सह सकता. जल्दी निकल. तेरा इलाज तो मैं आज करता हूं.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खुला. दरवाजा हैदर ने नहीं बल्कि रोते हुए हैदर की 5 साल की बेटी सायमा ने खोला था. उसे रोता देख मकान मालिक ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और बोला, ‘‘अरे रो क्यों रही है? पापा कहां हैं तेरे? सुबह से तुम ने रोरो कर सब की नींद हराम कर डाली है.’’

सायमा को गोद में उठाते हुए मकान मालिक ने कमरे के दरवाजे का दूसरा पल्ला खोला और अंदर का नजारा देख उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

उस ने देखा कि कमरे में बिखरे सामान के बीचोबीच जमीन पर हैदर की बीवी चांदनी पड़ी है. चांदनी के ठीक बगल में उन का 2 साल का बेटा हसन अपनी मां के गालों पर हाथ लगा कर उसे उठाने की लगातार कोशिश कर रहा है. लेकिन चांदनी कोई जवाब ही नहीं दे रही है.

यह देख कर मकान मालिक के ठंडे पड़े कान एकदम से गरम हो गए. उस के हाथपांव सुन्न पड़ गए. उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी और उस के शरीर की मानों सारी ऊर्जा खत्म सी हो गई.

बड़ी हिम्मत जुटा कर मकान मालिक अपनी गोद में सायमा को उठा कर कमरे में दाखिल हुआ और बिखरे सामान को अपने पैरों से हटा कर कदमों को आगे बढ़ाया. जैसेजैसे वह चांदनी की ओर आगे बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे उस के पैरों की हड्डियां मानों लचीली होती जा रही थीं.

उस ने चांदनी को देखने के बाद मन ही मन यह अंदाजा लगा लिया था कि उसे क्या हुआ होगा, लेकिन वह इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था.

दम तोड़ चुकी थी चांदनी

जब वह जमीन पर पड़ी चांदनी के एकदम नजदीक पहुंचा तो वह झुका और सायमा को अपनी गोद से उतारा. बिना कुछ कहे दोनों हाथों का इस्तेमाल कर उस ने चांदनी की कलाई उठाई और अपने दूसरे हाथ से उस की नब्ज टटोलने लगा. नब्ज मिलने पर उस ने उसे दबाया और उस की धड़कन महसूस करने की कोशिश की.

इस बीच कमरे में दोनों बच्चों की सुगबुगाहट और रोने का शोर पूरा था, लेकिन उसे मानो कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. करीब 2 मिनट तक चांदनी के हाथों की नब्ज टटोलने के बाद उसे महसूस हुआ कि चांदनी की धड़कने थम चुकी हैं. लेकिन उस ने हार नहीं मानी. उस ने अपने कानों को चांदनी की नाक के पास ले जार कर चैक किया. चांदनी की सांस चल रही है या नहीं.

मकान मालिक यह मंजर देख कर इतना डर गया कि उस ने फिर से एक बार चांदनी की नब्ज दबाई. लेकिन उसे असफलता ही हाथ लगी. जब उस के मन ने यह मान लिया कि चांदनी मर चुकी है तो डरेसहमे मकान मालिक ने कमरे में मौजूद 2 साल के हसन को अपनी गोद में उठाया और सायमा का हाथ पकड़ कर उन्हें कमरे से बाहर ले कर निकला और मकान में जोर से शोर मचाया. देखते ही देखते हैदर के कमरे के सामने मकान में रहने वाले सभी किराएदारों का झुंड लग गया. मकान में खड़े रहने की इतनी जगह नहीं थी तो लोगों की मकान के बाहर गली में भीड़ जुटने लगे.

इस बीच मकान मालिक ने फोन कर स्थानीय पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी और सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. हर कोई जिस को यह बात पता लगती जाती कि फलां घर में फलां महिला की मौत हो गई है. वह मकान के आगे खड़ा हो जाता और मामले में होने वाली हलचल को देखने में व्यस्त हो जाता.

हैदर के मकान के आगे जुटी भीड़ की खुसफुसाहट से इलाके में धीमा शोर सा फैल गया. थाना वहां से बहुत दूर नहीं था. कुछ देर के बाद ही स्थानीय पुलिस सूचना मिलते ही वहां पहुंच गई तो मकान के आगे जुटी भीड़ ने पुलिसवालों के लिए रास्ता बनाया.

नौबस्ता थानाप्रभारी अमित कुमार भड़ाना के नेतृत्व में पुलिसकर्मी मकान में उस कमरे में गए, जहां पर हत्या को अंजाम दिया गया था. कमरे में चांदनी की लाश जमीन पर पड़ी थी और घर का हर सामान अपनी जगह पर नहीं था. कमरे का माहौल इतना अस्तव्यस्त था कि घटनास्थल को सही से समझने में पुलिसकर्मियों को काफी समय लग गया.

घटनास्थल से जुटाए सबूत

पुलिस की टीम ने देखा कि कमरे में ऊपर टंगे हुए पंखे की पंखुडियां नीचे की ओर मुड़ी हुई थीं. लाश के पास ही चांदनी का दुपट्टा भी मौजूद था. यह देख कोई भी यह अंदाजा लगा सकता था कि हत्या को अंजाम पीडि़ता को फांसी पर लटका कर दिया गया था. देरी न करते हुए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने चांदनी की लाश को पास के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के साथ ही घटनास्थल से पुलिस टीम ने फोरैंसिक टीम की मदद ले कर सभी जरूरी सबूतों को इकट्ठा कर लिया.

यह सब करने के बाद अब बारी थी पूछताछ की. थानाप्रभारी ने अपनी टीम की सहायता ले कर मामले को समझने के लिए मकान मालिक समेत सभी किराएदारों से हैदर और चांदनी के बारे में पूछताछ की. इस के साथ ही पुलिस ने चांदनी के रिश्तेदार, जिस में उस का भाई अब्दुल माजिद जो कानपुर के बाबुपुरवा में रहता था, को इस घटना की सूचना दी और जल्द से जल्द राजीव नगर अपनी बहन के घर पर आने को कहा.

पूछताछ के दौरान मकान मालिक और मकान में रहने वाले सभी किराएदारों ने पुलिस को बताया कि हैदर और चांदनी के बीच लगभग हर दिन झगड़े होते रहते थे. हैदर पेशे से पेंटर था और कोविड की वजह से उस के काम पर काफी असर पड़ा था.

इन दिनों उस का काम थोड़ाबहुत बढ़ा था, जिस के बाद ही वह मकान मालिक को किराए के पैसे दे पाया था. जब पुलिस ने उन के बीच झगड़ों की वजह पूछी तो पता चला कि हैदर हर रात को दारू पी कर घर आता था और वह घर के खर्चों के लिए चांदनी को पैसे भी नहीं देता था. इसलिए चांदनी घर के खर्चों के लिए घर पर ही पतंग बनाने का काम किया करती थी और उसी से ही बच्चों की जरूरतें पूरा किया करती थी.

हर किसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने चांदनी और हैदर के बच्चों का रुख किया. हालांकि बच्चे उस समय भी लगातार रो ही रहे थे. पुलिस की टीम ने उन्हें खिलौने और खाने के लिए चौकलेट खरीद कर दिए तो बच्चे कुछ पल के लिए शांत हुए.

सायमा ने पुलिस को बताई कहानी

इसी दौरान थानाप्रभारी ने चांदनी की बेटी सायमा से इस घटना के बारे में पूछा. सायमा फफकते हुए धीमी आवाज में बोली, ‘‘पापा ने मम्मी के गले में दुपट्टा डाला और खींच कर पकड़ा. मम्मी जवाब नहीं दे रही थीं.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी चौकन्ने हो गए और सायमा से इस बारे में थोड़ा और खुल कर बताने के लिए कहा. सायमा थानाप्रभारी को कुछ भी बताने से काफी डर रही थी. थानाप्रभारी उस छोटी बच्ची के डर को साफ महसूस कर रहे थे. इसलिए उन्होंने सायमा के डर को दूर करने के लिए उसे अपने विश्वास में ले कर थोड़ी दूर आए.

वह सायमा से बोले, ‘‘बेटा डरने की जरूरत नहीं है. हम हैं न यहां पर. जो कुछ हुआ उसे बिना डरे बताओ. तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

रोती हुई सायमा को थानाप्रभारी की बात सुन कर थोड़ा अच्छा महसूस हुआ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘पापा ने बोला कि अगर किसी को इस बारे में बताया तो वे हमें भी मम्मी की तरह मार डालेंगे.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी के कान खड़े हो गए. उन्होंने सायमा को फिर से भरोसा दिलाया कि उसे कुछ नहीं होगा, अगर वो सब कुछ सचसच बता देगी तो वह उस की अम्मी के कातिल को सजा दिला पाएंगे.

सायमा को थानाप्रभारी की बातों पर भरोसा हो गया तो उस ने कहा, ‘‘पापा की मम्मी से कल रात को भी लड़ाई हुई थी. पापा दारू पी कर आए थे और मम्मी को पैसे देने के लिए बोल रहे थे. कल रात को भी पापा ने मम्मी को मारा था. उस के हाथ पर चोट आई थी कल रात को. आज सुबह भी उन के बीच झगड़ा हुआ था. पापा काम के लिए सुबह निकलने वाले थे और मम्मी से पैसे मांग रहे थे. मम्मी ने पैसे नहीं दिए तो पापा ने गुस्से में मम्मी के गले में उन का दुपट्टा डाला और कस दिया. उस के बाद मम्मी कुछ नहीं बोलीं.

‘‘जब पापा ने मम्मी के गले में उन का दुपट्टा डाला था तो मैं और मेरा छोटा भाई पापा के सामने हाथ जोड़ कर रो रहे थे कि मम्मी को छोड़ दीजिए पापा. लेकिन पापा ने तब तक मम्मी को नहीं छोड़ा, जब तक मम्मी ने बोलना बंद नहीं किया था.

ऐसा करने के बाद पापा ने मेरा गला पकड़ लिया और जोर से दबा दिया था और मुझ से बोले कि अगर मैं ने किसी को भी इस के बारे में बताया तो वह मुझे भी मम्मी की तरह चुप करा देंगे. अंकल मुझे डर लग रहा है अब. क्या पापा सही में मुझे मम्मी की तरह चुप करवा देंगे?’’

यह सब सुन कर थानाप्रभारी की आंखें खुली रह गईं. 5 साल की बच्ची ने पूरा किस्सा पुलिस को बता दिया था. लेकिन थानाप्रभारी के मन में अभी भी एक अहम सवाल बना हुआ था कि हैदर ने चांदनी की हत्या क्या सिर्फ पैसों की वजह से की होगी?

