Manohar Kahaniya: करोड़ों की चोरियां कर बना रौबिनहुड- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

फिर एक से एक महंगी बाइक खरीदी और लाखों रुपए की कीमत की लग्जरी कारें खरीदीं. बाद में उस ने अपने गैंग में गांव के कुछ युवकों को भी शामिल कर लिया और उन्हें अपने साथ घुमाने लगा.

गांव के युवकों पर वह पानी की तरह रुपए खर्च करता, जिस से वह भी उस की तरह जिंदगी बसर करने के लिए उस के चोरी के धंधे से जुड़ते चले गए. धीरेधीरे महंगी कार खरीदने के बाद उसे विदेशी गाडि़यां खरीदने का शौक लग गया.

जगुआर से जाता था चोरी करने

साल 2012 में वह पहली बार तब खबरों में आया जब उस ने दरभंगा में एक नाचने वाली पर लाखों रुपए उड़ाए. बाद में 2013 में कानपुर पुलिस उसे 30 लाख की ज्वैलरी चोरी के मामले में गिरफ्तार करने गांव आई तो वह पुपरी थाने से भाग गया.

फिर वह 2014 में चुनाव के दौरान अपनी महंगी गाड़ी में 4 लाख रुपए के साथ पकड़ा गया था. इस के बाद धीरेधीरे लोगों को पता चलने लगा कि वह एक अपराधी है और बड़े महानगरों में रहने वाले लोगों के घरों में चोरियां करता है.

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कविनगर (गाजियाबाद) में चोरी की वारदात से कुछ दिन पहले बिहार जाते हुए इरफान की जगुआर कार सड़क दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हो गई थी. इस के बाद उस ने अपनी पत्नी गुलशन के नाम से नई स्कौर्पियो कार खरीद ली. कपिल गर्ग के घर चोरी करने के लिए इरफान इसी स्कौर्पियो से अपने ड्राइवर शोएब के साथ आया था.

इरफान ने दिल्ली में नोटबंदी से पहले एक जज के घर 65 लाख रुपए की चोरी की थी. जब वह चोरी करने के लिए घर में घुसा तो अलमारी में नोटों की गड्डियां मिलीं. उस ने 2 बैगों में नोट भरे, लेकिन वह एक ही बैग उठा पाया और ले कर चला गया. चोरी के बाद नोट गिने तो 65 लाख रुपए निकले. बाद में पता चला कि जज ने केस ही दर्ज नहीं कराया था.

इरफान अपराध की दुनिया का अब वह नाम बन चुका नाम था, जो चोरी के मामले में एक्सपर्ट बन चुका था. वह बंटी चोर की तरह अकेले ही चोरी की वारदात को अंजाम दिया करता था.

चोरी की वारदात को अंजाम देने के समय इरफान अपने साथ महज पेचकस रखता था. पूरे तरीके से काले कपड़े पहन कर घर में प्रवेश किया करता था. आमतौर वह नंगे पांव ही घरों में घुसता था.

वह दीवार पर नंगे पैर चढ़ कर कोठियों में ऐसे घुस जाता था जैसे स्पाइडरमैन फिल्म का हीरो दीवारों पर चढ़ता है. वह कभी भी मेनगेट से नहीं जाता, बल्कि पिछली दीवार से चढ़ कर चोरी करता था.

कविनगर के कारोबारी कपिल गर्ग की कोठी में भी वह पीछे के रास्ते से ही अकेले घुसा था. पिछले 10 सालों से चोरी की वारदात करने के बावजूद इरफान आज तक किसी भी वारदात में रंगेहाथ नहीं पकड़ा गया. वारदात के दौरान न तो किसी कोठी के गार्ड ने उसे पकड़ा और न ही कोठियों में पलने वाले कुत्तों ने उस पर हमला किया.

इरफान चोरी के दौरान कीमती गहनों और नकदी पर ही हाथ साफ करता था. घर के सामान में वह कीमती इलैक्ट्रौनिक सामानों को ही अपने साथ ले जाता था.

इरफान जब चोरी करने के लिए जाता तो वह यह नहीं देखता कि घर किस का है और उस के आसपास कौन रहता है. बस उस के दिल से अगर ये आवाज निकल जाती कि फलां घर पर हाथ साफ करना है तो वह बेधड़क उस घर में रखे कीमती सामान पर हाथ साफ कर देता.

देश के बड़े शहरों में थे इस शातिर चोर की गैंग के सदस्य

2 साल पहले उस ने गोवा के राज्यपाल के घर के पास से एक व्यापारी के घर से लाखों रुपए की नकदी और गहने चुरा लिए क्योंकि उस के दिल से आवाज निकली कि इस घर में मोटा माल मिलेगा.

इरफान की खूबी थी कि किसी भी वारदात को करने से पहले खुद कभी रेकी नहीं करता था. हां, देश के कई बड़े शहरों में फैले उस के गैंग के सदस्य जरूर रेकी कर के उसे जरूर बता देते थे कि अमुक घर में मोटा माल मिल सकता है या उस में रहने वाले लोग घर से बाहर हैं.

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लेकिन तब भी इरफान तब तक चोरी नहीं करता था, जब तक मौके पर जा कर उस के दिल से आवाज नहीं निकलती. वह अपनी महंगी गाड़ी से निकलता और दिल की गवाही देते ही वारदात को अंजाम दे देता था. उस का अंदाजा इतना सटीक था कि वह आज तक जिस घर में गया, लाखों रुपया ले कर ही निकला.

इरफान उर्फ उजाला लग्जरी गाडि़यों से अपने ड्राइवर व साथियों के साथ चोरी करने निकलता. कविनगर में चोरी करने के बाद वह अपने गांव सीतामढ़ी, बिहार चला गया था. वहां उस ने कुछ दिनों के लिए चुराई गई ज्वैलरी अपने खेत के गड््ढे में दबा दी थी. इस के बाद ज्वैलरी को बिहार के मुजफ्फरपुर व दरभंगा के सुनारों के यहां गिरवी रख कर मोटी रकम ले ली थी.

कुछ ज्वैलरी उस ने बेच भी दी थी. इस के बाद वह अलीगढ़ चला गया, जहां 3 सुनारों को उस ने चोरी के कुछ जेवर बेचे. 1-2 दिन अपनी माशूका रूपाली के पास रहा उस के बाद वहीं से नेपाल भाग गया.

इस दौरान उस के लोग चोरी के मामले में गिरफ्तार हो चुकी गुलशन, बहन लाडली व माशूका रूपाली की जमानत कराने में जुटे रहे. इरफान लगातार अपने लोगों के संपर्क में था.

इरफान ने पूछताछ में बताया कि वह तो बस गरीबों की मदद करने के लिए चोरी करता है, लेकिन पुलिस तो उस से भी बड़ी चोर है. जिस का उदाहरण देने के लिए इरफान ने गाजियाबाद पुलिस को एक किस्सा सुनाया. उस ने बताया कि बंगलुरु में उस ने चोरी की एक वारदात को अंजाम दिया था, जिस में उसे मात्र डेढ़ लाख रुपए मिले थे.

इस वारदात के बाद उस ने हैदराबाद में चोरी की एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया. लेकिन तब तक बंगलुरु पुलिस ने उसे अपने इलाके में हुई चोरी की वारदात में गिरफ्तार कर लिया और उस के घर से 40 लाख रुपए बरामद हुए. लेकिन यह रकम को बंगलुरु पुलिस ने बरामदगी में नहीं दिखाई थी और डेढ़ लाख रुपए की चोरी का खुलासा कर दिया.

इरफान ने दिल्ली में चोरी की कई वारदातों को अंजाम दिया, लेकिन वह केवल 2 बार पकड़ा गया. पहली बार 2017 में इरफान को दक्षिणपूर्वी दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

दरअसल इस मामले में गिरफ्तारी की भी एक दिलचस्प कहानी है. 24 मई, 2017 को उस ने न्यू फ्रैंड्स कालोनी में रहने वाले राजीव खन्ना के घर में लाखों रुपए के सोने और हीरे के आभूषण चोरी किए थे. इस मामले में स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने सीसीटीवी फुटेज तथा मौके पर मिले एक मोबाइल फोन से सुराग लगा कर इरफानव उस के एक साथी को गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, इस वारदात में इरफान गलती से अपना मोबाइल घटनास्थल पर भूल गया था. यही मोबाइल फोन उस की गिरफ्तारी का सबब बन गया. हालांकि इस वारदात के बाद उस ने अपने व अपने घर वालों तक के फोन नंबर बदलवा दिए थे, मगर अंत में पकड़ा गया.

दूसरी बार इरफान उर्फ उजाला को जनवरी 2021 में दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच की इंटरस्टेट यूनिट के एसीपी संदीप लांबा व इंसपेक्टर गुरमीत की टीम ने गिरफ्तार किया था. तब उस ने दिल्ली एनसीआर सहित आधा दरजन राज्यों में चोरी करने का खुलासा किया था.

उस ने पुलिस को बताया था कि उस के गैंग के सदस्य दिल्ली, यूपी, बिहार, पंजाब आदि राज्यों में फैले हुए हैं. दिन के समय वे गरीबों की मदद के लिए चंदा मांगने के बहाने रेकी करते थे और जो घर बंद मिलता, उस के बारे में उसे बता देते थे.

इरफान उर्फ उजाला ने करीब 3 साल पहले दिल्ली में ताबड़तोड़ चोरी की घटनाएं कर दिल्ली पुलिस की नींद उड़ा दी थी. बाद में जब लांबा की टीम ने उसे पकड़ा तो उन्होंने इरफान को कुरान शरीफ की कसम दिला कर दिल्ली में चोरी न करने का वादा लिया. तब उस ने भरोसा दिया था कि वह आज के बाद दिल्ली में कभी चोरी नहीं करेगा.

दिल्ली पुलिस को किए वादे पर इरफान खरा भी उतर रहा था. इसीलिए इरफान ने दिल्ली को छोड़ कर गाजियाबाद को अपना निशाना बना लिया था.

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Satyakatha: सिंह बंधुओं से 200 करोड़ ठगने वाला ‘नया नटवरलाल’ सुकेश चंद्रशेखर- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- निखिल

फोन पर अनूप कुमार ने कहा कि मैं स्पीकर फोन पर हूं. मेरे साथ गृहमंत्री अमित शाह साहब हैं. अनूप ने कहा मेरे जूनियर अभिनव के टच में रहो और मुझे अपने पति के केस से जुड़े सभी दस्तावेज भेजो ताकि उन की जेल से जल्द रिहाई की व्यवस्था हो सके और वे कोविड के इस दौर में सरकार के साथ काम कर सकें.

बाद में अभिनव ने खुद को अंडर सेक्रेटरी बताते हुए अदिति सिंह से टेलीग्राम पर संपर्क किया. उस ने कहा कि सरकार उन का पूरा सपोर्ट करेगी. लेकिन वह यह बात किसी को नहीं बताएं, क्योंकि उस पर खुफिया एजेंसियों की नजर है.

इसीलिए सरकार के बड़े लोग लैंडलाइन फोन से बात करते हैं या टेलीग्राम पर संपर्क रखते हैं, क्योंकि वाट्सऐप भी अब सुरक्षित नहीं है. अभिनव ने यह भी बताया कि कई कारोबारी घराने उस के प्रोटेक्शन में हैं.

