कामिनी पर मानो वज्रपात हुआ. दिल की धड़कन बंद होती जान पड़ी. इतनी औरतों और आदमियों के सामने उसे दलन उठाए ले जा रहा था. कुछ न सु झाई दिया. पहले तो छूटने के लिए हाथपैर फेंके. परंतु उसे पिशाच की पकड़ से वह कोमलांगी ही क्या, खासा पट्ठा भी नहीं निकल सकता था. असहाय युवती की आंखों में अश्रु झलक आए. साहस और चेतना ने जवाब दे दिया. उस के रुंधे कंठ से केवल इतना निकला, ‘‘छोड़ दो. दया करो. तुम्हारी भी मांबहनें होगी. हे ईश्वर…’’ अर्द्धमूर्छित हो उस के हाथों में झूल गई. सब निस्सहाय और आवाक थे.
कोईर् बचाने वाला न था. ऐसे में ईश्वर का भी चुप रहना भगवती चाची को बहुत खला. अन्य डाकू किंकर्त्तव्यविमूढ़ बने किसी दुर्घटना की आशंका से अचेत से खड़े थे. दलन ने एक झटके में कामिनी को कंधे पर लाद लिया और अन्य गैंगस्टरों को उतरने के लिए इशारा दिया. वह स्वयं भी छत के पिछवाड़े की ओर बढ़ा. श्यामू पांडे का सब कुछ गया. धन गया. मान गया. बेटी गई. औरतें फफक उठीं. ‘‘खबरदार.’’ कड़क कर कहता हुआ राजू एकाएक जीने से छत पर जा कूदा. वह क्षण भर में सब सम झ गया था. औरतों को लगा, मानो भगवान स्वयं आ गए. कुछ न सू झा. रोने का स्वर और भी ऊंचा कर दिया. निर्बल की दुहाई आंसुओं और रोने के स्वर में ही होती है.
राजू फायर की बात भूल गया. दलन की ओर लपका. डाकू इस बेबुलाए मेहमान को देख कर सकपका गए. चिम्मन कुलबुलाया. दलन सिंह ने उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखा और मन ही मन बाहर पहरा न बैठाने की गलती स्वीकार की. कामिनी को भी होश आ गया था. उस ने जोर लगाया. घबराए हुए दलन के हाथ से वह छूट गई. राजू अकड़ता हुआ दलन और कामिनी के पास बिछी दरी पर जा खड़ा हुआ. हांफता हुआ गुर्राया, ‘‘औरतों पर हाथ उठाते शरम…’’ बात पूरी होने से पहले वह मुंह के बल जा गिरा. बंदूक भी हाथ से किसी ने झटक ली. बगल के डाकू ने धीरे से उस के पैरों के नीचे से दरी खींच ली थी. राजू जब तक संभले, एक बंदूकधारी सिर पर आ डटा. उसे विवश हो वहीं बैठ जाना पड़ा. यह सब मिनट भर में हो गया. अभी रामबली और जग्गू के दल यथास्थान पर न आए थे कि राजू भी कैद हो गया. जेवरों को दो डाकुओं ने संभाला. दलन ने कामिनी को अपनी ओर खींचा.
कामिनी ने असफल विरोध किया. चीखी. सब चुपचाप. राजू की मुट्ठियां कस गईं. दांत भिंच गए. आवेश में मस्तिष्क भन्ना उठा. दलन ने कामिनी को कमर पर लादने की चेष्टा की. कामिनी की सब का बांध टूट गया. वह जोर से रो पड़ी. राजू को लगा मानो कान में किसी ने गरम सीसा पिघला कर डाल दिया है, पर वह जड़ सा बैठा रहा. दलन सिंह ने साथियों को आज्ञा दी, ‘‘माल के साथ दो और जाओ. मैं भी परी के साथ घोंसले में पहुंचता हूं. टहलते हुए जाओ. बिना जरूरत बंदूक न चले. होथियार, खबरदार.’’ कह कर कामिनी को फिर लादने का प्रयत्प किया. कामिनी फफक कर रो उठी. उस ने करुणा भरी दृष्टि डाकुओं, औरततों, चिम्मन और राजू सब पर दौड़ाई. कितनी विवशता और पीड़ा थी उस की आंखों में. आतंकित हिरणी सी. सरदार की आज्ञा सुन कर राजू पर बंदूक टिकाने वाला डाकू भी कुछ बेखबर हुआ. दलन दहाड़ा, ‘‘सीधी तरह चलती है या…’’ वेग से राजू हिला, दानव की भांति अपनी जगह से उछल कर दलन से जा चिपटा. दोनों खाली हाथ थे. उस ने दलन की गरदन पकड़ी.
राजू का पहरेदार डाकू हक्काबक्का सा रह गया. दलन इस वज्रपात से धराशायी हो गया. गले से केवल गों गों का स्वर फूटा. कामिनी उस के हाथ से दूर जा गिरी. राजू आवेश में गरजा, ‘‘डाकू. राक्षस.’’ गैंगस्टर्स का बनाबनाया खेल बिगड़ता दीखा. राजू के इस पैतरे से वे बहुत चकराए. एक ने जोर दे कर राजू को अलग करना चाहा. दलन ने भी छुटकारे के लिए जीजान से जोर लगाया. राजू अलग तो नहीं हुआ, परंतु कलाबाजियां खाता हुआ दलन के नीचे आ गया. डाकू घबराए. राजू अलग न होता था. गोली चलाने में दलन के मारे जाने का भी खटका था. दलन और राजू छत पर लुढ़कियां खा रहे थे.