हैदर को चांदनी पर हो गया था शक

इस सवाल का जवाब उन्हें चांदनी के भाई अब्दुल माजिद से मिला जो सायमा से पूछताछ के दौरान ही अपने कुछ और करीबी रिश्तेदारों के साथ राजीव नगर पहुंचा था. अब्दुल माजिद ने थानाप्रभारी को बताया कि हैदर और चांदनी की शादी 8 साल पहले कानपुर में ही हुई थी. उस समय हैदर पेंटिंग का काम किया करता था और ठीकठाक कमाता था.

लेकिन जब से कोविड की शुरुआत हुई और सब के कामधंधे ठप पड़ गए तो वह भी घर पर बैठ गया. लेकिन लौकडाउन के उन दिनों में भी वह घर से निकलता था और अड़ोसपड़ोस के लफाडि़यों के संग दो पैसे कमाने के मकसद से जुआ खेलने लगा था. लेकिन जुए में वह पैसे कमाने की जगह पैसे गंवाने लगा और धीरेधीरे उस ने अपनी पूरी जमापूंजी जुए में गंवा दी. इन सब के लिए चांदनी उसे बहुत टोका करती थी और जुआ खेलने को ले कर उस से झगड़े करती थी. लेकिन वह नहीं माना.

हार मान कर चांदनी ने घर खर्च चलाने के लिए पतंग बनानी शुरू कर दीं. चांदनी दिन भर घर के काम, बच्चों की देखरेख और पतंग बनाने में व्यस्त रहने लगी और उन के आपस के झगड़े भी कम होने लगे. झगड़े कम होने की वजह से हैदर को सुकून तो मिला, लेकिन उस के मन में चांदनी को ले कर शक पैदा होने लगा कि कहीं उस की बीवी गलत काम कर के पैसे तो नहीं जोड़ रही है.

जैसेजैसे दिन बीतते जाते, हैदर के मन का शक भी बढ़ता ही जाता. कुछ समय बाद जब देश में कोविड से हालात सामान्य हुए और हैदर का पेंटिंग का काम फिर से चालू हुआ तो हैदर भी पूरा दिन घर से बाहर काम में लगाने लगा. हैदर ने शराब पीने की लत भी तभी से ही लगाई थी.

धीरेधीरे उन के बीच फिर से पहले की तरह ही झगड़े होने शुरू हो चुके थे, लेकिन अब झगड़ा पैसों को ले कर नहीं बल्कि चांदनी के चरित्र को ले कर हुआ करता था.

दरअसल, हैदर को चांदनी पर इस बात का शक था कि चांदनी जिस दुकानदार के लिए पतंग बनाने का काम करती है, शायद उसी के साथ ही उस के अवैध संबंध हैं. इस बात पर उन के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा. इसी दौरान हैदर ने अपने शक्की दिमाग में चांदनी के लिए न जाने क्याक्या खयाल पैदा कर लिए और झगड़े मारपीट में बदल गए. चांदनी बच्चों की चिंता कर हैदर की मारपीट को सहन कर लिया करती और अपना काम जारी रखती.

लेकिन 25 दिसंबर, 2021 की रात को उन के बीच फिर से झगड़ा हुआ और अगली सुबह हैदर ने चांदनी को जान से मार दिया.

इस पूरी घटना के बाद पुलिस ने फरार आरोपी हैदर के खिलाफ हत्या की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया है और उस की तलाश जारी है. कथा लिखने तक पुलिस आरोपी हैदर को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.

Crime: भाई पर भारी पड़ी बहन की हवस

गांवों में वैसे भी रात जल्दी हो जाती है और जब दिसंबर की सर्द रात हो तो गांव की गलियों में सन्नाटा पसरना आम बात है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के कौंधियारा ब्लौक के बड़गोहना गांव में भी ऐसा ही कुछ माहौल था. ज्यादातर घरों की बत्तियां बंद थीं और लोग बिस्तरों में दुबक कर ठंड से मुकाबला कर रहे थे.

लेकिन सर्द हवा से सांयसांय करती गांव की एक गली में 16 साल की नाबालिग लड़की मोबाइल फोन से किसी से हंसहंस कर बातें कर रही थी. वह इस बात से बेखबर थी कि उस को किसी ने देख लिया है. उस लड़की की बातचीत का अंदाज बता रहा था कि दूसरी तरफ वाला शख्स उस का प्रेमी ही हो सकता है.

मांबाप की गैरमौजूदगी में उस लड़की के सिर पर इश्क का भूत सवार था. उस की उम्र 16 साल जरूर थी, लेकिन मोबाइल फोन पर मुहैया इंटरनैट से उस ने सैक्स की काफी जानकारी हासिल कर ली थी, इसीलिए उस ने सर्द रात में अपने सूने घर में प्रेमी को आने का न्योता दे दिया.

19 साल का प्रेमी शिवशंकर उर्फ छोटू तो ऐसे मौके की तलाश में था. उस लड़की मीना का फोन आते ही वह झटपट मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंच गया. कई किलोमीटर की दूरी उस ने इतने कम समय में पूरी कर ली कि अपने सामने खड़े प्रेमी को देख कर भी मीना को आसानी से यकीन नहीं हुआ.

मीना ने अपने छोटे भाई अमन को पहले ही किसी तरह गहरी नींद में सुला दिया था. जवानी की दहलीज पर खड़े दोनों बहुत देर तक अपने को रोक नहीं पाए. इश्क की पेंगें बढ़ाते हुए वे उस में इतना खो गए कि उन को होश ही नहीं रहा कि घर में कोई और भी है. शिवशंकर भी अपनी माशूका को सामने पा कर अपनी सुधबुध खो बैठा था.

इधर बातचीत और हंसीमजाक की आवाज सुन कर 14 साल के अमन की आंख खुल गई. वह अपने घर में बहन के साथ किसी अनजान को देख कर सबकुछ जल्दी ही समझ गया. उम्र में छोटा होने के बाद भी भाई को बहन की यह हरकत नागवार लगी और वह बहन का विरोध करने लगा. डांटफटकार के बाद भी वह चुप नहीं हुआ और आंखों देखी सारी बात पिता को बताने के लिए कहने लगा.

छोटे भाई की इस घमकी के बाद उस की बड़ी बहन डर गई, लेकिन उसे अपने प्यार में बाधा बन रहे भाई की ये बातें अच्छी नहीं लगीं. इस के बाद उस ने जो किया वह जान कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

मीना ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पहले अपने छोटे भाई पर लोहे की एक छड़ से हमला किया और बाद में पीटपीट कर उस का कत्ल कर दिया.

मीना के घर वालों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार ऐसा क्यों हो गया और किस ने मासूम लड़के को जान से मार दिया. इस वारदात की खबर मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को पोस्टमौर्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर की.

पुलिस जांचपड़ताल में जो मामला सामने आया उस से सब की आंखें खुली की खुली रह गईं. अमन के पिता गुलाब खेती करते हैं. वे अपनी पत्नी को ले कर अपनी ससुराल गए थे और रात में वहीं पर रुक गए थे. घर पर उन का 14 साल बेटा अमन और 16 साल की बेटी मीना थी.

कौंधियारा पुलिस को जब एक 14 साल के लड़के की घर के भीतर हत्या की खबर मिली तो वह भी चकरा गई. पुलिस जब गुलाब के घर पहुंची तो 14 साल के मासूम अमन की खून से लथपथ लाश बिस्तर पर पड़ी थी. पुलिस को भी पहले समझ नही आ रहा था कि एक मासूम का कत्ल क्यों और कौन करेगा, वह भी घर के भीतर, जब घर में केवल भाईबहन ही हों?

पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमौर्टम के लिए भेज दिया और इस के बाद मामले की जांच शुरू कर की. घर और गांव वालों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि किसी ने नाबालिग लड़के को मार दिया. एक 14 साल के मासूम से किस की दुश्मनी हो सकती है?

इस से पहले सुबह आरोपी लड़की ने सब को चीखते हुए बताया था कि अमन को किसी ने मार दिया है. वैसे, पुलिस को शुरुआती जांच में ही बहन पर शक हो गया था. इस के बाद क्राइम ब्रांच ने जब लड़की का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ले कर काल डिटेल निकाली तो सारा भेद खुल गया.

पुलिस की पूछताछ में लड़की घबरा गई, लेकिन उस ने अपने बयान बारबार बदल कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश भी की. बाद में घर की तलाशी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस से वह लड़की केवल अपने प्रेमी शिवशंकर उर्फ छोटू निवासी बस्तर करछना से बात करती थी.

गांव के एक बुजुर्ग ने भी पुलिस को बताया कि रात को 12 बजे के आसपास वह लड़की किसी से फोन पर बात कर रही थी. बातचीत में मशगूल मीना उन बुजुर्ग को नहीं देख सकी थी.

पुलिस को रात में शिवशंकर के मोबाइल फोन की लोकेशन बड़गोहना गांव में ही मिली. वह मौके से फरार हो चुका था, लेकिन क्राइम ब्रांच ने तेजी दिखाते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई लोहे की छड़ भी हत्यारोपियों की निशानदेही पर बरामद कर ली.

जिस प्यार को पाने के लिए एक बहन ने अपने छोटे भाई की बलि दे दी उसी प्रेमी के साथ अब वह जेल में अपने गुनाहों की सजा पाने के लिए भेज दी गई है.

चूड़ियों ने खोला हत्या का राज

सौजन्य-मनोहर कहानियां

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव भगवानगंज के रहने वाले सरकारी नौकरी से रिटायर सत्यनारायण ने अपनी बहू रागिनी के रंगढंग से क्षुब्ध हो कर कहा, ‘‘बहू, जब तुम्हारा पति बाहर रहता है तो मायके के ऐसे लोगों को घर में न रोका करो, जो तुम्हारे करीबी न हों. देखने वालों को यह अच्छा नहीं लगता. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’’

सत्यनारायण की बहू रागिनी जिला रायबरेली के थाना बछरावां के गांव भक्तिनखेड़ा की रहने वाली थी. 14 जून, 2012 को सत्यनारायण के बेटे दिलीप के साथ उस की शादी हुई थी. तब से वह ससुराल में ही रहती थी. उस का मायका ससुराल के नजदीक ही था, इसलिए अकसर उस से मिलने के लिए घर के ही नहीं, गांव के लोग भी आते रहते थे. उन में से कुछ लोगों की रिश्तेदारी उस के ससुराल के गांव में थी, इसलिए जब भी उस के मायके का कोई आता, वह रागिनी से भी मिलने चला आता.