इस तरह संपर्क कर अभिनव अदिति सिंह का भरोसा जीतता गया. उसे उन की कंपनियों और तमाम कारोबार सहित घरपरिवार की पूरी जानकारी थी.

एक दिन अनूप का फोन आया. उस ने अदिति से कहा कि पार्टी फंड में 20 करोड़ रुपए जमा कराने होंगे. इस के बाद उन्हें अमित शाहजी या रविशंकर प्रसादजी से पार्टी औफिस अथवा नार्थ ब्लौक में मिलना होगा.

अनूप ने पार्टी फंड का पैसा विदेश भेजने को कहा. बाद में उस ने कहा कि हमारा आदमी आप से यह पैसा ले जाएगा.

अदिति के लिए 100-50 करोड़ रुपए बड़ी बात नहीं थी. वह अपने पति को जेल से बाहर निकालने के लिए सही या गलत तरीके से हर कीमत देने को तैयार थीं.

पैसे का इंतजाम होने पर रोहित नाम का एक युवक सेडान गाड़ी से एक महिला के साथ आया और उन से 20 करोड़ रुपए ले गया. बाद में फिर एक बार अनूप का फोन आया. उस ने कहा कि पार्टी आप से खुश है. इस बार उस ने 30 करोड़ रुपए और मांगे.

अदिति ने पूछा कि ये पैसे किस काम के लिए होंगे, तो उसे धमकाया गया कि उन के पति पर सरकार नए केस लगा देगी और उन की जमानत में ज्यादा मुश्किलें आ जाएंगी.

अदिति ने 30 करोड़ रुपए भी दे दिए. फिर एक दिन अनूप का फोन आया. उस ने कहा कि गृह सचिव अजय भल्ला आप से बात करेंगे. अजय भल्ला ने कहा कि आप के पति को आप से जल्दी ही मिलवाया जाएगा.

इस तरह कभी किसी मंत्री और कभी किसी टौप ब्यूरोक्रेट के नाम से फोन आते रहे. ये लोग अदिति को उन के पति की जेल से रिहाई की दिलासा दिलाते रहे और बदले में किसी न किसी बहाने से मोटी रकम मांगते रहे.

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सरकार के भरोसे अपने पति की रिहाई की उम्मीद में अदिति ने अपनी जमापूंजी, निवेश और जेवरात आदि दांव पर लगा कर इन लोगों को एक साल में अलगअलग किस्तों में 200 करोड़ रुपए दे दिए.

इतनी रकम लेने के बाद भी ये लोग उसे धमकाते रहे और विदेश में पढ़ रहे बच्चों को देख लेने की धमकी देते रहे.

सरकार के सपोर्ट के बावजूद एक साल बाद भी कुछ नहीं होने पर अदिति ने अनूप कुमार, अभिनव, अजय भल्ला आदि से हुई बातों को याद कर उन पर गौर किया. उसे महसूस हुआ कि ये सब लोग दक्षिण भारतीय हैं. उन की बातचीत का लहजा दक्षिण भारत का था.

अदिति को ठगी होने का शक हुआ, तो उस ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक अधिकारी से शिकायत की. ईडी के अधिकारी ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी दी.

इसी साल अगस्त के पहले सप्ताह में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को इस मामले की भी जांच सौंपी गई. जांच में पता चला कि अदिति सिंह को दिल्ली की रोहिणी जेल से फोन किए गए थे.

पुलिस ने 8 अगस्त को रोहिणी जेल में छापा मार कर सुकेश को गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. सुकेश से पूछताछ के आधार पर दिल्ली के रहने वाले 2 भाइयों दीपक रामदानी और प्रदीप रामदानी को गिरफ्तार किया गया. वे ठगी की साजिश में भागीदार थे.

सुकेश से पूछताछ में ठगी के मामले में जेल अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई. इस पर जेल प्रशासन ने 23 डिप्टी सुपरिटेंडेंट के तबादले कर दिए. और 6 जेल अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया.

पुलिस ने जेल अधिकारियों से पूछताछ के बाद एक डिप्टी सुपरिटेंडेंट सुभाष बत्रा और एक असिस्टेंट जेल सुपरिटेंडेंट धर्मसिंह मीणा को गिरफ्तार कर लिया.

सुकेश की ठगी की काली कमाई को कमीशन ले कर सफेद करने के मामले में दिल्ली के एक निजी बैंक के वाइस प्रेसीडेंट मैनेजर कोमल पोद्दार और उस के 2 सहयोगियों अविनाश कुमार व जितेंद्र नरूला को गिरफ्तार किया गया.

इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने 23 अगस्त को सुकेश और उस की फिल्म अभिनेत्री पत्नी लीना मारिया पाल सहित उन के साथियों के विभिन्न ठिकानों पर छापे मारे.

इन के चेन्नई में समुद्र के ठीक सामने बने आलीशान बंगले पर ईडी अधिकारियों ने जब छापेमारी की, तो दौलत की चकाचौंध देख कर उन की आंखें फटी रह गईं.

इन छापों में 16 लग्जरी और महंगी कारें, 82 लाख रुपए से ज्यादा नकदी और 2 किलोग्राम सोने के जेवरात के अलावा कपड़े, जूते व चश्मों सहित काफी कीमती सामान जब्त किया गया.

चेन्नई में समुद्र के ठीक सामने बना सुकेश लीना का बंगला किसी रिसौर्ट से कम नहीं है. इस बंगले में ऐशोआराम की चीजें मौजूद थीं. करोड़ों रुपए के इंटीरियर डेकोरेशन, होम थिएटर और तमाम सुखसुविधाएं थीं. बंगले में बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज, बेंटले, फैरारी, रोल्स रायस घोस्ट और रेंज रोवर जैसी करोड़ों रुपए की गाडि़यां मिलीं.

कीमती फरनीचर से सुसज्जित बंगले में दुनिया के नामी ब्रांड फरागमो, चैनल, डिओर, लुइस वुइटटो, हरमेस आदि के सैकड़ों जोड़ी जूते तथा बैग मिले.

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फर्श पर वर्साचे जैसे महंगे ब्रांड के कारपेट और इटालियन संगमरमर बिछा था. ईडी को शक है कि यह बंगला सुकेश व लीना की बेनामी संपत्ति का हिस्सा है.

इस छापे के कुछ दिन बाद ईडी ने मनी लांड्रिंग के मामले में पुलिस से मिली सूचनाओं के आधार पर बौलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीज से भी पूछताछ की. श्रीलंकाई मूल की जैकलीन ने कुछ महीने पहले ही मुंबई में जुहू इलाके में महंगा बंगला खरीदा था. इस बंगले की कीमत 175 करोड़ रुपए बताई जाती है.

कहा जाता है कि दिल्ली की जेल में बंद सुकेश की जैकलीन से दोस्ती थी. वह जेल में रहते हुए भी अपने संपर्कों के जरिए उसे महंगे गिफ्ट, चौकलेट और फूल भिजवाता था.

अदिति सिंह से 200 करोड़ की ठगी मामले की जांचपड़ताल चल ही रही थी कि इसी बीच उन की जेठानी यानी मलविंदर मोहन सिंह की पत्नी जपना सिंह ने भी सुकेश के खिलाफ 4 करोड़ रुपए ठगने की शिकायत अगस्त के अंतिम सप्ताह में दिल्ली पुलिस में दर्ज कराई.

जपना सिंह से भी जेल में बंद उस के पति की जमानत कराने के नाम पर रकम ठगी गई थी. यह रकम हांगकांग के एक खाते में ट्रांसफर कराई गई थी.

दिल्ली पुलिस ने 5 सितंबर को सुकेश की ठगी के मामले में उस की अभिनेत्री पत्नी लीना मारिया पाल को गिरफ्तार कर लिया.

बौलीवुड फिल्म ‘मद्रास कैफे’ में जौन अब्राहम के साथ काम कर चुकी लीना मूलरूप से केरल की रहने वाली है. उस की स्कूली पढ़ाई दुबई में हुई. वह बीडीएस ग्रैजुएट है.

भारत में आने के बाद वर्ष 2009 में मोहनलाल स्टारर फिल्म ‘रेड चिलीज’ से अपना करियर शुरू करने वाली लीना बौलीवुड फिल्म ‘बिरयानी’, ‘हसबैंड इन गोवा’ और ‘कोबरा’ के अलावा कई भाषाई फिल्मों में भी काम कर चुकी है.

अगले भाग में पढ़ें- उसने लोगों को नौकरियों का झांसा दे कर भी 75 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम ठगी

Satyakatha- मुंबई का असली सिंघम: समीर वानखेड़े

सौजन्य: सत्यकथा

मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे ने पिछले 2 सालों में करीब 17 हजार करोड़ रुपए की ड्रग्स बरामद कर ड्रग पैडलरों की नींद हराम कर दी. 

आज बौलीवुड के फिल्म स्टार्स की लेट नाइट पार्टी को युवाओं की पार्टी कहा जाने लगा है. इस की वजह यह है कि आजकल जो पार्टियां हो रही हैं, वे हौट सैक्स, शराब और ड्रग के साथ होती हैं. इन में नई उम्र के फिल्म स्टार्स, प्रोड्यूसर्स, फाइनेंसर और मुंबई, दिल्ली, दुबई के संपन्न घरों के 20-22 साल के टीनएजर होते हैं. पार्टी में आने वाले ये टीनएजर लास वेगास, पेरिस और लंदन की सैक्स पार्टी की नईनई स्टाइल अपनाते हैं. इस में ‘गे’ और ‘लेस्बियन’ भी शामिल होते हैं.

पार्टी में आने वाली फिल्म कलाकारों की बेटियां तो नाममात्र के ही कपड़े पहने होती हैं. मजे की बात यह है कि पहले इन पार्टियों के बारे में सुना जाता था या कभीकभार किसी अखबार में पढ़ने को मिल जाता था.

पर अब तो इन पार्टियों के तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते मिल जाते हैं, जिन में हाथों में टकीला, रम और दुनिया की प्रसिद्ध शराबों की प्यालियां थामे एकदूसरे से बेशरमी से चिपके खड़े युवकयुवतियों के मदहोश स्थिति में ग्रुप फोटो देते दिखाई देते हैं.

ऐसी पार्टियों में जिन्हें ड्रिंक्स, ड्रग्स और सैक्स में अधिक रुचि होती है, वे यह पहले से ही तय कर के आते हैं. कुछ लोग तो जब पार्टी में भाग ले कर घर चले जाते हैं, तब आधी रात को 2 बजे के बाद सैक्स और शराब की रेलमपेल के साथ असली पार्टी जमती है, जो सुबह तक चलती है.

बड़े स्टार, राजनेता, अधिकारी, कारपोरेट हस्तियां या कुख्यात डौन की संतानें इस तरह की पार्टियों में होते हैं. इसलिए अधिकतर इस तरह की पार्टियों पर पुलिस छापा नहीं मारती.

इस की वजह यह होती है कि छोटेमोटे पुलिस अधिकारियों की हिम्मत ही नहीं होती वहां जाने की. पर बौलीवुड में इधर कुछ सालों से हलचल मची है, इस का एकमात्र कारण हैं मुंबई नारकोटिक्स विभाग के जोनल डायरेक्टर ‘सिंघम’ के रूप में माने जाने वाले तेजतर्रार अधिकारी समीर वानखेडे.