कभी दलन ऊपर, कभी राजू. सब धड़कते दिल से चुपचाप इस मल्ल युद्ध को देख रहे थे. यह तमाशा बढ़ता देख पहरे वाले डाकू को विवश हो कर बंदूक संभालनी पड़ी. वह चिल्लाया, ‘‘छोड़ दे, पागल, नहीं तो भून कर रख दूंगा.’’ कामिनी भी इस घोषणा से कांप गई. सब भूल कर चीखी, ‘‘छोड़ दे, राजू? गोली मार देगा जालिम. छोड़ दे, मेरे अच्छे, राजू.’’ परंतु दोनों बुरी तरह भिड़े हुए थे. डाकू ने राजू के सिर पर निशाना बांधा. कामिनी ने बंदूक खींच कर निशाना बिगाड़ दिया. दूसरे ने तुरंत उसे पकड़ लिया. निशाना फिर बांधा गया. अगले ही क्षण राजू लुढ़का, पर कामिनी में न जाने कहां से बल आ गया. शेरनी की भांति तड़प उठी. घिसट कर बंदूक में कोहनी मार ही दी. बंदूक की धांय हुई. गांव भर कांप गया. गोली राजू की बांह पार करती हुई दलन के सीने में जा घुसी. दलन जोर से तड़पा और फिर ठंडा हो गया. गैंगस्टर्स के हाथों के तोते उड़ गए. फायर की आवाज सुनते ही जग्गू का दल अटारी पर चढ़ आया. ‘पकड़ोपकड़ो’ का घोष किया. गैंगस्टर्स पर चोट पर चोट हुई. वे बौखला गए.
वे बंदूकें संभाल कर उन पर लपके. कई बंदूकें एक साथ दागीं, परंतु निशाना एक का भी ठीक न था. क्योंकि सब घबराए हुए थे. चिम्मन में भी जोर आया. लुढ़कपुढ़क कर किसी प्रकार मुंह में ठुंसा कपड़ा निकाल कर फेंका और अस्फुट स्वर में वहीं से तड़पा, ‘‘कोई खोल दो मु झे. मैं अकेले ही चबा जाऊंगा इन उच्चकों को. मेरी मुंहतोड़ कहां है?’’ पीछे रसोईघर की छत से रामबली के लठैतों ने ‘जय हिंदुस्तानी.’ की पुकार लगाई. गैंग मैंबर्स दोनों ओर से घिर गए. गोली चलाना बेकार था. ऐसी भगदड़ में निशाना बैठना कठिन था और बंदूकें भी खाली हो जाती. लीडर मारा ही गया. इस आकस्मिक विपदा ने तो उनके पैर उखाड़ दिए. जब तक संभले, सिर पर बल्लमधारी और लठैत आ कूदे. बाजी बिलकुल उलट गई. गैंगस्टर्सकम्मो, जेवर और दलन सिंह के शव को भूल कर सिर पर पैर रख पिछवाड़े की ओर दौड़े. उधर से ही बचाव का रास्ता रह गया था. छत पर खासा संग्राम मच गया. जैसेतैसे कूद कर बाग की ओर भागे. नीचे भीड़ जमा थी. उस ने बहती गंगा में हाथ धोए. बंदूक से लैस डाकुओं के दल को डंडों और लाठियों से ही धमकाया. रामबली और जग्गू के दलों ने कूद कर उन्हें बाग तक पछिया कर छोड़ दिया. घायल राजू को भी देखना था. गैंगस्टर्स को यह सौदा बड़ा महंगा पड़ा.
गांव वाले लौटे चिम्मन भी हाथपैर खुलवा कर उन में आ मिला. तड़पते हुए राजू का सिर कामिनी की गोद में था. उस की भौंहें अब भी चढ़ी हुई थीं. बांह से खून की धार बह रही थी. कराहा और कष्ट से हिला. अचेत बुदबुदा रहा था, ‘‘तुम्हें न बचा सका…तुम्हें न बचा सका… उफ…कामिनी…कम्मो… पर अब न कहना…न कहना…राजू न आया…’’ वह जोर से तड़पा. किंतु मुखमंडल शांत था. चांदनी के प्रकाश में मानो मुसकरा रहा था. कामिनी उस पर झुक गई. दांतों से होंठ भींच कर रुलाई रोकी, परंतु आंसुओं की धार राजू के माथे पर टपक ही गईर्. चिम्मन ने देखा, घायल राजू को, लफंगे राजू को, जो एक दिन खड़ा कामिनी को घूर रहा था. आंखों में आंसू आ गए. पैर पकड़ कर सिसका, ‘‘क्षमा करना, राजू. तुम रक्षक हो. न अपने यह जाति का भूत कब सिर से उतरेगा कि आदमी की पहचान ही नहीं हो पाती. सब ने राजू को देखा. श्रद्धा और ममता से.