इसीलिए ससुर की बात का जवाब देते हुए रागिनी ने कहा, ‘‘पिताजी, मायके के लोग हम से मिलने पहले भी आते थे. जब पहले नहीं रोका तो अब उन्हें कैसे रोक सकते हैं. अगर किसी को आने से मना करेंगे तो लोग क्या कहेंगे. और रही बात गांव वालों की तो उन का क्या, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं.’’

दरअसल, पहले सत्यनारायण को बहू के मायके से कोई आता था तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन जब 10 महीने पहले उन की पत्नी कलावती की मौत हो गई तो घर में रागिनी अकेली ही रह गई. 61 साल के सत्यनारायण एक साल पहले ही नौकरी से रिटायर हुए थे. रागिनी के डेढ़ साल का बेटा भी था.

रागिनी का पति दिलीप उन्नाव जिले के जुनाबगंज के एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करता था. बहू के अकेली होने की वजह से सत्यनारायण को किसी से उस का मिलना अच्छा नहीं लगता था. इसीलिए वह बहू को बारबार मना करते थे कि वह अपने मायके वालों को अपने घर में न रोके.

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उन्होंने कहा, ‘‘बहू, गांव वालों का सब से अधिक ऐतराज मोनू के आने पर है. उसी को ले कर लोग तरहतरह की बातें करते हैं. वह गांव के दूसरे लोगों के पास बैठ कर उलटीसीधी बातें करता है.’’

‘‘पिताजी, गांव वालों के पास कोई कामधाम तो होता नहीं, इसलिए वे दूसरों के घरों में झांकते रहते हैं और तरहतरह की बातें करते रहते हैं. दूसरों के बारे में बातें बनाने में उन्हें मजा आता है.’’ गुस्से से रागिनी बोली.

उस के बात करने के तरीके से सत्यनारायण समझ गए कि रागिनी उन की बात मानने वाली नहीं है. इन्हीं बातों को ले कर ससुरबहू के बीच मतभेद बढ़ने लगे. फिर दोनों में झगड़ा होने लगा. बात बढ़ी तो गांव वालों को भी पता चल गया.

सत्यनारायण ने ही नहीं, रागिनी ने भी यह बात अपने दोस्त मोनू को बताई. मोनू जिला रायबरेली की तहसील महराजगंज के गांव पारा का रहने वाला था. एक दिन फिर वह रागिनी से मिलने आया तो उस ने कहा, ‘‘मोनू, तुम्हारे आने से मेरे ससुर को परेशानी होती है. उन्हें गांव वालों से पता चला है कि मेरे और तुम्हारे बीच गलत संबंध हैं.’’

‘‘यह तो चिंता वाली बात है. अब हम कैसे मिल पाएंगे. लगता है, हमें कोई और रास्ता निकालना होगा.’’

‘‘रास्ता क्या निकालना है. हम ने उन से साफसाफ कह दिया है कि हम गलत नहीं हैं, इसलिए मैं किसी को घर आने से रोक नहीं सकती. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ रागिनी ने कहा.

25 साल की रागिनी देखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, पर वह मोनू के साथ लंबे समय से रह रही थी, इसलिए दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए थे. रागिनी की शादी के बाद वह उस की ससुराल भी उस से मिलने आने लगा था. रागिनी की सास की मौत हो गई तो उस का आनाजाना बढ़ गया. उस का पति दिलीप नौकरी की वजह से अधिकतर बाहर ही रहता था. वह घर में अकेली होती थी, जिस से उसे मोनू से मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. जब इस खेल के बारे में सत्यनारायण को पता चला तो उन्होंने ऐतराज किया. उन्हें लगा कि बहू को समझाने से बात बन जाएगी, इसीलिए उन्होंने यह बात अपने बेटे दिलीप को भी नहीं बताई.

रागिनी ने ससुर की बात अनसुनी कर दी

ससुर के कहने पर भी रागिनी ने मोनू को घर आने से मना नहीं किया. इस बात से नाराज हो कर सत्यनारायण ने कहा, ‘‘बहू, मैं सोच रहा था कि मेरे समझाने से तुम मान जाओगी और उसे घर आने से मना कर दोगी. लेकिन मेरी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है. लगता है, मुझे सख्ती करनी पड़ेगी. मैं चाहता हूं कि तुम मान जाओ और उसे आने से मना कर दो. यह मैं तुम से आखिरी बार कह रहा हूं.’’

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‘‘पिताजी, लगता है आप के कान किसी ने भर दिए हैं. मोनू से मेरा कोई गलत संबंध नहीं है. आप को गलतफहमी हुई है.’’ रागिनी ने ससुर को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया.

बहू के तेवर देख कर सत्यनारायण सकते में आ गए. अब उन्हें अपनी ही नहीं, बेटे की भी चिंता होने लगी. दरअसल सत्यनारायण के कोई औलाद नहीं थी. वह लखनऊ के कमिश्नर औफिस में नौकरी करते थे. नातेरिश्तेदार चाहते थे कि वह किसी बच्चे को गोद ले लें क्योंकि उन्हें पता था कि सत्यनारायण सरकारी नौकरी करते हैं. उन के पास खूब पैसा है, जिसे वह गोद लेंगे, वह मौज करेगा.

सत्यनारायण को लगता था कि लोग उन की संपत्ति के लालच में अपना बच्चा उन्हें गोद देना चाहते हैं, जबकि उन की पत्नी कलावती चाहती थी कि वह किसी रिश्तेदार का ही बच्चा गोद लें. लेकिन वह इस के लिए राजी नहीं थे. उन्होंने पत्नी को समझाया. इस के बाद दोनों ने मिलजुल कर फैसला लिया कि वे अनाथालय से बच्चा गोद लेंगे.

सत्यनारायण ने दिलीप को अनाथालय से गोद लिया था. उसे खूब पढ़ायालिखाया. दिलीप को काफी दिनों तक इस बात का पता नहीं था कि वह गोद लिया बच्चा है. वह अपने मांबाप को बहुत प्यार करता था. कलावती बीमार रहने लगीं तो उन्होंने दिलीप की शादी रागिनी से कर दी थी.

शादी के 3 सालों बाद रागिनी को बेटा हुआ, सब बहुत खुश हुए. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी, क्योंकि कलावती की मौत हो गई थी. बेटेबहू के लिए उन्होंने बढि़या मकान पहले ही बनवा दिया था. पत्नी की मौत के बाद वह अकेले पड़ गए थे. बुढ़ापे में अब उन्हें बेटे और बहू का ही सहारा था.

रागिनी के व्यवहार से घर में कलह शुरू हो गई थी. वह ससुर से खुल कर लड़ने लगी थी. इस बात को ले कर सत्यनारायण को बहुत तकलीफ थी. अपनी यह तकलीफ वह गांव वालों से व्यक्त भी करने लगे थे. गांव वालों ने उन्हें समझाया तो उन्होंने कहा, ‘‘बहू मेरी हत्या भी करा सकती है.’’

गांव वालों को लगा कि बुढ़ापे की वजह से वह ऐसा सोच रहे हैं, इसलिए किसी ने उन की बात को गंभीरता से नहीं लिया.

25 सितंबर की सुबह गांव के बाहर खेत में सत्यनारायण की लाश पड़ी मिली. इस बात की सूचना उन के बेटे दिलीप और पुलिस को दी गई. घटनास्थल पर पहुंच कर दिलीप पिता की लाश से लिपट कर रोने लगा. वह बारबार यही कह रहा था कि रागिनी ने इन्हें मरवा दिया.

आखिरी रागिनी आ गई शक के घेरे में

घटना की सूचना पा कर थाना निगोहां के थानाप्रभारी चैंपियनलाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. सभी का कहना था कि बहू ने ही सत्यनारायण की हत्या कराई है. चैंपियनलाल नहीं चाहते थे कि कोई निर्दोष जेल जाए, इसलिए बिना सबूतों के वह रागिनी को जेल भेजने के पक्ष में नहीं थे. क्योंकि रागिनी खुद को निर्दोष कह रही थी.

चैंपियनलाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें लाश के पास से लाल रंग की चूडि़यों के टुकड़े मिले. चूडि़यों के उन टुकड़ों को देख कर उन्हें लगा कि इस हत्या में रागिनी का हाथ हो सकता है, इसलिए उन्होंने उन टुकड़ों का रागिनी के हाथ में पहनी चूडि़यों का मिलान कराया तो वे रागिनी की चूडि़यों से मिल गए.

यही नहीं, चूड़ी टूटने से रागिनी के हाथ में खरोंच के निशान भी पाए गए. इस के बाद उन्होंने रागिनी से पूछताछ शुरू की तो रागिनी ने ससुर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

24 सितंबर को मोनू रागिनी से मिलने आया तो इस की जानकारी सत्यनारायण को हो गई. उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘अब तक मैं चुप था, लेकिन अब मुझे यह सब दिलीप से बताना ही पड़ेगा.’’

इस से रागिनी डर गई, क्योंकि अब उस का भेद पति को पता चल जाता. डर की वजह से उस ने ससुर से किसी भी तरह की बहस नहीं की. चुपचाप उन की बात सुन ली. लेकिन उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब यह शिकायत का सिलसिला बंद होना चाहिए. उस ने फोन कर के यह बात मोनू को बता दी.

उसी समय दोनों ने तय कर लिया कि आज रात वे शिकायतों का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकाल फेंकेंगे. उस रात गांव में आर्केस्ट्रा हो रहा था. सत्यनारायण उसे देखने के लिए निकले, तभी रागिनी ने दिलीप से कहा कि वह शौच के लिए बाहर जा रही है.

घर से बाहर आ कर रागिनी ने दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया इस के बाद मोनू को फोन कर के कहा कि बुड्ढा घर से निकल गया है. मोनू अपने साथी के साथ आ गया. मोनू और उस के साथी ने सत्यनारायण को पकड़ लिया. सत्यनारायण मजबूत कदकाठी के थे, इसलिए वे दोनों उन्हें काबू नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने मोनू के गले में अंगौछा डाल कर उसे गिरा दिया.

जब रागिनी को लगा कि ये दोनों बुड्ढे को काबू नहीं कर पाएंगे, तो वह भी उन के साथ लग गई. तीनों ने मिल कर सत्यनारायण को गिरा दिया और उन्हें मार डाला. लाश को वहीं छोड़ कर तीनों अपनेअपने घर चले गए. रागिनी घर आई तो दिलीप ने पिता के बारे में पूछा. रागिनी ने कहा कि वह आर्केस्ट्रा देखने गए हैं.

काफी रात बीतने पर भी सत्यनारायण घर नहीं आए तो दिलीप वहां गया, जहां आर्केस्ट्रा हो रहा था. पिता वहां नहीं मिले तो देर रात तक वह उन्हें खोजता रहा. परेशान हो कर वह घर आ गया. सुबह गांव वालों से पता चला कि पिता की हत्या हो गई है तो उस की समझ में आ गया कि रागिनी ने ही पिता को मरवाया है.

