Manohar Kahaniya: प्यार के जाल में फंसा बिजनेसमैन- भाग 4

दूसरी तरफ उस का पति ललित अकसर फोन कर रुपए की मांग करने लगा. रुपए नहीं देने पर उस के और मानसी के संबंधों का भेद जगजाहिर करने की धमकियां देने लगा.

यहां तक कि उस ने संजीव को कहा जब तक पैसे मिलते रहेंगे उस का मुंह बंद रहेगा, जैसे ही इस में देरी होगी, वह उस के अवैध संबंधों की सारी सच्चाई उस की पत्नी और बच्चों को बता देगा.

संजीव ने लाख विनती की, उस का ललित और मानसी पर कोई असर नहीं हुआ. उन के लिए संजीव महज सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था. पैसों के लालच में डूब चुके ललित और मानसी की ब्लैकमेलिंग के अलावा उस पर बिजनैस संबंधी कई देनदारियों के तकादे आने लगा.

परेशान हो कर किया सुसाइड

वह काफी विचलित हो गया था. इसी तनाव से जूझता 10 अगस्त, 2021 की शाम को घर से किसी आवश्यक काम से जाने को कह कर  निकला था. उस ने यह भी कहा कि उसे आने में देरी हो सकती है.

वह अपने हीरामोती लेन वाले आवास से निकल कर कुआं चौक नंदई स्थित अपने दूसरे मकान में आ गया. उस मकान को संजीव बेच चुका था, मगर उस के पास एक चाबी थी. वहां कुछ समय अपने जीवन का आखिरी समय गुजारा और रात को 11 बजे फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली.

इस से पहले उस ने 5 अलगअलग चिट्ठियां लिखीं. वे चिट्ठियां परिजनों और परिचितों के नाम थीं. उन में एक पूर्व सांसद मकसूदन यादव के नाम भी थी.

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दूसरे दिन जब संजीव जैन घर नहीं आया, तो सुबह घर परिवार में पत्नी और बच्चे चिंतित हो गए. उस की खोजबीन की जाने लगी. फोन पर काल का जवाब नहीं मिल पाया. किसी ने बताया पुराने मकान के पास उस की कार खड़ी है. घर वालों ने सोचा कि संजीव अपने उसी घर पर होगा.

दोपहर तक जब संजीव घर नहीं आया, तब परिवार के लोग और मित्र नंदई के मकान पर गए. वहां मकान भीतर से बंद मिला. उन्होंने एक कमरे का दरवाजा तोड़ा, संजीव फांसी से झूलते हुए मिला.

यह सभी के लिए स्तब्ध करने का दृश्य था. इस की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई. थाना बसंतपुर पुलिस ने घटनास्थल पर आ कर मामले की सूक्ष्म विवेचना शुरू कर दी. घटनास्थल पर संजीव जैन के छोटे भाई विनय जैन को एक लिफाफे में सुसाइड नोट मिले.

सुसाइड नोट पढ़ कर मालूम हुआ कि वह किस तरह ब्लैकमेलिंग के शिकार हो रहे थे. सुसाइड नोट में ही उन्होंने अपने अवैध संबंध की बात लिखी थी. मानसी और ललित द्वारा बारबार पैसे मांगे जाने का भी जिक्र किया था. उस ने अपनी आत्महत्या का कारण उन लोगों द्वारा ब्लैकमेल करना ही लिखा था.

अगले रोज राजनंदगांव सहित छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख समाचारपत्रों में भाजपा नेता संजीव जैन की आत्महत्या का समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुआ और यह चर्चा का सबब बन गया कि कैसे एक नामचीन, राजनीति में दखल रखने वाली शख्सियत सैक्स और भयादोहन का शिकार हो रहा था.

एसपी राजनंदगांव डी. श्रवण ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एएसपी प्रज्ञा मेश्राम के नेतृत्व में बसंतपुर थाने की एक टीम गठित की. उन्हें मामले को शीघ्र खुलासा करने के सख्त निर्देश दिए.

मामले का दायित्व मिलने के बाद एएसपी प्रज्ञा मेश्राम व थानाप्रभारी आशीर्वाद रहटगांवकर को सुसाइड नोट के आधार पर जांच तेज करने की निर्देश दिए. पुलिस ने संजीव जैन के परिजनों के बयान लिए.

बयान और सुसाइड नोट के आधार पर जांच जब आगे बढ़ने लगी तब यूनियन बैंक और फेडरल बैंक के माध्यम से कुछ ठोस जानकारियां सामने आईं.

यह भी खुलासा हुआ कि मानसी नामक महिला से संजीव जैन के अंतरंग संबंध

हुआ करते थे. इस की पुष्टि सुसाइड नोट से भी हुई. मानसी और उस की ससुराल वाले हुए गिरफ्तार मानसी का नाम सामने आने पर जांच शुरू की. वह रायपुर, छत्तीसगढ़ और मेरठ, उत्तर प्रदेश से लापता मिली. बैंक के अकाउंट की जांच की तो यह जानकारी सामने आ गई कि बीते 8 सालों में एक करोड़ सत्तर लाख रुपए संजीव जैन के खाते से मानसी यादव, उस के पति ललित सिंह, ललित सिंह के छोटे भाई कौशल सिंह और कौशल सिंह की पत्नी शिल्पी सिंह के बैंक एकाउंट में ट्रांसफर हुए.

पुलिस के सामने सब कुछ आईने की तरह साफ था, मगर आरोपी उन की पकड़ से दूर थे. मानसी के पते पर पुलिस लगातार छापे मार रही थी, मगर न तो मानसी मिल रही थी और न ही उस का पति ललित सिंह.

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संजीव मामले के आरोपियों के पकड़ में नहीं आने पर पुलिस की लगातार किरकिरी हो रही थी. तभी अचानक 12 सितंबर को प्रज्ञा मेश्राम को एक काल आई.

काल मुखबिर की थी, जिस ने बताया कि मानसी रायपुर में अपनी बहन मधु यादव के यहां डगनिया में तीज के मौके पर पहुंची है. इस सूचना के आधार पर एएसपी प्रज्ञा मेश्राम ने रायपुर पुलिस की मदद से मानसी यादव को हिरासत में ले लिया.

वहीं ललित सिंह और शिल्पी सिंह भी गिरफ्त में आ गए. कौशल सिंह गिरफ्तारी से बचा हुआ था. पुलिस ने दोनों पतिपत्नी और शिल्पी सिंह को बसंतपुर थाने ला कर के पूछताछ की.

उन्होंने सारे घटनाक्रम को पुलिस के समक्ष सिलसिलेवार ढंग से बता दिया. इसी के साथ उन्होंने अपना अपराध कुबूल कर लिया.

तीनों के इकबालिया बयान के बाद 13 सितंबर, 2021 को पुलिस ने धारा 306, 34 भारतीय दंड विधान के तहत मामला दर्ज कर लिया और उसी शाम मीडिया के समक्ष पूरे मामले का खुलासा कर दिया.

केस का खुलासा थानाप्रभारी आशीर्वाद रहटगांवकर, एसआई कमलेश बंजारे, कांस्टेबल विभाष सिंह, देवेंद्र पाल, महिला कांस्टेबल अश्वनी निर्मलकर, साइबर सेल प्रभारी द्वारिका प्रसाद लाउत्रे, कांस्टेबल हेमंत साहू, आदित्य सिंह, मनीष मानिकपुरी, मनीष वर्मा, अवध किशोर साहू, मनोज खूंटे ने किया. दूसरे दिन तीनों आरोपियों को प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी, राजनंदगांव के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

—अपराध कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित

Manohar Kahaniya- गोरखपुर: मोहब्बत के दुश्मन- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज

‘प्यार की कोई उम्र नहीं होती, कोई मजहब नहीं होता, कोई जात नहीं होती. प्यार तो प्यार होता है, बस हो जाता है.’ इस तरह की बातें आप ने भी फिल्मों में खूब सुनी होंगी या हो सकता है ऐसे शब्दों का इस्तेमाल भी किया हो. लेकिन क्या हमारे समाज में इन बातों की वास्तविकता पर यकीन किया जा सकता है या फिर ये केवल फिल्मों तक ही सीमित हैं?

आज भी हमारे समाज में ऐसे क्रूर लोग मौजूद हैं जिन्हें ‘प्रेम’ शब्द से चिढ़ है. प्यार करने पर समाज के कुछ लोग धर्म, जात, वर्ग इत्यादि चीजों को ध्यान में रख कर प्यार करने वालों को अलग करने के लिए हर हद पार कर देते हैं.

यहां तक कि जिन बच्चों को वह जीवन भर प्यार करते हैं, जिन की खुशी के लिए परिवार वाले कुछ भी कर सकते हैं, उन्हें ही अपना पार्टनर चुनने की इतनी भयानक सजा दे देते हैं, जिसे सुन कर रूह कांप जाती है. ऐसी ही एक घटना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की है.

यह साल था 2015 का जब गोरखपुर के उनौली गांव के रहने वाले अनीश चौधरी (34) का उरूवा ब्लौक औफिस में ग्राम पंचायत अधिकारी के पद पर चयन हुआ था.

गोरखपुर के दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास में पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर चुके अनीश बहुत मेहनती था. वह खुद के दम पर कुछ बनना चाहता था और उसी के लिए वह दिनरात मेहनत करता था.

तरहतरह की सरकारी नौकरियों के फौर्म भरना, एग्जाम देना, इंटरव्यू की तैयारी करना, उस के हर दिन के जीवन का हिस्सा थी जोकि ग्राम पंचायत अधिकारी बनने के बाद उन का यह सपना पूरा हो गया था.

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अनीश के गांव में दलितों की आबादी बहुसंख्यक थी. वह खुद भी दलित समुदाय से था. लेकिन अनीश की माली हालत गांव में अन्य दलितों से काफी बेहतर थी.

