पंजाब में शुरू हो चुके खालिस्तान आंदोलन और अमृतपाल ङ्क्षसह की अगुवाई में वारिस पंजाब दे के पनपने के लिए सीधेसीधे भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराना होगा. यह मामला कोई नया नहीं है क्योंकि भाजपा के पिट्टुओं ने 2 साल पहले चले किसान आंदोलन में खालिस्थानियों की बात उसी\ तरह खुल कर कही थी जैसे के देश की सरकार के खिलाफ बोलने वाले हर जने को पाकिस्तानी, अरबन नक्सल, देशद्रोही कह देते हैं.

सिखों में बेचैनी होने लगी थी यह इस से साफ है कि जब भाजपा के नरेंद्र मोदी को पूरे देश में गूंज ही रहा हो, पंजाब में पहले कांग्रेस की सरकार थी और फिर आम आदमी पार्टी की. भाजपा से अकाली दल का पूरी तरह नाता तोडऩा कोई सिर्फ राजनीतिक दावपेंच नहीं था, यह सिखों का बिफरना है.

जब भी ङ्क्षहदू, भारत माता, वंदेमातरम की बात की जाती है और पूरे देश की जनता को कहा जाता है कि इसे ही अपना मूलमंत्र माने मुसलिम ही नहीं, सिख, ईसाई, जैन, बौध और दूसरे छोटेछोटे संप्रदायों के लो कसमसाने लगते है. ङ्क्षहदू राष्ट्र की सोच इस कदर भाजपा के मंत्रियों की सोच में घुस गई है कि वे उस के बाहर सोच ही नहीं पा रहे और भूल रहे है कि यहां हर तरह के लोग सदियों से बसे हैं और नारों से न उन का रंगढंग बदला जा सकता है, न सोच.

आज का युग वैसे साइंस का है टैक्नोलोजी का है. उस में धर्म की कहीं कोई जगह ही नहीं है, गुंजाइश ही नहीं है, जरूरत ही नहीं है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान का हाल हम देख रहे है जहां धर्म जनता पर हावी हो गया और लोगों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.

अमृतपाल ङ्क्षसह जैसे लोग ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं कि कौर्य, धर्म, जाति के नाम पर अपना उल्लू सीधा कर सकें. किसान आंदोलन जो शुरू में फरम किसानों के नेताओं की अगुवाई में चला और राकेश टिकैत बाद में उभरे, सिखा गया कि देश की सरकार को सीधा करा जा सकता है. जरूरत है मुद्दे की जिस के सरकार बेबात में मौके देती रहती है.

आजकल मंदिर, मसजिद, गुरूद्वारों में कमाई करने की होड़ मची हुई है और चूंकि भक्ति का माहौल सरकारी पार्टी ही बात रही है, जिम्मेदारी उसी पर आती है. आजकल चारों और अगर कुछ बड़ा बन रहा है तो वह धर्म से जुड़ा है. अयोध्या तक में एक बड़ी सुंदर आकर्षक मसजिद की प्लाङ्क्षनग चल है रही है और पक्का है कि गरीबी में रह रहे मुसलमान भी पेट काट कर उस के लिए पैसा जमा कर लेंगे. जब ङ्क्षहदू और मुसलमानों की बात रोज होगी तो सिखों की क्यों नहीं होगी.

अमृतपाल ङ्क्षसह ने इसी का फायदा उठाया है और अजचलों में उस के साथियों ने एक कट्टरपंथी को पुलिस से फुड़वा कर साबित कर दिया कि उन की भीड़ जुटाने की वक्त है. अमृतपाल ङ्क्षसह गिरफ्तार होता है या वह कहीं विदेश में पहुंच जाता है अभी नहीं कह सकते. वह केंद्र सरकार के लोहे के बच निकलने की सोच भी सकता था, यही यह दिखाने के लिए बाफी है धर्म के नाम पर सुलगाई आग कब काबू से बाहर हो जाए और किस के घर जला दे कहां नहीं जा सकता. उम्मीद की जानी चाहिए कि अमृतपाल ङ्क्षसह के पंजाब का अमन खराब करने की इजाजत नहीं मिलेगी और सरकार इस मसले को जिद और पुलिस के

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