5 घंटे के अंदर ही थाना निगोहां पुलिस ने जिस तरह से सबूतों के साथ हत्या का खुलासा किया, उस से लोगों में एक भरोसा जाग गया. रागिनी और मोनू को गिरफ्तार कर के पुलिस ने जेल भेज दिया. रागिनी के जेल जाने के बाद दिलीप के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह छोटे से बच्चे का पालनपोषण कैसे करे. क्योंकि बिना मां के बच्चे का पालनपोषण करना ही परेशानी की बात है.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चाओं पर आधारित

आश्चर्य! पुलिस अधिकारी होते हैं “ठगी का शिकार”

सुरेशचंद्र रोहरा

सौ बात की एक बात लालच बुरी बला. यह बात बचपन में ही घुट्टी की तरफ पिलायी जाती है. मगर आमतौर पर साधारण और खास दोनों ही प्रकार के लोग कहावत मुहावरे को भुला कर  आंख बंद करके लालच करते हैं और जिंदगी में कई दफा ठगे जाते हैं लूट जाते हैं.

आज आपको हम बता रहे हैं कि एक पुलिस का उच्च अधिकारी जो जिंदगी भर लोगों को अपने वर्दी के बूते, शिक्षा के दम पर जांच पड़ताल करके न्याय दिलाता रहा रिटायरमेंट के कुछ समय बाद कैस लाखों रुपए की ठगी का शिकार हो जाता है.

कितने आश्चर्य की बात है, अगरचे कोई आम आदमी अशिक्षित व्यक्ति, गांव का आदमी ठगा जाता है तो हम कहते हैं कि इसे कानून का ज्ञान नहीं है नियमों का पता नहीं है. यह संसार के बारे में ज्यादा नहीं जानता, बेचारा इसीलिए ठगा गया है. मगर जब यही बात इसी शिक्षित और कानून के जानकार के साथ घटित हो तो फिर क्या कहा जाए.

आज हम इस रिपोर्ट में यही सच आपको बता रहे हैं कि आज के इस संक्रमण काल में अगर आप चौक्कना  नहीं रहेंगे तो कभी भी ठगे जा सकते हैं. अत: एक बार फिर याद कर लें-” लालच बुरी बला है.”

पच्चीस लाख का चुग्गा

कथित सीबीआई अधिकारी बन कर आईजी कार्यालय से सेवामुक्त हुए एडिशनल एसपी को 25 लाख की लॉटरी लगने का झांसा दिया गया और बैंक खाते से साढ़े छह लाख की धोखाधड़ी को अंजाम दे दिया गया.

कुछ समय बाद ठगी का एहसास होने पर पीड़ित रिटायर्ड अधिकारी ने बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के सिविल लाइन थाने पहुंच कर मामले की शिकायत दर्ज कराई है. अप पुलिस मामले को अपने हाथों में लेकर के छानबीन शुरू कर चुकी है यह रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई आरोपी पुलिस के हाथ नहीं चढ़ा है जैसा कि होता है पुलिस मामले में जांच कर आगे की कार्रवाई कर रही है.

दरअसल हुआ यह कि‌ रिटायर्ड एएसपी को 25 लाख की लॉटरी लगने का झांसा दिया गया और साढ़े छह लाख का चूना लगा दिया गया.

अब आपको हम उक्त पुलिस अधिकारी से आप परिचय कराते हैं आप हैं -रवीन्द्र कुमार मिश्रा पिता हरिनारायण मिश्रा (66) वर्ष 2017 में पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय से रिटायर्ड हुए हैं. आपके मोबाइल नम्बर पर 13 जनवरी को फोन कर एक महिला ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताते हुए मैसेज किया कि उन्हें कौन बनेगा करोड़पति  केबीसी कंपनी की 25 लाख की लॉटरी लगी है.

उसके बाद एक और मैसेज आया की रुपए कैश करवा कर सीबीआई आफिसर अजय कुमार देंगे. 25 लाख मिलने के लालच में आए रिटायर्ड एएसपी ने खाता नम्बर, एटीएम का नंबर पासबुक की फोटोकॉपी व अन्य दस्तावेज वाट्सएप के माध्यम से दे दी.

अजय कुमार ने रविन्द्र कुमार मिश्रा को झांसे में लेने के लिए अपना सीबीआई का आई कार्ड भी भेज दिया.और लाखों रुपए रुपए की लाटरी जल्द से जल्द मिल सके इसके लिए कथित अधिकारी अरविंद कुमार से भी बात कराई व उनका भी आईकार्ड भेजा. रविन्द्र कुमार मिश्रा को दोनों शातिर ठगों ने बताया – लाटरी का पैसा मुंबई मुख्यालय एवं दिल्ली से कुल राशि 29 लाख रुपए मिलेगा.

यह सुनते ही पुलिस अधिकारी महोदय ठगों के जाल में फंसते चले गए और अंततः ठग लिए गए और अब आप पछता रहे हैं मगर इस घटना से यह संदेश दूध चला गया है कि जब पुलिस अधिकारी वह भी रिटायर्ड पुलिस अधिकारी जो जिंदगी भर जाने कितने ठगी के प्रकरणों का विवेचना करके अपराधियों को जेल भेजते हैं भी ठगी का शिकार हो सकते हैं तो फिर आम आदमी की बिसात क्या है अतः हमें अपने आसपास के तौर से सावधान रहने की आवश्यकता है.

आखिरी मंगलवार: भाग -1

   वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

सपना की शादी को 8 साल बीत चुके हैं. जब वह मायके से ब्याह कर पहली बार अपनी ससुराल आई थी, तो नईनवेली दुलहन का खूब स्वागत हुआ था. मंडप के नीचे मुंहदिखाई की रस्म में जो भी सपना को देखता, उस की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकता था. उसे याद है कि दिनभर शादी की रस्मों के चलते कब शाम हो गई थी, उसे पता ही नहीं चला. खाने के बाद रात को सपना की ननद प्रीति जब उसे सुहागरात वाले कमरे में ले गई तो फूलों से सजी सेज और कमरे की खुशबू से सपना की खुशी दोगुनी हो गई थी. सुहागरात को ले कर जो डर सपना के मन में था, उस की ननद की हंसीठिठोली ने दूर कर दिया था.

सपना पूरी रात के एकएक पल को इसी तरह रोमांटिक तरीके से जीना चाहती थी, पर सुभाष का उतावलापन भी वह साफ महसूस कर रही थी. वह चाहती थी कि वे एकदूसरे के नाजुक अंगों को चूमतेसहलाते आगे बढ़ें कि तभी अचानक सुभाष उस के जिस्म से कपड़े एकएक कर के हटाने लगा था. उन दोनों की सांसों की गरमाहट तेज होती जा रही थी.

अगले कुछ पलों में ही सुभाष के अंदर उठा तूफान एक झटके में ही शांत हो गया था और सपना की चाह अधूरी रह गई थी. सुभाष मुंह फेर कर दूसरी तरफ खर्राटे भर रहा था और सपना के अंदर लगी आग उसे बेचैन कर रही थी. शादी का एक साल बीतते ही सपना की सास उस की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगी थीं कि कब उन की बहू की गोद भरे और आंगन में बच्चे की किलकारियां गूंजें, मगर सपना सुभाष की कमजोरी जान गई थी. इसी के चलते साल दर साल बीतते गए, लेकिन सपना का मां बनने का सपना अधूरा ही रह गया.

घरपरिवार और रिश्तेदारों की चहेती सपना अब सब की नजरों में खटकने लगी थी. कोई तीजत्योहार हो या शादीब्याह का मौका औरतें उस की सूनी कोख को ले कर ताने देने लगी थीं. एक बार तो सपना अपने पति के साथ  सैक्सोलौजिस्ट के पास भी गई थी. वहां पर हुई जांच रिपोर्ट से उसे पता चल गया था कि वह तो मां बन सकती है, पर सुभाष के पिता बनने के कोई चांस नहीं थे. सपना इसी वजह से न जाने कितने मंदिरों और संतमहात्माओं के दरबार में मन्नत मांग चुकी थी, मगर फिर भी उस की गोद नहीं भर पाई.

सपना वैसे तो नए जमाने के खयालों की हिमायती लड़की थी, जो किसी तरह के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं रखती थी, पर समाज के तानों की वजह से वह अपनी सूनी गोद भरने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी. रातदिन, सोतेजागते इसी चिंता में वह सूख कर कांटा हुए जा रही थी. सुभाष की किराना दुकान आज भी इस छोटे से शहर में खूब चलती है. सुभाष दिनभर दुकानदारी में लगा रहता और रात को ही घर पहुंचता. सपना की सास रातदिन औलाद के लिए उसे भलाबुरा कहती, मगर सपना किसी से अपना दर्द नहीं बांट पाती थी.

ऐसा नहीं था कि औलाद न होने के तानों से अकेले सपना ही परेशान थी, बल्कि सुभाष भी दिनरात इसी चिंता में डूबा रहता. उस के यारदोस्त भी उसे ताने देने लगे थे. एक बार तो सुभाष के खास दोस्त ने उस की मर्दानगी का भी मजाक उड़ाया था. अपनी मर्दाना कमजोरी के चलते औलाद न होने के दुख ने उन दोनों की हंसीखुशी से भरी जिंदगी को बोझिल बना दिया था.

पिछले साल जब पास के गांव में रहने वाली सुभाष की बूआ उस के घर आई थी तो उसी दौरान बूआ ने बताया कि उस के गांव के पास ही एक मंदिर है, जहां पर धर्मराज स्वामी का दरबार लगता है. उन के दरबार में मंगलवार को हाजिरी लगाने से मन की हर मुराद पूरी हो जाती है. वैसे तो धर्मराज स्वामी के बारे में सपना ने भी सुन रखा था, लेकिन जब से बाबाओं द्वारा धर्म के नाम पर औरतों के साथ यौन शोषण की घटनाएं हुई हैं, उस का तो बाबाओं से भरोसा ही उठ गया है.

एक दिन अखबार में सपना ने उसी धर्मराज स्वामी का एक परचा देखा था, जिस में लिखा था कि केवल एक नारियल द्वारा सभी समस्याओं का समाधान किया जाता है. परचे में बताया गया था कि पतिपत्नी को एकदूसरे के वश में करने के अलावा औलाद भी पा सकते हैं. वह परचा देख कर सपना के मां बनने की उम्मीद एक बार फिर से जिंदा हो उठी. उस ने आसपड़ोस की औरतों से जब इस की चर्चा की तो कुछ औरतों ने तो इतना तक भरोसा दिलाया कि एक बार उन बाबा के दरबार में जा कर तो देख, तुझे औलाद जरूर होगी.