अनीश बना ग्राम पंचायत अधिकारी

अनीश संपन्न परिवार का हिस्सा थे. उस के पिता और चाचा बैंकाक और मलेशिया में रह कर काम करते थे. साल-2 साल में अनीश के पिता कुछ दिनों के लिए घर आते थे और फिर काम से चले जाते थे. उन्होंने अनीश के लिए किसी तरह की कोई कमी नहीं रखी थी. अनीश के बड़े भाई, अनिल चौधरी भी उरूवा ब्लौक औफिस में कर्मचारी थे.

ग्राम पंचायत अधिकारी के पद पर चयन होने के बाद अनीश की खुशी का ठिकाना नहीं था. जब अनीश ने यह बात अपने पिता को फोन कर बताई तो उस के पिता बेहद खुश हुए और अनीश को जल्द ही घर वापस आने का भरोसा दिलाया. अनीश के अधिकारी बनने की खुशी पूरे गांव को थी.

अनीश ने अपनी खुशी का खुल कर इजहार भी किया. वह अपने गांववासियों के लिए बहुत कुछ करना चाहता था और जल्द ही उन की सेवा में व्यस्त हो जाना चाहता था. चयन के बाद अनीश अब प्रशासन से काल लैटर का इंतजार करने लगा, जिसे घर आने में ज्यादा समय नहीं लगा.

चयन किए जाने के अगले ही महीने अनीश और अन्य चुने हुए अधिकारियों को ट्रेनिंग के लिए ब्लौक औफिस में बुलाया गया. ट्रेनिंग के पहले दिन अनीश सुबह के 8 बजे तैयार हो कर ब्लौक औफिस पहुंचा. उस समय तक कुछ और लोग औफिस के मुख्य हाल में इकट्ठे हुए थे.

रिपोर्टिंग का टाइम सुबह साढ़े 8 बजे था तो अनीश को वक्त बरबाद करना ठीक नहीं लगा. अनीश ने हाल में मौजूद हर किसी से हाथ मिलाया और जानपहचान बढ़ाने के लिए उन से बातचीत की.

करीब 10 मिनट के बाद हाल के गेट से एक महिला अधिकारी अंदर आई. वह भी हाल में मौजूद अन्य अधिकारियों की तरह ही थी. उस का भी चयन हुआ था.

उस का नाम दीप्ति मिश्र (24) था. दीप्ति गोरखपुर में देवकली धर्मसेन गांव की रहने वाली थी. समाजशास्त्र से एमए की पढ़ाई कर चुकी दीप्ति का सिलेक्शन कौड़ीराम ब्लौक औफिस में ग्राम पंचायत अधिकारी के तौर पर हुआ था. यही नहीं, दीप्ति ने भी दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी से अपनी एमए की पढ़ाई की थी.

अनीश ने दीप्ति को देखा तो वह उसे पहचान गया था. कालेज के कैंपस में अकसर अनीश ने दीप्ति को घूमते हुए देखा था, कभी कैंटीन में तो कभी क्लास करते हुए. लेकिन कालेज के दिनों में उस ने कभी दीप्ति से मुलाकात या बातचीत नहीं की थी. उस की एक वजह यह थी कि अनीश का विषय कुछ और था और दीप्ति का कुछ और.

दीप्ति जब गेट से अंदर आ रही थी तो अनीश की नजर उस पर पड़ी. अनीश को दीप्ति का चेहरा जानापहचाना लगा. अनीश ने अपने दाएं हाथ में पकड़े प्लास्टिक के पानी के गिलास को टेबल पर रखा और घूम कर कमरे के अंदर प्रवेश करती हुई दीप्ति की ओर आगे बढ़ा.

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काफी देर तक सोचने के बाद अनीश को याद आ गया था और वह दीप्ति को पहचान गया. दीप्ति कमरे में मौजूद पीछे की एक खाली कुरसी पर जा कर बैठी थी तो अनीश भी उस के पास गया और एक कुरसी छोड़ उस के बगल में जा कर बैठ गया और बोला, ‘‘हैलो.’’

अनीश की बात का जवाब देते हुए दीप्ति ने उस की ओर देखा और बोली, ‘‘हाय.’’

अनीश का चेहरा देखते ही दीप्ति को भी अचानक से याद आ गया था कि हैलो बोल रहा यह शख्स कौन है. इस से पहले कि अनीश आगे कुछ कहता, दीप्ति ने उस से सवाल कर लिया, ‘‘अरे, आप तो शायद दीन दयाल उपाध्याय कालेज में थे न?’’

अनीश ने दीप्ति के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘जी, आप ने बिलकुल सही पहचाना. मैं ने भी उसी कालेज से पढ़ाई की थी. आप जब हाल में एंटर हुईं, तभी से ही मैं सोच में पड़ गया था कि आप को कहां देखा है. और देखिए आप ही ने मुझे भी पहचान लिया.’’

यह सुन कर दीप्ति हंस पड़ी और दीप्ति को हंसता हुआ देख अनीश भी मुसकरा दिया. ऐसे ही करिअर, पढ़ाई इत्यादि की बातें करतेकरते कब साढ़े 8 बज गए, दोनों को पता ही नहीं चला.

कमरे में सूट पहन कर कुछ उच्च अधिकारी आए और अपने रुटीन कामों की तरह वह सब के नाम परिचय इत्यादि लेने लगे. इस तरह से अनीश और दीप्ति की जानपहचान हुई.

अब क्योंकि अनीश और दीप्ति दोनों ही ब्लौक औफिस में ग्राम पंचायत अधिकारी थे तो उन का साथ में उठनाबैठना सामान्य हो गया था. पूरी ट्रेनिंग के दौरान अनीश और दीप्ति एकदूसरे के साथ ही रहे. ट्रेनिंग के बाद जब दोनों आधिकारिक रूप से अपनेअपने ब्लौक में काम करने लगे तो भी दोनों का साथ उठनाबैठना होने लगा था.

अनीश के उरूवा ब्लौक औफिस से दीप्ति के कौड़ीराम ब्लौक औफिस के बीच मात्र एक घंटे की ही दूरी थी. अनीश और दीप्ति दोनों की जानपहचान कुछ ही समय में दोस्ती में बदल गई थी. दोनों साथ में औफिस आनेजाने लगे. दोनों ही घंटों फोन पर बातचीत करने लगे.

देखते ही देखते उन के बीच की नजदीकियां भी बढ़ने लगी. वे दोनों अकसर औफिस के अलावा भी एकदूसरे से मिलते थे. अनीश और दीप्ति दोनों ही एकदूसरे को करीब से जानना चाहते थे.

दोनों अधिकारी दिलोदिमाग से चाहने लगे एकदूसरे को ब्लौक औफिस से छुट्टी के समय दोनों यूं ही घूमने के लिए निकल जाया करते. छुट्टी वाले दिन भी दोनों घर पर नहीं बैठते थे बल्कि अपने गांव से दूर घूमने निकल जाते और साथ वक्त गुजारते थे. उन की दोस्ती वक्त के साथ प्यार में बदलने लगी थी.

लेकिन ऐसे ही एक दिन जब अनीश और दीप्ति औफिस से शाम को छुट्टी के बाद साथसाथ घर जा रहे थे तो दीप्ति के एक रिश्तेदार ने दोनों को देख लिया और दीप्ति की शिकायत उस के घर पर कर दी.

शुरुआत में तो दीप्ति के घरवालों ने उसे रोकाटोका नहीं, लेकिन अंदर ही अंदर वे अनीश के बारे में पता लगाने लगे. दीप्ति अपने घर में सब से छोटी बेटी थी.

दीप्ति का बड़ा भाई अभिनव यूपी पुलिस में कांस्टेबल था. जब अभिनव को दीप्ति के किसी से संबंध होने की जानकारी घरवालों से मिली तो उस ने अपने सूत्रों के जरिए अनीश के बारे में पता लगवाया.

अभिनव को जब यह पता चला कि उस की बहन दीप्ति का संबंध किसी दलित जाति के लड़के से है तो उस ने यह बात अपने घरवालों को बताई. उस दिन मिश्र परिवार में इस बात को ले कर खूब झगड़ा भी हुआ.

परिवार वालों ने दीप्ति का फोन उस से छीन लिया, उस के आनेजाने पर लगातार नजर रखने लगे. यहां तक कि दीप्ति जब औफिस जाती तो उस के पिता नलिन कुमार मिश्र, उस के साथ जाने लगे और घर वापस आते समय दीप्ति को साथ घर ले कर आने लगे.

दीप्ति पर उस के घरवाले इस तरह से निगरानी रखने लगे जैसे कि उस ने प्यार कर के बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो.

अगले भाग में पढ़ें- दीप्ति के घर वालों ने दी धमकी

Manohar Kahaniya: कातिल घरजमाई- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

तेजस की चुप्पी से धीरेधीरे शोभना की हिम्मत बढ़ती गई और वह जब देखो तब तेजस का अपमान करने लगी. उसी को ही नहीं, उस के मांबाप और भाईबहन को भी अपशब्द कहने लगी थी. उन का आनाजाना तो उस ने कब का बंद करा दिया था.

तेजस को उन से फोन पर भी बातें करते देख या सुन लेती तो उस के बाद तेजस की जम कर बेइज्जती करती ही, फोन छीन कर उन लोगों को भी बुरी तरह बेइज्जत करती.

अपमान का घूंट पी कर रह जाता तेजस

इस से तेजस दुखी तो रहता ही था, उसे शोभना के साथ रहने में घुटन सी होने लगी थी. अब वह ससुराल में बिलकुल नहीं रहना चाहता था. पर मजबूरी में उसे रहना पड़ रहा था.