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फिल्मी डौन (शाहरुख खान) को पकड़ना भले ही 11 मुल्कों की पुलिस के लिए असंभव रहा हो, पर फिल्मी दुनिया के बादशाह, बाजीगर और किंग माने जाने वाले शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को पकड़ने का काम भले ही कोई पुलिस वाला नहीं कर सका, पर एनसीबी के मुंबई के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे ने उसे पकड़ कर दिखाया ही नहीं, बल्कि जेल तक पहुंचा दिया.

एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे ही एक ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने न सिर्फ शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को गिरफ्तार कर जेल भेजा बल्कि दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर और सारा अली खान को ड्रग के सेवन और वे यह ड्रग वे कहां से लेती हैं, इस बारे में पूछताछ के लिए अपने औफिस में बुलाने की हिम्मत दिखाई थी.

उन की छवि एक सख्त अधिकारी की है. उन के सामने कितना भी बड़ा सेलिब्रिटी क्यों न हो, बिना किसी दबाव के वह अपना काम करते हैं. उन्हीं के नेतृत्व में एनसीबी ने बौलीवुड की सेलिब्रिटीज पर काररवाई की है.

सुशांत सिंह राजपूत केस और अब बौलीवुड के किंग खान यानी शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान केस में चर्चा में रहने वाले एनसीबी के जोनल डायरेक्टर इंडियन रेवेन्यू सर्विस (आईआरएस) के 2008 बैच के अधिकारी समीर वानखेडे का जन्म सन 1984 में मायानगरी मुंबई में हुआ था. उन के पिता भी एक पुलिस अधिकारी थे.

स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा पास की और आईआरएस अधिकारी बन गए. बौलीवुड के गोरखधंधों, घोटालों और दंभ पर उन्हें खासी नाराजगी है.

इस के पहले उन की पोस्टिंग मुंबई के छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर डिप्टी कस्टम कमिश्नर के रूप में हुई थी. यहां उन्होंने बेहतरीन काम किया और नियमों को सख्ती से लागू किया.

मुंबई का छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एक ऐसा एयरपोर्ट है, जहां लगातार सेलिब्रिटीज का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कभी उन पर यह फर्क नहीं पड़ा कि सामने कौन है.

उन्होंने विदेश से आनेजाने वाले बौलीवुड सेलिब्रिटीज के कस्टम चुकाए बिना कीमती सामानों, करेंसी, सोना, ज्वैलरी और गहनों को पकड़ कर दंड के साथ रकम वसूली थी.

तुनकमिजाज और पौवर का रौब दिखाते हुए ऊपर से कराए गए फोन पर वानखेडे ने कभी ध्यान नहीं दिया. पौप गायक मिका सिंह को विदेशी मुद्रा के साथ उन्होंने ही गिरफ्तार किया था.

नारकोटिक्स विभाग में पोस्टिंग होने के बाद पिछले साल नवंबर में जब वह अपने 5 अफसरों के साथ देर रात गोरेगांव में केरी मेंडिस नामक ड्रग पैडलर को पकड़ने जा रहे थे, तब उन पर लगभग 60 ड्रग पैडलरों ने जानलेवा हमला किया था.

यह भी माना जाता है कि फिल्मी दुनिया को ड्रग सप्लाई करने का मुख्य चेन यही गैंग है. मुंबई पुलिस को साथ ले कर बाद में उन्होंने केरी मेंडिस को गिरफ्तार किया था.

41 वर्षीय समीर वानखेडे फिल्म और क्रिकेट के बेहद शौकीन हैं. पर इस क्षेत्र में जो गंदगी घुसी है, उस के खतरनाक सूत्रधारों से उन्हें बेहद नफरत है.

एयरपोर्ट पर भी नहीं बख्शा किसी को

मुंबई एयरपोर्ट पर जब वह डिप्टी कमिश्नर बन कर आए तो उन्होंने अपने साथ काम करने वाले छोटे से छोटे कर्मचारी से कह दिया था कि एयरपोर्ट पर कोई भी सेलिब्रेटी आए तो उस का आटोग्राफ या उस के साथ सेल्फी कतई नहीं लेना है.

उस से प्रभावित हुए बिना सामान्य यात्री की अपेक्षा अधिक शक की नजरों से उन के सामान को, उन के पहने हुए गहनों को, एसेसरीज को चैक करना है.

बिल मांगने और शंका होने पर जरा भी दबाव में आए बगैर उन्हें अलग केबिन में ले जा कर पूछताछ करनी है. अगर कस्टम ड्यूटी भरने की बात आए तो दंड के साथ वसूल करनी है.

एयरपोर्ट पर नियम है कि हर यात्री को अपना सामान खुद ही ट्रौली में रख कर एयरपोर्ट से बाहर निकलना होता है. सेलिब्रिटी या रौबदार यात्री अपना सामान अपने साथ यात्रा करने वाले अपने व्यक्तिगत स्टाफ को सौंप कर बाहर निकलते हैं.

समीर वानखेडे ने सेलिब्रिटीज के लिए भी नियम बना दिया कि सेलिब्रिटी भी अपना सामान अपने साथ ले कर एयरपोर्ट के हर एग्जिट पौइंट से निकलेंगे.

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कभीकभी यह होता था कि सेलिब्रिटी अपने असिस्टैंट के नाम पर शंकास्पद सामान,  यह कह कर खुद को निर्दोष साबित करने की चालाकी करते थे कि यह असिस्टैंट का बैग है. समीर वानखेडे ने इस पर रोक लगा दी थी.

एक बार एक बड़े क्रिकेटर और उस की पत्नी तथा एक फिल्म स्टार ने एयरपोर्ट पर पूछताछ के दौरान वानखेडे से अपमानजनक भाषा में बात करते हुए बहस करने के साथ धमकी दी थी कि उन के सीनियर को फोन कर के उन की नौकरी खतरे में डाल देंगे.

तब समीर वानखेडे ने उन से सख्त शब्दों में कहा था कि इस समय एयरपोर्ट पर सब से सीनियर अधिकारी वह खुद ही हैं. अगर आप ने सहयोग नहीं किया तो मैं तत्काल आप को गिरफ्तार कर सकता हूं. वानखेडे के इतना कहने के बाद सारे सेलिब्रिटी बकरी बन कर उन का सहयोग करने लगे थे.

एक बार ऐसा हुआ था कि साउथ अफ्रीका से एक क्रिकेटर भारत खेलने आया था. रात 3 बजे उस की फ्लाइट मुंबई एयरपोर्ट पर उतरी. सामान क्लीयरेंस काउंटर पर साउथ अफ्रीका के उस क्रिकेटर ने समीर वानखेडे को फोन देते हुए कहा था कि ‘भारत की टीम का बहुत ही सीनियर क्रिकेटर इस पर लाइन पर है और आप से बात करना चाहता है.’

फिल्म अभिनेत्री से की शादी

भारत के उस क्रिकेटर, जिस के देश में करोड़ों प्रशंसक हैं और समीर वानखेडे खुद भी उस के प्रशंसक हैं, उस ने फोन पर कहा था कि ‘साउथ अफ्रीका से आया क्रिकेटर मेरा दोस्त है. वह वाइन की 18 बोतलें ले कर आया है. इसे ड्यूटी के झंझट से मुक्त कर के एयरपोर्ट के बाहर जाने दीजिए.’

तब समीर वानखेडे ने कुछ कहे बगैर फोन रख दिया था. वाइन की 18 बोतलों में से नियम के अनुसार वाइन की 2 बोतलों की ड्यूटी छोड़ कर बाकी की 16 बोतलों पर ड्यूटी वसूल की थी. साउथ अफ्रीका के क्रिकेटर को झेंपते हुए वह ड्यूटी उसी समय भरनी पड़ी थी.

समीर वानखेडे के अनुसार अजय देवगन एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं, जो सचमुच प्रामाणिक आदमी हैं. कभी टैक्स न भरने की वजह नहीं बताते और न ही धौंस जमाते हैं. वह सचमुच सिंघम जैसे ही वास्तविक जीवन में भी हैं. उसी तरह मराठी अभिनेत्री क्रांति रेडकर की भी इमेज थी.

एयरपोर्ट पर आनेजाने के दौरान ही अभिनेत्री क्रांति रेडकर उन के दिल को भा गई थीं और ऐसी ही लड़की से उन्हें विवाह करने की इच्छा हुई थी. उन्होंने क्रांति से दोस्ती की और उस से विवाह की बात की तो क्रांति सहर्ष तैयार हो गई. सन 2017 में दोनों ने विवाह कर लिया.

क्रांति भी मुंबई में ही पैदा हुई हैं. इस बात की कम ही लोगों को जानकारी है कि समीर की पत्नी क्रांति रेडकर एक मशहूर अभिनेत्री हैं.

क्रांति ने अजय देवगन के साथ फिल्म ‘गंगाजल’ में काम किया था. इस के अलावा वह कई टीवी सीरियलों में भी काम कर चुकी हैं. क्रांति ने हिंदी फिल्मों की अपेक्षा मराठी फिल्मों और सीरियलों में ज्यादा काम किया है. इस के अलावा उन्होंने अंगरेजी फिल्मों में काम करने के साथसाथ निर्देशन की भी कोशिश की है.

मुंबई एयरपोर्ट के बाद समीर वानखेडे की पोस्टिंग महाराष्ट्र सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में हुई थी. उस समय महाराष्ट्र राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि कर चोरी में 200 सेलिब्रिटीज सहित 2500 बड़े लोगों के खिलाफ जांच शुरू हुई थी.

एनआईए में भी किए थे अच्छे काम

2 सालों में उन्होंने सर्विस टैक्स की चोरी के 87 करोड़ रुपए अकेले मुंबई से वसूल किए थे. उन के कामों को ही देखते हुए ही पहले उन्हें आंध्र प्रदेश फिर दिल्ली भेजा गया था.

नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) में भी उन की पोस्टिंग हुई थी. आतंकवादी हमले की योजना का खुलासा करने वाली जानकारी उन्होंने एंटी टेरर विभाग को देनी थी. इस दौरान उन्होंने कई जानकारियां किस तरह दीं, यह गुप्त रखा गया है.

इस के बाद समीर वानखेडे को बौलीवुड में ड्रग रैकेट खत्म करने की जिम्मेदारी के साथ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर के रूप में पोस्टिंग दी गई.

सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत में ड्रग एंगल उन्हें दिखाई दिया तो उन्होंने रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, सारा अली, रकुल प्रीत सिंह सहित कई अभिनेत्रियों को पूछताछ के लिए अपने औफिस में बुलाया.

इस के बाद बौलीवुड में तहलका मच गया. 100 से अधिक ड्रग पैडलरों को उन्होंने जेल में डाला है. 25 से अधिक हस्तियां जमानत पर हैं.

वह देश के करोड़ों लोगों को यह संदेश देने में कामयाब हुए हैं कि आप जिन्हें पूजते हैं, वे स्टार्स, सेलिब्रिटी कितने दंभी, देशद्रोही और आपराधिक चेहरे वाले हैं.

ड्रग का रैकेट चलाने वाले भारत के ही दुश्मन देशों या गैंगस्टरों से जुड़े हुए हैं और उन से तमाम स्टार्स जुड़े हैं.