सपना ने जब सुभाष को धर्मराज स्वामी के दरबार के बारे में बताया और वहां चलने को कहा, तो सुभाष ने साफ मना कर दिया, ‘‘मैं इस तरह के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं करता.’’ सपना ने उसे समझने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘इतने सालों में हम ने औलाद के लिए कहांकहां की खाक नहीं छानी, तो इतने पास बूआ के गांव जाने में हर्ज क्या है.’’

सुभाष सपना का दर्द समझता था. वह उसे दुखी नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने यह सोच कर हां कर दी कि इसी बहाने बूआ के घर घूमना भी हो जाएगा.

सुभाष और सपना मंगलवार को बूआ के गांव पहुंचे, तो बुआ उन्हें शाम के समय मंदिर ले गई. मंदिर के बड़े दरवाजे से अंदर जाते ही उन दोनों ने देखा कि गले में लाल गमछा डाल कर घूम रहे सेवादार, जिन में औरतें भी शामिल थीं, हर आनेजाने वाले से पूछताछ कर रही थीं. लोगों के सामने वे धर्मराज की तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रही थीं. सपना और सुभाष ने भी धर्मराज स्वामी से मिलने की इच्छा जताई तो सेवादारों ने उन्हें अंदर भेज दिया.

अंदर एक बड़े से हाल में एक चबूतरे पर बिछे आसन पर पीले कपड़ों से सजेधजे तकरीबन 45-50 साल की उम्र के धर्मराज स्वामी के सामने लोगों का हुजूम लगा हुआ था. लाइन में खड़े लोगों में नारियल दे कर उन के पैर छूने की होड़ सी मची थी. लोग उन के पैर छू कर अपनी परेशानी बताते और धर्मराज स्वामी उन्हें 5 से 7 मंगलवार को दरबार में हाजिरी लगाने की सलाह देते.

देखतेदेखते सपना का नंबर भी आ गया. बूआ के साथ सपना और सुभाष ने धर्मराज के पैर छूते हुए नारियल दे कर अपनी परेशानी बताई.

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सत्यकथा: ठग भाभियों की टोली

सुरेशचंद्र रोहरा

‘‘आओआओ, भाभी बहुत दिनों बाद आई हो, आओ.’’ कह कर सरिता

कुर्रे ने सुनीता साहू उर्फ कुमकुम का स्वागत करते हुए ड्राइंग रूम में बैठाया.

‘‘बहन, मैं इधर से गुजर रही थी तुम्हारी याद आ गई. सोचा, तुम्हारा हालचाल ले लूं और हो सके तो तुम्हें भी मालामाल करवा दूं.’’ सुनीता साहू उर्फ  कुमकुम ने बड़े ही मीठे स्वर से सरिता कुर्रे से कहा.

अपने मालामाल होने की बात सुन कर के सरिता कुर्रे चौकन्नी हो गई. उस ने कहा, ‘‘भाभी, क्या बात है कैसे मालामाल करोगी भला बताओ तो!’’

इस पर कुमकुम ने बिंदास हो कर कहा, ‘‘आप को सोना चाहिए क्या, बताओ. असली गोल्ड बहुत ही कम पैसों में?’’

‘‘अच्छा भाभी, भला वो कैसे?’’ सविता कुर्रे ने आश्चर्य व्यक्त किया.

‘‘देखो, मैं तो चाहती हूं कि मेरे जितने भी जानपहचान वाले हैं, वे इस का फायदा उठा लें. मेरे कुछ ऐसे लोगों से संबंध हैं कि हमें बहुत सस्ते में सोना मिल सकता है. कुछ लोग तो मालामाल हो भी गए हैं.’’यह सुन कर सरिता की बांछें खिल गईं. मोहक अदा से उस ने कहा, ‘‘ऐसा है तो बताओ मैं भी सोना ले लूं.’’

‘‘बताऊंगी, बताती हूं थोड़ा चैन की सांस तो ले लेने दो.’’ कह कर कुमकुम सरिता कुर्रे के  यहां ड्राइंगरूम में आराम से पसर कर बैठ गई.

सरिता कुर्रे ने सुनीता साहू उर्फ कुमकुम की अब खूब आवभगत करनी शुरू कर दी. उस के लिए किचन से कुछ मीठा, नमकीन ले आई और पूछा, ‘‘क्या पियोगी चाय या ठंडा?’’

कुमकुम ने सहज भाव से कहा, ‘‘बहन तकलीफ मत करो, जो घर में है चलेगा.’’ और आराम से बैठ कर के मिठाई पर हाथ साफ करने लगी.

चायपानी करने के बाद सुनीता उर्फ कुमकुम ने रहस्यमय स्वर में सरिता कुर्रे से कहा, ‘‘अभी सोने का दाम क्या चल रहा है तुम्हें मालूम है?’’

‘‘हां, कुछकुछ तो पता है लगभग 40 हजार रुपए तोले का रेट हो गया है.’’

‘‘हां, तुम सही कह रही हो. आज के समय में 42 हजार रुपए तोला का मार्केट भाव है. तुम्हें पता है मैं कितने में दिलवा सकती हूं.’’

‘‘बताओ, कितने में मिल जाएगा.’’ उत्सुकतावश सरिता ने कहा.

‘‘अगर मैं आप को 25 से 28 हजार रुपए तोला सोना दिलवा दूं तो बताओ, कैसा रहेगा?’’

यह सुन कर के सरिता कुर्रे खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘ऐसा है तो मैं 30 लाख रुपए का सोना ले लूंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम पैसे का इंतजाम करो. मगर हां सुनो, यह बात ज्यादा हल्ला नहीं करने की है. हमें चुपचाप फायदा उठा लेना है.’’

 

यह सुन कर के कुमकुम गंभीर हो गई और सिर हिलाते हुए सहमति से उस ने कहा, ‘‘तुम सही कह रही हो, दीवारों के भी कान होते हैं. मैं ध्यान रखूंगी किसी को भी नहीं बताऊंगी. मगर तुम मुझे जल्द से जल्द सोना दिलवा दो.’’

‘‘हां बहन, सोने में ही इनवैस्ट करना सब से समझदारी का काम है. अब देखो न 5 साल पहले 20 हजार रुपए तोला सोना हुआ करता था. आज इतना महंगा हो गया है और हर साल और भी ज्यादा महंगा होता जाएगा.’’

सरिता कुर्रे सुनीता साहू उर्फ कुमकुम की बातों से सहमत थी. वह महसूस कर रही थी कि सुनीता उस का बहुत भला करने आई है. उस ने फिर भी जिज्ञासावश पूछा, ‘‘भाभी, आखिर तुम मुझे इतना सस्ता सोना कहां से और कैसे दिलओगी.’’

‘‘अब सुनो, मैं बताती हूं तुम से क्या छिपाना. तुम तो मेरी बहन जैसी हो, क्या है कि तुम ने मणप्पुरम गोल्ड का नाम सुना है. यह एक बैंक है, जो लोगों का सोना गिरवी रख कर के उन्हें पैसे लोन देता है. कुछ जरूरत के मारे, बेचारे लोग यहां पैसा लेते हैं, अपना सोना भी गिरवी रख देते हैं और फिर बाद में छुड़ा नहीं पाते. मैं तुम को बताऊं मेरा एक भाई इसी कंपनी में काम करता है. बस जो लोग अपना सोना यहां से नहीं ले पाते, उसे सेटिंग कर के हम सस्ते में ले लेते हैं. अब तुम इस बात को किसी को बताना नहीं, नहीं तो तुम्हारा खेल बिगड़ जाएगा.’’

सविता कुर्रे ने यह बात सुनी तो उसे पूरी तरह विश्वास हो गया कि सुनीता साहू उर्फ कुमकुम की एकएक बात सौ फीसदी सही है.

चलतेचलते कुमकुम ने कहा, ‘‘ तुम  रुपए की व्यवस्था जितनी जल्दी हो सके कर लो. फिर देखना कैसे तुम्हें मैं मालामाल करवा दूंगी.’’

सुनीता उर्फ कुमकुम चली गई. मगर सरिता कुर्रे की तो मानो रातों की नींद उड़ गई. वह रात भर सोचती रही कि किस तरह वह आने वाले समय में सोना खरीद लेगी और मालामाल हो जाएगी. रात भर जागजाग के उस ने अपने सारे बैंक बैलेंस के रुपयों की गिनती लगानी शुरू कर दी.

उस ने जोड़ा तो उस के पास विभिन्न खातों में लगभग 40 लाख रुपए का अमाउंट होने का अंदाजा हो गया. उस ने मन ही मन निर्णय किया कि कल ही 1-2 बैंक से 8-10 लाख  रुपए इकट्ठा कर के कुमकुम को पहली किस्त में दे कर के सोना ले लेगी. उस ने सोचा एक साथ दांव लगाना ठीक नहीं, पहले कम पैसे दे कर के देख लो क्या होता है.

 

सरिता को अपनी होशियारी पर नाज हो आया. वह सोचने लगी कि यही सही रहेगा एक साथ 40 लाख रुपए का सोना लेना और रुपए देना ठीक नहीं रहेगा. कहीं कोई गड़बड़ हो गई तो…

उस ने यह बात अपने पति को भी नहीं बताई और सोचा कि पहले 10 लाख रुपए का सोना मैं अपने हाथ ले लूं फिर पतिदेव को बताऊंगी तो वह भी कितने खुश होंगे.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गांव खमतराई में सविता कुर्रे अपने परिवार के साथ रहती थी. यहीं पास ही भनपुरी में सुनीता साहू उर्फ कुमकुम हाल ही में उड़ीसा नवापारा से आ कर रहने लगी थी. अपने अच्छे व्यवहार से आसपास के लोगों से हिलमिल कर सब की भाभी बन गई थी.

दूसरे दिन सरिता कुर्रे अपने स्थानीय बैंक पहुंची और वहां से 7 लाख रुपए निकलवा कर के घर आ कर सुनीता साहू को फोन लगाया और उसे बताया, ‘‘भाभी, पैसों का इंतजाम हो गया है. तुम कब आओगी?’’

यह सुन कर सहज भाव से कुमकुम ने कहा, ‘‘मैं अभी तो कहीं व्यस्त हूं. शाम को आती हूं.’’

 

सरिता कुर्रे बहुत बेचैन थी. दोपहर को एक दफा और फोन कर के कुमकुम से बात की और आश्वस्त हो गई कि शाम को 4 बजे कुमकुम आएगी और ठीक शाम को 4 बजे कुमकुम घर पर आ पहुंची तो मानो सरिता कुर्रे की खुशी का ठिकाना नहीं था.