ऐसे में ही उस ने कुछ दिनों पहले शोभना से कहा भी था, ‘‘अब अगर तुम ने मेरे घर वालों को कुछ कहा तो मैं तुम्हारे साथ या तुम्हारे और अपने साथ कुछ कर लूंगा.’’

एक तरह से तेजस ने शोभना को धमकी दी थी. यह बात शोभना ने अपनी मां से बताई भी थी. पर उस समय किसी ने तेजस की इस बात पर ध्यान नहीं दिया था. आखिर उस ने जो धमकी दी थी, पूरी ही कर डाली.

इधर शोभना की मांगें भी बढ़ गई थीं. जब देखो, तब वह किसी न किसी चीज की फरमाइश करती रहती थी. तेजस की आमदनी सीमित थी. इसलिए पत्नी की हर मांग वह पूरी नहीं कर सकता था. मांग पूरी न होने पर शोभना तेजस को बुरी तरह अपमानित कर देती.

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शोभना अपने घर में ही नहीं, मांबाप और भाई के सामने भी उस की शिकायत कर के उसे अपमानित करती. एक तरह से शोभना ने उस का जीना हराम कर दिया था. उस की हालत ऐसी कर दी थी कि वह न जी सकता था और न मर सकता था.

इधर शोभना ने तेजस पर एक आरोप और लगा दिया. इस में कितनी सच्चाई थी, यह तो तेजस जानता था या शोभना. शोभना का कहना था कि तेजस के किसी अन्य महिला से अवैध संबंध हैं. किस से संबंध हैं, यह शोभना किसी को नहीं बता सकी. इस बात को वह साबित भी नहीं कर सकी.

पर इस बात को ले कर घर में रोज झगड़ा होने लगा था. इस बात को ले कर शोभना ने तो उस का जीना हराम कर ही रखा था, सासससुर और सालेसलहज भी उसे परेशान कर रहे थे.

तेजस का दुख ऐसा था, जिसे वह किसी से कह नहीं सकता था. कहता भी किस से, कोई सुनने वाला भी तो नहीं था. ससुराल में उस की कोई सुनता नहीं था. घर वालों से वह कुछ कह नहीं सकता था. क्योंकि शोभना उसे कहने ही नहीं देती थी. अगर कहता भी तो घर वाले कुछ कर नहीं सकते थे. इसलिए तेजस मानसिक रूप से काफी परेशान रहने लगा.

सारी परेशानी की जड़ नजर आई पत्नी

इस सारी परेशानी की जड़ उसे शोभना ही लग रही थी. इसलिए अब उस के मन में आने लगा कि अगर शोभना को खत्म कर दिया जाए तो उस की सारी परेशानी खत्म हो जाएगी.

लेकिन शोभना को खत्म करना उस के लिए आसान नहीं था. पर आदमी जब परेशान हो जाता है तो उसे कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता. तेजस भी शोभना से इतना परेशान और दुखी हो चुका था कि वह उस की हत्या जैसा जघन्य अपराध करने के बारे में सोचने लगा.

आखिर में गृहक्लेश और प्रेम प्रकरण के आरोप से तंग आ कर घरजमाई के रूप में अपमान का घूंट पीते हुए तेजस इस बात पर विचार करने लगा कि पत्नी और बेटी को कैसे ठिकाने लगाया जाए?

इस के लिए वह यूट्यूब और गूगल पर सर्च करने लगा कि चूहे को मारने वाला जहर कौनकौन सा है, मौत कैसे होती है  हाऊ टू गिव डेथ रैट किलर व्हाट इफेक्ट आन मैन, पौइजन, द रैट किलर पौइजन, हाऊ टू किल ए मैन विद पिलो.

पूरी जानकारी एकत्र कर तेजस चूहा मारने वाली दवा खरीद लाया. 10 अक्तूबर, 2021 को उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए शाम को आइसक्रीम ला कर रख दी.

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रात का खाना खा कर काव्या रात करीब 10 बजे अपनी मामी के साथ सोसायटी के कौमन प्लौट में गरबा खेलने चली गई. शोभना घर में ही थी. तेजस भी घर में ही था. पर उस के हावभाव से ऐसा कुछ नहीं लग रहा था कि वह इतना बड़ा कांड करने वाला है. हां, वह शांत जरूर था.

रात साढ़े 11 बजे काव्या गरबा खेल कर ऊपर आई तो तेजस ने जहर मिली आइसक्रीम पत्नी और बेटी को खाने को दी और खुद बिना जहर मिली आइसक्रीम खाई. आइसक्रीम खा कर सभी सोने के लिए लेट गए.

शोभना और काव्या तो सो गईं, पर तेजस जागता रहा. रात साढ़े 12 बजे जहर ने अपना असर दिखाया तो शोभना जाग गई. तकलीफ की वजह से वह रोने लगी तो तेजस फुरती से उठा और शोभना के सीने पर सवार हो कर उस का गला पकड़ कर दबाने लगा. शोभना ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की तो इसी छीनाझपटी में तेजस का नाखून शोभना के गले में लग गया.

करीब 10 मिनट तक गला दबाए रहने के बाद जब तेजस को विश्वास हो गया कि अब शोभना मर गई है तो उस के बाद उस ने काव्या के मुंह पर तकिया रख कर दबाया कि कहीं बेटी जीवित न रह जाए.

इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहता था कि काव्या जीवित रहे. क्योंकि अगर वह जीवित रह गई तो वह उसे कैसे अपना मुंह दिखाएगा? क्योंकि उस ने उस की मां की हत्या की है.

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जहर देने और गला दबाने के बाद भी वह करीब एक घंटे तक यह देखता रहा कि कहीं मांबेटी जीवित तो नहीं हैं. जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि मांबेटी मर चुकी हैं, तब रात करीब डेढ़ बजे नीचे जा कर उस ने साले को जगा कर बताया कि पता नहीं क्यों शोभना उठ नहीं रही है. इस के बाद जब शोभना और उस की बेटी को अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि उन की तो मौत हो चुकी है.

तेजस से पूछताछ के बाद पुलिस ने सारे सबूत जुटा कर डीसीपी लखधारी सिंह झाला ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर मांबेटी की हत्या का खुलासा किया. इस के बाद 13 अक्तूबर को तेजस पटेल को बड़ौदा की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.

Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

2अक्तूबर को देश भर में रस्मी तौर पर ही गांधी जयंती मनी थी. इस दिन लोगों को छुट्टी होने की खुशी ज्यादा रहती है, गांधी और उन के विचारों से कोई वास्ता नहीं रखता, जिन में से एक यह नसीहत भी है कि नशा खासतौर से युवाओं को बरबाद कर रहा है. इस दिन देश भर में ड्राई डे भी रहता है, इसलिए शराब की सभी दुकानें और ठेके बंद रहते हैं.

अगले दिन चूंकि इतवार था, इसलिए नशेडि़यों ने अपने कोटे का इंतजाम पहले से ही कर रखा था. इसी दिन देर रात मुंबई से गोवा के लिए कार्डेलिया नाम का क्रूज रवाना हुआ था जोकि एक रुटीन की बात थी.

वाटरवेज लीजर टूरिज्म प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कर्मचारियों को उम्मीद रही होगी कि वीकेंड होने के चलते क्रूज पर रोज के मुकाबले भीड़भाड़ ज्यादा रहेगी, लेकिन लगभग 1300 पैसेंजर ही आए. जबकि क्रूज की क्षमता 1800 लोगों की है.

आजकल लोग क्रूज पर पार्टियां खूब करने लगे हैं. यह तेजी से पनपता नया फैशन है, इसलिए क्रूज जैसे ही मुंबई से कुछ किलोमीटर दूर पहुंचा तो पार्टियों का दौर शुरू हो गया. एक खास पार्टी सलीके से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि क्रूज पर हड़कंप मच गया. हुआ यह था कि कुछ युवाओं ने ड्रग्स लेनी शुरू कर दी थी.

इन पर नशा भी सलीके से नहीं चढ़ा था कि एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के कर्मचारियों, अधिकारियों ने इन की धरपकड़ शुरू कर दी.

दरअसल, यह एनसीबी की टीम की सुनियोजित मुहिम थी इसलिए टीम के सदस्य सिविल कपड़ों में साधारण यात्रियों की तरह तट से ही क्रूज पर सवार हुए थे.  इस मुहिम की अगुवाई एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े कर रहे थे, जो बौलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन का भंडाफोड़ करने के लिए जाने जाते हैं. उन्हें लगातार मुखबिर खबर दे रहे थे कि इन दिनों नामी फिल्मी हस्तियां क्रूज पर रेव पार्टियां करने लगी हैं.

उन्होंने सारा प्लान बनाया और इस रात कार्डेलिया पर धावा बोल दिया. देखते ही देखते 8 नाजुक खूबसूरत युवा, जिन में एक थोड़ी उम्रदराज सहित 3 युवतियां भी थीं, उन की गिरफ्त में थे, जिन का सारा नशा एनसीबी की टीम को देख छूमंतर हो गया था.

इन लोगों की जामातलाशी में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस, 5 ग्राम एमडी और एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं. यानी सूचना गलत नहीं थी. लेकिन पकड़े गए आरोपियों में कोई नामीगिरामी फिल्मी हस्ती नहीं थी. यह तो पूछताछ के बाद उजागर हुआ कि इन में से एक अभिनेता शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है.

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क्रूज पर तलाशी में पकड़े न जाएं, इसलिए ये युवा नशीले पदार्थ जूतों और अंडरगारमेंट्स में छिपा कर ले गए थे. जबकि लड़कियों ने इन्हें अपने पर्स में रखा था. उम्रदराज महिला तो ड्रग्स को सेनेटरी पैड में छिपा कर क्रूज पर ले गई थी.