समीर ने अपनी पत्नी या परिवार के हर सदस्य से कह रखा है कि उन के नाम से आने वाली कोई भी पार्सल उन की गैरमौजूदगी में न लिया जाए. क्योंकि उन्हें घूस लेने के आरोप में फंसाने का षडयंत्र उन के दुश्मन कभी भी रच सकते हैं.

समीर और उन की पत्नी क्रांति को जिया और ज्यादा नाम की 2 जुड़वां बेटियां हैं.

कौमेडी कलाकार भारती के घर से भी की थी ड्रग बरामद

ऐसा नहीं है कि समीर वानखेडे सनसनी फैलाने वाले मेगा स्टार्स को ही पकड़ कर हीरो बनना चाहते हैं. उन्होंने टीवी कौमेडी शो की कलाकार भारती सिंह के घर छापा मार कर ड्रग बरामद किया था. भारती सिंह और उस का पति इस समय जमानत पर हैं.

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समीर का काम देर रात के बाद का ही है, इसलिए वह मात्र 2 घंटे ही सो पाते हैं. कभी भी उन पर जानलेवा हमला हो सकता है, फिर भी वह अपने फर्ज में पीछे नहीं हटते. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर के रूप में उन की पोस्टिंग को 2 साल से अधिक हो गए हैं. इस दौरान उन्होंने 17 हजार करोड़ का ड्रग पकड़ा है.

पिछले एक साल में उन्होंने 105 से अधिक मुकदमे दर्ज करा कर 300 से अधिक गिरफ्तारियां की हैं. जिन में से गिनती के 4-5 मामले ही बौलीवुड के हैं. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह मात्र बौलीवुड को ही टारगेट करते हैं. पर मात्र बौलीवुड के मामले ही पब्लिसिटी पाते हैं.

आर्यन की गिरफ्तारी के 2 दिन पहले ही उन के विभाग ने 5 करोड़ की ड्रग के साथ कुछ लोगों को पकड़ा था, तब मीडिया का ध्यान उन की ओर नहीं गया. अब तक उन की टीम के द्वारा करीब एक दरजन गैंगों को पकड़ा गया है.

समीर वानखेडे तो अपना काम पूरी ईमानदारी, हिम्मत और प्राथमिकता से कर रहे हैं. कोर्ट में केस किस तरह कमजोर हो जाता है, इस की हताशा उन्होंने कभी अपने काम पर नहीं आने दी है. वह तो अपने लक्ष्य पर लगे रहते हैं.

Satyakatha: ब्लैकमेलर प्रेमिका- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

मृतका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स के मुताबिक दोनों के बीच हर रोज बात होती थी. संदेह के आधार पर ही पुलिस टीम ने 10 जुलाई की रात 12 बजे महेशचंद्र शर्मा को उस के बेटे अमित शर्मा समेत घर से हिरासत में ले लिया.

बिठूर थाना ला कर उन से पूछताछ की गई. पहले तो उन्होंने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, किंतु सख्ती बरतने पर दोनों टूट गए और शशि गौतम की हत्या का भेद खोल दिया.

महेशचंद्र ने बताया कि बीते कई सालों से शशि के साथ उस के नाजायज संबंध बने हुए थे, जबकि वह शशि से उम्र में काफी बड़ा था.

अवैध रिश्तों की वजह से वह शशि की हर जरूरतों का मददगार बना हुआ था. उस ने शशि के कहने पर उस के लिए मकसूदाबाद में मकान तक बनवा दिया था. गांव में जमीन खरीद कर दी थी.

बोलतेबोलते महेशचंद्र ने शशि के प्रति नाराजगी दिखाते हुए बताया कि बीते एक साल से वह उसे ब्लैकमेल करने लगी थी. अकसर पैसों की मांग करती रहती थी. नहीं देने पर जलील करती हुई गंदेभद्दे शब्दों के साथ गालियां देती थी.

इस कारण वह उस से तंग आ गया था. उस के व्यवहार से ऊब होने लगी थी. कई बार उस की हरकतों की वजह से आत्महत्या तक करने की भी सोच लेता था. फिर तुरंत खुद को समझाता हुआ दूसरे विकल्प पर विचार करने लगता.

शशि के साथ संबंध कायम रखने के कारण वह पिछले कुछ समय से बेहद तनाव में रहने लगा था. नाजायज रिश्ते और शशि द्वारा ब्लैकमेल किए जाने की जानकारी उस के बेटे अमित को भी थी.

महेश ने बताया कि इसी तनाव की स्थिति से बाहर निकलने के लिए उस ने अपने बेटे अमित से सुझाव मांगा. अमित भी अपने पिता की स्थिति और उन की परेशानी को काफी समय से देख रहा था. उस ने इस के लिए पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा यादव की मदद लेने की सलाह दी.

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उस ने पिता को सुझाव दिया कि क्यों न उस के आदमियों से शशि की हत्या करवा दी जाए. यह बात महेश को पसंद आ गई. यह कहने पर पुलिस ने अमित से पूछताछ की. उस ने पुलिस को बताया कि वह कई बार अपनी आंखों के सामने शशि द्वारा पिता से पैसे मांगते और उन्हें जलील होते देख चुका था.

उस के द्वारा आए दिन पैसा वसूल करना उसे खलता था. इस कारण उस ने ही सीमा यादव से मुलाकात की और शशि की हत्या के लिए 50 हजार रुपए की सुपारी दे दी. बदले में दस्यु सुंदरी ने अपने पूर्व साथी अनुज, सत्यम शर्मा व अमर यादव को शशि के घर भेज कर उस की हत्या करवा दी.

शशि की हत्या के मामले में पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा यादव का नाम आने पर पुलिस सन्न रह गई, क्योंकि सीमा यादव को गिरफ्तार करना मामूली बात नहीं थी. फिर भी पुलिस टीम ने जाल फैलाया और सीमा के रिश्तेदार अनुज यादव समेत उस के साथी सत्यम शर्मा को दबोच लिया. उन की गिरफ्तारी प्रधानपुर गांव से हुई.

उस के बाद अनुज के सहयोग से पुलिस टीम ने नाटकीय ढंग से सीमा यादव और अमर यादव को भी गिरफ्तार कर लिया.

इस तरह 48 घंटे में ही पुलिस टीम को हत्या व षडयंत्र में शामिल सीमा यादव, अनुज यादव, अमर यादव, सत्यम शर्मा, महेशचंद्र शर्मा व अमित शर्मा को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई थी.

पुलिस टीम ने हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल, .315 बोर का तमंचा, रस्सी, खून से सनी अनुज की शर्ट, मृतका शशि का मोबाइल फोन और सुपारी की करीब 14 हजार रुपए की रकम बरामद कर ली.

हत्यारोपियों के बयान के आधार पर थानाप्रभारी ने मृतका शशि के भाई अनिल गौतम को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/120बी के तहत महेश चंद्र शर्मा, अमित शर्मा, सत्यम शर्मा, अनुज यादव, अमर यादव और तथा सीमा यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. उस के बाद पुलिस जांच में ब्लैकमेलर प्रेमिका की जो सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

कानपुर (देहात) जनपद के शिवली थाना अंतर्गत सिंहपुर में किसान रामदास गौतम की बेटी शशि उर्फ अंगूरी थी. शशि बेहद खूबसूरत थी. जवानी के दिनों में उस की खूबसूरती और भी निखार पर थी.

रामदास ने समय रहते शशि का विवाह संतोष गौतम से कर दिया था. संतोष औरैया जिले के अटौली गांव का रहने वाला था. उस के पिता जयराम गौतम भी खेतीबाड़ी करते थे. संतोष भी पिता के साथ खेतों पर काम करता था.

शशि और संतोष की वैवाहिक जिंदगी 5 सालों तक मजे में गुजरी. इस बीच शशि 3 बेटों अमित, मंगली व शनि की मां बन गई. परिवार बढ़ने पर घर का खर्च भी बढ़ गया.

शशि बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए पैसे की तंगी में आ गई. साधारण खर्च के लिए भी उस की सासससुर के आगे हाथ फैलाने की नौबत आ गई.

कई बार इस के लिए उन से झिड़की भी खानी पड़ती. वह छोटीछोटी जरूरतों के लिए तरसने लगी. शशि ने पति पर दबाव डालना शुरू किया कि वह घरजमीन का बंटवारा कर ले और नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करे. इस पर संतोष राजी नहीं हुआ. वह मांबाप से अलग नहीं रहना चाहता था.

बंटवारे को ले कर शशि ने घर में कलह शुरू कर दी थी. पतिपत्नी के बीच खूब झगड़े होने लगे थे. कभीकभी बात इतनी बढ़ जाती कि संतोष शशि को बुरी तरह पीट देता. झगड़े में शशि सासससुर को भी नहीं बख्शती थी. वह उन्हें जम कर भलाबुरा सुनाती थी.

इस के बाद घर में कलह का माहौल बन गया था. इस कारण संतोष ने शराब पीनी शुरू कर दी थी. पतिपत्नी के बीच झगड़े की एक और वजह संतोष का हर रोज शराब पी कर घर आना भी बन गया.

शशि टोकती तो वह मारपीट पर उतर आता. प्रतिदिन शराब पी कर आना संतोष के मातापिता को भी नहीं पसंद था. वह उन के समझाने पर भी नहीं मानता था. अंतत: शशि ने बच्चों सहित पति का घर छोड़ दिया. यह बात वर्ष 2013 के नवंबर माह की है.

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वह तीनों बेटों के साथ मायके सिंहपुर आ गई. अपने मातापिता के सामने पति प्रताड़ना की झूठी कहानी गढ़ दी. मातापिता उस की बातों में आ गए और उसे मायके में आश्रय दे दिया.

दूसरी तरफ संतोष को विश्वास था कि जब शशि का गुस्सा ठंडा हो जाएगा, तब वह ससुराल वापस आ जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक दिन खुद शशि और बच्चों को बुलाने गया, लेकिन शशि ने साफ इनकार कर दिया.

उस के मातापिता ने भी बेटी का ही पक्ष लिया. संतोष किसी तरह से काफी मिन्नत कर अपने मंझले बेटे को अपने घर ले आया. इस तरह बड़ा बेटा अमर व छोटा बेटा सनी शशि के साथ रहने लगे.

उस के बाद से शशि मायके में बेफिक्री से रहने लगी. बनसंवर कर खेतखलिहानों का चक्कर लगाना उस की दिनचर्या बन चुकी थी. सब से हंसतेबोलते समय गुजरने लगा.

गांव के मर्दों से भी खुल कर बातें करने पर वहां की दूसरी औरतें टोकती थीं. उन का असर शशि पर जरा भी नहीं होता, उल्टे टोकाटाकी करने वाली औरतों को ही जवाब दे देती थी.

शशि के घर से कुछ दूरी पर ही प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर महेशचंद्र शर्मा रहते थे. उन की नौकरी के अलावा खेतीबाड़ी भी थी, जिस से उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. बेटा अमित विवाहित था, पत्नी के स्वर्गवासी होने की स्थिति में महेश अपनी तन्हा जिंदगी गुजार रहे थे, तभी शशि का उन की जिंदगी में आना सुखद संयोग बन गया.

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Manohar Kahaniya: प्यार के जाल में फंसा बिजनेसमैन- भाग 4

दूसरी तरफ उस का पति ललित अकसर फोन कर रुपए की मांग करने लगा. रुपए नहीं देने पर उस के और मानसी के संबंधों का भेद जगजाहिर करने की धमकियां देने लगा.