कुमकुम के साथ पूर्णिमा और प्रतिभा गीता महानंदा नामक 2 महिलाएं भी थीं. कुमकुम ने उन का भी सरिता से परिचय कराया और बताया कि ये मेरी सहेलियां हैं और मेरी मदद करती हैं.

तीनों महिलाओं ने सरिता को ऊंचेऊंचे ख्वाब दिखा करके कहा तुम्हारे कितना पैसा है बताओ.

इस पर सरिता ने 7 लाख रुपए ला कर के उन के सामने रख दिया और कहा, ‘‘अभी इतने ही रुपए की व्यवस्था हुई है. मुझे इतने का सोना दिलवा दो.’’

‘‘अच्छी बात है हम तुम्हें कल 7 लाख रुपए का सोना दिलवा देंगी.’’

यह कह कर कुमकुम ने 7 लाख रुपए अपने पास रखे और सरिता कुर्रे को आश्वस्त कर तीनों चली गईं.

यह मार्च, 2019 का महीना था. इस दरमियान सरिता कुर्रे कई दिनों तक सुनीता साहू का इंतजार करती रही. फोन पर बात होती तो वह कहती, ‘‘बहन, मैं अचानक शहर से बाहर चली गई हूं 2 दिन बाद आ रही हूं, तुम बिलकुल चिंता मत करो. यह समझो कि बैंक में पैसा तुम्हारा सुरक्षित है.’’

सरिता कुर्रे को इस तरह बारबार विश्वास दिलाया जाता रहा. इस दरमियान खुद कुमकुम ने सरिता को फोन किया और उसे भरोसा दिलाती रही.

एक दिन अचानक सुनीता साहू उर्फ कुमकुम अनुसइया, पूर्णिमा, प्रतिभा गीता महानंद इन 4 महिलाओं के साथ घर आई और बोली,  ‘‘बहन, तुम तनिक भी चिंता न करो. कहो तो अभी तुम्हें मैं पैसे लौटा दूंगी, बैंक का मामला है, लो तुम खुद बैंक कर्मचारी से बात कर लो.’’

यह सुन कर के सरिता कुर्रे को ढांढस बंधा. कुमकुम ने उसे एक नंबर दिया जोकि मणप्पुरम बैंक के एक अधिकारी शेखर का बताया गया. सरिता कुर्रे ने बात की तो बताया गया कि वह मणप्पुरम गोल्ड लोन बैंक का अधिकारी बोल रहा है. सरिता ने जब सुनीता साहू के बारे में पूछा तो उधर से जवाब मिला, ‘‘हां, हम उस को जानते हैं. उस का हमारे यहां 85 तोला सोना गिरवी रखा हुआ है जो सुरक्षित है.’’

बैंक अधिकारी शेखर से बात करने के बाद सरिता के टूटते मन को ढांढस बंधा. उसे सुकून महसूस हुआ. जब सुनीता ने देखा कि सरिता कुर्रे निश्चिंत हो गई है तो उस ने कहा, ‘‘बहन, देखो मैं तुम्हारे लिए कुछ सोना लाई हूं. इसे अभी रख लो बाकी मैं 82 तोला तुम्हें और जल्दी दे दूंगी. मैं पैसे की व्यवस्था कर रही हूं सारा पैसा दे कर के एक साथ पूरा सोना में बैंक से ले लूंगी.’’

इतना सुनते ही सरिता बोली, ‘‘अब मुझे तुम पर पूरा विश्वास हो गया है. बताओ, तुम्हें कुल कितना पैसा वहां जमा करना है?’’

इस पर सुनीता ने कहा, ‘‘मुझे 14 लाख रुपए और चाहिए इस के बाद मैं सारा गोल्ड मणप्पुरम गोल्ड लोन ब्रांच से छुड़वा लूंगी.’’

सुनीता को सरिता ने आश्वस्त किया, ‘‘ठीक है, ऐसा है तो रुपए का मैं इंतजाम कर देती हूं.’’

दूसरे दिन सरिता कुर्रे ने अपने पति व घर के अन्य लोगों को बताए बगैर बैंक से सारे रुपए निकाले और शाम को जब कुमकुम अपनी महिला मंडली के साथ आई तो 14 लाख रुपए उस के सामने रख दिए गए.

यह देख कर के सुनीता ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘बहन, यह तुम ने बहुत अच्छा किया. अब मैं ये पैसे जमा कर के सारा सोना कल ही बैंक से छुड़वा कर के तुम्हें दे दूंगी.’’ यह कह कर  सुनीता वहां से चली गई.

दूसरे दिन जब सरिता कुर्रे ने फोन किया तो सुनीता ने कहा, ‘‘मैं ने पैसे जमा कर दिए हैं. बस, थोड़ी सी प्रक्रिया बाकी है. जैसे ही गोल्ड हाथ आएगा मैं आ कर के तुम्हें सौंप दूंगी.’’

2-3 दिन ऐसे ही गुजर गए. कोई न कोई बहाना बना कर के सुनीता साहू उसे टाल रही थी. अब सरिता कुर्रे की चिंता बढ़ती चली गई. एक दिन अचानक उस की एक सहेली रमा  ने कहा, ‘‘देखो, कैसेकैसे ठग पैदा हो गए हैं. कवर्धा में सोना दिलाने के नाम पर कुछ महिलाओं ने ठगी की है, मामला पुलिस तक पहुंच गया है.’’

यह सुन कर सरिता कुर्रे पसीनापसीना हो गई और सोचने लगी कि क्या सचमुच ऐसा हुआ है? क्या वह भी कुमकुम के हाथों ठग ली गई है? उस ने रमा से कहा, ‘‘बहन, कुमकुम कैसी महिला है?’’

इस पर हंसते हुए रमा ने कहा, ‘‘सुना है कुमकुम रोज पति बदलती है. अभी चौथे पति के साथ रह रही है. उस का रंगढंग मुझे ठीक नहीं लगता, क्यों क्या बात है?’’

‘‘अब क्या बताऊं, एक दिन कुमकुम आई थी और मुझ से पैसे मांग रही थी कुछ लाख रुपए.’’ सरिता कुर्रे ने बात छिपाते हुए कहा.

‘‘लाखों रुपए! उस की औकात है कुछ लाख रुपए गिनने की?’’  रमा ने व्यंग्यभाव से  कहा, ‘‘देखो, कुमकुम जैसी महिलाओं पर तुम एक पैसे का भी भरोसा नहीं करना.’’

महिला मित्र रमा की बातें सुन कर के सविता कुर्रे की आंखें खुल गईं. उस ने सारी बातें रमा को बताईं और उस से सलाहमशविरा किया.

 

सरिता कुर्रे उसी दोपहर रमा के साथ अचानक सुनीता साहू के घर भनपुरी पहुंच गई. सुनीता घर पर ही थी. सरिता ने कहा, ‘‘कहां है मेरा सोना, कब दोगी, कितने दिन हो गए.’’

यह सुन कर के सुनीता साहू ने उसे अपने पास बैठाया और कहा, ‘‘बहन, मुझे कुछ समय दो.’’

‘‘मैं और कितना समय दूं. मैं कुछ नहीं जानती, मुझे मेरा सोना दो नहीं तो मैं पुलिस में जा रही हूं.’’ सरिता कुर्रे ने साफसाफ चेतावनी देते हुए कहा.

यह सुन कर के सुनीता साहू मुसकराई और बोली, ‘‘यह तुम बहुत बड़ी गलती करोगी, पुलिस भला हमारा क्या कर लेगी.’’

इतने में घर के भीतर से 2-3 पुरुष बाहर आए. ये थे पति मुकेश चौबे, उस के दोस्त सिंधु वैष्णव, बंटी उर्फ शेखर. इन लोगों ने सरिता से बातचीत में साफसाफ कहा, ‘‘तुम पैसे भूल जाओ. क्या सबूत है कि तुम ने पैसे दिए हैं?’’

यह सुन कर सरिता कुर्रे मानो आसमान से जमीन पर आ गिरी. उस ने तड़प कर कहा, ‘‘तुम लोग इस तरीके से झूठ पर उतर आओगे, मैं ने सोचा नहीं था.’’

सरिता ने सुनीता साहू की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम मुझे अगर आज पैसे नहीं दोगी तो ठीक नहीं होगा.’’ और यह कह कर के सरिता रमा के साथ घर से चली गई.

दिन बीतता चला गया, जब उसे लगा कि वह बुरी तरीके से ठग ली गई है तो उस की आंखों के आगे अंधेरा घिर आया.

अगले दिन सरिता कुर्रे सहेली रमा के साथ  थाना खमतराई पहुंची और रिपोर्ट दर्ज कराई. उस ने थानाप्रभारी को बताया कि वह शिवानंद नगर सेक्टर-1 खमतराई रायपुर में रहती है. फरवरी, 2019 में सुनीता उर्फ कुमकुम साहू के साथ अन्य महिलाएं उस के घर आईं तथा उसे सस्ते दाम में सोना देने का प्रस्ताव रखा. कुछ दिन बाद वह सभी दोबारा आईं तथा 85 तोला सोना 28 हजार रुपए प्रति तोला देने की बात की.

इस तरह से उन्होंने उस से सोना दिलाने के नाम पर कुल 22 लाख 70 हजार रुपए ठग लिए.

सोना देने के नाम पर लाखों रुपए की ठगी की घटना को डीआईजी एवं एसएसपी अजय यादव ने गंभीरता से लेते हुए एएसपी (सिटी) लखन पटले, एसपी (सिटी उरला) अक्षय कुमार एवं थानाप्रभारी खमतराई विनीत दुबे को आरोपियों की गिरफ्तारी हेतु आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

आरोपियों की गिरफ्तारी में लगी टीम ने आरोपियों की खोजबीन शुरू कर दी. आखिर पुलिस को आरोपी सुनीता साहू उर्फ कुमकुम, पी. अनुसुईया राव, पूर्णिमा साहू, प्रतिभा मिश्रा एवं गीता महानंद को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि सुनीता साहू उर्फ कुमकुम उड़ीसा के जिला नवापारा की है. सिर्फ छठवीं कक्षा तक पढ़ी है.

उस की जब पति से नहीं बनी तो उसे छोड़ कर रायपुर आ गई और यहां महेश राव से विवाह कर लिया. कुछ समय बाद जब उस से भी नहीं पटी तो तीसरा पति बनाया और वर्तमान में चौथे पति मुकेश चौबे के साथ वह रह रही थी और उस का जीवन ऐश के साथ बीत रहा था. रोज गहने और कपड़े खरीदती, महंगी शराब पीती थी. अपने गिरोह के पुरुष सदस्य को मणप्पुरम कंपनी का कर्मी बताते हुए उस से मोबाइल फोन पर बात करा दी जाती थी, जिस से शिकार आसानी से इन पर भरोसा कर इन के झांसे में आ जाते थे.