इस वक्त आधी रात बीत चुकी थी, लेकिन सुबह जैसे ही यह पता चला कि पकडे़ गए युवाओं में से एक शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है तो मीडिया वाले एनसीबी के दफ्तर की तरफ दौड़ लगाते नजर आए और दोपहर तक मामले को इतना हाईप्रोफाइल बना दिया कि उस दिन की दूसरी तमाम

अहम खबरें और घटनाएं इस के नीचे दब कर रह गईं. जिन में से एक मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र द्वारा 4 किसानों को कार से रौंदे जाने का भी था.

आर्यन की खबर ज्यादा बिकाऊ और चलताऊ थी, इसलिए उसे लगातार दिखाया गया और इतना भुनाया गया कि देखने वाले बिना कोई ड्रग लिए ही झूमने लगे.

ऐसा छापा कोई नई बात नहीं थी, लेकिन चूंकि इस में एक स्टार किड शामिल था इसलिए न्यूज चैनल्स को तिल का ताड़ बनाने का एक और मौका मिल गया. आर्यन के बारे में जानकारी छनछन कर बाहर आने लगी और उस के साथियों की भी जन्मकुंडली खंगाली जाने लगी.

शाहरुख खान के घर मन्नत के बाहर भी मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया. अब एनसीबी क्या कर रही है और आगे क्याक्या हो सकता है, ये बातें सड़कछाप ज्योतिषी के तोते की तरह बांची गईं.

इस वक्त तक उम्मीद की जा रही थी कि आर्यन को मामूली पूछताछ के बाद छोड़ दिया जाएगा, लेकिन जैसे ही अधिकारियों की टीम सवालजवाब के लिए अंदर गई तो समझने वाले समझ गए कि ड्रामा अभी और लंबा खिंचेगा.

कच्चे खिलाडि़यों की नशेड़ी टीम

आर्यन के साथ गिरफ्तार किए गए अरबाज मर्चेंट, मुनमुन धमेचा, नूपुर सारिका, इसमीत सिंह, मोहक जसवाल, विक्रांत छोकर और गोमित चोपड़ा बहुत जानेमाने नाम नहीं हैं. मुनमुन वही उम्रदराज महिला है, जिस ने सेनेटरी नैपकिन में ड्रग्स छिपाई थी.

फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी यह खूबसूरत महिला कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश के सागर शहर के गोपालगंज मोहल्ले में रहा करती थी. अपनी स्कूली पढ़ाई उस ने यहीं से पूरी की थी. उस का परिवार बिजनैस से ताल्लुक रखता है. भाई प्रिंस धमेचा दिल्ली में कार्यरत है.

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कुछ न होते हुए भी उस के फिल्म इंडस्ट्री में कई हस्तियों से अच्छे संबंध हैं. आर्यन कैसे उस के संपर्क में आया, यह पूरी जांच और मुकदमे के बाद साफ होगा.

पकड़ा गया दूसरा मुख्य आरोपी 25 वर्षीय अरबाज मर्चेंट मुंबई का जानामाना टिंबर कारोबारी है, जिस की 2 कंपनियां स्वदेश टिंबर और सिमला एजेंसीज हैं. यह उस का पुश्तैनी कारोबार है.

अरबाज ने बांद्रा के आर.डी. नैशनल कालेज से बैचलर इन मैनेजमेंट स्टडीज की पढ़ाई की थी. उस के पिता असलम मर्चेंट पेशे से वकील हैं. अरबाज और आर्यन की दोस्ती बहुत पुरानी है और दोनों ने देशविदेश की कई यात्राएं साथसाथ की हैं. दोनों पार्टियों में भी संग दिखते थे. मुनमुन कौन है, यह अरबाज भी नहीं जानता.

मोहक और नूपुर दोनों पेशे से फैशन डिजायनर हैं, जबकि गोमित हेयर स्टाइलिस्ट है. ये तीनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. नूपुर ने भी मुनमुन की तरह ड्रग्स सेनेटरी नेपकिन में छिपाई थी.

ये ड्रग्स उसे मोहक ने दी थीं, लेकिन मोहक के पास ड्रग्स कहां से आई, यह अभी पता नहीं चला है और यही सारे फसाद की जड़ है कि एनसीबी या दूसरी कोई एजेंसी ड्रग माफियाओं की जड़ तक कभी नहीं पहुंच पाती. हर बार वे फूलपत्तियां ही तोड़ती रही हैं.

इस मामले में भी छोटी मछलियां ही पकड़ाई हैं, मगरमच्छों के तो किसी को अतेपते नहीं.

जाहिर है कि ये सब के सब कच्चे और नए खिलाड़ी ड्रग्स के मायाजाल के थे, जो सिर्फ मौजमस्ती की गरज से गोवा जा रहे थे. एनसीबी के सामने इन की घिग्घी बंधी हुई थी क्योंकि हिरासत में लेते वक्त ही इन के मोबाइल फोन भी जब्त कर लिए गए थे, जिस से इन का संपर्क बाहरी दुनिया और खासतौर से उन पेरेंट्स से कट गया था, जिन के बारे में ये सोचते यह होंगे कि उन के मांबाप बहुत रईस और रसूख वाले हैं, लिहाजा इन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

अब तक ऐशोआराम में पलेबढ़े इन रईसजादों को पहली बार यह समझ आया कि कानून के सामने कोई रसूख या शोहरत नहीं चलती, जिस के कि ये आदी बचपन से ही हो चुके थे.

लंबी पूछताछ में लगता नहीं कि ये नातजुर्बेकार युवा कोई झूठ बोल पाए होंगे. एनसीबी की टीम तो इन की मानसिकता समझ रही थी, लेकिन ये लोग नहीं समझ पा रहे थे कि इस चूहेदानी से निकलना अब आसान काम नहीं.

उस वक्त ये सभी यही दुआ मांग रहे होंगे कि एनसीबी वाले पूछताछ जल्द खत्म कर हमें छोड़ दें, जिस से वे घर जा कर आराम से एयर कंडीशंड कमरों में सोएं और पार्टी की रात और बात को एक बुरे सपने की तरह भूल जाएं.

मुमकिन है इन नवोदित नशेडि़यों ने तभी कान पकड़ कर तौबा कर ली हो कि अब कभी क्रूज पार्टी तो दूर आम पार्टियों में भी ड्रग्स नहीं लेंगे.

डायरेक्टर बनाम लायर

लेकिन इन के हाथ में अब कुछ बचा नहीं था. अदालत ने पहले 3 दिनों का रिमांड दिया फिर उसे 14 दिनों तक और बढ़ा दिया तो और सनसनी और रोमांच मचने लगे. सीधेसीधे लोगों की नजरें समीर वानखेड़े और आर्यन के वकील सतीश मानशिंदे पर जा टिकीं कि इस बार कौन किस पर भारी पड़ता है.

वानखेड़े की मंशा आरोपियों को ज्यादा से ज्यादा दिन हिरासत में रखने की थी तो मानशिंदे की पूरी कोशिश अपने मुवक्किल आर्यन खान को जमानत दिलाने की थी.

समीर वानखेड़े एक सख्त और तेजतर्रार अफसर हैं जिन के खाते में कई बौलीवुड हस्तियों के खिलाफ काररवाई करने का रिकौर्ड, वह भी ड्रग्स के मामले में करने का, दर्ज है.

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Crime- बुराई: ऐसे जीजा से बचियो

दिल को दहला देने वाली यह वारदात राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव पोशाल नवपुरा की है. अधेड़ हो चले यहां के एक बाशिंदे पुरखाराम की बीवी, जिस का नाम पप्पू था, की मौत कोरोना से जून महीने में हो गई थी. तब से वह परेशान और चिंतित रहता था कि अब 4-4 बेटियों की परवरिश अकेले वह कैसे करेगा? उस की सब से बड़ी बेटी की उम्र 7 साल और सब से छोटी बेटी की उम्र महज डेढ़ साल है.

बिलाशक कोरोना के कहर ने दूसरे कई लोगों की तरह पुरखाराम की जिंदगी में भी तूफान मचा दिया था, लेकिन एक मिसाल इस गांव के लोगों ने कायम की थी, जिस का जिक्र कहीं नहीं हुआ था कि उन्होंने 2 लाख रुपए का चंदा कर के उसे दिए थे, जिस से वह अपनी बेटियों की परवरिश करते हुए उन्हें पढ़ा सके और इस सदमे से उबरते ही दोबारा काम पर जा सके.

बीवी की मौत के बाद बेटियों को ननिहाल जाना पड़ गया था और तब से वे वहीं रह रही थीं. वहां मौसी नेहा (बदला हुआ नाम) के साथ रहते हुए वे अपनी मां की मौत का दुख भूलने लगी थीं, जिन्हें लोगों ने इतना बताया था कि तुम्हारी मम्मी हमेशा के लिए दूर कहीं चली गई हैं, वरना तो ये नादान बच्चियां मौत का मतलब भी नहीं सम?ाती थीं. इन्हें फौरीतौर पर जिस प्यार, ममता और हमदर्दी की जरूरत थी, वह मौसी नेहा और मामा देवा राम से भी मिल रही थी.

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हैवान बना बाप

बीती 19 सितंबर को पुरखाराम अपनी ससुराल पहुंचा और ससुराल वालों से कहा कि वे नेहा की शादी उस से कर दें, जिस से उसे और बेटियों को सहारा मिल जाएगा. सौतेली मां से अच्छी तो सगी मौसी होती है.

ससुराल वालों के मना करने के बावजूद भी वह नेहा से ही शादी करने की जिद पर अड़ गया. कोई और बात होती तो शायद वे सोचते भी, लेकिन कुछ दिन पहले ही नेहा की शादी एक अच्छा घरवर देख कर तय कर दी गई थी, इसलिए उन्होंने साफ इनकार कर दिया था.