यहां तक कि उस ने संजीव को कहा जब तक पैसे मिलते रहेंगे उस का मुंह बंद रहेगा, जैसे ही इस में देरी होगी, वह उस के अवैध संबंधों की सारी सच्चाई उस की पत्नी और बच्चों को बता देगा.

संजीव ने लाख विनती की, उस का ललित और मानसी पर कोई असर नहीं हुआ. उन के लिए संजीव महज सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था. पैसों के लालच में डूब चुके ललित और मानसी की ब्लैकमेलिंग के अलावा उस पर बिजनैस संबंधी कई देनदारियों के तकादे आने लगा.

परेशान हो कर किया सुसाइड

वह काफी विचलित हो गया था. इसी तनाव से जूझता 10 अगस्त, 2021 की शाम को घर से किसी आवश्यक काम से जाने को कह कर  निकला था. उस ने यह भी कहा कि उसे आने में देरी हो सकती है.

वह अपने हीरामोती लेन वाले आवास से निकल कर कुआं चौक नंदई स्थित अपने दूसरे मकान में आ गया. उस मकान को संजीव बेच चुका था, मगर उस के पास एक चाबी थी. वहां कुछ समय अपने जीवन का आखिरी समय गुजारा और रात को 11 बजे फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली.

इस से पहले उस ने 5 अलगअलग चिट्ठियां लिखीं. वे चिट्ठियां परिजनों और परिचितों के नाम थीं. उन में एक पूर्व सांसद मकसूदन यादव के नाम भी थी.

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दूसरे दिन जब संजीव जैन घर नहीं आया, तो सुबह घर परिवार में पत्नी और बच्चे चिंतित हो गए. उस की खोजबीन की जाने लगी. फोन पर काल का जवाब नहीं मिल पाया. किसी ने बताया पुराने मकान के पास उस की कार खड़ी है. घर वालों ने सोचा कि संजीव अपने उसी घर पर होगा.

दोपहर तक जब संजीव घर नहीं आया, तब परिवार के लोग और मित्र नंदई के मकान पर गए. वहां मकान भीतर से बंद मिला. उन्होंने एक कमरे का दरवाजा तोड़ा, संजीव फांसी से झूलते हुए मिला.

यह सभी के लिए स्तब्ध करने का दृश्य था. इस की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई. थाना बसंतपुर पुलिस ने घटनास्थल पर आ कर मामले की सूक्ष्म विवेचना शुरू कर दी. घटनास्थल पर संजीव जैन के छोटे भाई विनय जैन को एक लिफाफे में सुसाइड नोट मिले.

सुसाइड नोट पढ़ कर मालूम हुआ कि वह किस तरह ब्लैकमेलिंग के शिकार हो रहे थे. सुसाइड नोट में ही उन्होंने अपने अवैध संबंध की बात लिखी थी. मानसी और ललित द्वारा बारबार पैसे मांगे जाने का भी जिक्र किया था. उस ने अपनी आत्महत्या का कारण उन लोगों द्वारा ब्लैकमेल करना ही लिखा था.

अगले रोज राजनंदगांव सहित छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख समाचारपत्रों में भाजपा नेता संजीव जैन की आत्महत्या का समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुआ और यह चर्चा का सबब बन गया कि कैसे एक नामचीन, राजनीति में दखल रखने वाली शख्सियत सैक्स और भयादोहन का शिकार हो रहा था.

एसपी राजनंदगांव डी. श्रवण ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एएसपी प्रज्ञा मेश्राम के नेतृत्व में बसंतपुर थाने की एक टीम गठित की. उन्हें मामले को शीघ्र खुलासा करने के सख्त निर्देश दिए.

मामले का दायित्व मिलने के बाद एएसपी प्रज्ञा मेश्राम व थानाप्रभारी आशीर्वाद रहटगांवकर को सुसाइड नोट के आधार पर जांच तेज करने की निर्देश दिए. पुलिस ने संजीव जैन के परिजनों के बयान लिए.

बयान और सुसाइड नोट के आधार पर जांच जब आगे बढ़ने लगी तब यूनियन बैंक और फेडरल बैंक के माध्यम से कुछ ठोस जानकारियां सामने आईं.

यह भी खुलासा हुआ कि मानसी नामक महिला से संजीव जैन के अंतरंग संबंध

हुआ करते थे. इस की पुष्टि सुसाइड नोट से भी हुई. मानसी और उस की ससुराल वाले हुए गिरफ्तार मानसी का नाम सामने आने पर जांच शुरू की. वह रायपुर, छत्तीसगढ़ और मेरठ, उत्तर प्रदेश से लापता मिली. बैंक के अकाउंट की जांच की तो यह जानकारी सामने आ गई कि बीते 8 सालों में एक करोड़ सत्तर लाख रुपए संजीव जैन के खाते से मानसी यादव, उस के पति ललित सिंह, ललित सिंह के छोटे भाई कौशल सिंह और कौशल सिंह की पत्नी शिल्पी सिंह के बैंक एकाउंट में ट्रांसफर हुए.

पुलिस के सामने सब कुछ आईने की तरह साफ था, मगर आरोपी उन की पकड़ से दूर थे. मानसी के पते पर पुलिस लगातार छापे मार रही थी, मगर न तो मानसी मिल रही थी और न ही उस का पति ललित सिंह.

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संजीव मामले के आरोपियों के पकड़ में नहीं आने पर पुलिस की लगातार किरकिरी हो रही थी. तभी अचानक 12 सितंबर को प्रज्ञा मेश्राम को एक काल आई.

काल मुखबिर की थी, जिस ने बताया कि मानसी रायपुर में अपनी बहन मधु यादव के यहां डगनिया में तीज के मौके पर पहुंची है. इस सूचना के आधार पर एएसपी प्रज्ञा मेश्राम ने रायपुर पुलिस की मदद से मानसी यादव को हिरासत में ले लिया.

वहीं ललित सिंह और शिल्पी सिंह भी गिरफ्त में आ गए. कौशल सिंह गिरफ्तारी से बचा हुआ था. पुलिस ने दोनों पतिपत्नी और शिल्पी सिंह को बसंतपुर थाने ला कर के पूछताछ की.

उन्होंने सारे घटनाक्रम को पुलिस के समक्ष सिलसिलेवार ढंग से बता दिया. इसी के साथ उन्होंने अपना अपराध कुबूल कर लिया.

तीनों के इकबालिया बयान के बाद 13 सितंबर, 2021 को पुलिस ने धारा 306, 34 भारतीय दंड विधान के तहत मामला दर्ज कर लिया और उसी शाम मीडिया के समक्ष पूरे मामले का खुलासा कर दिया.

केस का खुलासा थानाप्रभारी आशीर्वाद रहटगांवकर, एसआई कमलेश बंजारे, कांस्टेबल विभाष सिंह, देवेंद्र पाल, महिला कांस्टेबल अश्वनी निर्मलकर, साइबर सेल प्रभारी द्वारिका प्रसाद लाउत्रे, कांस्टेबल हेमंत साहू, आदित्य सिंह, मनीष मानिकपुरी, मनीष वर्मा, अवध किशोर साहू, मनोज खूंटे ने किया. दूसरे दिन तीनों आरोपियों को प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी, राजनंदगांव के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

—अपराध कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित

Manohar Kahaniya- गोरखपुर: मोहब्बत के दुश्मन- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज

‘प्यार की कोई उम्र नहीं होती, कोई मजहब नहीं होता, कोई जात नहीं होती. प्यार तो प्यार होता है, बस हो जाता है.’ इस तरह की बातें आप ने भी फिल्मों में खूब सुनी होंगी या हो सकता है ऐसे शब्दों का इस्तेमाल भी किया हो. लेकिन क्या हमारे समाज में इन बातों की वास्तविकता पर यकीन किया जा सकता है या फिर ये केवल फिल्मों तक ही सीमित हैं?

आज भी हमारे समाज में ऐसे क्रूर लोग मौजूद हैं जिन्हें ‘प्रेम’ शब्द से चिढ़ है. प्यार करने पर समाज के कुछ लोग धर्म, जात, वर्ग इत्यादि चीजों को ध्यान में रख कर प्यार करने वालों को अलग करने के लिए हर हद पार कर देते हैं.

यहां तक कि जिन बच्चों को वह जीवन भर प्यार करते हैं, जिन की खुशी के लिए परिवार वाले कुछ भी कर सकते हैं, उन्हें ही अपना पार्टनर चुनने की इतनी भयानक सजा दे देते हैं, जिसे सुन कर रूह कांप जाती है. ऐसी ही एक घटना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की है.

यह साल था 2015 का जब गोरखपुर के उनौली गांव के रहने वाले अनीश चौधरी (34) का उरूवा ब्लौक औफिस में ग्राम पंचायत अधिकारी के पद पर चयन हुआ था.

गोरखपुर के दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास में पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर चुके अनीश बहुत मेहनती था. वह खुद के दम पर कुछ बनना चाहता था और उसी के लिए वह दिनरात मेहनत करता था.

तरहतरह की सरकारी नौकरियों के फौर्म भरना, एग्जाम देना, इंटरव्यू की तैयारी करना, उस के हर दिन के जीवन का हिस्सा थी जोकि ग्राम पंचायत अधिकारी बनने के बाद उन का यह सपना पूरा हो गया था.

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अनीश के गांव में दलितों की आबादी बहुसंख्यक थी. वह खुद भी दलित समुदाय से था. लेकिन अनीश की माली हालत गांव में अन्य दलितों से काफी बेहतर थी.

अनीश बना ग्राम पंचायत अधिकारी

अनीश संपन्न परिवार का हिस्सा थे. उस के पिता और चाचा बैंकाक और मलेशिया में रह कर काम करते थे. साल-2 साल में अनीश के पिता कुछ दिनों के लिए घर आते थे और फिर काम से चले जाते थे. उन्होंने अनीश के लिए किसी तरह की कोई कमी नहीं रखी थी. अनीश के बड़े भाई, अनिल चौधरी भी उरूवा ब्लौक औफिस में कर्मचारी थे.

ग्राम पंचायत अधिकारी के पद पर चयन होने के बाद अनीश की खुशी का ठिकाना नहीं था. जब अनीश ने यह बात अपने पिता को फोन कर बताई तो उस के पिता बेहद खुश हुए और अनीश को जल्द ही घर वापस आने का भरोसा दिलाया. अनीश के अधिकारी बनने की खुशी पूरे गांव को थी.

अनीश ने अपनी खुशी का खुल कर इजहार भी किया. वह अपने गांववासियों के लिए बहुत कुछ करना चाहता था और जल्द ही उन की सेवा में व्यस्त हो जाना चाहता था. चयन के बाद अनीश अब प्रशासन से काल लैटर का इंतजार करने लगा, जिसे घर आने में ज्यादा समय नहीं लगा.

चयन किए जाने के अगले ही महीने अनीश और अन्य चुने हुए अधिकारियों को ट्रेनिंग के लिए ब्लौक औफिस में बुलाया गया. ट्रेनिंग के पहले दिन अनीश सुबह के 8 बजे तैयार हो कर ब्लौक औफिस पहुंचा. उस समय तक कुछ और लोग औफिस के मुख्य हाल में इकट्ठे हुए थे.