आरोपियों द्वारा जिला कवर्धा में भी इसी तरीके से लोगों को सस्ते दाम में सोना देने का झांसा दे कर लगभग 17 लाख रुपए की ठगी की गई थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस द्वारा घटना में शामिल सुनीता साहू उर्फ कुमकुम सहित 5 महिला आरोपियों व उस के चौथे पति मुकेश चौबे सहित एक पुरुष साथी मुश्ताक को गिरफ्तार कर लिया था तथा शेष आरोपियों की पतासाजी कर उन के छिपने के हर संभावित स्थानों में लगातार छापेमारी कर उन की गिरफ्तारी के हरसंभव प्रयास किए जा रहे थे.

महिलाओं के ठग गिरोह की सरगना सुनीता साहू ने रामेश्वर नगर की रहने वाली नरगिस बेगम को अपनी बेटी रानी के एक्सीडेंट की झूठी कहानी सुना कर इमोशनल किया था. सुनीता साहू ने सोना फाइनेंस कंपनी में गिरवी होने की बात कही. बारबार बेटी की इमोशनल कहानी सुन कर नरगिस उस की बात में आ गई और कुमकुम को 2 लाख रुपए दे दिए.

पैसा नहीं मिला तो नरगिस बेगम ने मणप्पुरम गोल्ड लोन बैंक में जा कर गिरवी रखे जेवर के बारे में पता किया तो ठगी के राज से परदा उठ गया. वहां बताया गया कि कुमकुम का कोई जेवर गिरवी था ही नहीं. नरगिस को यह समझते देर नहीं लगी कि कुमकुम ने उसे ठग लिया है.

पुलिस की जांच में सामने आया कि कुमकुम इस के पहले भी जिला कवर्धा में पैसा डबल करने की फरजी स्कीम चला चुकी है. कवर्धा में वह 17 लाख की हेराफेरी कर चुकी है. शातिर कुमकुम हर साल अपना पता बदल लिया करती थी. पुलिस यह भी पता लगा रही है कि 4 शादियां करने के पीछे की असल वजह क्या है, दूसरी तरफ ठग भाभियों के गैंग का शिकार हुई महिलाएं अपने रुपयों के वापस मिलने की आस में हैं.

इसी तरह पुलिस ने जांच में पाया कि आरोपियों द्वारा सोना दिलाने के नाम पर  इंदु सिंह से 2 लाख 77 हजार रुपए, नरगिस साखरे से ढाई लाख रुपए, अनिता वर्मा से साढ़े 5 लाख रुपए, मिसेज चौहान से एक लाख 70 हजार रुपए तथा अन्य लोगों को बैंक में रखे सोना को सस्ते में दिलाने के नाम से कुल 35 लाख 18 हजार रुपए की ठगी की गई थी.

खमतराई पुलिस ने 28 जून, 2021 को आरोपी ठग महिलाओं के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां माननीय न्यायालय द्वारा इन ठग महिलाओं को सेंट्रल जेल रायपुर भेज दिया गया.

सत्यकथा- प्यार की ये कैसी सजा

सुबह के करीब 7 बजे होंगे. थानाप्रभारी आशीष चौधरी नाइट ड्यूटी से अपने घर लौटे थे. वरदी उतार कर खूंटी से टांग ही रहे थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. काल करने वाला उन के ही सिलवानी थाने का कांस्टेबल था. काल रिसीव करते ही आशीष चौधरी ने जैसे ही हेलो कहा, दूसरी तरफ से आवाज आई.

‘‘सर, जमुनिया घाटी पर कोई एक्सीडेंट हुआ है, जिस में 2 युवतियां घायल हुई हैं.’’

पूरी बात सुने बिना ही थानाप्रभारी ने निर्देश दिया ‘‘उन्हें तत्काल हौस्पिटल में एडमिट कराओ.’’

कांस्टेबल ने जानकारी देते हुए बताया, ‘‘सर, घायल युवतियों को एक एंबुलेंस चालक ने सिविल अस्पताल सिलवानी में भरती करा दिया है.’’

‘‘ओके, ड्यूटी पर तैनात स्टाफ को हौस्पिटल भेजो. मैं भी पहुंच रहा हूं.’’

इतना कह कर वह अपनी वरदी को खूंटी से उतार वह फिर से तैयार होने लगे. घर में उन की पत्नी ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘पुलिस की नौकरी में रातदिन चैन कहां.’’ यह बात 28 जून, 2021 की है.

यह पहला अवसर नहीं था, जब थानाप्रभारी आशीष घर लौटने के बाद फिर से ड्यूटी पहुंच रहे थे. पिछले 8-10 साल की नौकरी का उन का अनुभव यही था कि पुलिस की नौकरी में सातों दिन और चौबीसों घंटे अपना फर्ज निभाना पड़ता है.

सिलवानी थाने के प्रभारी आशीष चौधरी एसआई रामसुजान पांडे को साथ ले कर सिविल हौस्पिटल पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर दंग रह गए. हौस्पिटल में भरती दोनों युवतियों के कपड़े खून से सने हुए थे.

दोनों युवतियों के गले पर बने घावों को देख कर सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता था कि इन दोनों को जान से मारने की नीयत से उन पर धारदार हथियार से हमला किया गया था.

हौस्पिटल में मौजूद पुलिस स्टाफ ने मेडिको लीगल एक्सपर्ट को बुलाया तो उन्होंने बताया कि दोनों युवतियां एक्सीडेंट में घायल नहीं हुई हैं. भोपाल से सिलवानी की तरफ आ रहे एंबुलेंस चालक शाहरुख खान को दोनों युवतियां जमुनिया घाटी के ऊपर सड़क पर घायल अवस्था में मिली थीं. शाहरुख की नजर खून से लथपथ सड़क पर पड़ी इन युवतियों पर पड़ी तो गाड़ी रोकी.

एंबुलेंस चालक ने तत्काल पुलिस को सूचना दी और वहां से निकल रहे एक डंपर को रोक कर ड्राइवर सुरेंद्र सिंह की मदद से दोनों को तत्काल सिविल अस्पताल सिलवानी ले कर आ गया.

पहले तो शाहरुख भी यही समझ रहा था कि किसी गाड़ी ने इन्हें टक्कर मारी होगी, लेकिन घायल युवतियों ने उसे बताया कि उन दोनों को धक्का दे कर घाटी से नीचे धकेला गया है.

युवतियों का प्राथमिक उपचार सिलवानी में कराने के बाद जब उन की हालत सामान्य हुई तो उन के बयान लिए गए. आगे के इलाज के लिए रायसेन जिला अस्पताल रेफर करने के पहले उन दोनों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम जरीना और तबस्सुम बताए. पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह दिल दहलाने वाली थी.

मंडला जिले की निवास तहसील में रहने वाले जाकिर खान (परिवर्तित नाम) की 2 बेटियां जरीना और तबस्सुम हैं. जाकिर खान की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी, इसलिए वह हमेशा इस बात के लिए चिंतित रहता कि बेटियों की शादी किस तरह होगी. जरीना और तबस्सुम आजाद खयालात रखने वाली थीं.

पिता के कंधों का बोझ कम करने के लिए 22 साल की जरीना और 20 साल की तबस्सुम करीब ढाईतीन साल पहले नौकरी की तलाश में भोपाल आ गईं. उन्हें भोपाल के आदर्श प्रिंटिंग प्रेस में काम मिल गया तो जरीना और तबस्सुम अशोका गार्डन में किराए के मकान में रहने लगीं.

करीब 2 साल पहले की बात है. दोनों बहनें प्रिंटिंग प्रेस पर अपने काम में व्यस्त थीं, तभी एक युवक प्रेस पर आया. काउंटर पर बैठी जरीना से वह वोला, ‘‘मुझे मैडिकल स्टोर्स की बिल बुक प्रिंट करानी है.’’

अपने काम में व्यस्त जरीना ने कागज पेन देते हुए उस नवयुवक से बिल बुक का मैटर बनाने को कहा. थोड़ी देर बाद जरीना ने नजरें उठा कर जैसे ही उस युवक को देखा तो बस देखती ही रह गई.

गोरे रंग के स्मार्ट लड़के ने उसे सम्मोहित कर दिया था. जरीना ने और्डर बुक करते हुए उस का नाम व मोबाइल पूछा तो उस लड़के ने अपना नाम निखिल गौर बताया.

21 साल का निखिल भोपाल के सुभाष नगर इलाके में रहता था. निखिल ने बिल बुक प्रिंट होने की जानकारी लेने के लिए जरीना का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

बिल बुक प्रिंट होने की जानकारी लेने की गरज से निखिल और जरीना की रोज मोबाइल फोन पर बातें होने लगीं. इस तरह जरीना की निखिल से दोस्ती हो गई. तबस्सुम अब बड़ी बहन जरीना को घंटों फोन पर ही बिजी देखती.

कभीकभी निखिल अपने दोस्त करण परिहार को ले कर आदर्श प्रिटिंग प्रेस पर जरीना से मिलने जाता था. 20 साल का करण गोविंदपुरा भोपाल का रहने वाला था. जब निखिल जरीना के साथ प्यारमोहब्बत की बातें करता तो तबस्सुम और करण भी एकदूसरे से नजरें मिलाने लगे.

इसी दौरान तबस्सुम की दोस्ती भी करण सिंह परिहार से हुई जो पाइप फैक्ट्री में काम करता था.

अब दोनों बहनें दोस्तों की तरह अपने प्यार की चर्चा आपस में करती रहती थीं. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई .जब भी उन्हें समय मिलता वे अपने बौयफ्रैंड निखिल गौर और करण सिंह परिहार के साथ घूमने निकल जातीं.

किसी पार्क में दोनों प्रेमी जोड़े बाहों में बाहें डाले घूमते और एकांत पाते ही एकदूसरे को चूमते हुए प्यार का इजहार करते. दोनों बहनों का प्यार अब परवान चढ़ चुका था. जरीना और तबस्सुम अपने बौयफ्रैंड के बिना एक दिन भी नहीं रह पाती थीं.

उन्हें जब भी मौका मिलता अशोका गार्डन के किराए वाले कमरे में निखिल और करण को बुला लेतीं. जरीना और तबस्सुम के अपने प्रेमियों के साथ शारीरिक संबंध भी बनने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले इन प्रेमियों में तजुर्बे की कमी थी. भले ही वे प्रेम की पींगें बढ़ा रहे थे, मगर उन का प्यार वासना के रंग में रंगा हुआ था. यही वजह थी कि एकदूजे के प्यार में पागल प्रेमी जोड़े इस कदर डूब जाते कि उन्हें शारीरिक संबंध बनाते समय रखने वाली सावधानियों का ध्यान ही नहीं रहता.