खुद नेहा की मरजी भी अपने जीजा से शादी करने की नहीं थी, इसलिए पुरखाराम की जवान और खूबसूरत साली को बेटियों की आड़ में पाने की ख्वाहिश अधूरी रह गई.

ससुराल से बैरंग लौटे हवस के मारे इस शख्स से यह इनकार बरदाश्त नहीं हुआ, क्योंकि वह उन लोगों में से था, जो साली को आधी घरवाली सम?ाते हैं और मौका मिले तो पूरी बनाने से भी नहीं चूकते. आतेआते वह लड़?ागड़ कर अपनी चारों बेटियों को भी साथ ले आया था. उस का घर जो ससुराल से चंद मिनटों की दूरी पर ही था, वहां आ कर उस ने एक वहशियाना फैसला ले लिया.

तिलमिलाए पुरखाराम ने फूल सी अपनी चारों बेटियों को दवा पिलाने के नाम पर उन्हें कीटनाशक जहर पानी में घोल कर पिला दिया और 1-1 कर के उन्हें घर में बनी पानी की टंकी में डाल दिया. कुछ ही देर में उन मासूमों ने दम तोड़ दिया.

पुरखाराम को यह लग रहा था कि अगर ये बेटियां नहीं होतीं, तो नेहा या कोई दूसरी लड़की उस से शादी करने के लिए तैयार हो जाती, क्योंकि कुछ गांव वालों के मुताबिक, उस ने 2 लाख रुपए शादी कराने वाले दलालों को दिए थे, लेकिन उस से कोई लड़की शादी करने को राजी नहीं हो रही थी और दलाल भी पैसे डकार कर छूमंतर हो गए थे.

साफ दिख रहा था कि पुरखाराम की नीयत और मंशा सिर्फ जैसे भी हो जल्द से जल्द शादी कर लेने की थी. मासूम बेटियों की तो उसे चिंता ही नहीं थी, अगर होती तो वह इतनी बेरहमी से उन की हत्या नहीं करता.

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इस वारदात को अंजाम देने के बाद पुरखाराम को लगा कि वह पकड़ा जाएगा, तो डर के मारे उस ने भी जहर पी लिया और उसी टंकी में कूद गया, लेकिन कुछ लोगों ने उसे देख लिया और बचा लिया, पर टंकी में 4 मासूमों की लाशें देख कर गांव में कोहराम मच गया.

पुलिस आई तो बच्चियों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी गईं और पुरखाराम को इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया.

सालियां क्या करें

नेहा ने कोई गलत फैसला नहीं लिया था, यह तो उस के जीजा की करतूत से उजागर हो ही गया, जो वहशी, जिद्दी और कमजोर भी था. हर लड़की को शादी और दूसरे निजी मामलों में फैसले लेने का हक है, लेकिन कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि मन मार कर जीजा से शादी करनी पड़ती है. कुछ मामलों में यह फैसला ठीकठाक साबित होता है, तो कइयों में गलत भी निकलता है.

विदिशा की निशा (बदला हुआ नाम) की मौत एक बीमारी के चलते हुई थी, जिस का 3 साल का बेटा था. उस के क्रियाकर्म के बाद घर और समाज वालों ने फैसला लिया कि निशा की छोटी बहन आशा (बदला हुआ नाम) को जीजा से शादी कर लेनी चाहिए. इस से बच्चा सौतेली मां की परछाईं से बचा रहेगा और खर्च भी कम होगा.

घर और समाज वालों के दबाव में आ कर आशा ने हां कर दी, क्योंकि वह अपनी बहन और उस के बेटे को बहुत चाहती थी. उस के जीजाजी भी ठीकठाक आदमी थे.

लेकिन शादी के 2 साल बाद ही बात बिगड़ने लगी, क्योंकि आशा अपनी कोख से भी बच्चे को जन्म देना चाहती थी. इस पर उस के पति यानी पहले के जीजा ने साफ इनकार कर दिया कि तुम्हारा खुद का बच्चा हो जाएगा, तो तुम मेरे बच्चे पर ध्यान नहीं दोगी और उस से सौतेला बरताव करोगी.

आशा ने पति को सम?ाने की कोशिश की कि मेरा बच्चा भी तो आप का ही होगा. इस पर वह बेरुखी से बोला कि मु?ो तो बच्चे के लिए मुफ्त की आया और खुद की सैक्स संतुष्टि के लिए एक औरत चाहिए थी, इसलिए तुम से शादी करने के लिए राजी हो गया, कोई दूसरी लाता तो दिक्कत और फसाद खड़े होते.

अब आशा को अपनी हैसियत और पति की असलियत का एहसास हुआ कि उस का तो कोई वजूद ही नहीं है, उस की भावनाओं और ख्वाहिशों के कोई माने ही नहीं हैं, वह तो एक मुफ्त की नौकरानी और किराए की मां है, जिस का काम चूल्हाचौका, घर की साफसफाई और बच्चे की परवरिश करने के अलावा रात को बिस्तर में पति को खुश करना भर है.

आशा कहती है कि अब उस के नाम के मुताबिक जिंदगी में कोई आशा ही नहीं बची है, वह तो अब चलतीफिरती लाश बन कर रह गई है.

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जीजासाली का रिश्ता बड़ा अहम और हंसीमजाक का माना जाता है, लेकिन इस में एहतियात खासतौर से सालियों को रखना जरूरी है. मसलन, ज्यादा हंसीमजाक ठीक नहीं रहता. इस के अलावा जीजा की नाजायज हरकतों को हवा देना भी महंगा पड़ता है.

कई सालियां तो जीजा से प्यार कर बैठती हैं और उन्हें अपना शरीर भी सौंप देती हैं, जो अपनी ही बहन का घर उजाड़ने और उस की खुशियों पर डाका डालने जैसी बात है. इस से साली को  भी कुछ हासिल नहीं होता और कई  बार शादी हो जाने के बाद ये नाजायज ताल्लुकात खुद का भी घर उजाड़ देते हैं.

लेकिन सिचुएशन जब नेहा और आशा जैसी हो जाए तो सालियों को अपने दिमाग से सहीगलत देखते हुए जीजा से शादी करने का फैसला लेना चाहिए, क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि जीजा एक अच्छा पति साबित होगा ही.

Satyakatha: पैसे का गुमान- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.

वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था.

इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था.

उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा.

नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता.

यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे.

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पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया.

पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था.

उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया.

नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

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वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी.

कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए.

पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई.

बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर के पर सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

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मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था.

बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पुलिस उन की कहानी सुन कर दंग रह गई. उन्होंने सिर पर हाथ रख लिया कि टेस्ट ट्यूब से बच्चा पैदा होने के जमाने में भी ऐसा अंधविश्वास लोगों के जेहन में भरा हुआ है.

इस अंधविश्वास के कारण हुए अपराध की कहानी की जड़ में संतान की चाहत निकली. जिस का फायदा उठाने वाले ढोंगी बाबा की भी भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी, जिस की वजह से एक नहीं बल्कि 2-2 महिलाओं की बलि दी गई थी.

भाभी ममता की गोद भरना चाहती थी मीरा

भावनात्मक दावपेंच और तांत्रिक अनुष्ठान के लिए अपनाए गए भयभीत करने वाले तरीके के प्रवाह में 5 लोग बह गए. उन में मीरा राजावत, उस का भाई बेटू भदौरिया, भाभी ममता, प्रेमी नीरज परिहार और तांत्रिक गिरवर था. इस में शिकार बनने वाली अनजान महिला आरती और नीरू थीं.

इस का पूरा तानाबाना मीरा द्वारा ही बुना गया था. उसी ने अपने निस्संतान भाईभौजाई को इस के लिए उकसाया था. हत्या का जुर्म स्वीकारने के बाद पछतावे में रोती हुई मीरा बोली, ‘‘साहब, भाई का घर आबाद करने की चाहत में तांत्रिक के कहने पर ही आरती और नीरू की बलि देनी पड़ी थी.’’

यह सब कैसे हुआ, उस की दिलचस्प मगर सवाल खड़ा करने के साथसाथ सावधान करने वाली कहानी इस प्रकार है—

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ग्वालियर के मोतीझील इलाके में रहने वाले मीरा के बड़े भाई बेटू भदौरिया की शादी 18 साल पहले ममता भदौरिया के साथ हुई थी. बेटू ट्रक ड्राइवर था. अभी तक वे निस्संतान थे. काफी डाक्टरी इलाज और मन्नतों के बावजूद ममता की गोद सूनी थी. एक दिन ममता ने अपनी संतानहीनता की पीड़ा मीरा को सुनाई. किसी भी तरह कहीं से कोई बच्चा गोद लेने या दूसरा उपाय करने के लिए कहा.

मीरा खुद तो अविवाहित थी, लेकिन वह संतानहीनता की पीड़ा को समझती थी. उस की जानपहचान कई तरह के लोगों से थी. ममता को उस के प्रेमी नीरज की अच्छी जानपहचान होने के बारे में भी मालूम था. इस कारण ममता ने मीरा को नीरज या किसी और के जरिए उपाय करने की गुजारिश की.

ममता के काफी अनुरोध के बाद मीरा ने इस बारे में नीरज से बात की. नीरज ने छूटते ही बताया कि वह एक ऐसे तांत्रिक को जानता है, जो कइयों की मनमानी संतान की चाहत को पूरा करवा चुका है, लेकिन इस पर वह मोटी फीस वसूलता है.

नीरज की विश्वास भरी बातें सुन कर मीरा को लगा जैसे उस के भाईभाभी की मुराद बस पूरी होने ही वाली है. उस ने तुरंत तांत्रिक से बात करने के लिए कहा.

