Editorial: बिहार के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का वोट चोरी का पैंतरा बिलकुल काम न आया क्योंकि ऐसा लगता है कि मोटे तौर पर वोटों को मैनेज करने में भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह आगे रही. वोट नहीं देने दिया गया हो इस की शिकायतें उतनी नहीं आईं जितनी राहुल गांधी और तेजस्वी यादव बातें कर रहे थे.
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव असल में सिर्फ जाति को ले कर राजनीति कर रहे थे पर जाति ऐसा उलझ सवाल है जिसे वोटों में बदलना न उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के बस का रहा और न ही लालू प्रसाद यादव के. लालू प्रसाद यादव ने लंबे समय तक राज किया तो इसलिए नहीं कि छोटी जातियों को परेशानी थी, इसलिए कि उनकी दबंग जाति को तब कांग्रेस ने वह जगह नहीं दी जो मिलनी चाहिए थी.
कांग्रेस ने ही पिछड़ी जातियों को 1850 से 1990 तक पढ़ालिखा तो दिया था पर इन्हें सत्ता में भागीदार नहीं बनाया था जबकि उन के पास जमींदारी हटने के बाद जमीनें आ गई थीं और वे पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गए थे. लालू प्रसाद यादव ने उस का फायदा उठाया पर वे लोगों को साथ ले कर नहीं चल सके और एकएक कर के रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे साथी उन से बिछड़ जाए.
लालू प्रसाद यादव ने सत्ता में आने के बाद उन जातियों को विशेष भाव नहीं दिया जो इतनी दबीकुचली थीं कि कोविड के दिनों में मुंबईदिल्ली में न रह कर अपने गांवों तक जाने के लिए पैदल चलने को तैयार हो गई थीं, बिना यह सोचे कि उन की रास्ते में सोने, खाने, नहाने की क्या व्यवस्था होगी. लालू प्रसाद यादव की पार्टी या कांग्रेस ने उन लोगों का ध्यान रखा जिन्हें अपना देश छोड़ कर बाहर पराए लोगों के बीच में रहना पड़ा हो, लगता नहीं.
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