बिना सोचेविचारे बनाए गए असुरक्षित यौन संबंधों के चलते जरीना और तबस्सुम पेट से हो गईं. पेट से होते ही दोनों अपने प्रेमियों पर शादी करने का दबाव बनाने लगीं.

निखिल और करण इतनी जल्दी शादी के लिए तैयार नहीं थे. पहले तो दोनों ने एक निजी क्लीनिक में उन का गर्भपात करा दिया और जब शादी का जिक्र होता तो दोनों चुप्पी साध कर रह जाते.

एक रात जरीना से मिलने निखिल उस के कमरे पर आया था. जरीना से मिलते ही निखिल उसे अपनी बाहों में भरने को बेताब हो रहा था, परंतु जरीना ने उसे अपने से दूर करते हुए निखिल से कहा, ‘‘देखो निखिल, तुम मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ मत करो. मेरे साथ शादी कर लो, वरना मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’

हमेशा की तरह निखिल ने जरीना का मन बहलाते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, मैं शादी करने के लिए खुद तैयार हूं, लेकिन घर वाले आसानी से मानने वाले नहीं हैं. मुझे डर है कि वे कोई बखेड़ा खड़ा न कर दें.’’

‘‘प्यार में डर कैसा निखिल, हम कहीं मंदिर में शादी कर लेते हैं.’’ जरीना बोली.

‘‘मैं करण से बात कर के कोई तरकीब सोचता हूं, मुझे थोड़ा वक्त और दो जरीना.’’ निखिल ने उस के माथे को चूमते हुए कहा.

उस दिन के बाद निखिल जब करण से मिला तो करण ने बताया कि तबस्सुम भी उस पर शादी करने दबाब डाल रही है.

दोनों ने प्यार के नाम पर मजे तो खूब लूट लिए, मगर शादी करने के नाम से उन के पसीने छूट रहे थे. निखिल और करण को यह उम्मीद कतई नहीं थी कि ये लड़कियां हाथ धो कर उन के पीछे ही पड़ जाएंगी.

निखिल के पिता का कुछ समय पहले देहांत हो गया था. घर में उस की मां और एक भाई था. मां को उस से काफी उम्मीदें थीं. करण के पिता रात की पारी में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करते थे.

निखिल और करण को पता था कि दूसरे धर्म की लड़कियों से उन के घर वाले कभी शादी करने की इजाजत नहीं देंगे. रातदिन निखिल और करण इसी चिंता में परेशान रहने लगे. उन का प्यार का भूत उतर चुका था.

जरीना और तबस्सुम के साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाले निखिल और करण ने आखिरकार ऐसा निर्णय ले लिया, जिस की कल्पना जरीना और तबस्सुम ने कभी सपने में भी नहीं की होगी.

दोनों ने अपनी प्रेमिकाओं को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने की योजना बना ली. निखिल और करण ने जरीना और तबस्सुम को झांसा दिया कि हम लोग शादी करने को राजी हैं. करण ने चालबाजी के साथ कहा ‘‘भोपाल में शादी करने में घर वाले रोड़ा बन सकते हैं.’’

निखिल ने बात को आगे बढ़ाते हुए सुझाव दिया, ‘‘मेरे एक चाचा रायसेन जिले के सिलवानी में रहते हैं. हम ने उन के बेटे अंकित को सब कुछ बता दिया है. हम वहां पहुंच कर शादी कर लेंगे.’’

जरीना और तबस्सुम निखिल और करण के शादी के लिए रजामंद होने से खुशी के मारे चहक रही थीं. योजना के मुताबिक निखिल व करण ने दोनों युवतियों को सिलवानी चलने को कहा.

रविवार 27 जून, 2021 की शाम को 6 बजे निखिल व करण तथा जरीना और तबस्सुम को ले कर भोपाल से सिलवानी के लिए दीपक ट्रेवल्स की एक बस में सवार हो कर रवाना हो गए.

रात करीब 11 बजे सिलवानी पहुंचने से पहले ही योजनाबद्ध तरीके से युवकों ने बस को जमुनिया घाटी के पास रुकवाया. बस के रुकते ही चारों लोग बस से उतर गए. निखिल का चचेरा भाई अंकित पटेल बाइक ले कर वहां पहले से उन का इंतजार कर रहा था. अंकित पहले बाइक पर करण व तबस्सुम को बैठा कर घाटी की ओर ले गया. तबस्सुम दोनों के बीच में बैठी थी.

बमुश्किल 2-3 किलोमीटर का फासला तय हुआ था कि करण ने तबस्सुम के दुपट्टे से गले में फंदा डाल दिया. पहले तो तबस्सुम को लगा कि करण उस के साथ कोई चुहलबाजी कर रहा है, मगर जब उस का दम घुटने लग तो वह तड़पने लगी. फिर बाइक रोक कर दोनों ने तबस्सुम पर चाकू से हमला कर के उसे वहीं छोड़ दिया.

फिर अंकित अकेला बाइक ले कर निखिल और जरीना को लेने चला गया. जरीना के वहां पहुंचते ही निखिल ने उस के सिर पर पत्थर से हमला कर दिया. अचानक हुए इस हमले से जरीना बेहोश हो गई. दोनों बहनों को गंभीर रूप से घायल कर मरणासन्न हालत में निखिल, करण और अंकित ने घाटी के नीचे जंगल में फेंक दिया.

तीनों वहां से बाइक से नौनिया बरेली गांव पहुंच गए. वहां जा कर उन्होंने एक हैंडपंप पर अपने कपड़ों पर लगे खून के दागधब्बों को धो लिया. इस के बाद निखिल और करण को सुबह की बस में भोपाल की ओर रवाना कर अंकित वहां से अपने गांव मढि़या पगारा चला गया.

रात के चौथे पहर में जब जरीना और तबस्सुम को होश आया तो उन्होंने अपने आप को एक गहरी खाई में पाया. खून से लथपथ दोनों बहनें दर्द से कराह रही थीं. हिम्मत जुटा कर जैसेतैसे दोनों बहनें धीरेधीरे घाटी चढ़ कर सड़क पर आ गईं.

तब तक सुबह का उजाला दिखने लगा था. दोनों बहनें सड़क से गुजरने वाले वाहनों को हाथ हिला कर रोकने का इशारा करतीं, मगर कोई उन की मदद के लिए नहीं रुक रहा था.

तभी भोपाल से सिलवानी की तरफ जा रहे एक एंबुलेंस के चालक शाहरुख की नजर सड़क पर खून से लथपथ उन दोनों बहनों पर पड़ी. उस ने एंबुलेंस रोक कर देखा तो दोनों के कपड़े खून से सने थे और वे दर्द से कराह रही थीं.

शाहरुख ने सड़क से गुजर रहे एक डंपर को रोक कर उस के ड्राइवर से मदद मांगी. डंपर ड्राइवर सुरेंद्र सिंह की मदद से दोनों बहनों को वह सिलवानी अस्पताल ले आया. इस तरह जरीना और तबस्सुम की जान बच गई.

सिलवानी थानाप्रभारी आशीष चौधरी सूचना मिलते ही अपने स्टाफ के साथ अस्पताल पहुंच गए तथा युवतियों का प्राथमिक उपचार सिलवानी में कराने के बाद रायसेन जिला अस्पताल भिजवा दिया.

दोनों बहनों की हालत में सुधार होने पर उन के बयान के आधार पर पुलिस ने निखिल गौर निवासी सुभाष नगर भोपाल, करण सिंह परिहार निवासी गोविंदपुरा, भोपाल और अंकित पटेल निवासी मढि़या पगारा, सिलवानी के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 201, 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

अपने जिन प्रेमियों निखिल और करण परिहार के लिए दोनों बहनों ने घरपरिवार तक छोड़ दिया, उन्होंने ही दोनों बहनों को मौत की कगार पर ला खड़ा किया. रात के अंधेरे में दोनों बहनों पर धारदार हथियारों से हमला किया और मृत समझ कर घाटी से नीचे फेंक कर फरार हो गए.

जरीना और तबस्सुम को मरा समझ कर गहरी घाटी में धकेल कर निखिल और करण निश्चिंत हो गए थे. अपने प्लान को सफल मान कर वे बस में सवार हो कर भोपाल अपने घर जा रहे थे. दोनों को अब इस बात का सुकून मिल गया था कि अब उन्हें जबरदस्ती उन लड़कियों से शादी नहीं करनी पड़ेगी.

सुबह करीब 9 बजे दोनों बस से उतर कर अपनेअपने घर चले गए.

रायसेन जिले की एसपी मोनिका शुक्ला ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए सिलवानी पुलिस टीम को जल्द ही दोनों आरोपी प्रेमियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

सिलवानी पुलिस ने सब से पहले मढि़या पगारा गांव के अंकित को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि अपने चचेरे भाई निखिल के कहने पर वह बाइक ले कर जमुनिया घाटी पहुंचा था.

निखिल और करण की तलाश में सिलवानी पुलिस थाने की एक टीम भोपाल रवाना हो गई. भोपाल के अशोका गार्डन थाना पुलिस की मदद से निखिल और करण के बताए गए पते पर पहुंची तो दोनों घर पर ही मिल गए. पुलिस को घर आया देख कर उन के हाथपैर कांपने लगे.

दोनों को हिरासत में ले लिया. अशोका गार्डन पुलिस थाने ला कर उन से पूछताछ की तो निखिल और करण ने पूरी सच्चाई पुलिस को बता दी.

निखिल और करण की निशानदेही पर वारदात के समय प्रयुक्त चाकू और मुंह बांधने का एक कपड़ा पुलिस ने घटनास्थल से बरामद कर लिया.

युवतियों के बयान के आधार पर पुलिस ने भोपाल अशोका गार्डन पुलिस की मदद से आरोपी तीनों युवकों निखिल गौर, करण सिंह परिहार और अंकित पटेल को हिरासत में ले कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हे बेगमगंज जेल भेज दिया गया.

नौकरी की तलाश में भोपाल आईं 2 सगी बहनें जवानी की इस उम्र में प्यार तो कर बैठीं, मगर उन्हें यह मालूम नहीं था कि दुनिया में प्यार के नाम पर धोखा देने वालों की कमी नहीं है.

प्यार का नाटक कर वासना की आग बुझाने वाले निखिल और करण को जरीना और तबस्सुम ने अपने प्रेमियों को भरपूर प्यार दिया, मगर दोनों प्रेमियों ने उन्हें प्यार की जो सजा दी उसे वे ताउम्र नहीं भूल सकतीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पीडि़त युवतियों के भविष्य को देखते हुए उन के नाम परिवर्तित कर दिए हैं.

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