अगले रोज ही नीरज ने मीरा को जानकारी दी कि हमें इस के लिए भैयाभाभी को तांत्रिक गिरवर यादव नाम के तांत्रिक के यहां ले कर जाना होगा. वहीं उन की जन्म कुंडलियों को देखने के बाद उपाय के बारे में सब कुछ तय किया जाएगा.

मीरा ने तुरंत यह जानकारी अपनी भाभी ममता को दी, ममता ने अपने पति बेटू को इस के लिए राजी कर लिया. इस पर आने वाले खर्च के बारे में बेटू ने जानना चाहा. मीरा कोई निश्चित राशि तो नहीं बता पाई, लेकिन इतना जरूर कहा कि नीरज के मुताबिक लाख, सवा लाख में उपाय हो जाना चाहिए.

इसी के साथ मीरा ने बेटू को 10-15 हजार रुपए साथ ले कर चलने को भी कहा, ताकि तांत्रिक की पैरपुजाई के तौर पर कुछ पेशगी दी जा सके.

तांत्रिक ने बताया संतान प्राप्ति का तरीका

चारों लोग तांत्रिक के पास गए. तांत्रिक ने बेटू और ममता की जन्मकुंडलियां देखने के बाद ध्यान लगा कर बताया कि ममता की किस्मत में औलाद सुख बहुत ही कमजोर है. थोड़ीबहुत उम्मीद की किरण बेटू में दिखती है. उसे ममता के करीब लाने के लिए एक तांत्रिक अनुष्ठान करना होगा.

तांत्रिक ने अनुष्ठान का समय भी निर्धारित कर दिया. बताया कि दोनों को औलाद सिर्फ उसी सूरत में हो सकती है, जब वे शरद पूर्णिमा की आधी रात में किसी निस्संतान महिला की बलि बगैर रक्त बहे दे दें.

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अनुष्ठान तक की बात सभी के लिए किसी उम्मीद की किरण से कम नहीं थी, लेकिन बलि की बात सुन कर सभी हैरानी में पड़ गए. जबकि तांत्रिक ने स्पष्ट कहा कि इस के बगैर वे संतान की उम्मीद छोड़ दें.

मीरा और नीरज ने इस के लिए तुरंत हामी भर दी. उस के बाद ममता और बेटू ने भी अपनी स्वीकृति दे दी. उन्होंने इस पर आने वाले खर्च और आगे की तैयारी के बारे में पूछा.

तांत्रिक गिरवर यादव ने बताया कि पूरे आयोजन पर कुल डेढ़ लाख रुपए का खर्च आएगा. बलि के लिए किसी को तैयार करने का खर्च और इंतजाम उन का होगा. इस काम के लिए वह श्मशान में लगातार 3 घंटे तक मंत्रजाप  अकेले करेंगे.

तांत्रिक की शर्त पर ममता, बेटू, मीरा और नीरज ने एक साथ हामी कर दी. अनुष्ठान के लिए समय मात्र एक हफ्ते का बचा था. महत्त्वपूर्ण तैयारी किसी वैसी निस्संतान औरत के तलाश की थी, जो उन की बिरादरी की न हो. इस के लिए नीरज को लगा दिया गया.

उस ने अपने जानने वालों से गुप्त तरीके से इस पर काम करना शुरू कर दिया. उसी क्रम में उसे पहचान वाली रोशनी से मदद मिल गई. उस ने आरती के बारे में बताया.

संयोग से आरती को नीरज पहले से जानता था. जल्द ही उन के बीच बात बन गई और नीरज ने आरती को 10 हजार रुपए में धार्मिक आयोजन में सहयोग करने के लिए तैयार कर लिया. नीरज आरती को एडवांस पैसा देने के बाद 20 अक्तूबर, 2021 की शाम 8 बजे के करीब आटो में बिठा कर बेटू की पुरानी छावनी स्थित आवास पर ले गया. वहां गिनेचुने लोग ही थे. उसे मिला कर कुल 5 लोग.

एक कमरे में अनुष्ठान की तैयारी की गई थी. आरती की खातिरदारी के साथसाथ उस के लिए खरीदे गए उपहार के कपड़े और सामान दिखाए गए, जो उसे आयोजन के बाद दिए जाने थे. आरती यह सब देख कर खुश हो गई.

औनलाइन अनुष्ठान में दी गई महिला की बलि

मीरा ने आरती को आयोजन के उद्देश्य और तरीके के बारे में समझाया. उस ने कहा कि उस के सहयोग से उस के भाईभाभी के घर में किलकारी गूंज उठेगी. इस का लाभ भविष्य में हम सभी को मिलेगा, ऐसा पुजारी ने कहा है. उसे एक धार्मिक अनुष्ठान में बेटू और ममता के साथ एक अनुष्ठान करने वाले महत्त्वपूर्ण सदस्य के तौर पर बैठना है.

अनुष्ठान का सारा काम औनलाइन होगा. पुजारी दूर रह कर हवन आदि के साथ मंत्रजाप करेंगे. यहां से हमें मोबाइल पर उन की आवाज के साथ सहयोग का जयकारा लगाना होगा.

इन तैयारियों के साथ अनुष्ठान का आयोजन रात के 11 बजे शुरू हो गया. तांत्रिक ने बलि देने का समय रात के एक बजे का तय किया था. आरती को इस का जरा भी आभास नहीं हुआ कि उस की बलि दी जानी है.

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Manohar Kahaniya: बहन के प्यार का साइड इफेक्ट- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- आर. के. राजू

गगन अभी कुछ बोलता इस से पहले ही ममता बोली, ‘‘मैं हर्बल पार्क घूमने आई थी. पार्क की सुंदरता देख कर तुम्हारे साथ यहां गुजारे पुराने दिन याद आ गए. आ जाओ यहीं पार्क के रेस्तरां में एक बार फिर मिलते हैं. साथ बैठते हैं…’’

बीते दिनों की कई पुरानी बातें बता कर ममता ने गगन को काफी भावुक कर दिया था. वह ममता की बातें सुन कर पुराने दिनों के हसीन लम्हों में खो गया. ममता गगन का पहला प्यार थी.

गगन को ममता के साथ बिताए पल अचानक झिलमिलाने लगे थे. वह ममता से बोला,‘‘तुम बुलाओ और हम न आएं, ऐसा नहीं हो सकता.’’

थोड़ी देर में ही गगन हर्बल पार्क पहुंच गया. ममता जींस टौप पहने बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी.

गगन ने आते ही ममता को बाहों में भर लिया. ममता उस से छूटते ही बोली, ‘‘तुम अभी भी वही पुराने वाले गगन, जरा भी नहीं बदले…लेकिन अब तुम शादीशुदा हो आगे से ध्यान रखना हां. …अच्छा चलो पार्क के बाहर झाडि़यों की ओर चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ बातें करेंगे, आराम से.’’

गगन को झाडि़यों में ले गई ममता

गगन ने महसूस किया कि ममता में कोई बदलाव नहीं आया है, वही पहले की तरह चंचल अदाएं, कसक और अपनापन….

‘‘ थोड़ा रुको यार, बहुत दिनों बाद मिले हो तुम्हारे लिए कोल्ड ड्रिंक्स और नमकीन लाती हूं. वहीं पार्क में बैठ कर साथसाथ पीएंगे.’’

ममता के बोलने पर गगन बोला, ‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

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‘‘ बस मैं कैंटीन गई और अभी आई.’’ बोलती हुई ममता कैंटीन की ओर जाने लगी.

तभी गगन हाथ खींचते हुआ बोला, ‘‘यह काम तुम्हारा नहीं मेरा है.’’

‘‘देखो मैं ने तुम्हें बुलाया है. समझो कि आज तुम हमारे मेहमान हो.’’ ममता कहती हुई गगन से हाथ छुड़ा कर तेजी से कैंटीन की ओर दौड़ी चली गई. गगन उसे देखता रह गया.

ममता यह सब योजना के मुताबिक कर रही थी. ममता की जिद के आगे गगन कुछ नहीं कर पाया. वह केवल ममता के साथ गुजारे पुराने लम्हों को ही याद करता रह गया.

‘‘ आओ चलें…’’ ममता बोली.

गगन एक बार फिर सपनों की दुनिया से बाहर आया. ममता के हाथ से कोल्ड ड्रिंक अपने हाथ में ले ली. ममता डिसपोजल गिलास और नमकीन का पैकेट संभालती हुई झाडि़यों की ओर बढ़ गई. कुछ पल में ही दोनों पार्क के मुख्य मार्ग से नजर नहीं आने वाली झाडि़यों के पीछे थे. गगन टायलेट का इशारा करते हुए उस ओर चला गया.

ममता के लिए इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था. उस ने तुरंत दोनों डिसपोजल गिलास निकाले. उन में दोतिहाई कोल्ड ड्रिंक भरा और अपने साथ लाई नशीले पदार्थ की पुडि़या एक गिलास में डाल दी. गगन के आते ही उस ने अपने बाएं हाथ का गिलास उस की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहींनहीं, इस हाथ से नहीं दाएं हाथ वाला दो. तुम्हारी बाएं हाथ से किसी को सामन देने की आदत अभी तक गई नहीं है.’’ गगन बोला.

‘‘क्या करूं गगन, मेरा दायां हाथ चलता ही नहीं है. तुम्हारे साथ शादी हो जाती तब  शायद यह आदत छूट जाती. अच्छा लो इसे पकड़ो.’’ कहती हुई ममता ने अपने दाएं हाथ का कोल्ड ड्रिंक भरा गिलास आगे कर दिया. गगन ने गिलास हाथ में ले लिया.

उस से एक घूंट पीने के बाद ममता मंदमंद मुसकराई. उस की मुसकान में कुटिलता छिपी थी, कारण वह अपनी योजना में कामयाब हो रही थी. नशीला पदार्थ मिला कोल्ड ड्रिंक का गिलास गगन के हाथ में था और वह नमकीन के साथसाथ घूंटघूंट कर चुस्की लेने लगा था.