रिपोर्टिंग का टाइम सुबह साढ़े 8 बजे था तो अनीश को वक्त बरबाद करना ठीक नहीं लगा. अनीश ने हाल में मौजूद हर किसी से हाथ मिलाया और जानपहचान बढ़ाने के लिए उन से बातचीत की.

करीब 10 मिनट के बाद हाल के गेट से एक महिला अधिकारी अंदर आई. वह भी हाल में मौजूद अन्य अधिकारियों की तरह ही थी. उस का भी चयन हुआ था.

उस का नाम दीप्ति मिश्र (24) था. दीप्ति गोरखपुर में देवकली धर्मसेन गांव की रहने वाली थी. समाजशास्त्र से एमए की पढ़ाई कर चुकी दीप्ति का सिलेक्शन कौड़ीराम ब्लौक औफिस में ग्राम पंचायत अधिकारी के तौर पर हुआ था. यही नहीं, दीप्ति ने भी दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी से अपनी एमए की पढ़ाई की थी.

अनीश ने दीप्ति को देखा तो वह उसे पहचान गया था. कालेज के कैंपस में अकसर अनीश ने दीप्ति को घूमते हुए देखा था, कभी कैंटीन में तो कभी क्लास करते हुए. लेकिन कालेज के दिनों में उस ने कभी दीप्ति से मुलाकात या बातचीत नहीं की थी. उस की एक वजह यह थी कि अनीश का विषय कुछ और था और दीप्ति का कुछ और.

दीप्ति जब गेट से अंदर आ रही थी तो अनीश की नजर उस पर पड़ी. अनीश को दीप्ति का चेहरा जानापहचाना लगा. अनीश ने अपने दाएं हाथ में पकड़े प्लास्टिक के पानी के गिलास को टेबल पर रखा और घूम कर कमरे के अंदर प्रवेश करती हुई दीप्ति की ओर आगे बढ़ा.

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काफी देर तक सोचने के बाद अनीश को याद आ गया था और वह दीप्ति को पहचान गया. दीप्ति कमरे में मौजूद पीछे की एक खाली कुरसी पर जा कर बैठी थी तो अनीश भी उस के पास गया और एक कुरसी छोड़ उस के बगल में जा कर बैठ गया और बोला, ‘‘हैलो.’’

अनीश की बात का जवाब देते हुए दीप्ति ने उस की ओर देखा और बोली, ‘‘हाय.’’

अनीश का चेहरा देखते ही दीप्ति को भी अचानक से याद आ गया था कि हैलो बोल रहा यह शख्स कौन है. इस से पहले कि अनीश आगे कुछ कहता, दीप्ति ने उस से सवाल कर लिया, ‘‘अरे, आप तो शायद दीन दयाल उपाध्याय कालेज में थे न?’’

अनीश ने दीप्ति के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘जी, आप ने बिलकुल सही पहचाना. मैं ने भी उसी कालेज से पढ़ाई की थी. आप जब हाल में एंटर हुईं, तभी से ही मैं सोच में पड़ गया था कि आप को कहां देखा है. और देखिए आप ही ने मुझे भी पहचान लिया.’’

यह सुन कर दीप्ति हंस पड़ी और दीप्ति को हंसता हुआ देख अनीश भी मुसकरा दिया. ऐसे ही करिअर, पढ़ाई इत्यादि की बातें करतेकरते कब साढ़े 8 बज गए, दोनों को पता ही नहीं चला.

कमरे में सूट पहन कर कुछ उच्च अधिकारी आए और अपने रुटीन कामों की तरह वह सब के नाम परिचय इत्यादि लेने लगे. इस तरह से अनीश और दीप्ति की जानपहचान हुई.

अब क्योंकि अनीश और दीप्ति दोनों ही ब्लौक औफिस में ग्राम पंचायत अधिकारी थे तो उन का साथ में उठनाबैठना सामान्य हो गया था. पूरी ट्रेनिंग के दौरान अनीश और दीप्ति एकदूसरे के साथ ही रहे. ट्रेनिंग के बाद जब दोनों आधिकारिक रूप से अपनेअपने ब्लौक में काम करने लगे तो भी दोनों का साथ उठनाबैठना होने लगा था.

अनीश के उरूवा ब्लौक औफिस से दीप्ति के कौड़ीराम ब्लौक औफिस के बीच मात्र एक घंटे की ही दूरी थी. अनीश और दीप्ति दोनों की जानपहचान कुछ ही समय में दोस्ती में बदल गई थी. दोनों साथ में औफिस आनेजाने लगे. दोनों ही घंटों फोन पर बातचीत करने लगे.

देखते ही देखते उन के बीच की नजदीकियां भी बढ़ने लगी. वे दोनों अकसर औफिस के अलावा भी एकदूसरे से मिलते थे. अनीश और दीप्ति दोनों ही एकदूसरे को करीब से जानना चाहते थे.

दोनों अधिकारी दिलोदिमाग से चाहने लगे एकदूसरे को ब्लौक औफिस से छुट्टी के समय दोनों यूं ही घूमने के लिए निकल जाया करते. छुट्टी वाले दिन भी दोनों घर पर नहीं बैठते थे बल्कि अपने गांव से दूर घूमने निकल जाते और साथ वक्त गुजारते थे. उन की दोस्ती वक्त के साथ प्यार में बदलने लगी थी.

लेकिन ऐसे ही एक दिन जब अनीश और दीप्ति औफिस से शाम को छुट्टी के बाद साथसाथ घर जा रहे थे तो दीप्ति के एक रिश्तेदार ने दोनों को देख लिया और दीप्ति की शिकायत उस के घर पर कर दी.

शुरुआत में तो दीप्ति के घरवालों ने उसे रोकाटोका नहीं, लेकिन अंदर ही अंदर वे अनीश के बारे में पता लगाने लगे. दीप्ति अपने घर में सब से छोटी बेटी थी.

दीप्ति का बड़ा भाई अभिनव यूपी पुलिस में कांस्टेबल था. जब अभिनव को दीप्ति के किसी से संबंध होने की जानकारी घरवालों से मिली तो उस ने अपने सूत्रों के जरिए अनीश के बारे में पता लगवाया.

अभिनव को जब यह पता चला कि उस की बहन दीप्ति का संबंध किसी दलित जाति के लड़के से है तो उस ने यह बात अपने घरवालों को बताई. उस दिन मिश्र परिवार में इस बात को ले कर खूब झगड़ा भी हुआ.

परिवार वालों ने दीप्ति का फोन उस से छीन लिया, उस के आनेजाने पर लगातार नजर रखने लगे. यहां तक कि दीप्ति जब औफिस जाती तो उस के पिता नलिन कुमार मिश्र, उस के साथ जाने लगे और घर वापस आते समय दीप्ति को साथ घर ले कर आने लगे.

दीप्ति पर उस के घरवाले इस तरह से निगरानी रखने लगे जैसे कि उस ने प्यार कर के बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो.

अगले भाग में पढ़ें- दीप्ति के घर वालों ने दी धमकी

Manohar Kahaniya: कातिल घरजमाई- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

तेजस की चुप्पी से धीरेधीरे शोभना की हिम्मत बढ़ती गई और वह जब देखो तब तेजस का अपमान करने लगी. उसी को ही नहीं, उस के मांबाप और भाईबहन को भी अपशब्द कहने लगी थी. उन का आनाजाना तो उस ने कब का बंद करा दिया था.

तेजस को उन से फोन पर भी बातें करते देख या सुन लेती तो उस के बाद तेजस की जम कर बेइज्जती करती ही, फोन छीन कर उन लोगों को भी बुरी तरह बेइज्जत करती.

अपमान का घूंट पी कर रह जाता तेजस

इस से तेजस दुखी तो रहता ही था, उसे शोभना के साथ रहने में घुटन सी होने लगी थी. अब वह ससुराल में बिलकुल नहीं रहना चाहता था. पर मजबूरी में उसे रहना पड़ रहा था.

ऐसे में ही उस ने कुछ दिनों पहले शोभना से कहा भी था, ‘‘अब अगर तुम ने मेरे घर वालों को कुछ कहा तो मैं तुम्हारे साथ या तुम्हारे और अपने साथ कुछ कर लूंगा.’’

एक तरह से तेजस ने शोभना को धमकी दी थी. यह बात शोभना ने अपनी मां से बताई भी थी. पर उस समय किसी ने तेजस की इस बात पर ध्यान नहीं दिया था. आखिर उस ने जो धमकी दी थी, पूरी ही कर डाली.

इधर शोभना की मांगें भी बढ़ गई थीं. जब देखो, तब वह किसी न किसी चीज की फरमाइश करती रहती थी. तेजस की आमदनी सीमित थी. इसलिए पत्नी की हर मांग वह पूरी नहीं कर सकता था. मांग पूरी न होने पर शोभना तेजस को बुरी तरह अपमानित कर देती.

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शोभना अपने घर में ही नहीं, मांबाप और भाई के सामने भी उस की शिकायत कर के उसे अपमानित करती. एक तरह से शोभना ने उस का जीना हराम कर दिया था. उस की हालत ऐसी कर दी थी कि वह न जी सकता था और न मर सकता था.

इधर शोभना ने तेजस पर एक आरोप और लगा दिया. इस में कितनी सच्चाई थी, यह तो तेजस जानता था या शोभना. शोभना का कहना था कि तेजस के किसी अन्य महिला से अवैध संबंध हैं. किस से संबंध हैं, यह शोभना किसी को नहीं बता सकी. इस बात को वह साबित भी नहीं कर सकी.

पर इस बात को ले कर घर में रोज झगड़ा होने लगा था. इस बात को ले कर शोभना ने तो उस का जीना हराम कर ही रखा था, सासससुर और सालेसलहज भी उसे परेशान कर रहे थे.

तेजस का दुख ऐसा था, जिसे वह किसी से कह नहीं सकता था. कहता भी किस से, कोई सुनने वाला भी तो नहीं था. ससुराल में उस की कोई सुनता नहीं था. घर वालों से वह कुछ कह नहीं सकता था. क्योंकि शोभना उसे कहने ही नहीं देती थी. अगर कहता भी तो घर वाले कुछ कर नहीं सकते थे. इसलिए तेजस मानसिक रूप से काफी परेशान रहने लगा.

सारी परेशानी की जड़ नजर आई पत्नी

इस सारी परेशानी की जड़ उसे शोभना ही लग रही थी. इसलिए अब उस के मन में आने लगा कि अगर शोभना को खत्म कर दिया जाए तो उस की सारी परेशानी खत्म हो जाएगी.

लेकिन शोभना को खत्म करना उस के लिए आसान नहीं था. पर आदमी जब परेशान हो जाता है तो उसे कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता. तेजस भी शोभना से इतना परेशान और दुखी हो चुका था कि वह उस की हत्या जैसा जघन्य अपराध करने के बारे में सोचने लगा.

आखिर में गृहक्लेश और प्रेम प्रकरण के आरोप से तंग आ कर घरजमाई के रूप में अपमान का घूंट पीते हुए तेजस इस बात पर विचार करने लगा कि पत्नी और बेटी को कैसे ठिकाने लगाया जाए?

इस के लिए वह यूट्यूब और गूगल पर सर्च करने लगा कि चूहे को मारने वाला जहर कौनकौन सा है, मौत कैसे होती है  हाऊ टू गिव डेथ रैट किलर व्हाट इफेक्ट आन मैन, पौइजन, द रैट किलर पौइजन, हाऊ टू किल ए मैन विद पिलो.

