दहेज की कोई भी खबर पढ़ कर लोगों खासतौर से औरतों को तमाम मर्द मारपीट करने वाले नजर आने लगते हैं. आम राय यह बनती है कि मर्द समुदाय पैसों के लिए पत्नियों को परेशान करता है.

दहेज कानून की बनावट चाहे ऐसी हो कि अगर एक बार कोई पत्नी अपने पति के जुल्म की शिकायत कर दे, तो पति वाकई कुसूरवार है या नहीं, यह देखनेसम झने के पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है, पर इस से औरतों को कुछ नहीं मिलता, क्योंकि वे न तो ससुराल की रहती हैं, न ही मायके की.

मगर भोपाल के नजदीक सीहोर जिले के परिवार परामर्श केंद्र के अफसर और सदस्य इस बात को ले कर हैरानपरेशान हैं कि पिछले 5 सालों से औरतों के मुकाबले मर्र्द ज्यादा तादाद में अपना रोना रोते आ रहे हैं. औरतों की लड़ाई के खिलाफ इतनी सख्ती बरतने को कोई कानून ऐसा नहीं है, जो उन्हें सबक सिखा सके. परिवार परामर्श केंद्रों का अहम मकसद घरेलू  झगड़ों को निबटाना है.

पति कुसूरवार होता है या उस के खिलाफ शिकायत आती है, तो तुरंत उसे दहेज और प्रताड़ना कानूनों का हौआ दिखा कर यह सम झाया जाता है कि सम झौता कर लो, नहीं तो पहले हवालात और फिर जेल जाना तय है. आरोप कितना सच्चा है और कितना  झूठा, इस की जांच की जहमत आमतौर पर नहीं उठाई जाती.  आम मर्द अपने को जेल से बचाने के लिए राजीनामा कर लेता है, पर घोड़े को पानी तक ले जाया जा सकता है, उसे पानी नहीं पिलाया जा सकता. घर में रह कर वह बीवी की धौंस सहता है, पर प्यार नहीं करता.

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