कुछ समय में ही गगन बोला. ‘‘ममता… म… ममता,  मुझे तुम्हारा चेहरा साफ क्यों नहीं दिख रहा.’’ गगन की आवाज में लड़खड़ाहट थी. ममता समझ गई कि उस पर नशा हावी हो रहा है.

ममता ने प्रेम भरी हमदर्दी दर्शाते हुए उस का सिर अपनी गोद में ले लिया. उस के बालों में अंगुलियां घुमाने लगी. कुछ पल में ही गगन पूरी तरह से बेहोश हो चुका था. ममता ने तुरंत थोड़ी दूर दूसरी झाड़ी के पीछे छिपे वीरू को इशारा किया.

इशारा पाते ही ताक में बैठा वीरू ममता के पास आ गया. ममता वहां से उठती हुई बोली, ‘‘शिकार को संभालो, मैं ने अपना काम कर दिया, आगे का काम तुम्हारा.’’

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उस के बाद नंदिनी और प्रदीप को भी इस की जानकारी दे दी कि उस का काम पूरा हो चुका है. हालांकि तब तक गगन के मुंह से केवल एक ही बड़बड़ाने की आवाज निकल रही थी, ‘‘ममता क्या हुआ है मुझे…’’

‘‘कुछ नहीं तुम्हें थोड़ा चक्कर आ गया है, अभी तुम्हें डाक्टर के यहां ले जाने का इंतजाम करवाती हूं.’’ ममता बोली. ममता उसे सहारा देते हुए वीरू के साथ उस की मोटरसाइकिल तक ले गई. वहां प्रदीप पहले से मौजूद था.

गगन को प्रदीप और वीरू ने पकड़ कर मोटरसाइकिल पर बिठा दिया. वीरू मोटरसाइकिल चलाने के लिए बैठ गया, जबकि प्रदीप गगन को गिरने से थामे हुए था.

वीरू और प्रदीप गगन को जयंतीपुर ले गए. वहां एक खाली प्लौट में उन दोनों ने गगन को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर गगन के गले में पड़े गमछे से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी.

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Satyakatha: पुलिसवाली ने लिया जिस्म से इंतकाम- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

शीतल के इंस्टाग्राम पर पुलिस को एक मर्द का चेहरा और एक पोस्ट नजर आई, जिस का नाम धनराज यादव था. पुलिस ने शीतल के परिचितों को खंगालना शुरू किया तो जानकारी मिली कि धनराज यादव पेशे से एक बस ड्राइवर है.

शीतल की इंस्टाग्राम पर धनराज से दोस्ती हुई थी. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि शीतल ने धनराज से दोस्ती करने के 5 दिनों बाद ही उस से शादी कर ली. यह बात 2019 के आखिर की है.

यह अपने आप में हैरानी की बात जरूर थी. इंसपेक्टर लांडगे को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं धनराज यादव ने ही अपनी पत्नी के साथ हुए यौन शोषण का बदला लेने के लिए शिवाजी की सड़क हादसा कर हत्या कर दी हो. वह पेशे से ड्राइवर भी था.

पुलिस को लगने लगा कि कातिल अब उस से एक हाथ की दूरी पर है. गुपचुप तरीके से शीतल के जानकारों से पुलिस ने पता कर लिया कि धनराज तमिलनाडु का रहने वाला है. शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही धनराज रहस्यमय तरीके से अचानक शीतल को छोड़ कर तमिलनाडु चला गया. उस के बाद धनराज को किसी ने नहीं देखा.

डीसीपी शिवराज पाटिल को केस की इस नई जानकारी का पता चलने पर एक टीम को तमिलनाडु भेज दिया गया. एक सप्ताह तक सुरागरसी करतेकरते पुलिस टीम आखिर तमिलनाडु में धनराज के घर तक पहुंच गई और उसे पकड़ कर मुंबई ले आई.

हालांकि पुलिस ने नैनो कार में बैठे जिन 2 लोगों की सीसीटीवी फुटेज हासिल की थी, उन से धनराज का चेहरा कहीं भी मेल नहीं खाता था. लेकिन फिर भी उस से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ तो नई जानकारी मिली.

उस ने कुबूल कर लिया कि उस ने इंस्टाग्राम पर कांस्टेबल शीतल से दोस्ती करने के बाद 5 दिनों में ही शादी कर ली थी, लेकिन एक महीने के बाद ही वह शीतल को छोड़ कर अपने गांव चला गया था.

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‘‘क्यों, ऐसा क्यों किया तुम ने?’’ इंसपेक्टर लांडगे ने सवाल किया.

‘‘सर, मैं बहुत डर गया था. पहले तो दोस्ती करने के बाद इतनी जल्द मेरे जैसे ड्राइवर से एक पुलिस वाली के शादी करने का राज ही मेरी समझ में नहीं आया था. लेकिन शादी के 5 दिन बाद ही जब शीतल ने मुझ से एक खतरनाक काम करने के लिए कहा तो मेरी समझ में आ गया कि उस ने अपना काम कराने के लिए मुझ से शादी की है और मुझे हथियार बनाना चाहती है.’’ धनराज ने सहमते हुए एकएक राज उगलना शुरू कर दिया.

उस ने बताया कि शीतल ने उसे शिवाजी सानप द्वारा अपने यौनशोषण की कहानी सुना कर भावुक कर दिया था. इस के बाद शीतल ने उस से कहा कि अगर वह उस से प्यार करता है तो वह अपनी पत्नी के साथ हुई नाइंसाफी का बदला ले और शिवाजी को ट्रक से कुचल कर मार दे.

यह सुन कर धनराज बहुत डर गया. क्योंकि वह मुंबई शहर में रोजीरोटी कमाने के लिए आया था. ऐसे में एक कत्ल वह भी पुलिस वाले का… ऐसा सुनते ही धनराज के रोंगटे खड़े हो गए.

उस ने शीतल को समझाया, ‘‘शीतल, जो हुआ उसे भूल जाओ. यह सब जान कर भी तुम्हारे लिए मेरा प्यार कम नहीं हुआ है. वैसे भी यह काम बहुत रिस्क वाला है मैं ने जीवन में कभी ऐसा काम नहीं किया है. सोचो मैं ने यह काम कर भी दिया तो एक न एक दिन भेद खुल जाएगा. फिर मैं और तुम दोनों ही पकड़े जाएंगे.’’

लेकिन शायद शीतल के ऊपर शिवाजी से इंतकाम लेने का जुनून इस कदर सवार था कि वह आए दिन धनराज पर दबाव डालने लगी कि चाहे जैसे भी हो, उसे शिवाजी की हत्या करनी ही होगी.

वह तो पेशे से ड्राइवर है इसलिए किसी को भी शक नहीं होगा. अगर पकड़े भी गए तो केवल लापरवाही से हुई दुर्घटना का केस चलेगा.

इसी तरह 3 सप्ताह गुजर गए. धनराज अजीब पशोपेश में था. क्योंकि वह दिल से नहीं चाहता था कि ऐसा गलत काम करे. उसे अब इस बात का भी डर सताने लगा था कि अगर वह लगातार शीतल का काम करने से मना करता रहा तो वह कहीं उसे पुलिस विभाग में अपनी तैनाती का फायदा उठा कर किसी झूठे आरोप में फंसवा कर जेल न भिजवा दें.

उस के सामने अब यह भी साफ हो गया था कि शीतल ने उस से शादी अपना यह काम करवाने के लिए ही की थी. लिहाजा एक दिन डर की वजह से धनराज अपनी नौकरी छोड़ कर सारा सामान समेट कर अपने गांव तमिलनाडु भाग गया.

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धनराज से पूछताछ के बाद पुलिस एक बार फिर अंधेरे मोड़ पर खड़ी हो गई. क्योंकि पुलिस पहले ही तसदीक कर चुकी थी कि 2019 में तमिलनाडु जाने के बाद धनराज कभी अपने राज्य से बाहर या मुंबई नहीं गया था.

‘‘अच्छा, तुम ये दोनों फोटो देख कर बताओ कि इन में से किसी को पहचानते हो? ये उस कार में बैठे लोगों की फोटो हैं जिस से शिवाजी का ऐक्सीडेंट हुआ था.’’

धनराज से पूछताछ के बाद निराश इंसपेक्टर लांडगे ने धनराज को सीसीटीवी से हासिल हुई दोनों संदिग्धों की फोटो दिखाईं तो धनराज बोला, ‘‘अरे सर, ये तो विशाल है. 2019 में शीतल से शादी के बाद मैं जिस सोसाइटी में रहता था, उसी सोसाइटी के चौकीदार बबनराव का बेटा है ये.’’

पूरी तरह से निराश हो चुके इंसपेक्टर लांडगे के चेहरे पर धनराज का जवाब सुनते ही अचानक चमक आ गई. अब उन्हें लगने लगा कि शिवाजी सानप हत्याकांड की गुत्थी सुलझ जाएगी.

धनराज की इस गवाही से जब डीसीपी पाटिल को अवगत कराया गया तो उन्होंने तत्काल पुलिस कमिश्नर को इस पूरे केस की जानकारी दे कर शीतल की गिरफ्तारी का आदेश हासिल कर लिया.

12 सितंबर की रात पुलिस ने ताबड़तोड छापेमारी कर पहले शीतल को हिरासत में लिया, उस के बाद उसी रात विशाल बबनराव जाधव को. उन दोनों से पूछताछ के बाद गणेश लक्ष्मण चव्हाण उर्फ मुदावथ को भी हिरासत में ले लिया.