पूरी जानकारी एकत्र कर तेजस चूहा मारने वाली दवा खरीद लाया. 10 अक्तूबर, 2021 को उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए शाम को आइसक्रीम ला कर रख दी.

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रात का खाना खा कर काव्या रात करीब 10 बजे अपनी मामी के साथ सोसायटी के कौमन प्लौट में गरबा खेलने चली गई. शोभना घर में ही थी. तेजस भी घर में ही था. पर उस के हावभाव से ऐसा कुछ नहीं लग रहा था कि वह इतना बड़ा कांड करने वाला है. हां, वह शांत जरूर था.

रात साढ़े 11 बजे काव्या गरबा खेल कर ऊपर आई तो तेजस ने जहर मिली आइसक्रीम पत्नी और बेटी को खाने को दी और खुद बिना जहर मिली आइसक्रीम खाई. आइसक्रीम खा कर सभी सोने के लिए लेट गए.

शोभना और काव्या तो सो गईं, पर तेजस जागता रहा. रात साढ़े 12 बजे जहर ने अपना असर दिखाया तो शोभना जाग गई. तकलीफ की वजह से वह रोने लगी तो तेजस फुरती से उठा और शोभना के सीने पर सवार हो कर उस का गला पकड़ कर दबाने लगा. शोभना ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की तो इसी छीनाझपटी में तेजस का नाखून शोभना के गले में लग गया.

करीब 10 मिनट तक गला दबाए रहने के बाद जब तेजस को विश्वास हो गया कि अब शोभना मर गई है तो उस के बाद उस ने काव्या के मुंह पर तकिया रख कर दबाया कि कहीं बेटी जीवित न रह जाए.

इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहता था कि काव्या जीवित रहे. क्योंकि अगर वह जीवित रह गई तो वह उसे कैसे अपना मुंह दिखाएगा? क्योंकि उस ने उस की मां की हत्या की है.

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जहर देने और गला दबाने के बाद भी वह करीब एक घंटे तक यह देखता रहा कि कहीं मांबेटी जीवित तो नहीं हैं. जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि मांबेटी मर चुकी हैं, तब रात करीब डेढ़ बजे नीचे जा कर उस ने साले को जगा कर बताया कि पता नहीं क्यों शोभना उठ नहीं रही है. इस के बाद जब शोभना और उस की बेटी को अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि उन की तो मौत हो चुकी है.

तेजस से पूछताछ के बाद पुलिस ने सारे सबूत जुटा कर डीसीपी लखधारी सिंह झाला ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर मांबेटी की हत्या का खुलासा किया. इस के बाद 13 अक्तूबर को तेजस पटेल को बड़ौदा की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.

Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

2अक्तूबर को देश भर में रस्मी तौर पर ही गांधी जयंती मनी थी. इस दिन लोगों को छुट्टी होने की खुशी ज्यादा रहती है, गांधी और उन के विचारों से कोई वास्ता नहीं रखता, जिन में से एक यह नसीहत भी है कि नशा खासतौर से युवाओं को बरबाद कर रहा है. इस दिन देश भर में ड्राई डे भी रहता है, इसलिए शराब की सभी दुकानें और ठेके बंद रहते हैं.

अगले दिन चूंकि इतवार था, इसलिए नशेडि़यों ने अपने कोटे का इंतजाम पहले से ही कर रखा था. इसी दिन देर रात मुंबई से गोवा के लिए कार्डेलिया नाम का क्रूज रवाना हुआ था जोकि एक रुटीन की बात थी.

वाटरवेज लीजर टूरिज्म प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कर्मचारियों को उम्मीद रही होगी कि वीकेंड होने के चलते क्रूज पर रोज के मुकाबले भीड़भाड़ ज्यादा रहेगी, लेकिन लगभग 1300 पैसेंजर ही आए. जबकि क्रूज की क्षमता 1800 लोगों की है.

आजकल लोग क्रूज पर पार्टियां खूब करने लगे हैं. यह तेजी से पनपता नया फैशन है, इसलिए क्रूज जैसे ही मुंबई से कुछ किलोमीटर दूर पहुंचा तो पार्टियों का दौर शुरू हो गया. एक खास पार्टी सलीके से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि क्रूज पर हड़कंप मच गया. हुआ यह था कि कुछ युवाओं ने ड्रग्स लेनी शुरू कर दी थी.

इन पर नशा भी सलीके से नहीं चढ़ा था कि एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के कर्मचारियों, अधिकारियों ने इन की धरपकड़ शुरू कर दी.

दरअसल, यह एनसीबी की टीम की सुनियोजित मुहिम थी इसलिए टीम के सदस्य सिविल कपड़ों में साधारण यात्रियों की तरह तट से ही क्रूज पर सवार हुए थे.  इस मुहिम की अगुवाई एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े कर रहे थे, जो बौलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन का भंडाफोड़ करने के लिए जाने जाते हैं. उन्हें लगातार मुखबिर खबर दे रहे थे कि इन दिनों नामी फिल्मी हस्तियां क्रूज पर रेव पार्टियां करने लगी हैं.

उन्होंने सारा प्लान बनाया और इस रात कार्डेलिया पर धावा बोल दिया. देखते ही देखते 8 नाजुक खूबसूरत युवा, जिन में एक थोड़ी उम्रदराज सहित 3 युवतियां भी थीं, उन की गिरफ्त में थे, जिन का सारा नशा एनसीबी की टीम को देख छूमंतर हो गया था.

इन लोगों की जामातलाशी में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस, 5 ग्राम एमडी और एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं. यानी सूचना गलत नहीं थी. लेकिन पकड़े गए आरोपियों में कोई नामीगिरामी फिल्मी हस्ती नहीं थी. यह तो पूछताछ के बाद उजागर हुआ कि इन में से एक अभिनेता शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है.

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क्रूज पर तलाशी में पकड़े न जाएं, इसलिए ये युवा नशीले पदार्थ जूतों और अंडरगारमेंट्स में छिपा कर ले गए थे. जबकि लड़कियों ने इन्हें अपने पर्स में रखा था. उम्रदराज महिला तो ड्रग्स को सेनेटरी पैड में छिपा कर क्रूज पर ले गई थी.

इस वक्त आधी रात बीत चुकी थी, लेकिन सुबह जैसे ही यह पता चला कि पकडे़ गए युवाओं में से एक शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है तो मीडिया वाले एनसीबी के दफ्तर की तरफ दौड़ लगाते नजर आए और दोपहर तक मामले को इतना हाईप्रोफाइल बना दिया कि उस दिन की दूसरी तमाम

अहम खबरें और घटनाएं इस के नीचे दब कर रह गईं. जिन में से एक मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र द्वारा 4 किसानों को कार से रौंदे जाने का भी था.

आर्यन की खबर ज्यादा बिकाऊ और चलताऊ थी, इसलिए उसे लगातार दिखाया गया और इतना भुनाया गया कि देखने वाले बिना कोई ड्रग लिए ही झूमने लगे.

ऐसा छापा कोई नई बात नहीं थी, लेकिन चूंकि इस में एक स्टार किड शामिल था इसलिए न्यूज चैनल्स को तिल का ताड़ बनाने का एक और मौका मिल गया. आर्यन के बारे में जानकारी छनछन कर बाहर आने लगी और उस के साथियों की भी जन्मकुंडली खंगाली जाने लगी.

शाहरुख खान के घर मन्नत के बाहर भी मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया. अब एनसीबी क्या कर रही है और आगे क्याक्या हो सकता है, ये बातें सड़कछाप ज्योतिषी के तोते की तरह बांची गईं.

इस वक्त तक उम्मीद की जा रही थी कि आर्यन को मामूली पूछताछ के बाद छोड़ दिया जाएगा, लेकिन जैसे ही अधिकारियों की टीम सवालजवाब के लिए अंदर गई तो समझने वाले समझ गए कि ड्रामा अभी और लंबा खिंचेगा.

कच्चे खिलाडि़यों की नशेड़ी टीम

आर्यन के साथ गिरफ्तार किए गए अरबाज मर्चेंट, मुनमुन धमेचा, नूपुर सारिका, इसमीत सिंह, मोहक जसवाल, विक्रांत छोकर और गोमित चोपड़ा बहुत जानेमाने नाम नहीं हैं. मुनमुन वही उम्रदराज महिला है, जिस ने सेनेटरी नैपकिन में ड्रग्स छिपाई थी.

फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी यह खूबसूरत महिला कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश के सागर शहर के गोपालगंज मोहल्ले में रहा करती थी. अपनी स्कूली पढ़ाई उस ने यहीं से पूरी की थी. उस का परिवार बिजनैस से ताल्लुक रखता है. भाई प्रिंस धमेचा दिल्ली में कार्यरत है.

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कुछ न होते हुए भी उस के फिल्म इंडस्ट्री में कई हस्तियों से अच्छे संबंध हैं. आर्यन कैसे उस के संपर्क में आया, यह पूरी जांच और मुकदमे के बाद साफ होगा.

पकड़ा गया दूसरा मुख्य आरोपी 25 वर्षीय अरबाज मर्चेंट मुंबई का जानामाना टिंबर कारोबारी है, जिस की 2 कंपनियां स्वदेश टिंबर और सिमला एजेंसीज हैं. यह उस का पुश्तैनी कारोबार है.

अरबाज ने बांद्रा के आर.डी. नैशनल कालेज से बैचलर इन मैनेजमेंट स्टडीज की पढ़ाई की थी. उस के पिता असलम मर्चेंट पेशे से वकील हैं. अरबाज और आर्यन की दोस्ती बहुत पुरानी है और दोनों ने देशविदेश की कई यात्राएं साथसाथ की हैं. दोनों पार्टियों में भी संग दिखते थे. मुनमुन कौन है, यह अरबाज भी नहीं जानता.

मोहक और नूपुर दोनों पेशे से फैशन डिजायनर हैं, जबकि गोमित हेयर स्टाइलिस्ट है. ये तीनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. नूपुर ने भी मुनमुन की तरह ड्रग्स सेनेटरी नेपकिन में छिपाई थी.

ये ड्रग्स उसे मोहक ने दी थीं, लेकिन मोहक के पास ड्रग्स कहां से आई, यह अभी पता नहीं चला है और यही सारे फसाद की जड़ है कि एनसीबी या दूसरी कोई एजेंसी ड्रग माफियाओं की जड़ तक कभी नहीं पहुंच पाती. हर बार वे फूलपत्तियां ही तोड़ती रही हैं.

इस मामले में भी छोटी मछलियां ही पकड़ाई हैं, मगरमच्छों के तो किसी को अतेपते नहीं.

जाहिर है कि ये सब के सब कच्चे और नए खिलाड़ी ड्रग्स के मायाजाल के थे, जो सिर्फ मौजमस्ती की गरज से गोवा जा रहे थे. एनसीबी के सामने इन की घिग्घी बंधी हुई थी क्योंकि हिरासत में लेते वक्त ही इन के मोबाइल फोन भी जब्त कर लिए गए थे, जिस से इन का संपर्क बाहरी दुनिया और खासतौर से उन पेरेंट्स से कट गया था, जिन के बारे में ये सोचते यह होंगे कि उन के मांबाप बहुत रईस और रसूख वाले हैं, लिहाजा इन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

अब तक ऐशोआराम में पलेबढ़े इन रईसजादों को पहली बार यह समझ आया कि कानून के सामने कोई रसूख या शोहरत नहीं चलती, जिस के कि ये आदी बचपन से ही हो चुके थे.

