कर्नाटक में सरकार बनाने में कामयाब होने के बाद कांग्रेस की निगाहें अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर हैं. इन तीनों राज्यों में साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होने हैं.

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां भाजपा सरकार के कुशासन, भ्रष्टाचार और पिछड़े दलित आदिवासियों को सताने के चलते चर्चा में हैं, वहीं राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार कुशासन व भ्रष्टाचार के साथ ही गुटबाजी और पार्टी हाईकमान से टकराव के चलते सुर्खियों में है.

कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान की बाजी जीतने के लिए पार्टी के युवा और अनुभवी नेता सचिन पायलट को आगे किया है. गुर्जर समुदाय से होने के साथ ही वे नौजवानों में भी काफी मशहूर हैं.

वसुंधरा राजे की राजसी बैकग्राउंड और संघ से दूरी के चलते राज्य में लगातार उन का जमीनी आधार कमजोर हुआ है. सिर्फ राज्य सरकार ही नहीं, बल्कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के खाते में भी उपलब्धियों के नाम पर कुछ खास नहीं है.

ठोस उपलब्धियों की कमी में अब भारतीय जनता पार्टी सरकार जातीय व धार्मिक तनाव पैदा कर वोटों का ध्रुवीकरण करने में लगी है. लेकिन भाजपा की नीतियों के चलते राज्य में जाट, गुर्जर और राजपूत समुदाय उस से दूरी बना रहे हैं.

साल 2013 में वसुंधरा राजे ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी. तब राजस्थान की जनता ने उन पर विश्वास जताते हुए 45.2 फीसदी वोटों के साथ 163 सीटों पर जीत दिलाई थी. दिसंबर, 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 33.1 फीसदी वोट और 21 सीटें ही मिली थीं. उस के बाद भाजपा को लोकसभा चुनाव में भी भारी बहुमत मिला था.

राजस्थान की जनता को यह उम्मीद थी कि इस बार केंद्र व राज्य की भाजपा सरकारें जनता की उम्मीदों पर खरी उतरेंगी, लेकिन बीते साढ़े 4 साल में वसुंधरा सरकार ने जनता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. राज्य में जातीय तनाव के साथ कानून व्यवस्था की हालत पतली रही है. किसान, मजदूर, कारोबारी और मध्य तबका परेशान रहा है.

सचिन पायलट कहते हैं, ‘‘भाजपा के मंत्री और विधायक काम के चलते नहीं बल्कि अल्पंसख्यकों पर बेबुनियाद आरोप लगा कर चर्चा में रहे हैं. गोमांस के नाम पर मुसलिमों की हत्या और किसानों पर  लाठीचार्ज से वसुंधरा राजे का दामन दागदार हुआ है. किसानों की खुदकुशी और फसल की कीमत तय करने की मांग को ले कर राज्य में किसान आंदोलन खड़ा हुआ है.

‘‘वसुंधरा सरकार ने किसानों की मांग पर सुनवाई करने के बजाय उन पर पुलिसिया कार्यवाही कर के आंदोलन को कुचलने की साजिश रची. अब जब चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो भाजपा धार्मिक और जातीय भावनाओं को भड़का कर गोलबंदी करने में जुट गई है.’’

राजस्थान की जमीनी राजनीति से मिल रहे संकेतों को कांग्रेस पढ़ने में कामयाब रही है. वसुंधरा सरकार के कुशासन के खिलाफ कांग्रेस ने कमर कस ली है.

अलवर और अजमेर लोकसभा सीट व मांडलगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस ने बड़े अंतर से भाजपा से छीन ली थी. उपचुनावों में मिली जीत से यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस राजस्थान में भाजपा के खिलाफ विकल्प बन गई है.

कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान में सचिन पायलट के लिए रास्ता और भी आसान करने के लिए राज्य के प्रमुख नेता अशोक गहलोत को पार्टी में संगठन महासचिव की अहम जिम्मेदारी सौंपी है.

विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस राज्य में गुटबाजी के डर को खत्म करने की पूरी कोशिश कर रही है.

पार्टी आलाकमान ने एक तरह से सचिन पायलट का रास्ता साफ कर दिया है. पार्टी ने अशोक गहलोत को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में जगह दी है.

मतलब, केंद्रीय संगठन में बुला कर उन्हें राजस्थान से दूर कर दिया गया है. इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को ओडिशा व सांसद राजीव सातव को गुजरात का एआईसीसी प्रभारी बना कर राज्य में गुटबाजी को खत्म करने की कोशिश की गई है.

सचिन पायलट कहते हैं कि सिर्फ राजस्थान में ही नहीं, बल्कि कांग्रेस पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जबरदस्त टक्कर देगी.

राहुल गांधी की अगुआई की तारीफ करते हुए सचिन पायलेट कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एकमात्र शख्स हैं जो साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सकते हैं और भाजपा को सत्ता से हटा सकते हैं. भाजपा सवालों के जवाब देने से भाग रही है, लेकिन राहुल गांधी उसे जवाबदेह बनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं.

राजेश पायलट का कहना है, ‘‘राहुल गांधी भाजपा की सभी नाकामियों को ले कर लगातार हमला कर रहे हैं और इस से विपक्षी ताकतों को ताकत और विश्वास मिल रहा है. सही समय आने पर भाजपा विरोधी सभी ताकतें एकजुट हो जाएंगी.’’

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