इन लोगों के पास से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन, एक कार और कुछ कपड़े बरामद किए. तीनों ने कड़ी पूछताछ में शिवाजी सानप की हत्या का गुनाह कुबूल कर लिया. शिवाजी माधवराव सानप की सड़क दुर्घटना में मौत का मामला पनवेल पुलिस ने भादंसं की धारा 302 व 201 में दर्ज कर लिया.

अगले दिन तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद 7 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया. इस दौरान पुलिस ने घटना की एकएक कडि़यों को जोड़ कर तीनों आरोपियों के खिलाफ कड़े सबूत एकत्र करने का काम किया.

इन से की गई पूछताछ के बाद इस अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

शीतल पंचारी महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली थी. स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उसे महाराष्ट्र पुलिस में नौकरी मिल गई. 28 साल की शीतल 4 साल नौकरी के बाद जब 2018 में नेहरू नगर थाने में तैनात हुई तो उस की दोस्ती जल्द ही अपने ही थाने में तैनात हैडकांस्टेबल शिवाजी माधवराव सानप से हो गई.

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दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई और दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ता भी कायम हो गया. दोनों के बीच लंबे समय तक प्यार की कहानी चली.

उन दोनों के रिश्ते के बारे में अब विभाग में भी चर्चा होने लगी थी. शीतल के साथ काम करने वाले साथी पुलिसकर्मी भी अब उसे शिवाजी का माल कह कर चिढ़ाने लगे थे.

ऐसे में बदनामी बढ़ती देख एक दिन शीतल ने शिवाजी से कहा कि हम दोनों के संबंधों को ले कर अब लोग अंगुलियां उठाने लगे हैं, इसलिए हमें अब शादी कर लेनी चाहिए.

यह सुनते ही शिवाजी को झटका लगा. क्योंकि वह तो पहले से ही शादीशुदा था, उस के 2 बच्चे भी थे. लिहाजा शादी की बात सुनते ही शिवाजी ने शीतल को डपट दिया और बोला, ‘‘संबध रखने हैं तो रखो नहीं तो छोड़ दो. लेकिन मैं किसी भी हालत में शादी नहीं कर सकता. क्योंकि मैं अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता हूं.’’

शादी से इंकार की बात सुनते ही शीतल शिवाजी पर बिफर पड़ी. क्योंकि शिवाजी ने ऐसी कड़वी बात कह दी थी, जिस ने शीतल के तन, मन और आत्मा को बुरी तरह झुलसा दिया था.

शिवाजी ने तंज कसा था, ‘‘शादी से पहले जो औरत एक हैडकांस्टेबल के नीचे लेट सकती है वह अपना काम निकलवाने के लिए तो न जाने कितने बड़े अफसरों के नीचे लेटेगी. अपनी प्यार करने वाली बीवी को छोड़ कर ऐसी औरत से कौन शादी करेगा?’’

उस दिन शिवाजी और शीतल में खूब लड़ाई हुई और उसी दिन से दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं.

चूंकि शीतल के शिवाजी से संबंधों की बात पूरे थाने को और विभाग के दूसरे लोगों को भी पता थी. इसलिए खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए शीतल ने पहले उस के खिलाफ उसी नेहरू नगर थाने में छेड़छाड़ की धारा 354 तथा उस के बाद कल्याण थाने में बलात्कार की धारा 376 में शिकायत दर्ज करवा दी थी.

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

24सितंबर, 2021. शुक्रवार का दिन था. दोपहर के करीब एक बजे का टाइम था. दिल्ली में स्थित रोहिणी की कोर्ट में हर दिन की तरह ही काम हो रहा था. हर कोर्टरूम में अदालती काररवाई चल रही थी. कोर्ट परिसर की बिल्डिंग के अंदर और बाहर दोनों ही एरिया में वकीलों, पीडि़तों, फरियादियों, पुलिस वालों इत्यादि की भीड़ जमा थी. हर कोई अपनेअपने काम में व्यस्त था.

बिल्डिंग के अंदर कोर्ट रूम नंबर 207 के बाहर भी ऐसा ही कुछ माहौल था. दोपहर करीब सवा बजे के आसपास एडिशनल सेशन जज गगनदीप सिंह अपने कोर्टरूम में दाखिल हुए तो रूम में बैठे सभी लोग उन के सम्मान में खड़े हुए और धीमी आवाज में हो रही खुसफुसाहट एकदम से शांत हो गई.

रूम में दाखिल होते ही उन्होंने कोर्टरूम में सभी लोगों पर अपनी नजर घुमाई और ये सुनिश्चित किया कि सब ठीक तो है.

नजर घुमाने के बाद न्यायाधीश ने अपनी जगह पर बैठते हुए सभी लोगों को हाथ से बैठने का इशारा किया और अपनी कुरसी पर बैठ गए. उस समय कोर्टरूम में बाएं और दाएं दोनों ओर कठघरों के पास वकील की ड्रैस पहने 2 व्यक्ति चुपचाप खड़े थे.

कमरे के बीचोबीच नीले रंग की कमीज और काली पैंट में एक शख्स 2 पुलिस वालों के साथ खड़ा था. उस के हाथों में हथकडि़यां लगी थीं और वह ठीक न्यायमूर्ति के सामने ही खड़ा था.

यह शख्स मशहूर गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी था, जिस पर दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने एक समय पर कुल मिला कर 6 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया हुआ था. गोगी पर जून 2018 में दिल्ली पुलिस ने मकोका एक्ट लगा दिया था, जिस की सुनवाई उस दिन होने वाली थी. गोगी इतना बड़ा और खतरनाक गैंगस्टर था कि उसे स्पैशल सेल और थर्ड बटालियन की कस्टडी में कोर्ट में लाया गया था.

करीब 2 मिनट के बाद सामने कुरसियों पर बैठे लोगों में से एक वकील अपने हाथों में एक भारीभरकम मोटी सी फाइल लिए अपनी कुरसी से उठा और अपनी फाइल में से केस का वारंट निकाल कर जज साहब की ओर आगे बढ़ा दिया.

उस का दिया वारंट अभी जज के हाथों में पहुंचा ही था कि दोनों कठघरों के पास खड़े काले कोट में वकील जैसे दिखाई देने वाले दोनों लोग अचानक से गोगी की तरफ आगे बढ़े और अपनी कमर में पीछे की ओर से पिस्तौल निकाल कर गोगी की छाती पर तान दी.

उन्होंने गोगी की छाती पर अपनी पिस्तौल तान कर गोली चला दी. वकील के काले कोट में दोनों लोगों ने एकएक कर करीब कुल मिला कर आधा दरजन गोलियां चला कर उस के शरीर को भेद दिया, जिस से वह वहीं ढेर हो कर जमीन पर गिर पड़ा.

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ये सब अचानक से और इतनी जल्दी हुआ कि किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला. कोर्टरूम में अचानक से अफरातफरी का माहौल बन गया. सब के दिलों में दहशत फैल गई थी. कोर्टरूम के आगे और पीछे के गेट से जितने लोग अपनी जान बचाने के लिए निकल सकते थे, वे जल्दीजल्दी निकल गए.

लेकिन कोर्टरूम में अभी भी गोलियां चलाने वाले दोनों हमलावर, पुलिस की टीम (जो गोगी को कोर्टरूम में ले कर आए थे), अन्य पुलिसकर्मी, न्यायमूर्ति गगनदीप सिंह और उन

के साथ कुछ और लोग कोर्टरूम में ही फंसे थे.

दोनों हमलावर कोर्टरूम से भाग कर निकल न सकें, इस के लिए अंदर मौजूद पुलिसकर्मियों ने कोर्टरूम के दोनों दरवाजों को बंद कर दिया. कोर्टरूम में हर कोई खुद को सुरक्षित करने के लिए जिसे जहां जगह मिली, वह उसी के पीछे या नीचे छिप कर चलने वाली गोलियों से खुद को बचाने लगा. न्यायाधीश गगनदीप सिंह भी अपनी जान बचाने के लिए अपनी डेस्क के नीचे छिप गए.

हमलावरों ने गोगी पर गोलियां चलाने के बाद भागने के लिए जब कोर्टरूम के दरवाजों पर नजर घुमाई तो देखा कि दोनों गेट बंद थे. यह देख कर वे और भी अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे. ऐसे में रूम में मौजूद पुलिसकर्मियों ने भी जवाबी काररवाई करते हुए उन दोनों हमलावरों पर गोलियां चलाईं.

पुलिस की गोलियों से बचने के लिए दोनों हमलावरों ने अपनेअपने कोनों में कुरसियों के पीछे छिप कर पोजीशन बना और पुलिस पर गोलियां चलाने लगे थे. पुलिसकर्मी भी खुद को सुरक्षित रखते हुए और बाकी लोगों की जान बचाने के लिए जल्द से जल्द उन हमलावरों को ढेर कर देना चाहते थे.

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उधर दूसरी ओर कोर्टरूम के बाहर और पूरे अदालत परिसर में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं. लोग अपनी जेब से मोबाइल फोन निकाल कर उस घटना का वीडियो बनाने को आतुर थे. अदालत परिसर में जहांजहां तक गोलियां चलने की आवाजें पहुंच रही थीं, लोग उसे रिकौर्ड कर रहे थे.

जो रिकौर्ड नहीं कर रहे थे, वह जल्द से जल्द अदालत से बाहर निकल कर खुद की जान बचाना चाहते थे. उस समय गोलियों की धायंधायं आवाजें सुन कर जिला अदालत रोहिणी कोर्ट के हर कोने में हर व्यक्ति के दिल में दहशत फैल गई थी.

वहीं कोर्टरूम में गोलियां चलने की आवाजें थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. हमलावर और पुलिसकर्मी दोनों ओर से एकदूसरे पर फायरिंग की जा रही थी.

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