लंबी पूछताछ में लगता नहीं कि ये नातजुर्बेकार युवा कोई झूठ बोल पाए होंगे. एनसीबी की टीम तो इन की मानसिकता समझ रही थी, लेकिन ये लोग नहीं समझ पा रहे थे कि इस चूहेदानी से निकलना अब आसान काम नहीं.

उस वक्त ये सभी यही दुआ मांग रहे होंगे कि एनसीबी वाले पूछताछ जल्द खत्म कर हमें छोड़ दें, जिस से वे घर जा कर आराम से एयर कंडीशंड कमरों में सोएं और पार्टी की रात और बात को एक बुरे सपने की तरह भूल जाएं.

मुमकिन है इन नवोदित नशेडि़यों ने तभी कान पकड़ कर तौबा कर ली हो कि अब कभी क्रूज पार्टी तो दूर आम पार्टियों में भी ड्रग्स नहीं लेंगे.

डायरेक्टर बनाम लायर

लेकिन इन के हाथ में अब कुछ बचा नहीं था. अदालत ने पहले 3 दिनों का रिमांड दिया फिर उसे 14 दिनों तक और बढ़ा दिया तो और सनसनी और रोमांच मचने लगे. सीधेसीधे लोगों की नजरें समीर वानखेड़े और आर्यन के वकील सतीश मानशिंदे पर जा टिकीं कि इस बार कौन किस पर भारी पड़ता है.

वानखेड़े की मंशा आरोपियों को ज्यादा से ज्यादा दिन हिरासत में रखने की थी तो मानशिंदे की पूरी कोशिश अपने मुवक्किल आर्यन खान को जमानत दिलाने की थी.

समीर वानखेड़े एक सख्त और तेजतर्रार अफसर हैं जिन के खाते में कई बौलीवुड हस्तियों के खिलाफ काररवाई करने का रिकौर्ड, वह भी ड्रग्स के मामले में करने का, दर्ज है.

अगले भाग में पढ़ें- तालिबानी सत्ता के बाद भारत में बढ़ गई ड्रग तस्करी

Crime- बुराई: ऐसे जीजा से बचियो

दिल को दहला देने वाली यह वारदात राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव पोशाल नवपुरा की है. अधेड़ हो चले यहां के एक बाशिंदे पुरखाराम की बीवी, जिस का नाम पप्पू था, की मौत कोरोना से जून महीने में हो गई थी. तब से वह परेशान और चिंतित रहता था कि अब 4-4 बेटियों की परवरिश अकेले वह कैसे करेगा? उस की सब से बड़ी बेटी की उम्र 7 साल और सब से छोटी बेटी की उम्र महज डेढ़ साल है.

बिलाशक कोरोना के कहर ने दूसरे कई लोगों की तरह पुरखाराम की जिंदगी में भी तूफान मचा दिया था, लेकिन एक मिसाल इस गांव के लोगों ने कायम की थी, जिस का जिक्र कहीं नहीं हुआ था कि उन्होंने 2 लाख रुपए का चंदा कर के उसे दिए थे, जिस से वह अपनी बेटियों की परवरिश करते हुए उन्हें पढ़ा सके और इस सदमे से उबरते ही दोबारा काम पर जा सके.

बीवी की मौत के बाद बेटियों को ननिहाल जाना पड़ गया था और तब से वे वहीं रह रही थीं. वहां मौसी नेहा (बदला हुआ नाम) के साथ रहते हुए वे अपनी मां की मौत का दुख भूलने लगी थीं, जिन्हें लोगों ने इतना बताया था कि तुम्हारी मम्मी हमेशा के लिए दूर कहीं चली गई हैं, वरना तो ये नादान बच्चियां मौत का मतलब भी नहीं सम?ाती थीं. इन्हें फौरीतौर पर जिस प्यार, ममता और हमदर्दी की जरूरत थी, वह मौसी नेहा और मामा देवा राम से भी मिल रही थी.

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हैवान बना बाप

बीती 19 सितंबर को पुरखाराम अपनी ससुराल पहुंचा और ससुराल वालों से कहा कि वे नेहा की शादी उस से कर दें, जिस से उसे और बेटियों को सहारा मिल जाएगा. सौतेली मां से अच्छी तो सगी मौसी होती है.

ससुराल वालों के मना करने के बावजूद भी वह नेहा से ही शादी करने की जिद पर अड़ गया. कोई और बात होती तो शायद वे सोचते भी, लेकिन कुछ दिन पहले ही नेहा की शादी एक अच्छा घरवर देख कर तय कर दी गई थी, इसलिए उन्होंने साफ इनकार कर दिया था.

खुद नेहा की मरजी भी अपने जीजा से शादी करने की नहीं थी, इसलिए पुरखाराम की जवान और खूबसूरत साली को बेटियों की आड़ में पाने की ख्वाहिश अधूरी रह गई.

ससुराल से बैरंग लौटे हवस के मारे इस शख्स से यह इनकार बरदाश्त नहीं हुआ, क्योंकि वह उन लोगों में से था, जो साली को आधी घरवाली सम?ाते हैं और मौका मिले तो पूरी बनाने से भी नहीं चूकते. आतेआते वह लड़?ागड़ कर अपनी चारों बेटियों को भी साथ ले आया था. उस का घर जो ससुराल से चंद मिनटों की दूरी पर ही था, वहां आ कर उस ने एक वहशियाना फैसला ले लिया.

तिलमिलाए पुरखाराम ने फूल सी अपनी चारों बेटियों को दवा पिलाने के नाम पर उन्हें कीटनाशक जहर पानी में घोल कर पिला दिया और 1-1 कर के उन्हें घर में बनी पानी की टंकी में डाल दिया. कुछ ही देर में उन मासूमों ने दम तोड़ दिया.

पुरखाराम को यह लग रहा था कि अगर ये बेटियां नहीं होतीं, तो नेहा या कोई दूसरी लड़की उस से शादी करने के लिए तैयार हो जाती, क्योंकि कुछ गांव वालों के मुताबिक, उस ने 2 लाख रुपए शादी कराने वाले दलालों को दिए थे, लेकिन उस से कोई लड़की शादी करने को राजी नहीं हो रही थी और दलाल भी पैसे डकार कर छूमंतर हो गए थे.

साफ दिख रहा था कि पुरखाराम की नीयत और मंशा सिर्फ जैसे भी हो जल्द से जल्द शादी कर लेने की थी. मासूम बेटियों की तो उसे चिंता ही नहीं थी, अगर होती तो वह इतनी बेरहमी से उन की हत्या नहीं करता.

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इस वारदात को अंजाम देने के बाद पुरखाराम को लगा कि वह पकड़ा जाएगा, तो डर के मारे उस ने भी जहर पी लिया और उसी टंकी में कूद गया, लेकिन कुछ लोगों ने उसे देख लिया और बचा लिया, पर टंकी में 4 मासूमों की लाशें देख कर गांव में कोहराम मच गया.

पुलिस आई तो बच्चियों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी गईं और पुरखाराम को इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया.

सालियां क्या करें

नेहा ने कोई गलत फैसला नहीं लिया था, यह तो उस के जीजा की करतूत से उजागर हो ही गया, जो वहशी, जिद्दी और कमजोर भी था. हर लड़की को शादी और दूसरे निजी मामलों में फैसले लेने का हक है, लेकिन कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि मन मार कर जीजा से शादी करनी पड़ती है. कुछ मामलों में यह फैसला ठीकठाक साबित होता है, तो कइयों में गलत भी निकलता है.

विदिशा की निशा (बदला हुआ नाम) की मौत एक बीमारी के चलते हुई थी, जिस का 3 साल का बेटा था. उस के क्रियाकर्म के बाद घर और समाज वालों ने फैसला लिया कि निशा की छोटी बहन आशा (बदला हुआ नाम) को जीजा से शादी कर लेनी चाहिए. इस से बच्चा सौतेली मां की परछाईं से बचा रहेगा और खर्च भी कम होगा.

घर और समाज वालों के दबाव में आ कर आशा ने हां कर दी, क्योंकि वह अपनी बहन और उस के बेटे को बहुत चाहती थी. उस के जीजाजी भी ठीकठाक आदमी थे.

लेकिन शादी के 2 साल बाद ही बात बिगड़ने लगी, क्योंकि आशा अपनी कोख से भी बच्चे को जन्म देना चाहती थी. इस पर उस के पति यानी पहले के जीजा ने साफ इनकार कर दिया कि तुम्हारा खुद का बच्चा हो जाएगा, तो तुम मेरे बच्चे पर ध्यान नहीं दोगी और उस से सौतेला बरताव करोगी.

आशा ने पति को सम?ाने की कोशिश की कि मेरा बच्चा भी तो आप का ही होगा. इस पर वह बेरुखी से बोला कि मु?ो तो बच्चे के लिए मुफ्त की आया और खुद की सैक्स संतुष्टि के लिए एक औरत चाहिए थी, इसलिए तुम से शादी करने के लिए राजी हो गया, कोई दूसरी लाता तो दिक्कत और फसाद खड़े होते.

अब आशा को अपनी हैसियत और पति की असलियत का एहसास हुआ कि उस का तो कोई वजूद ही नहीं है, उस की भावनाओं और ख्वाहिशों के कोई माने ही नहीं हैं, वह तो एक मुफ्त की नौकरानी और किराए की मां है, जिस का काम चूल्हाचौका, घर की साफसफाई और बच्चे की परवरिश करने के अलावा रात को बिस्तर में पति को खुश करना भर है.

आशा कहती है कि अब उस के नाम के मुताबिक जिंदगी में कोई आशा ही नहीं बची है, वह तो अब चलतीफिरती लाश बन कर रह गई है.

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जीजासाली का रिश्ता बड़ा अहम और हंसीमजाक का माना जाता है, लेकिन इस में एहतियात खासतौर से सालियों को रखना जरूरी है. मसलन, ज्यादा हंसीमजाक ठीक नहीं रहता. इस के अलावा जीजा की नाजायज हरकतों को हवा देना भी महंगा पड़ता है.

कई सालियां तो जीजा से प्यार कर बैठती हैं और उन्हें अपना शरीर भी सौंप देती हैं, जो अपनी ही बहन का घर उजाड़ने और उस की खुशियों पर डाका डालने जैसी बात है. इस से साली को  भी कुछ हासिल नहीं होता और कई  बार शादी हो जाने के बाद ये नाजायज ताल्लुकात खुद का भी घर उजाड़ देते हैं.

लेकिन सिचुएशन जब नेहा और आशा जैसी हो जाए तो सालियों को अपने दिमाग से सहीगलत देखते हुए जीजा से शादी करने का फैसला लेना चाहिए, क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि जीजा एक अच्छा पति साबित होगा ही.

Satyakatha: पैसे का गुमान- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.

वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था.

इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था.

उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा.

नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता.

यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे.

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पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया.

पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था.

उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया.

नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

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वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी.

कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए.

पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई.

बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर के पर सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

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मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था.

बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

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